हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-22)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-22)

मक्के से फरार हो जाने वाले

चार अश्ख़ास मक्के से भाग निकले थे उन लोगों का मुख़्तसर तज़किरा ये है:-

1, “इकरिमा बिन अबू जहल” ये अबू जहल के बेटे हैं | इस लिए इन की इस्लाम दुश्मनी का क्या कहना? ये भाग कर यमन चले गए लेकिन इन की बीवी “उम्मे हकीम” जो अबू जहल की भतीजी थीं उन्हों ने इस्लामल कबूल कर लिया और अपने शोहर इकरिमा के लिए बारगाहे रिसालत में मुआफी की दरख्वास्त पेश की| हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुआफ फरमा दिया उम्मे हकीम खुद यमन गई और मुआफी का हाल बयान किया | इकरिमा हैरान रह गए और इंतिहाई तअज्जुब के साथ कहा की क्या मुझ को मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुआफ कर दिया ! बहर हाल अपनी बीवी के साथ बारगाहे रिसालत में मुस्लमान हो कर हाज़िर हुए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब इन को देखा तो बेहद खुश हुए और इस तेज़ी से इन की तरफ बढ़े की जिस मे अतहर से चादर गिर पड़ी | फिर हज़रते इकरिमा रदियल्लाहु अन्हु ने ख़ुशी ख़ुशी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दस्ते हक़ परस्त पर बैअते इस्लाम की | 

2, “सफ़वान बिन उमय्या” ये उमय्या बिन ख़लफ़ के फरजंद हैं | अपने बाप उमय्या ही की तरह ये भी इस्लाम के बहुत बड़े दुश्मन थे फ़तेह मक्का के दिन भाग कर जद्दा चले गए | हज़रते उमैर बिन वहब रदियल्लाहु अन्हु ने दरबारे रिसालत में इन की सिफारिश पेश की और अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! कुरेश का एक रईस सफ़वान मक्के से जिला वतन हुआ चाहता है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन को भी मुआफी अता फरमा दी और अमान के निशान के तौर पर हज़रते उमैर  रदियल्लाहु अन्हु को अपना इमाम इनायत फ़रमाया | चुनान्चे वो मुक़द्दस इमाम ले कर “जद्दा” गए और सफ़वान को मक्के ले कर आए | सफ़वान जंगे हुनैन तक मुसलमान नहीं हुए | लेकिन इस के बाद इस्लाम कबूल कर लिया |

3, “काब बिन हुज़ैर” ये सं. 9, हिजरी में अपने भाई के साथ मदीना आ कर मुशर्रफ बा इस्लाम हुए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तारीफ में अपना मशहूर कसीदा “बी अंत सआद” पढ़ा | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुश हो कर इन को अपनी चादरे मुबारक इनायत फ़रमाई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ये चादरे मुबारक हज़रते काब बिन हुज़ैर रदियल्लाहु अन्हु के पास थी | हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु ने अपने दौरे सल्तनत में इन को दस हज़ार दिरहम पेश किए की ये मुक़द्दस चादर हमें दे दो | मगर इन्हों ने साफ़ इंकार कर दिया और फ़रमाया की में रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ये चादर मुबारक हरगिज़ हरगिज़ किसी को नहीं दे सकता | लेकिन आखिर हज़रते अमीरे मुआविया रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते काब बिन हुज़ैर रदियल्लाहु अन्हु की वफ़ात के बाद इन के वारिसों को बीस हज़ार दिरहम दे कर वो चादर ले ली और अरसए दराज़ तक वो चादर सलातीने इस्लाम के पास एक मुक़द्दस तबर्रुक बनकर बकी रही |

4, “वहशी” ये वो वहशी है जिन्हो ने जंगे उहद में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचा हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु को शहीद कर दिया था | ये भी फ़तेह मक्का के दिन भाग कर ताइफ़ चले गए थे मगर फिर ताइफ़ के एक वफ्द के हमरा बारगाहे रिसालत में हाज़िर हो कर मुसलमान हो गए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन की ज़बान से अपने चचा के क़त्ल की खूनी दास्तान सुनी और रंजो गम में डूब गए मगर इन को भी आप ने मुआफ फरमा दिया | लेकिन ये फ़रमाया की वहशी ! तुम मेरे सामने न आया करो | हज़रते वहशी रदियल्लाहु अन्हु को इस का बेहद मलाल रहता था फिर जब हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की खिलाफत के ज़माने में मुस्लिमा कज़्ज़ाब ने नुबुव्वत का दावा किया और लश्करे इस्लाम ने इस मलऊन से जिहाद किया तो हज़रते वहशी रदियल्लाहु अन्हु भी अपना नेज़ा ले कर जिहाद में शामिल हुए और मुस्लिमा कज़्ज़ाब को क़त्ल कर दिया | हज़रते वहशी रदियल्लाहु अन्हु अपनी ज़िन्दगी में कहा करते थे की “में ने दौरे जाहिलियत में बेहतरीन इंसान (हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु) को क़त्ल किया और अपने दौरे इस्लाम में बदतरीन आदमी (मुस्लिमा कज़्ज़ाब) को क़त्ल किया | इन्होने दरबारे अक़दस में अपने जराइम का ऐतिराफ़ कर के अर्ज़ किया की क्या खुदा मुझ जैसे मुजरिम को भी बख्श देगा? तो ये आयत नाज़िल हुई कुरआन शरीफ पारा 24, आयत 53, सूरह ज़ूमर:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- यानि ऐ हबीब आप फरमा दीजिये की मेरे बन्दे ! जिन्हों ने अपनी जानो पर हद से ज़ियादा गुनाह कर लिया है अल्लाह की रहमत से ना उम्मीद मत हो जाओ | अल्लाह तमाम गुनाहों को बख्श देगा वो यकीनन बड़ा बख्शने वाला और बहुत मेहरबान है |

मक्के का इंतिज़ाम

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्के का नज़्मों नस्क और इंतिज़ाम चलाने के लिए हज़रते इताब बिन उसैद रदियल्लाहु अन्हु को मक्के का हाकिम मुकर्रर फ़रमाया और हज़रते मुआज़ बिन जबल रदियल्लाहु अन्हु को इस खिदमत पर मामूर फ़रमाया की वो नो मुस्लिमो को मसाइल व अहकामे इस्लाम की तालीम देते रहें | 

इस में इख्तिलाफ है की फतह के बाद कितने दिनों तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्के में क़याम फ़रमाया | अबू दाऊद की रिवायत है की सतरह 17, दिन तक आप मक्के में मुकीम रहे | और तिर्मिज़ी की रिवायत से पता चलता है की अठ्ठारा दिन आप का क़ियाम रहा | लेकिन इमाम बुखारी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की उन्नीस दिन आप मक्के में ठहरे इन तीनो रिवायतों में इस तरह ततबीक़ दी जा सकती है की अबू दाऊद की रिवायत में मक्के में दाखिल होने और और मक्के से रवानगी के दोनों को शुमार नहीं किया है इस लिए सतरह दिन मुद्दते इक़ामत बताई है और तिर्मिज़ी की रिवायत में मक्के में आने के दिन को तो शुमार कर कर लिया | क्यूंकि आप सुबाह को मक्के में दाखिल हुए थे और मक्के से रवानगी के दिन को शुमार नहीं किया | क्यूंकि आप की सुबह ही मक्के से हुनैन के लिए रवाना हो गए थे और इमाम बुखारी की रिवायत में आने और जाने के दोनों दिनों को भी शुमार कर लिया गया है | इस लिए उन्नीस दिन आप मक्के में मुकीम रहे | 

इसी तरह इस में बड़ा इख्तिलाफ है की मक्का कौन सी तारीख में फतह हुआ? और आप किस तारीख को मक्के में फ़ातेहना दाखिल हुए? इमाम बहकी ने 13, रमज़ान, इमाम मुस्लिम ने 16, रमज़ान, इमाम अहमद ने 18, रमज़ान बताया और बाज़ रिवायतों में 17, रमज़ान और 18, रमज़ान भी मरवी है | मगर मुहम्मद बिन इशक ने अपने मशाइख की एक जमात से रिवायत करते हुए फ़रमाया की 20, रमज़ान सं, 18, हिजरी को मक्का फतह हुआ | 

जंगे हुनैन

“हुनैन” मक्के और ताइफ़ के दरमियान एक मकाम का नाम है | तारीखे इस्लाम में इस जंग का दूसरा नाम “ग़ज़वए हवाज़िन” भी है | इस लिए इस लड़ाई में “बनी हवाज़िन” से मुकाबला था | 

फ़तेह मक्का के बाद आम तौर से तमाम अरब के लोग इस्लाम के हल्का बगोश हो गए क्यूंकि इन में अक्सर वो लोग थे जो इस्लाम की हक्कानियत का पूरा पूरा यकीन रखने के बावजूद कुरेश के डर से मुस्लमान होने में ख़ामोशी इख़्तियार कर रहे थे और फतह मक्का का इन्तिज़ार कर रहे थे | फिर चूँकि अरब के दिलों में काबे का बेहद एहतिराम था और इन का अक़ीदा था की काबे पर किसी बातिल परस्त का कब्ज़ा नहीं हो सकता इस लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब मक्के को फतह कर लिया तो अरब के बच्चे बच्चे को इस्लाम की हक्कानियत का पूरा पूरा यकीन हो गया और वो सब के सब जोक दर जोक बल्कि फौज दर फौज इस्लाम में दाखिल होने लगे | बाकि मांदा अरब की भी हिम्मत न रही की अब इस्लाम के मुकाबले में हथियार उठा सकें | 

लेकिन मक़ामे हुनैन में “हवाज़िन” और “सकीफ” नाम के दो कबीले आबाद थे जो बहुत ही जंग जू और जंग के फुनून से वाकिफ थे | इन लोगों पर फतह मक्का का उल्टा सर पड़ा | इन लोगों पर गैरत सवार हो गई और इन लोगों ने ये ख़याल कायम कर लिया के फतह मक्का के बाद हमारी बारी है इस लिए इन लोगों ने ये तै कर लिया की मुसलमानो पर जो इस वक़्त मक्का में जमा हैं एक ज़बर दस्त हमला कर दिया जाए | चुनांचे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन अबी हदरद रदियल्लाहु अन्हु को तहकीकात के लिए भेजा | जब उन्हों ने वहां से वापस आ कर इन कबाइल की जंगगी तैयारियों का हाल बयान की और बताया की कबीलए हवाज़िन और सकीफ ने अपने तमाम कबाइल को जमा कर लिया है और कबीलए हवाज़िन का रईस आज़म मालिक बिन ओफ़ इन तमाम अफ़वाज का सिपह सालार है और सौ बरसों से ज़ाइद उम्र का बूढ़ा | “दुरेद बिन सुम्माह” जो अरब का मशहूर शायर और माना हुआ बहादुर था बतोरे मुशीर के मैदाने जंग में लाया गया है और ये लोग अपनी औरतों बच्चों बल्कि जानवरों तक को मैदाने जंग में लाए हैं ताकि कोई सिपाही मैदान से भागने का ख़याल भी न कर सके |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी माहे शव्वाल सं. आठ 8, हिजरी में बारह हज़ार का लश्कर जमा फ़रमाया | दस हज़ार तो मुहाजिरीन व अंसार वगैरा का वो लश्कर था जो मदीने से आप के साथ आया था और दो हज़ार नो मुस्लिम थे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस लश्कर को साथ ले कर इस शानो शौकत के साथ हुनैन का रुख किया की इस्लामी अफ़वाज की कसरत और इस के जाहो जलाल को देख कर बे इख़्तियार कुछ सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम की ज़बान से ये लफ्ज़ निकल गया की “आज भला हम पर कौन ग़ालिब आ सकता है |

लेकिन अल्लाह पाक को सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम का अपनी फोजों की कसरत पर नाज़ करना पसंद नहीं आया | चुनान्चे इस फखरो नाज़िश का ये अंजाम हुआ की पहले ही हमले में कबीलए हवाज़िन व सकीफ के तीर अंदाज़ों ने जो तीरों की बारिश की और हज़ारों की तादाद में तलवारें ले कर मुसलमानो पर टूट पड़े तो वो दो हज़ार नो मुस्लिम और कुफ्फारे मक्का जो लश्करे इस्लाम में शामिल हो कर मक्के से आए थे एक दम सर पर पैर रख कर भाग निकले | उन लोगों की भगदड़ देख कर अंसार व मुहाजिरीन के भी पाऊं उखड़ गए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो नज़र उठा कर देखा तो गिनती के चंद जांनिसारों के सिवा सब भाग चुके थे | तीरों की बारिश हो रही थी बारह हज़ार का लश्कर भाग चुका था मगर अल्लाह पाक के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पाए इस्तिकामत में बाल बराबर भी लग़्ज़िश नहीं हुई | बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अकेले एक लश्कर बल्कि एक आलमे कायनात का मजमूआ बने हुए न सिर्फ पहाड़ की तरह डटे रहे बल्कि अपने सफ़ेद खच्चर पर सवार बराबर आगे ही बढ़ते रहे और आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बाने मुबारक पर ये अल्फ़ाज़ जारी थे की:

में नबी हूँ ये झूट नहीं है में, अब्दुल मुत्तलिब का बेटा हूँ | इसी हालत में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दाहिनी तरफ देख कर बुलंद आवाज़ से पुकारा की “या माशरल अंसार” फ़ौरन आवाज़ आई की हम हाज़िर हैं या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! फिर बाई जानिब रुख कर के फ़रमाया की “या अय्युहल मुहाजिरीन” फ़ौरन आवाज़ आई की हम हाज़िर हैं या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु चूँकि बहुत ही बुलंद आवाज़ थे आप ने उन को हुक्म दिया की अंसार व मुहाजिरीन को पुकारो | उन्हों ने “या माशरल अंसार” और  “या अय्युहल मुहाजिरीन” का नारा मारा तो एक दम तमाम फौजें पलट पड़ीं और लोग इस कदर तेज़ी के साथ दौड़ पड़े की जिन लोगों के घोड़े इज़दाहाम की वजह से न मुड़ सके उन्हों ने हल्का होने के लिए अपनी ज़िरहें फेंक दीं और घोड़े से कूद कूद कर दौड़े और कुफ्फार के लश्कर पर झपट पड़े और इस तरह जांबाज़ी के साथ लड़ने लगे की दमज़दन में जंग का पांसा पलट गया| कुफ्फार भाग निकले कुछ क़त्ल हो गए जो रह गए वो गिरफ्तार हो गए | कबीलए सफीक की फौजें बड़ी बहादुरी के साथ जमकर मुसलमानो से लड़ती रहीं | यहाँ तक की उन के सत्तर बहादुर कट गए | लेकिन जब उन के अलम बरदार उस्मान बिन अब्दुल्लाह क़त्ल हो गया तो उन् के पाऊं उखड़ गए | और फ़तेह मुबीन ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कदमो का बोसा लिया और कसीर तादाद व मिक़्दार में माले गनीमत हाथ आया | अल्लाह पाक ने कुरआन शरीफ पारा 10, सूरह तौबा आयत 26, में निहायत मुआस्सिर अंदाज़ में बयान फ़रमाया की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- और हुनैन का दिन याद करो जब तुम अपनी कसरत पर नाज़ां थे तो वो तुम्हारे कुछ काम न आई और ज़मीन इतनी वसी होने के बा वजूद तुम पर तंग हो गई फिर तुम पीठ फेर कर भाग निकले फिर अल्लाह पाक ने अपनी तस्कीन उतारी अपने रसूल और मुसलमानो पर और ऐसे लश्करों को उतार दिया जो तुम्हे नज़र नहीं आए और काफिरों को अज़ाब दिया और काफिरों की यही सज़ा है | 

हुनैन में शिकस्त खा कर कुफ्फार की फौंजें भाग कर कुछ तो “ओतास” में जमा हो गईं “ताइफ़” के किले में जा कर पनाह ली | इस लिए कुफ्फार की फौंजें मुकम्मल तोर पर शिकस्त देने के लिए “ओतास” और “ताइफ़” पर भी हमला करना ज़रूरी हो गया | 

जंगे ओतास

चुनान्चे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू आमिर अशअरी रदियल्लाहु अन्हु की मा तहति में थोड़ी सी फौज “ओतास” की तरफ भेज दी | दुरेद बिन अससिम्मा कई हज़ार की फौज ले कर निकला | दुरेद बिन अससिम्मा के बेटे ने हज़रते अबू आमिर अशअरी रदियल्लाहु अन्हु के ज़ानू पर एक तीर मारा हज़रत अबू आमिर अशअरी रदियल्लाहु अन्हु हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु के चचा थे | अपने चचा को ज़ख़्मी देख कर हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु को दौड़ कर अपने चचा के पास आए और पूछा की चचा जान ! आप को किस ने तीर मारा है? तो हज़रते अबू आमिर अशअरी रदियल्लाहु अन्हु ने इशारे से बताया की वो शख्स मेरा कातिल है | हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु जोश में बहरे हुए उस काफिर को क़त्ल करने के लिए दौड़े तो वो भाग निकला | मगर हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु ने उस का पीछा किया और ये कह कर की ऐ भागने वाले ! क्या तुझ को शर्म और गैरत नहीं आती? जब उस काफिर ने ये गर्म ताना सुना तो ठहर गया फिर दोनों में तलवार के दो दो हाथ हुए और हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु ने आखिर उस को क़त्ल कर के दम लिया फिर अपने चचा के पास आए और खुशखबरी सुनाई की चचा जान ! खुदा ने आप के कातिल का काम तमाम कर दिया | फिर हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु ने अपने चचा के ज़ानू से वो तीर खींच कर निकाला तो चूँकि ज़हर में बुझा हुआ था इस लिए ज़ख्म से बजाए खून के पानी बहने लगा |

हज़रते अबू आमिर रदियल्लाहु अन्हु ने अपनी जगह हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु को फौज का सिपाह सालार बनाया और ये वसीयत की के या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में मेरा सलाम अर्ज़ कर देना और मेरे लिए दुआ की दरख्वास्त करना | ये वसीयत की और उन की रूह परवाज़ कर गई | हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की जब इस जंग से फारिग हो कर में बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुआ और अपने चचा का सलाम और पैगाम पहुंचाया तो उस वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक बान की चार पाई पर तशरीफ़ फरमा थे और आप की पुश्ते मुबारक और पहलू अक़दस में बान के निशान पड़े हुए थे | आपने पानी मांग कर वुज़ू फ़रमाया फिर आपने दोनों हाथों को इतना ऊंचा उठाया की मेने आप की दोनों बगलों की सफेदी देख ली और इस तरह आप ने दुआ मांगी की “या अल्लाह तू अबू आमिर रदियल्लाहु अन्हु को कयामत के दिन बहुत से इंसानो से ज़ियादा बुलंद मर्तबा दे” | ये करम देख कर हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरे लिए भी दुआ फरमा दीजिए | तो तो ये दुआ फ़रमाई की “या अल्लाह ! तू अब्दुल्लाह बिन केस के गुनाहों को बख्श दे और इस को क़यामत के दिन इज़्ज़त्त वाली जगह में दाखिल फरमा |” अब्दुल्लाह बिन केस हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु का नाम है | 

बाहर कैफ हज़रते अबू मूसा अशअरी रदियल्लाहु अन्हु ने दुरेद बिन असिम्मा के बेटे को क़त्ल कर दिया और इस्लामी अलम को अपने हाथ में ले लिया | दुरेद बिन असिम्मा बुढ़ापे की वजह से एक हौदज पर सवार था इस को हज़रते रबीआ बिन रफ़ीआ रदियल्लाहु अन्हु ने खुद उसी की तलवार से क़त्ल कर दिया इस के बाद कुफ्फार की फोजों ने हथियार डाल दिए और सब गिरफ्तार हो गए | इन कैदियों में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  की रज़ाई बहन “शीमा” रदियल्लाहु अन्हा भी थीं | ये हज़रते बीबी हलीमा सादिया रदियल्लाहु अन्हा की साहब ज़ादी थीं | जब लोगों ने इन को गिरफ्तार किया तो इन हों ने कहा की में तुम्हारे नबी की बहन हूँ | मुस्लमान इन को शनाख्त के लिए बारगाहे रिसालत में लाए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन को पहचान लिया और जोशे मुहब्बत में आप की आँखें नम हो गईं और आप ने अपनी चादरे मुबारक ज़मीन पर बिछा कर उन को बिठाया और कुछ ऊँट कुछ बकरियां इन को दे कर फ़रमाया की तुम आज़ाद हो | अगर तुम्हारा जी चाहे तो मेरे घर पर चल कर रहो और अगर अपने घर जाना चाहो तो में तुम को वहां पंहुचा दूँ उन्हों ने अपने घर जाने की ख्वाइश ज़ाहिर की तो निहायत ही इज़्ज़तो एहतिराम के साथ वो उन के कबीले में पहुचादि गईं | 

ताइफ़ का मुहासरा

ये तहरीर किया जा चुका की हुनैन से भागने वाली कुफ्फार की फौजें कुछ तो ओतास में जा कर ठहरी थीं और कुछ ताइफ़ के किले में जा कर पनाह ली | ओतास की फौजें तो आप पढ़ चुके की वो शिकस्त खा कर हथियार डाल देने पर मजबूर हो गईं | लेकिन ताइफ़ में पनाह लेने वालों से भी जंग ज़रूरी थीं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुनैन और ओतास के अमवाले गनीमत और क़ैदियों को मक़ामे “जीईराना” में जमा कर के ताइफ़ का रुख फ़रमाया |

ताइफ़ खुद एक महफूज़ शहर था जिस के चारों तरफ शहर पनाह की दिवार बनी हुई थी और यहाँ एक बहुत ही मज़बूत किला भी था | यहाँ का रईसे आज़म उरवा बिन मसऊद सक़फ़ी था जो अबू सुफियान का दामाद था | यहाँ सकीफ का जो खानदान आबाद था वो इज़्ज़त और शराफत में कुरेश का हम पल्ला शुमार किया जाता था | कुफ्फार की तमाम फौजें साल भर का राशन ले कर ताइफ़ के किले में पनाह ले ली | इस्लामी फौज ने ताइफ़ पहुंच कर शहर का मुहासरा कर लिया मगर किले के अंदर से कुफ्फार ने इस ज़ोरो शोर के साथ तीरों की बारिश शुरू कर दी की लश्करे इस्लाम इस की ताब न ला सका मजबूरन इस को पसे पा होना पड़ा | अठ्ठारा दिन तक शहर का मुहासरा जारी रहा मगर ताइफ़ फ़तेह न हो सका | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब जंग के माहिरों से मश्वरा फ़रमाया तो हज़रते नोफल बिन मुआविया रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोमड़ी अपने पेट में घुस गई है अगर कोशिश जारी रहेगी तो पकड़ ली जाएगी अगर छोड़ दी जाए तो भी इससे कोई अंदेशा नहीं ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुहासरा उठा लेने का हुमक दे दिया |

ताइफ़ के मुहासरे में बहुत से मुसलमान ज़ख़्मी हुए और कुल बारह सहाबा शहीद हुए | सात कुरेश चार अंसार और एक शख्श बनी लैस | के जख्मियों में हज़रते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के साहबज़ादे अब्दुल्लाह बिन अबू बक्र रदियल्लाहु अन्हुमा भी थे ये एक तीर से ज़ख़्मी हो गए थे | फिर अच्छे भी हो गए लेकिन एक मुद्दत के बाद फिर इन का ज़ख्म फट गया और अपने वालिद हज़रते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के दौरे खिलाफत में उन की वफ़ात हो गई | 

ताइफ़ की मस्जिद

ये मस्जिद जिस को हज़रते अम्र बिन उमय्या रदियल्लाहु अन्हु ने तामीर किया था एक तारीखी मस्जिद है | इस जंगे ताइफ़ में अज़्वाजे मुतह्हिरात में से दो अज़वाज साथ थीं हज़रते सलमा और हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा इन दोनों के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो खेमे गड़े थे और जब तक ताइफ़ का मुहासरा रहा आप इन दोनों खेमे के दरमियान में नमाज़ें पढ़ते रहे | जब बाद में कबीलए सकीफ के लोगों ने इस्लाम कबूल कर लिया तो इन लोगों ने इसी जगह पर मस्जिद बना ली |  

जंगे ताइफ़ में बुत शिकनी

जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ताइफ़ का इरादा फ़रमाया तो हज़रते तुफेल बिन अम्र दोसी रदियल्लाहु अन्हु को एक लश्कर के साथ भेजा की वो “ज़ुल कफेन” के बुत खाने को बर्बाद कर दें | यहाँ उम्र बिन हमामा दोसी का बुत था | चुनांचे हज़रते तुफेल बिन अम्र दोसी रदियल्लाहु अन्हु ने वहां जा कर बुत खाने को गिरा दिया और बुत को जला दिया | बुत को जला ते वक़्त वो इन अशआर को पढ़ रहे थे | ऐ ज़ुल कफेन ! में तेरा बंदा नहीं हूँ मेरी पैदाइश तेरी पैदाइश से बड़ी है मेने तेरे दिल में आग लगा दी | हज़रते तुफेल बिन अम्र दोसी रदियल्लाहु अन्हु चार दिन में इस मुहिम से फारिग हो कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमके पास ताइफ़ में पहुंच गए | ये ज़ुल कफेन से किला तोड़ने ले आलात मंजीक वगैरा भी लाए थे | चुनांचे इस्लाम में सब से पहली ये मंजीक है जो ताइफ़ का किला तोड़ने के लिए लगाई गई | मगर कुफ्फार की फोजों ने तीर अंदाज़ी के साथ गर्म गर्म लोहे की सलाखें फेकनी शुरू कर दीं इस वजह से किला तोड़ने में कामयाबी न हो सकी | 

इसी तरह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु  को भेजा की ताइफ़ के अतराफ़ में जो जा बजा सकीफ के बुत खाने हैं उन सब को मुन्हदिम कर दें चुनांचे आप ने उन सब बुतों और बुत खानो को तोड़ फोड़कर मिस्मार व बर्बाद कर दिया और जब लोट कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हुए इन को देख कर बे हद खुश हुए और बहुत देर तक इन से तन्हाई में गुफ्तुगू फरमाते रहे, जिस से लोगों को बहुत तअज्जुब हुआ | 

ताइफ़ से रवानगी के वक़्त  सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप कबीलए सकीफ के कुफ्फार के लिए हलाकत की दुआ फरमा दीजिए | तो आप ने दुआ मांगी किया अल्लाह पाक सकीफ को हिदायत दे और इन को मेरे पास पंहुचा दे | 

चुनांचे आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ये दुआ मकबूल हुई की कबीलए सकीफ का एक वफ्द मदीने पंहुचा और पूरा कबीला मुशर्रफ बा इस्लाम हो गया |

रेफरेन्स (हवाला)

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया, 

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