आयते तखयीर व ईला तशरीह
इन आयते करीमा का मा हसल और खुलासए मतलब ये है की रसूले खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह पाक ने ये हुक्म दिया है की आप अपनी मुकद्द्स बीवियों को खबर दे दें की दो चीज़ें तुम्हारे सामने हैं | एक दुनिया की ज़ीनत व आराइश दूसरी आख़िरत की नेमत | अगर तुम दुनिया की जेबो ज़ीनत चाहती हो तो पैगम्बर की ज़िन्दगी चूँकि बिलकुल ही ज़ाहिदाना ज़िन्दगी है इस लिए पैगम्बर के घर में तुम्हे ये दुनियावी ज़ीनत व आराइश तुम्हारी मरज़ी के मुताबिक नहीं मिल सकती, लिहाज़ा तुम सब मुझ से जुदाई हासिल कर लो | में तुम्हे रुखसती का जोड़ा पहना कर और कुछ माल दे कर रुखसत कर दूंगा | और अगर तुम खुदा व रसूल और आख़िरत की नेमतों की तलब गार हो तो फिर रसूले खुदा के दामने रहमत से चिमटी रहो | अल्लाह पाक ने तुम नेकोकारों के लिए बहुत ही बड़ा अजरो सवाब तय्यार कर रखा है जो तुम को आख़िरत में मिलेगा |इस आयत के नुज़ूल के बाद सब से पहले हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा के पास तशरीफ़ ले गए और फ़रमाया की ऐ आइशा ! में तुम्हारे सामने एक बात रखता हूँ मगर तुम इस के जवाब में जल्दी मत करना और अपने वालिदैन से मश्वरा कर के मुझे जवाब देना | इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मज़कूरा बाला तख़यीर की आयत तिलावत फरमा कर उन को सुनाई तो उन्हों ने बरजस्ता अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! इस मुआमले में भला में क्या अपने वालिदैन से मश्वरा करूँ में अल्लाह पाक और उस के रसूल और आख़िरत के घर को चाहती हूँ |
फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यके बाद दीगरे तमाम अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना को अलग अलग आयते तख़यीर सुना सुना कर सब को इख़्तियार दिया सब ने वो ही जवाब दिया जो हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा ने दिया था |अल्लाहु अकबर ! ये वाक़िआ इस बात की आफताब से ज़ियादा रोशन दलील है की अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ात से किस कदर आशिकाना और वालिहाना मुहब्बत थी कई कई सौकनो की मोजूदगी और खानए नुबुव्वत की सादा और ज़ाहिदाना तरज़े मुआशिरत और तंगी तुरशी की ज़िन्दगी के बावजूद ये रईस ज़ादियाँ एक लम्हे के लिए भी रसूल के दामने रहमत से जुदाई गवारा नहीं कर सकती थीं |
आमिलों का तक़र्रुर
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सं. 9, हिजरी के महीने में ज़कात व सदकात की वसूली के लिए आमिलों और मुहस्सिलों को मुख्तलिफ कबाइल में रवाना फ़रमाया | इन उमरा व अमिलीन की फेहरिस्त में मुनदर्जाए ज़ैल हज़रात खुसूसियत के साथ काबिले ज़िक्र हैं जिन को इब्ने साद ने ज़िक्र फ़रमाया है |
- हज़रते उईना बिन हसन रदियल्लाहु अन्हु को बनी तमीम की तरफ
- हज़रते यज़ीद बिन हुसैन रदियल्लाहु अन्हु को असलम व गिफार
- हज़रते उबादा बिन बिशर रदियल्लाहु अन्हु को सुलैम बिन जुहैना
- हज़रते राफे बिन कमीस रदियल्लाहु अन्हु को जुहैना
- हज़रते राफे बिन कमीस रदियल्लाहु अन्हु को जुहैना
- हज़रते अम्र बिन अल आस रदियल्लाहु अन्हु को बनी फ़ज़ारा
- हज़रते ज़हाक बिन सुफियान रदियल्लाहु अन्हु को बनी किलाब
- हज़रते बिशर बिन सुफियान रदियल्लाहु अन्हु को बनी काब
- हज़रते इब्नुल लबीतिया रदियल्लाहु अन्हु को बनी ज़बयान
- हज़रते मुहाजिर बिन अबी उमय्या रदियल्लाहु अन्हु को सनआ
- हज़रते ज़ियाद बिन लुबैद अंसारी रदियल्लाहु अन्हु को हज़्रमौत
- हज़रते अदी बिन हातिम रदियल्लाहु अन्हु को कबीलए तीअ व बनी सअद
- हज़रते मालिक बिन नुवेरा रदियल्लाहु अन्हु को बनी हन्ज़ला
- हज़रते ज़बरकान रदियल्लाहु अन्हु को बनी सअद के निस्फ़ हिस्से
- हज़रते केस बिन आसिम रदियल्लाहु अन्हु को
- हज़रते अला बिन अल हज़रमी रदियल्लाहु अन्हु को बहरीन
- हज़रते अली को नजरान
ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उमरा और आमिलीन हैं जिन को आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़कात व सदकात व जिज़्या (टेक्स) वुसूल कर ने के लिए मुकर्रर फ़रमाया था |
बनी तमीम का वफ्द
मुहर्रमुल हराम सं. 9, हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बिशर बिन सुफियान रदियल्लाहु अन्हु को बनी खुज़ा के सदकात वुसूल कर ने के लिए भेजा | उन्हों ने सदकात वुसूल कर के जमा किए की अचानक उन पर बनी तमीम ने हमला कर दिया वो अपनी जान बचा कर किसी तरह मदीना आ गए और सारा माजरा बयान किया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बनी तमीम की सर कूबी के लिए हज़रते उईना बिन हसन फ़ज़ारी रदियल्लाहु अन्हु को पचास सवारों के साथ भेजा | उन्हों ने बनी तमीम पर उन के सहरा में हमला कर के उन के गियारा 11, मर्द इक्कीस औरतें और तीस लड़कों को गिरफ्तार कर लिया और उन सब कैदियों को मदीने लाए |इस के बाद बनी तमीम का एक वफ्द मदीना आया जिस में इस कबीले के बड़े बड़े सरदार थे और इन का रईसे आज़म अकरा बिन हाबिस और इन का खतीब “अतारद” और शाइर “ज़बरकान बिन बद्र” भी इस वफ्द में साथ आए थे | ये लोग दनदनाते हुए काशानए नुबुव्वत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास पहुंच गए और चिल्लाने लगे की आप ने हमारी औरतों और बच्चों को किस जुर्म में गिरफ्तार कर रखा है |उस वक़्त में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा के हुजरए मुबारक में आराम फरमा रहे थे | हर चंद हज़रते बिलाल और दुसरे सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम ने उन लोगों को मना किया की तुम लोग काशानए नबवी के पास शोर न मचाओ | नामज़े ज़ोहर के लिए खुद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिद में तशरीफ़ लाने वाले हैं | मगर ये लोग एक न माने शोर मचाते ही रहे जब आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बाहर तशरीफ़ ला कर मस्जिदे नबवी में रौनक अफ़रोज़ हुए तो बनी तमीम का रईसे आज़म अकरा बिन हाबिस बोला की ऐ मुहम्मद ! सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमे इजाज़त दीजिए की हम गुफ्तुगू करें क्यूंकि हम वो लोग हैं की जिस की तारीफ कर दें वो मुज़य्यन व खूबसूरत हो जाता है और हम लोग जिस की मज़म्मत कर दें वो ऐब से दागदार हो जाता है |
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की तुम लोग गलत कहते हो | ये अल्लाह पाक ही की शान है की उस की मदाह की ज़ीनत और उस की मज़म्मत दाग है तुम लोग ये कहो की तुम्हारा मकसद क्या है? ये सुन कर बनी तमीम कहने लगे की हम अपने खतीब और अपने शायर को ले कर यहाँ आएं हैं ताकि हम अपने काबिले फख्र कारनामो को बयान करें और आप अपने मुफाखर को पेश करें |आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की न में शेरो शायरी के लिए भेजा गया हूँ न इस तरह की तारीफ का अल्लाह पाक की तरफ से हुक्म मिला है | में तो खुदा का रसूल हूँ इस के बावजूद अगर तुम यही करना चाहते हो तो में तय्यार हूँ |ये सुनते ही अरका बिन हासिब ने अपने खतीब अतारद की तरफ इशारा किया | उस ने खड़े हो कर मुफाखर और अपने आबाओ अजदाद के मनाक़िब पर बड़ी फ़साहतो बलाग़त के साथ एक धुँआधार खुत्बा पढ़ा | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंसार के खतीब हज़रते साबित बिन कैस बिन शमास रदियल्लाहु अन्हु को जवाब देने का हुक्म फ़रमाया | उन्हों ने उठ कर बर जस्ता ऐसा फसीहो बलीग़ और मुअस्सिर खुत्बा दिया की बनी तमीम उन के ज़ोरे कलाम और मुफाखर की अज़मत सुनकर दांग रह गए | और उनका खतीब अतारद भी हक्का बक्का हो कर शर्मिंदा हो गया फिर बनी तमीम का शायर “ज़बरकान बिन बद्र” उठा और उसने एक कसीदा पढ़ा |
आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते हस्सान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हुको इशारा फ़रमाया तो उन हों ने फिल बदीह एक ऐसा मुरस्सा और फ़साहतो बलाग़त से मामूर कसीदा पढ़ दिया की बनी तमीम का शायर उल्लू बन गया | बिला आखिर अरका बिन हाबिस कहने लगा की खुदा की कसम ! मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ग़ैब से ऐसी ताईद व नुसरत हासिल हो गई है की हर फ़ज़्लो कमाल इन पर खत्म है | बिला शुबा इनका खतीब हमारे खतीब से ज़ियादा फसीहो बलीग़ है और इन का शायर हमारे शाइर से बहुत बढ़ चढ़ कर है | इस लिए इंसाफ का तकाज़ा ये है की हम इन के सामने सरे तस्लीम ख़म करते हैं | चुनांचे ये लोग हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुतीयो फ़रमा बरदार हो गए और कालिमा पढ़ कर मुस्लमान हो गए | फिर इन लोगों की दरख्वास्त पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन के कैदियों को रिहा फरमा दिया और ये लोग अपने कबीले में वापस चले गए | इन्ही लोगों के बारे में कुरआन शरीफ पारा 26 सूरह हुजरात आयत 4, 5, नाज़िल हुई की:
तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- बेशक वो जो आप को हुजरों के बाहर से पुकारते है उन में अक्सर बे अक्ल हैं और अगर वो सब्र करते यहाँ तक की आप उन के पास तशरीफ़ लाते तो ये उन के लिए बेहतर था और अल्लाह पाक बख्शने वाला मेहरबान है |
हातिम ताई की बेटी और बेटा मुसलमान
माहे रबीउल आखिर सं 9, हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु की मातहती में एक सौ पचास सवारों को इस लिए भेजा की वो कबीलए “तीआ” के बुत खाने को गिरा दें | इन लोगों ने शहर फलस में पहुंच कर बुत खानो को गिरा डाला और कुछ ऊंटों और बकरियों को पकड़ कर और चंद औरतों को गिरफ्तार कर के ये लोग मदीना लाए | इन कैदियों में मशहूर सखी हातिम ताई की बेटी भी थी | हातिम ताई का बेटा अदी बिन हातिम भाग कर मुल्के शाम चला गया | हातिम ताई की लड़की जब बारगाहे रिसालत में पेश की गई तो उस ने कहा की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में “हातिम ताई” की लड़की हूँ | मेरे बाप का इन्तिकाल हो गया और मेरा भाई “अदी बिन हातिम” मुझे छोड़ कर भाग गया | में ज़ईफा हूँ आप मुझ पर एहसान कीजिए खुदा आप पर एहसान करेगा | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को छोड़ दिया और सफर के लिए एक ऊँट भी अता फ़रमाया | ये मुसलमान हो कर अपने भाई अदी बिन हातिम के पास पहुंची और उस को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख़लाके नुबुव्वत से खबर दार किया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बहुत ज़ियादा तारीफ की |
अदी बिन हातिम अपनी बहन की ज़बानी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खुलके अज़ीम आदते करीमा के हालात सुन कर बेहद मुतअस्सिर हुए और बगैर कोई अमान तलब किए हुए मदीने हाज़िर हो गए | लोगों ने बारगाहे नुबुव्वत में ये खबर दी की अदी बिन हातिम आ गया है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इंतिहाई करीमाना अंदाज़ से अदी बिन हातिम के हाथ को अपने दस्ते रहमत में ले लिया और फ़रमाया की ऐ अदि ! तुम किस चीज़ से भागे? क्या लाइलाहा इलल्लाह कहने से तुम भागे? क्या खुदा के सिवा कोई और माबूद भी है? अदी बिन हातिम ने कहा की “नहीं” फिर कलमा पढ़ लिया और मुसलमान हो गए इन के इस्लाम कबूल करने से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस कदर ख़ुशी हुई फरते मुसर्रत से आप का चेहरए अनवर चमकने लगे और आप ने इन को खुसूसी इनायात से नवाज़ा |हज़रते अदी बिन हातिम रदियल्लाहु अन्हु भी अपने बाप हातिम की तरह बहुत ही सखी थे | हज़रते इमाम अहमद फरमाते हैं की किसी ने इन से एकसौ दिरहम का सवाल किया तो ये खफा हो गए और कहा की तुम ने सिर्फ एकसौ दिरहम ही मुझ से माँगा तुम नहीं जानते की में हातिम का बेटा हूँ खुदा की कसम ! में तुम को इतनी हक़ीर रकम नहीं दूंगा |ये बहुत ही शानदार सहाबी हैं खिलाफते सिद्दीकी अकबर में जब बहुत से कबाइल ने अपनी ज़कात रोक दी और बहुत से मुरतद हो गए ये उस दौर में भी पहाड़ की तरह इस्लाम पर साबित कदम रहे और अपनी कौम की ज़कात ला कर बारगाहे खिलाफत में पेश की और ईराक की फतूहात और दूसरे इस्लामी मुजाहिद की हैसियत से शरीक हुए और सं 68, हिजरी में एक सौ बसे साल की उमर पा कर विसाल फ़रमाया और सिहा सित्ता की हर किताब में आप रदियल्लाहु अन्हु की रिवायत करदा हदीसें मज़कूर हैं |
ग़ज़वए तबूक
“तबूक” मदीना और मुल्के शाम के बीच एक मक़ाम का नाम है | जो मदीने से चौदह मंज़िल दूर है | कुछ मुअर्रिख़ीन का कौल है की “तबूक” एक किले का नाम है और बाज़ का कौल है की “तबूक” एक चश्मे का नाम है | मुमकिन हो ये सब बातें मौजूद हों !ये गज़वा सख्त कहत के दिनों में हुआ | तवील सफर, हवा गर्म, सवारी, कम खाने पीने की तकलीफ, लश्कर की तादाद बहुत ज़ियादा, इस लिए इस ग़ज़वे में मुसलमानो को बड़ी तंगी और तंग दस्ती का सामना करना पड़ा | यही वजह है की इस ग़ज़वे को “जैशुल उसरह” (तंग दस्ती का लश्कर) भी कहते हैं और चूँकि मुनाफिकों को इस ग़ज़वे में बड़ी शर्मिंदगी और शर्मसारी उठानी पड़ी थी | इस वजह से इस का एक नाम “ग़ज़वए फाजिहा” (रुस्वा करने वाला गज़वा) भी है | इस पर तमाम मुअर्रिख़ीन का इत्तिफाक है की इस ग़ज़वए के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम माहे रजब की सं 9, हिजरी जुमेरात के दिन रवाना हुए|
ग़ज़वए तबूक का सबब
अरब का ग़स्सानी खानदान जो कैसरे रूम के ज़ेरे असर मुल्के शाम पर हुकूमत करता था | चूँकि वो रईस था इस लिए कैसरे रूम ने उस को अपना आलाए कार बना कर मदीने पर फौज कशी का अज़्म कर लिया | चुनांचे मुल्के शाम के जो सौदागर रोगने ज़ैतून बेचने मदीने आया करते थे | उन्होंने खबर दी की कैसरे रूम की हुकूमत ने मुल्के शाम में बहुत बड़ी फौज जमा कर दी है | और उस फौज में रूमियों के अलावा कबाइले लख्म व जुज़ाम और ग़स्सान के तमाम अरब बी शामिल हैं | इन खबरों का तमाम अरब में हर तरफ चर्चा था और रूमियों की इस्लाम दुश्मनी कोई ढकी छुपी चीज़ नहीं थी इस लिए इन खबरों को गलत समझ कर नज़र अंदाज़ कर देने की भी कोई वजह नहीं थी | इस लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने भी फौज की तय्यारी का हुक्म दे दिया |लेकिन हम जैसा की तहरीर कर चुके हैं की उस वक़्त हिजाज़े मुकद्द्स में शदीद कहत था और बे पनाह शिद्दत की गर्मी पड़ रही थी इन वुजुहात से लोगों को घर से निकलना मुश्किल था | मदीने के मुनाफिक़ीन जिन के निफ़ाक़ का भांडा फूट चुका था वो खुद भी फौज में शामिल होने से जी चुराते थे और दूसरों को भी मना करते थे | लेकिन इस के बावजूद तीस हज़ार का लश्कर जमा हो गया | मगर इन तमाम मुजाहिदीन के लिए सवारियों और सामाने जंग का इंतिज़ाम करना एक बड़ा ही कठिन काम था | इस लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तमाम कबाइले अरब से फौजें और माली इमदाद तलब फ़रमाई | इस तरह इस्लाम में किसी कारे खेर के लिए चंदा करने कीसुन्नत काइम हुई
फहरिस्त चंदा देने वालों की
हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु अपना सारा माल और घर की ताम दौलत यहाँ तक की बदन के कपड़े भी ला कर बारगाहे नुबुव्वत में पेश कर दिए और हज़रते उमर फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने अपना आधा माल इस चंदे में से दे दिया | मन्क़ूल है की हज़रते उमर फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु अन्हु जब अपना निस्फ़ माल ले कर बारगाहे रिसालत में चले तो अपने दिल में ये ख़याल कर के चले थे की आज में हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु से सबक़त ले जाऊँगा क्यूंकि उस दिन काशानए फारूक में इत्तिफाक से बहुत ज़ियादा माल था | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उमर फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु अन्हु से मालूम किया की ऐ उमर ! कितना माल यहाँ लाए और किस कदर घर पे छोड़ा? अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आधा माल हाज़िरे खिदमत है और आधा माल अहलो अयाल के लिए घर में छोड़ दिया है और जब ये सवाल आप ने अपने यारे गार हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु से किया तो उन्होंने अर्ज़ किया की में ने अल्लाह और उस के रसूल को अपने घर का ज़खीरा बना दिया है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया तुम दोनों में इतना ही फर्क है जितना तुम दोनों के कलमे में फर्क है |
हज़रते उस्मानी गनी रदियल्लाहु अन्हु एक हज़ार ऊँट और सत्तर घोड़े मुजाहिदीन की सवारी के लिए और एक हज़ार अशरफी फौज के इख़राजात की मद में अपनी आस्तीन में भर कर लाए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आग़ोशे मुबारक में बिखेर दिए | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को कबूल फरमा कर ये दुआ फ़रमाई की | ऐ अल्लाह तू उस्मान से राज़ी हो जा, क्यूंकि में इस से खुश हो गया हूँ | हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरे घर में इस वक़्त अस्सी हज़ार दिरहम थे | आधा बारगाहे अक़दस में में लाया हूँ और आधा घर पर बाल बच्चों को लिए छोड़ आया हूँ | इरशाद फ़रमाया की अल्लाह पाक इस में बरकत दे जो तुम लाए और उस में भी बरकत अता फरमाए जो तुम ने घर पर रखा | इस दुआए नबवी का ये असर हुआ की हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ़ रदियल्लाहु अन्हु बहुत ज़ियादा मालदार हो गए |इसी तरह तमाम अंसार व मुहाजिरीन ने हस्बे तौफीक इस चंदे में हिस्सा लिया | औरतों ने अपने ज़ेवरात उतार उतार कर बारगाहे नुबुव्वत में पेश कर ने की सआदत हासिल की |
हज़रते आसिम बिन अदी अंसारी रदियल्लाहु अन्हु ने कई मन खजूरें दीं और हज़रते अबू अकील अंसारी रदियल्लाहु अन्हु जो बहुत ही मुफ़लिस थे फ़क्त एक सअ खजूर ले कर हाज़िरे खिदमत हुए और गुज़ारिश की, की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में ने दिन भर पानी भर भर कर मज़दूरी की तो दो साआ खजूरें मुझे मज़दूरी में मिली है | एक सअ अहलो अयाल को दे दी हैं और ये एक सअ हाज़िरे खिदमत हैं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का कल्बे नाज़ुक अपने एक मुफ़लिस जांनिसार के इस नज़रानए ख़ुलूस बेहद मुतअस्सिर हुआ और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उस खजूर को तमाम मालों के ऊपर रख दिया |
फौज की तैय्यारी
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का अब ये तरीका था की गज़्वात के मुआमले में बहुत ज़ियादा राज़दारी के साथ तय्यारी फरमाते थे | यहाँ तक की असाकिरे इस्लामिया को ऐन वक़्त तक ये भी न मालूम होता था की कहा और किस तरह जाना है? मगर जंगे तबूक के मोके पर सब कुछ इंतिज़ाम ऐलानिया तौर पर किया और ये भी बता दिया की तबूक चलना है और कैसरे रूम की फोजों से जिहाद करना है ताकि लोग ज़ियादा से ज़ियादा तय्यारी करलें |हज़राते सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने जैसा की लिखा जा चुका दिल खोल कर चंदा दिया मगर फिर भी पूरी फौज के लिए सवारियों का इंतिज़ाम न हो सका | चुनांचे बहुत से जांबाज़ मुस्लमान इसी बिना पर इस जिहाद में शरीक न हो सके की इन के पास सफर का सामान नहीं मगर जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की मेरे पास सवारी नहीं है तो ये लोग अपनी बेसरो सामानि पर इस तरह बिलबिला कर रूए की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इन की आहो ज़ारी और बे ककारी पर रहम आ गया | चुनांचे अल्लाह पाक कुरआन शरीफ पारा 10, सूरह तौबा आयत 92, में इरशाद फरमाता है की:
तर्जुमा कंज़ुल ईमान:- और उन लोगों पर कुछ हर्ज है की वो जब (ऐ रसूल) आप के पास आए की हम को सवारी दीजिए और आप ने कहा की मेरे पास कोई चीज़ नहीं जिस पर तुम्हे सवार करूँ तो वो वापस गए और उनकी आँखों से आंसू जारी थे की अफ़सोस हमारे पास खर्च नहीं है |
तबूक को रवानगी
बहर हाल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तीस हज़ार का लश्कर साथ ले कर तबूक के लिए रवाना हुए और मदीने का नज़्मों नस्क चलाने के लिए हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु को अपना खलीफा बनाया | जब हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने निहायत ही हसरत व अफ़सोस के साथ अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या आप मुझे औरतों और बच्चों में छोड़ कर खुद जिहाद के लिए तशरीफ़ ले जा रहे हैं तो आप ने इरशाद फ़रमाया की:
क्या तुम इस पर राज़ी नहीं हो की तुम को मुझ से वो निस्बत है जो हज़रते हारुन अलैहिस्सलाम को हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम के साथ थी मगर ये की मेरे बाद कोई नबी नहीं है |यानि जिस तरह हज़रते मूसा अलैहिस्सलाम कोहे तूर पर जाते वक़्त हज़रते हारुन अलैहिस्सलाम को अपनी उम्मत बनी इसराइल की देख भाल के लिए अपना खलीफा बना कर गए थे इसी तरह में तुम को अपनी उम्मत सौंप कर जिहाद के लिए जा रहा हूँ | मदीने से चल कर मक़ामे “सनिय्यतुल विदा” में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़याम फ़रमाया | फिर फौज का जायज़ा लिया और फौज का मुकदमा, मेमना, मेसरा, वगैरा, मुरत्तब फ़रमाया | फिर वहां से कूच किया | मुनाफिक़ीन किस्म किस्म के झूठे उज़्र और बहाने बना कर रह गए और मुख्लिस मुसलमानो में से भी चंद हज़रात रह गए उनमे ये हज़रात थे: काब बिन मालिक, हिलाल बिन उमय्या मुरारह बिन रबी, अबू खेसमा और अबु ज़र गिफारी रदियल्लाहु अन्हु तो बाद में जा कर जिहाद में शरीक हुए लेकिन तीन अव्वालुज़ ज़िक्र नहीं गए |
हज़रते अबु ज़र गिफारी रदियल्लाहु अन्हु के पीछे रह जाने का सबब ये हुआ की उन का ऊँट बहुत ही कमज़ोर और थका हुआ था | इन्हों ने चंद दिन उस को चारा खिलाया ताकि वो चंगा जवान हो जाए जब रवाना हुए तो वो फिर रास्ते में थक गया | मजबूरन वो अपना सामान अपनी पीठ पर लाद कर चल पड़े और इस्लामी लश्कर में शामिल हो गए |हज़रते अबू खेसमा रदियल्लाहु अन्हु जाने का इरादा नहीं रखते थे मगर वो एक दिन शदीद गर्मी में कहीं बाहर से आए तो उनकी बीवी ने छप्पर में छिड़ काओ कर रखा था| थोड़ी देर उस साएदार और ठंडी जगह में बैठे फिर अचानक उन के दिल में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ख़याल आ गया | अपनी बीवी से कहा की ये कहाँ का इन्साफ है की में तो अपनी छप्पर में ठंडक और साए में आराम व चैन से बैठा रहूँ और खुदाए पाक के मुक़द्दस रसूल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस धूप की तमाज़त और शदीद लू के थपेड़े में सफर करते हुए जिहाद के लिए तशरीफ़ ले जा रहे हों एक दम उन पर ऐसी इमानि गैरत सवार हो गई की तोशे के लिए खजूर ले कर एक ऊँट पर सवार हो गए और तेज़ी के साथ सफर करते हुए रवाना हो गए | लश्कर वालों ने दूर से एक शुतुर सवार को देखा तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अबू खेसमा होंगें इस तरह ये भी लश्करे इस्लाम में पहुंच गए |
रास्ते में कोमे आद व समूद की वो बस्तियां मिली जो कहरे इलाही के अज़ाबों से उलट पलट कर दी गईं थीं | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया की ये वो जगहें हैं जहाँ खुदा का अज़ाब नाज़िल हो चुका है इस लिए कोई शख्श यहाँ न क़याम करे बल्कि तेज़ी के साथ सब लोग यहाँ से सफर कर के इन अज़ाब की वादियों से जल्द बाहर निकल जाएं और कोई यहाँ का पानी न पीए और न किसी काम में लगे |इस ग़ज़वे में पानी की किल्लत, शदीद गर्मी, सवारियों की कमी से मुजाहिदीन ने बेहद तकलीफ उठाई मगर मंज़िले मक़सूद पर पहुंच कर ही दम लिया |
रेफरेन्स (हवाला)
शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,