हज़रते सय्यदना शैख़ जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना शैख़ जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part- 1)

बहरे  मारूफ़ो  सरी  माअरूफ़ दे बे खुद सरी 

जुनदे हक़ में गिन जुनैदे बा सफा के वास्ते 

विलादत बा सआदत

आप के वालिद माजिद मुल्के ईरान के “शहर नेहा वन्द” के रहने वाले थे और ये आप का वतन असली था, फिर बाग्दाद् शरीफ की तरफ हिजरत फ़रमाई और मुस्तकिल सुकूनत इख़्तियार करली । 

तारीखे विलादत

आप की तारीखे पैदाइश गालिबन 216, हिजरी या 218, हिजरी को बगदाद शरीफ में हुई ।

इस्म नाम मुबारक

आप की कुन्नियत “अबुल कासिम और अलक़ाब सय्यदुत ताइफ़ा, ताऊसुल उलमा, शैखुल इस्लाम, कवार बरी, ज़ूजाज, खिज़ार, लिसानुल कौम । 

कवारीर व ज़ूजाज, और खिज़ार, की वजह तस्मिया

कवारीर व ज़ूजाज, और खिज़ार, आप को इस वजह से कहते हैं के आप के वालिद माजिद मुहम्मद बिन जुनैद शीशे की तिजारत करते थे और खिज़ार इस वजह से कहते हैं के चरम फरोशी भी करते थे । 

अहदे तिफ्ली आप का बचपन

जब आप की उमर शरीफ सात साल की हुई तो आप के मामू जान “हज़रते शैख़ सिरी सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु” के साथ ज़ियारते हरमैन तय्येबैन को तशरीफ़ ले गए, जब आप बैतुल्लाह शरीफ में दाखिल हुए तो वहां पर चार सो 400, उलमा, व मशाइख़ीन, रौनक अफ़रोज़ थे और इन की इस मजलिस में “मसलए शुक्र”, पर गुफ्तुगू चल रही थी, इस मजलिस में हर एक ने अपनी अपनी राए का इज़हार फ़रमाया और आखिर में हज़रते शैख़ सिरी सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु ने अपने भांजे “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” से इरशाद फ़रमाया: ऐ जुनैद ! तुम्हे भी कुछ कहो? इस पर आप ने थोड़ी देर तो सर को झुका लिया फिर इरशाद फ़रमाया: शुक्र, ये है के जो नेमत तुझे अल्लाह पाक ने अता की है, इस नेमत की वजह से ना फ़रमानी न करे और उस की नेमत को नाफरमानी व मुसीबत का ज़रिया न बनाए, इस जवाब पर तमाम उलमा व मशाइख की जमाअत ने बरजस्ता फ़रमाया: ऐ हमारी आँखों की ठंडक तू ने जो कुछ कहा है बहुत ही अच्छा कहा है और तू अपनी बात में सादिक है और हम इससे बेहतर नहीं कह सकते इस के बाद हज़रते शैख़ सिरी सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया: ऐ बेटे ! तूने ऐसी बे मिसाल बातें कहाँ से सीखीं हैं? तो आप ने जवाब दिय के हुज़ूर ! आप ही के फैज़ बख्शिश सुहबत से हासिल किया है और ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन से फिर आप घर तशरीफ़ लाए ।   (तारीखे औलिया)

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

शरीअतो तरीकत के शनावर, सुल्तानुल मुहक़्क़िक़ीन, शैख़े अलल इतलाक़, क़ुत्बे बिल इस्तेहक़ाक़, मम्बए असरार, मुरक्कए अनवार, सुल्ताने तरीकत, व इरशादे सय्यदुत ताइफ़ा, ताऊसिल उलमा, “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते सय्यदना जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” “आप सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया के ग्यारवे 11, वे इमाम व शैख़े तरीकत हैं” आप उसूल व फरा में मुफ़्ती, और उलूमो फुनून में कामिल थे, कल्माते आलिया, और इरशादाते लतीफा में सबक्त रखते थे, इब्तिदाई हालत से ले कर दौरे आखिर तक तमाम जमाअतों के महमूद व मकबूल थे, और सभी लोग आप की इमामत पर मुत्तफिक थे, आप का सुखन तरीकत में हुज्जत है और तमाम ज़माने ने इस की ताऱीफ की है, और कोई शख्स भी आप के ज़ाहिर व बातिन पर अंगुश्त नुमाई न कर सका, सिवाए उस शख्स के जो बिलकुल अँधा था, “सूफ़िया के सरदार व मुक्तदा” थे, लोगों ने आप को “लिसानुल कौम” कहा है, और आप ने खुद अपने आप को “अब्दुल मशाइख” लिखा है, उल्माए किराम की जमाअत ने आप को “ताऊसुल उलमा” समझा और सुल्तानुल मुत्तक़ीन जानते हैं, इस लिए आप “शरीअतो तरीकत” में इंतिहा को पहुंच गए थे, आप इश्को ज़ुहद में बे मिस्ल और तरीकत में “मुज्तहदे अस्र” थे, बहुत से मशाइख आप के मज़हब पर हुए और आप का तीरक (रास्ता, सबील, शरीअत, मज़हब) तरीके सहू है बा खिलाफ तैफ़ूरियों के इस लिए के वो हज़रते बायज़ीद बस्तामी रदियल्लाहु अन्हु के मज़हब पर हैं और सब से ज़ियादा माअरूफ़ तरीकत में और मशहूर तर मज़हब, मज़ाहिब में आप ही का तरीका व मज़हब है, आप अपने वक़्त में तमाम मशाइख के मरजा (जाए रूजू, वापस आने की जगह) थे, आप की तसानीफ़ बहुत हैं जो तमाम इशारात व मआरिफ़ में लिखी हैं और जिस शख्स ने इशरत को फैलाया वो आप ही हैं, इन अज़ीम खूबियों के होने के बावजूद दुश्मनो और आप के हासिदों ने आप को ज़िन्दीक कहा है, 

पीर से ऊंचा मुरीद का दर्जा

आप ने हज़रते शैख़ मुहास्बी रदियल्लाहु अन्हु की भी सुहबत पाई है, हज़रते शैख़ सिरी सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु से लोगों ने पूछा किसी मुरीद का पीर से बुलंद दर्जा हुआ है तो हज़रत ने फ़रमाया: हां होता है और इस की दलील ज़ाहिर है के “जुनैद बगदादी” मुझ से बुलंद दर्जा रखते हैं, हज़रते सय्यदना शैख़ सोहिल तुस्तरी रदियल्लाहु अन्हु बावजूद इस अज़मतो बुज़ुरगी के फ़रमाया करते थे के “जुनैद” साहिबे आयत, व सिबाके गयात, हैं बावजूद इस के दिल नहीं रखते मगर फरिश्ता सिफ़त हैं, शेवए मारफ़त व कश्फे तौहीद में आप की शान निहायत ही बुलंद अरफाओ आला हैं आप “मुजाहिदाह मुशाहिदाह” अल्लाह पाक की निशानियों में से एक निशानी हुए हैं । 

आदात व सिफ़ात

सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु राहे सुलूक की उस अज़ीम मंज़िल पर फ़ाइज़ होने के बावजूद इस्लामी अख़लाक़ से मुज़य्यन थे और अपने से कम दर्जे के लोगों के साथ भी ख़नदा पेशानी से पेश आते थे चुनांचे एक मर्तबा का वाक़िआ हैं के आप ने अपने मुरीदीन से इरशाद फ़रमाया: अगर मुझे ये मालूम हो जाता के दो रकअत नमाज़ नफ़्ल अदा करना तुम्हारे साथ बैठने से अफज़ल हैं तो में कभी तुम्हारे साथ न बैठता, आप हमेशा रोज़ा रखा करते थे, मगर जब कभी आप के बिरादराने तरीकत आजाते तो रोज़ह अफ्तार कर लेते और फरमाते के इस्लामी भाइयों की खातिर व मदारात निफलि रोज़ों से अफ़ज़ल हैं । 

तिजारत व इताअते इलाही

आप शुरू में आइना शीशे की तिजारत करते थे और उस वक़्त का मामूल था के बिला नागा अपनी दूकान पर तशरीफ़ ले जाते और सामने पर्दा डाल कर चार सो रकअत नमाज़ निफ़्ल पढ़ते थे, यहाँ तक के एक मुद्दत तक आप ने इस अमल को जारी रखा फिर आप ने अपनी दुकान को छोड़ दिया और अपने शैख़े तरीकत की बारगाह में हाज़िर हुए हज़रते सिरी सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु के मकान के एक कोठरी में आप गोशा नशीन हो कर अपने दिल की पासबानी शुरू कर दी और हालते मुराकबा में आप अपने नीचे से मुसल्ला को भी निकाल डालते ताके आप के दिल पर सिवाए अल्लाह पाक और उस के रसूल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़याल के कोई दूसरा ख्याल न आए और इस तरह आप ने चालीस साल का अज़ीम अरसा गुज़ारा और तीस साल तक आप का मामूल था के ईशा की नमाज़ के बाद खड़े हो कर सुबह तक “अल्लाह अल्लाह” किया करते और इसी वुज़ू से सुबह की नमाज़ अदा करते यहाँ तक आप का खुद ही कौल हैं के बीस साल तक तक्बीरे ऊला मुझ से फौत नहीं हुई और नमाज़ में अगर दुनिया का ख़याल आ जाता तो में इस नमाज़ को दोबारा अदा करता और अगर बहिश्त, और आख़िरत का ख़याल आता तो में सज्दए सहू करता ।  

आप का लिबास

आप हमेशा आलिमाना लिबास ज़ेबे तन फरमाते एक मर्तबा लोगों ने कहा: या शैख़े तरीकत ! क्या ही अच्छा होता के आप मुरक्का पहनते? तो आप ने इरशाद फ़रमाया: अगर में जानता के मुरक्का पर तरक्त का इन्हिसार हैं तो में लोहे और आग का लिबास बनाता और इस को पहनता मगर हर वक़्त बातिन में निदा आती हैं के खिरके का एतिबार नहीं हैं बल्के जान के जलने का एतिबार हैं । 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में आप का मर्तबा

एक बुजरुग का वाक़िआ हैं के वो ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत से मुशर्रफ हुए उन्होंने दे खा के बारगाहे नबी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु भी हाज़िर हैं, इसी बीच में एक शख्स हाज़िर हुआ और एक इस्तिफता आप की खिदमत में पेश किया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: “जुनैद” को दे दो ताके वो इस का जवाब लिख दें, उस शख्स ने अर्ज़ किया या रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप के होते हुए जुनैद को कैसे दूँ? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया: जिस तरह अम्बिया अलैहिमुस्सलाम को अपनी सारी उम्मत पे फख्र था, मुझ को “जुनैद” पर फख्र हैं । 

हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु से आप की अक़ीदतो मुहब्बत

सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु इरशाद फरमाते हैं के उसूल व बला में हमारे मुक्तदा व पेशवा हज़रते अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम हैं चुनांचे एक मर्तबा एक सय्यद साहब जो गीलान के रहने वाले थे और हज के इरादे से अपने घर से निकले हुए थे यहाँ तक के सफर करते हुए बगदाद पहुंचे और आप की खिदमत में हाज़िर हुए आप ने उन से मालूम किया, कहाँ के रहने वाले हो और किस की औलाद से हो? उन्हों ने जवाब दिया के गिलान का रहने वाला हूँ और अमीरुल मोमिनीन हज़रते अली कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम की औलाद में से हूँ, तो आप ने उन से बड़े ही मुआस्सिर अंदाज़ में फ़रमाया: तुम्हारे दादा दो तलवारे चलाया करते थे एक कुफ़्फ़ारो मुशरिकीन पर और दूसरी नफ़्स पर, बताओ के तुम कौन सी तलवार चलते हो? सिर्फ इतना सुनते ही इन पर गिरया तारी हुआ और हालते वज्द में ज़मीन पर लोटने लगे और लौटते हुए ये कह रहे थे के बस मेरा हज यहीं हैं, आप मुझे राहे खुदा से आगाह फ़रमाद दीजिये? सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने इरशाद फ़रमाया; तुम्हारा ये सीना खुदा का हरमे ख़ास हैं इस लिए जहाँ तक हो सके इस के हरम ख़ास में किसी ना महरम को जगह न दो । 

हज की हकीकत आप की नज़र में

एक मर्तबा आप की खिदमत मुबारक में एक शख्स हाज़िर हुआ आप ने उससे दरयाफ्त फ़रमाया तू कहाँ से आया है? उस शख्स ने कहा में हज के लिए गया था, तो क्या तुम हज कर चुके हो? उस ने जवाब दिया के जी हाँ हज कर चूका हूँ आप ने फ़रमाया अच्छा ये तो बताओ के शुरू में जब तुम अपने घर से निकले और अपने वतन को छोड़ा तो क्या सब गुनाहों को भी अपने पीछे छोड़ दिया? 

उस ने जवाब दिया: नहीं आप ने कहाँ: तू ने सफरे हज इख़्तियार ही नहीं किया,

सवाल: जब तुम अपने घर से रवाना हुए और जिस जगह रात को क़याम किया तो क्या इस मकाम में तू ने तरीके हक में से कुछ भी कता किया? यानि राहे सुलूक की मंज़िल भी तय की? 

जवाब: नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया: पस तूने कोई मंज़िल तय ही नहीं की,                            

सवाल: जब तू ने मीक़ात में एहराम बंधा तो क्या तूने लिवाज़मे बशरीअत को भी वैसे ही उतार फेंका था जैसा के अपने कपड़ों को? 

जवाब: नहीं  आप ने फ़रमाया: इस तरह तू ने एहराम बंधा ही नहीं,

सवाल: जब तू ने मैदाने अरफ़ात के मैदान में क़याम किया इस क़याम में कशफो मुशाहिदे हक की सआदत भी तुझे हासिल हुई? 

जवाब: नहीं पस तूने मैदाने अरफ़ात में क़याम ही नहीं किया,

सवाल: जब तू  मुज़दलफा गया और तेरी मुराद हासिल हो गई तो क्या इस मुराद को पाकर तू ने बाकी तमाम  मुरादों को तर्क कर दिया?

जवाब: नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया: तू मुज़दलफा भी नहीं गया, 

सवाल: जब तू ने बैतुल्लाह का तवाफ़ किया तो क्या तूने अपने वतन को मक़ामे तन्ज़िया में लता इफ जमाले हक में महू पाया? 

जवाब: नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया तूने तवाफ़ भी नहीं किया,   

सवाल: जब तू ने सफा मरवा के दरमियान साई की तो क्या मक़ामे सफा और दर्जाए मारवाह का एहसास व इदराक भी तुझे हुआ? 

जवाब: नहीं आप ने इरशाद फ़रमाया तूने सवा और मरवा के दरमियान साई की ही नहीं,

सवाल: जब तू मिना में पंहुचा तो क्या तेरी आरज़ूएं तुझ से खत्म हो गईं?

जवाब: नहीं तो आप ने इरशाद फ़रमाया तू अभी मिना गया ही नहीं,

सवाल: क़ुरबांनी की जगह पहुंच कर जब तू ने क़ुरबानी कर दी तो क्या उस के साथ ही अपनी नफ़्सानी खाहिशात को भी कुर्बान कर डाला?

जवाब: नहीं तो आप ने इरशाद फ़रमाया तू ने क़ुरबानी भी नहीं की,

सवाल: जब तू ने कंकरियां फेंकी तो क्या तूने नफ़्सानी लज़्ज़तों व शहवत को भी साथ में ही फेंक दिया था?

जवाब: नहीं तो आप ने इरशाद फ़रमाया तू ने अभी कंकरियां भी नहीं फेंकी और न ही हज किया जाओ और वापस चले जाओ इस तरह हज कर के आना के तू मक़ामे इब्राहीम तक पहुंच जाए । 

ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत करना

सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु जब राहे सुलूक में कामिल व अकमल हो गए और आप की मकबूलियत हर चहार जानिब फैलने लगी तो हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु ने आप को हुक्म दिया “जुनैद अब तुम वाइज़ कहो” इस हुक्म से आप तरद्दुद तज़बज़ुब में पड़ गए और अर्ज़ की शैख़े वक़्त की मौजूदगी में किस तरह तकरीर करूँ? क्यूंकि ये बिलकुल अदब के खिलाफ है? इसी हालत में रहे के एक रात ख्वाब में आप नबी करीम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत से मुशर्रफ हुए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  ने भी आप को वाइज़ तकरीर करने का हुक्म दिया, आप जब सुबह को बेदार हुए तो अपने शैख़े तरीकत हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु पहले ही से आप के इन्तिज़ार में दरवाज़े पर खड़े हैं, जब आप करीब पहुंचे तो आप से फ़रमाया: क्या अभी तक आप इस ख़याल में हैं के दूसरा कोई आप को वाइज़ कहने के लिए हुक्म दे हम सब तो पहले ही से वाइज़ के लिए कह रहे थे लेकिन आप ने इस पर तवज्जुह नहीं दी अब तो कासिमे नेमत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दे दिया है, इस लिए आप को अब तो वाइज़ कहना ही चाहिए, तो आप ने अपने “पीरो मुर्शिद शैख़े तरीकत सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु” ने इरशाद फ़रमाया: आप ने किस तरह जान लिया के में ने ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की है? तो शैख़े तरीकत ने इरशाद फ़रमाया: में ने रब्बे काइनात को ख्वाब में देखा और साथ ही एक गैबी आवाज़ आई के मेरे रसूल ने जुनैद से कहा है, के वो मिम्बर पे खड़े हो कर वाइज़ तक़रीर कहे तो आप ने इरशाद फ़रमाया: में इस शर्त पर वाइज़ कहूंगा के चालीस से ज़ियादा आदमी इस में मौजूद न हों, चुनांचे आप ने वाइज़ कहना शुरू किया तो अठ्ठारा 18, आदमी जां बहक (फौत हो जाना) हो गए, फिर आप ने ज़ियादा वाइज़ न कहा और मकान पर वापस आए । 

आप का कलाम अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का कलाम है

सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु के कलाम में अज़ीम खूबी व असर अंदाज़ी थी चुनांचे मन्क़ूल:  है के इब्ने शरीह का गुज़र आप की मजलिस से हुआ तो लोगों ने फ़रमाया: आप के कलाम में अजीब शान नज़र आती है, फिर लोगों ने सवाल किया के ये तो बतलाएं के “हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” जो कुछ इरशाद फरमाते हैं क्या अपने इल्म से फरमाते हैं? इब्ने शरीह ने जवाब दिया के मुझे ये मालूम नहीं लेकिन इतना ज़रूर जनता हूँ के इन का कलाम अजीब शानो शौकत का है जिस के बारे में ये कहा जा सकता है के गोया हक अल्लाह पाक इन की ज़बान से कहिल वाता है । 

एक दाना अक्लमंद मुरीद

सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु के एक मुरीद थे जिन से आप ज़ियादा लगाओ रखते थे, कुछ लोगों को ये बात पसंद नहीं आई, आप को जब इस बात की खबर मिली तो आप ने इरशाद फ़रमाया: मेरा ये मुरीद अदब व अक्ल में तुम सब से लाइक फाइक बुलंद है में इसी वजह से इस से ज़ियादा मुहब्बत करता हूँ जिस का सुबूत में तुम्हे अभी देता हूँ? ताके तुम्हे मालूम हो जाए के इस में कौन सी खूबी है चुनांचे आप ने हर एक मुरीद को एक एक छुरी दी और इरशाद फ़रमाया: ऐसी जगह से इन मुर्गियों को ज़िबाह कर के लाओ जहाँ कोई देखने वाला मौजूद न हो? चुनांचे सभी मुरीदीन वहां से चले गए और पोशीदह यानि छुपने की जगह से मुर्गियों को ज़िबाह कर के ले आए लेकिन वो आप का मुरीदे ख़ास इस मुर्गी को ज़िंदा वापस ले आया, हज़रते ने इससे पुछा के तुम ने मुर्गी ज़िबह क्यों नहीं की? मुरीद ने जवाब दिया के हुज़ूर ! में जिस जगह भी पहुंचा वहां “कुदरते इलाही” को मौजूद पाया और उस को देखने वाला पाया इस लिए मजबूरन वापस ले आया हूँ, इस जवाब के बाद हज़रत ने इरशाद फ़रमाया: तुम सभी लोगों ने सुन लिया ये इस का खास “वस्फ़” है जिस की वजह से में इसे बहुत चाहता हूँ । 

आप ने अशरफियों को वापस कर दिया

एक बार आप की खिदमत में एक शख्स ने पांच सो अशर्फियाँ ला कर नज़र करनी चाहि, आप ने उससे पूछा के क्या तेरे पास इन अशरफियों के अलावा और भी माल है? उस ने जवाब दिया के हाँ हुज़ूर और भी है, आप ने दूसरा सवाल किया के ये बताओ के अब आइंदा तुझे और माल की ज़रूरत है या नहीं? उस ने कहा हाँ ज़रूरत क्यों नहीं है, हर वक़्त ज़रूरत है तो आप ने फ़रमाया: बस अपनी अशर्फियाँ वापस ले जाओ, तू मुझ से ज़ियादा मोहताज है क्यूंकि मेरे पास कुछ भी नहीं है बावजूद इस के फिर भी मुझे किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है और बावजूद ये के तेरे पास दौलत है और इस के होते हुए भी और दौलत का ज़रूरत मंद है बराहे करम अपना माल ले लो, क्यों के में मोहताज से नहीं लेता हूँ और में समझता हूँ के एक मेरा मोला ही गनी है और दो जहाँ फ़क़ीर हैं । 

 “कशफो करामात”  

मेरा मकाम शैख़े तरीकत से ऊंचा हो गया है

एक रात ख्वाब में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा, हुज़ूर ने फ़रमाया जुनैद! लोगों को अपना कलाम सुनाओ अल्लाह पाक ने तुम्हारे कलाम को मखलूक के लिए निजात का ज़रिया बनाया है, बेदार हुए तो दिल में ख़याल आया शायद अब मेरा मकाम शैख़े तरक्त से ऊंचा हो गया है, इस लिए के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे हुक्म फ़रमाया है, सुबह हुई तो हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु ने एक मुरीद को भेजा और हुक्म दिया के जब नमाज़ से जुनैद! फारिग हों तो उन से कहना के मुरीदों की ख़्वाइश पर वाइज़ तकरीर शुरू न की, मशाइखे बाग्दाद् की सिफारिश भी रद्द करदी, में ने पैगाम दिया मगर राज़ी न हुए, अब तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म हो गया है उन का फरमान बजा लाओ,  सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की ऑंखें खुलीं और उन्हें मालूम हो गया के हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु उन के ज़ाहिर व बातिन अहवाल से पूरे तौर पर वाकिफ हैं, उन का दर्जा हम से ऊँचा है इस लिए वो “जुनैद” के असरार से वाकिफ हैं और जुनैद उन के हालात से बे खबर है । 

मुरीद आप का इम्तिहान लेने आया

मन्क़ूल: है के सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु का एक मुरीद आप से नाराज़ हो गया और अपने आप को समझने लगा के उसे भी मकाम हासिल हो गया है, अब उसे शैख़े तरीकत की ज़रुरत नहीं है, एक दिन वो आप का इम्तिहान लेने के लिए आया, आप ने उस के दिल की कैफियत व हालात जान ले, उस ने कोई बात आप से पूछी तो आप ने फ़रमाया, लफ़्ज़ी जवाब चाहते हो या मअनवी? मुरीद ने कहा दोनों जवाब चाहता हूँ, फ़रमाया लफ़्ज़ी जवाब तो ये है के अगर तू अपना इम्तिहान कर लिया होता तो मेरा इम्तिहान लेने यहाँ न आता, और मअनवी जवाब ये है के में ने तुझे विलायत से खारिज किया, इस जुमले के फरमाते ही मुरीद का चेहरा काला हो गया फिर आप ने फ़रमाया के तुझे खबर नहीं के “औलिया सूफ़िया” वाक़िफ़े असरार होते हैं । 

अगर तुम सब्र करते तो कदमो के नीचे पानी निकल पड़ता

मुहक्किके अस्र हज़रत अल्लामा युसूफ नबहानी रहमतुल्लाह अलैह तहरीर फरमाते हैं के हज़रत अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह ने जंगल में कुँए पर एक हिरन को पानी पीते हुए देखा, आप को भी प्यास लग रही थी, आप जब कुँए के करीब गए तो हिरन भाग गया और पानी जो ऊपर आ चुका था वो नीचे चला गया, आप ने अर्ज़ किया ऐ मेरे परवर दिगार, क्या तेरे नज़दीक मेरा वो मकाम भी नहीं जो इस हिरन का है? आप ने एक बोलने वाले की आवाज़ सुनी जो कह रहा था, तुम्हारी आज़माइश की गई मगर तुम सब्र न कर सके, हिरन को मशकीज़े और रस्सी के बगैर कुँए पर आया था और तुम ये दोनों चीज़ें ले कर आए हो, फिर आप ने कुँए की तरफ देखा तो वो भरा हुआ था, आप ने पानी पीया, तहारत की और अपना मशकीज़ाह भर लिया, फिर हज को गए और वापस हुए मगर मशकीज़े का पानी ख़त्म नहीं हुआ, 

जब आप सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए तो हज़रत ने आप को देखते ही फ़रमाया के “अगर तुम थोड़ी देर सब्र करते तो कदमो के नीचे पानी निकल पड़ता” और आप के पीछे पीछे चलता रहता ।  

नोट सबक

पहले वाकिए से साबित हुआ के हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु के बारे में सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु का ये अक़ीदा था के वो ग़ैब जानते हैं मेरे बातनि अहवाल से पूरे तौर पर वाकिफ हैं, और दूसरे वाकिए में मुरीद के दिल की कैफियत हालत को ज़ाहिर फरमा कर आप का ये कहना के औलिया वाक़िफ़े असरार होते हैं, और हज़रत अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह को देखते ही उन के कुँए वाले वाकिए की खबर देना इस बात का खुला हुआ सुबूत है के “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” का अपने बारे में भी ये अक़ीदह है के मुझे इल्मे ग़ैब हासिल है ।  

तू अपने घर जा तेरा बेटा मिल जाएगा

एक मर्तबा आप की खिदमत में एक ज़ईफा यानि बूढ़ी औरत आई और अर्ज़ किया: हुज़ूर ! मेरा बेटा न मालूम कहा चला गया है आप दुआ फरमाएं ताके वो वापस आ जाए आप ने इरशाद फ़रमाया: सब्र करो वो बुढ़िया वहां से घर चली गई, मगर कुछ दिनों के बाद फिर हाज़िर हुई और आप से दुआ की तालिब हुई तो आप ने फ़रमाया: ऐ ज़ईफा सब्र करो ! बुढ़िया सब्र करो बुढ़िया वापस लोट आई और कुछ दिनों तक तो सब्र किया मगर जब इस सब्र की ताकत न रही तो फिर तीसरी बार बिलकुल दीवानो की तरह आप की बारगाह में हाज़िर हुई और कहा: ऐ जुनैद ! अब मेरे अंदर अपने लड़के की जुदाई पर सब्र करने की ताकत न रही अल्लाह आप दुआ कीजिए के मेरा बच्चा वापस आ जाए? तो आप ने इरशाद फ़रमाया: ऐ ज़ईफा” अगर तू अपने इज़्तिराब व बेकरारी में सच्ची है तो अपने घर जा तेरा बच्चा इंशा अल्लाह तुझ को घर पे मिल जाएगा क्यूंकि अल्लाह पाक फरमाता है: यानि अल्लाह तआला बेक़रारों की फर्याद को ज़रूर सुनता है और इस की तकलीफ को दूर करता है, इस के बाद बुढ़िया हज़रते के पास से अपने घर लौटी तो देखा के उस का बेटा बड़ी देर से आया हुआ है और अपनी ज़ईफा बूढ़ी माँ का इन्तिज़ार कर रहा है । 

आप की नगाहे गज़ब से माशूक़ा खत्म

जब आप का आम चर्चा काफी शुहरत हुई तो मुख़ालिफ़ीन ने ख़लीफ़ए वक़्त को कहा के इन को क़त्ल करा देना चाहिए, खलीफा ने इलज़ाम लगाने के वास्ते एक खूबसूरत हूर सी नाज़नीन लोंडी (लड़की) को बनाओ सिंगार करा के आप के पास भेजी, इस ने आप की ख़ानक़ाह में आ कर कहा मुझे भी अपनी सुहबत में रहने की इजाज़त दीजिए, आप इस फरेब लोंडी की बातों को सर झुकाए हुए सुनते रहे, जब ये माशूक़ा गुफ्तुगू कर के खामोश हो गई तो आप ने सर उठाया और एक “निगाहें गज़ब” से उस की तरफ देखा, और आह कर के उस पर फूंक डाली, उसी वक़्त ये लोंडी गश खा कर गिर पड़ी और मर गई, खलीफा ने खिदमत में हाज़िर हो कर कहा के आप ने ऐसी हसीन महबूबा को मार डाला, आप ने फ़रमाया खलीफा तुम ने कोशिश की थी की मेरी चालीस साल की रियाज़तें, इबादतें, आने वाहिद में मिटा दें मेरे रब ने किया जो किया ।   

कश्फे क़ुलूब तू मूसलमान हो जा

एक रोज़ आप जमा मस्जिद में वाइज़ तक़रीर कर रहे थे, के एक मजूसी (आग की पूजा करने वाला) अपने गले में ज़न्नार डाले हुए और मुसलमानो का लिबास पहन कर आप की बारगाह में आया और कहा ऐ शैख़! हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ये हदीस 

“اتقوا بفراستہ المئومن فانه ینظر بنر الله”, यानि “मोमिन की फिरासत से डरो के वो अल्लाह के नूर से देखता है” इस का क्या मतलब है? आप ने फ़रमाया के तू मूसलमान हो जा और ज़िन्नार तोड़ डाल क्यों के ये तेरे मूसलमान होने का वक़्त है, पस वो उसी वक़्त मूसलमान हो गया । 

असरे जलालियत

एक मर्तबा आप वाइज़ कह रहे थे के एक मुरीद ने नारा मारा, आप ने उस को मना किया और फ़रमाया अगर तू फिर नारा मारेगा तो में तुझे अपनी मजलिस से अलग कर दूंगा, उस ने अपने आप को बहुत संभाला और बहुत ज़ब्त किया मगर संभल न सका और मर गया, लोगों ने देखा के गुदड़ी के अंदर राख का ढेर था, 

चेहरे की सियाही खत्म हो गई

आप का एक मुरीद जो मुल्के इराक के शहर बसरा में रहता था उस के दिल में एक रोज़ गुनाह का ख्याल पैदा हुआ, इस को ये ख्याल आते ही इस का पूरा चेहरा सियाह हो गया, और जब उस ने अपनी सूरत आईने में देखि तो बड़ा घबराया और शर्म व निदामत के मारे घर से बाहर निकलना भी तर्क कर दिया, अल गरज़ तीन रोज़ के बाद उस के मुँह की सियाही कम होते होते बिलकुल दूर हो गई और इस का चेहरा फिर पहले की तरह रोशन हो गया, इसी दिन एक शख्स आया और सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु का खत दिया जब उस ने खत पढ़ा तो इस में लिखा हुआ था के अपने दिल को काबू में रखो और बंदगी के दरवाज़े पर अदब से रहो, इस लिए के आज मुझे तीन दिन रात से धोबी का काम करना पड़ा के तुम्हारे मुँह की सियाही (काला) दूर हो ।          

रेफरेन्स हवाला                    

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) कशफ़ुल महजूब,
(4) तज़किरातुल औलिया,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल, 
(6) मिरातुल असरार, 
(7)जामे करामाते औलिया उर्दू, 

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