हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 18)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 18)

इस्लामी लश्कर का हेड क्वॉटर

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पहले ही से ये इल्म था की कबीलए गतफान वाले ज़रूर ही खैबर वालों की मदद करेंगें | इस लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खैबर और गतफान के बीच मक़ामे “रजी” में अपनी फौजो का हेड हेड क्वॉटर बनाया और खेमे बार बरदारी के सामने और औरतों को भी यहीं रखा था और यहीं से निकल निकल कर यहूदियों के किलों पर हमला करते थे |

किला नाइम के बाद दूसरा किला भी बा आसानी और बहुत जल्द फतह हो गया लेकिन किला “कमूस” चूँकि बहुत ही मज़बूत और महफूज़ किला था | और यहाँ यहूदियों की फौजें भी बहुत ज़ियादा थीं और यहूदियों का सब से बड़ा बहादुर “मरहब” खुद इस किले की हिफाज़त करता था इस लिए इस किले को फतह कर ने में बड़ी दुश्वारी हुई | कई रोज़ तक ये मुहिम सर न हो सकी | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस किले पर पहले दिन हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की कमान में इस्लामी फौज को चढाई के लिए भेजा और उन्होंने बहुत ही शुजाअत और जां बाज़ी के साथ हमला फ़रमाया मगर यहूदियों ने किले की फ़सील पर से इस ज़ोर की तीर अंदाज़ी और संगबारी की, की मुस्लमान किले के फाटक तक न पहुंच सके और रात हो गई | दूसरे दिन हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने ज़बर दस्त हमला किया और मुस्लमान बड़ी गर्म जोशी के साथ बढ़ बढ़ कर दिन भर किले पर हमला करते रहे मगर किला फतह न हो सका | और क्यूँकर होता? फातेह खैबर होना तो अली हैदर रदियल्लाहु अन्हु के मुकद्दर में लिखा था | चुनांचे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की कल में उस आदमी को झंडा दूंगा जिस के हाथ पर अल्लाह पाक फतह देगा वो अल्लाह व रसूल का मुहिब भी है और महबूब भी | रावी ने कहा की लोगों ने ये रात बड़े इज़्तिराब में गुज़ारी की देखिए कल किस को झंडा दिया जाता है? सुबह हुई तो सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम खिदमते अक़दस में बड़े इश्तियाक के साथ ये तमन्ना ले कर हाज़िर हुए की ये ऐजाज़ व शरफ़ हमे मिल जाए इस लिए की जिस को झंडा मिलेगा उस के लिए तीन बशारतें हैं |

  • वो अल्लाह व रसूल का मुहिब है |
  • वो अल्लाह व रसूल का महबूब है |
  • खैबर उस के हाथ से फतह होगा | 

हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की उस रोज़ मुझे बड़ी तमन्ना थी की काश ! आज मुझे झंडा इनायत होता वो ये भी फरमाते हैं की इस मोके के सिवा मुझे कभी भी फौज की सरदारी और अफसरी की तमन्ना न थी | हज़रते साद रदियल्लाहु अन्हु के बयान से मालूम होता है की दूसरे सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम भी इस नेमते उज़्मा के लिए तरस रहे थे | लेकिन सुबह अचानक ये सदा लोगों के कान में आई की अली कहाँ हैं? लोगों ने अर्ज़ किया की उन की आँखों में आशोब है आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कासिद भेज कर उन को बुलाया और उन की दुखती हुई आँखों में अपना लुआब दहन लगा दिया और और दुआ फ़रमाई तो फौरन ही उन्हें ऐसी शिफा हासिल हो गई की गोया उन्हें कोई तकलीफ थी ही नहीं फिर ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दस्ते मुबारक से अपना अलमे नबवी जो हज़रते उम्मुल मोमिनीन बीबी आईशा रदियल्लाहु अन्हा की सियाह चादर से तय्यार किया गया था | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के हाथ में अता फ़रमाया | और इरशाद फ़रमाया तुम बड़े सुकून के साथ जाओ और उन यहूदियों को इस्लाम की दावत दो और बताओ की मुस्लमान हो जाने के बाद तुम पर फुलां फुलां अल्लाह के हुकूक वाजिब हैं खुदा की कसम ! अगर एक आदमी ने भी तुम्हारी बदौलत इस्लाम कबूल कर लिया तो ये दौलत तुम्हारे लिए सुर्ख ऊंटों से भी ज़ियादा बेहतर है |    

हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु और मरहब की जंग

हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने किला कमूस के पास पहुंच कर यहूदियों को इस्लाम की दावत दी लेकिन उन्हों ने इस दावत का जवाब ईंट और पथ्थर और तीर व तलवार से दिया | और किले का रईसे आज़म “मरहब” और खुद बड़े तनतने के साथ निकला सर पर यमनी ज़र्द रंग का ढाटा बांधे हुए और उस के ऊपर पथ्थर का खोद पहने हुए रज्ज़ का ये शेर पढ़ते हुए हमले के लिए आगे बढ़ा की:

खैबर खूब जनता है की में “मरहब” हूँ असलीहा पोश हूँ, बहुत ही बहादुर तजुर्बा कार हूँ | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने उस के जवाब में रज्ज़ का ये शेर पढ़ा|   

में वो हूँ की मेरी माँ ने मेरा नाम हैदर (शेर) रखा है कछार के शेर की तरह हैबतनाक हूँ | मरहब ने बड़े तुमतराक के साथ आगे बढ़ कर हज़रते शेरे खुदा पर अपनी तलवार से वार किया मगर आप रदियल्लाहु अन्हु ने ऐसा पैंतरा बदला की मरहब का वार खाली गया फिर आप ने बढ़ कर उस के सर पर इस ज़ोर की तलवार मारी की एक ही ज़र्ब से खोद कटा मगफर कटा और ज़ुल्फ़िकारे हैदरी सर को काटती हुई दांतों तक उतर आई और तलवार की मार का तड़का फौज तक पंहुचा और मरहब ज़मीन पर गिर कर ढेर हो गया | 

मरहब की लाश को ज़मीन पर तड़पते हुए देख कर उस की तमाम फौज हज़रते शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु पर टूट पड़ी लेकिन  ज़ुल्फ़िकारे हैदरी बिजली की तरह चमक चमक कर गिरती थी जिस से सफों की सफें उल्ट गईं और यहूदियों के मायानाज़ बाग डोर मरहब, हारिस, असीर. आमिर वगैरा कट गए | इसी घमसान की जंग में हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु की ढाल कट कर गिर पड़ी तो आप ने आगे बढ़ कर कमूस किले का फाटक उखाड़ दिया और किवाड़ को ढाल बना कर उस पर दुश्मनो की तलवारें रोकते रहे ये किवाड़ इतना बड़ा और वज़नी था की बाद को चालीस आदमी उस को न उठा सके | 

जंग जारी थी की हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु ने कमाले शुजाअत के साथ लड़ते हुए खैबर को फतह कर लिया और हज़रते सादिकुल वाद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान सदाकत का निशान बन कर फ़ज़ाओं में लहराने लगा की “कल में उस आदमी को झंडा दूंगा जिस के हाथ पर अल्लाह पाक फतह देगा वो अल्लाह पाक व रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मुहिब भी है और अल्लाह पाक व रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम महबूब भी |              

बेशक मोलाए काइनात रदियल्लाहु अन्हु अल्लाह पाक व रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुहिब भी हैं और महबूब भी हैं | और बिला शुबा अल्लाह पाक ने आप के हाथों से खैबर की फतह अता फ़रमाई और क़यामत तक के लिए अल्लाह पाक ने आप को फातेह खैबर के मुअज़्ज़ज़ लक़ब से सरफ़राज़ फरमा दिया और ये वो फातेह अज़ीम है जिस ने पूरे “जज़ीरातुल अरब” में यहूदियों की जंगी ताकत का जनाज़ा निकाल दिया | फातेह खैबर से क़ब्ल इस्लाम यहूदियों और मुशरिकीन के गठ जोड़ से नज़ा की हालत में था लेकिन खैबर फतह हो जाने के बाद इस्लाम इस खौफनाक नज़ा से निकल गया और आगे इस्लामी फुतुहात के दरवाज़े खुल गए | चुनांचे इस के बाद ही मक्का भी फतह हो गया | इस लिए ये एक मुसल्लमा हकीकत है की फातेह खैबर की ज़ात से तमाम इस्लामी फुतुहात का सिलसिला वाबस्ता है | बहर हाल खैबर का किला कमूस बीस दिनों के मुहासिरे और ज़बर दस्त मारिका आराई के बाद फतह हो गया “इन मारिकों में 93, यहूदी क़त्ल हुए और 15, मुस्लमान जामे शहादत से सेराब हुए” | 

खैबर का इंतिज़ाम

फतह के बाद खैबर की ज़मीन पर मुसलमानो का कब्ज़ा हो गया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरादा फ़रमाया की बनू नज़ीर की तरह अहले खैबर को भी जिला वतन कर दें | लेकिन यहूदियों ने ये दरख्वास्त की, की हम को खैबर से न निकाला जाए और ज़मीन हमारे ही कब्ज़े में रहने दी जाए हम यहाँ की पैदावार का आधा हिस्सा आप को देते रहेंगें | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन की ये दरख्वास्त मंज़ूर फ़रमा ली | चुनांचे जब खजूरें पक जातीं और गल्ला तय्यार हो जाता तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु को खैबर भेज देते वो खजूरों और अनाजों को दो बराबर हिस्सों में तकसीम कर देते और यहूदियों से फरमाते की इस में से जो हिस्सा तुम को पसंद हो वो ले लो | यहूदी इस अद्ल पर हैरान हो कर कहते थे की ज़मीनो आसमान ऐसे ही अद्ल से काइम हैं | हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की खैबर फतह हो जाने के बाद यहूदियों से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस तौर पर सुलाह फ़रमाई की यहूदी अपना सोना चांदी हथियार सब मुसलमानो के सुपुर्द कर दें और जानवरों पर जो कुछ लदा हुआ है वो यहूदी अपने पास ही रखें मगर शर्त ये है की यहूदी कोई चीज़ मुसलमानो से न छुपाएं मगर इस शर्त को कबूल कर लेने के बाद बावजूद हुई बिन अख्तब का वो चर्मी थैला यहूदियों ने गायब कर दिया जिस में बनू नज़ीर के जिला वतनी के वक़्त वो सोना चांदी भर कर लाया था जब यहूदियों से पूछगछ की गई तो वो झूट बोले और कहा की वो सारी रकम लड़ाइयों में खर्च हो गई लेकिन अल्लाह पाक ने बा ज़रिए वही अपने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बता दिया की वो थैला कहाँ है की चुनांचे मुसलमानो ने उस थैले को बर आमद कर लिया इस के बाद चूँकि किनाना बिन अबिल हुकैक ने हज़रते महमूद बिन मुस्लिमा को छत से पथ्थर गिरा कर क़त्ल कर दिया था | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को क़िसास में क़त्ल करा दिया और और उस की औरत को कैदी बना लिया | 

हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा का निकाह

कैदियों में हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा भी थीं ये बनू नज़ीर के रईसे आज़म हुई बिन अख्तब की बेटी थीं और इन का शोहर किनाना बिन अबिल हुकैक भी बनू नज़ीर का राईसे आज़म था जब सब कैदी जमा किए गए तो हज़रते दहिया कलबी रदियल्लाहु अन्हु ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन में से एक लोंडी मुझे अता कर दो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को इख़्तियार दे दिया की खुद जा कर कोई लोंडी ले लो | उन्हों ने हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा को ले लिया | बाज़ सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने इस पर गुज़ारिश की, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप ने सफिय्या को दहिया रदियल्लाहु अन्हु के हवाले कर दिया वो क़ुरैज़ा और बनू नज़ीर की रईसा हैं वो आप के सिवा किसी और के लाइक नहीं हैं | ये सुन कर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते दहिया कलबी रदियल्लाहु अन्हु और हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा को बुलाया और हज़रते दहिया कलबी रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया की तुम इस के सिवा कोई और दूसरी लोंडी ले लो | इस के बाद हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा को आज़ाद कर के आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन से निकाह फरमा लिया और तीन दिन तक मंज़िले सहबा में इन को अपने खेमे में सरफ़राज़ फ़रमाया और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को दावते वलीमा में खजूरें, घी, पनीर का मलीदा खिलाया |      

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ज़हर दिया गया

फतह के बाद चंद रोज़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खैबर में ठहरे यहूदियों को मुकम्मल अम्नो अमान अता फ़रमाया और किस्म किस्म की नवाज़िशों से नवाज़ा मगर इस बद बातिन कौम की फितरत में इस कदर ख़बासत भरी हुई थी की सलाम बिन मशकम यहूदी की बीवी “ज़ैनब” ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दावत की और गोश्त में ज़हर मिला दिया खुदा के हुक्म से गोश्त की बोटी ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ज़हर की खबर दी और आप ने एक ही लुक्मा खा कर हाथ खींच लिया लेकिन एक सहाबी हज़रते बिशर बिन बरा रदियल्लाहु अन्हु ने शिकम सेर खा लिया और ज़हर के असर से उन की शहादत हो गई और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भी ज़हरीले लुक़मे से उम्र भर तालू में तकलीफ रही | आप ने जब यहूदियों से इस के बारे में पूछा तो उन ज़ालिमों ने अपने जुर्म का इकरार कर लिया और कहा की हमने इस नियत से आप को ज़हर खिलाया की अगर आप सच्चे नबी होंगें तो आप पर इस ज़हर का कोई असर नहीं होगा वरना हमको आप से निजात मिल जाएगी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी ज़ात के लिए तो कभी किसी से इंतिकाम ही नहीं लिया इस लिए आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़ैनब से कुछ भी नहीं कहा मगर जब हज़रते बिशर बिन बरा रदियल्लाहु अन्हु की उसी ज़हर में वफ़ात हो गई तो उन के क़िसास में ज़ैनब क़त्ल की गई | 

हज़रते जाफर रदियल्लाहु अन्हु हब्शा से आ गए

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़तेह खबर से फारिग हुए ही थे की मुहाजिरीन हब्शा में से हज़रते जाफर रदियल्लाहु अन्हु जो हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के भाई थे और मक्के से हिजरत कर के हब्शा चले गए थे वो अपने साथियों के साथ हब्शा से आ गए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरते मुहब्बत से उन की पेशानी चूम ली और इरशाद फ़रमाया की में कुछ कह नहीं सकता की मुझे खैबर की फतह से ज़ियादा ख़ुशी हुई या जाफर रदियल्लाहु अन्हु के आने से | इन लोगों को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “साहिबुल हिजरतैंन” यानि दो हिजरतों वाले का लक़ब दिया क्यूंकि ये लोग मक्के से हब्शा हिजरत कर के गए फिर हब्शा से हिजरत कर के मदीने आए और बा वजूदे की ये लोग जंगे खैबर में शामिल न हो सके मगर इन लोगों को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने माले गनीमत में से मुजाहिदीन के बराबर हिस्सा दिया | 

खैबर में ऐलाने मसाइल

जंगे खैबर के मोके पर मुन्दर्जा ज़ैल फ़िक़्ही मसाइल की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तब्लीग फ़रमाई:

  1. पंजेदार परिंदे (पक्छी) को हराम फ़रमाया |
  2. तमाम दरिंदों जानवरों की हुरमत का ऐलान फरमा दिया |
  3. गधा और खच्चर हराम कर दिया गया |
  4. चान्दी सोने की खरीदो फरोख्त में कमी बेशी के साथ खरीदने और बेचने को हराम फ़रमाया और हुक्म दिया की चांदी को चांदी के बदले और सोने को सोने के बदले बराबर बराबर बेचना ज़रूरी है अगर कमी बेशी होगी तो वो सूद होगा जो हराम है |
  5. अब तक ये हुक्म था की लौंडियों से आते ही सुहबत करना जाइज़ था लेकिन अब इस्तबरा ज़रूरी करार दे दिया गया यानि अगर वो हामिला हों तो बच्चा पैदा होने तक वरना एक महीन उन से सुहबत जाइज़ नहीं औरतों से मुतआ करना भी इसी ग़ज़वे में हराम कर दिया गया | 
वादियुल कुरा की जंग

खैबर की लड़ाई से फारिग हो कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम “वादियुल कुरा” तशरीफ़ ले गए जो मक़ामे “तीमा” और “फ़िदक” के दरमियान एक वादी का नाम है | यहाँ यहूदियों की चनद बस्तियां आबाद थीं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंग के इरादे से यहाँ नहीं आए थे मगर यहाँ के यहूदी चूँकि जंग के लिए तय्यार थे इस लिए इन्हों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर तीर बरसाना शुरू कर दिए | चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के एक गुलाम जिन का नाम हज़रते मदअम रदियल्लाहु अन्हु था ये ऊँट से कजावा उतार रहे थे की इनको एक तीर लगा और ये शहीद हो गए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नेउन यहूदियों को इस्लाम की दावत दी जिस का जवाब उन बद बख्तों ने तीर व तलवार से दिया और बकायदा सफ बंदी कर के मुसलमानो से जंग के लिए तय्यार हो गए मजबूरन मुसलमानो ने भी जंग शुरू कर दी चार दिन तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन यहूदियों का मुहासिरा किए हुए इन को इस्लाम की दावत देते रहे मगर ये लोग बराबर लड़ते ही रहे आखिर दस यहूदी क़त्ल हो गए और मुसलमानो को फ़तेह मुबीन हासिल हुई इस के बाद अहले खैबर की शर्तों पर इन लोगों ने भी सुलाह कर ली की मकामी पैदावार का आधा हिस्सा मदीने भेजते रहेंगें | जब खैबर और वादियुल कुरा के यहूदियों का हाल मालूम हो गया तो “तीमा” के यहूदियों ने भी जिज़्या (टेक्स) दे कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुलाह कर ली वादियुल कुरा में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चार दिन मुकीम रहे | 

फ़िदक की सुलह

जब “फ़िदक” के यहूदियों को खैबर और वादियुल कुरा के मुआमले की इत्तिला मिली तो उन लोगों ने कोई जंग नहीं की बल्कि दरबारे नुबुव्वत में कासिद भेज कर ये दरख्वास्त की, की खैबर और वादियुल कुरा वालों से जिन शर्तों पर आप ने सुलह की है उसी तरह के मुआमले पर हम से भी सुलह कर ली जाए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन की ये दरख्वास्त मंज़ूर कर ली और उन से सुलह हो गई लेकिन चूँकि यहाँ कोई फौज नहीं भेजी गई इस लिए इस बस्ती में मुजाहिदीन को कोई हिस्सा नहीं मिला बल्कि ये खास हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मिल्किय्यत करार पाई और खैबर व वादियुल कुरा की ज़मीने तमाम मुजाहिदीन की मिल्किय्यत ठहरीं |

हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु की साहब ज़ादी

तीन दिन के बाद कुफ्फारे मक्का के चंद सरदार हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के पास आए और कहा की शर्त पूरी हो चुकी अब आप लोग मक्के से निकल जाएं हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने बारगाहे नुबुव्वत में कुफ्फार का पैगाम सुनाया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उसी वक़्त मक्के से रवाना हो गए चलते वक़्त हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु की एक छोटी साहिब ज़ादी जिन का नाम “उमामा” था | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को चचा चचा कहती हुई दौड़ी आई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचा हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु जंगे उहद में शहीद हो चुके थे | इनकी ये यतीम छोटी बच्ची मक्के में रह गई थीं जिस वक़्त ये बच्ची आप को पुकारती हुई दौड़ी आई तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने शहीद चचा जान की इस यादगार को देख कर प्यार आ गया | उस बच्ची ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भाई जान कहने के बजाए चचाजान इस रिश्ते से कहा की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु के रज़ाई भाई हैं, क्यूंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने और हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते सुवैबा रदियल्लाहु अन्हा का दूध पिया था, जब ये साहिब ज़ादी करीब आई तो हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने आगे बढ़ कर इन को अपनी गोद में उठा लिया लेकिन अब इन की परवरिश के लिए तीन दावेदार खड़े हो गए,हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने ये कहा की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये मेरी चचाज़ाद बहन है और में ने इस को सब से पहले अपनी गोद में उठा लिया है इस लिए मुझ को इस की परवरिश का हक मिलना चाहिए, हज़रते जाफर रदियल्लाहु अन्हु ने ये गुज़ारिश की, की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये मेरी चचाज़ाद बहन भी है और इस की खाला मेरी बीवी है ! इस लिए इस की परवरिश का में हकदार हूँ हज़रते ज़ैद बिन हारिस रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये मेरे दीनी भाई हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु की लड़की है इस लिए में इस की परवरिश करूंगा, तीनो साहिबों का बयान सुनकर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये फैसला फ़रमाया की “खाला माँ के बराबर होती है” लिहाज़ा ये लड़की हज़रते जाफर रदियल्लाहु अन्हु की परवरिश में रहेगी, फिर तीनो साहिबों की दिलजोई करते हुए रहमते आलम जाफर रदियल्लाहु अन्हु हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये इरशाद फ़रमाया की “ऐ अली ! तुम मुझ से हो में तुम से हूँ” और हज़रते जाफर रदियल्लाहु अन्हु से फ़रमाया की “ऐ जाफर ! सीरत व सूरत में मुझ से मुशबाहत रखते हो, और हज़रते ज़ैद बिन हारिस रदियल्लाहु अन्हु से ये फ़रमाया की “ऐ ज़ैद ! तुम मेरे भाई और मेरे मोला (आज़ाद करदा गुलाम) हो |

हज़रते मैमूना का निकाह

इसी सफर में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते बीबी मैमूना रदियल्लाहु अन्हा से निकाह फ़रमाया ये आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की चची उम्मे फ़ज़्ल ज़ौजए हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हुम की बहन थीं वापसी में जब आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक़ामे “सरफ” में पहुंचे तो इन को अपने खेमे में रख कर अपनी सुहबत से सरफ़राज़ फ़रमाया और अजीब इत्तिफाक की इस वाकिए से चालीस साल के बाद इसी मक़ामे सरफ में हज़रते बीबी मैमूना रदियल्लाहु अन्हा का विसाल हुआ और उन की कबर शरीफ भी इसी मक़ाम में है, सही कौल ये है की इन की वफ़ात का साल सं. 51, हिजरी है |

“हिजरत का आठवां साल”

हिजरत का आठवां साल भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्दस हयात के बड़े बड़े वकिआत पर मुश्तमिल है हम इन में से यहा चंद अहम्मियत व शोहरत वाले वाक़िआत का तज़किरा करते हैै | 

जंगे मौता

“मौता” मुलके शाम में एक मकाम का नाम है, यहां स, 8, हिजरी में कुफ्र व इस्लाम का वो अज़ीमुश्शान मारिका हुआ जिस में एक लाख लश्करे कुफ्फार से सिर्फ तीन हज़ार जां निसार मुसलमानों ने अपनी जान पर खेल कर ऐसी मारिका आराई की कि यह लड़ाई तारीखे इस्लाम में एक तारीखी यादगार बन कर क़यामत तक बाकी रहेगी और इस जंग में सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम की बड़ी बड़ी उलूल अज़्म हस्तियां शरफे शहादत से सरफ़राज़ हुईं |

इस जंग का सबब

इस जंग का सबब यह हुआ कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “बसरा” के बादशाह या केसरे रुम के नाम एक ख़त लिख कर हजरते हारिस बिन उमेर रदियल्लाहु अन्हु के ज़रिए रवाना फरमाया, रास्ते में “बलका” के बादशाह शुरहबील   बिन अमर ग़स्सानि ने जो कैसरे रुम का बाज गुज़ार था हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस कासिद को निहायत बेदर्दी के साथ रस्सी में बांध कर कत्ल कर दिया । जब बरगाहे रिसालत में इस हादिसे की इत्तिला पहुंची तो कल्बे मुबारक पर इंतिहाई रंज व सदमा पहुंचा, उस वक्त आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन हज़ार मुसलमानों का लश्कर तय्यार फरमाया और अपने दस्ते मुबारक से सफेद रंग का झंडा बांध कर हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु के हाथ में दिया और इन को इस फौज का सिपह सालार बनाया और इरशाद फरमाया की अगर ज़ैद बिन हारीसा शहीद हो जाए तो हजरते जाफर सिपह सालार होंगे और जब वोह  भी शहादत से सरफराज़ हो जाए तो इस झंडे के अलम बरदार हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा होंगे इन के बाद लश्करे इस्लाम जिस को मुंतखब करे वो सिपाह सालार होगा इस लश्कर को रुखसत करने के लिए खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मकामे सनियायतुल विदा तक तशरीफ ले गए और लश्कर के सिपाह सालार को हुक्म फरमाया कि तुम हमारे कासिद हज़रत हारिस बिन उमैर रदियल्लाहु अन्हु की शहादत गाह में जाओ जहाँ उस जांनिसार ने अदाए फ़र्ज़ में अपनी जान दी है, पहले वहां के कुफ्फार को इस्लाम की दावत दो अगर वो लोग इस्लाम कबूल कर लें तो फिर वो तुम्हारे इस्लामी भाई हैं वरना तुम अल्लाह की मदद तलब करते हुए उन से जिहाद करो | 

जब लश्कर चल पड़ा तो मुसलमानो ने बुलंद आवाज़ से ये दुआ दी की खुदा सलामत और कामयाब वापस लाए जब ये फौज मदीने से कुछ दूर आगे निकल गई तो खबर मिली की खुद कैसरे रूम मुश्रिकीन की एक लाख फौज ले कर बल्कि की सर ज़मीन में खेमा लगाए हुए है | ये खबर पा कर अमीरे लश्कर हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु ने अपने लश्कर को पड़ाव का हुक्म दे दिया और इरादा किया की बारगाहे रिसालत में इस की इत्तिला दी जाए और हुक्म का इन्तिज़ार किया जाए | मगर हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु फ़रमाया की हमारा मकसद फतह या माले गनीमत नहीं हैं बल्कि हमारा मतलूब तो शहादत है | क्यूंकि शहादत है मक़सूदो मतलूबे मोमिन न माले गनीमत न किश्वर कुशाई और ये मकसदे बुलंद हर वक़्त हर हाल में हासिल हो सकता है हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु की ये तकरीर सुनकर हर मुजाहिद जोशे जिहाद में बेखुद हो गया और सब की ज़बान पे यही तराना था बढ़ते चलो बढ़ते चलो मुजाहिदों | गरज़ ये मुजाहिदीन इस्लाम मोता की सर ज़मीन पे दाखिल हो गए और वहां पहुंच कर देखा की वाकई बहुत बड़ा लश्कर रेशमी ज़र्क बर्क वर्दियां पहने हुए बेपनाह तैयारियों के साथ जंग के लिए खड़ा है एक लाख से ज़ियादा लश्कर का भला तीन हज़ार से मुकाबला ही क्या? मगर मुस्लमान खुदा पाक के भरोसे पर मुकाबले के लिए डट गए |  

रेफरेन्स (हवाला)

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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