हुज्जतुल इस्लाम हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

हुज्जतुल इस्लाम हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 2)

हामिदो महमूद और हम्माद अहमद कर मुझे
सय्यदी हामिद रज़ाए मुस्तफा के वास्ते

“शुधी तहरीक” और आप की नोमाया खिदमात

आप ने मुसलमानो की हिफज़तों तब्लीग की वो खिदमात अंजाम दी हैं, जिन्हें कभी फरामोश नहीं किया जा सकता, हिंदुस्तान में “शुधी तहरीक” ने बड़ा फितना बरपा किया था और मुसलमानो को उस के मज़हब से फेरने की बड़ी बड़ी तरकीब इस्कीमे बनाई थीं जिस की तरफ इशारा करते हुए आप इरशाद फरमाते हैं:

अब तक तो “शुधी तहरीक” ही की कोशिशें राजपूताना ही में थीं लेकिन अब उन्होंने अपना मैदाने अमल वसी कर दिया है और तमाम हिंदुस्तान में जहाँ मौका मिलता है हाथ मारते हैं, पूरी कौम की कौम उनकी दस्त बुर्द (लूट खसूट) से बताह हो रही है, मुसलमानो की मज़हबी अंजुमने हर जगह नहीं हैं जो हैं भी उन से राब्ता नहीं है, जिस सर ज़मीन को खाली देखा, वहाँ आरिया दौड़ पड़े, जब जब तक उल्माए इस्लाम को किसी हिस्साये मुल्क से बुलाए तब तक कितने गरीब शिकार हो चुके होते हैं, राज पूताना में हमे तजुर्बा हो चुका है आरियों के ज़र, ज़ोर, तबअ, और दबाओ वगेरा की तमाम क़ुव्वते इस्लामी फुज़्ला की दावते हक के मुक़ाबिल बेकार हो जाती है, के जाहिल नादरों गरीबों के सामने हज़ार हा रूपया पेश किया जाता था और उन्हें मुर्तद हो जाने पर वलवला अंगेज़ मुज़्दे खुशखबरी सुनाए जाते थे, हमारे पास इस्लामी ज़ाहिद और बुज़ुरगों के ज़िक्र के सिवा कोई नुस्खा ऐसा बे ख़ता असर करता था के दिहाती नो जवान अपनी सर मस्ती से होश में आ कर दिल लुभाने वाली सूरत और मालो मनाल के लालच दोनों को नफरत के साथ ठोकर मार कर इताअते इलाही के लिए कमर बस्ता हो जाता था, दूसरे फ़रीक़ों के साथ इत्तिहाद के मुज़िर नुक़सानात और उस के नताइज पर तब्सिरा करते हुए इरशाद फरमाते हैं:

हमारे सुन्नी हज़रात के दिल में जब कभी इत्तिफाक की उमंगगे पैदा हुईं तो उन्हें अपनों से पहले मुखालिफ याद आए जो रात दिन इस्लाम की बीख कुनि के लिए बेचैन हैं और सुन्नियों की जमात पर तरह तरह के हमले कर के अपनी तादाद बढ़ाने के लिए मुज़्तर और मजबूर हैं हमारे बिरादरान की इस रविश ने इत्तिहादो इत्तिफाक की तहरीक को भी कामयाब ना होने दिया क्यों के अगर वो फिरके अपने दिलों मेंगुंजाइश रखते के सुन्नियों से मिल सकें तो अलैहदाह डेढ़ ईंट की तामीर कर के नया फिरका क्यों ना बनाते और मुसलमानो के मुखालिफ एक जमाअत क्यों बनाते वो तो हकीकत मिल ही नहीं सकते और अगर मिल भी जाएं तो मिलना किसी मतलब से होता है जिसे हासिल करने के लिए हर दम तैश ज़नी जारी रहती है और इस का अंजाम जिदालो किताल फसाद ही निकलता है, ये तो ताज़ा तजुर्बा है के खिलाफत कमेटी के साथ एक जमाअत जमीअत उलमा! के नाम से शामिल हुई जिस में तकरीबन सब के सब या जियादतर वहाबी देओबंदी और गैर मुकल्लिद हैं, शायद ही कोई दूसरा शख्स हो तो हो, उस जमाअत ने खिलाफत की ताईद को तो उन्वान बनाया, अवाम के सामने नुमाइश के लिए तो ये मकसद पेश किया मगर काम अहले सुन्नत के रद्द, और उन की बीख कुनी (जड़ काटना बर्बाद करना) का अंजाम दिया है, अपने मज़हब की तरवीज इसी परदे में खूब की मेरे पास जनाब मौलाना अहमद मुख़्तार साहब सदर जमीअत उल्माए मुंबई का खत आया है जो उन्होंने मदारिस का दौरा किया फिर इस को तहरीर किया है इस में लिखते हैं के वहाबी देओबंदी इस सूबे में इस कोमी रूपया से जो तुर्कों के दर्द नाक हालात बयान कर के वुसूल किया गया था उससे अब तक “दो लाख तक़वीयतुल ईमान” छप कर मुफ्त तकसीम कर चुके हैं, अब बताइए के इन जमाअतों का मिलाना “ज़रदादान दर्दे सर ख़रीदन” हुआ या नहीं, अपने ही रूपये से अपने ही मज़हब का नुकसान हुआ।

तालीमे निस्वां “औरतों को तालीम देना

तालीमे निस्वां “औरतों को तालीम पर आप ने अपने “ख़ुत्बाए सदारत” में काफी ज़ोर दिया है बल्कि लड़कियों की तालीम और इस की फलाहो तरक्की के लिए भी आप बेहद कोशिश करते थे, और संफ नाज़ुक की बका व इस्तेहकाम के तहत आप के ठोस तअस्सुरात वा तजावीज़ जो कांफिरेंसों में पास होते जिन को पढ़ कर अंदाज़ा होता है के कुदरत ने आप के दिल में कौमे मुस्लिम की बका व तरक्की का कितना दर्द वदीअत (सौंपना, रखना) फ़रमाया था, ज़ैल में मुरादाबाद की कॉन्फरेंस! की तजवीज़ इस की रोशन दलील है, फरमाते हैं:

लड़कियों की तालीम का इंतिज़ाम भी निहायत ज़रूरी है और इस में दीनियात के अलावा सूज़न कारी यानि सिलाई का काम और मामूली ख़ानदारी की तालीम भी ज़रूरी है परदे का खास एहतिमाम करना चाहिए, अल मुख़्तसर ये के ख़ुत्बाए सदारत मुरादाबाद आप की ज़हानत और क़ाइदाना सलाहीयत की भरपूर रोशन दलील है, हर किसी के लिए ज़रूरी है जिस में समंदर को कूज़े में भर दिया है।

ज़ोके शायरी

आप अरबी, फ़ारसी, उर्दू, नज़्मों नस्र, मुनफ़रिद उस्लूब बयान रखते थे, हम्दो नअत, व दीगर अस्नाफ शायरी के बेश्तर अशआर आप के दीवान में महफूज़ हैं, “बयाज़े पाक” के नाम से मशहूर है।

फन्ने तारीख गोई

वालिद माजिद आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की तरह हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को भी तारीख गोई के फन में कमाल हासिल था,

आप की तस्नीफ़ात

हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी साहिबे तसनीफ़ बुज़रुग थे

  1. तर्जुमा अद्दौलतुल मक्किया
  2. हाशिया मुल्ला जलाल
  3. फतावा हामिदया
  4. मसला अज़ान का हक नुमा फैसला
  5. नातिया दीवान “बयाज़े पाक”
  6. तबीरे ख्वाब
  7. तर्जुमा हुस्सामुल हरमैन

आप की कशफो करामात

आप के कशफो करामात में सब से बड़ी करामत ये है के आप मज़हब अहले सुन्नत पर बड़ी मज़बूती के साथ क़ाइम रहे और हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत आप के हर अमल से ज़ाहिर थी हम यह आप की चंद करामात का ज़िक्र करते हैं।

बा करामात मुद्दरिस

हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी एक तजुर्बा कार मुद्दरिस और तदरीसी उमूर में महारते ताम्मा रखते थे, चुनांचे एक बार मदरसा “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ के चंद अहम मुद्दरिसीन मदरसा छोड़ कर चले गए, हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने उलूमो फुनूँ की तमाम किताबें खुद पढ़ानी शुरू करदीं और इस तरह पढाई के इन मुदर्रिसीन का वो ख्याल गलत साबित हुआ जो ये कहते थे के हमारे बगैर तलबा मदरसा छोड़ देंगें, बल्कि आप की तदरीसी महारत और इल्मी काबीलियत का शोहरा चर्चा सुन कर बहुत दूसरे काबिल तलबा मदरसा “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ में और ज़ियादा दाखिले शुरू हो गए।

कब्र असली जगह पर नहीं है

जनाब हाजी मुहम्मद इस्माईल बिन हाजी अब्दुल गफूर मदनपुरा बनारस ने बयान किया: एक मर्तबा हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी शहर बनारस मदनपुरा में तशरीफ़ लाए, नमाज़ पढ़ने के लिए मस्जिद बरतला में तशरीफ़ ले गए, नमाज़ पढ़ने के बाद मस्जिद मज़कूरा में मज़ार शरीफ पर फातिहा पढ़ने लगे, चंद ही लम्हों के बाद अचानक आप ने कदम को पीछे हटा लिया और इरशाद फ़रमाया ये कबर अपनी असली जगह पर नहीं है? लोगों ने जब इस बात को सुना तो कहा: हुज़ूर! सफ में दुश्वारी हो रही थी, जिस की वजह से ताबूत को ज़रा खिसका दिया है, आप ने फ़रमाया ऐसा ठीक नहीं है, फ़ौरन इस ताबूत को उस की असली जगह पर रखा जाए।

जिन्न व आसेब भगाने में मसीहाई

एक बार आप शहर बनारस मदनपुरा में ताहरीफ़ लाए, लोगों को जब इल्म हुआ के हज़रत आसेब ज़दाह को फिल्फोर दुरुस्त फ़रमा देते हैं तो लोगों की भीड़ जमा हो गई और मुतअददिद अपनी हाजत बयान की, हज़रत ने इरशाद फ़रमाया: मरीज़ के कपड़े के सामने लाओ, फ़ौरन कपड़ों का अम्बार लग गया, आप ने उन तमाम कपड़ों को गौर से देखा और उस में से चंद कपड़ों को अलग कर के इरशाद फ़रमाया: यही लोग असली मरीज़ हैं, बाकी सब यूँही हैं, उनको आसेब का कोई मर्ज़ नहीं है, इन कपड़ों पर आप ने कुछ पढ़ा, चंद ही दिनों में वो तमाम मरीज़ ठीक हो गए और फिर कभी आसेब ने परेशांन नहीं किया, उन्हीं में से एक शख्स पर इतना खतरनाक किसम का जिन्न था जो रात में छतों की मुंडेर पर खूब दौड़ता था, घर वालों ने इस की इस हरकत से काफी परेशान थे, और हर वक़्त खतरा लाहिक रहता था, के कहीज छत से नीचे गिरकर हलाक ना हो जाए, हज़रत की दुआ से वो खबीस भी ताइब हुआ और इस मज़कूरा शख्स को को छोड़ दिया जिससे वो सेहतयाब हो गए।

देओबंदी गुस्ताख़ पर गैबी अज़ाब

हज़रत अल्लामा शैख़ अब्दुल मअबूद जिलानी रहमतुल्लाह अलैह रिवायत करते हैं के में जब बरैली शरीफ में गया तो आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की मशहूर नअत “वो कमाल हुस्ने हुज़ूर है के गुमाने नक्से जहाँ नहीं” का गियारवां शेर लिख रहे थे, चूंके में गियारवें वाले हज़रत सय्यदना गौसे आज़म शैख़ अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु की औलाद से हूँ इस लिए उसको मेने अपने लिए नेक फाल समझा, बहरे हाल इन चंद दिनों में हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से भी बहुत कुर्बत रही मुझे यकीन करना पड़ा के हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी साहिबे करामत बुज़रुग हैं, उनकी करामत का अंदाज़ा मुझे इस वाकिए से हुआ के जब में बरैली शरीफ से दिल्ली आया तो दिल्ली में जिस मकान में मेरा क़याम था इसी से मुत्तसिल देओबन्दियों का जलसा हो रहा था, दौरान तकरीर एक मौलवी ने तकरीर करते हुए कहा: ये मौलाना हामिद रज़ा नहीं हैं बल्के जामिद हैं मअज़ल्लाह इस मौलवी देओबंदी नजदी ने हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी का नामे नामी बे अदबी व गुस्ताखी से लिया और हामिद के बजाए जामिद कहा: थोड़ी ही देर बाद लोगों ने देखा के इस बे अदब गुस्ताख़ मुकर्रिर की ज़बान जामिद हो गई और वो खुद जामिद हो गया और चंद ही लम्हे के बाद मौत ने उस को हमेशा के लिए जामिद कर दिया, इस वाकिए से जलसे में कोहराम मच गया यहाँ तक के उसने कुछ बोलना चाहा मगर बोलना सका तो इशारे से कलम दवात तलब किया और एक कागज़ पर मरने से क़ब्ल ये लिख कर मरा “में मौलाना हामिद रज़ा खाना साहब” की बे अदबी से तौबा करता हूँ।

आप के मुरीदीन व खुलफाए किराम

हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के मुरीदीन की तादाद (गिनती) यूं तो लाखों में थी लेकिन अब भी हज़ारों की तादाद में इन के मुरीदीन मौजूद हैं चित्तोड़ गढ़, राजिस्थान जयपुर, उदयपुर, जोधपुर, सुल्तानपुर यूपी, बरैली व अतराफ़ कानपूर, फतेहपुर बनारस, और सूबा बिहार वगेरा में इन के मुरीदीन ज़ियादा हैं, कराची पाकिस्तान में भी हमीदियों की काफी तादाद पाई जाती है, इन के खुलफ़ा और तलामिज़ाह शागिर्दों में हज़रत मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान! “हज़रत अल्लामा सरदार अहमद कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी” सिरे फहरिस्त हैं इन के अलावा “हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत अल्लामा शाह हबीबुर रहमान कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी” उड़ीसा, “हज़रत अल्लामा शाह रिफाकत हुसैन साहब” हज़रत अल्लामा शेर बेशए अहले सुन्नत हशमत अली खान” हज़रत अल्लामा शाह इब्राहीम रज़ा खान उर्फ़ जिलानी मियां” (हुज़ूर ताजुश्शरिया रहमतुल्लाह अलैह के वालिद मजीद) हज़रत अल्लामा खलफ़े अकबर हम्माद साहब” हज़रत मौलाना एहसान साहब फैज़पुरी” साबिक शैखुल हदीस दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! बरैली शरीफ “हज़रत अल्लामा अब्दुल मुस्तफा साहब अज़हरी” हज़रत मुफ़्ती तक़द्दुस अली खान साहब” हज़रत मौलाना इनायत मुहम्मद खान गोरी, हज़रत मौलाना अब्दुल गफूर साहब हज़ारवीं, हज़रत मौलाना मुहम्मद सईद शिब्ली साहब फरीद कोट, हज़रत मौलाना वलियुर रहमान साहब, पोखेरवी, हज़रत मौलाना हाफिज़ मुहम्मद मियां साहब अशरफी रज़वी, हज़रत मौलाना अबुल खलील अनीस आलम साहब सीवानी, हज़रत मौलाना काज़ी फ़ज़्ल करीम बिहारी, हज़रत मौलाना रज़ी अहमद साहब वगेरा, पाकिस्तान के मशहूर शायरे इस्लाम हस्सनुल अस्र जनाब अख्तर हामिदी! भी हुज्जतुल इस्लाम कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! के मुरीद थे,

मश्हूरो माअरूफ़ खुलफ़ा के नाम ये हैं

  1. हज़रत मौलाना ज़हूर हुस्सामी मानकपुर,
  2. हज़रत मौलाना अब्दुल वहीद उड़ीसा
  3. हज़रत मौलाना अब्दुर रब मुरादाबाद
  4. हज़रत मौलाना निज़ामुद्दीन बलियावी
  5. हज़रत मौलाना नईमुल्लाह खान
  6. हज़रत मौलाना सय्यद अब्बास अल्वी मक्की
  7. हज़रत कारी मकबूल हुसैन इलाहाबादी
  8. हज़रत कारी नेमतुल्लाह उड़ीसा
  9. हज़रत अब्दुल कुद्दूस उड़ीसा
  10. हज़रत अल हाज आशिकुर रहमान इलाहाबादी
  11. हज़रत सय्यद शाह फज़लुर रहमान
  12. हज़रत शमश आलम
  13. हज़रत कारी अबदुत तउवाब उड़ीसा
  14. हज़रत कारी सिराज अहमद
  15. हज़रत शाह नूर मुहम्मद
  16. हज़रत मुदस्सिर हुसैन नाज़िम तब्लीगी सीरत मगरिबी बंगगाल
  17. हज़रत सय्यद सदरे आलम,
  18. हज़रत मुहम्मद सलीम सुल्तान पुर
  19. हज़रत सय्यद काज़िम पाशा हैदराबाद
  20. हज़रत अल हाज मुहम्मद अली जिनाह इलाहबादी
  21. हज़रत मौलाना उबैदुल्लाह खान आज़मी
  22. हज़रत गुलाम अब्दुल कादिर भदोही
  23. हज़रत अरशद अली अजमेरी
  24. हज़रत डॉक्टर मौलाना सय्यद शमीम गोहर इलाहबादी
  25. (हज़रत सय्यद मुहम्मद मुहसिन
  26. हज़रत अल्लामा मुश्ताक़ अहमद निज़ामी इलाहबादी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन ।

आप की औलादे अमजाद

हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के दो 2, साहबज़ादे और चार 4, साहबज़ादियाँ थीं साहबज़ादों के नाम ये हैं (1) मुफ़स्सिरे आज़म हिन्द हज़रत मौलाना इब्राहीम रज़ा खान उर्फ़ जिलानी मियां रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मौलाना हम्माद रज़ा खान नोमानी मियाँ रहमतुल्लाह अलैह, साहबज़ादियों के नाम ये हैं, (1) उम्मे कुलसूम, (2) कनीज़े सुगरा, (3) राबिया बेगम, (4) सलमा बेगम।

आप का विसाल व उर्स

आप ने 17, जमादिउल अव्वल 1362, हिजरी मुताबिक 23, मई 1943, ईस्वी बा उमर सत्तर 70, साल ऐन हालते नमाज़ में दौरान तशह्हुद दस बजकर 45, मिनट पर अपने खालिके हकीकी से जा मिले, विसाल फ़रमाया।

नमाज़े जनाज़ा

आप की जनाज़े की नमाज़ आप के खास खलीफा हज़रत मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान अल्लामा सरदार अहमद रहमतुल्लाह अलैह ने मजमा कसीर में पढ़ाई।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक खानकाहे रज़विया बरैली शरीफ में वालिद माजिद के पहलू में है, हर साल उर्स की तारीख में बेशुमार उलमा, व मशाईखे इज़ाम के साथ अवाम शरीक होते हैं, और अपने अपने दामनो को गौहरे मुराद से पुर करते हैं, बरैली शरीफ की खानकाह के अलावा भी हिंदुस्तान पाकिस्तान में आप के बेशुमार मुतावस्सी लीन मज़्कूरह तारिख पर आप के रूहानी फैज़ से मुस्तफ़ीज़ होते हैं और मकाले व तकरीर से आप के इल्मी, दीनी तसव्वुफ़ाना कारनामे को पेश करते हैं।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • ख़ुत्बाए हुज्जतुल इस्लाम
  • माह नामा आला हज़रत जून 1963, ईस्वी
  • माह नामा हिजाज़ जदीद अप्रेल 1989, ईस्वी
  • फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में
  • तज़किराए उल्माए अहले सुन्नत
  • फकीहे इस्लाम
  • माह नामा आला हज़रत बरैली शरीफ 1986, ईस्वी

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