हज़रते सय्यदना शैख़ माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना शैख़ माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

बहरे  मारूफ़ो  सरी  माअरूफ़ दे बे खुद सरी 

जुनदे हक़ में गिन जुनैदे बा सफा के वास्ते

विलादत शरीफ

आप की पैदाइश 135, हिजरी को कर्ख बगदाद में हुई । 

इस्म शरीफ व कुन्नियत

आप का इस्म मुबारक “असादुद्दीन” और मशहूर नाम “माअरूफ़ करखी” और कुन्नियत “अबू महफूज़” है । 

आप के वालिद

आप के वालिद माजिद का नाम “फ़िरोज़” या “फैरोज़ान था, मज़हब नासारा रखते थे, इस्लाम लाने के बाद उन का नाम अली रखा गया, कर्ख एक गाऊं है बाग्दाद् शरीफ के करीब, और बाज़ कहते हैं के बाग्दाद् के एक मोहल्ले का नाम है जहाँ आप के आबाओ अजदाद सुकूनत रखते थे, 

तअलीम व तरबियत

आप की तअलीम व तरबियत सुल्ताने मिल्लत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खानवादे यानि बारगाहे हज़रते इमाम अली रज़ा  रदियल्लाहु अन्हु में हुई और आप ही की बारगाह में सुलूक व मारफ़त व इल्मों हिकमत की मंज़िलों को तै फ़रमाया और खिलाफत अता फ़रमाई । 

आप के इब्तिदाई हालात

इब्तिदा शुरू में आप गैर मुस्लिम थे मगर बचपन ही से कलबो जिगर में इस्लाम की तड़प जोशो अकीदत मौजूद थी, आप मुस्लमान बच्चों के साथ नमाज़ पढ़ते और माँ बाप को इस्लाम की तरग़ीब शोक लालच देते रहे, आप के वालिदैन ने एक ईसाई मुअल्लिम के पास आप को तअलीम हासिल करने के लिए बिठा दिया, इस मुअल्लिम ने आप से सवाल किया के बच्चे ये बताओ के तुम्हारे घर में कितने आदमी हैं? आप ने कहा में और मेरे वालिद और मेरी वालिदा तीन आदमी हैं, तो तुम कहो “ईसा तीन खुदाओं में से तीसरा” आप फरमाते हैं के आलमे कुफ्र में भी मेरी गैरत ने ये गवारा न किया के एक के सिवा दूसरे को पुकारूँ इस लिए में ने फ़ौरन इंकार कर दिया इस पर मुअल्लिम ने मुझे मारना शुर कर दिया वो जिस शिद्दत से मारता में उसी जुरअत से इंकार करता आखिर आजिज़ हो कर उस ने मेरे वालिदैन से कहा: इस को कैद कर दो, तीन दिनों तक कैद में रहा और हर रोज़ एक रोटी मिलती थी मगर में ने उस को छूआ तक नहीं और जब मुझे वहां से निकाला गया तो में भाग गया, चूंकि में वालिदैन का अकेला लड़का था इस लिए मेरी जुदाई से उन्हें सख्त कलक यानि बेचैनी हुई और कहने लगे वो जहाँ भी गया है मेरे पास लोट आए वो जिस मज़हब को चाहे इख़्तियार करे हम भी उस के साथ अपना दीन तब्दील कर देंगें, चुनांचे हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु के दस्ते मुबारक पे दाखिले इस्लाम हो कर इस अनमोल दौलत को अपने साथ ले कर वापस हुआ मेरे इस्लाम कबूल कर ने की वजह से अल हम्दुलिल्लाह मेरे वालिदैन करीमैन भी मुस्लमान हो गए । 

आप के असातिज़ाए किराम

आप ने मुकम्मल तालीमों तरबियत हज़रते इमाम अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में पाई, इन के अलावा हज़रते इमामे आज़म अबू हनीफा नोमान इब्ने साबित रदियल्लाहु अन्हु (मुतवफ़्फ़ा 150, हिजरी) से भी हासिल फ़रमाई और इल्मे तरीकत हज़रते हबीब राई रदियल्लाहु अन्हु से हासिल किया ।     

आप के फ़ज़ाइलो कमालात

आप इमामुस सादिक़ीन, शम्सुल आरिफीन, सुल्तानुल मुताअबबिदीन, रईसुस सालिकीन, सय्यदुल औलिया, उम्दतुल अतकिया, मसदरे असरारे ना मुतनाही फ़तवाओ तकवाओ में आयते अज़ीम, हमदम नसीमे विसाल, महरमे हरीमे जलाल, मुक़्तदाए अहले तरीकत, रहनुमाए राहे हकीकत, आरिफ़े असरारे मारफ़त क़ुत्बे वक़्त “हज़रते सय्यदना शैख़ माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु” आप बदरे तरीकत व मुक़्तदाए ताइफ़ और अनवाए लता इफ, के साथ वक़्त के सरदार और खुलासाए आरिफाने अहिद थे बल्के अगर आप आरिफ न होते तो मारूफ न होते आप मुरीद “हज़रते शैख़ हबीब राई रहमतुल्लाह अलैह के थे” और “हज़रत सय्यदना दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह” (मुतवफ़्फ़ा 160, हिजरी) ने भी आप को नियाबातो खिलाफत से नवाज़ा था, आप ने हज़रते दाऊद ताई रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में रियाज़ते शाक़्क़ह तै फ़रमाई और सिद्क़ सच्चाई में ऐसा कदम रखा के माअरूफ़ हो गए, आप अज़ान इस शान से पढ़ते थे के जब “अशहदु अल्लाह इलाहा इलल्लाह” कहते तो शिद्द्त खौफ से रोंगटे और दाढ़ी के बाल खड़े हो जाते और इस कदर बे करार हो जाते के मालूम होता के अब ज़मीन पर गिर जाएंगें, बार बार रात रात भर मस्जिद से गिरया वाज़ारी रोने की आवाज़ आती और दुआ व इस्तगफार में मशगूल रहते हज़रते सिरि सकती रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के मुझे जो कुछ मिला है वो हज़रते सय्यदना माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु के तुफैल में मिला है हज़रते अब्दुल वहाब रहमतुल्लाह अलैह का कौल है के हज़रते सय्यदना माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु से बड़ा तारिकुत दुनिया में ने किसी को न देखा, आप के तसर्रुफ़ का ये आलम है के आप की कब्र मुकद्द्स क़ज़ाए हाजात के लिए तिरयाक मानी जाती है, “आप सिलसिले आलिया क़ादरिया रज़विया के नवें 9, इमाम व शैख़े तरीकत हैं” ।  (कशफ़ुल महजूब, तज़किरातुल औलिया,  मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,)  

आरिफ़ीने कामिल

हज़रते अल्लामा कमालुद्दीन दमिरि रहमतुल्लाह अलैह “हयातुल हैवान” में फरमाते हैं के हज़रते मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह इजाबते दुआ में मशहूर थे, और अहले बाग्दाद् आप की कब्र मुबारक के वसीले से बारिश तलब करते हैं, और कहते हैं के हज़रते मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह की क़ब्र तिरयाके मुजर्रब है,

शैखुल इस्लाम अब्दुल्लाह अंसारी रहमतुल्लाह अलैह पीरे हिरात ने लिखा है “हज़रते मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह” ज़ुहदो तक़वा परहेज़गारी में बहुत बड़े शैख़ थे, और आप हज़रते दाऊद ताई रहमतुल्लाह अलैह के फैज़ व सुहबत याफ्ता थे, 

हज़रत मखदूम शैख़ दातदा गंज बख्श उस्मान अली हजवेरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के “हज़रते मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह” सादाते मशाइख से थे, और मर्दानगी में मशहूर और परहेज़गारी में मारूफ थे, आप के मनाक़िब व फ़ज़ाइल बहुत हैं के इल्मो फुनून में आप बा कमाल थे,

हज़रत शैख़ सिरि सकती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के में ने आप को ख्वाब में देखा अरशे मजीद के नीचे बा हालते बे खुदी व मदहोश थे, हज़रते हक से निदा हुई के ऐ फरिश्तों! ये कौन है, उन्हों ने अर्ज़ किया ऐ परवरदिगार तू दाना व बिना है, इरशाद हुआ के  “मारूफ करख़ी रहमतुल्लाह अलैह” है हमारी दोस्ती में बे खुद हुआ है सिवाए हमारे दीदार के इस को होश और सिवाए हमारे लिका मुलाकात के इस को चैन न आवेगा । 

आदात व सिफ़ात

आप को गरीबो और यतीमो से बे पनाह उन्स व मुहब्बत थी, हज़रते सिरि सकती रदियल्लाहु अन्हु बयान फरमाते हैं के में ईद के दिन आप को खजूरें चुनते हुए देखा तो में ने दरयाफ्त फ़रमाया: हुज़ूर आप क्या कर रहे हैं? आप ने इरशाद फ़रमाया: में ने एक लड़के को रोता हुआ देखा उससे पूछा के तुम क्यों रो रहे हो? उस बच्चे ने जवाब दिया के में यतीम हूँ और आज ईद का दिन है सब लोग नए कपड़े पहने हुए हैं और मेरे पास कुछ नहीं है, आप ने कहा: में खजूरें इस लिए चुन रहा हूँ ताके इस को बेच कर इस बच्चे को अखरोट ख़रीदूँ के ये इस से खेले और इस में मशगूल होने की वजह से न रोए, हज़रते सिरि सकती रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया, में इस काम को अंजाम देता हूँ आप बे फ़िक्र रहे हैं, फिर में इस लड़के को अपने साथ ले कर कपड़े की दूकान पर पंहुचा और इस को नए कपड़े खरीद कर पहनाए और इस काम से मेरे दिल में एक नूर पैदा हुआ और मेरी हालत ही कुछ और हो गई,

हर वक़्त बवुज़ू रहना

मन्क़ूल: है के एक दिन आप का वुज़ू टूट गया आप ने उसी वक़्त तयम्मुम फरमा लिया, लोगों ने अर्ज़ किया हुज़ूर ! दरयाए दजला सामने है, तयम्मुम क्यों कर रहे हो? आप ने इरशाद फ़रमाया: मुमकिन हो, हो सकता है के दरयाए दजला तक पहुंचते पहुंचते मेरा विसाल हो जाए । 

आप के अख़लाक़ से ज़ईफा वलीया हो गई

एक दफा आप ने दरयाए दजला के किनारे कुरआन शरीफ और कपड़े वगैरा रख कर ग़ुस्ल करना  शुरू किया उस वक़्त एक ज़ईफा (उमर दराज़ बूढ़ी औरत) आई और आप के सामान को ले कर भागने लगी, आप ने इस का पीछा किया और एक जगह रोक कर कहा: कोई हर्ज नहीं में तुम्हारा भाई माअरूफ़ करखी हूँ, क्या तुम्हारा कोई लड़का या भाई या शोहर है जो कुरआन शरीफ पढ़े? इन्हों ने कहा: नहीं तो आप ने फ़रमाया, कुरआन शरीफ मुझे दे दो और कपड़े ले लो? में दुनिया व आख़िरत में हर जगह तुम्हे माफ़ किया, ये सुन कर ज़ईफा को इतनी शर्म आई के उस ने तौबा की और आप की बरकत से एक मुत्तकिया परहेज़गार वलीया हो गई । 

आप की दुनिया से बेज़ारी (उकताहट, नाराज़गी) 

हज़रते सय्यदना माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु से आप के एक दोस्त ने फ़रमाया: हुज़ूर वो क्या चीज़ है जिस ने आप को अल्लाह पाक की मखलूक और इस दुनिया से मुतनफ्फिर (नफरत करने वाला, घिन करने वाला) कर के ख़लवत तन्हाई में बिठा कर खुदा की इबादत में मशगूल बीजी कर दिया है? क्या आप को मोत के डर या कब्र का खौफ या दोज़ख के डर, या फिर जन्नत की उम्मीद ने ख़लवत इख़्तियार कराई? इन सभी सवालात के जवाबात में आप ने इरशाद फ़रमाया: ऐ शख्स तू क्या छोटी छोटी और अदना चीज़ों का ज़िक्र करता है “مالک الملک وخالق الکل” (बादशाहों का मालिक और सब खालिक) के सामने इन सब चीज़ों की क्या हकीकत है, ये सब चीज़ें उस वाहदाहू ला शरीक के अदना गुलाम हैं अगर तू इस की दोस्ती का मज़ाह चखले फिर इन सब चीज़ों से बे रगबती नफरत करने लगे । 

कोड़ों से नफ़्स की इस्लाह करना

हज़रते सय्यदना माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु इतने अज़ीम बुलंद शैख़े करीम मर्तबे पर फ़ाइज़ होने के बावजूद अपने रब की बररगह में बड़ी गिरया व ज़ारी फरमाते और कभी कभी अपने दस्ते मुबारक में कोड़े ले कर अपने आप को मारा करते और कहते “ऐ मेरे नफ़्स तू इखलास इख़्तियार कर ताके तू खुलासी (छुटकारा) पा सके, । 

   “कशफो करामात” 

आप की दुआ से डाकू बख्श दिया गया

एक मर्तबा एक डाकू को गिरफ्तार किया गया, हाकिम ने हुक्म दिया के इस डाकू को सूली दे दी जाए, हुक्म पाते ही उस को सूली पे लटका दिया गया और डाकू का सूली ही पर इन्तिकाल हो गया, अभी उस की लाश सूली ही पर थी के उस तरफ से हज़रते सय्यदना माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु का गुज़र हुआ, लाश को सूली पर देख कर आप लरज़ गए और उस के लिए दुआए मगफिरत फरमाने लगे, ऐ रहमान व रहीम ! इस सख्श ने अपने किए की सज़ा दुनिया ही में पाली तू गफूरूर रहीम है अगर इस की खता माफ़ फरमा दे और दारैन में इसे इज़्ज़त बख्श दे तो तेरे बख्शिश के ख़ज़ानों में कमी नहीं हो सकती, यकायक ग़ैब से आवाज़ आई जिस को सारे शहर वालों ने सुना के जो कोई इस सूली वाले शख्स की नमाज़े जनाज़ाह पढ़ेगा वो आख़िरत में बड़े रुतबे पाएगा, इस गैबी आवाज़ के सुनते ही तमाम शहर के लोग जमा हो गए और हाथों हाथ उसे सूली से उतारा और अच्छी तरह ग़ुस्ल कफ़न दे कर नमाज़े जनाज़ा पढ़ी और दफ़न कर दिया, रात में एक शख्स ने ख्वाब में देखा के कयामत काइम है और वो डाकू नमाज़ियों के साथ वहां शानदार लिबास पहने हुए मौजूद है, उससे पूछा के इतनी अज़ीम दौलत तुझे किस तरह मिली? उस ने जवाब दिया के हज़रते सय्यदना माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु की दुआ अल्लाह पाक ने कबूल फ़रमाली और मेरी बख्शिश फरमा दी । 

परिंदे की फरमा बरदारी

हज़रते सय्यदना माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु के मामू शहर के हाकिम थे, एक रोज़ इनका गुज़र जंगल में हुआ वहां पर हज़रते सय्यदना माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु बैठे हुए रोटी तनावुल फरमा रहे थे और करीब ही बैठे एक कुत्ते को भी रोटी खिला रहे थे, आप के मामू ने कहा: कुत्ते के करीब क्यों रोटी खा रहे हो? आप ने सर उठाया तो देखा के एक परिंदा हवा में उड़ रहा है, उस को आवाज़ दी, परिंदा हुक्म पाते ही नीचे उतर आया और आप के हाथ पर आ कर बैठ गया मगर शर्म की वजह से अपना मुँह और अपनी आँखें अपने पर से छुपा लिए,  हज़रते सय्यदना माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया: देखो जो शख्स अल्लाह पाक से शर्म करता है हर चीज़ उससे शर्म रखती है, आप के मामू ने ये शान देखि तो बड़े शर्मिंदाह हुए । 

ऐ अल्लाह इस जहां में ऐशो इशरत अता कर

हज़रते सय्यदना माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु एक रोज़ एक जमाअत के साथ कहीं जा रहे थे के दरियाए दजला के किनारे नोजवानो की एक जमाअत को देखा जो फिस्को फ़ुजूर में मुब्तला थे आप के साथियों ने कहा, हुज़ूर इन के लिए दुआ फरमाए के अल्लाह पाक इन तमाम बदमाशों को गर्क कर दे ताके इस की नहूसत फैलने न पाए, हज़रत ने फ़रमाया: तुम सब अपने हाथ उठाओ में दुआ करता हूँ और तुम लोग सिर्फ आमीन कहना, चुनांचे सभी ने हाथ उठा दिए और आप ने दुआ की इलाही जिस तरह तू ने इन लोगों को इस दुनिया में ऐश व इशरत से नवाज़ा इसी तरह इस जहां में भी ऐशो इशरत अता फरमा, आप की इस दुआ पर आप के साथियों को तअज्जुब हुआ और वजह दरयाफ्त की तो आप ने इरशाद फ़रमाया: तुम लोग ज़रा देर ठहरो मेरा मकसद भी अभी ज़ाहिर हो जाता है, चुनांचे थोड़ी देर के बाद इस जमाअत की नज़र जैसे ही हज़रत पर पड़ी तो इन लोगों ने अपने बजे गाजे को तोड़ दिया और शराब को फेक दिया और ज़ारोकतार रोने लगे और तमाम लोग आप के कदमो पर गिर पढ़े और सच्चे दिल से ताइब हो गए, हज़रत ने अपने साथियों से फ़रमाया: देख लिया तुम लोगों ने यही मेरी मुराद थी जो हासिल हुई, बगैर इस के, के ये गर्क हों या उन लोगों को तकलीफ पहुचें । 

आप के खुलफाए किराम

आप के मशहूर खुलफाए किराम जिन्हों ने इस्लाम की अज़ीम खिदमात अंजाद दीं हस्बे ज़ैल हैं । (1) हज़रते शैख़ सिरि सक्ती रदियल्लाहु अन्हु (2) हज़रते शाह मुहम्मद (3) हज़रते शाह कासिम बगदादी (4) हज़रते उस्मान मगरिबी (5) हज़रते हमज़ाह खुरासानी (6) हज़रते अबू नस्र अबरार (7) हज़रते शाह मुस्तआनी (8) हज़रते शाह अबू सईद (9) हज़रते अबू इब्राहीम दाऊदी (10) हज़रते अबुल हसन हारूनी (11) हज़रते शाह जाफर खालिदी (12) हज़रते शाह मुहम्मद रूमी (13) हज़रते शाह मंसूर आरिफ अबू कातिब (14) हज़रते शाह अब्दुल हक आगाह (15) हज़रते शाह अली रूदबारी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन । 

आप के मलफ़ूज़ात

आप ने फ़रमाया: जवान मर्दों की तीन अलामते हैं, वादा का पूरा करना बगैर किसी गरज़ के तारीफ करना और बगैर सवाल के अता करना, ज़बान को तारीफ से इस तरह बचाना चाहिए जिस तरह के बुराई से, तसव्वुफ़ नाम है हक़ाइक़ के हुसूल और मखलूक के मालो मता से न उम्मीदी का और जो शख्स साहिबे फक्र नहीं साहिबे तसव्वुफ़ नहीं, बहिश्त की तलब बगैर अमल के गुनाह है और शफ़ाअत का इन्तिज़ार बगैर सुन्नत की हिफाज़त के एक किस्म का गुरूर है और रहमत की उम्मीद न फ़रमानी की हालत में जिहालत व हिमाकत है, आँख को हर तरफ से बंद कर ले अगरचे सामने परी सूरत हो, जो बुनियाद कभी वीरान न हो वो अद्ल है तल्खी जिस का आखिर शीरीं हो सब्र है और वो शीरीं जिस का आखिर तल्ख़ हो शहवत हो और वो बला जिससे लोगों को भागना चाहिए वो ऐश है, मुहब्बत तालीमों तरबियत से नहीं बल्के रब की अता से हासिल होती है, रंज व मुसीबत आए तो उस का इलाज उस के छुपाने ही में है, आरिफ अगरचे नेमत नहीं रखता लेकिन बावजूद इस के वो हमेशा नेमत में है । 

तज्हीज़ो तदफ़ीन

मन्क़ूल: है के जब आप का विसाल हुआ तो तमाम अहले अदयान () ने दावा किया के हम आप का जनाज़ा उठाएंगें चुनांचे यहूदी, तरसा, और मुसलमान सब इस के दावेदार थे, आप के खादिम ने कहा: हज़रत ने मुझ से वसीयत फ़रमाई है के जो कौम मेरा जनाज़ा ज़मीन से उठा लेगी वही कौम मेरी तज्हीज़ो तदफ़ीन करेगी, इस लिए सब से पहले यहूदियों ने कोशिश की लेकिन जनाज़ा को बहुत शदीद कोशिश के बा वजूद नहीं उठा सके, फिर तरसा ने कोशिश की वो भी न काम रहे आखिर में मुसलमानो ने जनाज़े को उठा लिया और आप को दफ़न फ़रमाया । 

विसाल के बाद दीदार कर वाया

हज़रत मुहम्मद बिन हुसैन रिवायत करते हैं के में ने आप को ख्वाब में देखा और मालूम किया के अल्लाह पाक ने आप से क्या मुआमला किया? आप ने इरशाद फ़रमाया: अल्लाह पाक ने मुझे बख्श दिया, ज़ुहदो तक़वा की वजह से नहीं बल्के सिर्फ इस बात के बदले जो हज़रते सम्माक रहमतुल्लाह अलैह से कूफ़ा शहर में सुनी थी के जो तमाम तअल्लुक़ात से मुनक़ता हो कर अल्लाह पाक की तरफ मुतावज्जेह कर देता है और तमाम मखलूक को उस की जानिब फेर देता है इन की इस बात को सुन कर में अल्लाह पाक की तरफ इत्मिनाने कलबी के साथ मुतावज्जेह हो गया और हज़रते सय्यदना अली रज़ा रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत बा बरकत के सिवा तमाम अशग़ाल काम से दस्त बरदार हो गया । 

और एक दूरी रिवायत आप के महबूब तरीन खलीफा हज़रते सिर्री सक्ती रदियल्लाहु अन्हु से फरमाते हैं के में ने विसाल के बाद आप को ख्वाब में देखा के आप अर्शे इलाही के नीचे वारफता और खुद रफ्ता हैं, अल्लाह पाक ने निदा की ऐ फ़रिश्तो ये कौन है? फरिश्तों ने अर्ज़ किया: ऐ रब्बे ज़ुल्जलाल तू इससे बा खूबी वाकिफ है तेरे सामने कोई चीज़ पोशीदा छुपी हुई नहीं, अल्लाह पाक ने इरशाद फ़रमाया: ये माअरूफ़ कारखी है जो हमारी मुहब्बत व दोस्ती में बे खुद व मत वाला हो गया है और ये बगैर हमारे दीदार के होश में नहीं आएगा और न ही हमारे दीदार के सिवा इसे तसल्ली होगी । 

तारीखे विसाल

आप का विसाल दो 2, मुहर्रमुल हराम दो सो 200, हिजरी बरोज़ जुमा या यक शम्बा बरोज़ इतवार को खलीफा मामून रशीद सातवा अब्बासी खलीफा के दौरे हुकूमत में । 

आप की कब्र से हाजतें पूरी होतीं हैं

आप का मज़ार मुकद्द्स मुल्के ईराक की राजधानी शहर बाग्दाद् शरीफ में ज़ियारत गाहे खलाइक है, चुनांचे आप के मज़ार शरीफ के बारे में खतीब बगदादी इरशाद फरमाते हैं के हज़रते सय्यदना शैख़ माअरूफ़ करखी रदियल्लाहु अन्हु का मज़ार शरीफ हाजतें पूरी होने के लिए मुजर्रब यानि आज़माया हुआ हैं, और हज़रते सय्यदना सिर्री सक्ती रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के जब तुझे कोई हाजत दर पेश हो तो कसम दे कर ऐ रब्बे बा हक माअरूफ़ करखी मेरी हाजत रवाई कर, तो उसी वक़्त दुआ क़बूल हो जाएगी ।    (तारीखे बगदाद) 

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”              

रेफरेन्स हवाला               

(1) तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
(2) मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल,
(3)कशफ़ुल महजूब,
(4) तज़किरातुल औलिया,
(5)ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल, 

    

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