हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 19)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 19)

मारिका आराई यानि जंगे “मोता” का मंज़र

सब से पहले मुसलमानो के अमीरे लश्कर हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु  ने आगे बढ़ कर कुफ्फार के लश्कर को इस्लाम की दावत दी | जिस का जवाब कुफ्फार ने तीरों की मार और तलवारों की वार से दिया, ये मंज़र देख कर मुस्लमान भी जंग के लिए तय्यार हो गए और लश्करे इस्लाम के सिपाह सालार हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु घोड़े से उतर कर पैदल मैदाने जंग में कूद पड़े और मुसलमानो ने भी निहायत जोशो खरोश के साथ लड़ना शुरू कर दिया लेकिन इस घमसान की लड़ाई में काफिरों ने हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु को नैज़ों और बरछियों से छेद डाला और वो “जवां मरदी के साथ लड़ते हुए शहीद हो गए”, फ़ौरन ही झपट कर हज़रते जाफर बिन अबी तालिब रदियल्लाहु अन्हु ने परचमे इस्लाम को उठा लिया मगर इन को एक रूमी मुशरिक ने ऐसी तलवार मारी की ये कट कर दो टुकड़े हो गए लोगों का बयान है की हमने इन की लाश देखि थी, इन के बदन पर नेज़ों और तलवारों के 90, नव्वे से कुछ ज़ियादा ज़ख्म थे, लेकिन कोई ज़ख्म इन की पीठ के पीछे नहीं लगा था बल्कि सब के सब ज़ख्म सामने ही की तरफ लगे थे, हज़रते जाफर रदियल्लाहु अन्हु के बाद हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु ने अलमे इस्लाम हाथ में ले लिया | फ़ौरन ही उन के चचा ज़ाद भाई ने गोश्त से भरी हुई एक हड्डी पेश की और अर्ज़ किया की भाई जान ! आप रदियल्लाहु अन्हु ने कुछ खाया पिया नहीं है लिहाज़ा इस को खा लीजिए, आप ने एक ही बार दांत से नोच कर खाया था की कुफ्फार का बे पनाह हुजूम आप रदियल्लाहु अन्हु पर टूट पड़ा आप ने हड्डी फेंक दी और तलवार निकाल कर दुश्मनो के नरगे में घुस कर रज्ज़ के ये अशआर पढ़ते हुए इंतिहाई दिलेरी और जांबाज़ी के साथ लड़ने लगे मगर ज़ख्मो से निढाल हो कर ज़मीन पर गिर पड़े और शरबते शहादत से सेराब हो गए | 

अब लोगों के मश्वरे से हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु झंडे के अलम बर दार बने और इस कदर शुजाअत और बहादुरी के साथ लड़े की 9, तलवारें टूट टूट कर उन के हाथ से गिर पड़ीं, और अपनी जंगगी महारत और कमाले हुनर मदनी से इस्लामी फौज को दुश्मनो के नरगे से निकाल लाए |

इस जंग में बारह 12, मुअज़्ज़ज़ सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम शहीद हुए उन के नाम ये हैं:                       

  1. हज़रते ज़ैद बिन हारिसा 
  2. हज़रते जाफर बिन अबी तालिब 
  3. हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा 
  4. हज़रते मसऊद बिन ओस 
  5. हज़रते वहब बिन साद 
  6. हज़रते उबाद बिन कैस 
  7. हज़रते हारिस बिन नोमान 
  8. हज़रते सुराका बिन उमर
  9. हज़रते अबू कलीम बिन उमर 
  10. हज़रते जाबिर बिन उमर 
  11. हज़रते उमर बिन साद 
  12. हज़रते होब्जा ज़िब्बी  

इस्लामी लश्कर ने बहुत से कुफ्फार को क़त्ल किया और कुछ माले गनीमत भी हासिल किया और सलामती के साथ मदीने वापस आ गए | 

निगाहें नबुव्वत का मोजिज़ा

जंगे मोता की मारिका आराई में जब घमसान का रन पड़ा तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीने से मैदाने जंग को देख लिया, और आप की निगाहों से तमाम परदे इस तरह उठ गए की मैदाने जंग की एक एक सरगुज़श्त को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगाहे नुबुव्वत ने देखा | चुनांचे बुखारी की रिवायत में है की हज़रते ज़ैद व हज़रते जाफर व हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हुम की शहादतों की खबर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मैदाने जंग से खबर आने से पहले ही अपने सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम को सुना दी | चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इंतिहाई रंजो गम की हालत में सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के भरे मजमे में ये इरशाद फ़रमाया की ज़ैद रदियल्लाहु अन्हु ने झंडा लिया वो भी शहीद हो गए, फिर जाफर रदियल्लाहु अन्हु ने झंडा लिया वो भी शहीद हो गए, फिर अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु अलम बरदार बने और वो भी शहीद हो गए, यहाँ तक की झंडे को खुदा की तलवारों में से एक तलवार (खालिद बिन वलीद) ने अपने हाथों में लिया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को ये खबरें सुनाते रहे और आप की आँखों से आंसू जारी थे, मूसा बिन अक़बा ने अपने मग़ाज़ी में लिखा है की जब हज़रते याला बिन उमय्या रदियल्लाहु अन्हु जंगे मोता की खबर ले कर दरबारे नुबुव्वत में पहुंचे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन से फ़रमाया की तुम मुझे वहां की ख़बरें सुनाओ, हज़रते याला रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप ही सुनाइए जब आप ने वहां का पूरा पूरा हल व माहौल सुनाया तो हज़रते याला रदियल्लाहु अन्हु ने कहा की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बात भी नहीं छोड़ी की जिस को में बयान करूँ,

हज़रते जाफर शहीद रदियल्लाहु अन्हु की बीवी हज़रते अस्मा बिन्ते उमेस रदियल्लाहु अन्हा का बयान है की में अपने बच्चों को नहला धुला कर तेल काजल से आरास्ता कर के आटा गूंध लिया था की बच्चों के लिए रोटी पकाऊं की इतने में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे घर में तशरीफ़ लाए और फ़रमाया की जाफर रदियल्लाहु अन्हु के बच्चों को मेरे सामने लाओ जब मेने बच्चों को पेश किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बच्चों को चूमने और सूंघने लगे और आप के आँखों से आंसू की धार रुख़्सारे पुर अनवार पर बहने लगी तो में ने अर्ज़ किया की किया हज़रते जाफ़र रदियल्लाहु अन्हु और उन के साथियों के बारे में कोई खबर आई है? तो इरशाद फ़रमाया की हाँ ! “वो लोग आज ही शहीद हो गए हैं” ये सुन कर मेरी चीख निकल गई और मेरा घर औरतों से भर गया इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने काशनए नुबुव्वत पे तशरीफ़ ले गए और अज़्वाजे मुतह्हिरात से फ़रमाया की जाफ़र रदियल्लाहु अन्हु ने घर वालों के लिए खाना तय्यार कराओ |

जब हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु अपने लश्कर के साथ मदीने के करीब पहुचें तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घोड़े पर सवार हो कर उन लोगों के इस्तकबाल के लिए तशरीफ़ ले गए और मदीने से मुस्लमान और छोटे छोटे बच्चे भी दौड़ते हुए मुजाहिदिने इस्लाम की मुलाकात के लिए गए और हज़रते हस्सान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु ने जंगे मोता के शोहदाए किराम रदियल्लाहु अन्हुम का ऐसा पुर दर्द मरसिया सुनाया की तमाम सामेईन रोने लगे |

हज़रते जाफर रदियल्लाहु अन्हु के दोनों हाथ शहादत के वक़्त कट कर गिर पड़े थे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के बारे में फ़रमाया की अल्लाह पाक ने हज़रते जाफर रदियल्लाहु अन्हु को उन के दोनों हाथों के बदले “बाज़ू अता फरमाए हैं” जिन से उड़ उड़ कर वो जन्नत में जहाँ चाहते हैं चले जाते हैं यही वजह है की हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हु जब हज़रते जाफर रदियल्लाहु अन्हु के साहब ज़ादे हज़रते अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु को सलाम करते थे तो ये कहते थे की “ऐ दो बाज़ुओं वाले के बेटे ! तुम पर सलाम हो” 

जंगे मोता और फतह मक्का के दरमियान चंद छोटी छोटी जमातों को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुफ्फार की मुदाफाअत के लिए मुख्तलिफ मक़ामात पर भेजा, इन में से कुछ लश्करों के साथ कुफ्फार का टकराओ भी हुआ जिन का तफ्सील से बयान ज़ुरक़ानी व मदारीजुन नुबुव्वह वगैरा में लिखा हुआ है, इन सरिय्यों के नाम ये हैं: ज़ातुससालिस, सरिय्यतुल खबत, सरिय्यए अबू क़तादा, (नज्द) सरिय्यए अबू क़तादा (सनम) मगर इन सरियियो में “सरिय्यतुल खबत” ज़ियादा मशहूर है जिस का मुख़्तसर बयान ये है:

सरिय्यतुल खबत

इस सरिय्ये को हज़रते इमाम बुखारी रहमतुल्लाह अलैह ने “ग़ज़वए सैफुल बहर” के नाम से ज़िक्र किया है, रजब सं. 8, हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू उबैदा बिन जर्राह रदियल्लाहु अन्हु को तीन सो सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के लश्कर पर अमीर बना कर समंदर की जानिब रवाना फ़रमाया ताकि ये लोग कबीलए जुहेना के कुफ्फार की शरारतों पर नज़र रखें इस लश्कर में खुराक की इस कदर कमी पड़ी की अमीरे लश्कर मुजाहिदीन को रोज़ाना एक एक खजूर राशन में देते थे, यहाँ तक की एक वक़्त ऐसा भी आ गया ये खजूरें भी खत्म हो गईं और लोग भूक से बेचैन हो कर दरख्तों के पत्तें खाने लगे यही वजह हे की आम तौर पर मुअर्रिख़ीन ने इस सरिय्ये का नाम “सरिय्यतुल खबत” या जैशुल खबत” रखा है, “खबत” अरबी ज़बान में दरख़्त के पत्तों को कहते हैं चूँकि मुजाहिदीने इस्लाम ने इस सरिय्ये में पेड़ों के पत्ते खा कर जान बचाई इस लिए ये सरिय्यतुल खबत के नाम से मशहूर हो गया |

एक अजीबुल खिलकत मछली

हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की हम लोगों को इस सफर में तकरीबन एक महीना रहना पड़ा और जब भूक की शिद्दत से हम लोग पेड़ों के पत्ते खाने लगे तो अल्लाह पाक ने ग़ैब से हमारे रिज़्क़ का ये सामान पैदा फरमा दिया की समंदर की मोजो ने एक इतनी बड़ी मछली किनारे पर फेंक दी, जो एक पहाड़ की जैसी थी चुनांचे तीन सौ सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम अठ्ठारा दिनों तक उस मच्छी का गोश्त खाते रहे और उस की चर्बी अपने बदन पर मलते रहे और जब वहां से रवाना होने लगे तो उस का गोश्त काट काट कर मदीने तक लाए और जब ये लोग बारगाहे नुबुव्वत में पहुंचे और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इस का तज़किरा किया तो आप ने इरशाद फ़रमाया की ये अल्लाह पाक की तरफ से तुम्हारे लिए रिज़्क़ का सामान हुआ था फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस मछली का गोश्त तलब फ़रमाया और उस में से कुछ तनावुल भी फ़रमाया, ये इतनी बड़ी मछली थी की अमीरे लश्कर हज़रते अबू उबैदा रदियल्लाहु अन्हु ने उस की दो पसलियां ज़मीन में गाड़ कर खड़ी कर दीं तो कजावा बंधा हुआ उस मेहराब के अंदर से गुज़र गया | 

“फ़तेह मक्का”  

रमज़ानुल मुबारक सं. 8, हिजरी मुताबिक जनवरी सं. 630, ई :- रमज़ानुल मुबारक सं. 8, हिजरी तारीखे नुबुव्वत का निहायत ही अज़ीमुश्शान उन्वान (टॉपिक) है और सीरते मुक़द्दसा का वो सुनहरा बाब है की जिस की आबो ताब से हर मोमिन का दिल क़यामत तक मसर्रतों का आफताब बना रहेगा क्यूंकि ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसी तारीख से आठ साल पहले इंतिहाई रंजीदगी के आलम में अपने यारे गार को साथ ले कर रात की तारीकी में मक्के से हिजरत फरमा कर अपने वतने अज़ीज़ को खेर बाद कह दिया था और मक्के से निकलते वक़्त खुदा के मुकद्द्स घर खाने काबा पर एक हसरत भरी निगाह डाल कर ये फरमाते हुए मदीने से रवाना हुए थे, की “ऐ मक्का ! खुदा की कसम ! तू मेरी निगाहे मुहब्बत में तमाम दुनिया के शहरों से ज़ियादा प्यारा है अगर मेरी कौम मुझे न निकालती तो में हरगिज़ तुझे न छोड़ता” लेकिन आठ साल के बाद ये वही मसर्रत ख़ेज़ तारीख है की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक फातेह आज़म की शानो शौकत के साथ इसी शहर मक्का में नुज़ूले इजलाल फ़रमाया और बैतुल्लाह शरीफ में दाखिल हो कर अपने सजदों को जमालो जलाल से खुदा के मुकद्द्स घर की अज़मत को सरफ़राज़ फ़रमाया |

लेकिन नाज़रीन के ज़हनो में ये सवाल उठता होगा की जब की हुदैबिया के सुलह नामे में ये तहरीर किया जा चुका था की दस साल तक फ़रीक़ैन के माबैन कोई जंग न होगी तो फिर आखिर वो कौन सा ऐसा सबब नमूदार हो गया की सुलहनामे के फक्त दो साल ही बाद ताजदारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अहले मक्का के सामने हथियार उठाने की ज़रूरत पेश आ गई और आप एक अज़ीम लश्कर के साथ फ़ातिहाना हैसियत से मक्के में दाखिल हुए, तो सवाल का जवाब ये है की इस का सबब कुफ्फारे मक्का की “बद अहदी अहद शिकनी” और हुदैबिया के सुलहनामे से गद्दारी है | 

कुफ्फारे कुरेश की अहद शिकनी

सुलेह हुदैबिया के बयान में आप पढ़ चुके हैं की सुलहनामे में एक ये शर्त भी दर्ज थी की कबाइले अरब में से जो कबीला कुरेश के साथ मुआहिदा करना चाहे वो कुरेश के साथ मुआहिदा करे और जो हज़रात मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ मुआहिदा करे | चुनांचे इसी बिना पर कबीलए बनी बक्र ने कुरेश से बाह्मी इमदाद का मुआहिदा कर लिया और कबीलए बनी खुज़ाआ ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इम्दादे बाह्मी का मुआहिदा कर लिया | ये दोनों कबीले मक्का के करीब ही में आबाद थे लेकिन इन दोनों में अरसए दराज़ से सख्त दुश्मनी और मुखालफत चली आ रही थी | एक मुद्दत से तो कुफ्फारे कुरेश और दूसरे कबाइले अरब के कुफ्फार मुसलमानो से जंग कर ने में अपना सारा ज़ोर खर्च कर रहे थे लेकिन सुलेह हुदैबिया की ब दौलत जब मुसलमानो की जंग से कुफ्फारे कुरेश और दूसरे कबाइले कुफ्फार को इत्मीनान मिला तो कबीलए बनी बक्र ने कबीलए बनी खुज़ाआ से अपनी पुरानी दुश्मनी का इंतिकाम लेना चाहा और अपने हलीफ कुफ्फारे कुरेश से मिलकर बिलकुल अचानक की तौर कबीलए बनी खुज़ाआ पर हमला कर दिया और इस हमले में कुफ्फारे कुरेश के तमाम रुऊसा यानि इकरिमा बिन अबू जहल, सफ़वान बिन उमय्या व सुहैल बिन अम्र वगैरा बड़े बड़े सरदारों ने ऐलानिया बनी खुज़ाआ को क़त्ल किया | 

बेचारे बनी खुज़ाआ इस खौफनाक ज़ालिमाना हमले की ताब न ला सके और अपनी जान बचने के लिए हरमे काबा में पनाह लेने के लिए भागे बनी बक्र के अवाम ने तो हरम में तलवार चलाने से हाथ रोक लिया और हरमे इलाही का एहतिराम किया | लेकिन बनी बक्र का सरदार “नौफल” इस कदर जोशे इंतिकाम में आप से बाहर हो चुका था की वो हरम में भी बनी खुज़ाआ को निहायत बेदर्दी के साथ क़त्ल करता रहा और चिल्ला चिल्ला कर अपनी कौम को ललकारता रहा की फिर ये मौका कभी हाथ नहीं आ सकता चुनांचे उन दरिंदा सिफ़त खूंख्वार इंसानो ने हरमे इलाही के एहतिराम को भी ख़ाक में मिला दिया और हरमे काबा की हुदूद से निहायत ही ज़ालिमाना तौर पर बनी खुज़ाआ का खून बहाया और कुफ्फारे कुरेश ने भी इस क़त्लो गारत और कुश्तो खून में खूब खूब हिस्सा लिया | ज़ाहिर है की कुरेश ने अपनी इस हरकत से हुदैबिया के मुआहिदे को अमली तौर पर तोड़ डाला क्यूंकि बनी खुज़ाआ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुआहिदा कर के आप के हलीफ़ बन चुके थे, इस लिए बनी खुज़ाआ पर हमला करना ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर हमला करने के बराबर था इस हमले में बनी खुज़ाआ के 23, तेईस आदमी क़त्ल हो गए | इस हादसे के बाद कबीलए बनी खुज़ाआ के सरदार अम्र बिन सालिम ख़ुज़ाई चालीस आदमियों का वफ्द ले कर फर्याद करने और इमदाद तलब करने के लिए मदीने बारगाहे रिसालत में पहुंचे और यही फ़तेह मक्का की तम्हीद हुई | 

ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से इस्तिआनत

हज़रते बीबी मैमूना रदियल्लाहु अन्हा का बयान है की एक रात हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घर में वुज़ू फरमा रहे थे की एक दम बिलकुल अचानक आप ने बुलंद आवाज़ से तीन बार ये फ़रमाया की लब्बैक लब्बैक लब्बैक (में तुम्हारे लिए बार बार हाज़िर हूँ) फिर तीन बार बुलंद आवाज़ से आप ने ये इरशाद फ़रमाया की तुम्हे मदद मिल गई जब आप वुज़ू खाने से निकले तो में ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप तन्हाई में किस से गुफ्तुगू फरमा रहे थे? तो इरशाद फ़रमाया की ऐ मैमूना रदियल्लाहु अन्हा गज़ब हो गया मेरे हलीफ बनी खुज़ाआ पर बनी बक्र और कुफ्फारे कुरेश ने हमला कर दिया है और इस मुसीबत व बे कसी के वक़्त में बनी खुज़ाआ ने वहां से चिल्ला चिल्ला कर मुझे मदद के लिए पुकारा है और मुझ से मदद तलब की है और में ने उन की पुकार सुन कर उन की ढारस बांधने के लिए उन को जवाब दिया है हज़रते बीबी मैमूना रदियल्लाहु अन्हा कहती है की इस वाकिए के तीसरे दिन जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़े फज्र के लिए मस्जिद में तशरीफ़ ले गए और नमाज़ से फारिग हुए तो फ़ौरन बनी खुज़ाआ के मज़लूमीन ने रज्ज़ के इन अशआर को बुलंद आवाज़ से पढ़ना शुरू कर दिया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने उन की इस पुर दर्द रिक़्क़त अंगेज़ फर्याद को बगैर सुना अशआर ये हैं : ऐ खुदा ! में मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को वो मुआहिदा याद दिलाता हूँ जो हमारे और इन के बाप दादाओं के दरमियान कदीम ज़माने से हो चुका है | तो  खुदा आप को सीधी राह पे चलाए आप हमारी भर पूर मदद कीजिए और खुदा के बन्दों को बुलाइए वो सब मदद के लिए आएंगें, उन मदद करने वालों में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम भी गज़ब की हालत में हो की अगर उन्हें ज़िल्लत का दाग लगे तो उन का तेवर बदल जाए | यक़ीनन कुरेश ने आप से वादा खिलाफी की है और आप से मज़बूत मुआहिदा कर के तोड़ डाला है | इन अशआर को सुन कर  हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगों को तसल्ली दी और फ़रमाया की मत घबराओ में तुम्हारी मदद के लिए तय्यार हूँ |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अम्न पसंदी :- इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुरेश के पास कासिद भेजा और तीन शर्तें पेश फ़रमाई की इन में से कोई एक शर्त कुरेश मंज़ूर कर लें: 

  1. बनी ख़ुज़ाआ के मक़तूलों का खून बहा, दिया जाए |
  2. कुरेश कबीलए बनी बक्र की हिमायत से अलग हो जाएं |
  3. ऐलान कर दिया जाए की हुदैबिया का मुआहिदा टूट गया | 

जब  हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कासिद ने इन शर्तों को कुरेश के सामने रखा कुरता बिन अब्दे अम्र ने कुरेश का नुमाइंदा बन कर जवाब दिया की न हम मक़तूलों के खून का मुआवज़ा देंगें न अपने हलीफ़ कबीलए बनी बक्र की हिमायत छोड़ेंगें, हाँ तीसरी शर्त हमें मंज़ूर है और हम ऐलान करते हैं की हुदैबिया की मुआहिदा टूट गया | लेकिन कासिद के चले जाने के बाद कुरेश को अपने इस जवाब पर नदामत हुई | चुनांचे चंद रूऊसाए कुरेश अबू सुफियान के पास गए और ये कहा की अगर ये मुआमला न सुलझा तो फिर समझ लो की यक़ीनन मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हम पर हमला कर देंगें | अबू सुफियान ने कहा की मेरी बीबी हिंदा बिन्ते उतबा ने एक ख्वाब देखा है की “मक़ामे “हजून” से मक़ामे “खनदमा” तक एक खून की नहर बहती हुई आई है, फिर अचानक वो खून गाइब हो गया कुरेश ने इस ख्वाब को मनहूस समझा और खौफ व दहशत से सहम गए और अबू सुफियान पर बहुत ही ज़ियादा दबाओ डाला की वो फौरन मदीने जा कर हुदैबिया के मुआहिदे की तजदीद करें |                          

अबू सुफियान की कोशिश

इस के बाद बहुत तेज़ी के साथ अबू सुफियान मदीने गया और पहले अपनी लड़की हज़रते उम्मुल मोमिनीन उम्मे हबीबा रदियल्लाहु अन्हा के मकान पर पंहुचा और बिस्तर पर बैठना ही चाहता था की हज़रते उम्मुल मोमिनीन उम्मे हबीबा रदियल्लाहु अन्हा ने जल्दी से बिस्तर उठा लिया | अबू सुफियान ने हैरान हो कर पूछा की बेटी तुम ने बिस्तर क्यों उठा लिया? क्या बिस्तर मेरे काबिल नहीं समझा या मुझ को बिस्तर के काबिल नहीं समझा? उम्मे हबीबा रदियल्लाहु अन्हा ने जवाब दिया की ये रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बिस्तर है और तुम मुशरिक और नजिस हो | इस लिए मेने ये गवारा न किया की तुम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बिस्तर पर बैठे | ये सुन कर अबू सुफियान के दिल पर चोट लगी और वो रंजीदह हो कर वहां से चला आया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हो कर अपना मकसद बयान किया | आप ने कोई जवाब नहीं दिया फिर अबू सुफियान हज़रते अबू बक्र सिद्दीक व हज़रते उमर व हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुम के पास गया इन सब हज़रात ने जवाब दिया की हम कुछ नहीं कर सकते | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के पास जब अबू सुफियान पंहुचा तो वहां हज़रते बीबी फातिमा रदियल्लाहु अन्हा और हज़रते इमामे हसन रदियल्लाहु अनहु भी थे | अबू सुफियान ने बड़ी लजाजत से कहा की ऐ अली ! तुम कौम में बहुत ही रहम दिल हो हम एक मकसद ले कर यहाँ आएं हैं क्या हम यूँही नाकाम चले जाएं | सिर्फ यही चाहते हैं की तुम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हमारी सिफारिश कर दो हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की ऐ अबू सुफियान ! हम लोगों की ये मजाल नहीं है की हम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इरादे और उन की मर्ज़ी में कोई मुदाखिलत कर सकें | 

हर तरफ से मायूस हो कर अबू सुफियान ने हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा से कहा की ऐ फातिमा ! ये तुम्हारा पांच साल का बच्चा (इमामे हसन) एक बार अपनी ज़बान से इतना कह दे की में ने दोनों फरीक में सुलाह करा दी तो आज से ये बच्चा अरब का सरदार कह कर पुकारा जाएगा |  हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा ने जवाब दिया की बच्चों को इन मुआमलात में क्या दखल? बिला आखिर अबू सुफियान ने कहा की ऐ अली ! मुआमला बहुत कठिन नज़र आता है कोई तदबीर बताओ? हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की में इस सिलसिले में तुम को कोई मुफीद राए तो नहीं दे सकता | लेकिन तुम बनी किनाना के सरदार हो तुम खुद ही लोगों के सामने ऐलान कर दो की में ने हुदैबिया के मुआहिदे की तजदीद कर दी | अबू सुफियान ने कहा की किया मेरा ये ऐलान कुछ मुफीद हो सकता है? हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की एक तरफ़ा ऐलान ज़ाहिर है की कुछ मुफीद नहीं हो सकता | मगर अब तुम्हारे पास इस के सिवा और चराए कार ही क्या है? अबू सुफियान वहां से मस्जिदे नबवी में आया और बुलंद आवाज़ से मस्जिद में ऐलान कर दिया की में ने मुआहिदाए हुदैबिया की तजदीद कर दी मगर मुसलमानो में से किसी ने भी कोई जवाब नहीं दिया | अबू सुफियान ये ऐलान कर के मक्के रवाना हो गया | जब मक्के पंहुचा तो कुरेश ने पूछा की मदीने में क्या हुआ? अबू सुफियान ने सारी दास्तान बयान कर दी | तो कुरेश ने सवाल किया की जब तुम ने अपनी तरफ से मुआहिदाए हुदैबिया की तजदीद का ऐलान किया तो क्या मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस को कबूल कर लिया? अबू सुफियान ने कहा की “नहीं” ये सुन कर कुरेश ने कहा की ये तो कुछ भी न हुआ | ये न तो सुलाह है की हम इत्मीनान से बैठें न ये जंग है की लड़ाई का सामना किया जाए | इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों को जंग की तय्यारी का हुक्म दे दिया और हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा से भी फरमा दिया की जंग के हथियार दुरुस्त कर लो और अपने हलीफ कबाइल  को भी जंगगी तय्यारियों के लिए हुक्म नामा भेज दिया मगर किसी को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये नहीं बताया किस से जंग का इरादा है? यहाँ तक की हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु से भी आप ने कुछ नहीं फ़रमाया चुनांचे हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा के पास आए और देखा की वो जंगगी हथियारों को निकाल रही हैं तो आप ने मालूम किया की क्या हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया है? अर्ज़ किया “जी हाँ” फिर आप ने पूछा की क्या तुम्हे कुछ मालूम है की कहाँ का इरादा है? हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा ने कहा की “वल्लाह मुझे मालूम नहीं” गरज़ इंतिहाई ख़ामोशी और राज़दारी के साथ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जंग की तय्यारी फ़रमाई और मकसद ये था की अहले मक्का को खबर न होने पाए अचानक उन पर हमला कर दिया जाए |  

रेफरेन्स (हवाला)

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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