हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 12)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 12)

वाकिआए बीरे मुअव्वाना

माहे सफर सं. 4, हिजरी में  “बीरे मुअव्वाना” का मशहूर वाक़िआ पेश आया | अबू बरा आमिर बिन मालिक जो अपनी बहादुरी की वजह से “मलाईबुल असिनह” यानि बर्छियों से खेलने वाला कहलाता था, बारगाहे रिसालत में आया,  हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को इस्लाम की दावत दी, उस ने न तो इस्लाम कबूल किया न इससे कोई नफरत ज़ाहिर की बल्कि ये दरख्वास्त की, की आप अपने चंद चुने हुए सहाबा को हमारे साथ हमारे दयार में भेज दीजिये मुझे उम्मीद है की वो लोग इस्लाम की दावत कबूल कर लेंगें | आप ने फ़रमाया की मुझे नज्द के कुफ्फार की तरफ से खतरा है | अबू बरा ने कहा की में आप के असहाब की जानो माल की हिफाज़त का ज़िम्मेदार हूँ |

इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा में से ,70 सत्तर मुन्तख़ब सालिहीन को जो “कुर्रा” कहलाते थे भेज दिया | ये हज़रात जब मक़ामे “बीरे मुअव्वाना” पर पहुचें तो रुक गए और सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम के काफिला सालार हज़रते हिराम बिन मलहान रदियल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खत ले कर आमिर बिन तुफेल के पास अकेले तशरीफ़ ले गए | जो कबीले का रईस और अबू बरा का भतीजा था | उस ने खत को पढ़ा भी नहीं और एक शख्स को इशारा कर दिया जिस ने पीछे से हज़रते हिराम रदियल्लाहु अन्हु को नेज़ा मार कर शहीद कर दिया और आस पास के कबाइल यानि रअल व ज़क्वान और असिय्या व बनू लहयान वगैरा को जमा कर के एक लश्कर तय्यार कर लिया और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम पर हमले के लिए रवाना हो गया, हज़राते सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम बीरे मुअव्वाना के पास बहुत देर तक हज़रते हिराम रदियल्लाहु अन्हु की वापसी का इन्तिज़ार करते रहे मगर जब बहुत ज़्यादा देर हो गई तो ये लोग आगे बड़े, रास्ते में आमिर बिन तुफेल की फौज का सामना हुआ और जंग शुरू हो गई कुफ्फार ने हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरी रदियल्लाहु अन्हु के सिवा तमाम सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को शहीद कर दिया इन ही शुहदाए किराम में हज़रते आमिर बिन फुहेरा रदियल्लाहु अन्हु भी थे | जिन के बारे में आमिर बिन तुफेल का बयान है क़त्ल होने के बाद इन की लाश बुलंद हो कर आसमान तक पहुंची फिर ज़मीन पे आ गई, इस के बाद इन की लाश तलाश कर ने पर भी नहीं मिली | क्यूं की फरिश्तों ने इन को दफन कर दिया |

हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरी रदियल्लाहु अन्हु को आमिर बिन तुफेल ने ये कह कर छोड़ दिया मेरी माँ ने एक गुलाम आज़ाद कर ने की मन्नत मानी थी इस लिए में तुम को आज़ाद करता हूँ ये कह कर इन के चोटी के बाल काट कर इन को छोड़ दिया | हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरी रदियल्लाहु अन्हु वहां से चल कर जब मक़ामे “कर कराह” में आए तो एक पेड़ के साए में ठहरे वहीँ कबीलए बनू किलाब के दो आदमी भी ठहरे हुए थे | जब वो दोनों सो गए तो हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरी रदियल्लाहु अन्हु ने उन दोनों काफिरों को क़त्ल कर दिया और ये सोच कर दिल में खुश हो रहे थे के मेने सहाबए किराम के खून का बदला ले लिया है मगर उन दोनों शख्सों को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अमान दे चुके थे जिस का हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरी रदियल्लाहु अन्हु को इल्म न था | जब मदीने पहुंच कर सारा हाल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बयान किया तो अस्हाबे बीर मुअव्वान की खबर सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इतना अज़ीम दसमा पंहुचा तमाम उम्र शरीफ में इतना रंज व सदमा नहीं पहुंचा था | चुनांचे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम महीने भर तक कबाईले रअल व ज़क्वान और असिय्या व बनू लहयान पर नमाज़े फज्र में लअनत भेजते रहे और हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरी रदियल्लाहु अन्हु ने जिन दो शख्सों को क़त्ल कर दिया था हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन दोनों को खूनबहा अदा करने का ऐलान फ़रमाया |

ग़ज़वए बनू नज़ीर

 हज़रते अम्र बिन उमय्या ज़मरी रदियल्लाहु अन्हु ने कबीलए बनू किलाब के जिन दो शख्सों को क़त्ल कर दिया था और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन दोनों का खूनबहा अदा करने का ऐलान फरमा दिया था इसी मुआमले के मुतअल्लिक़ गुफ्तुगू कर ने के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कबीलए बनू नज़ीर के यहूदियों के पास तशरीफ़ ले गए क्यूं की इन यहूदियों से आप का मुआहिदा था मगर यहूदी दर हकीकत बहुत ही बद बातिन ज़ेहनियत वाली कौम है मुआहिदा कर लेने के बा वजूद इन ख़बीसों के दिलों में पैग़म्बरे इस्लाम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुश्मनी की आग भरी हुई थी | हर चंद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन बद बातिनों से अहले किताब होने की बिना पर अच्छा सुलूक फरमाते थे मगर ये लोग हमेशा इस्लाम की बीख कुनी और बनिए इस्लाम की दुश्मनी में मसरूफ रहे | मुसलमानो से बुग़्ज़ो इनाद और कुफ्फार व मुनाफिक़ीन से साज़बाज़ और इत्तिहाद यही हमेशा इन गद्दारों का तर्ज़े अमल रहा | चुनांचे इस मोके पर जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उन यहूदियों के पास तशरीफ़ ले गए तो उन लोगों ने बा ज़ाहिर तो बड़े अख़लाक़ का मुज़ाहिरा किया मगर अन्दरूरी तौर पे बड़ी खौफनाक साज़िश और इंतिहाई खतरनाक इस्कीम का मंसूबा बना लिया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हज़रते अबू बक्र व हज़रते उमर व हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुम भी थे | यहूदियों ने इन सब हज़रात को एक दिवार के नीचे बड़ी इज़्ज़त के साथ बिठाया और आपस में ये मश्वरा किया की छत पे से एक बहुत ही बड़ा और वज़नी पथ्थर इन हज़रात पे गिरा दें ताकि ये सब लोग दब कर खत्म हो जाएं | 

चुनांचे अम्र बिन जहाश इस मकसद के लिए छत के ऊपर चढ़ गया, मुहाफिज़े हकीकी परवर दिगारे आलम अल्लाह पाक ने अपने हबीब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यहूदियों की इस नापाक साज़िश से वही के ज़रिए खबर दी इस लिए फ़ौरन ही आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वहां से उठ कर चुपचाप अपने साथियों के साथ चले आये और मदीने तशरीफ़ ला कर सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को यहूदियों की इस साज़िश से आगाह फ़रमाया और अंसार व मुहाजिरीन से मश्वरे के बाद उन यहूदियों के पास कासिद भेज दिया की चूँकि तुम लोगों ने अपनी इस दसीसा कारी और कातिलाना साज़िश से मुआहिदा तोड़ दिया इस लिए अब तुम लोगों को दस दिन की मोहलत दी जाती है की तुम इस मुद्दत में मदीने से निकल जाओ, इस के बाद जो शख्स भी तुम में का यहाँ पाया जाएगा क़त्ल कर दिया जाएगा | शहंशाहे मदीना हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये फरमान सुन कर बनू नज़ीर के यहूदी जिला वतन होने के लिए तय्यार हो गए थे मगर मुनाफिकों का सरदार अब्दुल्लाह इब्ने उबय्य इन यहूदियों का हामी बन गया और इस ने कहला भेजा की तुम लोग हरगिज़ हरगिज़ मदीने से ना निकलो हम दो हज़ार आदमियों से तुम्हारी मदद करने को तय्यार हैं इस के अलावा बनू क़ुरैज़ा और बनू गतफान यहूदियों के दो ताक़तवर कबीले भी तुम्हारी मदद करेंगें | बनू नज़ीर के यहूदियों को जब इतना बड़ा सहारा मिल गया तो वो शेर हो गए और उन होने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास कहला भेजा की हम मदीना छोड़ कर नहीं जा सकते आप के जो दिल में आए कर लीजिए |  

यहूदियों के इस जवाब के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मस्जिदे नबवी की इमामत हज़रते इब्ने उम्मे मकतूम  रदियल्लाहु अन्हु के सुपुर्द फरमा कर खुद बनू नज़ीर का क़स्द फ़रमाया और उन यहूदियों के किले का मुहासिरा कर लिया ये मुहासिरा पंदरा 15, दिनों तक कायम रहा किले में बाहर से हर किस्म के सामानो का आना जाना बंद हो गया और यहूदी बिलकुल ही महसूर व मजबूर हो कर रह गए मगर इस मोके पे न तो मुनाफिकों का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य यहूदियों की मदद के लिए आया न बनू क़ुरैज़ा और बनू गतफान ने कोई मदद की | चुनांचे अल्लाह पाक ने इन दगाबाजों के बारे में कुरआन शरीफ पारा 28, सूरह हशर आयत 16, में इरशाद फ़रमाया की: 

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- इन लोगों की मिसाल शैतान जैसी है जब उस ने आदमी से कहा की तू कुफ्र कर फिर जब उस ने कुफ्र किया तो बोला की में तुझ से अलग हूँ में अल्लाह से डरता हूँ जो सारे जहाँन का पालने वाला है | 

यानि जिस तरह शैतान आदमी को कुफ्र पे उभारता है लेकिन जब आदमी शैतान के वर गलाने से कुफ्र में मुब्तला हो जाता है तो शैतान चुपके से खिसक कर पीछे हट जाता है इसी तरह मुनाफिकों ने बनू नज़ीर के यहूदियों को शह दे कर दिलेर बना दिया और अल्लाह पाक के हबीब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से लड़ा दिया लेकिन जब बनू नज़ीर के यहूदियों को जंग का सामना हुआ तो मुनाफिक छुप कर अपने घरों में बैठे रहे | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किले के मुहासिरे के साथ किले के आस पास खजूरों के कुछ पेड़ों को भी कटवा दिया क्यूं की मुमकिन था के पेड़ों के झुंड में यहूदी छुप कर इस्लामी लश्कर पे छापा मारते और जंग में मुसलमानो को दुश्वारी हो जाती | इन पेड़ों को काटने के बारे में मुसलमानो के दो गिरोह हो गए | कुछ लोगों का ये ख्याल था की ये पेड़ न काटे जाएं क्यूं की फतह के बाद ये सब पेड़ माले गनीमत बन जाएंगें और मुस्लमान इन से नफा उठाएंगें और कुछ लोगों का ये कहना था की पेड़ों के झुंड को काट कर साफ़ कर देने से यहूदियों की कमीन गाहों को बर्बाद करना और इन को नुकसान पंहुचा कर ग़ैज़ो गज़ब में डालना मक़सूद है, लिहाज़ा इन दरख्तों को काट देना ही बेहतर है इस मोके पर अल्लाह पाक ने कुरआन शरीफ पारा 28, सूरह हशर आयत 5, में है की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- जो पेड़ तुम ने काटे या जिन को उन की जड़ों पर काइम छोड़ दिए ये सब अल्लाह पाक के हुक्म से था ताकि खुदा फासिकों को रुस्वा करे|

मतलब ये है की मुसलमानो में जो दरख्त काटने वाले हैं उन का अमल भी दुरुस्त है और जो काटना नहीं चाहते वो भी ठीक कहते हैं क्यूं की कुछ पेड़ों को काटना और कुछ को छोड़ देना ये दोनों अल्लाह पाक के हुक्म और उस की इजाज़त से है |

बहर हाल आखिर कार मुहासिरे से तंग आ कर बनू नज़ीर के यहूदी इस बात पे तय्यार हो गए की वो अपना अपना मकान और किला छोड़ कर इस शर्त पर मदीने से बाहर चलें जाएंगें की जिस क़द्र माल व असबाब वो ऊँटो पे ले जा सकें तो ले जाएं, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यहूदियों की इस शर्त को मंज़ूर कर लिया और बनू नज़ीर के सब यहूदी छेह सौ ऊंटों पे अपना माल व सामान लाद कर एक जुलूस की शक्ल में गाते बजाते हुए मदीने से निकले कुछ तो “खैबर” चले गए और ज़्यादा तादाद में मुल्के शाम जा कर “ज़रआत” और “उरैहा” में आबाद हो गए | 

इन लोगों के चले जाने के बाद इन के घरों की मुसलमानो ने जब तलाशी ली तो पचास लोहे की टोपियां, 50, ज़िरहें, तीन सौ चालीस तलवारें निकलीं, जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कब्ज़े में आई | अल्लाह पाक ने बनू नज़ीर के यहूदियों की इस जिला वतनी का ज़िक्र कुरआन शरीफ पारा 28, सूरह हश्र की आयत 2, में इस तरह फ़रमाया की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- अल्लाह वो ही है जिस ने काफिर कितबियों को उन के घरों से निकाला उन के पहले हश्र के लिए (ऐ मुसलमानो !) तुम्हे ये गुमान न था की वो निकलेंगें और वो समझते थे की उन के किले उन्हें अल्लाह से बचा लेंगें तो अल्लाह का हुक्म उन के पास आ गया जहाँ से उन को गुमान भी न था और उस ने उन के दिलों में खौफ डाल दिया की वो अपने घरों को खुद अपने हाथों से और मुसलमानो के हाथों से वीरान करते हैं तो इबरत पकड़ो ऐ निगाह वालो |

सं. चार हिजरी के मुतफ़र्रिक़ वाक़िआत

  • इसी साल ग़ज़वए बनू नज़ीर के बाद जब अंसार ने कहा की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! बनू नज़ीर के जो अमवाल गनीमत में मिले हैं वो सब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारे मुहाजिर भाइयों को दे दीजिए हम इस में से किसी चीज़ के तलब गार नहीं हैं तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुश हो कर ये दुआ फ़रमाई की ऐ अल्लाह पाक ! अंसार पर, और अंसार के बेटों पर और अंसार के बेटों के बेटों पर रहम फरमा | 
  • इसी साल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे हज़रते अब्दुल्लाह बिन उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु की आँख में एक मुर्ग ने चोंच मार दी जिस के सदमे से वो रात भर तड़प कर वफ़ात पा गए |
  • इसी साल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ौजए मुतह्हरा हज़रते बीवी ज़ैनब बिन्ते खुज़ैमा रदियल्लाहु अन्हा की वफ़ात हुई |  
  • इसी साल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उम्मुल मोमिनीन बीबी उम्मे सलमह रदियल्लाहु अन्हा से निकाह फ़रमाया | 
  • इसी साल हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु की वालिदए माजिदा हज़रते बीवी फातिमा बिन्ते असद रदियल्लाहु अन्हा ने वफ़ात पाई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना मुकद्द्स पैरहन उन के कफ़न के लिए अता फ़रमाया और उन की कब्र में उतर कर उन की मय्यत को अपने दस्ते मुबारक से कब्र में उतरा और फ़रमाया की फातिमा बिन्ते असद के सिवा कोई शख्स भी कब्र के दबोचने से नहीं बचा है | हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की सिर्फ पांच ही मय्यत ऐसी खुश नसीब हुई हैं जिन की कब्र में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद उतरे: 1, हज़रते बीबी खदीजा, 2, हज़रते बीबी खदीजा का एक लड़का, 3, अब्दुल्लाह मुज़्नी जिन का लक़ब ज़ुल बिजा दैन है, 4, हज़रते बीबी आएशा की माँ उम्मे रूमान, 5, हज़रते बीवी फातिमा बिन्ते असद रदियल्लाहु अन्हा हज़रते अली की वालिदा |   (रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन)    
  • इसी साल 4, शाबान सं. 4, हिजरी को हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की पैदाइश हुई |
  • इसी साल एक यहूदी ने एक यहूदी औरत के साथ ज़िना किया और यहूदियों ने ये मुकदमा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में पेश किया तो आप और यहूदियों ने तौरेत व कुरआन दोनों किताबों के फरमान से उस को संगसार कर ने का फैसला फ़रमाया |
  • इसी साल तमअ बिन उबेरक ने जो मुस्लमान था चोरी की तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुरआन के हुक्म से उस का हाथ काटने का हुक्म फ़रमाया, इस पर वो भाग निकला और मक्का चला गया वहां भी उस ने चोरी की अहले मक्का ने उस को क़त्ल कर डाला उस पे दिवार गिर पड़ी और मर गया या दरया में फेंक दिया गया | एक कौल ये भी है की वो मुर्तद हो गया था |
  • बाज़ मुअर्रिख़ीन के नज़दीक शराब की हुरमत का हुक्म भी इसी साल नाज़िल हुआ और कुछ के नज़दीक सं. 6, हिजरी में और कुछ ने कहा है की सं. 8, हिजरी में शराब हराम की गई |

“हिजरत का पांचवा साल सं. 5, हिजरी”

ग़ज़वए ज़ातुर रिका

सब से पहले कबाईले “अनमार व सालबा” ने मदीने पर चढ़ाई कर ने का इरादा किया | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस की खबर मिली तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने चार सौ सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम का लश्कर अपने साथ लिया और दस मुहर्रमुल हराम सं. 5, हिजरी को मदीने से रवाना हो कर मक़ामे “ज़ातुर रिका” तक तशरीफ़ ले गए लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आमद का हाल सुन कर ये कुफ्फार पहाड़ों में भाग कर छुप गए इस लिए कोई जंग नहीं हुई | मुश्रिकीन की चंद औरतें मिली जिन को सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने गिरफ्तार कर लिया | उस वक़्त मुस्लमान बहुत ही मुफ़लिस और तंग दस्ती की हालत में थे | 

चुनांचे हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की सवारियों की इतनी कमी थी की छे छे आदमियों की सवारी के लिए एक ऊँट था जिस पर हम लोग बारी बारी सवार हो कर सफर करते थे पहाड़ी ज़मीन में पैदल चलने से हमारे क़दम ज़ख़्मी और पाऊं के नाखून झड़ गए थे इस लिए हम लोगों ने अपने पाऊं पर कपड़ों के चीथड़े लपेट लिए थे यही वजह है की इस ग़ज़वे का नाम “ग़ज़वए ज़ातुर रिका” यानि पेवंद वाला गज़वा हो गया |

बाज़ मुअर्रिख़ीन ने कहा है की वहां की ज़मीन के पथ्थर सफ़ेद व काले रंग के थे और ज़मीन ऐसी नज़र आती थी गोया सफ़ेद और काले पेवंद एक दूसे से जुड़े हुए हैं, लिहाज़ा इस ग़ज़वे को “ग़ज़वए ज़ातुर रिका” कहा जाने लगा और बाज़ का कौल है की यहाँ पर एक पेड़ का नाम  “ज़ातुर रिका” था इस लिए लोग इस को  “ग़ज़वए ज़ातुर रिका” कहने लगे हो सकता है की ये सारी बातें हों | मशहूर इमामे सीरत इब्ने साद का कौल है की सब से पहले इस ग़ज़वे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “सलातुल खौफ” पढ़ी | 

ग़ज़वए दूमतुल जंदल

रबीउल अव्वल सं. 5, हिजरी में पता चला की मकाम  “दूमतुल जंदल” में जो मदीना और शहर दमिश्क के दरमियान एक किले का नाम है मदीना पर हमला करने के लिए एक बहुत बड़ी फौज जमा हो रही है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक हज़ार सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम का लश्कर ले कर मुकाबले के लिए मदीने से निकले, जब मुशरिकीन को ये मालूम हुआ तो वो लोग अपने मवेशियों और चरवाहों को छोड़ कर भाग निकले सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने उन तमाम जानवरों को माले गनीमत बना लिया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन दिन वहां क़ियाम फरमा कर मुख्तलिफ मक़ामात पर सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के लश्करों को रवाना फ़रमाया | इस ग़ज़वे में भी कोई जंग नहीं हुई इस सफर में एक महीने से ज़ियादा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीने से बाहर

ग़ज़वए मुरेसिआ

इस का दूसरा नाम ग़ज़वए बनी अल मुस्तलिक़ भी है मुरेसिआ एक मक़ाम का नाम है जो मदीने से आठ मंज़िल दूर है क़बीलाए खुज़ाआ का एक खानदान बनू अल मुस्तलिक़ यहा आबाद था और इस कबीले का सरदार हारिस बिन जरार था इसने भी मदीने पर फ़ौज कशी के लिए लश्कर जमाअ किया था जब यह ख़बर मदीने पहुंची तो 2 शाबान सि. 5 हि.को हुज़ूरे अक़्दस  सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम मदीने पर हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु तआला अन्हु को अपना खलीफा बना कर लश्कर के साथ रवाना हुए इस ग़ज़वे में बीबी हज़रते आएशा और हज़रते बीबी उम्मे सलमह रदी अल्लाहु तआला अन्हुमा भी  आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के साथ थी बिन ज़रार को आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की तशरीफ़ आवरी की खबर हो गई तो उस पर ऐसी दहशत सवार हो गई वो और उसकी फ़ौज भाग कर मुन्तशिर हो गई मगर खुद मुरेसिआ के बाशिंदो ने लश्करे इस्लाम का सामना किया और जम कर मुसलमानो पर तीर बरसाने लगे लेकिन जब मुसलमानो ने एक साथ मिलकर हम्ला कर दिया तो दस कुफ़्फ़ार मारे गए जिन की ता दाद सात सो से ज्यादा थी दो हज़ार ऊँट और पांच हज़ार बकरियां माले ग़नीमत में सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के हाथ आई ग़ज़वए मुरेसिआ जंग के ऐतिबार से तो कोई खास अहम्मियत नहीं रखता मगर इस जंग में बाज़ ऐसी अहम वाक़ियात दरपेश हो गए की यह गज़्वा तारीखे नबवी का अहम और शानदार उन्वान बन गया है इन मशहुर वाक़िआत में चंद यह है:

मुनाफ़िक़ीन की शरारत

 इस जंग में माले ग़नीम के लालच में बहुत से मुनाफ़िक़ीन भी शरीक हो गए थे एक दिन पानी लेने पर एक मुहाजिर और एक अंसारी में कुछ तक़रार हो गई मुहाजिर ने बुलंद आवाज़ में या अलम्हाजीरीन (ऐ मुहाजिरों फ़रियाद है ) और अंसारी ने या अल अन्सार (ऐ अन्सारियो फ़रियाद है) का नारा मारा यह नारा सुनते ही अंसार व् मुहाजरीन दौड़ पड़े और इस क़दर बात बढ़ गई की आपस में जंग की नौबत आ गई रईसुल मुनाफ़िक़ीन अब्दुल्ला बिन उबय्य को शरारत का एक मौका मिल गया उस ने इश्तिआल दिलाने के लिए अन्सारियो से कहा की लो यह तो वोही मसल हुई की सममिन कल्बका लिया कुलका (तुम अपने कुत्तो को फ़रबा करो ताकि वोह तुम्ही को खा डाले ) तुम अन्सारियों ही ने इन मुहाजरीन का हौसला बड़ा दिया है अब इन मुहाजरीन की माली इमदाद व मदद बंद कर दो यह लोग ज़लीलो ख्वार है हम अंसार इज़्ज़त दार है अगर हम मदीने पहुंचे तो यक़ीनन हम इन ज़लील लोगो को मदीने से बाहर कर देंगे | (क़ुरआन शरीफ सूरह मुनाफ़िक़ून)

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब इस हंगामे का शोरो गोगा सूना तो अंसार व मुहाजिरीन से फ़रमाया की किया तुम लोग ज़मानए जाहिलियत की नारा बाज़ी कर रहे हो? जमाले नुबूवत देखते ही अंसार व मुहाजिरीन बर्फ की तरह ठन्डे पड़ गए और रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चंद फ़िक्रों (जुमला) ने मुहब्बत का ऐसा दरया बहा दिया की अंसार व मुहाजिरीन शीरो शकर की तरह घुल मिल गए |

जब अब्दुल्लाह बिन उबय्य की बेहूदा बात हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु के कान में पड़ी तो वो इस क़द्र तैश में आ गए की नग्गी तलवार ले कर आए और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मुझे इजाज़त दीजिये की में इस मुनाफिक की गर्दन उड़ा दूँ | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने निहायत नरमी के साथ इरशाद फ़रमाया की ऐ उमर ! रदियल्लाहु अन्हु खबर दार ऐसा न करो, वरना कुफ्फार में ये खबर फ़ैल जाएगी की मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) अपने साथियों को भी क़त्ल करने लगे हैं | ये सुन कर हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु बिलकुल ही खमोश हो गए मगर इस खबर का पूरे लश्कर में चर्चा हो गया, ये अजीब बात है की अब्दुल्लाह इब्ने उबय्य जितना बड़ा इस्लाम और बानिए इस्लाम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दुश्मन था इससे कहीं ज़ियादा बढ़ कर इस के बेटे इस्लाम के सच्चे शैदाई और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जांनिसार सहाबी थे उन का नाम भी “अब्दुल्लाह” था जब अपने बाप की ग़ैज़ो गज़ब में भरे हुए हुज़ूर की बारगाह में हाज़िर हुए और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर आप मेरे बाप के क़त्ल को पसंद फरमाते हों तो मेरी तमन्ना है की किसी दूसरे के बजाए में खुद अपनी तलवार से अपने बाप का सर काट कर आप के क़दमों में डाल दूँ | आप ने इरशाद फ़रमाया की नहीं हरगिज़ नहीं में तुम्हारे बाप के साथ कभी भी कोई बुरा सुलूक नहीं करूंगा | (इब्ने सअद तबरी वगैरा)

और एक रिवायत में ये भी आया है की मदीने के करीब वादिए अकीक में वो अपने बाप अब्दुल्लाह बिन उबय्य का रास्ता रोक कर खड़े हो गए और कहा की तुम ने मुहाजिरीन और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ज़लील कहा है खुदा की कसम ! में उस वक़्त तक तुम को मदीने में दाखिल नहीं होने दूंगा जब तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इजाज़त अता न फरमाएं और जब तक तुम अपनी ज़बान से ये न कहो की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तमाम औलादे आदम में सब से ज़ियादा इज़्ज़त वाले हैं और तुम सारे जहान वालों में सब से ज़ियादा ज़लील हो, तमाम लोग इंतिहाई हैरत और तअज्जुब के साथ ये मंज़र देख रहे थे जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वहां पहुंचे और ये देखा की बेटा बाप का रास्ता रोके हुए खड़ा है और और ये देख की बेटा बाप से कह रहा है की “में सब से ज़ियादा ज़लील हूँ और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सब से ज़ियादा इज़्ज़त दार हैं” | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये देखते ही हुक्म दिया की इस का रास्ता छोड़ दो ताकि ये मदीने में दाखिल हो जाए |

हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु अन्हा से निकाह

ग़ज़वए मुरैसीआ की जंग में जो कुफ्फार मुसलमानो के हाथ में गिरफ्तार हुए उन में सरदार कौम “हरिस बिन ज़रार” की बेटी “हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु अन्हा” भी थीं जब तमाम कैदी लोंडी गुलाम बना कर मुजाहिदीने इस्लाम में तकसीम कर दिए गए तो हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु अन्हा हज़रते साबित बिन कैस रदियल्लाहु अन्हु के हिस्से में आई उन्होंने हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु अन्हा से ये कह दिया की तुम मुझ्रे इतनी रकम दे दो तो में तुम्हे आज़ाद कर दूंगा, हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु अन्हा के पास कोई रकम नहीं थी वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरबार में हाज़िर हुईं और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में अपने कबीले के सरदार हरिस बिन ज़रार की बेटी हूँ और में मुसलमान हो चुकी हूँ हज़रते साबित बिन कैस ने इतनी इतनी रकम ले कर मुझे आज़ाद कर देने का वादा कर लिया है आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरी मदद फरमाएं ताकि में ये रकम अदा कर के आज़ाद हो जाऊं | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की में चाहता हूँ की में खुद तन्हा तुम्हारी तरफ से सारी रकम अदा कर दूँ और तुम को आज़ाद कर के में तुम से निकाह कर लूँ ताकि तुम्हारा खानदानी ऐजाज़ व वक़ार बाकि रह जाए |        

हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु अन्हा ने ख़ुशी ख़ुशी इस को मंज़ूर कर लिया, चुनांचे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से निकाह फरमा लिया जब ये खबर लश्कर में फ़ैल गई की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु अन्हा से निकाह फरमा लिया तो मुजाहिदीन इस्लाम के जितने लोंडी गुलाम थे मुजाहिदीन ने सब को फौरन आज़ाद कर दिया और लश्करे इस्लाम का हर सिपाही ये कहने लगा की जिस खानदान में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शादी कर ली उस खानदान का कोई आदमी लोंडी गुलाम नहीं रह सकता और हज़रते बीबी आएशा रदियल्लाहु अन्हा कहने लगीं की हमने किसी औरत का निकाह हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु अन्हा के निकाह से बढ़ कर खेरो बरकत वाला नहीं देखा की इस की वजह से तमाम खानदान बनी अल मुस्तलिक को गुलामी से आज़ादी नसीब हो गई |(अबू दाऊद शरीफ जिल्द 2)

हज़रते जुवैरिया रदियल्लाहु अन्हा का असली नाम “बर्राह” था | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस नाम को बदल कर “जुवैरिया” नाम रखा |   

रेफरेन्स (हवाला)

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2,)

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