हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 16)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 16)

हज़रते अबू जंदल रदियल्लाहु अन्हु का मुआमला

ये अजीब इत्तिफ़ाक़ है की मुआहिदा लिखा जा चुका था लेकिन अभी इस पर फ़रीक़ैन के दस्तखत नहीं हुए थे की अचानक इसी सुहैल बिन अम्र के साहबज़ादे हज़रते अबू जंदल रदियल्लाहु अन्हु अपनी बेड़ियाँ घसीटते हुए गिरते पड़ते हुदैबिया में मुसलमानो के दरमियान पहुंचे | सुहैल बिन अम्र अपने बेटे को देख कर कहने लगा की ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस मुआहिदे की दस्तावेज़ पर दस्तखत करने के लिए मेरी पहली शर्त ये है की आप अबू जंदल को मेरी तरफ वापस लोटाइए | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अभी तो इस मुआहिदे पर फ़रीक़ैन के दस्त खत ही नहीं हुए हैं | हमारे और तुम्हारे दस्तखत हो जाने के बाद ये मुआहिदा नाफ़िज़ होगा ये सुन कर सुहैल बिन अम्र कहने लगा की फिर जाइए | में आप से कोई सुलह नहीं करूंगा | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अच्छा ऐ सुहैल ! तुम अपनी तरफ से इजाज़त दे दो की में अबू जंदल को अपने पास रख लूँ | उस ने कहा की में हरगिज़ कभी इस की इजाज़त नहीं दे सकता | हज़रते अबू जंदल रदियल्लाहु अन्हु ने जब देखा की में फिर मक्के लोटा दिया जाऊँगा तो उन्हों ने मुसलमानो से फर्याद की और कहा की ऐ जमाअते मुस्लीमीन ! देखो में मुशरिकीन की तरफ लौटाया जा रहा हूँ हालां की में मुस्लमान हूँ और तुम मुसलमानो के पास आ गया हूँ कुफ्फार की मार से उन के बदन पर चोटें के जो निशान थे उन्हों उन निशानात को दिखा दिखा कर मुसलमानो को जोश दिलाया |

हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु पर हज़रते अबू जंदल रदियल्लाहु अन्हु की तकरीर सुन कर ईमानी जज़्बा सवार हो गया और वो दन दनाते हुए बारगाहे रिसालत में पहुंचे और अर्ज़ किया की क्या आप सच मुच अल्लाह के रसूल नहीं हैं? इरशाद फ़रमाया की क्यूं नहीं? फिर उन्हों ने कहा की तो फिर हमारे दीन में हम को ये ज़िल्लत क्यूं दी जा रही हैं? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की ऐ उमर ! में अल्लाह का रसूल हूँ में उस की न फ़रमानी नहीं करता हूँ वो मेरा मदद गार हैं फिर हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या आप हम से ये वादा न फरमाते थे की हम अनक़रीब बैतुल्लाह में आ कर तवाफ़ करेंगें? इरशाद फ़रमाया की क्या में ने तुम को ये खबर दी थी की हम इसी साल बैतुल्लाह में दाखिल होंगें? उन्हों ने कहा की “नहीं” आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की में फिर कहता हूँ की तुम यक़ीनन काबे में पहुंचोगे और उस का तवाफ़ करोगे |

दरबारे रिसालत से उठ कर हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के पास आए और वही गुफ्तुगू की जो बारगाहे रिसालत में अर्ज़ कर चुके थे | आप रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की ऐ उमर ! वो खुदा के रसूल हैं वो जो कुछ करते हैं अल्लाह पाक ही के हुक्म से करते हैं वो कभी खुदा की न फ़रमानी नहीं करते और अल्लाह पाक उन का मदद गार है और खुदा की कसम ! यक़ीनन वो हक पर हैं लिहाज़ा तुम उन की रिकाब थामे रहो | हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु को तमाम उम्र इन बातों का सदमा और सख्त रंज व अफ़सोस रहा जो उन्हों ने जज़्बए बे इख़्तियारी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कह दीं थीं | ज़िन्दगी भर वो इससे तौबा व इस्तगफार करते रहे और इस के कफ़्फ़ारे के लिए उन्हों ने नमाज़ें पढ़ीं, रोज़े रखे, खैरात की गुलाम आज़ाद किए | बुखारी शरीफ में अगरचे इन अमाल का मुफ़स्सल तज़किरा नहीं है, इजमालन ही ज़िक्र है लेकिन दूसरी किताबों में निहायत तफ्सील के साथ ये तमाम बातें बयान की गईं हैं |

बाहर हाल ये बड़े सख्त इम्तिहान और आज़माइश का वक़्त था | एक तरफ हज़रते अबू जंदल रदियल्लाहु अन्हु गिड़गिड़ा कर मुसलमानो से फर्याद कर रहे हैं और हर मुस्लमान इस क़द्र जोश में भरा हुआ है की अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अदब माने न होता तो मुसलमानो की तलवारें नियाम से बाहर निकल पड़तीं | दूसरी तरफ मुआहिदे पर दस्तखत हो चुके हैं और अपने अहद को पूरा करने की ज़िम्मेदारी सर पर पड़ी है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मोके की नज़ाकत का ख़याल करते हुए हज़रते अबू जंदल रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया की तुम सब्र करो अन क़रीब अल्लाह पाक तुम्हारे लिए और दूसरे मज़लूमो के लिए ज़रूर ही कोई रास्ता निकालेगा | हम सुलाह का मुआहिदा कर चुके अब हम लोगों से बद अहदी नहीं कर सकते | गरज़ हज़रते अबू जंदल रदियल्लाहु अन्हु को इसी तरह पा बा ज़ंजीर फिर मक्के वापस जाना पड़ा |

जब सुलह नामा मुकम्मल हो गया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को हुमक दिया की उठो और क़ुरबानी करो और सर मुंडा कर एहराम खोल दो | मुसलमानो की न गवारी और उन के ग़ैज़ो गज़ब का ये आलम था की फरमाने नबवी सुन कर एक शख्स भी नहीं उठा मगर अदब के ख्याल से कोई एक लफ्ज़ भी नहीं बोल सका | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते बीबी उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा से इस का तज़किरा फ़रमाया तो उन्हों ने अर्ज़ किया की मेरी राय ये है की आप किसी से कुछ भी न कहें और खुद आप अपनी क़ुरबानी करलें और बाल तरशवा लें | चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसा ही किया | जब सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को क़ुरबानी कर के एहराम उतारते देख लिया तो फिर वो लोग मायूस हो गए की अब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपना फैसला नहीं बदल सकते तो सब लोग क़ुरबानी करने लगे और एक दुसरे के बाल तराशने लगे मगर इस क़द्र रंजो गम से भरे हुए थे की ऐसा मालूम होता था की एक दुसरे को क़त्ल कर डालेंगें | इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने असहाब के साथ मदीना मुनव्वरा के लिए रवाना हो गए |

फ़तेह मुबीन

इस सुल्ह नामे को तमाम सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने एक मग़्लूबाना सुल्ह और ज़िल्लत अमेज़ मुआहिदा समझा और हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु को इस से जो रंज व सदमा गुज़रा वो आप पढ़ चुके मगर इस के बाद क़ुरआन शरीफ पारा 26, में सूरह फतह में पहली आयत नाज़िल हुई:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान:- ऐ हबीब हम ने आप को फ़तेह मुबीन अता की |अल्लाह पाक ने इस सुल्ह को “फ़तेह मुबीन” बताया | हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या ये फतह है? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की हाँ ! ये फतह है |उस वक़्त इस सुलहनामे के बारे में सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के खयालात अच्छे नहीं थे मगर इस के बाद के वाक़िआत ने बता दिया की दर हकीकत ये सुल्ह तमाम फुतुहात की कुंजी साबित हुई और सब ने मान लिया की वाकई सुल्ह हुदैबिया एक ऐसी फ़तेह मुबीन थी जो मक्के में इशाअते इस्लाम बल्कि फ़तेह मक्का का ज़रिया बन गई | अब तक मुसलनाम और कुफ्फार एक दुसरे से अलग थलग रहते थे एक दूसरे से मिलने जुलने का मौका ही नहीं मिलता था मगर इस सुल्ह की वजह से एक दूसरे के यहाँ आम्दो रफ़्त आज़ादी के साथ गुफ़्तो शुनीद और तबादलए खयालात का रास्ता खुल गया | कुफ्फार मदीने आते और महीनो ठहर कर मुसलमानो के किरदार व अमाल का गहरा मुताअला करते | इस्लामी मसाइल और इस्लाम की खूबियों का तज़किरा सुनते जो मुस्लमान मक्के जाते वो अपने चाल चलन, इफ़्फ़त शिआरी और इबादत गुज़री से कुफ्फार के दिलों पर इस्लाम की खूबियों का ऐसा नक़्श बिठा देते की खुद बा खुद कुफ्फार इस्लाम की तरफ माइल हो जाते थे | चुनांचे तारीख गवाह है की सुलेह हुदैबिया से फ़तेह मक्का तक इस क़द्र कसीर तादाद में लोग मुस्लमान हुए की इतने कभी नहीं हुए थे | चुनांचे हज़रते खालिद बिन वलीद (फातेह शाम) और हज़रते अम्र बिन अल आस (फ़तेह मिस्र) भी इसी ज़माने में खुद ब खुद मक्के से मदीना जा कर मुसलमान हुए |

मज़लूमीने मक्का

हिजरत के बाद जो लोग मक्के में मुसलमान हुए उन्हें ने कुफ्फार के हाथों बड़ी बड़ी मुसीबतें बर्दाश्त कीं | उन को जंज़ीरों में बांध बांध कर कुफ्फार कोड़े मरते थे लेकिन जब भी उन में से कोई शख्स मौका पाता तो छुप कर मदीने आ जाता था सुलेह हुदैबिया ने इस का दरवाज़ा बंद कर दिया क्यूं की इस सुल्ह नामे में ये शर्त लिखी थी की मक्के से जो शख्स भी हिजरत कर के मदीना जाएगा वो फिर मक्का वापस भेज दिया जाएगा |

हज़रते अबू बसीर का कारनामा

सुलेह हुदैबिया से फारिग हो कर जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीने वापस तशरीफ़ लाए तो सब से पहले जो बुज़ुग मक्के से हिजरत कर के मदीना आए वो हज़रते अबू बसीर रदियल्लाहु अन्हु थे | कुफ्फारे मक्का ने फ़ौरन ही दो आदमियों को मदीने भेजा की हमारा आदमी वापस कर दीजिये | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू बसीर रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया की “तुम मक्के चले जाओ” तुम जानते हो की हम ने कुफ्फारे कुरेश से मुआहिदा कर लिया है और हमारे दीन में अहद शिकनी और गद्दारी जाइज़ नहीं है | हज़रते अबू बसीर रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या आप मुझ को काफिरों के हवाले फ़रमाएंगें ताकि वो मुझ को कुफ्र पर मजबूर करें? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की तुम जाओ ! अल्लाह पाक तुम्हारी रिहाई का कोई सबब बना देगा | आखिर मजबूर हो कर हज़रते अबू बसीर रदियल्लाहु अन्हु दोनों काफिरों की हिरासत में मक्के वापस हो गए | लेकिन जब मक़ामे “ज़ुल हालीफा” में पहुंचे तो सब खाने के लिए बैठे और बातें करने लगे | हज़रते अबू बसीर रदियल्लाहु अन्हु ने एक काफिर से कहा की अजी ! तुम्हारी तलवार बहुत अच्छी मालूम होती है उस ने खुश हो कर नियाम से तलवार निकाल कर दिखाई और कहा की बहुत ही उम्दा तलवार है और मेने बारहा लड़ाइयों में इस का तजुर्बा किया है | हज़रते अबू बसीर रदियल्लाहु अन्हु ने कहा की ज़रा मेरे हाथ में तो दो | में भी देखूं कैसी तलवार है? उस ने उन के हाथ में तलवार दे दी उन्हों ने तलवार हाथ में ले कर इस ज़ोर से तलवार मारी की काफिर की गरदन कट गई और उस का सर दूर जा गिरा | उस के साथी ने जो ये मंज़र देखा तो वो सर पर पैर रख कर भगा और दौड़ता हुआ मदीने पंहुचा और मस्जिदे नबवी में घुस गया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को देखते ही फ़रमाया की ये शख्स ख़ौफ़ज़दा मालूम होता है |

उस ने हाँपते कांपते हुए बारगाहे नुबूवत में अर्ज़ किया की मेरे साथी को अबू बसीर ने क़त्ल कर दिया और में भी ज़रूर मारा जाऊँगा | हज़रते अबू बसीर रदियल्लाहु अन्हु भी नग्गी तलवार हाथ में लिए हुए आ पहुंचे और अर्ज़ क्या की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! अल्लाह पाक ने आप की ज़िम्मेदारी पूरी कर दी क्यूं की सुलहनामे के शर्त के बा मूजिब आप ने तो मुझ को वापस कर दिया | अब ये अल्लाह पाक की मेहरबानी है की उस ने मुझ को इन काफिरों से निजात दे दी | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस वाकिए से बड़ा रंज हुआ और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खफा हो कर फ़रमाया की: इस की माँ ! ये तो लड़ाई भड़का देगा काश ! इस के साथ कोई आदमी होता जो इस को रोकता | हज़रते अबू बसीर रदियल्लाहु अन्हु इस जुमले से समझ गए की में फिर काफिरों की तरफ लोटा दिया जाऊँगा | इस लिए वो वहां से चुपके से खिसक गए और संदर के किनारे के करीब मक़ामे “ऐस” में जा कर ठहरे | उधर मक्के से हज़रते अबू जंदल रदियल्लाहु अन्हु अपनी ज़ंजीर काट कर भागे और वो भी वहीँ पहुंच गए | फिर मक्के से दुसरे मज़लूम मुसलमानो ने भी मौका पा कर कुफ्फार की कैद से निकल निकल कर यहाँ पनाह लेनी शुरू कर दी | यहाँ तक की इस जंलग्ल में सत्तर आदमियों की जमात जमा हो गई | कुफ्फारे कुरेश के तिजारती काफिलों का यही रास्ता था जो काफिला भी आम्दो रफ़्त में यहाँ से गुज़रता ये लोग उस को लूट लेते यहाँ तक की कुफ्फारे कुरेश की नाक में दम कर दिया | बिला आखिर कुफ्फारे कुरेश ने खुदा और रिश्तेदार का वास्ता दे कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खत लिखा की हम सुलाह नामे में अपनी शर्त से बाज़ आए | आप लोगों को समंदर के किनारे से मदीना बुला लीजिए और अब हमारी तरफ से इजाज़त है की जो मुस्लमान भी मक्के से भाग कर मदीने जाए आप उस को मदीने में ठहरा लीजिए हमे इस पर कोई ऐतिराज़ न होगा |

ये भी रिवायत है की कुरेश ने खुद अबू सुफियान को मदीने भेजा की हम सुलह नामा हुदैबिया में अपनी शर्त से दस्त बरदार हो गए | लिहाज़ा आप हज़रते अबू बसीर रदियल्लाहु अन्हु को मदीने में बुला लें ताकि हमारे तिजारती काफिले उन लोगों के क़त्लो गारत से महफूज़ हो जाएं | चुनांचे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू बसीर रदियल्लाहु अन्हु के पास खत भेजा की तुम अपने साथियों समीत मक़ामे “ऐस” से मदीने चले आओ | मगर अफ़सोस ! की फरमाने रिसालत उन के पास ऐसे वक़्त पंहुचा नज़अ यानि मोत के करीब उस या उस हालत में थे | मुकद्द्स खत के उन्होंने अपने हाथों में ले कर सर और आँखों पर रखा और उन की रूह परवाज़ कर गई | हज़रते अबू जंदल रदियल्लाहु अन्हु ने अपने साथियों के साथ मिलजुल कर उन की तज्हीज़ो तकफीन का इंतिज़ाम किया और दफन के बाद उन की कब्र शरीफ के पास यादगार के लिए एक मस्जिद बना दी | फिर फरमाने रसूल के बा मुजिबये सब लोग वहां से आ कर मदीने में आबाद हो गए |

सलातीन (बादशाहों) के नाम दावते इस्लाम

सं. 6, हिजरी में सुलेह हुदैबिया के बाद जब जंगो जिदाल के ख़तरात टल गए और हर तरफ अम्नो सुकून की फ़ज़ा पैदा हो गई तो चूँकि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नुबूवत व रिसालत का दाएरा सिर्फ ख़ित्तए अरब ही तक महदूद नहीं था बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पूरी दुनिया के लिए नबी बना कर भेजे गए | इस लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरादा फ़रमारमय की इस्लाम का पैगाम पूरी दुनिया में पहुंच जाए | चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रूम के बादशाह “कैसर” फारस के बादशाह “किसरा” हब्शा के बादशाह “नज्जाशी” मिस्र के बादशाह “अज़ीज़” और दूसरे सलातीन अरबो अजम के नाम दावते इस्लाम के खुतूत रवाना फरमाए |

सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम में से कौन कौन हज़रात इन खुतूत को ले कर किन किन बादशाहों की दरबार में गए? इन की फहरिस्त काफी तवील है मगर एक ही दिन छेह खुतूत लिखवा कर और अपनी मुहर लगा कर जिन छेह कासिदो के जहाँ आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रवाना फ़रमाया वो ये है:

  1. हज़रते दहिया कलबी रदियल्लाहु अन्हु हर किल कैसरे रूम के दरबार में
  2. हज़रते अब्दुल्लाह बिन हुज़ैफ़ा रदियल्लाहु अन्हु खुसरू परवेज़ शाहे ईरान
  3. हज़रते हातिब रदियल्लाहु अन्हु मक़ूक़स अज़ीज़े मिस्र
  4. हज़रते अम्र बिन उमय्या रदियल्लाहु अन्हु नज्जाशी बादशाहे हब्श
  5. हज़रते सलीत बिन अम्र रदियल्लाहु अन्हु होजाह बादशाहे यमामा
  6. हज़रते शुजाअ बिन वहब दियल्लाहु अन्हु हारिस ग़स्सानि वालिए गस्सना
नामए मुबारक और कैसर

हज़रते दहिया कलबी रदियल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मुक़द्दस खत ले कर “बसरा” तशरीफ़ ले गए और वहां कैसरे रूम के गवर्नर शाम हारिस ग़स्सानि को दिया | उस ने इस नामए मुबारक को “बैतुल मुक़द्दस” भेज दिया | क्यूं की कैसरे रूम “हरकिल” उन दिनों बैतुल मुक़द्दस के दौरे पर आया हुआ था | कैसर को जब ये मुबारक खत मिला तो उस ने हुक्म दिया की कुरेश का कोई आदमी मिले तो उस को हमारे दरबार में हाज़िर करो | कैसर के हुक्काम ने तलाश किया तो इत्तिफ़ाक़ से अबू सुफियान और अरब के कुछ दूसरे ताजिर मिल गए ये सब लोग कैसर के दरबार में लाए गए | कैसर ने बड़े तुमतुराक के साथ दरबार मुनअक़िद किया और ताज़े शाही पहन कर तख्त पर बैठा | और तख़्त के गिर्द अराकीने सल्तनत बतारीका और अहबार व रहबान वग़ैरा सफ बाँध कर खड़े हो गए इसी हालत में अऱब के ताजिरों का गिरोह दरबार में हाज़िर किया गया और शाही महल के तमाम दरवाजे बंद कर दिए गए | फिर कैसर ने तरजुमान को बुलाया और उस के ज़रिये गुफ्तगू शुरू की सब से पहले कैसर ने यह सवाल किया की अरब में जिस शख्स ने नुबूवत का दावा किया है तू में से उन का सब से करीबी रिश्तेदार कौन है? अबू सुफियान ने कहा की “में” कैसर ने उन को सब से आगे किया और दूसरे अरबों को उन के पीछे खड़ा किया और कहा की देखो ! अगर अबू सुफियान कोई गलत बात कहे तो तुम लोग इस का झूट ज़ाहिर कर देना | फिर कैसर और अबू सुफियान में जो मुकालमा हुआ वो ये है:

कैसर : मुददाईये नुबुव्वत का खानदान कैसा है?
अबू सुफियान : उन का खानदान शरीफ है |
कैसर : क्या इस खानदान में इन से पहले भी किसी ने नुबुव्वत का दावा किया था?
अबू सुफियान : नहीं |
कैसर : क्या इन के बाप दादाओं में कोई बादशाह था?
अबू सुफियान : नहीं |
कैसर : जिन लोगों ने इन का दीन कबूल किया है वो कमज़ोर लोग हैं या साहिबे असर हैं?
अबू सुफियान : कमज़ोर लोग हैं |
कैसर : इन के मुत्ताबिईन बढ़ रहे हैं या घटते जा रहे हैं?
अबू सुफियान : बढ़ते जा रहे हैं |
कैसर : क्या कोई इन के दीन में दाखिल हो कर फिर इस को न पसदं कर के पलट भी जाता है?
अबू सुफियान : नहीं |
कैसर : क्या नुबुव्वत का दावा करने से पहले तुम लोग उन्हों झूठा समझते थे?
अबू सुफियान : नहीं |
कैसर : क्या वो कभी अहद शिकनी और वादा खिलाफी भी करते है |
अबू सुफियान : अभी तक तो नहीं की है लेकिन हमारे और उन के दरमियान (हुदैबिया) में जो एक नया मुआहिदा हुआ है मालूम नहीं इस में क्या करेंगें?
कैसर : क्या कभी तुम लोगों ने उन से जंग भी की?
अबू सुफियान : हाँ |
कैसर : जंग का नतीजा क्या रहा?
अबू सुफियान : कभी हम जीते कभी वो |
कैसर : वो तुम्हे कितनी बातों का हुक्म देते हैं?
अबू सुफियान : वो कहते हैं की सिर्फ एक खुदा की इबादत करो किसी और को खुदा का शरीक न ठहराओ, बुतों को छोड़ों नमाज़, पढ़ों सच बोलो, पाक दामनी इख़्तियार करो रिश्तेदारों के साथ नेक सुलूक करो |

इस सवालो जवाब के बाद कैसर ने कहा की तुम ने उन को खानदानी शरीफ बताया और तमाम पैगम्बरों का यही हाल है की हमेशा पैगम्बर अच्छे खानदानो ही में पैदा होते हैं | तुम ने कहा की उन के खानदान में कभी किसी और ने नुबुव्वत का दावा नहीं क्या अगर ऐसा होता तो में कह देता की ये शख्स औरों की नक़्ल उतार रहा है तुम ने इकरार किया है की उन के खानदान में कभी कोई बादशाह नहीं हुआ है अगर ये बात होती तो में समझ ले ता की ये शख्स अपने आबाओ अजदाद की बादशाही का तलबगार है तुम मानते हो की नुबुव्वत का दावा करने से पहले वो कभी कोई झूट नहीं बोले तो जो शख्स इंसानो से झूट नहीं बोलता वो खुदा पर क्यूँ कर झूट बांध सकता है?

तुम कहते हो की कमज़ोर लोगों ने उन के दीन को कबूल किया है | तो सुनलो हमेशा शुरू में पैगम्बरो के फरमा बरदार मुफ़लिस और कमज़ोर ही लोग होते हैं | तुम ने ये तस्लीम किया है की उन की पैरवी करने वाले बढ़ रहे हैं | तो ईमान का मुआमला हमेशा ऐसा ही रहा है के इस के मानने वालों की तादाद हमेशा बढ़ती ही जाती है | तुम को ये तस्लीम है की के कोई उन के दीन से फिर कर मुरदत नहीं हो रहा है तो तुम्हे मालूम होना चाहिए की ईमान की शान ऐसी ही हुआ करती है की जब इस की लज़्ज़त किसी के दिल में घर कर लेती है तो फिर वो कभी निकल नहीं सकती तुम्हे इस का ऐतिराफ़ है की उन्होंने कभी कोई गद्दारी और बद अहदी नहीं की है तो रसूलों का यही हाल होता है की वो कभी कोई दगा फरेब का काम करते ही नहीं हैं | तुम ने हमे बताया की वो एक खुदा की इबादत, शिर्क से परहेज़, बुत परस्ती से मुमानिअत, पाक दामनी, सिलह रहमी का हुक्म देते हैं | तो सुन लो की तुम ने जो कुछ कहा है अगर ये सही है तो वो बहुत जल्द इस जगह के मालिक हो जाएंगें जहाँ इस वक़्त मेरे क़दम हैं और में जनता हूँ की एक रसूल का ज़हूर होने वाला है मगर मेरा ये गुमान नहीं था की वो रसूल तुम अरबों में से होगा अगर में ये जान लेता की में उन की बारगाह में पहुंच सकूंगा तो में तकलीफ उठा कर वहां तक पहुँचता और अगर में उन के पास होता तो में उन का पाऊं धोता | कैसर ने अपनी इस तकरीर के बाद हुक्म दिया की “या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का खत पढ़ कर सुनाया जाए | खत की इबारत ये थी:

शुरू करता हूँ खुदा के नाम से जो बढ़ा मेहरबान और निहायत रहम फरमाने वाला है | अल्लाह पाक के बन्दे और रसूल मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तरफ से ये खत “हरकिल” के नाम है जो रूम का बादशाह है | उस शख्स पर सलामती हो जो हिदायत का पैरोकार है इस के बाद में तुझ को इस्लाम की दावत देता हूँ तू मुसलमान हो जा तो सलामत रहेगा | खुदा तुझ को दो गुना सवाब देगा | और अगर तूने इंकार किया तो तेरी तमाम रिआया का गुनाह तुझ पर होगा | ऐ अहले किताब ! एक ऐसी बात की तरफ आओ जो हमारे और तुम्हारे बीच बराबर है और वो ये है की हम खुदा के सिवा किसी की इबादत न करें और हम में से बाज़ लोग दूसरे कुछ लोगों को खुदा न बनाएं और अगर तुम नहीं मानते तो गवाह हो जाओ की हम मुसलमान हैं |

कैसर ने जो अबू सुफियान से गुफ्तुगू की इस्से उस के दरबारी पहले ही इंतिहाई बरहम और बेज़ार हो चुके थे अब ये खत सुना फिर जब कैसर से उन लोगों से ये कहा की ऐ जमाते रूम ! अगर तुम अपनी कामयाबी और अपनी बादशाही की बका चाहते हो तो इस नबी की बैअत कर लो | तो दरबारियों में से इस क़द्र नाराज़ी और बेज़ारी फ़ैल गई की वो लोग जंगली गधे की तरह बिदक बिदक कर दरबार से दरवाज़ों की तरफ भागने लगे | मगर चूँकि तमाम दरवाज़े बंद थे इस लिए वो लोग बाहर न निकल सके जब कैसर ने अपने दरबारियों की नफरत का ये मंज़र देखा तो वो उन लोगों के ईमान लाने से मायूस हो गया और उस ने कहा की इन दरबारियों को बुलाओ जब सब आ गए तो केसर ने कहा की अभी अभी मेने तुम्हारे सामने जो कुछ कहा इससे मेरा मकसद तुम्हारे दीन की पुख्तगी का इम्तिहान लेना थी तो में ने देख लिया की तुम लोग अपने दीन में बहुत पक्के हो ये सुन कर तमाम दरबारी केसर के सामने सजदे में गिर पड़े और अबू सुफियान वगैरा दरबार से निकाल दिए गए और दरबार बरख्वास्त हो गया | चलते वक़्त अबू सुफियान ने अपने साथियों से कहा की अब यक़ीनन अबू काबशा के बेटे (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) का मुआमला बहुत बढ़ गया देख लो रूमियों का बादशाह इन से डर रहा है |केसर चूँकि तौरेत व इंजील का माहिर और इल्मे नुजूम से वाकिफ था इस लिए वो नबी आखरुज़्ज़मा के ज़ुहूर से बा खबर था और अबू सुफियान की ज़बान से हालात सुन्कर उस के दिल में हिदायत का चराग रोशन हो गया था | मगर सल्तनत की हिर्स व हवस की आँधियों ने इस चिरागे हिदायत को बुझा दिया और वो इस्लाम की दौलत से महरूम हो गया |

खुसरू परवेज़ की बद दिमागी

तकरीबन इसी मज़मून के खुतूत दूसरे बादशाहों के पास भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रवाना फरमाए | शहंशाहे ईरान खुसरू परवेज़ के दरबार में जब “खत” मुबारक पंहुचा तो सिर्फ इतनी सी बात पर उस के गुरूर और घमंड का पारा इतना चढ़ गया की उस ने कहा की इस खत में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरे नाम से पहले अपना नाम क्यूं लिखा? ये कह कर उसने फरमाने रिसालत को फाड़ डाला और पुर्ज़े पुर्ज़े कर के खत को ज़मीन पर फेंक दिया | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ये खबर मिली तो आपने फ़रमाया की उस ने मेरे खत को टुकड़े टुकड़े कर डाला खुदा उसी की सल्तनत को टुकड़े टुकड़े कर दे | चुनांचे इस के बाद ही खुसरू परवेज़ को उस के बेटे “शीरविया” ने रात में सोते हुए उस का शिकम (पेट) फाड़ कर उस को क़त्ल कर दिया | और उसकी बादशाही टुकड़े टुकड़े हो गई यहाँ तक की हज़रते अमीरुल मोमिनीन उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत में ये हुकूमत सफ्हे हस्ती से मिट गई |

रेफरेन्स (हवाला)

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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