हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 21)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 21)

मक्के में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ियाम गाह

बुखारी की रिवायत है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़तेह मक्का के दिन हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु की बहन हज़रते उम्मे हानि बिन्ते अबी तालिब के मकान पर तशरीफ़ ले गए और वहां ग़ुस्ल फ़रमाया फिर आठ रकअत नमाज़े चाशत पढ़ी | ये नमाज़ बहुत ही मुख़्तसर तौर पर अदा फ़रमाई लेकिन रुकू सजदा मुकम्मल तौर पर अदा फरमाते रहे |

एक रिवायत में ये भी आया है की आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उम्मे हानि रदियल्लाहु अन्हा से फ़रमाया क्या घर में कुछ खाना भी है? उन्हों ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! खुश्क रोटी के चंद टुकड़े हैं | मुझे बड़ी शर्म दामन गीर होती है की इस को आप के सामने पेश कर दूँ | इरशाद फ़रमाया की लाओ फिर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दस्ते मुबारक से उन खुश्क रोटियों को तोड़ा और पानी में भिगो कर नरम किया और हज़रते उम्मे हानि रदियल्लाहु अन्हा ने उन रोटियों के सालन के लिए नमक पेश किया तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की क्या कोई सालन घर पे नहीं है उन्हों ने अर्ज़ किया की मेरे घर में “सिरके” के सिवा कुछ भी नहीं है | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की “सिरका लाओ | आप ने सिरके को रोटी पर डाला और तनावुल फरमा कर खुदा का शुक्र बजा लाए | फिर फ़रमाया की “सिरका” बेहतरीन सालन है और जिस घर में सिरका होगा उस के घर वाले मोहताज न होगें | फिर हज़रते उम्मे हानि रदियल्लाहु अन्हा ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में हारिस बिन हिशाम अबू जहल के भाई और ज़ुहैर बिन उमय्या को अमान दे दी है लेकिन मेरे भाई हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु इन दोनों को इस जुर्म में क़त्ल करना चाहते हैं की इन दोनों ने हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु की फौज से जंग की है तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की ऐ उम्मे हांनि! जिस को तुम ने अमान दे दी है उस के लिए हमारी तरफ से भी अमान है | 

बैतुल्लाह में दाखिला

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का झंडा “हुजून” में जिस को आज कल जन्नतुल माला कहते हैं “मस्जिदुल फ़तह” के करीब में गाड़ा गया फिर आप अपनी ऊंटनी पर सवार हो कर और हज़रते उस्मान बिन ज़ैद रदियल्लाहु अन्हु को ऊंटनी पर अपने पीछे बिठा कर मस्जिदे हराम की तरफ रवाना हुए और हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु और काबे के कलीद बरदार उस्मान बिन तल्हा भी आप के साथ थे | आप ने मस्जिदे हराम में अपनी ऊंटनी को बिठाया और काबे का तवाफ़ किया और हजरे अस्वद को बोसा दिया |

ये इन्क़िलाबे ज़माना की एक हैरत अंगेज़ मिसाल है की हज़रते इब्राहिम खलीलुल्लाह अलैहिस्सलाम जिन का लक़ब “बुत शिकन” है उन की यादगार खाने काबा के अन्दरूने हिसार तीन सौ साठ बुतों की क़तार थी | फ़ातेहे मक्का हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हज़रते खलील अलैहिस्सलाम का जानशीन होने की हैसियत से फर्ज़े अव्वलीन था की यादगारे खलील को बुतों की नजिस और गन्दी आलाइशों से पाक करें चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुद बा खुद नफ़्से नफीस एक छड़ी से ले कर खड़े हुए और इन बुतों को छड़ी की नोक से ठोंके मार मार कर गिराते जाते थे और: की आयत की तिलावत फरमाते जाते थे, तर्जुमा कंज़ुल ईमान: हक आ गया और बातिल मिट गया और बातिल मिटने ही की चीज़ थी | पारा 15, सूरह बनी इसराइल आयत 81,

फिर उन बुतों को जो ऐन काबे के अंदर थे, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया की वो सब निकाले जाएं | चुनांचे वो सब बुत बाहर निकाल दिए गए उन्ही बुतों में हज़रते इब्राहिम व इस्माइल अलैहिस्सलाम के मुजस्समे भी थे जिन के हाथों में फाल खोलने के तीर थे | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के देख कर फ़रमाया की अल्लाह पाक इन काफिरों को मार डाले | | इन काफिरों को खूब मालूम है की इन दोनों पैगम्बरों ने कभी भी फाल नहीं खोला | जब तक एक एक बुत काबे के अंदर से न निकल गया, आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने काबे के अंदर कदम नहीं रखा जब तमाम बुतों से काबा पाक हो गया तो आप अपने साथ हज़रते उसामा बिन ज़ैद और हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हुमा और उस्मान बिन तल्हा हजबी को ले कर खानए काबा के अंदर तशरीफ़ ले गए और बैतुल्लाह शरीफ के तमाम गोशों में तकबीर पढ़ी और दो रकत नमाज़ भी अदा फ़रमाई इस के बाद बाहर तशरीफ़ लाए | काबए मुक़द्दसा के अंदर से जब बाहर निकले तो उस्मान बिन तल्हा को बुला कर काबे की कुंजी उन के हाथ में अता फ़रमाई और इरशाद फ़रमाया की ये लो कुंजी हमेशा हमेशा के लिए तुम लोगों में रहेगी ये कुंजी तुम से वो ही छीनेगा जो ज़ालिम होगा | 

शहंशाहे रिसालत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दरबारे आम

इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने शहंशाहे इस्लाम की हैसियत से हरमे इलाही में सब से पहला दरबारे आम मुनअकिद फ़रमाया जिस में अफ़्वाजे इस्लाम के अलावा हज़ारों कुफ्फार व मुशरिकीन के खासो आम का एक ज़बर दस्त इज़दहाम था | इस शहंशाही ख़ुत्बे में आप ने सिर्फ अहले मक्का ही से नहीं बल्कि तमाम अक्वामे आलम से खिताब आम फरमाते हुए ये इरशाद फ़रमाया की “एक खुदा के सिवा कोई माबूद नहीं | उस का कोई शरीक नहीं उस ने अपना वादा सच कर दिखाया | उस ने अपने बन्दे (हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की मदद की और कुफ्फार के तमाम लश्करों को तनहा शिकस्त दे दी तमाम फख्र की बातें, तमाम पुराने खूनो का बदला, तमाम पुराने खून बहा, और जाहिलियत की रस्मे सब मेरे पैरों के नीचे हैं | सिर्फ काबे की तौलियत और हुज्जाज को पानी पिलाना, ये दो ऐजाज़ इस से मुस्तस्ना हैं | ऐ कोमे कुरेश ! अब जाहिलियत का गुरूर और खानदानो का इफ्तिखार खुदा ने मिटा दिया | तमाम लोग हज़रते आदम अलैहिस्सलाम की नस्ल से हैं और हज़रते आदम अलैहिस्सलाम मिटटी से बनाए गए हैं” | इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कुरआन शरीफ की ये आयत तिलावत फ़रमाई जिस का तर्जुमा ये है: 

ऐ लोगों ! हम ने तुम को एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और तुम्हारे लिए कबीले और खानदान बना दिए ताकि तुम आपस में एक दुसरे की पहचान रखो लेकिन खुदा के नज़दीक सब से ज़ियादा शरीफ वो है जो सब से ज़ियादा परहेज़गार है यक़ीनन अल्लाह पाक बड़ा जाने वाला और खबर रखने वाला है | 

बेशक अल्लाह पाक ने शराब की खरीदो फरोख्त को हराम फरमा दिया है | 

कुफ्फारे मक्का से ख़िताब

इस के बाद शहंशाहे कौनैन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस हज़ारों के मजमे में एक गहरी निगाह डाली तो देखा की सर झुकाए निगाहें नीची किए हुए लरज़ा व तरसां अशराफे कुरेश खड़े हुए हैं | इन ज़ालिमों और जफ़ाकारों  में वो लोग भी थे जिन्हों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रास्तों में काटें बिछाए थे वो लोग भी थे जो बारहा आप पर पथ्थरों की बारिश कर चुके थे वो खूंख्वार भी थे जिन्होंने बार बार आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर कातिलाना हमले किए थे | वो बे रहम व बे दर्द भी थे जिन्हो ने आप के दन्दाने मुबारक को शहीद और आप के चेहरए अनवर को लहू लुहान कर डाला था | वो ओबाश भी थे जो बरसहा बरस तक अपनी बुहतान तराशियों और शर्मनाक गलियों से आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कल्बे मुबारक को ज़ख़्मी कर चुके थे | वो सफ्फाक व दरिंदा सिफ़त भी थे जो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गले में चादर का फंदा डाल कर आप का गला घोंट चुके थे | वो ज़ुल्मो सितम के मुजस्समे और पाप के पुतले भी थे जिन्हों ने आप की साहिब ज़ादी हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को नेज़ा मार कर ऊँट से गिरा दिया था और उन का हमल भी गिर गया था| वो आप के खून के प्यासे भी थे जिन का तिश्ना लबी और प्यास खून नुबुव्वत के सिवा किसी चीज़ से भी बुझ सकती थी | वो जफ़ाकार व खूंख्वार भी थे जिन के ज़ाहिराना हमलों और ज़ालिमाना यलगार से बार बार मदीनए नुबुव्वत के दरों दिवार दहल चुके थे |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के प्यारे चचा हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु के कातिल और उन की नाक कान काटने वाले, उन की आँखें फोड़ने वाले, उन का जिगर चबाने वाले भी इस मजमे में मोजूद थे वो सितम गर जिन्होंने शमए नुबुव्वत के जांनिसार परवानो हज़रते बिलाल, हज़रते सुहैब, हज़रते अम्मार, हज़रते खब्बाब, हज़रते खुबैब, हज़रते ज़ैद बिन दासिना रदियल्लाहु अन्हुम वगैरा को रस्सियों से बांध बांध कर कोड़े मार मार कर जलती हुई रेतों पर लिटाया था, किसी को आग के दहकते हुए कोइलों में सुलाया था, किसी को चटाइयों में लपेट लपेट कर नाकों में धूंएँ दिए थे, सैंकड़ों बार गला घोटा था ये तमाम जोरो ज़फ़ा और ज़ुल्म व सितम गारी के पैकर, जिन के जिस्म के रोंगटे रोंगटे और बदन के बाल बाल ज़ुल्मो उदवान और सर कशी व तुग़्यान के वबाल से खौफनाक जुर्मो और शर्मनाक मज़ालिम के पहाड़ बन चुके थे | आज ये सब के सब दस बारह हज़ार मुहाजिरीन व अंसार के लश्कर की हिरासत में मुजरिम बने हुए खड़े कांप रहे थे और अपने दिलों में ये सोच रहे थे की शायद आज हमारी लाशों को कुत्तों से नुचवा कर हमारी बोटियाँ चीलों और कव्वों को खिला दी जाएंगीं और अंसार व मुहाजिरीन की गज़ब नाक फौजें हमारे बच्चें को खाको खून में मिला कर हमारी नस्लों को नेस्तो नाबूद कर डालेगी और हमारी बस्तियों को ताख्त व ताराज कर के तहेस नहेस कर डालेगी इन मुजरिमो के सीनो में खौफ व हिरास का तूफ़ान उठा रहा था | दहशत और डर से इन के बदनो की बोटी बोटी फड़क रही थी, दिल धड़क रहे थे, कलेजे मुँह में आ गए थे और आलमे यास में इन्हें ज़मीन से आसमान तक धूंए ही धूंए के खौफनाक बादल नज़र आ रहे थे | इसी मायूसी और ना उम्मीदी की खतरनाक फ़िज़ा में एक दम शहंशाहे रिसालत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निगाहे रहमत इन पापियों की तरफ मुतवज्जेह हुई और इन मुजरिमो से आप ने पूछा की 

“बोलो ! तुम को कुछ मालूम है? की आज में तुम से क्या मुआमला करने वाला हूँ !”

इस दहशत अंगेज़ और खौफनाक सवाल से मुजरिमीन हवास बाख्ता हो कर कांप उठे लेकिन जबीने रहमत के पैगम्बराना तेवर को देख कर उम्मीदों बीम के मशहर  में लरज़ते हुए सब यक ज़बान हो कर बोले की आप करम वाले भाई और करम वाले बाप के बेटे हैं सब की ललचाई हुई नज़रें जमाले नुबुव्वत का मुँह तक रही थीं और सब के कान शहंशाहे नुबुव्वत का फैसला कुन जवाब सुनने के मुन्तज़िर थे की एक दम फ़ौरन फ़ातेहे मक्का ने अपने करीमाना लहज़े में इरशाद फ़रमाया की: “आज तुम पर कोई इलज़ाम नहीं, जाओ तुम सब आज़ाद हो” बिलकुल गैर मुतवक़्क़े तौर पर एक दम अचानक ये फरनामे रिसालत सुन कर सब मुजरिमो की आँखें फ़र्तें नदामत से अश्कबार हो गईं और इन के दिलों में गहराईयों से जज़्बाते शुक्रिया के आसार आंसुओं की धार बनकर उन के रुखसार पर मचलने लगे और कुफ्फार की ज़बानो पर “कलमा” शरीफ के नारों से हरमे काबा के दरों दिवार पर हर तरफ अनवार की बारिश होने लगी | अचानक बिलकुल फ़ौरन एक अजीब इन्किलाब बरपा हो गया की समां ही बदल गया, फ़िज़ा ही पलट गई और एक दम ऐसा महसूस होने लगा की:

जहाँ  तरीक  था  बे  नूर  था  और  सख्त  कला था 

 कोई परदे से क्या निकला की घर घर में उजाला था 

कुफ्फार ने मुहाजिरीन की जाएदादों मकानों दुकानों पर ग़ासिबाना कब्ज़ा जमा लिया था | अब वक़्त था की मुहाजिरीन के सुपुर्द किए जाते | लेकिन शहंशाहे रिसालत में मुहाजिरीन को हुक्म दे दिया की वो अपनी कुल जाएदादों ख़ुशी ख़ुशी मक्का वालों को हिबा कर दें | “अल्लाहु अकबर” ऐ अक्वामे आलम की तारीखी दस्तानो ! बताओ क्या दुनिया के किसी फ़ातेह की किताबें ज़िन्दगी में कोई ऐसा हसीनो ज़ररी वर्क है? ऐ धरती ! खुदा के लिए बता ? ऐ ! आसमान ! लिल्लाह बोल | क्या तुम्हारे दरमियान कोई ऐसा फातेह गुज़रा है ? जिस ने अपने दुश्मनो के साथ ऐसा हुस्ने सुलूक किया हो? ऐ चाँद और सूरज की चमकती और दूरबीन निगाहों ! क्या तुमने लाखों बरस की गर्दिशों लैलो नहार में कोई ऐसा ताजदार देखा है? तुम इस के सिवा और क्या कहोगे? के ये नबी जमालो जलाल का वो बे मिसाल शाहकार है की शाहाने आलम के लिए इस का तसव्वुर भी मुहाल है| 

दूसरा खुत्बा

फतेह मक्का के दूसरे दिन भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक खुत्बा दिया जिस में हरमे काबा के अहकाम व आदाब की तालीम दी की हरम में किसी का खून बहाना, जानवरों को मारना, शिकार करना, दरख्त काटना, इज़ खिर घास के अलावा दूसरी घास काटना हराम है और अल्लाह पाक ने घड़ी भर के लिए अपने रसूल अलैहिस्सलाम हरम में जंग कर ने की इजाज़त दी फिर क़यामत तक के लिए किसी को हराम में जंग करने की इजाज़त नहीं है | अल्लाह पाक ने इस को हरम बना दिया है | न मुझ से पहले किसी के लिए इस शहर में ख़ूंरेज़ी हलाल की गई न मेरे बाद क़यामत तक किसी के लिए हलाल की जाएगी |

अंसार को फ़िराक़े रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का डर

अंसार ने कुरेश के साथ जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमी के इस करीमाना हुस्ने सुलूक को देखा और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुछ दिनों तक मक्के में ठहर गए तो अंसार को ये खतरा लाहिक हो गया की शायद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर अपनी कौम और वतन की मुहब्बत ग़ालिब आ गई है कहीं ऐसा न हो की आप मक्के में इक़ामत फरमा लें और हम लोग आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से दूर हो जाएं | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अंसार के इस ख्याल की इत्तिला हुई तो आप ने फ़रमाया की माज़ अल्लाह ! ऐ अंसार ! अब तो हमारी ज़िन्दगी और वफ़ात तुम्हारे ही साथ है ये सुनकर फरते मसर्रत से अंसार की आँखों से आंसूं जारी हो गए और सब ने कहा की या रसूलल्लाह   सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हम लोगों ने जो कुछ दिल में ख्याल किया या ज़बान से कहा इस का सबब आप की ज़ाते मुक़द्दसा के साथ हमारा जज़्बए इश्क़ है| क्यूंकि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जुदाई का तसव्वुर हमारे लिए न काबिले बर्दाश्त हो रहा है | 

काबे की छत पर अज़ान

जब नमाज़ का वक़्त आया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु को हुमक दिया की काबे की छत पर चढ़ कर अज़ान दें | जिस वक़्त अल्लाहुअक्बर की ईमान अफ़रोज़ सदा बुलंद हुई तो तो हरम के हिसार और काबे के दरो दीवार पर इमानि ज़िन्दगी के आसार नुमूदार हो गए मगर मक्के के वो नो मुस्लिम जो अभी कुछ ठन्डे पड़ गए थे आवाज़ को सुन कर उन के दिलों में गैरत की आग फिर भकड़ उठी चुनांचे रिवायत है की हज़रते इताब बिन उसैद ने कहा की खुदा ने मेरे बाप की लाज रख ली की इस आवाज़ को सुनने से पहले ही उस को दुनिया से उठा लिया और एक दुसरे सरदार कुरेश के मुँह से ये निकला की “अब जीना बेकार” है |

मगर इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फैज़े सुहबत से हज़रते इताब बिन उसैद रदियल्लाहु अन्हु के दिल में नूरे ईमान का सूरज चमक उठा और वो सादिकुल ईमान मुस्लमान बन गए | चुनांचे मक्के से रवाना होते वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन्ही को मक्के का हाकिम बना दिया | 

बैअते इस्लाम

इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कोहे सफा की पहाड़ी के नीचे एक बुलंद मकाम पर बैठे और लोग ज़ौक़ दर ज़ौक़ आ कर आप के दस्ते हक परस्त पर इस्लाम की बैअत कबूल कर ने लगे | मर्दों की बैअत ख़त्म हो चुकी तो औरतों की बारी आई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हर बैअत करने वाली औरत से जब वो तमाम शराइत का इकरार कर लेती तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उससे फरमा देते थे की मेने तुझ से बैअत लेली | हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा का बयान है की खुदा की कसम ! आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हाथ ने बैअत के वक़्त किसी औरत के हाथ को नहीं छुआ सिर्फ कलमा ही से बैअत फरमा लेते थे | 

इन्ही औरतों में निकाब ओढ़ कर हिन्द बिन्ते उतबा बिन रबीआ भी बैअत के लिए आई जो हज़रते अबू सुफियान रदियल्लाहु अन्हु की बीवी और हज़रते अमीर मुआविआ रदियल्लाहु अन्हु की वालिदा हैं | ये वही हिंदा हैं जिन्होंने जंगे उहद में हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु का शिकम फाड़ के उन के जिगर को निकाल कर चबा डाला था और उनके कान, नाक को काट कर और आँख को निकाल कर एक धागे में पिरो कर गले का हार बनाया था जब ये बैअत के लिए आई तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से निहायत दिलेरी के साथ बातचीत की | इन का मुकलमा हस्बे ज़ैल है | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमतुम खुदा के साथ किसी को शरीक मत करना |
हिन्द बिन्ते उतबा ये इकरार आप ने मर्दों से तो नहीं किया लेकिन बहर हाल हम को मंज़ूर है |   
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चोरी मत करना |
हिन्द बिन्ते उतबामें अपने शोहर (अबू सुफियान) के माल में से कुछ ले लिया करती हूँ मालूम नहीं ये भी जाइज़ है या नहीं ?
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमअपनी औलाद को क़त्ल न करना |
हिन्द बिन्ते उतबाहम ने तो बच्चों को पाला था और जब वो बड़े हो गए तो आप ने जंगे बद्र में उन को मार डाला अब आप जाने और वो जाने

बहर हाल हज़रते अबू सुफियान और उन की बीवी हिन्द बिन्ते उतबा दोनों मुस्लमान हो गए | लिहाज़ा इन दोनों के बारे में बद गुमानी या इन दोनों की शान में बद ज़बानी रवाफिज़ मज़हब है अहले सुन्नत के नज़दीक इन दोनों का शुमार सहाबा और सहबियात रदियल्लाहु अन्हुम की फ़ेहरिस्त में है | 

इब्तिदा में इन दोनों के ईमान में कुछ तज़बज़ुब रहा हो मगर बाद में ये दोनों सादिकुल ईमान मुसलमान हो गए और ईमान ही पर दोनों का खात्मा हुआ | हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा का बयान है की हिन्द बिन्ते उतबा रदियल्लाहु अन्हा बारगाहे नुबुव्वत में आई और ये अर्ज़ क्या की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! रूए ज़मीन पर आप के घर वालों से ज़ियादा किसी के घर वाले का ज़लील होना मुझे महबूब न था | मगर अब मेरा ये हाल है की रूए ज़मीन पर आप के घर वालों से ज़ियादा किसी के घर वाले का इज़्ज़तदार होना मुझे पसंद नहीं | इसी तरह हज़रते अबू सुफियान रदियल्लाहु अन्हु के बारे में मुहद्दिस इब्ने असाकिर की एक रिवायत है की ये मसजिदें हराम में बैठे हुए थे और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सामने से निकले तो इन्होने अपने दिल में ये कहा की कौन सी ताकत इन के पास ऐसी है की ये हम पर ग़ालिब रहते हैं तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन के दिल में छुपे हुए ख़याल को जान लिया और करीब आ कर आप ने उन के सीने पर हाथ मारा और फ़रमाया की हम खुदा की ताकत से ग़ालिब आ जाते हैं | ये सुन कर इन्हों ने बुलंद आवाज़ से कहा की “में शहादत देता हूँ की बे शक आप अल्लाह पाक के रसूल हैं” और मुहद्दिस हाकिम और इन के शागिर्द इमाम बहकी ने हज़रते इब्ने अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है की हज़रते अबू सुफियान रदियल्लाहु अन्हु ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख कर अपने दिल में कहा की काश ! में एक फौज जमा कर के दोबारा इन से जंग करता” उधर उन के दिल में ये ख़याल आया ही था की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आगे बढ़ कर इन के सीने पर हाथ मारा और फ़रमाया की “अगर तू ऐसा करेगा तो अल्लाह पाक तुझे ज़लीलो ख्वार कर देगा” | ये सुन कर हज़रते अबू सुफियान रदियल्लाहु अन्हु तौबा व इस्तगफार करने लगे और अर्ज़ किया की मुझे इस वक़्त आप की नुबुव्वत यकीन हासिल हो गया क्यूंकि आप ने मेरे दिल में छुपे हुए ख्याल को जान लिया |

ये भी रिवायत है की जब सब से पहले हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन पर इस्लाम पेश फ़रमाया था तो इन्हों ने कहा था की फिर में अपने माबूद उज़्ज़ा को क्या करूंगा? तो हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु बर जस्ता फ़रमाया था की “तुम उज़्ज़ा पर पाखाना फिर देना” चुनांन्चे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब उज़्ज़ा को तोड़ने के लिए हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु  को रवाना फ़रमाया तो साथ में हज़रते अबू सुफियान रदियल्लाहु अन्हु को भी भेजा और इन होने अपने हाथ से अपने माबूद उज़्ज़ा को तोड़ डाला | ये मुहम्मद बिन इशक की रिवायत है और इब्ने हिशाम की रिवायत है की उज़्ज़ा को हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने तोड़ दिया था | 

बुत परस्ती का ख़ातिमा

जैसा की हम आप को पहले ये बता चुके हैं की खानए काबा के तमाम बुतों और दीवारों को तस्वीर को तोड़ फोड़ कर और मिटा कर मक्के को तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बुत परस्ती की लानत से पाक कर ही दिया था लेकिन मक्के के अतराफ़ में भी बुत परस्ती के चंद मराक क़िज़ थे यानि लात, मनात, सवाआ, उज़्ज़ा, ये चंद बड़े बुत थे जो मुख्तलिफ कबाइल के माबूद थे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के लश्करों को भेज कर इन सब बुतों को तोड़ फोड़ कर बुत परस्ती के सारे तिलिस्म को तहस नहस कर दिया और मक्का नीज़ और इस के अतराफ़ व जवानिब के तमाम बुतों को नेस्तो नाबूद कर दिया | इस तरह बानिए काबा हज़रते खलीलुल्लाह अलैहिस्सलाम के जा नशीन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने मूरिसे आला के मिशन को मुकम्मल फरमा दिया और दर हकीकत फ़तेह मक्का का सब से बड़ा यही मकसद था की शिर्क व बुत परस्ती का ख़ातिमा और तौहीदे खुदा वन्दी का बोलबाला हो जाए | चुनांन्चे ये अज़ीम मकसद बिहम्दिहि तआला बा दरजए अतम हासिल हो गया |

चन्द ना काबिले मुआफी मुजरिमीन

जब मक्का फतह हो गया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आम मुआफी का ऐलान फरमा दिया | मगर चंद ऐसे मुजरिमीन थे जिन के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये फरमान जारी फरमा दिया की ये लोग अगर इस्लाम न कबूल करें तो ये लोग जहाँ भी मिले क़त्ल कर दिए जाएं ख़्वाह वो गिलाफ़े काबा ही में क्यूँ न छुपे हों | इन मुजरिमो में से तो बाज़ ने तो इस्लाम कबूल कर लिया और बाज़ क़त्ल हो गए इन में से चंद का मुख़्तसर तज़किरा तहरीर करते हैं: 

  1. “अब्दुल उज़्ज़ा बिन खतल”  ये मुस्लमान हो गया था इस को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़कात के जानवर वुसूल करने के लिए भेजा और साथ में एक दूसरे मुस्लमान को भी भेजा दिया  | किसी बात पर दोनों में तकरार हो गई तो इस ने  मुसलमान को क़त्ल कर दिया और क़िसास के डर से तमाम जानवरों को ले कर मक्के भाग निकला और मुर्तद हो गया | फ़तेह मक्का के दिन ये भी एक नेज़ा ले कर मुसलमानो से लड़ने के लिए घर से निकला था | लेकिन मुस्लिम अफ़वाज का जलाल देख कर कांप उठा और नेज़ा फेंक कर भागा और काबे के परदे में छुप गया | हज़रते सईद बिन हरीस मख़्ज़ूमी और अबू बरज़ा अस्लमी रदियल्लाहु अन्हुमा ने मिल कर इस को क़त्ल कर दिया | 
  2. “हुवैरस” बिन नक़ीद” ये शायर था और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिजो लिखा करता था और खुनी मुरिम भी था 
  3.  हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने इस को क़त्ल किया | 
  4. “मुकीस बिन सबाबा” इस को नमीला बिन अब्दुल्लाह ने क़त्ल किया | ये भी खूनी था |
  5. “हारिस बिन तलातला” ये भी बड़ा ही मूज़ी था | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने इस को क़त्ल किया |
  6. “कुरेबा” 
रेफरेन्स (हवाला)

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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