हज़रते सय्यदना शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हज़रते सय्यदना शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

बहरे मारूफ़ो सरी माअरूफ़ दे बे खुद सरी
जुनदे हक़ में गिन जुनैदे बा सफा के वास्ते

विलादत शरीफ

आप की विलादत शरीफ 155, हिजरी मुल्के इराक की राजधानी शहर बग़दाद शरीफ में हुई ।

इस्म नाम व कुन्नियत

आप का नाम मुबारक “सिरुद्दीन” और कुन्नियत “अबुल हसन” है, और मशहूर नाम “सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु” है, और “सिरि सक़्ति” के ही नाम से ज़ियादा मशहूर हैं ।

वालिद माजिद

आप के वालिद मुहतरम का नाम “शैख़ मुगललिस” था,।

इब्तिदाई शुरू के हालात

आप इब्तिदा शुरू में तिजारत करते दुकान चलाते थे, खुरदह फरोशी यानि परचून वगैरा की दुकान थी, लोगों ने आप से मालूम किया के “इब्तिदाए हाल व तरीकत” के बारे में बताएं? तो आप ने इरशाद फ़रमाया के एक दिन मेरी दुकान से हज़रते शैख़ हबीब राई रहमतुल्लाह अलैह का गुज़र हुआ में ने उन्हें रोटी के टुकड़े अता किए ताके फ़क़ीरों में तकसीम फरमा दें, उस वक़्त उन्होंने मुझे दुआ से नवाज़ा और इरशाद फ़रमाया के खुदा तुझे नेकी की तौफीक दे, यहाँ तक के इसी दिन से अपनी दुनिया को सवारने का ख़याल मेरे दिल से जाता रहा । (कशफ़ुल महजूब)

फ़ज़ाइलो कमालात इब्तिदाई शुरू की तअलीम

सूफिये बा कमाल, नफ़्स कुश्ता मुजाहिदाह, दिल ज़िंदह मुशाहिदाह, मालिके हज़रते मालाकूत, शाहिदे इज़्ज़तो जबरूत,नुक़्तए दाईरा ला यक्ता, शाने औलिया, आप ने इब्तिदाई तअलीम महल्ले के मकतब से हासिल की, रुजू इललल्लाह व तसव्वुफ़ के लिए मुख्तलिख मशाइख़ीन से इल्मी व रूहानी इस्तिफ़ादा किया जिन में जलीलुल कद्र तबाई “हज़रते शैख़ फ़ुजैल बिन अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह”, के शागिर्दी रशीद थे और आप तबे ताबईन से थे, और हज़रते ख्वाजा हबीब राई रहमतुल्लाह अलैह, से भी इक्तिसाबे फैज़ हासिल फ़रमाया, और खास तौर से हज़रते सय्यदना शैख़ मारूफ करख़ी रदियल्लाहु अन्हु से भी फैज़ पाया, आप अहले तसव्वुफ़ के इमाम और अस्नाफे इल्म में कमाल रखते थे, इल्मो सिबात के पहाड़ और मुरव्वतो शफ़क़त में यकताए ज़मान थे, और रुमूज़ व इशारात में यगानाए रोज़गार थे, “हज़रते सय्यदना शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु” “सिलसिलए आलिया क़दीरिया रज़विया के 10, वे दसवे इमाम व शैख़े तरीकत हैं” ।

सब से पहले जिस ने हक़ाइक़ व मआरिफ़ को बगदाद में नशर फैलाया वो आप ही की ज़ात है, और इराक़ के बहुत से मशाइख आप के सिलसिलए इरादत से मुनसलिक थे, आप सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु के मामू और शैख़े तरीकत थे, सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के में ने अपने शैख़े तरीक़त जैसा कामिल किसी को भी नहीं देखा और हज़रते शैख़ बिशर हाफी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया, में आप के सिवा किसी से सवाल न करता था क्यों के में आप के ज़ुहदो तक्वा से वाकिफ था और जानता था के जब आप के दस्ते मुबारक से कोई चीज़ बाहर जाती तो आप खुश होते हैं ।

रोज़ाना एक हज़ार निफ़्ल पढ़ना

हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु का मामूल था के रोज़ाना एक हज़ार रकआत निफ़्ल नमाज़ पढ़ते थे, चुनाचे सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के में ने आप से ज़ियादा आबिद ज़ाहिद इबादत गुज़ार किसी को नहीं देखा और आप के अलावा और किसी में ये बात न देखि आप की उमर शरीफ 98, साल की हुई मगर सिवाए मोत के वक़्त के कभी आप को लेटे हुए नहीं देखा ।

दीदारे इलाही का शोक

आप अक्सर फ़रमाया करते थे “ऐ खुदा अगर मुझे किसी चीज़ से अज़ाब पहुँचाना है तो तुझे इख्तियार है और उन के लिए में हाज़िर हूँ लेकिन वो अज़ाबे हिजाब की ज़िल्लत का न हो” क्यूंकि तुझ से हिजाब में न होने की सूरत में आने वाली बलाएं और तेरा अज़ाब तेरे ज़िक्र और मुशाहिदे की बदौलत मालूम न होगा लेकिन अगर तुझ से हिजाब में रहूँ तो तेरी अब्दी नेमतें भी मेरी हलाकत का ज़रिया होंगीं, हिजाब वो बला है के खुद दोज़ख में भी इससे ज़ियादा सख्त कोई अज़ाब नहीं है, अगर दोज़ख़ियों को दोज़ख में अल्लाह पाक का मुशाहिदाह हासिल होता तो उन्हें ऐसा सुरूर हासिल होता के बदन पर अज़ाब की तकलीफ और जिस्मानी आज़ार को यकसर भूल जाते और अज़ाबो बला का एहसास तक न होता जन्नत की नेमतों में दीदारे इलाही से बढ़कर कोई नेमत कामिल तर नहीं, अगर अहले बहिश्त को वो तमाम नेमतें बल्के उन से भी सैंकड़ों दर्जे मज़ीद नेमतें हासिल हों, लेकिन दीदारे इलाही हासिल न हो तो वो दिलो जान से हलाको बर्बाद हो कर रह जाएं ।

क़ुरआनी आयत की तशरीह

हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु इरशादे रब्बानी “اصبروا وصابرو وابطوا” की तशरीह इस तरह करते हैं सलामती की तवक्को रखते हुए दुनिया की शख्तियों पर सब्र करो और जंग के वक़्त साबित कदमी का मुज़ाहिरा करो और नफ़्से लव वामा की खाहिशात को रोक दो और इन बातों से बचों जिन का अंजाम निदामत है, जब ये शराइत बजा लाओगे तो उम्मीद है के इज़्ज़तो करामत की बिसात पर तुम कामयाबी हासिल कर सकोगे ।

कोलो फेल में मुताबिक़त

हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु अपने मशाइखे किराम के मज़हर थे और कौल व फेल में उन के नक्शे कदम पर थे, चुनांचे एक बार आप की बारगाह में एक अकीदत केश हाज़िर हुए और मसला सब्र की तशरीहात आप से चाहि? आप सब्र के मौज़ू पे तकरीर फरमाने लगे तकरीर के बीच एक बिच्छू ने आप के पाऊं में डंक मारने लगा, तो लोगों कहा, हुज़ूर! इस को मार कर हटा दीजिये इस पर आप ने इरशाद फ़रमाया, मुझे शर्म आती है के में जिस मौज़ू पर तकरीर कर रहा हूँ इस के खिलाफ काम करूँ यानि बिच्छू के डंक मरने पर बे सबरी का इज़हार करूँ ।

आप के पीरो मुर्शिद की दुआ की बरकत

हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु इरशाद फरमाते हैं के एक रोज़ आप के पीरो मुर्शिद हज़रते शैख़ माअरूफ़ करख़ी रदियल्लाहु अन्हु एक यतीम के बच्चे को साथ ले कर आप की खिदमत में हाज़िर हुए और आप से इरशाद फ़रमाया, इस यतीम बच्चे को कपड़ा पहना दो, में ने इस बच्चे को कपड़ा पहना दिया इस के बाद आप ने मेरे हक में ये दुआ फ़रमाई के खुदाए तआला दुनिया को तेरे लिए दुश्मन कर दे और तुझे इस शुग्ल से राहत दे तो आप की इस दुआ की बरकत ज़ाहिर हुई के यकबारगी में दुनिया से फारिग किनराह कश हो गया ।

आप की मुन्कसिरुल मिजाज़ी (खाकसार, आजिज़ी)

हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु बड़े ही मुन्कसिरुल मिजाज़ थे एक मर्तबा का वाक़िआ है के आप ने इरशाद फ़रमाया, तीस साल हो गए के में एक ही शुक्र पर अस्तगफार कर रहा हूँ, लोगों ने पूछा के किस तरह तो आप ने इरशाद फ़रमाया, एक रोज़ बगदाद के बाज़ार में आग लग गई जिस की वजह से बाज़ार की दुकाने जल गईं मगर मेरी दूकान नहीं जली जलने से महफूज़ रही और उस वक़्त में अपने घर मौजूद था, एक शख्स ने आ कर मुझ को ये खबर दी के आप की दूकान नहीं जली? में ने फ़ौरन अल्हम्दुलिल्लाह कहा तो सिर्फ इस ख़याल से के में ने अपने आप को दूसरे मुसलमान भाइयों से बेहतर ख्याल किया और दुनिया की सलामती पर शुक्र किया अपने इसी कसूर पर मुसलसल अस्तगफार कर रहा हूँ ।

तिजारत कारोबार की सच्चाई

हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु इब्तिदा शुरू में तिजारत करते थे और पांच फीसद से ज़ियादा मुनाफा नहीं लेते थे, एक मर्तबा आप ने बादाम तिजारत के लिए ख़रीदे और चंद ही दिनों के बाद बादाम के भाव रेट ज़ियादा बढ़ गए एक दलाल कस्टूमर आप की खिदमत में आया और अर्ज़ किया के आप अपने बादाम को मुझे बेच दीजिए तो आप ने फ़रमाया तुम तरेसठ 63, दीनार में इस को खरीद लो? इस दलाल ने कहा इस वक़्त इन बादमो की कीमत नव्वे 90, दीनार है इस पर आप ने फ़रमाया, में ने तो यही क़स्द इरादा कर लिया है के पांच फीसद से ज़ियादा मुनाफा नहीं लूँगा और में अपनी इस राए को तब्दील करना भी पसंद नहीं करता तो दलाल ने कहा में आप के माल को मौजूदा वक़्त के भाव से कम पर बेचना पसंद नहीं करता, चुनांचे वो माल इसी तरह पढ़ा रहा और न दलाल कम बेचने पर राज़ी हुआ और न आप ने ज़ियादा लेने पर राज़ी हुए ।

आप की वाइज़ की मजलिस और तकरीर

हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु एक मर्तबा बगदाद शरीफ में तकरीर फरमा रहे थे के बगदाद का खलीफा मुसाहिब अहमद बिन यज़ीद बड़े ही कर्रो फर से हाज़िर हुआ और आप की तकरीर सुनने के लिए बैठ गया उस वक़्त आप ये इरशाद फरमा रहे थे के तमाम मख़लूक़ात में इंसान से ज़ियादा ज़ईफ़ कोई मखलूक नहीं मगर बावजूद इस कद्र ज़ोफ़ के गुनाह करने में कितना जरी और बहादुर बनता है अफ़सोस सद अफ़सोस आप के इन फ़िक्रों जुमलों का अहमद बिन यज़ीद के दिल पर ख़ास असर हुआ और तकरीर खत्म होने पर अपने मकान पर पंहुचा और रात को खाना भी नहीं खाया और इसी भूक की हालत में शब् रात भर आहो बुका गिरियाओ ज़ारी में गुज़ारी दूसरे दिन फ़क़ीरों का लिबास पहन कर हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में हाज़िर हो कर कहा, कल आप के वाइज़ ने मेरे दिल में घर कर लिया है इस लिए अब आप “खुदा के तक़र्रूब व क़ुर्ब” का रास्ता मुझे बताएं? आप ने इरशाद फ़रमाया:

आम रास्ता ये है के नमाज़े पंज गाना जमाअत के साथ अदा करो, माल हो तो उस की ज़कात दो, और तमाम एहकामे शरीअत की पूरी पाबंदी करो, ख़ास रास्ता ये है के दुनिया से बे नियाज़ हो कर अल्लाह पाक की इबादत करो, और अल्लाह पाक से भी सिवाए इस की रज़ा के किसी दूसरे को तलब न करो, आप की नसीहत यहीं तक पहुंचीं थी के अहमद बिन यज़ीद फ़ौरन खड़े हो गए और सीधे जंलग की तरफ चल दिए कुछ दिनों के बाद अहमद बिन यज़ीद की माँ रोती हुई आप की बारगाह में हाज़िर हुईं और कहा: हुज़ूर सिर्फ मेरा एक ही बेटा था जो आप की नसीहत को सुन कर न मालूम कहाँ चला गया? आप ने इरशाद फ़रमाया, ऐ ज़ईफ़ गमगीन न हो अनक़रीब तेरा लड़का हाज़िर होगा तो तेरे पास खबर करा दूंगा, चुनांचे चंद दिनों के बाद वो फ़क़ीरों की सूरत बनाए आप की खिदमत में हाज़िर हुए और फिर चंद ही लम्हों के बाद जंगल की जानिब चल दिए यहाँ तक फिर दूसरी मर्तबा आप की बारगाह में हाज़िर हुए और आप ही की गोद में इन का विसाल हो गया ।

ख्वाब में दीदारे इलाही करना

हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु इरशाद फरमाते हैं के एक मर्तबा में ख्वाब में दीदारे इलाही की अज़ीम दौलत से मुशर्रफ हुआ और इस का ये इरशाद सुना के “ऐ सिरि” जब में ने इंसान को पैदा किया तो एक ज़बान सब ने मिल कर मेरी मुहब्बत का दावा किया लेकिन जब में ने दुनिया को पैदा कर के इंसान को आलमे वजूद में ज़ाहिर किया तो दस हज़ार में से नो हज़ार ने दुनिया के ऐशो आराम को पसंद कर लिया और मुझ से फरामोशी इख़्तियार करली और जो एक हज़ार बाकी रहे जब जन्नत और इस की रूह अफ़ज़ा बहारों को पैदा कर के इस के सामने पेश किया तो इस बाकी एक हज़ार में से नो सो जन्नत के तलबगार हो गए और सिर्फ एक ही सो बाकि रह गए फिर में ने एक सो की आज़माइश के लिए बलाओं और मुसीबतों में गिरफ्तार किया तो इन में से नव्वे आदमी इन मुसीबतों के सबब मुझे भूल गए और इससे सिर्फ दस बाकि रहे दासों से मेरा खिताब है: ऐ लोगों ! न तुम ने दुनिया के ऐश व आराम को चाहा और न फ़क़त जन्नत ही के लालच में मेरे ख़ास बंदे बने, न बलाओं और मुसीबतों में मुब्तला हो कर मुझ से भागे, ऐ सिरि ! इस पर वो बंदे बोले के परवरदिगारे आलम ! हम अपने सब से पहले अहिद “बला शाहिदना” यानि बेशक तू है हम गवाह हुए, इस पर काइम हैं तो फिर ऐ सिरि हम ने अपने इन ख़ास बंदों को जवाब दिया, जो शख्स अल्लाह का हो जाता है तो अल्लाह पाक भी उस का हो जाता है ।

लज़्ज़त को छोड़ने का वाक़िआ

एक बार आप ने रोज़ा रखा और ताक़ में ठंडा पानी होने की वजह से प्याला रख दिया था, आप के ख्वाब में एक हूर आती आप उससे मालूम करते के तू किस शख्स के लिए है? वो एक बन्दए खुदा का नाम लेती और चली जाती, एक हूर आप के सामने आई उससे पूछा के तू किस के लिए है? उस ने कहा, में उस शख्स के लिए हूँ जो रोज़े की हालत में ठंडा पानी होने के लिए न रखे, आप ने इरशाद फ़रमाया, अगर तू सच कहती है इस प्याले को गिरा दे, उस ने इस कूज़े यानि प्याले को गिरा दिया, जिस की आवाज़ से आप की आँख खुल गई और देखा तो वाकई वो कूज़ा (प्याला) टूटा हुआ सामने पड़ा है।

मुहब्बत की तशरीह क्या चीज़ है मुहब्बत

सय्यदुत ताइफ़ा हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के एक रोज़ हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु ने मुझ से पूछा मुहब्बत क्या है? में ने जवाब दिया के एक जमाअत का कहना है के मवाफ़िक़त है दूसरी जमाअत ने कहा, इशारात है और तीसरी जमाअत ने और भी कुछ कहा है ये सुन कर आप ने अपने दस्ते मुबारक की खाल पकड़ कर कर खींची तो ज़रा भी ऊपर की तरफ न उठी और इरशाद फ़रमाया कसम है, रब्बे काइनात के इज़्ज़तो जलाल की के अगर में ये कहूँ के ये खाल इस की मुहब्बत में सूख गई है तो में सच कहता हूंगा और ये कहकर आप बे होश हो गए आप का चेहरा चांदी की तरह दमकने लगा और फिर फ़रमाया: बंदा मुहब्बत में इस दर्जे को पहुंच जाता है के अगर कोई शमशीर ले कर भी इस को मारे तो इस को खबर न हो ।

शराबी को नमाज़ी बना दिया

आप ने एक मर्तबा एक शराबी को देखा जो नशे की हालत में मदहोश ज़मीन पर पड़ा हुआ था और इसी नशे की हालत में अल्लाह अल्लाह कह रहा था आप ने इस का मुँह पानी से साफ़ किया और फ़रमाया इस बे खबर को क्या खबर के नापाक मुँह से किस ज़ाते पाक का नाम ले रहा है? आप के जाने के बाद जब शराबी होश में आया तो लोगों ने उस को बताया के तुम्हारी बेहोशी की हालत में तुम्हारे पास हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु तशरीफ़ लाए थे और तुम्हारा मुँह धोकर चले गए हैं? शराबी ये बात सुनकर बहुत ही शर्मिंदा हुआ और शर्म से रोने लगा और नफ़्स को मलामत करने लगा और बोला: ऐ बे शर्म ! अब तो हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु भी तुम को इस हालत में देख कर चले गए हैं, खुदा से डर और आइन्दाह के लिए तौबा कर, रात में हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु ने एक निदाए गैबी (पोशीदा आवाज़) सुनी के ऐ सिरि सकती ! तुम ने शराबी का मुँह मेरी वजह से धोया है, में ने तुम्हारी खातिर इस का दिल धो दिया है जब आप नमाज़े तहज्जुद के ले मस्जिद में तशरीफ़ ले गए तो इस शराबी को तहज्जुद की नमाज़ पढ़ते हुए पाया आप ने इससे पूछा तुम्हारे अंदर ये इन्किलाब बदलाव कैसे आ गया तो उस ने जवाब दिया के आप मुझ से क्यों मालूम कर रहे हैं जब के खुद आप को अल्लाह पाक ने इस बात से बा खबर कर दिया है ।

परी मोम की तरह पिघल गई

सय्यदुत ताइफ़ा हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं के में हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में हाज़िर हुआ तो आप के हाल को मुतग़य्यर तब्दील शुदाह पाया और दरयाफ्त किया के हुज़ूर क्या हुआ है? आप ने इरशाद फ़रमाया परियों में से एक जवान परी मेरे पास आई और मुझ से सवाल किया के हया किस को कहते हैं में ने जवाब दिया, तो वो सुनते ही मोम की तरह पिघल कर पानी हो गई यहाँ तक के में ने इस पानी को भी देखा जो परी के जिस्म का था ।

मलफ़ूज़ात शरीफ
  1. आरिफ अपनी सिफ़ात व हसनात में आफताब की तरह है जो सब पर रौशनी डालता है और वो ज़मीन की मानिन्द है जो तमाम मख़लूक़ात का बोझ उठाती है, पानी की तरह है जिस से क़ुलूब को ज़िन्दगी हासिल होती है और वो आग की तरह है के तमाम जहाँ उस से रोशन हो जाता है,
  2. बुढ़ापे से पहले कुछ काम कर लो क्यूंकि ज़ईफ़ हो कर कुछ न कर सकोगे जैसे के में नहीं कर सकता और आप जिस उमर में ये फरमा रहे थे उस वक़्त भी आप की ये कैफियत थी के कोई जवान भी आप की तरह इबादत नहीं कर सकता था,
  3. अमीर हमसायों पड़ोसियों, बाज़ारी करियों और दौलतनद आलिमो से दूर रहो,
  4. जो अपने नफ़्स की इस्लाह से आजिज़ है वो दूसरों को क्या सिखाएगा,
  5. जिस शख्स को नेमत की कद्र नहीं उस की नेमत वहां से ज़वाल पज़ीर होना शुरू होती है जहाँ से इस को गुमान भी नहीं होता,
  6. जो अल्लाह पाक का फरमा बरदार हो जाता है सब उस के फरमा बरदार हो जाते हैं,
  7. गुनाह का तर्क छोड़ना तीन किस्म पर है: पहला दोज़ख के खौफ से, दूसरा बहिश्त जन्नत की रगबत से, और तीसरा अल्लाह पाक की शर्म से,
  8. बंदह उस वक़्त तक कामिल नहीं हो सकता जब तक दीन को अपनी ख्वाइश पर तरजीह न दे,
  9. सब से ज़ियादा आकिल व फहीम वो लोग हैं जो कुरआन शरीफ के असरार को समझते हैं और इन असरार में गोरो फ़िक्र करते हैं,
  10. आरिफ वो है जिस का खाना बीमारों की तरह और उस का सोना सांप के काटे हुओं की तरह हो और इस का ऐश पानी में गर्क तिश्निगान की तरह हो,
  11. जो शख्स इस बात की आरज़ू करता है के उस का दीन सलामत व महफूज़ रहे और उस के जिस्म व रूह दोनों को राहत नसीब हो और फ़िक्र व गम में कमी हो जाए तो उस को चाहिए के दुनिया से अलैदगी इख़्तियार करे,
  12. सब से ज़ियादा बहादुर ये है के अपने नफ़्स पर काबू हासिल करे,
  13. इंसान की ज़बान दिल की तर्जुमान और चेहरा दिल का आइना है,
  14. दसरे भाई के गम में बराबर शरीक रहो और उन का गम देख कर खुश मत हो,
  15. इंसान की सब से बड़ी ताकत ये है के वो अपने नफ़्स पर ग़ालिब आजाए जो अपने नफ़्स से बुग्ज़ रखे वो मुत्तक़ी है,
  16. तौबा ये है के इंसान अपने गुनाहो को फरामोश कर दे,
  17. जो अल्लाह पाक की मुहब्बत छोड़ कर ख़ल्क़ की मुहब्बत मशगूल बीजी हुआ वही बर्बाद हुआ,
आप के खुलफाए किराम
  1. सय्यदुत ताइफ़ा हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु
  2. हज़रत शाह अबू मुहम्मद
  3. हज़रत शाह अबुल हसन नूरी
  4. हज़रत शाह उर्फ़ शैख़ कबीर
  5. हज़रत हरबतून
  6. हज़रत शाह फ़तेह मूसली
  7. हज़रत शाह अब्दुल्लाह अहरार
  8. हज़रत शाह हमज़ाह
  9. हज़रत शाह अबुल अब्बास मज़रूफ़
  10. हज़रत शाह अबरार रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।
तरीखे विसाल

आप का विसाल 13, तेराह रमज़ानुल मुबारक 253, हिजरी बुध के दिन, सुबह के वक़्त 98, साल की उमर में बगदाद शरीफ में हुआ, और यही मशहूर है मगर बाज़ ने 2,। 3, और 6, रमज़ानुल मुबारक के महीने में हुआ, “वल्लाह आलम”

जो आप के जनाज़े में थे उन की मगफिरत हो गई

जब हज़रत शैख़ सिरि सक़्ति रदियल्लाहु अन्हु का विसाल हु चुका था तो एक शख्स ने आप को ख्वाब में देखा, पूछा अल्लाह पाक ने आप के साथ क्या मुआमला किया? फ़रमाया: मेरी मगफिरत फ़रमाई और जो लोग मेरे जनाज़े में शरीक हुए और जिन्हो ने मेरी नमाज़े जनाज़ पढ़ी सब को बख्श दिया उस ने कहा में भी आप के जनाज़े में शरीक था और नमाज़ पढ़ी थी, आप ने लिपटा हुआ एक कागज़ निकाल कर देखा उस में मेरा नाम न पाया, में ने कहा जी हां में यकीनन हाज़िर हुआ था, फिर देखा तो एक किनारे पर मेरा नाम लिखा हुआ था

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुकद्द्स मुल्के इराक की राजधानी बगदाद शरीफ में मक़ामे “शोनीज़” में मरजए खलाइक है, और आप ही के पहलू में “सय्यदुत ताइफ़ हज़रते जुनैद बगदादी रदियल्लाहु अन्हु” का भी मज़ार शरीफ है ।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला
  • तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया,
  • मसालिकुस सालिकीन जिल अव्वल, कशफ़ुल महजूब,
  • तज़किरातुल औलिया,
  • ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द अव्वल,
  • मिरातुल असरार,

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