हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 15)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 15)

ग़ज़वए बनी क़ुरैज़ा

हुज़ूर सल्ललाहु अलैहि वसल्लम जंगे ख़ंदक़ से फारिग हों कर अपने मकान में तशरीफ़ लाए और हथियार उतर कर फ़रमाया अभी इत्मीनान के साथ बैठे भी नहीं थे की अचानक हज़रते जिब्रील अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए और कहा की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप ने हथ्यार उतार दिया लेकिन हम फिरिश्तो की जमाअत ने अभी तक हथ्यार नहीं उतारा है अल्लाह तआला का यह हुकम है की आप सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम बनी क़ुरैज़ा की तरफ चले क्यों की इन लोगो ने मुआहिदा तोड़ कर ऐलानिया जंगे ख़ंदक़ में कुफ्फार के साथ के मिल कर मदीने पैर हमला किया है |

चुनांचे हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने एलान कर दिया की लोग अभी हथियार न उतारे और बनी क़ुरैज़ा की तरफ रवाना हो जाए हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने खुद भी हथियार ज़ेबे तन फ़रमाया अपने घोड़े पर जिस का नाम “लहीफ” था सवार हो कर लश्कर के साथ चल पड़े और बनी क़ुरैज़ा के एक कूँऐं के पास पहुंच कर नुज़ूल फ़रमाया |

बनी क़ुरैज़ा भी जंग के लिए बिलकुल तैयार थे चुनांचे जब हज़रते अली रदीअल्लाहु तआला अन्हु उन के किलो के पास पहुंचे तो उन ज़ालिम और अहद शिकन यहुदीओ ने हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम को मआज़ अल्लाह गालियां दी.हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन किलो का मुहासिरा फरमा लिया और तक़रीबन एक महीने तक यह मुहासिरा जारी रहा यहूदिओं ने तंग आ कर यह दरख्वास्त पेश की की हज़रते साद बिन मुआज रदीअल्लाहु तआला अन्हु हमारे बारे में जो फैसला कर दे वोह हमें मंज़ूर है |

हज़रते साद बिन मुआज़ रदीअल्लाहु तआला अन्हु जंगे ख़ंदक़ में एक तीर खा कर शदीद तौर पर जख्मी थे मगर ऐसी हालत में एक गधे पर सवार हो कर बनी क़ुरैज़ा गए और उन्हों ने यहूदिओं के बारे में यह फैसला फ़रमाया की 

लड़ने वाली फौजो को क़त्ल कर दिया जाए औरतो और बच्चे कैदी बना लिए जाए और यहुदीओ का माल व् असबाब माले गनीमत बना कर मुजाहिदों में तक़सीम कर दिया जाए | हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने उन की ज़बान से ये फैसला सुन कर इरशाद फ़रमाया की यक़ीनन बिला शुबा तुम ने इन यहूदिओं के बारे में वोही फैसला सुनाया है जो अल्लाह का फैसला है | इस फैसले के मुताबिक़ बनी क़ुरैज़ा की लड़ाका फौजे क़त्ल की गई और औरतो बच्चो को कैदी बना लिया गया और उन के माल व् सामान को मुजाहिदीन ऐ इस्लाम ने माले गनीमत बना लिया और इस शरीर व् बद अहद कबीले के शर व् फसाद से हमेशा के लिए मुस्लमान पुर अम्न व महफूज़ हो गए |

यहूदिओं का सरदार हुयी बिन अख्तब जब क़त्ल के लिए मक़्तल में लाया गया तो उस ने क़त्ल होने से पहले यह अल्फ़ाज़ कहे की 

ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुदा की कसम मुझे इस जरा भी अफ़सोस नहीं की में ने क्यूं तुम से अदावत की लेकिन हक़ीक़त यह है की जो खुदा को छोड़ देता है खुदा भी उसे छोड़ देता है लोगो खुदा के हुक्म की तामील में कोई मुज़ाइका नहीं बनी क़ुरैज़ा का क़त्ल होना यह एक हुक्मे इलाही था यह तौरात में लिखा हुवा था यह सज़ा एक थीं जो खुदा ने बनी इसराइल पर लिखी थी |

ये हुयी बिन अखतब वही बद नसीब है की जब वो मदीने से जिला वतन हो कर खैबर जा रहा था तो उस ने ये मुआहिदा किया की नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुखालफत पर में किसी को मदद न दूंगा और इस अहद पे उस ने खुद को ज़ामिन बनाया था लेकिन जंगे खंदक के मोके पे उस ने इस मुआहिदे को किस तरह तोड़ डाला ये आप आगे पढ़ चुके की उस ज़ालिम के तमाम कुफ्फारे अरब के पास दौड़ा कर के सब को मदीने पर हमला कर ने के लिए उभारा फिर बनू क़ुरैज़ा को भी मुआहिदा तोड़ने पर उकसाया फिर खुद जंग के खंदक में कुफ्फार के साथ मिल कर लड़ाई में शामिल हुआ |

सं. 5, हिजरी के मुतफ़र्रिक़ वाक़िआत :- 

  • इस साल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते बीबी ज़ैनब बिन्ते जहश रदियल्लाहु अन्हा से निकाह फ़रमाया |
  • इसी साल मुसलमान औरतों पर पर्दा फ़र्ज़ कर दिया गया | 
  • इसी साल क़ज़फ़ यानि किसी पर तोहमत लगाने की सज़ा और लिआन व ज़िहार के अहकाम नाज़िल हुए |
  • इसी साल तयम्मुम की आयात नाज़िल हुई |
  • इसी साल नमाज़े खौफ का हुक्म नाज़िल हुआ | 

“हिजरत का छठा साल” 

बैअतुर रिज़वान व सुलेह हुदैबिया

इस साल के तमाम वाक़िआत में सब ज़ियादा अहम और शानदार वाक़िआत “बैअतुर रिज़वान” और “सुलेह हुदैबिया” है | तारीखे इस्लाम में इस वाकिए की बड़ी अहमियत है | क्यूं की इस्लाम की तमाम आइंदा तरक्कियों का राज़ इसी के दामन से बवस्ता है | यही वजह है की गो बा ज़ाहिर ये एक मग़्लूबाना सुलह थी मगर क़ुरआने मजीद में खुदा वनदे आलम ने इस को “फ़तेह मुबीन” का लक़ब अता फ़रमाया है |

ज़ुल क़ादा सा. 6, हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चौदह सौ सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के साथ उमराह का एहराम बाँध कर मक्के के लिए रवाना हुए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अंदेशा था की शायद कुफ्फारे मक्का हमे उमराह अदा करने से रोकेंगे इस लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहले ही कबीलए ख़ूज़ाआ के एक शख्स को मक्के भेज दिया था ताकि वो कुफ्फारे मक्का के इरादों की खबर लाए | जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का काफिला मक़ामे “असफान” के करीब पहुंचा तो वो शख्स ये खबर ले कर आया की कुफ्फारे मक्का ने तमाम कबाइले अरब के काफिरों को जमा कर के ये कह दिया है की मुसलमानो को हरगिज़ हरगिज़ मक्के में दाखिल न होने दिए जाएं | चुनांचे कुफ्फारे कुरेश ने अपने तमाम हम नवा कबाइल को जमा कर के एक फौज तय्यार कर ली और मुसलमानो का रास्ता रोकने के लिए मक्का से बाहर निकल कर मक़ामे “बलदह” में पड़ाव डाल दिया | और खालिद बिन वलीद और अबू जहल का बेटा इकरिमा ये दोनों दो सौ चुनेइ हुए सवारों का दस्ता ले कर मक़ामे “गामीम” तक पहुंच गए | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को रास्ते में दाखिल बिन वलीद के सवारों की गर्द नज़र आई तो आप  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शारह से हट कर सफर शुरू कर दिया और आम रास्ते से हट कर आगे बढ़े और मक़ामे “हुदैबिया” में पहुंच कर पड़ाव डाला | यहाँ पानी की बेहद कमी थी | एक ही कुँआ था वो भी चंद घंटों ही में खुश्क हो गया| जब सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम प्यास से बेताब होने लगे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बड़े प्याले में अपना दस्ते मुबारक डाल दिया और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुक़द्दस उँगलियों से पानी का चश्मा जारी हो गया | फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुश्क कुँए में अपने वुज़ू का बचा हुआ पानी और अपना एक तीर डाल दिया | कुँए में इस क़द्र पानी उबल पड़ा की पूरा लश्कर और तमाम जानवर उस कुँए से कई दिनों तक सेराब होते रहे |  

बैअतुर रिज़वान

मक़ामे हुदैबिया में पहुंच कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये देखा की कुफ्फारे कुरेश का एक अज़ीम लश्कर जंग के लिए आमादा है और इधर ये हाल है की सब लोग एहराम बांधें हुए हैं इस हालत में जोई भी नहीं मार सकते तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुनासिब समझा की कुफ्फारे मक्का से मस्लिहत की गुफ्तुगू कर ने के लिए किसी को मक्के भेज दिया जाए | चुनांचे इस काम के लिए आप ने हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु को मुन्तख़ब फ़रमाया | लेकिन उन्हों ने ये कह कर माज़िरत कर दी की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! कुफ्फारे कुरेश मेरे बहुत ही सख्त दुश्मन है और मक्का में मेरे कबीले का कोई एक शख्स भी ऐसा नहीं है जो मुझ को उन काफिरों से बचा सके | ये सुन कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उस्मान रदियल्लाहु अन्हु को मक्के भेजा उन्हों ने मक्के पहुंच कर कुफ्फारे कुरेश को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से सुलाह का पैगाम पहुंचाया | हज़रते उस्मान रदियल्लाहु अन्हु अपनी मालदारी और अपने कबीले वालों की हिमायत व पासदारी की वजह से कुफ्फारे कुरेश की निगाहों में बहुत ज़ियादा मुअज़्ज़ज़ थे | इस लिए कुफ्फारे कुरेश उन पर कोई दराज़ दस्ती नहीं कर सकते | बल्कि उन से ये कहा की हम आप को इजाज़त देते हैं की आप काबे का तवाफ़ और सफा मरवा की सई कर के अपना उमराह अदा करलें मगर हम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कभी हरगिज़ हरगिज़ काबे के करीब न आने देंगें | हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु ने इंकार कर दिया और कहा की में बगैर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को साथ लिए कभी हरगिज़ हरगिज़ कभी अकेले अपना उमराह नहीं अदा कर सकता | इस पर बात बढ़ गई और कुफ्फारे मक्का ने आप को मक्के में रोक लिया | 

मगर हुदैबिया के मैदान में ये खबर मशहूर हो गई की कुफ्फारे कुरेश ने उन को शहीद कर दिया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जब ये खबर पहुंची तो तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की उस्मान के खून का बदला लेना फ़र्ज़ है | ये फरमा कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बलूल के पेड़ के नीचे बैठ गए और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम से फ़रमाया की तुम सब लोग मेरे हाथ पर इस बात की बैअत करो की आखिरी दम तक तुम लोग मेरे वफादार और जां निसार रहोगे | तमाम सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने निहायत ही वलवला अंगेज़ जोशो खरोश के साथ जां निसरि का अहिद करते हुए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दस्ते हक परस्त पर बैअत कर ली | यही बैअत है जिस का नाम तारीखे इस्लाम में “बैअतुर रिज़वान” है | अल्लाह पाक कुरआन शरीफ पारा 26, सूरह फतह आयत 10, में फरमाता है की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- यक़ीनन जो लोग (ऐ रसूल) तुम्हारी बैअत करते हैं वो तो अल्लाह ही से बैअत करते हैं उन के हाथों पर अल्लाह का हाथ है | इसी सूरह फतह में दूसरी जगह इन बैअत करने वालों की फ़ज़ीलत और इन के अजरो सवाब का क़ुरआने मजीद में इस तरह खुत्बा पढ़ा कुरआन शरीफ पारा 26, सूरह फतह आयत 18, में फरमाता है की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- बेशक अल्लाह राज़ी हुआ ईमान वालों से जब वो दरख्त के नीचे तुम्हारी बैअत करते थे तो अल्लाह ने जाना जो उन के दिलों में है फिर उन पर इत्मीनान उतार दिया और उन्हें जल्द आने वाली फ़तेह का इनाम दिया | लेकिन “बैअतुर रिज़वान” हो जाने के बाद पता चला की हज़रते उस्मान रदियल्लाहु अन्हु की शहादत की खबर गलत थी | वो बा इज़्ज़त तौर पर मक्के में ज़िंदा व सलामत थे और फिर वो बा खेरो आफ़ियत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर भी हो गए |

सुलेह हुदैबिया क्यूंकर हुई?

हुदैबिया में सब से पहला शख्स जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुआ वो बुदैल बिन वरका खुज़ाई था | इन का कबीला अगरचे अभी तक मुसलमान नहीं हुआ था मगर ये लोग हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हलीफ़ और इंतिहाई मुख्लिस व खेर ख़्वाह थे | बुदैल बिन वरका ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खबर दी की कुफ्फारे कुरेश ने कसीर तादाद में फौज जमा कर ली है और फौज के साथ राशन के लिए दूध वाली ऊंटनियां भी हैं| ये लोग आप से जंग करेंगें और आप को खानए काबा तक नहीं पहुंच ने देंगें |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की तुम कुरेश को मेरा ये पैगाम पंहुचा दो की हम जंग के इरादे से नहीं आए हैं और न हम जंग चाहते हैं | हम यहाँ सिर्फ उमरा अदा कर ने की गरज़ से आए हैं मुसलसल लड़ाइयों से कुरेश को बहुत काफी जानी व माली नुक्सान पहुंच चुका है | लिहाज़ा उन के हक में भी यही बेहतर है की वो जंग न करें बल्कि मुझ से एक मुद्दते मुअय्यना तक के लिए सुलह का मुआहिदा कर लें और मुझ को अहले रब के हाथ में छोड़ दें | अगर कुरेश मेरी बात मान लें तो अच्छा होगा और अगर उनहोंने मुझ से जंग की तो मुझे उस ज़ात की कसम है जिस के क़ब्ज़ए कुदरत में मेरी जान है की में उन से उस वक़्त तक लडूंगा की मेरी गरदन मेरे बदन से अलग हो जाए |

बुदैल बिन वरका आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये पैगाम ले कर कुफ्फारे कुरेश के पास गया और कहा की में मुहम्मद  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का एक पैगाम ले कर आया हूँ | अगर तुम लोगों की मर्ज़ी हो तो में उन का पैगाम तुम लोगों को सुनाऊँ | कुफ्फारे कुरेश के शरारत पसंद लौंडों जिन का जोश उन के होश पर ग़ालिब था शोर मचाने लगे की नहीं ! हरगिज़ नहीं ! हमे उन का पैगाम सुनने की कोई ज़रूरत नहीं | लेकिन कुफ्फारे कुरेश के संजीदा और समझदार लोगों ने पैगाम सुनाने की इजाज़त दे दी और  बुदैल बिन वरका ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दावते सुलाह को उन लोगों के सामने पेश कर दिया | ये सुन कर कबीलए कुरेश का एक बहुत ही मुअम्मर और मुअज़्ज़ज़ सरदार उरवा बिन मसऊद सक़फ़ी खड़ा हो गया और उसने कहा की ऐ कुरेश ! क्या में तुम्हारा बाप नहीं? सब ने कहा की क्यूं नहीं फिर उस ने कहा की क्या तुम लोग मेरे बच्चे नहीं? सब ने कहा की क्यूं नहीं | फिर उस ने कहा की मेरे बारे में तुम लोगों को कोई बदगुमानी तो नहीं? सब ने कहा की नहीं ! हर गिज़ नहीं इस के बाद उरवा बिन मसऊद ने कहा की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बहुत ही समझदारी और भलाई की बात पेश कर दी | लिहाज़ा तुम लोग मुझे इजाज़त दो की में उन से मिल कर मुआमला तै करून सब ने इजाज़त दे दी की बहुत अच्छा ! आप जाओ उरवा बिन मसऊद वहां से चल कर हुदैबिया के मैदान में पंहुचा और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुख़ातब कर के ये कहा की बुदैल बिन वरका की ज़बानी आप का पैगाम हमें मिला | 

ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लममुझे आप से ये कहना है की अगर आप ने लड़कर कुरेश को बर्बाद कर के दुनिया से नेस्तो नाबूद कर दिया तो मुझे बताओ की क्या आप से पहले कभी किसी रब ने किसी कोम को बर्बाद किया है? और अगर लड़ाई में कुरेश का पल्ला भारी पड़ा तो आप के साथ जो ये लश्कर है में इन में ऐसे चेहरों को देख रहा हूँ की ये सब आप को तन्हा छोड़ कर भाग जाएं उरवा बिन मसऊद का ये जुमला सुन कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हा को सब्रो ज़ब्त की ताब न रही उन्हों ने तड़प कर कहा की ऐ उरवा ! चुप हो जाओ ! अपनी देवी लात की शर्मगाह चूस क्या हम भला अल्लाह पाक के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को छोड़ कर भाग जाएं |

उरवा बिन मसऊद ने तअज्जुब से पूछा की ये कौन शख्स है? लोगों ने कहा की “ये अबू बक्र” हैं उरवा बिन मसऊद ने कहा की “ये अबू बक्र” हैं उरवा बिन मसऊद ने कहा की मुझे उस ज़ात की कसम जिस के कब्ज़े में मेरी जान है ऐ बू बकर और अगर तेरा एक एहसान मुझ पर न होता जिस का बदला में अब तक तुझ को नहीं दे सका हूँ तो में तेरी इस तल्ख़ गुफ्तुगू का जवाब देता उरवा बिन मसऊद अपने को सब में बड़ा आदमी समझता था इस लिए जब भी वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कोई बात कहता तो हाथ बड़ा कर वो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रेश मुबारक पकड़ लेता था और बार बार आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स दाढ़ी पर हाथ डालता था हज़रते मुगीरा बिन शअबा रदियल्लाहु अन्हु जो नग्गी तलवार ले कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पीछे खड़े थे वो उरवा बिन मसऊद की इस जुरअत और हरकत को बर्दाश्त न कर सके | उरवा बिन मसऊद जब रेश मुबारक की तरफ हाथ बढ़ाता तो वो तलवार का कब्ज़ा उस के हाथ पर मार कर उस से कहते की रेश मुबारक से अपना हाथ हटा ले | उरवा बिन मसऊद ने अपना सर उठाया और पूछा की ये कौन आदमी है? लोगों ने बताया की ये मुगीरा बिन शअबा हैं तो उरवा बिन मसऊद ने डांटा और कहा की ऐ दगाबाज़ ! क्या में तेरी अहद शिकनी को संभालने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ? (हज़रते मुगीरा बिन शअबा रदियल्लाहु अन्हु) ने चंद आदमियों को क़त्ल कर दिया था ये उसी तरफ इशारा था |

इस के बाद उरवा बिन मसऊद सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को देखने लगा और पूरी लश्कर गाह को देख भाल  कर वहां से रवाना हो गया | उरवा बिन मसऊद ने हुदैबिया के मैदान में सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम की हैरत अंगेज़ और तअज्जुब ख़ेज़ अक़ीदत व मुहब्बत का जो मंज़र देखा था इस ने उस के दिल पर बड़ा अजीब असर डाला था चुनांचे उस ने कुरेश के लश्कर में पहुंच कर अपना तअस्सुर इन लफ़्ज़ों में बयान किया |

ऐ मेरी कौम ! खुदा की कसम ! जब मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपना खंखार थूकते हैं तो वो किसी न किसी सहाबी के हथेली में पड़ता है और और वो अकीदत में उस को अपने चेहरे और अपनी खाल पर मल लेता है और अगर वो किसी बात का उन लोगों को हुक्म देते हैं तो सब के सब उस की तामील के लिए झपट पड़ते हैं और वो जब वुज़ू करते हैं तो उन के असहाब उन के वुज़ू के धोवन को इस तरह लूटते हैं की गोया उन में तलवार चल पड़ेगी और वो जब कोई गुफ्तुगू करते हैं तो तमाम सहाबा खामोश हो जाते हैं | और उन के साथियों के दिलों में उन की इतनी ज़बर दस्त अज़मत है की कोई शख्स उन की तरफ नज़र भर देख नहीं सकता | ऐ मेरी कौम ! खुदा की कसम ! में ने बहुत से बादशाहों का दरबार देखा है | में कैसरो किसरा और नजाशी के दरबारों में भी बारयाब हो चुका हूँ | मगर खुदा की कसम ! में ने किसी बादशाह के दरबारियों को अपने बादशाह की इतनी ताज़ीम करते हुए नहीं देखा है जितनी ताज़ीम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की करते हैं |

उरवा बिन मसऊद की ये गुफ्तुगू सुन कर कबीलए बनी किनाना के एक शख्स ने जिस का नाम “हलीस” था | कहा की तुम लोग मुझ को इजाज़त दो की उन के पास जाऊं | कुरेश ने कहा की ज़रूर जाओ | चुनांचे ये शख्स जब बारगाहे रिसालत के करीब पंहुचा तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम से फ़रमाया की ये फुला शख्स है और ये उस कौम से तअल्लुक़ रखता है जो क़ुरबानी के जानवरों की ताज़ीम करते हैं लिहाज़ा तुम लोग क़ुरबानी के जानवरों को इस के सामने खड़ा कर दो और सब लोग “लब्बैक” पढ़ना शुरू कर दो | उस शख्स ने जब क़ुरबानी के जानवरों को देखा और एहराम की हालत में सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को “लब्बैक” पढ़ते हुए सुना तो कहा की सुबहानल्लाह ! भला इन लोगों को किस तरह मुनासिब है की बैतुल्लाह से रोक दिया जाए? वो फ़ौरन ही पलट कर कुफ्फारे कुरेश के पास पंहुचा और कहा की में ने अपनी आँखों से देखा एहराम की हालत में हैं लिहाज़ा में कभी भी ये राए नहीं दे सकता की उन लोगों को खानए काबा से रोक दिया जाए | इस के बाद एक शख्स कुफ्फारे कुरेश के लश्कर में से खड़ा हुआ जिस का नाम मकरज बिन हफ्स था उस ने कहा की मुझ को तुम लोग वहां जाने दो | कुरेश ने कहा की जैसा                                       उरवा बिन मसऊद तुम भी जाओ चुनांचे ये चल दिया | जब ये नज़दीक पंहुचा तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की ये मक़रज़ है | ये बहुत ही लुच्चा आदमी है इस ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से गुफ्तुगू शुरू की अभी इस की बात पूरी भी न हुई थी की अचानक “सुहैल बिन अम्र” आ गया उस को देख कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने नेक फाली के तौर पर ये फ़रमाया की सुहैल आ गया लो ! अब तुम्हारा मुआमला आसान हो गया चुनांचे सुहैल ने आते ही कहा की आइये हम और आप अपने और आप के दरमियान मुआहिदा की एक दस्तावेज़ लिखलें | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस को मंज़ूर फरमा लिया और हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु को दस्तावेज़ लिखने के लिए तलब फ़रमाया | सुहैल बिन अम्र और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरमियान देर तक सुलाह के शराइत पर बात चीत होती रही | बिला आखिर चंद शर्तों पर दोनों का इत्तिफाक हो गया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु से इरशाद फ़रमाया की लिखो “बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम” सुहैल ने कहा की हम “रहमान” को नहीं जानते की ये क्या है? आप “बिसमिकल्ल्लाहुम” लिखवाओ जो हमारा और आप का पुराना दस्तूर रहा है मुसलमानो ने कहा की हम “बिस्मिल्लाहिर रहमानिर रहीम” के सिवा कोई दूसरा लफ्ज़ नहीं लिखेंगे मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये ये इबारत लिखवाई “हाज़ा मा क़ज़ा मुहम्मदुर रसूलुल्लाह” यानि ये वो शराइत हैं जिन पर कुरेश के साथ मुहम्मदुर रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सुलाह का फैसला किया | सुहैल भड़क गया और कहने लगा की खुदा की कसम ! अगर हम जान लेते की अल्लाह पाक के रसूल हैं तो न हम आप को बैतुल्लाह से रोकते न आप के साथ जंग करते लेकिन आप “मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह” लिखिए | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की खुदा की कसम ! में मुहम्मदुर रसूलुल्लाह भी हूँ और मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह भी हूँ | ये और बात है की तुम लोग मेरी रिसालत को झुट्लाते हो | 

ये कह कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया की मुहम्मदुर रसूलुल्लाह को मिटा दो इस जगह “मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह” लिख दो हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु से ज़ियादा कौन मुस्लमान आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमा बरदार हो सकता है? लेकिन मुहब्बत के आलम में कभी कभी ऐसा मकाम आ जाता है की सच्चे मुहिब को भी अपने महबूब की फरमा बरदारी से मुहब्बत ही के जज़्बे में इंकार करना पड़ता है हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में आप के नाम को तो कभी हरगिज़ नहीं मिटाऊँगा आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अच्छा मुझे दिखाओ मेरा नाम कहाँ हैं हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने उस जगह पर ऊँगली रख दी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वहां से “रसूलुल्लाह” का लफ्ज़ मिटा दिया | बहर हाल सुलाह की तहरीर मुकम्मल हो गई | इस दस्तावेज़ में ये तै कर दिया गया की फ़रीक़ैन के दरमियान दस साल तक लड़ाई बिलकुल नहीं होगी | सुलाह नामे की बाकि दफ़आत और शर्तें ये थीं:

  1. मुस्लमान इस साल बगैर उमराह अदा किए वापस चले जाएं |
  2. आइंदा साल उमरा के लिए आएं और सिर्फ तीन दिन मक्का में ठहर कर वापस चले जाएं |
  3. तलवार के सिवा कोई दूसरा हथियार ले कर न आएं | तलवार भी नियाम के अंदर रख कर थैले वगैरा में बंद हो |
  4. मक्के में जो मुस्लमान पहले से मुकीम हैं उन में से किसी को अपने साथ न ले जाएं और मुसलमानो में से अगर कोई मक्के में रहना चाहे तो उस को न रोकें|
  5. काफिरों या मुसलमानो में से कोई शख्स अगर मदीने चला जाए तो वापस कर दिया जाए लेकिन अगर कोई मुस्लमान मदीने से मक्के में चला जाए तो वो वापस नहीं किया जाए | 
  6. कबाईले अरब को इख़्तियार होगा की वो फ़रीक़ैन में से जिस के साथ चाहे दोस्ती का मुआहिदा कर लें |
  7. ये शर्तें ज़ाहिर हैं की मुसलमानो के सख्त खिलाफ थीं और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को इस पर बड़ी ज़बर दस्त न गवारी हो रही थी वो फरमाने रिसालत के खिलाफ दम मारने से मजबूर थे | 
रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,)

Share this post