हज़रत ख्वाजा अहमद नहर वाल बदायूनी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा अहमद नहर वाल बदायूनी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

नाम मुबारक

आप का इस्मे गिरामी “शैख़ अहमद” है, और अहमदुद्दीन! लक़ब है, और हज़रत फकीहे माधू इमाम अजमेर शरीफ का रखा हुआ नाम “ज़की” है, क़स्बा नहर वाल इलाका गुजरात में विलादत हुई, वहीं नशो नुमा यानि परवरिश हुई बाद में अजमेर मुक़द्दस! चले आए, और आप की मुलाकात फकीहे माधू इमाम मस्जिद अजमेर! से हुई, इस के बाद आप अजमेर मुक़द्दस से दिल्ली चले आए।

बैअतो खिलाफत

आप क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह में रहते थे, आप अपने वक़्त के अज़ीम साहिबे करामत बुज़रुग थे, सुल्तानुल आरफीन हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही रोशन ज़मीर बड़े सरकार बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह के हमराह दिल्ली से आप बदायूं तशरीफ़ लाए और मुस्तकिल तौर पर सुकूनत इख़्तियार फ़रमाई, आप ने सब से पहले हज़रत फकीहे माधू इमाम मस्जिद अजमेर! से फैज़ हासिल किया, इस के बाद सिलसिलए सुहरवर्दिया में हज़रत क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह! से मुरीद हुए और खलीफत हासिल हुई,
निहायत ज़की हाफिज़े कुरआन और वाक़िफ़े असरारे हकीकत बुज़रुग थे, आप कपड़ा बुनने का काम करते थे, जामा मसजिस शम्शी में पंज वक्ता नमाज़ बजमात पढ़ते थे साहिबे करामात थे, बदायूं शरीफ के सात 7/ अहमदों में दाखिल हैं, सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से मन्क़ूल: है के जो मजलिस महफ़िल क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की वफ़ात की थी उस में हज़रत शैख़ ख्वाजा अहमद नहर वाल बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! मौजूद थे,

ये काम बंद कर दो

एक मर्तबा हज़रत क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह! आप से मुलाकात के लिए तशरीफ़ लाए, उस वक़्त आप कपड़े बुन रहे थे, अपने पीरो मुर्शिद से मुलाकात की चलते वक़्त हज़रत क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया: अहमद! असल काम छोड़ कर कब तक इस को करते रहोगे तुम को कोई अच्छा काम करना चाहिए ये काम तुम्हारा नहीं इसे छोड़ो और अपना काम करो जो तुम्हारे काम आए, हज़रत शैख़ ख्वाजा अहमद नहर वाल बदायूनी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! उठे और एक मोटी सी लकड़ी को हाथ में लिया ताके मेख को ठोंक सकें क्यों के उस कील से आप की खड्डी की रस्सियां ढीली पड़ गईं थीं, जैसे ही वो लकड़ी आप ने कील पर मारी तो आप के हाथ पर लगी और आप का हाथ टूट गया, और इस को छोड़ दिया अब दिन रात अल्लाह पाक की इबादतों रियाज़त में मशगूल हो गए।

सूफ़ियाए किराम में आला मक़ाम

हज़रत शैखुल इस्लाम बहादुद्दीन ज़करिया मुल्तानी सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह किसी को भी जल्द पसंद नहीं करते थे, हज़रत शैख़ ख्वाजा अहमद नहर वाल बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! के बारे में फरमाते के सूफ़ियाए किराम में आला मक़ाम अज़ीम शान के मालिक हैं, हज़रत शैख़ ख्वाजा अहमद नहर वाल बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! की आदत थी, दोस्त अहबाब के साथ मस्जिद जाते, एक बार अली शोरीदा दुर्वेश ने इस तरह जाने से आप को मना किया, मगर हज़रत शैख़ ख्वाजा अहमद नहर वाल बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप की बात पर धियान नहीं दिया, एक दिन इत्तिफाक से जामा मस्जिद जाते हुए आप ने देखा एक आदमी दूसरे को मार पीट रहा है आप ने फ़ौरन दरमियान में आ कर अपने अहबाब की मदद से मज़लूम को बचा लिया, उसी दौरान में अली शोरीदाह भी वहां आ गए तो आप ने फ़रमाया इसी काम के लिए तो में अहबाब को साथ लाता हूँ,
सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से किसी ने दरयाफ्त किया के शैख़ ख्वाजा अहमद नहर वाल बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! किस के मुरीद थे तो आप ने फ़रमाया मुझे मालूम नहीं फिर फ़रमाया ऐसा सुना है के हज़रत फकीहे माधू इमाम मस्जिद अजमेर! शरीफ से फैज़ हासिल किया था, और आप का गला बहुत अच्छा था, आप बहुत अच्छा गाते पढ़ते थे, आप का गला सुनकर लोग वज्द करने लगते थे, हज़रत फकीहे माधू इमाम मस्जिद अजमेर! शरीफ ने आप से कहा तुम अपनी आवाज़ इस तरह ज़ाए ना करो, कुरआन शरीफ याद कर लो चुनांचे आप ने कुरआन शरीफ याद करना शुरू किया तो बहुत जल्द ही हाफिज़े कुरआन बन गए और अच्छे ज़हन के मालिक थे।

चोर ने तौबा करली

मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं के एक मर्तबा आप के मकान में चोर घुसा, जब कुछ ना मिला, वापस जाने लगा तो आप ने चोर से कहा ज़रा रुकजा तुझे खुदा की कसम है, आप जल्दी से घर में से सात गज़ कपड़ा फाड़ कर उस की तरफ फेंक दिया, और कहा ये लेता जा, चोर उस वक़्त कपड़ा लेकर चला गया, मगर सुबह को अपने वालिदैन के साथ आप के पास आया तौबा की कपड़ा वापस कर दिया।

वफ़ात

आप का इन्तिकाल 661/ हिजरी को हुआ।

मज़ार मुबारक

आप का माज़र मुबारक मुहल्लाह मौलवी टोला मुत्तसिल चाह मछली के करीब है, ज़िला बदायूं शरीफ में मरजए खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन

Share Kare’n JazaKallh Khaira

Share this post