नज्जाशी का किरदार
नज्जाशी बादशाहे हब्श के पास जब फरमाने रिसालत पंहुचा तो उस ने कोई बे अदबी नहीं की | इस मुआमले में मुअर्रिख़ीन का इख्तिलाफ है की उस नज्जाशी ने इस्लाम कबूल किया या नहीं? मगर मवाहिबे लदुन्निया में लिखा हुआ है की ये नज्जाशी जिस के पास ऐलान नबुव्वत के पांचवें साल मुसलमान मक्के से हिजरत कर के गए थे और सं. 6, हिजरी में जिस के पास हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खत भेजा और सं. 9, हिजरी में जिस का इन्तिकाल हुआ और मदीने में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिस की गायबाना नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई उस का नाम “असमाह” था और ये बिला शुबा मुसलमान हो गया था | लेकिन इस के बाद जो नज्जाशी तख्त पर बैठा उस के पास भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस्लाम का दावत नामा भेजा था मगर उस के बारे में कुछ मालूम नहीं होता की उस नज्जाशी का नाम क्या था? और उस ने इस्लाम कबूल किया या नहीं? मशहूर है की ये दोनों मुक़द्दस खुतूत अब तक सलातीने हब्शा के पास मौजूाद हैं और वो लोग इस का बे हद अदबो एहतिराम करते हैं |
शाहे मिस्र मिस्र के बादशाह का बरताओ
हज़रते हातिब बिन अबी बलतआ रदियल्लाहु अन्हु को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “मक़ूक़स” मिस्र व अस्कंदारिया के बादशाहों के पास कासिद बना कर भेजा | ये निहायत ही अख़लाक़ के साथ कासिद से मिला और फरमाने नबवी को बहुत ही ताज़िमों तकरीम के साथ पढ़ा | मगर मुसलमान नहीं हुआ | हाँ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में चंद चीज़ों का तोहफा भेजा | दो लोंडिय एक हज़रते “मारिया क़िब्तिया” रदियल्लाहु अन्हा थीं जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हरम में दाखिल हुईं और इन्हीं के शिकमे मुबारक से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरजंद हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु पैदा हुए | दूसरी हज़रते “सीरीन” रदियल्लाहु अन्हा थीं जिन को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते हस्सान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु को अता फरमा दिया | इन के बतन से हज़रते हस्सान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु के साहबज़ादे हज़रते अब्दुर रहमान रदियल्लाहु अन्हु पैदा हुए इन दोनों लौंडियों के इलावा एक सफ़ेद गधा जिस का नाम “याफूर” था और एक सफ़ेद खच्चर जो दुलदुल कहलाता था एक हज़ार मिसकाल सोना, एक गुलाम, कुछ शहद, कुछ कपड़े भी थे |
बादशाहे यमामा का जवाब
हज़रते सलीत रदियल्लाहु अन्हु जब “हौज़ह” बादशाहे यमामा के पास खत ले कर पहुंचे तो उस ने भी कासिद का एहतिराम किया | लेकिन इस्लाम कबूल नहीं किया और जवाब में ये लिखा की आप जो बातें कहते हैं वो निहायत ही अच्छी हैं | अगर आप अपनी हुकूमत में से कुछ मुझे भी हिस्सा दें तो में आप की पैरवी करूंगा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस का खत पढ़ कर फ़रमाया की इस्लाम मुल्क गिरी की हवस के लिए नहीं आया है अगर ज़मीन का एक टुकड़ा भी हो तो में न दूंगा |
हारिस ग़स्सानि का घमंड
हज़रते शुजाअ रदियल्लाहु अन्हु ने जब हरिस ग़स्सानि वालिए ग़स्सान के सामने खत मुबारक को पेश किया तो वो मगरूर खत को पढ़ कर बरहम हो गया और अपनी फौज को तय्यारी का हुक्म दे दिया | चुनांचे मदीने के मुसलमान हर वक़्त उस के हमले के मुन्तज़िर रहने लगे और बिला आखिर “ग़ज़वए मोता” और “ग़ज़वए तबूत” के वाक़िआत दरपेश हुए |
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन बादशाहों के अलावा और भी बहुत से सलातीन व उमरा को दावते इस्लाम के खुतूत तहरीर फरमाए जिन से कुछ ने इस्लाम कबूल कर ने से इंकार कर दिया और कुछ खुश नसीबों ने इस्लाम कबूल कर के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमते अक़दस में नियाज़ मंदियों से bhare हुए खुतूत भी भेजे | मसलन यमन के बादशाह हिमयर में से जिन जिन बादशाहों ने मुसलमान हो कर बारगाहे नुबुव्वत में अर्ज़ियाँ भेजीं जो ग़ज़वए तबूक से वापसी पर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में पहुंची उन बादशाहों के नाम ये हैं:
- हरिस बिन अब्दे कलाल
- नईम बिन अब्दे कलाल
- नोमान हाकिमे ज़ोर ऐन व मुआफिर व हमदान
- ज़रअ ये सब यमन के बादशाह हैं |
इन के अलावा “फरवाह बिन अम्र” जो के सल्तनते रूम की जानिब से गवर्नर था अपने इस्लाम लाने की खबर कासिद के ज़रिए बारगाहे रिसालत में भेजी | इस तरह “बज़ान” जो बादशाहे ईरान किसरा की तरफ से सूबए यमन का सूबेदार था अपने दो बेटों के साथ मुसलमान हो गया और एक अर्ज़ी तहरीर कर के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने इस्लाम की खबर दी इन सब का तफ्सीली ज़िक्र “सीरते इब्ने हिशाम व ज़ुरक़ानी व मदारिजुन नुबुव्वत” वगैरा में मौजूद है |
सरिय्यए नज्द
सं. 6, हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते मुहम्मद बिन मुस्लिमा रदियल्लाहु अन्हु की मातहती में एक लश्कर नज्द की तरफ रवाना फ़रमाया | उन लोगों ने बनी हनीफा के सरदार समामा बिन उसाल को गिरफ्तार कर लिया और मदीने लाए जब लोगों ने इन को बारगाहे रिसालत में पेश किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया की इस को मस्जिदे नबवी के एक सुतून में बांध दिया जाए चुनांचे ये सुतून में बांध दिए गए | फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस के पास तशरीफ़ ले गए और दर्याफ़्ता फ़रमाया की ऐ समामा ! तुम्हारा क्या हाल है? और तुम अपने बारे में क्या गुमान करते हो? समामा ने जवाब दिया की ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरा हाल और ख्याल तो अच्छा ही है अगर आप मुझे क़त्ल करोगे और अगर मुझे अपने इनआम से नवाज़ कर छोड़ देंगें तो एक शुक्र गुज़ार को छोड़ेंगे और अगर आप मुझ से कुछ माल के तलब गार हों तो बता दीजिए | आप को माल दिया जाएगा | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये गुफ्तुगू कर के चले आए फिर दूसरे रोज़ भी यही सवाल व जवाब हुआ | फिर तीसरे रोज़ भी है हुआ | इस के बाद आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम से फ़रमाया की समामा को छोड़ दो | चुनांचे लोगों ने उन को छोड़ दिया समामा मस्जिद से निकल कर एक खजूर के बाग़ में चले गए जो मस्जिदे नबवी के करीब ही में था वहां उन्हों ने ग़ुस्ल किया फिर मस्जिदे नबवी में वापस आए और कलिमए शहादत पढ़ कर मुसलमान हो गए और कहने लगे की खुदा की कसम ! मुझे जिस क़द्र आप के चेहरे से नफरत थी इतनी रूए ज़मीन पर किसी के चेहरे से न थी मगर आज आप के चेहरे से मुझे इस क़द्र मुहब्बत हो गई है की इतनी मुहब्बत किसी के चेहरे से नहीं है कोई दीन मेरी नज़र में इतना न पसंद न था जितना आप का दीन | कोई शहर मेरी निगाह में इतना बुरा न था जितना आप का शहर और अब मेरा ये हाल हो गया है की आप के शहर से ज़ियादा मुझे कोई शहर महबूब नहीं है | या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में उमरा अदा कर ने के इरादे से मक्का जा रहा था की आप के लश्कर ने मुझे गिरफ्तार कर लिया | अब आप मेरे बारे में क्या हुक्म देते हैं? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को दुनिया और आख़िरत की भलाइयों का मुज़्दा सुनाया और फिर हुक्म दिया की तुम मक्के जा कर उमरा अदा कर लो !
जब ये मक्के पहुंचे और तवाफ़ कर ने लगे तो कुरेश के किसी काफिर ने इन को देख कर कहा की ऐ समामा ! तुम साबी (बे दीन) हो गए हो? आप रदियल्लाहु अन्हु ने निहायत जुरअत के साथ जवाब दिया की में बे दीन नहीं हुआ हूँ बल्कि में मुसलमान हो गया हूँ और ऐ अहले मक्का ! सुन लो ! अब जब तक रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इजाज़त न देंगें तुम लोगों को हमारे वतन से गेहूं का एक दाना भी नहीं मिल सकेगा | मक्के वालों के लिए इन के वतन “यमामा” ही से गल्ला आया करता था |
अबू राफे क़त्ल कर दिया गया
सं. 6, हिजरी के वाक़िआत में से अबू राफे यहूदी का क़त्ल भी है अबू राफे यहूदी का नाम अब्दुल्लाह बिन अबिल हुकैक या सलाम बिन अल हुकैक था | ये बहुत ही दौलत मंद ताजिर था लेकिन इस्लाम का ज़बर दस्त दुश्मन और बारगाहे नुबुव्वत की शान में निहायत ही बद तरीन गुस्ताख़ और बे अदब था | ये वो ही शख्स है जो हुयी बिन अखतब यहूदी के साथ मक्के गया और कुफ्फारे कुरेश और दूसरे कबाइल को जोश दिला कर ग़ज़वए खंदक में मदीने पर हमला कर ने के लिए दस हज़ार की फौज ले कर आया था और अबू सुफियान को उभार कर इसी ने उस फौज का सिपाह सालार बनाया था | हुयी बिन अख्तब तो जंगे खंदक के बाद ग़ज़वए बनी क़ुरैज़ा में मारा गया था मगर ये बच निकला था और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इज़ा रसानी और इस्लाम की बीख कुनि में तन, मन, धन से लगा हुआ था अंसार के दोनों कबीलों ओस और ख़ज़रज में हमेशा मुकाबला रहता था और ये दोनों अक्सर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने नेकियों में एक दूसरे से बढ़ जाने की कोशिश करते रहते थे | चूँकि कबीलए ओस के लोगों हज़रत मुहम्मद बिन मुस्लिमा वगैरा ने सं. 3, हिजरी में बड़े खतरे में पड़ कर एक दुश्मन रसूल काब बिन अशरफ यहूदी को क़त्ल किया था इस लिए कबीलए ख़ज़रज के लोगों ने मश्वरा किया की अब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सब से बड़ा दुश्मन “अबू राफे” रह गया है | लिहाज़ा हम लोगों को चाहिए की उस को क़त्ल कर डालें ताकि हम लोग भी कबीलए ओस की तरह एक दुश्मने रसूल को क़त्ल करने का अजरो सवाब हासिल कर लें | चुनांचे अब्दुल्लाह बिन अतीक व हरिस बिन रिबई व मसऊद बिन सिनान व खुज़ाई बिन अस्वद रदियल्लाहु अन्हुम इस के लिए तय्यार हुए | इन लोगों की दरख्वास्त पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इजाज़त दे दी और हज़रते अब्दुल्लाह बिन अतीक रदियल्लाहु अन्हु को इस जमात का अमीर मुकर्रर फरमा दिया और इन लोगों को मना कर दिया की बच्चों और औरतों को क़त्ल न किया जाए |
हज़रते अब्दुल्लाह बिन अतीक रदियल्लाहु अन्हु अबू राफे के महल के पास पहुंचे और अपने साथियों को हुक्म दिया की तुम लोग यहाँ बैठ कर मेरी आमद का इन्तिज़ार करते रहो और खुद बहुत ही ख़ुफ़िया तदबीरों से रात में उस के महल के अंदर दाखिल हो गए और उस के बिस्तर पर पहुंच कर अँधेरे में उस को क़त्ल कर दिया | जब महल से निकलने लगे तो सीढ़ी से गिर पड़े जिस से इन के पाऊं की हड्डी टूट गई | मगर इन्हों ने फ़ौरन ही अपनी पगड़ी से अपने टूटे पाऊं को बांध दिया और किसी तरह महल से बाहर आ गए फिर अपने साथियों की मदद से मदीने से पहुंचे जब दरबारे रिसालत में हाज़िर हो कर अबू राफे के क़त्ल का सारा माजरा बयान किया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की “पाऊं फैलाओ” इन्हो ने पाऊं फैलाया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना दस्ते मुबारक इन के पाऊं पे फेर दिया | फ़ौरन ही टूटी हुई हड्डी जुड़ गई और इन का पाऊं बिलकुल सही हो गया |
स. 6, हिजरी की कुछ लड़ाइयां
स. 6, हिजरी में सुलेह हुदैबिया से पहले चंद छोटे छोटे लश्करों को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुख्तलिफ अतराफ़ में रवाना फ़रमाया ताकि वो कुफ्फार के हमलों की मुदाआफत करते रहें इन लड़ाइयों का मुफ़स्सल तज़किरा ज़ुरक़ानी अलल मवाहिब मदारीजुन नुबुव्वत वगैरा किताबों में लिखा हुआ है मगर इन लड़ाइयों की तरतीब इन की तारीखों में मुअर्रिख़ीन का बड़ा इख्तिलाफ है इस लिए ठीक तौर पर इन की तारीखों की तअय्युन बहुत मुश्किल है इन लड़ाइयों में से चंद के नाम ये हैं:
- सरिय्यए कुरता |
- ग़ज़वए बनी लिह्यान |
- सरिय्यतुल गमर |
- सरिय्यए ज़ैद ब जानिब जमूम |
- सरिय्यए ज़ैद ब जानिब ऐसा |
- सरिय्यए ज़ैद ब जानिब वादियुल कुरा |
- सरिय्यए अली ब जानिब बनी साद |
- सरिय्यए ज़ैद ब जानिब उम्मे करफा |
- सरिय्यए इब्ने रवाहा |
- सरिय्यए इब्ने मुस्लिमा |
- सरिय्यए ज़ैद ब जानिब तरफ |
- सरिय्यए अकल व उड़ैना |
- बअस ज़मरी इन लड़ाइयों के नमो में भी इख्तिलाफ है हम ने यहाँ लड़ाइयों के मज़कूरा बाला नाम ज़ुर कानि मवाहिब की फहरिस्त से नक़्ल किए हैं |
“हिजरत का सातवां साल”
ग़ज़वए ज़ातुल करद
मदीने के करीब “ज़ातुल करद” एक चरागाह का नाम है जहाँ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कीु ऊंटनियां चरती थीं | अब्दुर रहमान बिन उईना फ़ज़ारी ने जो कबीलए गतफान से तअल्लुक़ रखता था अपने चंद आदमियों के साथ अचानक इस चरागाह पर छापा मारा और ये लोग बीस ऊंटनियों को पकड़ कर ले भागे| मशहूर तीर अंदाज़ सहाबी हज़रते सलमाह बिन अक्वा रदियल्लाहु अन्हु को सब से पहले इस की खबर मालूम हुई उन्हों ने इस खतरे का ऐलान कर ने के लिए बुलंद आवाज़ से ये “नारा” लगाया की “या सबाहाह” फिर अकेले ही उन डाकूओ के पीछे दौड़ पड़े और उन डाकुओं को तीर मर मार कर तमाम ऊंटनियों को भी छीन लिया और डाकू भागते हुए जो तीस चादरें फेंकते गए थे उन चादरों पर भी कब्ज़ा कर लिया इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लश्कर ले कर पहुंचे हज़रते सलमाह बिन अक्वा रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में ने इन छापा मारो को अभी तक पानी नहीं पीने नहीं दिया ये सब प्यासे हैं इन लोगों के पीछे में लश्कर भेज दीजिए तो ये सब गिरफ्तार हो जाएं आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की तुम अपनी ऊंटनायों के मालिक हो चुके हो अब इन लोगों के से नरमी का बर्ताव करो फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते सलमाह बिन अक्वा रदियल्लाहु अन्हु को अपने ऊँट पर अपने पीछे बिठा लिया और मदीने वापस तशरीफ़ लाए हज़रते इमाम बुखारी का बयान है की ये गज़वा जंगे खैबर के लिए रवाना रवाना होने से तीन दिन पहले हुआ |
जागने खैबर
“खैबर” मदीने से आठ मील की दूरी पर एक शहर है एक अँगरेज़ सय्याह ने लिखा है की खैबर मदीने से तीन सौ बीस किलो मीटर दूर है ये बड़ा ज़रखेज़ इलाका था और यहाँ उम्दा खजूरें बहुत पैदा होती थीं | अरब में यहूदियों का सब से बड़ा मरकज़ यही खैबर था यहाँ के यहूदी अरब में सब से ज़ियादा मालदार और जंगजू थे और इन को अपनी माली और जंगी ताकतों पर बड़ा नाज़ और घमंड भी था ये लोग इस्लाम और बानिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बद तरीन दुश्मन थे यहाँ यहूदियों ने बहुत से मज़बूत किले बना रखे थे जिन में से कुछ के आसार अब तक मौजूद हैं इन में से आठ किले बहुत मशहूर हैं जिन के नाम ये है:
1, कुतैबा 2, नाइम 3, शक 4, माक़ूस 5, नतारह 6, सअब 7, सतीख 8, सलालम |
दर हकीकत ये आठों किले आठ मुहल्लों के मिस्ल थे, इन्हीं आठों किलों का मजमूआ “खैबर” कहलाता था |
ग़ज़वए खैबर कब हुआ
तमाम मुअर्रिख़ीन का इस बात पर इत्तिफ़ाक़ है की जंगे खैबर मुहर्रम के महीने में हुई | लेकिन इस में इख्तिलाफ है की सं, 6, हिजरी था या सं. 7, | गालिबन इस इख्तिलाफ की वजह ये है की बाज़ लोग सने हिजरी की इब्तिदा मुहर्रम से करते हैं इस लिए उन के नज़दीक मुहर्रम में सं. 7, हिजरी शुरू हो गया और कुछ लोग सने हिजरी की इब्तिदा रबीउल अव्वल से करते हैं क्यूंकि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिजरत रबीउल अव्वल में हुई लिहाज़ा उन लोगों के नज़दीक ये मुहर्रम व सफर सं. 6, हिजरी के थे | वल्लाहु आलम |
जंगे खैबर का सबब
ये हम पहले लिख चुके हैं की जंगे खंदक में जिन जिन कुफ्फारे अरब ने मदीने पर हमला किया था उन में खैबर के यहूदी भी थे | बल्कि दर हकिकक्त वो ही इस हमले के बानी और सब से बड़े मुहर्रिक थे चुनांचे “बनू नज़ीर” के यहूदी जब मदीने से जिला वतन किए गए तो यहूदियों के जो बड़े रईस खैबर चले गए थे उन में से हुई बिन अख्तब और अबू राफे सलाम बिन अबिल हुकैक ने तो मक्का जा कर कुफ्फारे कुरेश को मदीने पर हमला कर ने के लिए उभारा और तमाम कबाइल का दौरा कर के कुफ्फारे अरब को जोश दिला कर तय्यार किया और हमला आवारों की माली मदद के लिए पानी की तरह रूपया बहाया | और खैबर के तमाम यहूदियों को साथ ले कर यहूदियों के ये दोनों सरदार हमला करने वालों में शामिल हो गए | हुई बिन अख्तब तो जंगे क़ुरैज़ा में क़त्ल हो गया और अबू राफे सलाम बिन अबिल हुकैक तो सं. 6, हिजरी में हज़रते अब्दुल्लाह बिन अतीक अंसारी रदियल्लाहु अन्हु ने उस के महल में दाखिल हो कर क़त्ल कर दिया | लेकिन इन सब वाक़िआत के बाद भी खैबर के यहूदी बैठे नहीं रहे बल्कि और ज़ियादा इंतिकाम की आग उन के सीनो में भड़कने लगी चुनांचे ये लोग मदीने पर फिर एक दूसरा हमला करने की तैयारियां करने लगे और इस मकसद के लिए कबीलाए गतफान को भी तय्यार कर लिया | कबीलाए गतफान अरब के एक बहुत ही बड़ा ताकत वर और जंगजू कबीला था और इस की आबादी खैबर से बिलकुल ही मिली हुई थी और खैबर के यहूदी खुद भी अरब के सब से बड़े सरमाया दार होने के साथ बहुत ही जंग बाज़ और तलवार के धनी थे इन दोनों के गठजोड़ से एक बड़ी ताकतवर फौज तय्यार हो गई और इन लोगों ने मदीने पर हमला कर के मुसलमानो को तहिस नहिस कर देने का प्लान बना लिया |
मुस्लमान खैबर चले
जब रसूले खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खबर मिली की खैबर के यहूदी कबीलए गतफान को साथ ले कर मदीने पर हमला करने वाले हैं तो उनकी इस चढ़ाई को रोकने के लिए सोलह सौ सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम का लश्कर साथ ले कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खैबर रवाना हुए | मदीने पर हज़रते सबाआ बिन उरफुता रदियल्लाहु अन्हु को अफसर मुकर्रर फ़रमाया और तीन झंडे तय्यार कराए एक झंडा हज़रते हबाब बिन मुंज़िर रदियल्लाहु अन्हु को दिया और एक झंडे का आलम बरदार हज़रते साद बिन उबादा रदियल्लाहु अन्हु को बनाया और खास अलमे नबवी हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु को दस्ते मुबारक में आता फ़रमाया और अज़्वाजे मुतह्हिरात में से हज़रते बीबी उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा को साथ लिया |
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रात के वक़्त हुदूदे खैबर में अपनी फौजे ज़फर मौज के साथ पहुंच गए और नमाज़े फजर के बाद शहर में दाखिल हुए तो खैबर के यहूदी अपने अपने हँसियां टोकरी ले कर खेतो और बागों में कामकाज के लिए किले से निकले | जब उन्हों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देखा तो शोर मचाने लगे और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे की “खुदा की कसम ! लश्कर के साथ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं | उस वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की खैबर बर्बाद हो गया बिला शुबा जब हम किसी कौम के मैदान में उतर पड़ते हैं तो कुफ्फार की सुबह बुरी हो जाती है | हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खैबर की तरफ मुतावज्जेह हुए तो सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम बहुत ही बुलंद आवाज़ों से नारए तकबीर लगाने लगे तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अपने ऊपर नरमी बरतो तुम लोग किसी बहरे और गायब को नहीं पुकार रहे हो बल्कि उस (अल्लाह) को पुकार रहे हो जो सुनने वाला और करीब है | में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सवारी के पीछे लाहौल शरीफ का वज़ीफ़ा पढ़ रहा था जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सुना तो मुझ को पुकारा और फ़रमाया की क्या में तुम को एक ऐसा कलमा न बता दूँ जो जन्नत के ख़ज़ानों में से एक खज़ाना है | में ने अर्ज़ किया की “क्यूँ नहीं या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप पर मेरे माँ बाप कुरबान ! तो फ़रमाया की वो कलमा “लाहौल शरीफ” है |
यहूदियों की तय्यारी
यहूदियों ने अपनी औरतों और बच्चों को एक महफूज़ किले में पंहुचा दिया और राशन का ज़खीरा किला “नाइम” में जमा कर दिया और फोजों को “नतात” और “कमूस” के किलो में इकठ्ठा किया इन में सब से ज़ियादा मज़बूत और महफूज़ किला “कमूस” था | और “मरहब यहूदी” जो अरब के पहिलवानो में एक हज़ार सवारों के बराबर माना जाता था इसी किले का रईस था | सलाम बिन मश्कम यहूदी बीमार था मगर वो भी किला “नतात” में फौजे ले कर डाटा हुआ था यहूदियों के पास तकरीबन बीस हज़ार फौज थी जो मुख्तलिफ किलों की हिफाज़त के लिए मोर्चा बंदी किए हुए थे |
महमूद बिन मुस्लिमा शहीद हो गए
सब से पहले किला “नाइम” पर मारिका आराई और जम कर लड़ाई हुई | हज़रते महमूद बिन मुस्लिमा रदियल्लाहु अन्हु ने बड़ी बहादुरी और जांनिसरि के साथ जंग की मगर सख्त गरमी और लू के थपेड़े की वजह से इन पर प्यास का गलबा हो गया वो किला नाइम की दिवार के नीचे सो गए किनाना बिन अबिल हुकैक यहूदी ने इन को देख लिया और छत से एक बहुत बड़ा पथ्थर इन के ऊपर गिरा दिया जिससे इन का सर कुचल गया और ये शहीद हो गए इस किले को फतह करने में पचास मुस्लमान ज़ख़्मी हो गए लेकिन किला फतह हो गया |
असवद राई की शहादत
हज़रते असवद राई रदियल्लाहु अन्हु इसी किले की जंग में शहादत से सरफ़राज़ हुए इन का वाक़िआ ये है की ये एक हब्शी थे जो खैबर के किसी यहूदी की बकरियां चराया करते थे | जब यहूदी जंग की तय्यरियाँ करने लगे तो इन्हों ने पूछा की आखिर तुम लोग किस्से जंग के लिए तय्यरियाँ कर रहे हो? यहूदियों ने का की आज उस शख्स से जंग करेंगें जो नुबुव्वत का दावा करता है ये सुन कर इन के दिल में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुलाकात का जज़्बा पैदा हुआ चुनांचे ये बकरियां लिए हुए बारगाहे रिसालत में हाज़िर हो गए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मालूम किया की आप किस चीज़ की दावत देते हैं? आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन के सामने इस्लाम पेश किया इन्हों ने अर्ज़ किया की अगर में मुस्लमान हो जाऊं तो मुझे अल्लाह पाक की तरफ से क्या अजरो सवाब मिलेगा? आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की तुम को जन्नत और उस की नेमतें मिलेगीं इन्हों ने फ़ौरन ही कलमा पढ़ कर इस्लाम कबूल कर लिया | फिर अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये बकरियां मेरे पास अमानत हैं | अब में इन को क्या करूँ| आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की तुम इन बकरियों को किले की तरफ हाँक दो और इन को कंकरियों से मारो | ये सब खुद बखुद अपने मालिक के घर पहुंच जाएंगी | चुनांचे ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मोजिज़ा था की इन्हों ने बकरियों को कंकरियां मार मार कर हांक दिया और वो सब अपने मालिक के घर पहुंच गईं |
इस के बाद ये खुश नसीब हब्शी हथियार पहिन कर मुजहीदीने इस्लाम की सफ में खड़ा हो गया और इंतिहाई जोशो खरोश के साथ जिहाद करते हुए शहीद हो गया जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस की खबर हुई तो फ़रमाया की इस शख्स ने बहुत ही कम अमल किया और बहुत ज़ियादा अजर दिया गया | फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन की लाश को खेमे में लाने का हुक्म दिया और इन की लाश के सिरहाने खड़े हो कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये बशारत सुनाई की अल्लाह पाक ने इस के काले चेहरे को हसीन बना दिया इस के बदन को खुशबु दार बना दिया और दो हूरें इस को जन्नत में मिली | इस शख्स ने ईमान और जिहाद के सिवा कोई कोई दूसरा अमले खेर नहीं किया न एक वक़्त की नमाज़ पढ़ी, न एक रोज़ा रखा, न हज व ज़कात का मौका मिला मगर ईमान और जिहाद के सबब से अल्लाह पाक ने इस को इतना बुलंद मर्तबा अता फ़रमाया |
रेफरेन्स (हवाला)
शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,