हज़रते सय्यदना शैख़ जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना शैख़ जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (Part-2)

बहरे  मारूफ़ो  सरी  माअरूफ़ दे बे खुद सरी 

जुनदे हक़ में गिन जुनैदे बा सफा के वास्ते 

एक ईसाई तबीब (डॉक्टर) का मुसलमान होना

एक बार हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु को आशोबे चश्म (आँखों का दुखना, आँख की तकलीफ, मर्ज़) का मर्ज़ लाहिक हो गया, आप रहमतुल्लाह अलैह ने मर्ज़ की तरफ तवज्जुह नहीं दी मगर जब तकलीफ ने शिद्दत इख़्तियार की और खादिमो ने अर्ज़ किया के बाग्दाद् में एक माहिर अमराज़े चश्म है जो ईसाई है, अगर इजाज़त हो तो उसे इलाज की गरज़ से बुलाया जाए, आप रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया जैसी तुम्हारी मरज़ी खादिमो ने अगले दिन उस ईसाई डाक्टर को ले कर आए और इस ईसाई डाक्टर ने आप रहमतुल्लाह अलैह की आँखों को देखने के बाद ये इलाज तजवीज़ किया के आप रहमतुल्लाह अलैह अपनी आँखों को पानी से बचाएं और इन में पानी न जाने दें, हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने इस ईसाई डाक्टर की बात सुनी तो फ़रमाया में पांच वक़्त वुज़ू करने का आदि हूँ ऐसे में, में अपनी आँखों को पानी से कैसे बचा सकता हूँ? ईसाई डाक्टर ने अर्ज़ किया हुज़ूर! अगर आप को आँखों की सलामती अज़ीज़ है तो इन्हें पानी से बचाना होगा, हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने पुछा अगर में ऐसा न करूँ? ईसाई तबीब बोला फिर आँखों की बीनाई रोशनी जाने का खतरा है ईसाई तबीब का तजवीज़ किया हुआ ये इलाज इस तजुर्बात व मुशाहिदात की रोशनी में था और वो मायूसी का इज़हार करता हुआ वापस जाने लगा,

और जाते वक़्त मुरीदों और खादिमो से कहने लगा के अगर तुम अपने मुर्शिद की आँखों को सही सलामत देखना चाहते हो तो फिर उन्हें वुज़ू ना करने का मश्वरा दो, ईसाई तबीब जाने के बाद मुरीद और खादिम हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया हुज़ूर! शरीअत हमें रियायत देती है और आप वुज़ू के बजाए तयम्मुम कर लिया करें आप ने फ़रमाया, मुझे इस शरई रियायत का बा खूबी इल्म है, फिर हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने वुज़ू फ़रमाया और नमाज़े ईशा अदा की फिर सो गए, फिर तहज्जुद के वक़्त उठे और नमाज़े तहज्जुद अदा फ़रमाई, जब आप रहमतुल्लाह अलैह नमाज़े फजर पढ़ने के बाद दिन की रौशनी में मुरीदों और खादिमो की तरफ मुतवज्जेह हुए तो उन्होंने ये हैरान कुन मंज़र देखा के आप रहमतुल्लाह अलैह की आँखों की सुर्खी जाती रही और अशोबे चश्म का मर्ज़ खत्म हो चुका था और आप रहमतुल्लाह अलैह मुकम्मल सेहत याब हो चुके थे, अगले दिन ईसाई तबीब डाक्टर एक बार फिर हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुए ताके आप की आँखों का मुआइना कर सके और जान सके के आप ने इस के मश्वरे पर अमल भी किया है या नहीं या मर्ज़ में कुछ कमी हुई या नहीं या फिर मर्ज़ ने शिद्द्त इख़्तियार की? जब वो आप के पास आया तो आप का हाल मालूम किया? आप ने फ़रमाया अल्लाह पाक ने मुझे इस “आरिज़ा यानि बीमारी से निजात दे दी” ईसाई तबीब बोला के आप ने ज़रूर मेरे मश्वरे पर अमल किया होगा? हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया ऐसा हरगिज़ नहीं फिर हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु ने मुस्कुराते हुए फ़रमाया, “में ने तुम्हारे बताए हुए इलाज के उल्टा किया और तुम उस मालिक हकीकी की शान देखो जो पानी तुम्हारे नज़दीक मेरी आँखों के लिए मुज़िर नुकसान था वही पानी मेरे लिए अक्सीर (फायदेमंद, कीमिया) बन गया) ईसाई तबीब ने हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु की बात सुनी तो हैरत का इज़हार किया और फिर जब इस ने आप की आँखों को देखा तो हैरान रह गया के मर्ज़ का नामो निशान भी बाकि न था, वो ईसाई तबीब बे साख्ता पुकार उठा के ये मखलूक का इलाज नहीं बल्के खालिक बनाने वाले का इलाज है और फिर ईसाई तबीब ने आप के दस्ते मुबारक पर इस्लाम कबूल कर लिया ।                         

मुरीद को शैतानी करिश्मा से निजात दिलाना

आप के एक मुरीद का वाक़िआ है के उस पर जूनून तारी हो गया के में अब कामिल हो गया हूँ और मेरे लिए अब जलवत से खल्वत बेहतर है चुनांचे वो गोशा नशीन (एक कोने में बैठ जाना) हो गया उस की ये हालत हो गई के हर रात वो फरिश्तों को ख्वाब में देखता जो उस के लिए ऊँट हाज़िर कर के कहता के चलो हम तुम्हें जन्नत में ले चलते हैं? चुनांचे वो इस ऊँट पर सवार हो कर एक सर सब्ज़ शादाब मकाम पर जाता जहाँ वो बहुत से हसीनो जमील आदमियों को देखता और निहायत नफीस उम्दा खाने और साफ़ व शफ़्फ़ाफ़ नहरें पाता और फिर वहां कुछ देर क़याम करता और इस की ये हालत यहीं तक हुई के वो लोगों से कहने लगा के में ऐसा हूँ के हर रोज़ बहिश्त (जन्नत) में जाता हूँ? इस की ये खबर जब हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु तक पहुंचीं तो आप इस की खबर गिरी मिलने के लिए तशरीफ़ ले गए, तो आप ने इस को समझाया के आज रात जब तुम वहां पहुचों तो ज़रा “लाहौल शरीफ” पढ़ना? वो हस्बे मामूल रात को जब ख्वाब की हालत में शैतान की जन्नत में पंहुचा तो आज़माइश के तोर पर लाहौल पढ़ा, इस का पढ़ना था के सब चीख उठे और इस को छोड़ कर भाग गए, अब वो देखता क्या है घोड़े पर सवार है और मुर्दों की हड्डियां उस के आगे रखी हुईं हैं इस को देख कर वो बहुत तेज़ चौंका और अपनी गलती को फ़ौरन मालूम कर लिया यहाँ तक के सुबह उठ कर तौबा की और आप की खिदमत में हाज़िर हो गया और ये बात इस के ज़हन में नक्श हो गई के मुरीद के लिए तन्हाई ज़हर है । 

आप के मलफ़ूज़ात शरीफ

सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु के कुछ इरशादात व मलफ़ूज़ात लिखते हैं जो रुमूज़ व मआरिफ़ का खज़ाना और अहले तरीकत के लिए बेहतरीन गन्जीना हैं । 

तसव्वुफ़ की हकीकत: आप फरमाते हैं तसव्वुफ़ की हकीकत दिल का साफ करना है, मखलूक की तरफ रुजू होने से, और अलैदगी इख़्तियार करना, तबीअत की पैरवी और ख्वाइश से और मार डालना सिफ़ाते बशरी का, और दूर रहना ख्वाइशाते नफ़्सानी से, और कायम होना सिफ़ाते रूहानी पर, और बुलंद होना उलूमे हकीकी पर, और अमल में लाना उस चीज़ को के कयामत तक फाइदा देने वाली है, और नसीहत करना तमाम उम्मत को, और बजा लाना हकीकत को, और पैरवी करना हज़रत रसूले खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अहकामे शरीअत की,      

सूफी: आप इरशाद फरमाते हैं के सूफी ज़मीन की मानिन्द होता है के तमाम पलिदी डाली जाती है और वो सर सब्ज़ हो कर निकलती है फ़रमाया तसव्वुफ़ इज्तिमा से एक ज़िक्र है और समा से एक वकद है और इत्तिबा से एक अमल है, तसव्वुफ़ का इश्तिकाक सोफ से है और जो इस के मासिवा से बर गश्ता हो वही सूफी है जिस का दिल हज़रते इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तरह दुनिया की दोस्ती से पाक हो और फरमाने खुदा पर अमल करने वाला हो, उस की तस्लीम हज़रते इस्माईल अलैहिस्सलाम की तस्लीम की तरह हो और उस का गम हज़रते दाऊद अलैहिस्सलाम की तरह हो और उस का सब्र हज़रते अय्यूब अलैहिस्सलाम की तरह हो, और उस का ज़ोको शोक हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम की तरह हो, और मुनाजात में उस का इखलास हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तरह हो फ़रमाया: तसव्वुफ़ वो नेमत है के बंदे का कायम इस पर मुनहसिर है लोगों ने पूछा के वो नेमते खल्क है या नेमते हक है? तो आप ने फ़रमाया: इस की हकीकत अल्लाह पाक की नेमत है, और उस की रहमत नेमते खल्क है फ़रमाया: तसव्वुफ़ तमाम इलाकों को तर्क कर के अल्लाह पाक के साथ मशगूल बिज़ी होना है, और फ़रमाया तसव्वुफ़ वो है जो तुझे मारता है और अपने से ज़िंदा करता है, 

लोगों ने आप से पूछा के तौहीद: क्या है? तो आप ने इरशाद फ़रमाया: तौहीद के माना ये हैं के आदमी इस में न पैद व ग़ुम हो जाए और इस में पोशीदह हो जाए, 

फना और बक़ा: के मुतअल्लिक़ इरशाद फ़रमाया: अल्लाह पाक ले किए और फना, मासिवा अल्लाह के लिए, “तजरीद” में इरशाद फ़रमाया: ज़ाहिर मक़ासिद से पाक व साफ़ होना, “तफ़क्कुर” के बारे में इरशाद फ़रमाया इस की कई किस्मे हैं अव्वल के के अल्लाह पाकी आयत में गोर फ़िक्र कीजिए इस की अलामत ये है के इस से मारफ़त पैदा होती है, दूसरा तफ़क्कुर ये है के अल्लाह पाक की नेमतों और एहसानात में किया जाए, इससे अल्लाह पाक के साथ मुहब्बत पैदा होती है तीसरा तफ़क्कुर, ये है के अल्लाह पाक के वादों में किया जाए के इससे हैबत, पैदा होती है “चौथा तफ़क्कुर” ये है के अल्लाह पाक की ज़ातो सिफ़ात, और एहसान में गोरो ख़ौज़ फ़िक्र करना इससे “ह्या” पैदा होती है, 

उबूदियत: के बारे में लोगों ने पूछा के बंदा “हक़ीकते उबूदीयत” (पूजा करना, इताअत, फरमाबरदारी करना) को कब पहुँचता है, तो आप फरमाते हैं के जब वो हर शै हर चीज़ का अल्लाह पाक को मालिक देखता जानता है, और सब का ज़हूर अल्लाह पाक से समझता है और सब का क़याम खुदा से पाता है और सब जाए बाज़ गश्त (रुजू करना, वापस आना) अल्लाह पाक को जानता है, जब तमाम बातें बन्दे पर साबित हो जातीं हैं उस वक़्त वो “उबूदियत” को पहुँचता है,

सिद्क़: के बारे में आप इरशाद फरमाते हैं सिद्क़ सादिक की सिफ़त है और सादिक वो है जिस को तुम सुनी हुई सिफ़ात के मुताबिक देखो और तमाम उमर उस को ऐसा ही पाओ और “सिद्दीक” वो है जिस के अक़वाल, व अहवाल, व अफआल, में हमेशा सिद्क़ पाया जाए, 

इख़लास: के बारे में आप फरमाते हैं इखलास फ़र्ज़ है फ़रीज़ा में और निफ़्ल है निफ़्ल में और इखलास ये है के तू नफ़्स को अल्लाह पाक के मुआमले से बाहर निकाल दे क्यूंकि वो रुबूबियत का मुद्दई है,

सूफी: आप फरमाते हैं सूफी मिस्ल ज़मीन के है तमाम पलीदी यानि गन्दगी इस पे डालते हैं, सारी नेकोई बाहर लाते हैं, 

सूफी: आप फरमाते हैं सूफी वो है जो दाहिने सीधे हाथ में कुरआन और बाएं हाथ में सुन्नते नबवी लेवे पकड़े,

मोमिन व मुनाफिक: आप फरमाते हैं के मोमिन का दिल एक साअत में सत्तर बार गर्दिश करता है और मुनाफिक का दिल सत्तर साल में एक बार भी नहीं फिरता, 

सूफ़ियाए आरिफ़ीने किराम के अक़वाल

  • एक रोज़ किसी ने हज़रत मूइल जिसास शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह का कौल है के हिकमत “हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” को दी गई और वज्द हज़रते शाह शुजा किरमानी रहमतुल्लाह अलैह को दिया गया, और अख़लाक़ हज़रत अबू हफ्स रहमतुल्लाह अलैह, को अता हुआ और हज़रत बायज़ीद रहमतुल्लाह अलैह को मंज़िले हैरत से मुशर्रफ हुए ।  (नफ़्हातुल उन्स)
  • हज़रत अबू जाफर हद्दाद रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं के अगर अक्ल मुशखख्स (जांचा गया, तजवीज़ किया गया) होती तो “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” की सूरत में ज़ाहिर होती ।  (नफ़्हातुल उन्स)
  • हज़रते अबू सईद खिराज़ रहमतुल्लाह अलैह फरमाते थे के में ने दो ही सूफी देखे, एक “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” और दूसरे इब्ने अता रहमतुल्लाह अलैह । (तब्कातुल कुबरा)
  • हज़रत अबू उस्मान खीरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के लोगों में मशहूर है के सारी दुनिया में सिर्फ तीन शख्स हैं जिन का चौथा नहीं, अबू उस्मान रहमतुल्लाह अलैह निशापुर में,  “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु बाग्दाद् में” हज़रत अबू अब्दुल्लाह बिन जिला रहमतुल्लाह अलैह मुल्के शाम में (मुल्के शाम का नया नाम सीरिया है) । 
  • हज़रत क़ाज़ी इब्ने सरीज फ़क़ीह शाफईयह रहमतुल्लाह अलैह, आप की तकरीर सुन कर बे इख़्तियार बोल उठे के ये शौकत झूट बोलने वाले के कलाम में नहीं हो सकती, और फिर “हज़रत जुनैद” के बाद अपनी खुश बयानी पर नाज़ कर ते तो कहते थे के ये सिर्फ “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” की सुहबत का फैज़ है । 
  • हज़रत अबू अब्दुल्लाह मुहम्मद बिन ख़फ़ीफ़ ज़बी शीराज़ी रहमतुल्लाह अलैह अपने मुरीदों को हुक्म दिया करते थे के हमारे शीयूख साबिका में से पांच बुज़रुग ऐसे हैं जिन की तुम हर अम्र हुक्म में पैरवी क्या करो हज़रत हारिस बिन असद मुहास्बी रहमतुल्लाह अलैह, सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु, अबू मुहम्मद रुवीम रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत अबुल अब्बास इब्ने अता रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत अमर बिन उस्मान मक्की रहमतुल्लाह अलैह, इस लिए के ये सब बुज़रुग व बातिन के जामे थे ।  (रिसाला कुशैरिया)
  • एक दिन हज़रत अबू अब्दुल्लाह बिन ख़फ़ीफ़ रहमतुल्लाह अलैह, और हज़रत शैख़ अली बिन बिंदार सूफी रहमतुल्लाह अलैह शीराज़ की  गलियों में गुज़र रहे थे, हज़रत अबू अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत शैख़ अली बिन बिंदार सूफी रहमतुल्लाह अलैह को कहा के आप आगे चलो, उन्हों ने कहा के मुझ में कौन सी फ़ज़ीलत है के आगे चलूँ? तो हज़रत शैख़ अली बिन बिंदार सूफी रहमतुल्लाह अलैह ने जवाब दिया के इससे बड़ी क्या फ़ज़ीलत हो सकती है के तुम्हारी आँखों को “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” की ज़ियारत नसीब हुई है ।  (अवारीफुल मआरिफ़)
  • हज़रते अबुल अब्बास अहमद इब्ने अता रहमतुल्लाह अलैह कहते हैं के हमारे “इमाम” और वो “मर्कज़” जिस की पैरवी की जाए, वो  “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” हैं ।   (नफ़्हातुल उन्स)
  • हज़रते अबू अम्र मुहम्मद बिन इब्राहीम ज़ूजाजी रहमतुल्लाह अलैह कहा करते थे के में ने तीस साल तक “हज़रते जुनैद बगदादी रहमतुल्लाह अलैह” की बैतुल खुला साफ़ की है और इस पे फख्र किया करते थे ।   (नफ़्हातुल उन्स)

आप के खुलफाए किराम

हज़रत जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु के चार जलीलुल कद्र खुलफ़ा हैं, जिन्हो ने आप के सिलसिले को फरोग दिया जिन के अस्मए गिरामी ये हैं: 

  1. हज़रते शैख़ अबू बक्र शिब्ली,
  2. हज़रते शैख़ मंसूर हल्लाज जो अनल हक कहने के सबब सूली पर चढ़ाए गए,
  3. हज़रत शाह मुहम्मद बिन अस्वद दिनोरि,
  4. हज़रत शाह इस्माईल अज़ीज़ रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।  

आप की औलादे अमजाद

आप के दो बेटे थे, एक हज़रत शैख़ क़ासिम रहमतुल्लाह अलैह इन्ही के नाम से आप की कुन्नियत अबुल कासिम मशहूर हुई, दूसरे हज़रत शैख़ उस्मान रहमतुल्लाह अलैह, और आप की की औलाद में हज़रत मुनव्वर अली शाह क़ादरी हुए हैं जिन की उमर तकरीबन 600, साल हुई है ।  (हक़ीकते गुलज़ार साबरी)     

विसाले पुरमलाल

आप का विसाल सत्ताईस 27, रजाबुल मुरज्जब बरोज़ जुमा 297, या 298, हिजरी को हुआ, उस वक़्त अब्दुल मुक्तदिर बिल्लाह का दौर था,     

विसाल के हैरत अंगेज़ वाक़िआत

जब आप को अपने विसाल का इल्म हो गया तो आप ने हुक्म दिया के मुझे वुज़ू कराओ यहाँ तक के आप को वुज़ू कराया गया, वुज़ू कराते वक़्त लोग उँगलियों में खलाल करना भूल गए जब आप ने याद दिलाया तो लोगों ने खलाल भी कराया इस के बाद आप सजदे में गिर कर ज़ारो कतार रोने लगे, ऐ हमारे तरीकत के सरदार बावजूद इस कद्र इताअत व बंदगी के जो आप आगे भेज चुके हैं ये सजदे का कोनसा वक़्त है? तो आप ने इरशाद फ़रमाया “जुनैद” इस वक़्त से ज़ियादा मुहताज किसी वक़्त में न था, फिर आप ने कुरआन शरीफ की तिलावत फ़रमाई तो एक मुरीद ने कहा, हुज़ूर! आप कुरआन शरीफ पढ़ते हैं? इस के जवाब में आप ने इरशाद फ़रमाया, मेरे लिए इससे बेहतर वक़्त और कोन सा होगा ये अनक़रीब मेरा नामए अमाल तैह कर दिया जाएगा और में अपनी सत्तर 70, साल की इबादत को अपनी आँखों से देख रहा हूँ जो हवा में एक बारीक तार से लटक रही है और एक तेज़ हवा से हिल रही है में नहीं जानता के ये हवा वसलियत की है या कतईयत की, और एक तरफ मुझे पुल सिरात नज़र आ रहा है और दूसरी जानिब मलिकुल मोत को देख रहा हूँ और ऐसे क़ाज़ी को जिस की सिफ़त अदल करना है वो तवज्जुह नहीं करता और रास्ते में मेरे सामने है में नहीं जानता के मुझे किस रास्ते पर लेजाया जाएगा फिर आप ने कुरआन शरीफ खत्म फ़रमाया और सूरह बकरा की सत्तर आयात तिलावत फ़रमाई, लोगों ने कहा, हुज़ूर अल्लाह अल्लाह का विर्द कीजिए! मुझे क्यों याद दिलाते हो, में ने उसे फरामोश तो नहीं किया है? फिर आप ने अल्लाह पाक की तस्बीह को उँगलियों के पोरों पर पढ़ना शुरू किया, जब अंगुश्त शहादत पर पहुंचे तो आप ने हाथ उठा कर “बिस्मिल्लाह शरीफ” पढ़ा और आँखें बंद कर लीं और वासिल मिनल्लाह हो गए यानि आप विसाल फरमा गए,

विसाल के बाद आप को ग़ुस्ल दिया गया और जब ग़ुस्ल देने वालों ने देखा आप की आँखों पर पानी डालना चाहा तो हातफे गैबी ने आवाज़ दी के अपने हाथों को हमारे दोस्त की आँखों पर न रखो क्यूंकि ऐसी ऑंखें जो हमारे नाम के ज़िक्र से बंद हुई हूँ वो बगैर हमारे दीदार के खुलेंगीं, फिर लोगों ने उँगलियों को खोलनी चाही लेकिन न खोल सके और आवाज़ आई के जो उँगलियाँ हमारे नाम की तस्बीह से बंद हों वो भला हमारे हुक्म के न खुल सकती । 

जनाज़े की रवानगी

ग़ुस्ल वगैरा से फरागत के बाद जब आप के जनाज़ा मुबारक को उठाया गया तो एक सफ़ेद कबूतर आया और जनाज़ा के एक कोने पर बैठ गया, लोगों ने इस को उड़ने की कोशिश की लेकिन वो नहीं उड़ा और जवाब दिया के मुझे और अपने आप को रंज न दो क्यूंकि मेरे पंजे मेखे इश्क से जनाज़े के कोने पर गड़े हुए हैं, आज जनाज़े को उठाने की तकलीफ न करो क्यूंकि आज अप का दिल फरिश्तों के हिस्से में है अगर तुम शोर गोगा न करते तो आप का जिस्म सफ़ेद बाज़ की तरह हवा में उड़ता होता । 

आप का मज़ार

आप का मज़ार मुकद्द्स मक़ामे शोनीज़ में है जो मुल्के इराक की राजधानी बाग्दाद् शरीफ में मरजए खलाइक है, एक बार हज़रत शैख़ अबू बकर शिब्ली रदियल्लाहु अन्हु आप के मज़ार मुकद्द्स के पास हाज़िर थे एक शख्स ने आप से एक मसला पूछा तो आप ने जवाबन ये शेर पढ़ा, “मुझे इस शख्स से जो कब्र में हैं इस तरह शर्म आती है जैसा के वो मेरी तरफ नज़र करते थे तो मुझे शर्म आती थी” इसी तरह हज़रत शैख़ फरीदुद्दीन अत्तार रहमतुल्लाह अलैह  इरशाद फरमाते हैं, के बुज़ुर्गों का हाल, हयात, व वफ़ात, में एक ही सा रहता है और मुझे शर्म आती है के में इन की कब्र के सामने मसला का जवाब दूँ जिससे में ज़िन्दगी में शर्म करता था ।  

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो” 

बादे विसाल का वाक़िआ

विसाल के बाद एक बुज़रुग ने आप को ख्वाब में देखा और आप से मालूम किया, नकीरेंन के सवालात आप से किस तरह हुए, तो आप ने इरशाद फ़रमाया,  नकीरेंन ने आ कर मुझ से कहा: तेरा रब कौन है? तो में ने हसं कर जवाब दिया के मेरा रब वो है जिस ने रोज़े अज़ल इकरारे बंदगी कराया है पास जो शख्स बादशह को जवाब दे चुका हूँ एक गुलाम का जवाब देना क्या मुश्किल है जब में ने ये “الّذی خلقنی و ھوا یھدین”  कहा: तो वो चले गए और कहा: ये तो अभी तक मुहब्बत के सुक्र में है और इसी मस्ती में पड़ा है ।               

रेफरेन्स हवाला                  

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3) कशफ़ुल महजूब,
(4) तज़किरातुल औलिया,
(5) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल, 
(6) मिरातुल असरार, 
(7)जामे करामाते औलिया उर्दू, 

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