हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-25)

रास्ते के चनद मोजिज़ात

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू ज़र गिफारी रदियल्लाहु अन्हु को देखा की वो सब से अलग अलग चल रहे हैं | तो इरशाद फ़रमाया की ये सब से अलग ही चलेंगें और अलग ही ज़िन्दगी गुज़ारेंगे और अलग ही वफ़ात पाएंगें | चुनांचे ठीक ऐसा ही हुआ की हज़रते उस्मान रदियल्लाहु अन्हु ने अपने दौरे खिलाफत में इन को हुक्म दे दिया “रबज़ा” में रहे | आप रदियल्लाहु अन्हु रबज़ा में अपनी बीवी और गुलाम के साथ रहने लगे | जब वफ़ात का वक़्त आया तो आप रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की तुम दोनों मुझ को ग़ुस्ल दे कर और कफ़न पहना कर रास्ते में रख देना | जब शुतुर सवारों का पहला गिरोह मेरे जनाज़े के पास से गुज़रे तो तुम लोग उसे से कहना की ये अबू ज़र गिफारी का जनाज़ा है इन पर नमाज़ पढ़ कर इन को दफ़न करने में हमारी मदद करो | खुदा पाक की शान की सब से पहला जो काफिला गुज़रा उस में हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद सहाबी रदियल्लाहु अन्हु थे | आप रदियल्लाहु अन्हु ने जब ये सुना की ये हज़रते अबू ज़र गिफारी रदियल्लाहु अन्हु का जनाज़ा है | तो उन्हों ने इना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन पढ़ा और काफिले को रोक कर उतर पढ़े और कहा की बिलकुल सच फ़रमाया था हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने की “ऐ अबू ज़र ! तू तन्हा चलेगा, तन्हा मरेगा, तनहा क़ब्र से उठेगा, फिर हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु और काफिले वालों ने उन को पूरे ऐजाज़ के साथ दफन किया | कुछ रिवायतों में ये भी आया है की उन की बीवी के पास कफ़न के लिए कपड़ा नहीं था तो आने वाले लोगों में से एक अंसारी ने कफ़न के लिए कपड़ा दिया और नमाज़े जनाज़ा पढ़ कर दफन किया |

हवा उड़ा ले गई

जब इस्लामी लश्कर मक़ामे “हजर” में पंहुचा तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया की कोई शख्स अकेला लश्कर से बाहर कहीं दूर न चला जाए पूरे लश्कर ने इस हुक्मे नबवी की इताअत की मगर कबीलए बनू साईदा के दो आदमियों ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म को नहीं माना | एक शख्स अकेला ही रफए हाजत के लिए लश्कर से दूर चला गया वो बैठा ही था की दफ़अतन किसी ने उस का गला घोंट दिया और वो उसी जगह मर गया और दूसरा शख्स अपना ऊँट पकड़ने के लिए अकेला ही लश्कर से कुछ दूर चला गया तो अचानक एक हवा का झोंका आया और उस को उड़ा कर कबीलए “तीअ” के दोनों पहाड़ों के दरमियान फेंक दिया और वो हलाक हो गया | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन दोनों का अंजाम सुन कर फ़रमाया की क्या में ने तुम लोगों को मना नहीं कर दिया था |

गुमशुदा ऊंटनी कहाँ हैं ?

एक मंज़िल पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ऊंटनी कहीं चली गई और लोग उस की तलाश में सरगर्दां फिरने लगे तो एक मुनाफिक जिस का नाम “ज़ैद बिन लुसैत” था कहने लगा की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहते हैं की में अल्लाह पाक का नबी हूँ और मेरे पास आसमान की खबरे आती हैं मगर इन को ये पता ही नहीं है की ऊंटनी कहा है? हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम से फ़रमाया की एक शख्स ऐसा ऐसा कहता है हालां की खुदा की कसम ! अल्लाह पाक के बता देने से में खूब जनता हूँ की मेरी ऊंटनी कहाँ है? वो फुलां घाटी में है और एक दरख्त की उस में महार की रस्सी उलझ गई है | तुम लोग जाओ और उस ऊंटनी को मेरे पास ले कर आओ | जब ये लोग उस जगह गए तो ठीक ऐसा ही देखा की उसी घाटी में वो ऊंटनी खड़ी है और उस की महार एक पेड़ की शाख में उलझी हुई है |

तबूक का चश्मा

जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तबूक के करीब में पहुंचे तो इरशाद फ़रमाया की इंशा अल्लाह कल तुम लोग तबूक के चश्मे पर पहुचेगे और सूरज बुलंद होने के बाद पहुंचोगे लेकिन कोई शख्स वहां पहुंचे तो पानी को हाथ न लगाए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब वहां पहुंचे तो जूते तस्मे के बराबर उस में एक पानी की धार बह रही थीं | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस में से थोड़ा सा पानी मांग कर हाथ मुँह धोया और उस पानी में कुल्ली फ़रमाई फिर हुक्म दिया की इस पानी को चश्मे में डाल दो | लोगों ने जब उस पानी को चश्मे में डाला तो चश्मे से ज़ोर दार पानी की मोटी धार बहने लगी और तीस हज़ार का लश्कर और तमाम जानवर उस चश्मे के पानी से सेराब हो गए |

रूमी लश्कर डर गया

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तबूक में पहुंच कर लश्कर को पढ़ाओ का हुक्म दिया | मगर दूर दूर तक रूमी लश्करों का कोई पता नहीं चला | वाक़िआ ये हुआ की जब रूमियों के जासूसों ने कैसा को खबर दी की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तीस हज़ार का लश्कर ले कर तबूक में आ रहे हैं तो रूमियों के दिलों पर इस कदर हैबत छा गई की वो जंग से हिम्मत हार गए और अपने घरों से बाहर न निकल सके |हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बीस दिन तबूक में क़याम फ़रमाया और अतराफ़ व जवानिब में अफ़्वाजे इलाही का जलाल दिखा कर और कुफ्फार के दिलों पर इस्लाम का रोब बिठा कर मदीने वापस तशरीफ़ लाए और तबूक में कोई जंग नहीं हुई |

इसी सफर में “ऐला” का सरदार जिस का नाम “यूहन्ना” था बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुआ और जिज़्या देना कबूल कर लिया और एक सफ़ेद खच्चर भी हुज़ूर की बारगाह में नज़्र किया जिस के सिले में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को अपनी चादरे मुबारक अता फ़रमाई और उस को एक दस्तावेज़ तहरीर फरमा कर अता फ़रमाई की वो अपने गिरदो पेश के समंदर से हर किस्म के फवाइद हासिल करते रहे |इसी तरह “जरबा” और “अज़रूह” के इसाईओं ने भी हाज़िरे खिदमत हो कर जिज़्या दे ने पर रज़ा मंदी ज़ाहिर की | हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु को एक सौ बीस सवारों के साथ “दुमतुल जंदल” के बादशाह उकेदिर बिन अब्दु मालिक की तरफ रवाना फ़रमाया और इरशाद फ़रमाया की वो रात में नीलगाय का शिकार कर रहा होगा तुम उस के पास पहुँचो तो उस को क़त्ल मत करना बल्कि उस को ज़िंदा गिरफ्तार कर के मेरे पास लाना | चुनांचे हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु ने चांदनी रात में अकीदार और उस के भाई हस्सान को शिकार करते हुए पा लिया | हस्सान ने चूँकि हज़रते खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु से जंग शुरू कर दी | इस लिए आप ने उस को तो क़त्ल कर दिया मगर अकीदार को गिरफ्तार कर लिया और इस शर्त पर उस को रिहा किया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हो और सलाह करे | चुनांचे वो मदीने आया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस को अमान दी |

इस ग़ज़वे में जो लोग गैर हाज़िर रहे उन में अक्सर मुनाफिक़ीन थे | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तबूक से मदीने वापस आए और मस्जिदे नबवी में नुज़ूले इजलाल फ़रमाया तो मुनाफिक़ीन कस्मे खा खा कर अपना अपना उज़्र बयान कर ने लगे | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किसी से कोई मुआख़िज़ा नहीं फ़रमाया लेकिन तीन मुख्लिस सहबियों हज़रते काब बिन मालिक व हिलाल बिन उमय्या व मुराराह बिन रबीआ रदियल्लाहु अन्हुम का पचास दिनों तक आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बायकॉट फरमा दिया | फिर इन तीनो की तौबा कबूल हुई और इन लोगों के बारे में कुरआन शरीफ की आयत नाज़िल हुई |जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीने के करीब पहुंचे और उहद पहाड़ को देखा तो फ़रमाया की ये उहद है ये ऐसा पहाड़ है की ये हम से मुहब्बत करता है और हम इससे मुहब्बत करते हैं |जब आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीने की सर ज़मीन में क़दम रखा तो औरतें, बच्चें और लोंडिं गुलाम सब इस्तकबाल के लिए निकल पड़े और इस्तक़बालिया नज़्मे पढ़ते हुए आप के साथ मस्जिदे नबवी तक आए | जब आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मस्जिदे नबवी में दो रकअत नमाज़ पढ़ कर तशरीफ़ फरमा हो गए | तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचा हज़रते अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब रदियल्लाहु अन्हु ने आप की तारीफ में एक क़सीदा पढ़ा और अहले मदीना ने बा खेरो आफ़ियत इस दुश्वार गुज़ार सफर से आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तशरीफ़ आवरी पर इंतिहाई मसर्रत व शादमानी का इज़हार किया और उन मुनाफिक़ीन के बारे में जो झूठे बहाने बना कर इस जिहाद में शरीक नहीं हुए थे और बारगाहे नुबुव्वत में कस्मे खा खा कर उज़्र पेश कर रहे थे, कहरो गज़ब में भरी हुई कुरआन शरीफ की आयते नाज़िल हुईं और उन मुनाफिकों के निफ़ाक़ का पर्दा खुल गया |

ज़ुल बिजादैन की कब्र

ग़ज़वए तबूक में सिर्फ एक हज़रते ज़ुल बिजादैन रदियल्लाहु अन्हु के न किसी सहाबी की शहादत हुई न वफ़ात | हज़रते ज़ुल बिजादैन रदियल्लाहु अन्हु कौन थे? इन की वफ़ात और दफ़न का कैसा मंज़र था? ये एक बहुत ही ज़ोक आफ़रीँ और लज़ीज़ हिकायत है |ये कबीलए मुज़ेना के एक यतीम थे और अपने चचा की परवरिश में थे | जब ये सने शऊर को पहुंचे और इस्लाम का चर्चा सुना तो इन के दिल में बुत परस्ती से नफरत और इस्लाम कबूल करने का जज़्बा पैदा हुआ | मगर इन का चचा बहुत ही कट्टर काफिर था | उस के खौफ से ये इस्लाम कबूल नहीं कर सकते थे | लेकिन फ़तेह मक्का के बाद जब लोग फौज दर फौज इस्लाम में दाखिल होने लगे तो उन्होंने अपने चचा को तरग़ीब दी की तुम भी दामने इस्लाम में आ जाओ क्यूंकि में क़बूले इस्लाम के लिए बहुत ही बे करार हूँ | ये सुन कर इन के चचा ने इन को बरहना कर के घर से निकाल दिया | इन होने अपनी वालिदा से एक कम्मबल मांग कर उस को दो टुकड़े कर के आधे को तह बंद और आधे को चादर बना लिया और इसी लिबास में हिजरत कर के मदीने पहुंच गए| रात भर मस्जिदे नबवी में ठहरे रहे | नमाज़े फजर के वक़्त जब जमाले मुहम्मदी के अनवार से इन की आँखें मुनव्वर हुईं तो कलमा पढ़ कर इस्लाम में दाखिल हो गए |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन का नाम मालूम किया तो इन्हों ने अपना नाम अब्दुल उज़्ज़ा बता दिया | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की आज से तुम्हारा नाम अब्दुल्लाह और लक़ब ज़ुल बिजादैन (दो कंबलों वाला) है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन पर बहुत करम फरमाते थे और ये मस्जिदे नबवी में अस्हाबे सुफ़्फ़ा की जमात के साथ रहने लगे और निहायत बुलंद आवाज़ से ज़ोको शोक के साथ कुरआन मजीद पढ़ा करते थे | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंगे तबूक के लिए रवाना हुए तो ये भी मुजाहिदीन में शामिल हो कर चल पड़े और बड़े ही शोक और इंतिहाई मुहब्बत के साथ दरख्वास्त की, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! दुआ फरमाइए की मुझे खुदा की राह में शहादत नसीब हो जाए | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा तुम किसी पेड़ की छल लाओ | वो थोड़ी सी बबूल की छल लाए | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के बाज़ू पर वो छाल बांध दी और दुआ की | ऐ अल्लाह पाक ! में ने इस के खून को कुफ्फार पर हराम कर दिया | इन्होने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरा मकसद तो शहादत ही है | इरशाद फ़रमाया की जब तुम जिहाद के लिए निकलो तो अगर बुखार में भी मरोगे जब भी तुम शहीद ही होंगे | खुदा की शान की जब हज़रते ज़ुल बिजादैन रदियल्लाहु अन्हु तबूक में पहुंचे तो बुखार में गिरफ्तार हो गए और उसी बुखार में उन की वफ़ात हो गई |

हज़रते बिलाल बिन हारिस रदियल्लाहु अन्हु का ब्यान है की इन के दफ़न का अजीब मंज़र था की हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु मुअज़्ज़िन हाथ में चराग लिए इन की कब्र के पास खड़े थे और खुद बनफ़्से नफीस हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन की कब्र में उतरे और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु व हज़रते उमर फ़ारूके आज़म रदियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया की तुम दोनों अपने इस्लामी भाई की लाश को उठाओ | फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को अपने दस्ते मुबारक से कब्र में उतारा और खुद ही कब्र को कच्ची ईटों से बंद किया और ये दुआ मांगी की या अल्लाह पाक ! ज़ुल बिजा देन से राज़ी हूँ तू भी इससे राज़ी हो जा |हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते ज़ुल बिजादैन रदियल्लाहु अन्हु के दफ़न का मंज़र देखा तो बे इख़्तियार उन के मुँह से निकला काश ! ज़ुल बिजादैन रदियल्लाहु अन्हु की जगह ये मेरी मय्यत होती |

मस्जिदे ज़िरार

मुनाफिकों ने मज़हबे इस्लाम की बीख कुनि और मुसलमानो में फूट डालने के लिए मस्जिदे कुबा के मुकाबले एक मस्जिद तामीर की थी जो दर हकीकत मुनाफिक़ीन की साज़िशों और इन की दसीसा करियों का एक ज़बर दस्त अड्डा था अबू आमिर राहिब जो अंसार में से जो ईसाई हो गया था जिस का नाम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबू आमिर फासिक रखा था उस ने मुनाफिक़ीन से कहा की तुम लोग ख़ुफ़िया तरीके पर जंग की तैयारियां करते रहो | में कैसरे रूम के पास जा कर वहां से फौजें लता हूँ ताकि इस मुल्क से इस्लाम का नामो निशान मिटा दूँ | चुनांचे इसी मस्जिद में बैठ कर इस्लाम के खिलाफ मुनाफिक़ीन कमेटियां करते थे और इस्लाम व बानिए इस्लस्म हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ख़ातिमा कर देने की तदबीरें सोचा करते थे | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंगे तबूक के लिए रवाना होने लगे तो मक्कार मुनाफिकों का एक गिरोह आया और महिज़ मुसलमानो को धोका देने के लिए बारगाहे रिसालत में ये दरख्वास्त पेश की, की या रसूलल्लाह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हम ने बीमारों और माज़ूरों के लिए एक मस्जिद बानी है | आप चल कर एक बार इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ा दें ताकि हमरी ये मस्जिद खुदा की बारगाह में मकबूल हो जाए | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जवाब दिया की इस वक़्त तो में जिहाद के लिए घर से निकल चुका हूँ लिहाज़ा इस वक़्त तो मुझे इतना मौका नहीं है | मुनाफिक़ीन ने काफी ज़िद की मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनकी इस मस्जिद में कदम नहीं रखा | जब आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंगे तबूक से वापस तशरीफ़ लाए तो मुनाफिक़ीन की चालबाज़ियों और इन की मक्कारियों, दगा बाजियों के बारे में “सूरह तौबा” की बहुत से आयात नाज़िल हो गई और मुनाफिक़ीन के निफ़ाक़ और इन की इस्लाम दुश्मनी के तमाम रुमूज़ो असरार बे निकाब हो कर नज़रों के सामने आ गए | और उन की इस मस्जिद के बारे में खुसूसियत के साथ ये आयते नाज़िल हुईं कुरआन शरीफ पारा 11, सूरह तौबा आयात 107, 108, में है की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- और वो लोग जिन्हों ने एक मस्जिद ज़रर पहुंचाने और कुफ्र करने और मुसलमानो की फूट डालने की गरज़ से बनाई और इस मकसद से की जो लोग पहले ही से खुदा और उस के रसूल से जंग कर रहे हैं उन के लिए एक कमीन गाह हाथ आ जाए और वो ज़रूर कस्मे खाएंगें की हमने तो भलाई का इरादा किया है और खुदा गवाही देता है की बेशक ये लोग झूठे हैं आप कभी भी इस मस्जिद में न खड़े हों वो मस्जिद (मस्जिदे कुबा) जिस की बुनियाद पहले ही दिन से परहेज़गारी पर रखी हुई है वो इस बात की ज़ियादा हकदार है की आप उस में खड़े हों उस में ऐसे लोग हैं जो पाकि को पसंद करते हैं और खुदा पाकी रखने वालों को दोस्त रखता है |इन आयात के नाज़िल हो जाने के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते मालिक बिन दखशम व हज़रते मअन बिन अदी रदियल्लाहु अन्हुमा को हुक्म दिया की इस मस्जिद को तोड़ कर के इस में आग लगा दें |

सिद्दीक़े अकबर रदियल्लाहु अन्हु अमीरुल हज

ग़ज़वए तबूक से वापसी के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़ुल कादा सं. 9, हिजरी में तीन सौ मुसलमानो का एक काफिला मदीनए मुनव्वरह से हज के लिए मक्कए मुकर्रमा भेजा और हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु को “अमीरुल हज” और हज़रते अली मुर्तज़ा रदियल्लाहु अन्हु को “नकीबे इस्लाम” और हज़रते साद बिन अबी वक़्क़ास व हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह व हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हुम को मुअल्लिम बना दिया और अपनी तरफ से क़ुरबानी के लिए बीस ऊँट भी भेजे |हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु ने हरमे काबा और अरफ़ात व मिना में खुत्बा पढ़ा इस के बाद आप रदियल्लाहु अन्हु खड़े हुए और “सूरह बरात की चालीस आयतें पढ़ कर सुनाई और ऐलान कर दिया की अब कोई मुशरिक खाने काबा में दाखिल न हो सकेगा न कोई बरहना बदन और नग्गा हो कर तवाफ़ कर सकेगा चार महीने के बाद चार कुफ्फार व मुशरिकीन के लिए अमान ख़त्म कर दी जाएगी | हज़रते अबू हुरैरा और दूसरे सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने इस ऐलान की इस कदर ज़ोर ज़ोर से आवाज़ दी, की इन लोगों का गला बैठ गया | इस ऐलान के बाद कुफ़्फ़ारो मुशरिकीन फौज की फौज आ कर मुस्लमान होने लगे |

सं. 9, हिजरी के वाक़िआते मुतफ़र्रिका :-

  • इस साल पूरे मुल्क में हर तरफ अम्नो अमान की फ़ज़ा पैदा हो गई और ज़कात का हुक्म नाज़िल हुआ और ज़कात की वसूली के लिए आमिलीन और मुहस्सिलों को तक़र्रुर हुआ |
  • जो गैर मुस्लिम कोमे इस्लामी सल्तनत के ज़ेरे साया रहीं उन के लिए जिज़्या का हुक्म नाज़िल हुआ और क़ुरआन शरीफ पारा 10, आयत 29, की ये आयत नाज़िल हुई की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- वो छोटे बन कर “जिज़्या” अदा करें |

  • सूद की हुरमत नाज़िल हुई और इस के एक साल बाद सं, 10, हिजरी में हिज्जातुल वदा के मोके पर अपने ख़ुत्बे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस का ख़ुत्बे खूब ऐलान फ़रमाया |
  • हब्शा का बादशा जिन का नाम हज़रते असमाह रदियल्लाहु अन्हु था | जिन के ज़ेरे साए मुस्लमान मुहाजिरीन ने चंद साल हबशाह में पनाह ली थी उनकी वफ़ात हो गई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मदीने में उनकी गायबाना नमाज़े जनाज़ा पढ़ी और उन के लिए मगफिरत की दुआ मांगी |
  • इसी साल मुनाफिकों का सरदार अब्दुल्लाह बिन उबय्य मर गया | इस के बेटे हज़रते अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु की दरख्वास्त पर उन की दिल जोई के वास्ते हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस मुनाफिक के कफ़न के लिए अपना पैरहन कुरता शरीफ अता किया और उस की लाश को अपने ज़ानूए अक़दस पे रख कर इस के कफ़न में अपना लुआब दहन डाला और हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु के बार बार मना करने के बाद चूँकि अभी तक मुमानिअत नाज़िल नहीं हुई थी इस लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस के जनाज़े की नमाज़ पढ़ाई लेकिन इस के बाद ही कुरआन शरीफ पारा 10, सूरह तौबा आयत 74, नाज़िल हो गई की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- (ऐ रसूल) इन (मुनाफिकों) में से जो मरे कभी आप इन पर नमाज़े जनाज़ा न पढ़िए और इन की कब्र के पास आप खड़े भी न हों यक़ीनन इन लोगों ने अल्लाह और उस के रसूल के साथ कुफ्र किया है और कुफ्र की हालत में ये लोग मरे हैं | इस आयत के नुज़ूल के बाद फिर कभी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किसी मुनाफिक की नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ाई न उस की कब्र के पास खड़े हुए |

वुफूदुल अरब

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस्लाम की तब्लीग के लिए तमाम अतराफ़ व अक्नाफ में मुबल्लिग़ीन इस्लाम और आमिलीन व मुजाहिदीन को भेजा करते थे | उन में से कुछ कबाइल तो मुबल्लिग़ीन के सामने ही दावते इस्लाम कबूल कर के मुस्लमान हो जाते थे मगर बाज़ कबाइल इस बात के ख्वाइश मंद होते थे की बराहे रास्त खुद बारगाहे नुबुव्वत में हाज़िर हो कर अपने इस्लाम का ऐलान करें | चुनांचे कुछ लोग अपने अपने कबीलों के नुमाइंदे बन कर मदीना शरीफ आते थे और खुद बानिए इस्लाम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बाने फैज़ तर्जुमान से दावते इस्लाम का पैगाम सुन कर अपने इस्लाम का ऐलान करते थे और फिर अपने अपने कबीलों में वापस जा कर पूरे कबीलों वालों को मुशर्रफ बा इस्लाम करते थे | इन्ही कबाइल के नुमाइंदों को हम “वुफूदुल अरब” के उन्वान से बयान करते हैं |हज़रत अल्लामा शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने इन वुफूद की तादाद साठ से ज़ियादा बताई है |और अल्लामा कस्तलानी व हाफ़िज़ इब्ने कय्यम ने इस किस्म के चौदह वफ़दों का तज़किरा किया है हम भी उन ही में से चंद वुफूद का ज़िक्र करते हैं |

इस्तक़बाले वुफूद

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कबाइल से आने वाले वफ़दों के इस्तकबाल और उन की मुलाकत का ख़ास तौर पर एहतिमाम फरमाते थे | चुनांचे हर वफ्द के आने पर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम निहायत ही उम्दा पोशाक ज़ेब्तन फरमा कर काशानए अक़दस (घर) से निकलते और अपने खुसूसी सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को भी हुक्म देते थे की बेहतरीन लिबास पहन कर आएं फिर उन महमानो को अच्छे से अच्छे मकानों में ठहराते और उन लोगों की मेहमान नवाज़ी और खातिर मुदारात का ख़ास तौर पर ख्याल फरमाते थे और उन महमानो से मुलाकात के लिए मस्जिदे नबवी में एक सुतून से टेक लगा कर नशिश्त फरमाते फिर हर एक वफ्द से निहायत ही खुशरूइ और खन्दा पेशानी के साथ गुफ्तुगू फरमाते और उन की हाजतों और हालातों को पूरी तवज्जुह के साथ सुनते और फिर उन को ज़रूरी अक़ाइद व अहकामे इस्लाम की तालीम व तलकीन भी फरमाते और हर वफ्द को उन के दरजातो मरतबे के लिहाज़ से कुछ न कुछ नकद या सामान भी तोहफे तहाइफ़ और इनआमात के तौर पर अता फरमाते
वाफदे सकीफ

जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंगे हुनैन के बाद ताइफ़ से वापस तशरीफ़ लाए और “जीराना” से उमरा अदा करने के बाद मदीना तशरीफ़ ले जा रहे थे| तो रास्ते ही में कबीलए सकीफ के सरदारे आज़म “उरवा बिन मसऊद सक़फ़ी” रदियल्लाहु अन्हु बारगाहे रिसालत में हाज़िर हो कर बा रज़ा व रगबत दमाने इस्लाम में आ गए | ये बहुत ही शानदार और बा वफ़ा आदमी थे और इनका कुछ तज़किरा हुलेह हुदैबिया के मोके पर हम लिख चुके हैं | इन हों ने मुस्लमान होने के बाद अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप मुझे इजाज़त अता फरमाएं की में अब अपनी कोम में जा कर इस्लाम की तब्लीग करूँ | आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इजाज़त दे दी और ये वहीँ से लोट कर अपने कबीले में गए और अपने मकान की छत पर चढ़ कर अपने मुसलमान होने का ऐलान किया और अपने कबीले वालों को इस्लाम की दावत दी | इस ऐलानिया दावते इस्लाम को सुन कर कबीलए सकीफ के लोग ग़ैज़ो गज़ब में भर कर इस कदर तैश में आ गए की चारों तरफ से इन पर तीरों की बारिश करने लगे यहाँ तक की इन को एक तीर लगा और ये शहीद हो गए | कबीलए सकीफ के लोगों ने इन को क़त्ल तो कर दिया लेकिन फिर ये सोचा की तमाम कबाइले अरब इस्लाम कबूल कर चुके हैं |

अब हम भला इस्लाम के खिलाफ कब तक और कितने लोगों से लड़ते रहेंगें? फिर मुसलमानो के इंतिकाम और एक लम्बी जंग के अंजाम को सोच कर दिन में तारे नज़र आने लगे इस लिए इन लोगों ने अपने एक मुअज़्ज़ज़ रईस अब्दे यालील बिन अम्र को चंद मुमताज़ सरदारों के साथ मदीना शरफ़ भेजा | इस वफ्द ने मदीना पहुंच कर बारगाहे रिसालत में अर्ज़ किया की हम इस शर्त पर इस्लाम कबूल करते हैं की तीन साल तक हमारे बुत “लात” को तोड़ा न जाए | आप ने इस शर्त को कबूल फरमाने से साफ इंकार फरमा दिया और इरशाद फ़रमाया की इस्लाम किसी हाल में भी बुत परस्ती को एक लम्हे के लिए भी बर्दाश्त नहीं कर सकता | लिहाज़ा बुत तो ज़रूर तोड़ा जाएगा ये और बात है की तुम लोग उस को अपने हाथ से न तोड़ो बल्कि में हज़रते अबू सुफियान और हज़रते मुगीरा बिन शआबा रदियल्लाहु अन्हु को भेज दूंगा वो उस बुत को तोड़ डालेंगें | चुनांचे ये लोग मुस्लमान हो गए और हज़रते उस्मान बिन अल आस रदियल्लाहु अन्हु को जो इस कोम के एक मुअज़्ज़ और मुमताज़ फर्द थे इस कबीले का अमीर मुकर्रर फरमा दिया | और इन लोगों के साथ हज़रते अबू सुफियान और हज़रते मुगीरा बिन शआबा रदियल्लाहु अन्हुमा को ताइफ़ भेजा और इन दोनों हज़रात ने उन के बुत “लात” को तोड़ फोड़ कर रेज़ा रेज़ा कर डाला |

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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