हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 14)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 14)

बा बरकत खजूरें

इसी तरह एक लड़की अपने हाथ में कुछ खजूरें ले कर आई, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पूछा की क्या है? लड़की ने जवाब दिया की कुछ खजूरें हैं जो मेरी माँ ने बाप के नाश्ते के लिए भेजी हैं, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन खजूरों को अपने दस्ते मुबारक में ले कर एक कपड़े पर बिखरे दिया और तमाम अहले ख़न्दक को बुला कर फ़रमाया की खूब सेर हो कर खाओ चुनान्चे तमाम ख़न्दक वालों ने शिकम सेर हो कर उन खजूरों को खाया |

ये दोनों वाक़िआत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मोजिज़ात में से हैं |

इस्लामी फौज की मोर्चा बंदी

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खनदक तय्यार हो जाने के बाद औरतों और बच्चों को मदीने के महफूज़ किले में जमा फरमा दिया और मदीने पर हज़रते इब्ने उम्मे मकतूम रदियल्लाहु अन्हु को अपना खलीफा बना कर तीन हज़ार अंसार व मुहाजिरीन की फौज के साथ मदीने से निकल कर सुला पहाड़ के दामन में ठहरे | सुला आप की पुश्त पर था और आप के सामने खंदक थी | मुहाजिरीन का झंडा हज़रते ज़ैद बिन हारिस रदियल्लाहु अन्हु के हाथ में दिया और अंसार का आलम बरदार हज़रते साद बिन उबादा रदियल्लाहु अन्हु को बनाया |

कुफ्फार का हमला

कुफ्फारे कुरेश और उन के इत्तिहादियों ने दस हज़ार के लश्कर के साथ मुसलमानो पर हल्ला बोल दिया और तीन तरफ से काफिरों का लश्कर इस ज़ोरो शोर के साथ मदीने पर उमंड पड़ा की शहर की फ़ज़ाओं में गरदो गुबार का तूफ़ान उठ गया इस खौफनाक चढाई और लश्करे कुफ्फार के दल बदल की मारिका आराई का नक्शा क़ुरआन शरीफ पारा 21, सूरह अहज़ाब की ज़बानी सुनिए:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- जब काफिर तुम पर आ गए तुम्हारे ऊपर से और तुम्हारे नीचे से और जब की ठिठक कर रह गई निगाहें और दिल गलों के पास (खौफ से) आ गए और तुम अल्लाह पाक पर उम्मीद व यास से तरह तरह के गुमान करने लगे उस जगह मुस्लमान आज़माइश और इम्तिहान में डाल दिए गए और वो बड़े ज़ोर के ज़लज़ले में झंझोड़ कर रख दिए | मुनाफिक़ीन जो मुसलमानो के दोश बदोश खड़े वो कुफ्फार के इस लश्कर को देखते ही बुज़दिल हो कर फिसल गया और उस वक़्त उन के निफ़ाक़ का पर्दा चाक हो गया | चुनान्चे उन लोगों ने अपने घर जाने की इजाज़त मांगनी शुरू कर दी | जैसा की कुरान शरीफ पारा 21, सूरह अहज़ाब आयत 13, में अल्लाह पाक का फरमान है की: 

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- और एक गुरोह (मुनाफिक़ीन) उन में से नबी की इजाज़त तलब करता था मुनाफिक कहते हैं की हमारे घर खुले पड़े हैं हालां की वो खुले हुए नहीं थे उन का मकसद भागने के सिवा कुछ भी न था | लेकिन इस्लाम के सच्चे जं निसार मुहाजिरीन व अंसार ने जब लश्करे कुफ्फार की तूफानी यलगार को देखा तो इस तरह सीना सिपर हो कर डट गए की “सुला” और “उहद” की पहाड़ियां सर उठा उठा कर इन मुजाहिदीन की उलुल अज़मी को हैरत से देखने लगीं इन जां निसारों की ईमानी शुजाअत की तस्वीर सफ़हाते क़ुरआन पर बा सूरते तहरीर देखिए इरशादे रब्बानी है की कुरआन शरीफ पारा 21, सूरह अहज़ाब आयत 22, में है की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- और जब मुसलमानो ने कबाइले कुफ्फार के लश्करों को देखा तो बोल उठे की ये तो वोही मंज़र है जिस का अल्लाह पाक और उस के रसूल ने हम से वादा किया था और खुदा और उस का रसूल दोनों सच्चे हैं और उस ने उन के ईमान व इताअत को और ज़ियादा बड़ा दिया |

बनू क़ुरैज़ा की गद्दारी

कबीलए बनू क़ुरैज़ा के यहूदी अब तक गैर जानिब दार थे लेकिन बनू नज़ीर के यहूदियों ने उन को भी अपने साथ मिला कर लश्करे कुफ्फार में शामिल कर लेने की कोशिश शुरू कर दी चुनान्चे हुयी बिन अख्तब अबू सुफियान के मश्वरे से बनू क़ुरैज़ा के सरदार काब बिन असद के पास गया | पहले तो उस ने अपना दरवाज़ा नहीं खोला और कहा की हम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हलीफ़ हैं और हमने उन को हमेशा अपने अहद का पाबंद पाया है इस लिए हम उन से अहद शिकनी करना ख़िलाफ़े मुरव्वत समझते हैं मगर बनू नज़ीर के यहूदियों ने इस क़द्र शदीद इसरार किया और तरह तरह से वर गलाया की बिल आखिर काब बिन असद मुआहिदा तोड़ने के लिए राज़ी हो गया | बनू क़ुरैज़ा ने जब मुआहिदा तोड़ दिया और कुफ्फार से मिल गए तो कुफ्फारे मक्का और अबू सुफियान ख़ुशी से बाग बाग हो गए |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जब इस की खबर मिली तो आप ने हज़रते साद बिन मुआज़ और हज़रते साद बिन उबादा रदियल्लाहु अन्हुमा को तहकीके हाल के लिए बनू क़ुरैज़ा के पास भेजा वहां जा कर मालूम हुआ की वाकई बनू क़ुरैज़ा ने मुआहिदा तोड़ दिया है जब इन दोनों मुअज़्ज़ज़ सहाबियों रदियल्लाहु अन्हुमा ने इंतिहाई बे हयाई के साथ यहाँ तक कह दिया की हम कुछ नहीं जानते की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कौन हैं? और मुआहिदा किस को कहते हैं? हमारा कोई मुआहिदा हुआ ही नहीं था ये सुन कर दोनों हज़रात वापस आ गए और सूरते हाल से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुत्तलआ किया तो आप ने बुंलद आवाज़ से “अल्लाहु अकबर” कहा और फ़रमाया की मुसलमानो ! तुम इस से न घबराओ न इस का गम करो इस में तुम्हारे लिए बशारत है |

कुफ्फार का लश्कर जब आगे बढ़ा तो सामने खंदक देख कर ठहर गया और शहरे मदीना का मुहासरा कर लिया और तकरीबन एक महीने तक कुफ्फार शहरे मदीना के गिर्द घेरा डाले हुए पड़े रहे और यह मुहासरा इस सख्ती के साथ काइम रहा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम पर कई कई फाके गुज़र गए |

कुफ्फार ने एक तरफ तो खनदक का मुहासरा कर रखा था और दूसरी तरफ इस लिए हमला करना चाहते थे की मुसलमानो की औरतें और बच्चे किले में पनाह लिए हुए थे मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जहाँ खनदक के मुख्तलिफ हिस्सों पे सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम को मुकर्रर फरमा दिया था की वो कुफ्फार के हमलों का मुकाबला करते रहें इसी तरह औरतें बच्चों की हिफाज़त के लिए भी कुछ सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम को मुतअय्यन कर दिया था | 

अंसार की इमानि शुजाअत

मुहासरे की वजह से मुसलमानो की परेशानी देख कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये ख्याल किया की कहीं मुहाजिरीन व अंसार हिम्मत न हार जाएं इस लिए आप ने इरादा फ़रमाया की कबीलए गतफान के सरदार उईना बिन हसन से इस शर्त पर मुआहिदा कर लें की वो मदीने की एक तिहाई पैदावार ले लिया करें और कुफ्फारे मक्का का साथ छोड़ दें मगर जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते साद बिन मुआज़ और हज़रते साद बिन उबादा रदियल्लाहु अन्हुमा से अपना ये ख्याल ज़ाहिर फ़रमाया तो इन दोनों ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अगर इस बारे में अल्लाह पाक की तरफ से वही उतर चुकी है जब तो हमे इससे इंकार की मजाल ही नहीं हो सकती और अगर ये एक राय है तो या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जब हम कुफ्र की हालत में थे उस वक़्त तो कबीलए गतफान के सरकश कभी हमारी एक खजूर न ले सकें और जब की अल्लाह पाक ने हम लोगों को इस्लाम और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गुलामी की इज़्ज़त से सरफ़राज़ फरमा दिया है तो भला क्यूं कर मुमकिन है की हम अपना माल इन काफिरों को दे देंगें? हम इन कुफ्फार को खजूरों का अम्बार नहीं बल्कि नेज़ो और तलवारों की मार का तोहफा देते रहेंगें यहाँ तक की अल्लाह पाक हमारे और इन के दरमियान फैसलसा फरमा देगा, ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुश हो गए और आप को पूरा पूरा इत्मीनान हो गया |

खंदक की वजह से दस्त बा दस्त लड़ाई नहीं हो सकती थी और कुफ्फार हैरान थे की इस खनदक को क्यूं कर पार करेंगें मगर दोनों तरफ से रोज़ाना बराबर तीर और पथ्थर चला करते थे आखिर एक रोज़ अम्र बिन अब्दे वुद व इकरिमा बिन अबू जहल व हबीरा बिन अबी वहब व ज़रार बिन अल खत्ताब वगैरा कुफ्फार के चंद बहादुरों ने बनू किनाना से कहा की उठो आज मुसलमानो से जंग कर के बता दो की शह सवार कौन है? चुनान्चे ये सब खंदक के पास आ गए और एक ऐसी जगह से जहाँ खंदक की चौड़ाई कुछ कम थी घोड़ा कुदा कर खंदक को पार कर लिया | 

अम्र बिन अब्दे वुद मारा गया

सब से आगे अम्र बिन अब्दे वुद था ये अगरचे ये 90, नव्वे बरस का बुढ्ढा था मगर एक हज़ार सवारों के बराबर बहादुर माना जाता था जंगे बद्र में ज़ख़्मी हो कर भाग निकला था और इस ने ये कसम खा रखी थी की जब तक मुसलमानो से बदला न ले लूँगा बालों में तेल न डालूँगा, ये आगे बड़ा और चिल्ला चिल्ला कर मुकाबले की दावत देने लगा तीन मर्तबा इस ने कहा की कौन है जो मेरे मुकाबले में आता है? तीनो हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम ने उठ कर जवाब दिया की “में” | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रोका की ऐ अली ! ये अम्र बिन अब्दे वुद है | हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम ने अर्ज़ किया की जी हाँ में जनता हूँ की ये अम्र बिन अब्दे वुद है लेकिन में इसे से लडूंगा, ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी ख़ास तलवार ज़ुल्फ़िकार अपने दस्ते मुबारक से हैदरे कर्रार शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम के मुक़द्दस हाथ में दे दी और अपने मुबारक हाथों से उन के सरे अनवर पे इमामा बांधा और ये दुआ फ़रमाई की या अल्लाह पाक ! तू अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम की मदद फरमा | हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम मुजाहिदाना शान से उस के सामने खड़े हो गए और दोनों में इस तरह मुकालमा (बात चीत) शुरू हुई:

हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ऐ अम्र बिन अब्दे वुद ! तू मुस्लमान हो जा
अम्र बिन अब्दे वुदये मुझ से कभी हरगिज़ हरगिज़ नहीं हो सकता |
हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुलड़ाई से वापस चला जा | 
अम्र बिन अब्दे वुदये मुझे मंज़ूर नहीं |
हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुतो फिर मुझ से जंग कर |
अम्र बिन अब्दे वुद को जंग की दावत देगाहंस कर कहा की में कभी ये सोच भी नहीं सकता था की दुनिया में कोई मुझ को जंग की दावत देगा
हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुलेकिन में तुझ से लड़ना चाहता हूँ |
अम्र बिन अब्दे वुद  आखिर तुम्हारा नाम क्या है ?
हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुअली बिन अबी तालिब |
अम्र बिन अब्दे वुदऐ भतीजे ! तुम अभी बहुत ही कम उम्र हो में तुम्हारा खून बहाना पसंद नहीं करता |
हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुलेकिन में तुम्हारा खून बहाने को बहुत पसंद करता हूँ |

अम्र बिन अब्दे वुद खून खोला देने वाले ये गर्म गर्म जुमले सुन कर मारे गुस्से के आपे से बाहर हो गया | हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम पैदल थे और ये सवार था इस पर जो गैरत सवार हुई तो घोड़े से उतर पड़ा और अपनी तलवार से घोड़े के पाऊं काट दिए और नग्गी तलवार ले कर आगे बड़ा  हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम पर तलवार का भरपूर वार किया | हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम ने तलवार के इस वार को अपनी ढाल पर रोका, ये वार इतना सख्त था की तलवार ढाल और इमामे को कटती हुई पेशानी पर लगी गो बहुत गहरा ज़ख्म नहीं लगा मगर फिर भी ज़िन्दगी भर ये तुगरा आप की पेशानी पर यादगार बन कर रह गया | हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम ने तड़प कर ललकारा की ऐ अम्र ! संभल जा अब मेरी बारी है ये कह कर हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम ने तलवार का ऐसा जचा तुला हाथ मारा की तलवार दुश्मन के कंधे को काटती हुई कमर से पार हो गई वो तड़प कर ज़मीन पर गिर गया और फ़ौरन मर कर जहन्नम रसीद हो गया | और मैदाने कारज़ार ज़बाने हाल से पुकार उठा |

शाहे मरदा, शेरे यज़दां क़ुव्वते परवर दीगर 

 ला फता इल्ला अली ला सैफ इल्ला ज़ुल्फ़िक़ार  

हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने उस को क़त्ल किया और मुँह फेर कर चल दिए हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने कहा की ऐ अली ! आप ने अम्र बिन अब्दे वुद की ज़िरह क्यूं नहीं उतार ली? सारे अरब में इससे अच्छी कोई ज़िरह नहीं है आपने फ़रमाया की ऐ उमर रदियल्लाहु अन्हु ज़ुल्फ़िकार की मार से वो इस तरह बे करार हो कर ज़मीन पर गिरा की उस की शर्मगाह खुल गई इस लिए हया की वजह से में ने मुँह फेर लिया |

नौफल की लाश

इस के बाद नौफल गुस्से में बिफरा हुआ मैदान में निकला और पुकारने लगा की मेरे मुकाबले के लिए कौन आता है? हज़रते ज़ुबेर बिन अल अव्वाम रदियल्लाहु अन्हु उस पर बिजली की तरह झपटे और ऐसी तलवार मारी की वो दो टुकड़े हो गया और तलवार ज़ीन को काटती हुई घोड़े की कमर तक पहुंच गई लोगों ने कहा की ऐ ज़ुबेर ! तुम्हारी तलवार की तो मिसाल नहीं मिल सकती | आप ने फ़रमाया के तलवार क्या चीज़ है? कलाई में दम खम और ज़र्ब में कमाल चाहिए | हबीरा और ज़रार भी बड़े तन तने से आगे बड़े मगर जब ज़ुल्फ़िकार का वार देखा तो लरज़ कर बर अंदाम हो कर फरार हो गए कुफ्फार के बाकि शाह सवार भी जो जो खन्दक को पार कर के आ गए थे वो सब भी भाग खड़े हुए और अबू जहल के बेटा इकरिमा तो इस क़द्र बद हवास हो गया की अपना नेज़ा फेंक कर भगा और खंदक के पार जा कर उस को करार आया |

बाज़ मुअर्रिख़ीन का कौल है की नौफल को हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने क़त्ल किया और बाज़ ने ये कहा है की नौफल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हमला करने की गरज़ से अपने घोड़े को कुदा कर खंदक को पार करना चाहता था की खुद ही खंदक में गिर पड़ा और उस की गर्दन टूट गई और वो मर गया कुफ्फारे मक्का ने दस हज़ार दिरहम में उस की लाश को ले जाना चाहा ताकि वो उस को ऐजाज़ के साथ दफन करें हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रकम लेने से इंकार फरमा दिया और इरशाद फ़रमाया की हम को इस लाश से कोई गरज़ नहीं मुश्रिकीन इस को ले जाएं और दफन करें हमे इस पर कोई ऐतिराज़ नहीं है |

उस दिन का हमला बहुत ही सख्त था दिन भर लड़ाई जारी रही और दोनों तरफ से तीर अंदाज़ी और पथ्थर बाज़ी का सिलसिला बराबर जारी रहा और किसी मुजाहिद का अपनी जगह से हटना न मुमकिन था | खालिद बिन वलीद ने अपनी फौज के साथ एक जगह से खंदक को पार कर लिया और बिलकुल ही अचानक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खेमे पर हमला आवर हो गया मगर हज़रते उसैद बिन हुज़ैर रदियल्लाहु अन्हु ने उस को देख लिया और दो सौ मुजाहिदीन को साथ ले कर दौड़ पड़े खालिद बिन वलीद के दस्ते के साथ दस्त बदस्त की लड़ाइयों में टकरा गए और खूब जम कर लड़े इस लिए कुफ्फार खेमे अतहर तक न पहुंच सके |

इस घमसान की लड़ाई में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नमाज़े असर क़ज़ा हो गई | बुखारी शरीफ की रिवायत है की हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु जंगे खन्दक के दिन सूरज ग़ुरूब होने के बाद कुफ्फार को बुरा भला कहते हुए हुज़ूर की बारगाह में हाज़िर हुए और अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में नमाज़े असर नहीं पड़ सका | तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की में ने भी अभी तक नमाज़े असर नहीं पड़ी है फिर आप ने वादिए बतहान में सूरज ग़ुरूब हो जाने के बाद नमाज़े असर कज़ा पड़ी फिर इस के बाद नमाज़े मगरिब अदा फ़रमाई | और कुफ्फार के हक़ में ये दुआ मांगी की:

अल्लाह पाक इन मुशरिकों के घरों और इन की क़ब्रों को आग से भर दे इन लोगों ने हम को नमाज़े वुस्ता से रोक दिया यहाँ तक की सूरज डूब गया |

जंगे खनदक के दिन ये दुआ भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल ने फ़रमाई:

ऐ अल्लाह पाक ! ऐ किताब नाज़िल फरमाने वाले ! जल्द हिसाब लेने वाले ! तू इन कुफ्फार के लश्करों को शिकस्त दे दे, ऐ अल्लाह पाक ! इन को शिकस्त दे दे और इन्हें झंझोड़ दे |

हज़रते ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हु को ख़िताब मिला

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल ने जंगे खंदक के मोके पर जब की कुफ्फार मदीने का मुहासरा किये हुए थे और किसी के लिए शहर से बाहर निकलना दुश्वार था तीन बार इरशाद फ़रमाया की कौन है जो कोमे कुफ्फार की खबर लाए तीनो बार हज़रते ज़ुबेर बिन अल अव्वाम रदियल्लाहु अन्हु जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफी हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा के बेटे हैं ये कहा की “में या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खबर लाऊंगा | हज़रते ज़ुबेर बिन अल अव्वाम रदियल्लाहु अन्हु की इस जाँनिसारी से खुश हो कर ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की:

हर नबी के लिए हवारी (खास मददगार) होते हैं और मेरा हवारी “ज़ुबेर” है | इस तह हज़रते ज़ुबेर को बारगाहे रिसालत से “हवारी” का ख़िताब मिला जो किसी दूसरे सहाबी को नहीं मिला |

हज़रते साद बिन मुआज़ रदियल्लाहु अन्हु शहीद

इस जंग में मुसलमानो का जानी नुकसान बहुत ही कम हुआ यानि कुल छह 6, मुस्लमान शहादत से सरफ़राज़ हुए मगर अंसार का सब से बड़ा बाज़ू टूट गया यानि हज़रते साद बिन मुआज़ रदियल्लाहु अन्हु जो कबीलए ओस के सरदारे आज़म थे | इस जंग में एक तीर से ज़ख़्मी हो गए और फिर शिफ़ायाब न हो सके| 

आप की शहादत का वाकिअ ये है की:

आप एक छोटी सी ज़िरह पहने हुए जोश में भरे हुए नेज़ा ले कर लड़ने के लिए जा रहे थे की इब्नुल अरका नामी काफिर ने ऐसा निशाना बांध कर तीर मारा की जिससे आप की एक रग जिस का नाम अक हल है वो कट गई | जंग खत्म हो गई तो इन के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल ने मस्जिदे नबवी में एक खेमा गाड़ा और इन का इलाज करना शुरू कर दिया | खुद अपने दस्ते मुबारक से इन के ज़ख्म को दो बार दागा इसी हालत में आप एक मर्तबा बनी क़ुरैज़ा तशरीफ़ ले गए और वहां यहूदियों के बारे में अपना वो फैसला सुनाया जिस का ज़िक्र “ग़ज़वए क़ुरैज़ा” के उन्वान के तहत आएगा | इस के बाद वो अपने खेमे में वापस तशरीफ़ लाए और अब उन का ज़ख्म भरने लगा था लेकिन उन्होंने शोके शहादत में अल्लाह पाक से ये दुआ मांगी थी की:

या अल्लाह पाक ! तू जानता है की किसी कौम से जंग करने की मुझे इतनी ज़ियादा तमन्ना नहीं है जितनी कुफ्फारे कुरेश से लड़ने की तमन्ना है जिन्हो ने तेरे रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को झुटलाया और इन को इनके वतन से निकाला, ऐ अल्लाह पाक ! मेरा तो यही ख्याल है की अब तूने हमारे और कुफ्फारे कुरेश के बीच जंग का खात्मा कर दिया है लेकिन अगर कभी कुफ्फारे कुरेश से कोई जंग बाकी रह गई हो जब तो मुझे तो ज़िंदा रख ताकि में तेरी राह में उन काफिरों से जिहाद करूँ और अगर अब उन लोगों से कोई जंग बाकी नहीं रह गई है तो मेरे इस ज़ख्म को तू फाड़ दे और इसी ज़ख्म में तू मुझे मोत अता फरमा दे|

आप की ये दुआ खत्म होते ही बिलकुल अचानक आप का ज़ख्म फट गया और खून बह कर मस्जिदे नबवी के अंदर बनी गिफार के खेमे में पहुंच गया | उन लोगों ने चौंक कर कहा की ऐ खेमे वालों ! कैसा खून है जो तुम्हारे खेमे से बह कर हमारी तरफ आ रह है? जब लोगों ने देखा तो हज़रते साद बिन मुआज़ रदियल्लाहु अन्हु के ज़ख्म से खून बह रहा था इसी ज़ख्म से उन का विसाल हो गया |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की साद बिन मुआज़ की मोत से अरशे इलाही हिल गया और इनके जनाज़े में सत्तर हज़ार फ़रिश्ते हाज़िर हुए और जब इन की कब्र खोदी गई तो उस में मुश्क की खुशबू आने लगी |ऐन वफ़ात के वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन के सिरहाने तशरीफ़ फरमा थे, इन्हों ने आँख खोल कर आखरी बार जमाले नबुव्वत का नज़ारा किया और कहा की “अस्सलामु अलैका या रसूलल्लाह” फिर बा आवाज़े बुलंद ये कहा की में गवाही देता हूँ की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह पाक के रसूल हैं और आप ने तबलीग़े रिसालत का हक अदा कर दिया | 

हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा की बहादुरी

जंगे ख़न्दक में एक ऐसा मोका भी आया की जब यहूदियों ने देखा की सारी मुसलमान फ़ौज ख़न्दक की तरफ मसरूफ़े जंग है तो जिस किले में मुसलमानो की औरतों और बच्चे पनाह गुज़ी थे यहूदियों ने अचानक उस पर हमला कर दिया और एक यहूदी दरवाज़े पर पहुंच गया हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफी हज़रते  सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा ने उस को देख लिया और हज़रते हस्सान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु से कहा की तुम इस यहूदी को क़त्ल कर दो वरना यह जाकर दुश्मनो को यहाँ का हाल व माहौल बता देगा हज़रते हस्सान रदियल्लाहु अन्हु की उस वक़्त हिम्मत नहीं पड़ी की उस यहूदी पर हम्ला करे यह देख कर खुद हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा ने ख़ैमे की एक चूब उखाड़ कर उस यहूदी के सर पर ज़ोर से मारा कि उसका सर फट गया फिर खुद ही उसका सर काट कर किले के बाहर फेंक दिया यह देख कर हम्ला आवर यहूदियों को यक़ीन हो गया की किले के अंदर भी कुछ फ़ौज मौजूद है इस डर से उन्हों ने फिर इस तऱफ हमला करने की जुरअत ही नहीं की | 

क़ुफ़्फ़ार कैसे भागे ?

हज़रते नुऐम बिन मसऊद अशजई रदियल्लाहु अन्हु क़बीलए गफतान कि बहुत ही मुअज़्ज़ज़ सरदार थे और क़ुरैश व यहूद दोनों को इन की ज़ात पर पूरा पूरा एतिमाद था ये मुसलमान हो चुके थे लेकिन क़ुफ़्फ़ार को इन के इस्लाम का इल्म न था इन्हो ने बारगाहे रिसालत में यह दरख्वास्त की, कि या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम अगर आप मुझे इजाज़त दे तो में यहूद और क़ुरैश दोनों से ऐसे गुफ़्त्गू करुँ कि दोनों में फूट पड़ जाए आप ने इसकी इजाज़त दे दी चुनान्चे उन्होंने यहूद और क़ुरैश से अलग अलग कुछ इस क़िस्म की बाते की जिस से वाकई दोनों में फूट पड़ गयी अबू सुफ़्यान शदीद सर्दी के मौसिम तवील मुहासरा फ़ौज का राशन ख़त्म हो जाने से हैरान व परेशान था जब इसको यह पता चला की यहूदियों ने हमारा साथ छोड़ दिया है तो इसका हौंसला पस्त हो गया और वो बिल्कुल ही बद दिल हो गया फिर अचानक कुफ़्फ़ार के लश्कर पर कहरे क़ह्हार बा ग़ज़बे जब्बार की ऐसी मार पड़ी की अचानक मशरिक की जानिब से ऐसी तूफ़ान ख़ेज़ आंधी आयी की देगें चूल्हों पर उलट पलट हो गई ,खैमे उखड़ उखड़ कर उड़ गए और क़ाफ़िरो पर वशहत और दहशत सवार हो गई की उन्हें राहे फ़िरार इख़्तियार करने कि सिवा कोई चारए कार ही नहीं रहा, यही वो आंधी है जिसका ज़िक्र खुदा बन्दे क़ुद्दूस ने क़ुरआन शरीफ पारा 21, सूरह अहज़ाब आयत में इस तरह बयान फ़रमाया कि:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- ऐ ईमान वालों खुदा की उस नेमत को याद करो जब तुम पर फौजें आ पड़ीं तो हमने उन पर आंधी भेज दी | और ऐसी फौजें भेजीं जो तुम्हें नज़र नहीं आती थीं और अल्लाह पाक तुम्हारे कामो को देखने वाला है |अबू सुफियान ने अपनी फौज में ऐलान करा दिया की राशन खत्म हो चुका, मौसिम इंतिहाई ख़राब है यहूदियों ने हमारा साथ छोड़ दिया लिहाज़ा अब मुहासरा बेकार है ये कह कर चूक का नक्कारा बजा देने का हुक्म दे दिया बनू क़ुरैज़ा भी मुहासरा छोड़ कर अपने किलों में चले गए और इन लोगों के भाग जाने से मदीने का मत्लअ कुफ्फार के गरदो गुबार से साफ हो गया |

रेफरेन्स (हवाला)

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,)    

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