हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-27)

वफ्दे वफ्दे नजरान

ये नजरान के नसारा का वफ्द था | इस में साठ सवार थे | चौबीस इन के शुरफ़ा और मुअज़्ज़िज़ीन थे और तीन अश्ख़ास इस दर्जे के थे की इन्ही के हाथों में नजरान के नसारा का मज़हबी और कोमी सारा निज़ाम था | एक आकिब जिस का नाम “अब्दुल मसीह” था दूसरा शख्स सय्यद जिस का नाम “ऐहम” था तीसरा शख्स “अबू हरिस बिन अलकमा” था | इन लोगों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बहुत से सवालात किए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस के जवाब दिए यहाँ तक की हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम के मुआमले पर गुफ्तुगू छिड़ गई | इन लोगों ने ये मानने से इंकार कर दिया की हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम कुआंरी मरयम के शिकम से बगैर बाप के पैदा हुए इस मोके पर कुरआन शरीफ पारा तीन सूरह आले इमरान आयात 59, 61, नाज़िल हुई की जिस को आयते मुबाहिला कहते हैं की: 

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- बेशक हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम की मिसाल अल्लाह के नज़दीक आदम अलैहिस्सलाम की तरह है उन को मिटटी से बनाया फिर फ़रमाया हो जा वो फ़ौरन हो जाता है (ऐ सुनने वाले) ये तेरे रब की तरफ से हक है तुम शक वालों में से न होना फिर ऐ महबूब जो तुम में से हज़रते ईसा के बारे में हुज्जत करें बाद इस के की तुम्हे इल्म आ चुका तो उन से फरमा दो आओ हम बुलाएं अपने बेटों को और तुम्हारे बेटों को और अपनी औरतों को और तुम्हारी औरतों को और अपनी जानो को और तुम्हारी जानो को फिर हम गिड़गिड़ा कर दुआ मांगें और झूटों पर अल्लाह की लानत डालें|

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब इन लोगों को इस मुबाहिले की दावत दी तो इन नसरानियों ने रात भर की मुहलत मांगी सुबह को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते हसन, हज़रते हुसैन, हज़रते अली, हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हुम को साथ ले कर मुबाहिले के लिए काशानए नुबुव्वत से निकल पड़े मगर नजरान के नसरानियों ने मुबाहिला करने से इंकार कर दिया और जिज़्या देने का इकरार कर के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सुलह कर ली | 

“हिजरत का दसवां साल सं. दस 10, हिजरी हिज्जातुल विदाआ” 

इस साल के तमाम वाक़िआत मैं सब से ज्यादा शानदार और अहम तरीन वाकिअ “हिज्जातुल विदाआ” है | ये आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आखिरी हज था और हिजरत के बाद ये आप का पहला हज था ज़ुल कादा दस 10, हिजरी में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज के लिए रवानगी का ऐलान फरमाया । ये खबर बिजली की तरह सारे अरब में हर तरफ फेल गई । और तमाम अरब शरफे हमरिकाबी के लिए उमंड पड़ा | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आखिरी ज़ुल कादा में जुमेरात के दिन मदीने में ग़ुस्ल फरमा कर तहबंद और चादर ज़ेबे तन फरमाया और नमाज़ ज़ोहर मस्जिद नबवी में अदा फरमा कर मदीना मुनव्वरा से रवाना हुए और अपनी तमाम अज़वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन्हा को भी साथ चलने का हुक्म दिया मदीना मुनव्वरा से छेह मील दूर के मदीना कि मीकात “ज़ुल हलीफा” पर पहुंच कर रात भर कियाम फरमाया फिर एहराम के लिए गुस्ल फरमाया | और हजरत बीबी आयशा रदियल्लाहु अन्हा ने अपने हाथ पर जिस्म अतहर पर खुशबू लगाई फिर आप हुज़ूर  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो रकत नमाज़ अदा फरमाई और और अपनी ऊंटनी कसवा पर सवार हो कर एहराम बांधा और बुलंद आवाज़ से लब्बैक पड़ा और रवाना हो गए | हज़रत जाबिर रदियल्लाहु अन्हा का बयान की मैने नज़र उठा कर देखा तो आगे पीछे दाएं बाएं हद्दे निगाह तक आदमियों का जंगल नज़र आता था बेहकी की रिवायत है कि एक लाख चौदह हज़ार और दूसरी रिवायतों में है कि एक लाख चौबीस हज़ार मुसलमान हिज्जातुल विदाआ में आप के साथ थे चौथी | 

ज़ुल हिज्जा को आप मक्कए मुकर्रम में दाखिल हुए | आप के खानदान बनी हाशिम के लड़कों ने तशरीफ आवरी की खबर सुनी तो  खुशी से दौड़ पड़े और आप ने निहायत ही मुहब्बत व प्यार के साथ किसी को आगे किसी को पीछे अपनी ऊंटनी पर बिठा लिया फज्र की नमाज़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने माकामे “ज़ी तुवा” में अदा फरमाई और ग़ुस्ल फरमाया फिर आप मक्का शरीफ में दाखिल हुए और चाशत के वक्त यानी जब आफताब बुलंद हो चुका था तो आप मस्जिद हराम में दाखिल हुए जब काबे शरीफ पर निगाहें मेहरे नबुव्वत पड़ी तो आपने ये दुआ पढ़ी कि: “ए अल्लाह पाक तू सलामती देने वाला है और तेरी तरफ से सलामती है ऐ रब हमें सलामती के साथ जिंदा रख | ऐ अल्लाह इस घर की अज़मत व शरफ और इज़्ज़त व हेबत को ज़ियादा कर | और जो इस घर का हज और उमराह करे तू उसकी बुज़ुर्गी और शरफ व अज़मत को ज़ियादा कर | 

जब हजरे असवद के सामने आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ ले गए तो हजरे असवद पर हाथ रख कर उस को बोसा दिया फिर काबे शरीफ का तवाफ फरमाया | शुरू के तीन फेरो में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रमल किया और चार चक्करों में मामूली चाल से चले हर चक्कर में जब हजरे असवद के सामने पहुंचते तो अपनी छड़ी से हज़रे अस्वद की तरफ इशारा कर के छड़ी की चूम लेते थे | हज़रे असवद का इस्तिलाम कभी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने छड़ी के ज़रिए से किया कभी हाथ से छू कर हाथ को चूम लिया कभी लब मुबारक को हजरे असवद पर रख कर बोसा दिया और ये भी साबित है कि कभी रुकने यमानी का भी आप ने इस्तीलाम किया। जब तवाफ से फारिग हुए तो मकामें इब्राहिम के पास तशरीफ़ लाए और वहां दो रकात नमाज़ अदा की | नमाज़ सें फारिग हो कर फिर हजरे असवद का इस्तिलाम फरमाया और सामने के दरवाज़े की सफ की जानिब रवाना हुए | करीब पहुंचे तो इस आयत की तिलावत फरमाई की: “इन्नस सफा वलमर वता मिन शाइरिल्लाह” 

बेशक सफा और मर्वह अल्लाह के दीन के निशानों में से है | फिर सफा और मर्वाह की सई फरमाई और चूंकि आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ कुर्बानी के जानवर थे। इसी लिए उमराह अदा करने के बाद आप ने एहराम नहीं उतारा | आठवीं ज़ुल हिज्जा जुमेरात के दिन आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मिना तशरीफ के गए और पांच नमाजे ज़ोहर असर मगरिब इशा फज्र मिना में अदा फरमा का नवी जुल हिज्जा के दिन ज़ुमा के दिन आप अरफात में तशरीफ ले गए |

ज़मानए जहिलियत में चूंकि कुरैश अपने को सारे अरब में अफ्ज़लो आला शुमार करते थे। इस लिए वो अरफात को बजाए “मुज़दलफा” में क़याम करते थे और दूसरे तमाम अरब “अरफात” में ठहरते थे लेकिन इस्लामी मुसावात ने कुरेश के लिए इस तखसीस को गवारा नहीं किया और अल्लाह पाक ने कुरआन शरीफ पारा 2, सूरह बकरा आयत  199, में ये हुक्म दिया कि:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- ऐ कुरेश तुम भी वही अरफात से पलट कर आओ जहां से सब लोग पलट कर आते है। हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अरफात पहुंच कर एक कम्बल के खेमे में क़ियाम फरमाया | जब सूरज ढल गया तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी ऊंटनी “कसवा” पर सवार हो कर खुतबा पड़ा | इस खुतबे में आप ने बहुत से ज़रूरी अहकामें इस्लाम का ऐलान फरमाया और ज़मानए जहिलियत की तमाम बुराइयों और बेहूदा रस्मों को आप ने मिटाते हुए ऐलान फरमाया कि: सुन लो ! जाहीलियत के तमाम दस्तूर मेरे दोनों कदमों के नीचे पामाल (पेरो से कुचलन ख़त्म करना) है। इसी तरह ज़मानए जहीलियत के खानदानी तफाखुर और रंगों नस्ल की बरतरी और कोमियत में नीच उंच ग़ैरह तसव्वुराते जहीलियत के बुतो को पाश पाश करते हुए और मुसावते इस्लाम का अलम बुलंद फरमाते हुए ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने इस तारीखी खुतबे में इरशाद फरमाया की |

ऐ लोगो बेशक तुम्हारा रब एक है और बेशक तुम्हारा बाप आदम अलैहिस्सलाम एक है |  किसी अरबी को किसी अजमी पर और किसी अजमी को किसी अरबी पर किसी काले पर और किसी काले को किसी सुर्ख पर कोई फ़ज़ीलत नहीं मगर तकवा के सबब से |  इसी तरह तमाम दुनिया में अम्नो अमान कायम फरमाने के लिए अमनो सलामती के शाहंशाह ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये खुदाई फरमान जारी फरमाया कि: तुम्हारा खून और तुम्हारा माल तुम पर ता क़यामत इसी तरह हराम है जिस तरह तुम्हारा ये दीन तुम्हारा ये महीना तुम्हारा ये शहर मुहतरम है |

अपना खुतबा खत्म फरमाते हुए आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सामेइन से फरमाया कि: तुम से खुदा के यहां मेरी निसबत पूछा जाएगा तो तुम लोग क्या जवाब दोगे? तमाम सामेईन ने कहा कि हम लोग खुदा से कह देंगे कि आपने खुदा का पैगाम पहुंचा दिया और रिसालत का हक अदा कर दिया |  ये सुन कर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आसमान की तरफ उंगली उठाई और तीन बार फरमाया कि ऐ अल्लाह ! तू गवाह रहना |

एन इसी हालत में जब की ख़ुत्बे में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपना फर्ज़े रिसालत अदा फरमा रहे थे तो कुरआन शरीफ पारा 6, सूरह माइदा आयत 3, नाज़िल हुई की:

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- आज में ने तुम्हारे लिये तुम्हारे दीन को मुकम्मल कर दिया | और अपनी नेमत तमाम कर दी | और तुम्हारे लिए दीने इस्लाम को पसंद कर लिया | |

शहंशाहे कौनैन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तख्ते शाही

ये हैरत अंगेज व इबरत ख़ेज़ वाक़िआ भी याद रखने के काबिल है | कि जिस वक्त शहंशाहे कौनैन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, खुदा पाक के नाइबे अकरम और ख़लीफ़ए आज़म होने की हैसियत से फरमाने रब्बानी का ऐलान फरमा रहे थे | शहंशाहे कौनैन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तख्ते शहंशाही यानी ऊंटनी का काजावा और अरक गीर शायद दस रुपए की ज़ियादा की कीमत का न था | न उस ऊंटनी पर कोई शानदार कजावा था | न कोई हौदज न कोई महमिल न कोई ताज।

क्या तारीखे आलम में किसी और बादशाह ने भी ऐसी सादगी का नमूना पेश किया है? इस का जवाब यही और फ़क्त यही है की  “नहीं” | ये वो ज़ाहिदाना शहंशाही है जो सिर्फ शाहे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शहंशाही का तुर्रए इम्तियाज़ है ! 

खुतबे के बाद आप  हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़ोहर व असर एक अज़ान और दो इकामतो से अदा फरमाई फिर “मोकिफ” में तशरीफ ले गए और जबले रहमत के नीचे गुरुबे आफताब तक दुआओ में मसरूफ रहे | गुरूबे आफताब के बाद अरफात से एक लाख से ज़ियादा हुज्जाज के इज़दाहाम में “मुज़दलफा” पहुंचे | यहां पहले मगरिब फिर इशा एक अज़ान और दो इकामतों से अदा फरमाई | मुशइरे हराम के पास रात भर उम्मत के लिए दुआएं मांगते रहे | और सूरज निकल ने से पहले मुज़दलफा से मिना के लिए रवाना हे गए और वादिय मुहस्सिर के रास्ते से मिना में आप हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम “जमरह” के पास तशरीफ लाए | और कंकरियां मारी फिर आप ने ब आवाज़े बुलंद फ़रमाया की:  हज के मसाइल सीख लो ! मै नही जानता कि इस के बाद मैं दूसरा हज न करूगा | 

मिना में भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक तवील खुतबा दिया | जिस में अरफात के खुतबे की तरह बहुत से मसाइल व अहकाम का ऐलान फरमाया | फिर कुर्बान गाह ने तशरीफ ले गए | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ क़ुरबानी के सौ ऊँट थे | कुछ को तो आपने अपने दस्ते मुबारक से ज़बह फरमाया | और बाकी हज़रत अली रदियल्लाहु अन्हु को सौंप दिया | और गोश्त, पोस्त, झोल, नकेल, सब को खेरात कर देने का हुक्म दिया | और फरमाया की कस्साब की मज़दूरी भी इस में से ना अदा कि जाए | बल्कि अलग से दी जाए | 

मूए मुबारक यानि मुबारक बाल

कुर्बानी के बाद हज़रते मुअम्मर बिन अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु से आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सर कें बाल उतरवाए और कुछ हिस्सा हज़रत अब्बू तल्हा अंसारी रदियल्लाहु अन्हु को अता फरमाया और बाकी मुए मुबारक को मुसलमानों मैं तकसीम कर देने का हुकुम दिया | इस के बाद आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्के तशरीफ लाए और तवाफ़े ज़ियारत फरमाया |  

साकिये कौसर चाहे ज़मज़म पर

फिर चाहे ज़मज़म के पास तशरीफ लाए | खानदान अब्दुल मुत्तलिब के लोग हाजियों को ज़मज़म पिला रहे थे | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया कि मुझे ये खौफ न होता कि मुझ को ऐसा करते देख कर दूसरे लोग भी तुम्हारे हाथ से डोल छीन कर खुद अपने हाथ से पानी भर कर पीने लगेंगे तो में खुद अपने हाथ से पानी भर कर पीता | हजरत अब्बास रदियल्लाहु अन्हा ने ज़मज़म शरीफ पेश किया | और आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किब्ला रुख खड़े खड़े ज़मज़म  शरीफ पिया | फिर मिना वापस तशरीफ ले गए | और बारह जुल हिज्जा तक मिना में मुकीम रहे और हर रोज़ सूरज ढलने के बाद जमरो को कंकरी मारते रहे | तेरह जुल हिज्जा मंगल के दिन आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सूरज ढलने के बाद मिना से रवाना हो कर “मुहस्सिब” में रात भर कियाम फरमाया और सुबह को नमाज़ फज्र काबे की मस्जिद में अदा फरमाई | और तवाफ़े  विदा कर के अंसार व मुहाजिरों के साथ मदीना शरीफ के लिए रवाना हो गए | 

ग़दीरे खुम का खुत्बा20

रास्ते में मक़ामे “ग़दीरे खुम” पर जो एक तालाब है यहाँ तमाम साथियों को जमा कर के एक मुख़्तसर खुत्बा इरशाद फ़रमाया जिस का तर्जुमा ये है :

हम्दो सना के बाद : ऐ लोगों ! में भी एक आदमी हूँ | मुमकिन है की अल्लाह पाक का फरिश्ता (मलकुल मोत) जल्द आ जाए और मुझे उस का पैगाम कबूल करना पड़े में तुम्हारे दरमियान दो चीज़ों छोड़ता हूँ | एक अल्लाह पाक की किताब जिस में हिदायत और रौशनी है और दूसरी चीज़ मेरे अहले बैत हैं | में अपने अहले बैत के बारे में तुम्हे अल्लाह पाक की याद दिलाता हूँ | 

इस ख़ुत्बे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये भी इरशाद फ़रमाया की: जिस का में मोला हूँ अली भी उस के मोला हैं | अल्लाह पाक ! जो अली से मुहब्बत रखे उससे तू भी मुहब्बत रख और जो अली से अदावत रखे उस से तू भी अदावत रख |

ग़दीरे खुम के ख़ुत्बे में हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के फ़ज़ाइल मनाक़िब बयान कर ने की क्या ज़रूरत थी इस की कोई तसरीह कहीं हदीसों में नहीं मिलती | हाँ, अलबत्ता बुखारी शरीफ की एक रिवायत से पता चलता है की हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने अपने इख़्तियार से कोई ऐसा काम कर डाला था जिस को उन के यमन से आने वाले साथियों ने पसंद नहीं किया यहाँ तक की उनमे से एक ने बारगाहे रिसालत में इस की शिकायत की जिस का हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये जवाब दिया की अली को इससे ज़ियादा का हक है | मुमकिन है इसी किस्म के शुबहात व शुकूक को मुस्लमान यमनियों के दिलों से दूर करने के लिए इस मोके पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु और अहले बैत के फ़ज़ाइल भी बयान कर दिए | 

रवाफिज़ का एक शुबा

बाज़ शीआ हज़रात ने इस मोके पर लिखा है की “ग़दीरे खुम” का खुत्बा ये हज़रते अली कर्रामल्लाहू तआला वजहहुल करीम की खिलाफत बिला फ़स्ल का ऐलान था मगर अहले फ़हम पर रोशन है की ये महज़ एक “तुक बंदी” के सिवा कुछ भी नहीं क्यूँ की अगर वाकई हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के लिए खिलाफत बिला फ़स्ल का ऐलान करना था तो अरफ़ात यानि मिना के ख़ुत्बों में ये ऐलान ज़ियादा मुनासिब था जहाँ एक लाख से ज़ियादा मुसलमानो का इज्तिमा था न की ग़दीरे खुम जहाँ यमन और मदीने वालों के सिवा कोई भी न था, मदीना शरीफ के करीब पहुंच कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक़ामे ज़ुल हलीफ़ा में रात बसर फ़रमाई और सुबह को मदीना शरीफ में नुज़ूले इजलाल फ़रमाया |

 “हिजरत का ग्यारवां साल सं, 11, हिजरी”        

जैशे उसामा

इस लश्कर का दूसरा नाम “सरय्य्यए उसामा” भी है | सब से आखरी फौज है जिस के रवाना करने का हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया| 26, सफर सं, 11, हिजरी दो शाम्बे के दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रूमियों से जंग की तय्यारी का हुक्म दिया और दुसरे दिन हज़रते उसामा बिन ज़ैद रदियल्लाहु अन्हु को बुला कर फ़रमाया की में तुम को इस फौज का अमीरे लश्कर मुकर्रर किया तुम अपने बाप की शहादत गाह मक़ामे “उबना” में जाओ और निहायत तेज़ी के साथ सफर कर के उन कुफ्फार पर अचानक हमला कर दो ताकि वो लोग जंग की तैयारी न करें | बा वुजूदे मिजाज़े अक़दस नासाज़ था मगर इसी हालत में  

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुद अपने दस्ते मुबरक से झंडा बांधा और ये निशाने इस्लाम हज़रते उसामा बिन ज़ैद रदियल्लाहु अन्हु के हाथ में दे कर इरशाद फ़रमाया : अल्लाह के नाम से और अल्लाह की राह में जिहाद करो और काफिरों के साथ जंग करो |

हज़रते उसामा बिन ज़ैद रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते बुरैदा बिन अल हुसैब रदियल्लाहु अन्हु को अपना अलम बरदार बनाया और मदीने से निकल कर एक कोस दूर मक़ामे “जरफ” में पड़ाव किया ताकि वहां पूरा लश्कर जमा हो जाए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अंसार व मुहाजिरीन के तमाम मुअज़्ज़िज़ीन को भी इस लश्कर में शामिल हो जाने का हुक्म दिया | कुछ लोगों पर ये शाक गुज़रा की ऐसा लश्कर जिस में अंसार व मुहाजिरीन के अकाबिर अमाइद मौजूद हैं एक नो उम्र लड़का जिस की उम्र बीस साल से ज़ियादा नहीं किस तरह अमीरे लश्कर बना दिया गया? जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस का ऐतिराज़ की खबर मिली तो आप के कल्बे नाज़ुक पर सदमा गुज़रा और आप ने अलालत के बा वजूद सर में पट्टी बांधे हुए एक चादर ओढ़ कर मिम्बर पर एक खुत्बा दिया जिस में इरशाद फ़रमाया की अगर तुम लोगों ने उसामा की सिपाह सालारी पर ताना ज़नी की है तो तुम लोगों ने इससे क़ब्ल इस के बाप के सिपाह सालार होने पर भी पर ताना ज़नी की थी हालां की खुदा की कसम ! इस का बाप (ज़ैद बिन हारिस) सिपाह सालार होने के लाइक था और उस के बाद उस का बेटा (उसामा बिन ज़ैद) भी सिपाह सालार होने के काबिल है और ये मेरे नज़दीक मेरे महबूब तिरिन सहाबा में से है जैसा की इस का बाप मेरे महबूब तिरिन असहाब में से था लिहाज़ा उसामा रदियल्लाहु अन्हु के बारे में तुम लोग मेरी नेक वसीयत को कबूल करो की वो तुम्हारे अच्छे लोगों में से हैं |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये खुत्बा दे कर मकान में तशरीफ़ ले गए और आप की अलालत में कुछ और भी इज़ाफ़ा हो गया | हज़रते उसामा रदियल्लाहु अन्हु हुक्मे नबी की तकमील करते हुए मक़ामे जरफ में पहुंच गए और वहां लश्करे इस्लाम का इज्तिमा होता रहा यहाँ तक की एक अज़ीम लश्कर तय्यार हो गया |  

10, रबीउल अव्वल सं, 11, हिजरी को जिहाद में जाने वाले ख्वास हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रुखसत हो ने के लिए और रुखसत हो कर मक़ामे जरफ में पहुंच गए | इस के दूसरे दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अलालत ने और ज़ियादा शिद्दत इख़्तियार कर ली | हज़रते उसामा रदियल्लाहु अन्हु भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मिजाज़ पुरसी और रुखसत होने के लिए खिदमते अक़दस में हाज़िर हुए | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उसामा रदियल्लाहु अन्हु को देखा मगर ज़ोफ़ कमज़ोरी की वजह से कुछ बोल न सके, बार बार दस्ते मुबारक को आस्मांन की तरफ उठाते थे और उन के बदन पर अपना मुकद्द्स हाथ फेरते थे | हज़रते उसामा रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की इस में से में ने ये समझा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मेरे लिए दुआ फरमा रहे हैं | इस के बाद हज़रते उसामा रदियल्लाहु अन्हु रुखसत हो कर अपनी फौज में तशरीफ़ ले गए 12, रबीउल अव्वल सं, 11, हिजरी को कूच करने का ऐलान भी फरमा दिया | अब सवार होने के लिए तय्यारी कर रहे थे उन की वालिदा हज़रते उम्मे ऐमन रदियल्लाहु अन्हा का भेजा हुआ आदमी पंहुचा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नज़ा की हालत में हैं | ये होशरुबा खबर सुन कर हज़रते उमामा व हज़रते उमर व हज़रते अबू उबैदा रदियल्लाहु अन्हुम वगैरा फ़ौरन ही मदीने आए तो ये देखा की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सकरात के आलम में हैं और उसी दो पहर को या से पहर के वक़्त आप का विसाल हो गया, “इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन” |

ये खबर सुन कर हज़रते उमामा रदियल्लाहु अन्हु का लश्कर मदीना वापस चला आया मगर जब हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु मसनदे खिलाफत पर रोकन अफ़रोज़ हो गए तो आप ने बाज़ लोगों की मुखालफत के बावजूद रबीउल आखिर की आखरी तारीखों में उस लश्कर को रवाना फ़रमाया और हज़रते उमामा रदियल्लाहु अन्हु मक़ामे “उबान” में तशरीफ़ ले गए और वहां बहुत ही ख़ूंरेज़ी की जंग हुई उस के बाद लश्करे इस्लाम फतेहयाब हुआ और आप ने अपने बाप के कातिल और दुसरे कुफ्फार को क़त्ल किया और बेशुमार माले गनीमत ले कर चालीस दिन के बाद मदीना शरीफ वापस आए |

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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