हज़रते सय्यदना शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

बहरे शिब्ली शेरे हक़ दुनिया के कुत्तों से बचा 

एक  का  रख  अब्दे  वाहिद  बे रिया के वास्ते 

विलादत बा सआदत

आप की पैदाइश मुबारक 247, हिजरी और ईस्वी  861, में मुल्के इराक की राजधानी शहर बाग्दाद् शरीफ के करीब बा मकाम सामराह शहर में हुई, और वहीं पर आप की नशों नुमा (परवरिश) हुई, मगर एक कोल ये है के आप की विलादत “सरिश्ता” में हुई ।     

इस्म मुबारक व कुन्नियत

आप का नाम व इस्मे गिरामी “जाफर” है और कुन्नियत “अबू बक्र” है, और आप के नाम के सिलसिले में एक कोल ये है के आप का नाम इस तरह है, दुल्फ, बिन जहदर , और दुल्फ बिन हजदर, मगर आप की मरक़द मुबारक पर आप का नाम “जाफर” बिन “यूनुस” कुंदा है, और लक़ब आप का “मुजद्दिद” था ।     

शिब्ली की वजह तस्मिया

आप को शिब्ली इस वजह से कहते हैं के एक मोज़ा गाऊं “शिब्ला या शिब्लिया” के रहने वाले थे । 

आप तीस साल तक इल्म हासिल करते रहे

आप इरशाद फरमाते हैं के में ने तीस साल तक इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे हदीस, पढ़ा यहाँ तक के इल्म का दरिया मेरे सीने में मोजीज़न हो गया, यानि इल्मा का दरिया मेरे सीने में लहेरे मारने लगा, “उल्माए तरीकत” की खिदमत मुबारक में गया और उन से कहा, मुझे इल्मे इलाही की तअलीम दो? मगर कोई शख्स भी नहीं जानता था, बल्के उन्हों ने कहा, किसी चीज़ का निशान किसी चीज़ से मिलता है लेकिन ग़ैब का कोई निशान नहीं होता, में इन की बात सुन कर हैरान रह गया और कहा: आप लोग तो खुद अँधेरी रात में हैं और अल हम्दुलिल्लाह के में सुबह रोशन में हूँ, फिर में ने अल्लाह पाक का शुक्र अदा किया और अपनी विलायत को एक चोर के सुपुर्द कर दिया हत्ता के जो कुछ उस ने मेरे साथ किया वो किया, 

आप अइम्मए अरबा में से “हज़रते सय्यदना इमाम मालिक रहमतुल्लाह अलैह” के मुक़ल्लिद थे, और हज़रते सय्यदना इमाम मालिक रहमतुल्लाह अलैह की किताब “मुअत्ता शरीफ” आप को ज़बानी याद थी ।  

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

सर शारे इश्क़े इलाही, मख्मूरे मुहब्बत, शैख़े आलम, मुक़्तदाए औलिया, साहिबे असरार, क़ुत्बे अफ़राद, मारफतो हकीकत के खज़ाना, साहिबे इल्मो हाल, उलूमे ज़ाहिरी व बातनि, वाक़िफ़े रुमूज़े खफियो जली, “हज़रते शैख़ जाफर अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु” आप मारफतो हकीकत के खज़ाना और आप का शुमार मोतबर अकाबिर सूफ़ियाए किराम बुज़ुरगाने दीन में होता है, आप “सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया के बारवे 12, इमाम व शैख़े तरीकत हैं” इबादात व मुजाहिदात व मुकाशिफ़ात में आप का मकाम बहुत ही बुलंद है, और आप के निकात (वो पाकीज़ह कलाम जो हर एक की समझ में न आए, बारीकियां) व इबादात और रुमूज़ व इशरत व रियाज़त व करामात, तहरीर से बाहर हैं, जितने भी मशाइख़ीन सूफ़ियाए किराम आप के ज़माने में थे आप ने उन की ज़ियारत की, और उन की सुहबत में रहे, आप ने उलूमे तरीकत को बदरजए कमाल हासिल फ़रमाया चूंकि आप की ज़बान से ऐसे “असरारो रुमूज़” का इज़हार होने लगा जो लोगों की अक्लों से बहुत बुलंदो बाला होता था, जिस की वजह से नावाकिफ लोग आप को दीवाना भी कहते थे । 

बैअतो खिलाफत

आप मुरीद व खलीफा हैं “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” के । 

दीवानगी इश्क़ के मज़ाहिर

आप उलूमे शरीअत में इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, में भी कमाल रखते थे, सालो साल मदारिस में बा ज़ाब्ता तालीम हासिल की, लेकिन मैदाने तरीकत में उतर कर किसी बात का होश न रहा, इश्के इलाही का गलबा जो हुआ तो सब कुछ भूल गए दीवानगी तारी हो गई, हर वक़्त मदहोश रहने लगे और लोगों ने आप को दीवाना और पागल समझ लिया, पहले शुरू में आप की ये हालत थी के बच्चों को बुला लेते और फरमाते जो “अल्लाह” कहेगा उसे शकर चीनी खिलाऊंगा, कुछ अरसा गुज़रा तो फ़रमाया जो अल्लाह कहेगा उसे दीनार व दिरहम दूंगा, इस के बाद ये नोबत हो गई के आप जोश के आलम में शमशीर बरहना हाथ में लिए घूमने लगे और फरमाते जो भी मेरे सामने “अल्लाह” पाक का नाम लेगा उस का सर फ़ौरन तलवार से उड़ा दूंगा मोतक़िदीन ने पूछा के हज़रत ये इंतिहाई तग़य्युर तबदीली कैसी है? आप ने फ़रमाया के पहले तो में समझता था के लोग “मारफ़त व हकीकत” से अल्लाह पाक का नाम लेते हैं लेकिन अब मालूम हुआ के मेरा ख़याल गलत था लोग महिज़ सिर्फ गफलत और आदत से ऐसा करते हैं और में उसे हरगिज़ रवा जारी नहीं रख सकता के कोई उस का नाम गफलत से ले,

हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु आप जिस जगह “अल्लाह” लिखा हुआ देखते आप उसे बोसा देते चूमते और अदब करते, एक रोज़ आप ने गैबी आवाज़ सुनी के ऐ शिब्ली! ये रस्म कब तक करते रहोगे? अगर सच्चा तालिब है तो मुसम्मा को तलाश कर ये आवाज़ जो सुनी तो गोया दिमाग में एक बर्क (बिजली) सी गिरी दीवानगी और बढ़ गई शोले भड़क उठे और इश्क अपनी इंतिहा को पहुंच गया । 

आप का ज़िक्रो मुजाहिदा

मन्क़ूल: है के आप कुछ दिनों तक एक दरख्त (पेड़) पर घूमते और “हू, हू” कहते, लोगों ने आप से दरयाफ्त किया के आप की ये कैसी हालत है? आप ने जवाब दिया के इस दरख्त पर एक फाख्ता है जो “कू, कू” कह रहे है, इस लिए में भी इस की मवाफ़िक़त में “हू, हू” कह रहा हूँ, यहाँ तक के रावी का बयान है के जब तक आप खामोश न होते, फाख्ता भी खामोश न होती और आप मुजाहिदा की इब्तिदा में आँखों में नमक डाल लिया करते ताके पूरी रात जागते रहें और आँखो में नीदं न आए, आप इरशाद फरमाते के अल्लाह पाक ने इरशाद फ़रमाया हैं के जो शख्स सोता है वो गाफिल होता है और जो गाफिल होता है वो सोता होता है,

रिवायत है के एक दिन आप अपनी मजलिस में बैठे हुए “अल्लाह अल्लाह” की कसरत कर रहे थे के एक दुरवेश ने आप से कहा “लाइलाहा इलल्लाह” क्यों नहीं कहते? आप ने ये सुन कर नारा लगाया और फ़रमाया, में खौफ करता हूँ के ऐसा न हो के कहीं “ला” कहने में ही रह जाऊं और अल्लाह, पहुंचने से पहले ही मेरा दम निकल जाए और इसी वहशत में दुनिया से चला जाऊं इस बात से इस दुरवेश पर एक अजीब कैफियत तारी हुई और लरज़ा बर अंदाम हो कर इस की जान परवाज़ कर गई, इस दुर्वेश के विसाल के बाद इस के रिश्तेदार आप की खिदमत में हाज़िर हुए और आप को गिरफ्तार कर के दारुल खिलाफत (किसी बादशाह का सदर मकाम, या राजधानी, या जहाँ बादशाह का तख़्त बिछता हो)  में ले गए उस वक़्त आप पर “वज्द” (बे खुदी, मदहोश) की हालत में इस तरह चल रहे थे जैसे एक मस्त आदमी चलता है, यहाँ तक के दुरवेश के रिश्तेदारों ने आप पर इस जवान दुरवेश के खून का दावा किया, खलीफा ने आप से कहा, तुम्हारे पास इस दावे का क्या जवाब है? तो आप ने इरशाद फ़रमाया, वो जाने इश्क की आग के शोले से बका के इन्तिज़ार में थी, इस लिए अल्लाह पाक के जलाल ने उस को बिलकुल जला दिया है और सब से तअल्लुक़ खत्म कर लिए, और जब शोक से इस की ताकत न रही, साथ ही सर्ब की कमी हुई यहाँ तक के जो उमूर उस के सीनए बातिन में इश्क का तकाज़ा करने वाले पोशीदह थे, वो मुशाहिदाह जमाल से बिजली की मानिंद भड़क उठे और दिल पर असर किया फिर सोख्ता जान मुर्ग की तरह बदन से निकल कर परवाज़ हो गई, अब आप ही बताएं के इस में शिब्ली का क्या जुर्म व गुनाह है? आप की ये तकरीरे आरिफाना, सुनकर खलीफा ने कहा, शिब्ली को जल्द यहाँ से भेज दो क्यूंकि सिर्फ इन की बातों से ही मेरे दिल पर एक ऐसी सिफ़त व कैफियत तारी हुई है के कहीं में बेहोश न हो जाऊं । 

आप ने सरदारी क्यों छोड़ी?

इब्तिदा शुरू में मुल्के ईरान के शहर “नेहावंद” के आप सरदार थे एक दफा किसी तक़रीब प्रोग्राम में सभी अमीरों और सरदारों को दरबारे खिलाफत में सब को बुलाया गया था, तो आप भी वहां तशरीफ़ ले गए, खलीफा के दरबार से तमाम उमरा, (अराकीने सल्तनत, अहले हुकूमत अहले सरदार) आला कद्र “खिलअत” (जोड़ा, तोहफा, इज़्ज़त की पोशाक) सब को तकसीम की, इसी बीच एक अमीर को छींक आई इस गरीब नादार को इतनी समझ न थी न मुहज़्ज़ब था, इस ने “खिलअत” ही के दामन से अपना मुँह और नाक साफ़ कर लिया, लगा ने और बुझाने वाले हर ज़माने में रहे हैं, उन्होंने खलीफा से कह दिया के जो आप ने खिलअत दी थी फुलां अमीर ने इससे नाक साफ की है, खलीफा को ये सुनते ही गुस्सा आ गया उस ने इससे खिलअत छीन ली और रियासतों सरदारी से भी मअज़ूल बरतरफ़ कर दिया, ये सारा मंज़र हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु देख ही रहे थे और इस वाकिए से आप के दिल पर ऐसा असर पड़ा के सोचने लगे जो शख्स मखलूक की दी हुई खिलअत, की बे एहतिराम बे अदबी करता है उस का हशर में मेरे सामने ये है, खुदा जाने आख़िरत में इस के साथ क्या सुलूक होगा, और जो अल्लाह पाक की दी हुई नेमतों से गफलत बे परवाहि बरतता है, और अल्लाह पाक की दी हुई खिलअत व नमते खुदा की बे अदबी करता है, तो उस का अंजाम क्या होगा, उस के बाद आप अपनी जगह से उठे खलीफा के पास पहुंचे और फ़रमाया आखिर आप भी मखलूक हैं और अपनी खिलअत की बे एहतिराम नहीं देख सकते हालांके इस की हकीकी क़द्रो कीमत जो कुछ है वो आप पर और मुझ पर दोनों पर ज़ाहिर है, तो अल्लाह पाक कब गवारा करेगा के कोई उस की खिलअत से खेले, मुझे जो खिलअत इंसानियत दी गई है में नहीं चाहता के इस मखलूक की दी हुई खिलअत से नापाक कर दूँ, ये कहा और दरबार से मरदाना वार उठे और चले आए,

उसी वक़्त आप आप हज़रत खैर नस्साज रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पहुंच कर तौबा की, इधर आप ने तौबा की, उधर दरवाज़े खुल गए और आप पर एक हालत तारी हो गई और खुद बखुद हिजाबात उठने लगे, हज़रत खैर नस्साज रहमतुल्लाह अलैह ने असल जोहर समझ कर आप को “सय्यदुत ताइफ़ा हज़रते जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में भेज दिया । 

शैख़े तरीकत अपने मुर्शिद की बारगाह में हाज़री

हज़रत खैर नस्साज रहमतुल्लाह अलैह ने आप को “सय्यदुत ताइफ़ा हज़रते जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में भेज दिया, आप वहां हाज़िर हुए तो वहां फ़रमाया आशनाई दोस्त के गोहर का निशान आप के पास मिलता है तो आप मुझे अता फरमाएं या बेच दें? हज़रते जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया, अगर में इसे बेच दूँ तो हरगिज़ इस की कीमत अदा नहीं कर सकते और अगर बख्श दूँ तो तुम को मुफ्त माल की कुछ क़द्रो कीमत नहीं होगी, और तुम ख़ामो ख्वाह इसे ज़ाए करोगे हाँ ये हो सकता है के जवान मर्दों की तरह अपने सर को कदम बनाओ और इस दरिया में कूद पढ़ो यहाँ तक के सब्र व इन्तिज़ार करो के वो गोहर, तुम्हारे हाथ आए, तो आप ने इरशाद फ़रमाया तो आप ही इरशाद फरमाएं के मुझे क्या करना है? हज़रते जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया, एक साल तक गंधक पटाक (एक सफ़ेद, सुर्ख पीला, पथ्थर, आग जलाने का मसाला) बेचो पस आप ने ऐसा ही किया जब एक साल हो गया तो फ़रमाया, जाओ एक साल तक गदाई फ़क़ीरी करो, वो भी इस तरह के किसी शै किसी चीज़ के साथ मशगूल न होना पस आप ने ऐसा ही किया, और साल भर आप बाग्दाद् शरीफ के तमाम बाज़ारो में भीक मांगते फ़क़ीरी करते और किसी शख्स ने आप को कुछ नहीं दिया यहाँ तक के पूरी कैफियत आप ने अपने शैख़ की खिदमत में आ कर अर्ज़ की, तो आप के मुर्शिद करीम ने इरशाद फ़रमाया, शायद अब तुमने अपनी क़द्रो कीमत को समझ लिया होगा के लोगों के नज़दीक तुम्हारी कोई क़द्रो कीमत नहीं है, इस लिए अब मखलूक से दिल मत लगाना और इस को किसी चीज़ पर भी फौकियत ना देना इस के बाद मुर्शिद ने फ़रमाया, तुमने शहरे नेहावंद में अमीरी, और हुकूमत के फ़राइज़ अंजाम दिए हैं, इस लिए जाओ और अहले नेहावंद से माफ़ी मांगो, आप अपने मुर्शिद के हुक्म के मुताबित तशरीफ़ ले गए और एक घर के सिवा बाकी सब लोगों से माफ़ी मांगी क्यूंकि इस घर का आदमी मोजूद नहीं था इस लिए आप ने इस के कफ़्फ़ारे में एक हज़ार दीनार सदक़ा किया, इस के बावजूद भी आप के दिल को करार न हुआ यहाँ तक के चार साल तक आप ने इस हालत में गुज़ार दिए, फिर पीरो मुर्शिद हज़रते जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में हाज़िर हुए तो इरशाद फ़रमाया, अभी तुम्हारे अंदर जाह तलबी, दुनिया की तलब है, इस लिए जाओ एक साल और गदाई करो! आप फरमाते हैं के में ने एक साल और गदाई की इस हालत में जो कुछ मिलता वो शैख़ की खिदमत में ले आता और शैख़ इस को ले कर दुरवेशों में तकसीम फरमा देते और मुझे हर रात भूका ही रखते, यहाँ तक के जब साल गुज़र गया तो शैख़ ने इरशाद फ़रमाया अब तुम हमारी सुहबत के काबिल हो गए मगर इस शर्त पर के दुरवेशों की खिदमत करो पस आप ने एक साल तक दुरवेशों की खिदमत की फिर इस के बाद आप के शैख़े तरीकत हज़रते जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने सवाल किया, ऐ अबू बक्र शिब्ली! अब तुम्हारे नफ़्स की क़द्रो कीमत तुम्हारे नज़दीक किया है? आप ने फ़रमाया में अपने नफ़्स को तमाम जहान से कम तर देखता हू और जनता हू, फिर शैख़ ने फ़रमाया, अब जा कर तुम्हारा ईमान दुरुस्त हुआ, इस के बाद आप ने शरीअत व तरीकत में वो कमाल हासिल किया के आप के शैख़े तरीकत हज़रते जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं: उसी वक़्त आप ने एक निगाह डाली और “हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु” को माला माल कर दिया । 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में आप का मकाम

हज़रत अबू बक्र बिन मुजाहिद रहमतुल्लाह अलैह जो अपने वक़्त के अज़ीम मुहद्दिस, व फकीह, और अज़ीम “बुज़रुग” गुज़रे हैं, इन की मजलिस में उलमा, व फुकहा, का मजमा रहता था, एक रोज़ हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु, की मजलिस में तशरीफ़ ले गए तो वो आप की ताज़ीम के लिए खड़े हो गए और सीने से लगाया और पेशानी मुबारक को बोसा दिया, एक नावकिफ़ ने कहा हज़रत ये तो “दीवाना” है और आप इस कदर एहतिराम फरमा रहे हैं? तो हज़रत अबू बक्र बिन मुजाहिद रहमतुल्लाह अलैह ने इरशाद फ़रमाया, ऐ लोगों तुम्हे क्या खबर में ने इन के साथ ऐसा ही किया है जैसा के में ने रसूले अकरम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इन के साथ सुलूक करते हुए देखा फिर अपने ख्वाब को बयान फ़रमाया, के में ने ख्वाब में देखा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मजलिस मुबारक काइम है फिर जिस वक़्त हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु इस मजलिस में तशरीफ़ लाए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खड़े हुए गए और इन की पेशानी को बोसा दिया, में ने अर्ज़ किया, या रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! “शिब्ली” पर इतनी शफकत व मेहरबानी किस वजह से है? तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  ने इरशाद फ़रमाया, ये हर नमाज़ के बाद “लकद जा अकुम रसूल, ता अज़ीम” पढ़ता है और इस के बाद तीन बार कहता है “सलल्लाहु अलईका या रसूलल्लाह” सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ।

आप का इस्मे आज़म “अल्लाह” से इश्क

हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु की ये भी आदत थी के आप जिस जगह “लफ़्ज़े अल्लाह” का नक्श देखते उसे बोसा देते और बड़ी ताज़ीम करते, तो निदा आई के कब तक इस्मे आज़म के साथ मशगूल रहेगा, अगर तू मर्द तालिब है तो उस की तलाश में कदम रख जब आप ने ये आवाज़ सुनी तो आप पर इश्क ग़ालिब हो गया और इश्तियाक ने इतना ग़लबा किया के आप वहां से उठे और अपने आप को दरियाए दजला में डाल दिया, थोड़ी देर के बाद एक मौज आई और उसने आप को किनारे पर फेंक दिया, फिर अपने आप को आग में डाला लेकिन आग ने भी आप को नहीं जलाया, इसी तरह आप ने कई बार खुद को हलाकत में डाला, मगर अल्लाह पाक ने आप की हिफाज़त की, जब आप की बे करारी और ज़ियादा हो गई तो आप ने फ़रमाया, बुलंद किया के “अफ़सोस है उस शख्स पर जिस को न पानी हलाक करे और न आग न दरिंदे और न ही पहाड़” इस के जवाब में ये आवाज़ आप ने सुनी “जो “हक” का मकतूल है उस को सिवाए उस के कोई हलाक नहीं कर सकता, आप दीवाना दीवानगी शोक में इस मकाम पर पहुंच गए थे के दस मर्तबा आप को ज़ंजीरों में बांधा गया लेकिन आप ने किसी तरह भी करार नहीं लिया यहाँ तक के लोग कहते थे के “शिब्ली” बिलकुल दीवाना है, इस के जवाब में आप इरशाद फरमाते के में तुम्हारे नज़दीक दीवाना हू और तुम मेरे नज़दीक दीवाने हो खुदा करे मेरी दीवानगी ज़ियादा हो । 

आप को जेल में कैद कर दिया गया

मशहूर वाक़िआ: है के हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु को दीवानगी के इलज़ाम में हॉस्पिटल यानि अस्पताल में दाखिल कर के वहां आप को कैद कर दिया गया, एक जमात आप की ज़ियारत को आई तो आप ने इन लोगों से फ़रमाया, तुम कौन लोग हो? उन्होंने कहा हम आप के महबूबीन हैं, तो आप ने इन लोगों के ऊपर पथ्थर मारा जिससे वो भागने लगे तो आप ने फ़रमाया, अगर तुम मेरे मुहिब्बीन हो तो मेरे मारने से क्यों भागते हो, इस लिए के मुहिब्बीन दोस्त की बला से भगा नहीं करते, 

और एक वाक़िआ: ये भी है के एक मर्तबा आप ज़ख़्मी हो गए, इस दौरान खून का जो क़तरा इससे गिरता था लफ़्ज़े अल्लाह का “नक्श” बन जाता था ।  

अस्ल हकीकी बंदगी किसे कहते हैं?

एक मर्तबा का वाकिअ है के आप के दस्ते मुबारक में आग का शोला था और हालते सुक्र (मदहोश, मस्त होना) में आप ने फ़रमाया, में चाहता हूँ के जाऊं और काबा को जला दूँ ताके लोग अल्लाह की तरफ बिला इल्लत के मुतवज्जेह हो धियान दें, दुसरे दिन आप के हाथ में एक लकड़ी थी, जो दोनों तरफ से जल रही थी और फरमा रहे थे के में चाहता हूं के बहिश्त, और दोज़ख को आग लगा दूँ ताके लोग तमअ लालच की बंदगी छोड़ दें, इसी तरह एक रोज़ आप ने चूलेह में एक लकड़ी को इस तरह जलते हुए देखा के एक तरफ से जल रही थी और दूसरी तरफ से पानी निकल रहा था, आप ये मंज़र देख कर रो पड़े और इरशाद फ़रमाया, लोगों! अगर तुम भी आतिशे शोक में जलते हो और इस दावे में सच्चे हो तो तुम्हारी आँखों से आंसूं क्यों नहीं बहतीं ।         

दौलत की हकीकत

एक मर्तबा आप ने चार हज़ार अशर्फियाँ दरियाए दजला में फेंक दीं, लोगों ने कहा, हुज़ूर! ऐसा आप ने क्यों किया? आप ने इरशाद फ़रमाया पथ्थर का पानी के साथ ही रहना ज़ियादा बेहतर है, लोगों ने कहा उसे मखलू के खुदा में तकसीम क्यों नहीं क्या? आप ने इरशाद फ़रमाया, सुब्हान अल्लाह! अपने दिल से इस का हिजाब उठा कर मुस्लमान भाइयों के दिलों पर डाल दूँ तो में खुदा को क्या जवाब दूंगा क्यों के दीन की ये शर्त नहीं है के मुस्लमान भाइयों को अपने से बद समझूँ । 

मुर्शिदे करीम की मुहब्बत

एक मर्तबा आप के शैख़े तरीकत मुर्शिदे करीम हज़रते जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु की खिदमत में कुछ अस्हाबे इरादत जलवा अफ़रोज़ थे और आप की शैख़ की अदम मौजूदगी में वो लोग आप की तारीफ करने लगे सिद्क़ और शोक व बुलंदी में “शिब्ली” जैसा कोई दूसरा आदमी नहीं है इतने में आप के शैख़ हाज़िर हुए और इस बात को सुनकर फ़रमाया, तुम लोग गलती में गिरफ्तार हो वो मख़्ज़ूल (बे आबरू,) और ज़ियाँ कार (नुकसान पहुंचने वाला उठाने वाला) है, फ़ौरन शिब्ली को इस जगह से बाहर निकाल दो, जब आप वहां से चले गए तो आप के शैख़ ने इन असहाब से फ़रमाया, “शिब्ली” की जो तारीफ तुम ने की है मेरे दिल में इससे सो गुनाह ज़ियादा इज़्ज़त है, लेकिन इस के सामने इस तारीफ से तुम ने तो इस पर तलवार चला दी इस लिए मजबूरन ये कह कर इस के पास एक ढाल लानी पड़ी ताके वो हलाक न हो जाए ।  

आप के तसव्वुफ़ाना अशआर

हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हुएक मर्तबा आप मैदाने अरफ़ात में पहुंचे तो बिलकुल ख़ामोशी इख़्तियार फ़रमाई और सूरज ग़ुरूब होने तक कोई लफ्ज़ मुँह से नहीं निकाला यहाँ तक के इस मकाम से आप ने मिना की तरफ कूच फ़रमाया और जब हुदूदे हरम के निशानात से आगे बढ़े तो आँखों से आंसू जारी हो गए और रोते हुए आप ने ये आरिफाना अशआर पढ़े:  

में चल रहा हूँ इस हाल में के में ने अपने दिल पर बरतरी मुहब्बत की मुहर लगा दी ताके इस दिल पर तेरे सिवा किसी का गुज़र न हो,

ऐ काश मुझ में इस्तिताअत होती के में अपनी आँखों को बंद रखता और उस वक़्त तक किसी को न देखता जब तक तुझे न देख लेता, 

अहले मुहब्बत में बाज़ तो ऐसे होते हैं जो एक ही के हो के रहते हैं और बाज़ ऐसे भी होते हैं जिन में दूसरे की भी शिरकत होती है,

जब आँखों से आंसूं निकल कर रुखसार पर बहने लगते हैं तो ज़ाहिर हो जाता है के कौन वाकई रो रहा है और कौन बनावटी रोता है,। 

“आप की कश्फ़े करामात” 

नसरानी तबीब (डॉक्टर) का मुसलमान होना

हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु एक मर्तबा बीमार हो गए तो आप को लोग इलाज के लिए और अली बिन ईसा वज़ीर ने खलीफा को इत्तिला की तो खलीफा ने इलाज के लिए अपने अफसरूल अतिब्बा (डॉक्टर) को भेजा जो नसरानी था, उस ने बहुत कुछ इलाज किया मगर कुछ भी फाइदा नहीं हुआ, इस लिए तबीब (डॉक्टर) ने अर्ज़ किया, अगर में जानता के आप का इलाज मेरे जिस्म के टुकड़े में है तो मुझे इस के काटने में भी कुछ न होता, आप ने इरशाद फ़रमाया, मेरी दावा तो किसी और शै चीज़ में है तबीब ने अर्ज़ किया, वो क्या चीज़ है? आप ने इरशाद फ़रमाया, तू कुफ्र को छोड़ और मुस्लमान होजा तो तबीब ने फ़ौरन “कलमा शरीफ” पढ़ लिया, खलीफा को जब इस की खबर हुई तो उस की आँखों से आसूं जारी हो गए और कहा, हम ने तबीब को मरीज़ की तरफ भेजा था मगर हम ये नहीं जानते थे के मरीज़ों को तबीब की तरफ भेजा है, । 

दिल की बात को जान लिया

हज़रत अमबाज़ी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के एक मर्तबा हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत मुबारक में एक रेशमी चदार ओढ़ कर हाज़िर हुआ, वहां पहुंच कर में ने ये देखा के आप एक बहुत ही उम्दा टोपी पहने हुए हैं में ने अपने दिल में कहा, ये तो हमारे पहिनने के काबिल है अगर शैख़ ये टोपी मुझे अता कर दें तो क्या ही अच्छा होता? इस ख़याल का आना ही था के शैख़ ने कहा: अपनी चादर मुझे दे दो! में ने वो चादर फ़ौरन शैख़ के हवाले कर दी इस के बाद शैख़ ने मेरी चादर और अपनी टोपी को फ़ौरन आग में डाल दिया, इरशाद फ़रमाया, दीदारे इलाही के सिवा कोई दूसरी आरज़ू दिल मे रखने के लाइक नहीं है,। 

आप का इल्मे कश्फ़

हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु को अल्लाह पाक ने अज़ीमुश्शान मर्तबे पर फ़ाइज़ फ़रमाया था, और हिजाबात आप की आँखों से हटा दिए गए थे, यही वजह है के आप खुद इरशाद फरमाते हैं के में जब बाज़ार से गुज़रता हूँ तो तमाम “नेक व बद” को पहचान लेता हूं और लोगों की पेशानियों पर “सईद, व शकी” लिखा हुआ देखता हूँ । 

आप का तस्सरूफ़

मन्क़ूल: है के आप से लोगों ने कहा: ऐ अबू तुराब! तुम जंगल में भूके ही रहते हो? ये सुन कर आप ने अपनी निगाह उठाई तो वो तमाम जंगल खाना ही खाना नज़र आने लगा, इस के बाद फिर इरशाद फ़रमाया, ये थोड़ी सी महरबानी है, अगर तहक़ीक़ के मक़ाम पर होता तो में ये फरमाते में अल्लाह की खिदमत में रहता हूं और वही मुझे खिलाता पिलाता है । 

मलफ़ूज़ात शरीफ

हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु अपने मुरीदों से इरशाद फरमाते है: के अगर एक जुमा से दूसरे जुमा तक तुम मेरे पास आओ और इस अरसे में तुम्हारे दिल में सिवाए अल्लाह पाक के दूसरा ख्याल गुज़रे तो समझ लो के अभी दुनिया की तलब तुम्हारे दिल में बाकी है और दुनिया का तलब गार आख़िरत के लिए क्या कमा सकता है, इस लिए दुनिया में जितने दिन ज़िंदा रहो आख़िरत के लिए खेती करो फरमाते हैं के कभी ऐसा नहीं हुआ के में भूका अल्लाह पाक के लिए रहा और अल्लाह पाक ने मेरे क्लब में असरारो रुमूज़ का नूर दाखिल न किया हो, आप फरमाते हैं के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशादे गिरामी है के बहुत सेर हो कर न खाया करो, ऐसा न हो के तुम्हारी शिकम परवरी की वजह से मारफ़त का नूर निकल जाए,

सूफी: आप फरमाते हैं सूफी, वो है जो लोगों से अलग हो कर अल्लाह पाक से मिल जाए, 

आरिफ: आप फरमाते हैं आरिफ हो है जो कभी तो एक मच्छर की ताब न ला सके और कभी सातों ज़मीनो और आसमानो को नोके पलक पर उठा कर फेंक दे और फरमाते हैं के मुहब्बत ये है के हर चीज़ को दोस्त पर निसार कर दे, 

सुन्नत: लोगों ने आप से सवाल किया हुज़ूर! सुन्नत क्या है? आप ने इरशाद फ़रमाया दुनिया का तर्क (छोड़ना) करना,

ज़कात कितनी हो: आप से ज़कात की मिक़्दार के बारे में पूछा गया, तो आप ने इरशाद फ़रमाया, कुल सब माल को अल्लाह की राह में दे देना ही मेरे नज़दीक इस की मिक़्दार है, तो साइल ने मुतअज्जिब हो कर कहा, ये ठीक नहीं है इस लिए के कुरआन शरीफ व हदीस से माल का चालीसवां हिस्सा ज़कात की मिक़्दार है, तो आप ने इरशाद फ़रमाया, ये कंजूसों के लिए है फिर लोगों ने पूछा आप के इस तरीके के इमाम कौन हैं? तो आप ने इरशाद फ़रमाया, हज़रते सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु हैं, जिन्होने अल्लाह पाक की राह में अपना तमाम माल खर्च कर दिया हत्ता के आप के पास एक कम्बल ही बाकी रह गया था, फिर साइल ने पूछा आप के पास कुरआन शरीफ से भी कोई दलील है? तो इरशाद फ़रमाया हाँ अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है  “إِنَّ اللَّهَ اشْتَرَىٰ مِنَ الْمُؤْمِنِينَ أَنفُسَهُمْ وَأَمْوَالَهُم”  यानि तहक़ीक़ “अल्लाह पाक ने मोमिनो से उन के नफ़्सों और मालों को खरीद लिया है”। पस में ने माल को बेचा है इस लिए इसे कुल माल का हवाले कर देना लाज़िम है, 

फ़क़ीर: आप फरमाते हैं “फ़क़ीर” वो है जो अल्लाह पाक के सिवा और किसी शै के साथ मशगूल बिज़ी न हो, 

शुक्र: आप फरमाते हैं शुक्र ये है के नेमत को न देखे बल्के नेमत देने वाले को देखे, और जो सांस अल्लाह पाक की मारफत में हो वो सब आबिदों की इबादत से अफ़ज़ल है व बेहतर है जो वो कयामत तक करें, 

मुहब्बत: आप फरमाते हैं मुहब्बत का दावा करता है और महबूब के सिवा और की तरफ मशगूल बिज़ी होता है वो हबीब का नहीं बल्के किसी और शै का तलबगार होता है और वो गोया अपने महबूब का मज़ाक खुद उड़ाता है फ़रमाया मुहब्बत ये है के दोस्त पर हर चीज़ को निसार कर दे, 

दिल: दुनिया और आख़िरत दोनों से बेहतर है क्यूंकि दुनिया मुहब्बत का घर है और आख़िरत नेमत का घर है और “दिल” मार्फ़त का घर है, 

शरीअत: आप फरमाते हैं के शरीअत, ये है के तू इस की पैरवी करे, तरीकत ये है के तू इस की तलब करे और हकीकत ये है के तू इसे देखे,

विसाल के वकिवात

हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु जब आप की वफ़ात (विसाल) का वक़्त करीब आया तो आप की दोनों आँखों में अँधेरा सा छा गया आप ने खाकिस्तर (राख, मिटटी) को तलब फ़रमाया और उस को अपने सर पर डालते जा रहे थे और वफ़ात के वक़्त इस कदर बे करार थे के एहाताए तहरीर से बाला तर है फिर कुछ वक़्फ़े तक आप खामोश रहे और फिर कुछ वक़्फ़े के बाद मुज़्तरिब बे करार हुए और इरशाद फ़रमाया, हवाएं चल रही हैं एक लुत्फ़ की और दूसरी क़हर की, तो जिस पे लुत्फ़ की हवा चलती है उस को मक़सूद तक पंहुचा देती है और जिस पर कहर की हवा चलती है वो हिजाब में मुब्तला हो जाता है इस लिए अब देखो कोनसी हवा चलती है तो में उस की उम्मीद पर ये सब सख्तियां बर्दाश्त कर सकता हूँ, केलिन मआज़ अल्लाह बादे कहर चली तो में मर जाऊँगा और ये सब सख्तियां और बालाएं उस के सामने क्या चीज़ हैं और विसाल के वक़्त आप ने इरशाद फ़रमाया, मुझे वुज़ू कराओ! जब आप को वुज़ू कराया गया तो दाढ़ी में खिलाल कराना भूल गए आप ने वुज़ू कराने वालों को याद दिलाया तो उस के बाद  खिलाल कराया गया, जिस रात आप का विसाल हुआ तमाम रात ये पढ़ते रहे,

“जिस घर में तू साकिन है वो चिराग से मुस्तग़नी है, तेरा वो हसीं चेहरा जिस की उम्मीद की गई हमारी हुज्जत होगा जबके लोग अपने साथ हुज्जतें लेकर आएंगें” यहाँ तक के लोग आप के जनाज़े के लिए गए लेकिन अभी आप ने इन्तिकाल नहीं किया था, आप ने फिरासत से समझ लिया और इरशाद फ़रमाया, तअज्जुब है के मुरदों की जमाअत ज़िन्दों पर नमाज़ पढ़ने आई फिर लोगों ने आप को “कलमा शरीफ” पढ़ने के लिए कहा, आप ने इरशाद फ़रमाया, जब उस का गैर है तो नफ़ी किस की करूँ? लोगों ने कहा हुज़ूर! शरीअत में इसी तरह है आप कलमा शरीफ पढ़ें,  आप ने इरशाद फ़रमाया, मुहब्बत का बादशाह कहता है के में रिश्वत नहीं लूँगा, फिर एक शख्स ने बुलंद आवाज़ से शहादत की तलकीन की, आप ने इरशाद फ़रमाया, मुर्दा आना चाहता है के ज़िंदा को तलकीन करे और नसीहत दे फिर कुछ वक़्फ़े के बाद लोगों ने दरयाफ्त फ़रमाया, हुज़ूर! क्या है? तो आप ने इरशाद फ़रमाया, महबूब से मिल गया हूँ और आप का विसाल हो गया । “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलईही राजिऊन” ।                              

तारीखे विसाल और आप का उर्स

आप का विसाल 27, ज़िल्हिज्जा 334, हिजरी 955, ईसवी शबे जुमा 88, साल की उम्र शरीफ में हुआ, उस वक़्त अल मुस्तक़फ़ी बिल्लाह का दौरे खिलाफत था, और माहे ज़िल्हिज्जा  27, तारीख में आप का उर्स होता है,।  

आप के खुलफाए किराम

हमे हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु के सिर्फ दो खुलफ़ा के नाम दस्तियाब हुए हैं, (1) हज़रत शैख़ ख्वाजा अब्दुल वाहिद अब्हुल फ़ज़्ल तमीमी रदियल्लाहु अन्हु (2) हज़रत अबुल हसन नीमा लम रदियल्लाहु अन्हु । 

बादे विसाल का वाक़िआ

आप के विसाल के बाद एक बुज़रुग ने आप को ख्वाब में देखा तो पूछा के हुज़ूर! फरिश्तों के साथ कैसी गुज़री? आप ने जवाब दिया के जब नकीरेंन मेरे पास आए और उन्होंने मुझ से सवाल किया के बता तेरा रब कौन है? तो में ने जवाब में कहा, मेरा रब वही है जिस ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया और फिर फरिश्तों की जमात को हुक्म दिया के “आदम को सजदा” करो तो सब मलाइका ने सजदा किया मगर इब्लीस ने सजदा नहीं किया और हुक्मे खुदा वन्दी से मुँह मोड़ा और तकब्बुर किया तो उस वक़्त में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पुश्त में था, इस जवाब पर नकिरेंन बोले के इस ने तो तमाम औलादे आदम की तरफ से जवाब दे दिया और ये कह कर वो चले गए ।  

आप का मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक मुल्के इराक की राजधानी बाग्दाद् शरीफ का एक मक़ाम है जिस का नाम सामराह है वही मरजए खलाइक है ।   

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”             

रेफरेन्स हवाला                    

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) कशफ़ुल महजूब,
(4) तज़किरातुल औलिया,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल, 
(6) मिरातुल असरार, 
(7) सैरुल अखियार महफिले औलिया, 

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