हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-28)

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपनी वफ़ात का इल्म

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत पहले से अपनी वफ़ात का इल्म हासिल हो गया था और आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुख्तलिफ मोको पर लोगों को इस की खबर भी दे दी थी | चुनांचे हिज्जातुल विदा के मोके पर आप ने लोगों को ये फरमा कर रुखसत फ़रमाया था “शायद” इस के बाद में तुम्हारे साथ हज न कर सकूंगा”  

इसी तरफ ग़दीरे खुम के ख़ुत्बे में इसी अंदाज़ से कुछ इसी किस्म के अलफ़ाज़ आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बान मुबारक से अदा हुए थे अगरचे इन दोनों ख़ुत्बों में लफ्ज़ “शायद” फरमा कर ज़रा पर्दा डालते हुए अपनी वफ़ात की खबर दी मगर हिज्जातुल विदा से वापस आ कर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो ख़ुत्बात इरशाद फरमाएं उस में शायद का लफ्ज़ आपने नहीं फ़रमाया बल्कि साफ साफ और यकींन के साथ अपनी वफ़ात की खबर से लोगों को आगाह फरमा दिया |

चुनांचे बुखारी शरीफ में हज़रते उक़्बा बिन आमिर रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की एक दिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घर से बाहर तशरीफ़ ले गए और शोहदाए उहद की कब्रों पर इस तरह नमाज़ पढ़ी जैसी मय्यत पर नमाज़ पढ़ी जाती है फिर पलट कर मिम्बर पर रोकन अफ़रोज़ हुए और इरशाद फ़रमाया की में तुम्हारा पेश रू (तुम से पहले वफ़ात पाने वाला हूँ) और तुम्हारा गवाह हूँ और में खुदा की कसम ! आपने होज़ को इस वक़्त देख रहा हूँ |

इसी हदीस में फ़रमाया की में अब तुम लोगों से पहले ही वफ़ात पा कर जा रहा हूँ ताकि वहां जा कर तुम लोगों के लिए होज़े कौसर का इंतिज़ाम करूँ | 

ये किस्सा मरज़े वफ़ात शुरू होने से पहले का है लेकिन इस किस्से को बयान फरमाने के वक़्त आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इस का यकीनी इल्म हासिल हो चुका था की में कब और किस वक़्त दुनिया से जाने वाला हूँ और मरज़े वफ़ात शुरू होने के बाद तो अपनी साहिब ज़ादी हज़रते बीबी फातिमा रदियल्लाहु अन्हा को साफ़ साफ लफ़्ज़ों में बगैर “शायद” का लफ्ज़ फरमाते हुए अपनी फावत की खबर दे दी | चुनांचे बुखारी शरीफ की रिवायत है की:

अपने मरज़े फावत में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते बीबी फातिमा रदियल्लाहु अन्हा को बुलाया और चुपके चपके उन से कुछ फ़रमाया तो वो रो पड़ीं | फिर बुलाया और चुपके से कुछ फ़रमाया तो वो हसं पड़ीं जब अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना ने इस के बारे में हज़रते बीबी फातिमा रदियल्लाहु अन्हा से मालूम क्या तो उन्हों ने कहा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आहिस्ता आहिस्ता मुझ से ये फ़रमाया की में इस बीमारी में वफ़ात पा जाऊँगा तो में रो पड़ी | फिर चुपके से मुझे फ़रमाया की मेरे बाद मेरे घर वालों में सब से पहले तुम वफ़ात पा कर मेरे पीछे आओगी तो में हंस पड़ी | 

बहर हाल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपनी वफ़ात से पहले अपनी वफ़ात के वक़्त का इल्म हासिल हो चुका था | क्यूँ न हो की जब दूसरे लोगों की वफ़ात के अवकात से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह पाक ने खबर दार फरमा दिया था तो अगर अल्लाह पाक के बताने से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपनी वफ़ात के वक़्त का क़ब्ल अज़ वक़्त इल्म हो गया तो इस में कौन सा इस्तिआबाद है? अल्लाह पाक ने तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इल्मे “माका ना वमा यकून” अता फ़रमाया | यानि जो कुछ हो चुका और जो कुछ हो रहा है और जो कुछ होने वाला है सब का इल्म अता फरमा कर आप को दुनिया से उठाया | 

अलालत (बीमारी) की इब्तिदा (शुरुआत)

मर्ज़ की इब्तिदा कब हुई? और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कितने दिनों तक अलील रहे? इस में मुअर्रिख़ीन का इख्तिलाफ है, बहर हाल 20, या  22, सफर सं. 11, हिजरी को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल जन्नतुल बकी में जो आम मुसलमानो का कब्रिस्तान है आधी रात में तशरीफ़ ले गए वहां से वापस तशरीफ़ लाए तो मिज़ाजे अक़दस नासाज़ हो गया ये हज़रते मैमूना रदियल्लाहु अन्हा की बारी का दिन था |

दो शम्बे के दिन आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल की बीमारी बहुत शदीद हो गई | आप की ख्वाइश पर तमाम अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना ने इजाज़त दे दी की आप हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा के यहाँ क़ियाम फरमाएं | चुनांचे हज़रते अब्बास व हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुमा ने सहारा दे कर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा के हुजराए मुबारका में पंहुचा दिया | जब ताकत रही आप खुद मस्जिदे नबवी में नमाज़े पढ़ाते रहे | जब कमज़ोरी बहुत ज़ियादा बहुत बढ़ गई तो आप ने हुक्म दिया की हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु मेरे मुसल्ले पर इमामत करें | चुनांचे सत्तरह नमाज़ें हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु ने पढ़ाई | 

एक दिन ज़ोहर की नमाज़ के वक़्त मर्ज़ में कुछ इफ़ाक़ा महसूस हुआ तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल ने हुक्म दिया की सात पानी की मशकें मेरे ऊपर डालीं जाएं | जब आप ग़ुस्ल फरमा चुके तो हज़रते अब्बास और हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुमा आप का मुकद्द्स बाज़ू थाम कर आप को मस्जिद में लाए | हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु नमाज़ पढ़ा रहे थे | आहट पा कर पीछे हटने लगे मगर आप ने इशारे से उन को रोका और उन के पहलू में बैठ कर नमाज़ पढ़ाई | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्ल को देख कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु और दूसरे मुक्तदी लोग अरकाने नमाज़ अदा करते रहे | नमाज़ के बाद आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक खुत्बा भी दिया जिस में बहुत सी वसिय्यतों और अहकामे इस्लाम बयान फरमाकर अंसार के फ़ज़ाइल और इन के हुकूक के बारे में कुछ कलिमात इरशाद फरमाए और सूरह वल अस्र और एक आयत भी तिलावत फ़रमाई |

घर में सात दीनार रखे हुए थे | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा से फ़रमाया की तुम उन दीनारों को लाओ ताकि में उन दीनारों को खुदा की राह में खर्च कर दूँ | चुनांचे हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के ज़रिए आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन दीनारों को तकसीम कर दिया और अपने घर में एक ज़र्रा भर भी सोना या चांदी नहीं छोड़ा,

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मर्ज़ में कमी बेशी होती रहती थी | खास वफ़ात के दिन यानि दो शम्बा के रोज़ तबियत अच्छी थी | हुजरा मस्जिद से करीब ही था | आप ने पर्दा उठा कर देखा तो लोग नमाज़े फजर पढ़ रहे थे | ये देख कर ख़ुशी से आप हंस पड़े | लोगों ने समझा की आप मस्जिद में आना चाहते हैं | मारे ख़ुशी के तमाम लोग बे काबू हो गए मगर आप ने इशारे से रोका और हुजरे में दाखिल हो कर पर्दा डाल दिया ये सब से आखरी मौका था की सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने जमाले नुबुव्वत की ज़ियारत की | हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का रूखे अनवर ऐसा मालूम होता था की गोया कुरआन का कोई वर्क है | यानि सफ़ेद हो गया था | 

इस के बाद बार बार गश्ती तारी होने लगी | हज़रते फातिमा ज़हरा रदियल्लाहु अन्हा की ज़बान से शिद्दते गम में ये लफ्ज़ निकल गया : हाए रे मेरे बाप की बेचैनी ! हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की बेटी ! तुम्हारा बाप आज के बाद कभी बेचैन न होगा | 

इस के बाद बार बार आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ये फरमाते रहे की उन लोगों के साथ जिन पर खुदा का इनआम है और कभी ये फरमाते की खुदा वनदा ! बड़े रफीक में और “लाइलाहा इलल्लाहु” भी पढ़ते थे और फरमाते थे की बेशक मोत के लिए सख्तियां हैं | हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा कहती हैं की तंदुरुस्ती की हालत में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अक्सर फ़रमाया करते थे की पैगम्बरों को इख़्तियार दिया जाता है की वो चाहें तो वफ़ात को कबूल करें या हयाते दुनिया को | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बान मुबारक पर ये कलिमात जारी हुए तो में ने समझ लिया की आप ने आख़िरत को कबूल फरमा लिया | 

वफ़ात से थोड़ी देर पहले हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा के भाई अब्दुर रहमान बिन अबू बक्र रदियल्लाहु अन्हु ताज़ा मिस्वाक हाथ में लिए हाज़िर हुए | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन की तरफ नज़र जमा कर देखा | हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा ने समझा की मिस्वाक की ख्वाइश है | उन्हों ने फ़ौरन ही मिस्वाक ले कर अपने दांतों से नर्म की और दस्ते अक़दस में दे दी |     

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मिस्वाक फ़रमाई | सेह पहर का वक़्त था की सीनए अक़दस में सांस की  घरघराहट महसूस होने लगी इतने में लब मुबारक हिले तो लोगों ने यह अल्फ़ाज़ सुने की नमाज़ और लोंडी गुलामो का ख़याल रखो | पास में पानी की एक लग्न थी उस में बार बार हाथ डालते और चेहरए अक़दस पर मलते और कालिमा पढ़ते | चादरे मुबारक को कभी मुँह पर डालते कभी हटाते देते | हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा सरे अक़दस को अपने सीने से लगाए बैठी हुई थीं | इतने में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ उठा कर ऊँगली से इशारा फ़रमाया और तीन मर्तबा ये फ़रमाया की अब कोई नहीं बल्कि वो बढ़ा रफीक चाहिए | ये अल्फ़ाज़ ज़बाने अक़दस पर थे की अचानक मुकद्द्स हाथ लटक गए और आँखें छत की तरफ देखते हुए खुली की खुली रहीं और आप की क़ुदसी रूह आलमे क़ुद्स में पहुंच गई |तारीखे वफ़ात में मुअर्रिख़ीन का बड़ा इख्तिलाफ है लेकिन इस पर तमाम उल्माए सीरत का इत्तिफाक है की दो शम्बे का दिन और रबीउल अव्वल का महीना था बहर हाल आम तौर पर यही मशहूर है की 12, रबीउल अव्वल सं. 11, हिजरी दो शम्बा के दिन तीसरे पहर आप ने विसाल फ़रमाया |

वफ़ात का असर

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात से हज़राते सहाबए किराम और अहले बैते इज़ाम रदियल्लाहु अन्हुम को कितना बड़ा सदमा पंहुचा? और अहले मदीना का क्या हाल हो गया? इस की तस्वीर कशी के लिए हज़ारों सफ़हात भी नुतहम्मिल नहीं हो सकते | वो शमए नुबुव्वत के परवाने जो चंद दिनों तक जमाले नुबुव्वत का दीदार न करते तो उन के दिल बे करार और उन की ऑंखें अश्कबार हो जाती थी | ज़ाहिर है की उन आशिकाने रसूल पर जाने आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दाइमी फ़िराक का कितना रूह फरसा और किस कदर जानकाह सदमए अज़ीम हुआ होगा? जलीलुल कद्र सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम  बिला मुबालगा होशो हवास खो बैठे, उन की अक्लें गुम हो गई, आवाज़ें बंद हो गई और वो इस कद्र मख़्बूतुल हवास हो गया की उन के लिए ये सोचना भी मुश्किल हो गया की क्या कहें? और क्या करें? हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु पर ऐसा सकता तारी हो गया की वो इधर उधर भागे भागे फिरते थे | मगर किसी से न कुछ कहते थे न किसी की कुछ सुनते थे | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु रंजो मलाल में निढाल हो कर इस तरह बैठे रहे की उन में उठने बैठने और चलने फिरने की सकत ही नहीं रही | हज़रते अब्दुल्लाह बिन अनीस रदियल्लाहु अन्हु के क्लब पर ऐसा धचका लगा वो इस सदमे को बर्दाश्त न कर सके और उन का हार्ट फेल हो गया |

हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु इस कदर होशो हवास खो बैठे की उन्हों ने तलवार खींच ली और नग्गी तलवार ले कर मदीने की गलियों में इधर उधर आते जाते थे और ये कहते फिरते थे की अगर किसी ने ये कहा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात हो गई तो में इस तलवार से उस की गरदन उड़ा दूंगा |    

तज्हीज़ो तकफीन

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वसिय्यत फरमा दी थी की मेरी तहज़ीज़ो तकफीन मेरे अहले बैत और अहले खानदान करें | इस लिए ये खिदमत आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खानदान ही के लोगों ने अंजाम दी | चुनांचे हज़रते फ़ज़्ल, बिन अब्बास, व हज़रते कुसुम, ज़ैद, रदियल्लाहु अन्हुम ने मिल जुल कर आप आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ग़ुस्ल दिया और नाफ मुबारक और पलकों पर जो पानी के क़तरात और तरी जमी थी हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने जोशे मुहब्बत और फरते अकीदत से उस को ज़बान से चाट कर पी लिया | ग़ुस्ल के बाद तीन सूती कपड़ों का जो “सुहूल” गाऊं के बने हुए थे कफ़न बनाया गया उन में कमीस व इमामा न था |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नमाज़े जनाज़ा

जनाज़ा तय्यार हुआ तो लोग नमाज़े जनाज़ा के लिए टूट पड़े | पहले मर्दो ने फिर औरतों ने फिर बच्चों ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ी | आप का जनाज़ा मुबारिका हुजरे के अंदर ही था बारी बारी से थोड़े थोड़े लोग अंदर जाते थे और नमाज़े जनाज़ा पढ़कर चले आते थे | लेकिन कोई इमाम न था आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह क़द्रे तफ्सील से नमाज़े जनाज़ा के सिलसिले में अपनी शोहरए आफ़ाक़ इंसाइ किलो पीडिया जो “फतावा रज़विया” के नाम से मशहूर है | इस की चौथी जिल्द में फरमाते हैं जनाज़ाए अक़दस पर नमाज़ के बाब में उलमा मुख्तलिफ हैं | एक के नज़दीक ये नमाज़ मारूफ न हुई बल्कि लोग गिरोह दर गिरोह हाज़िर होते और सलातो सलाम पेश करते | और बहुत उल्माए किराम ये नमाज़ मारूफ मानते हैं | 

हज़रत अल्लामा क़ाज़ी अयाज़ उन्द लूसी रहमतुल्लाह अलैह ने इस की तसही फ़रमाई हज़रत सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु तसकीने फितन व इन्तिज़ामे उम्मत में मशगूल थे जब तक उन के दस्ते हक परस्त पर बैअत न हुई थी लोग फौज दर फौज आते और जनाज़ा अनवर पर नमाज़ पढ़ते और चले जाते जब बैअत हुई, वली शरई सिद्दीक हुए उन्होंने जनाज़ा मुबारक पर नमाज़ पढ़ी, फिर किसी ने न पढ़ी |

बैह्की, बज़ाज़ व हाकिम, और तबरानी मोजम औसत : में हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु से रावि की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जब मेरे ग़ुस्ल कफ़न से फारिग हो मेरी “नअश” ताबूत पर रख कर बाहर चले जाओ सब से पहले हज़रत जिब्राइल मुझ पर सलात करेंगें फिर मिकाईल फिर इस्राफील फिर मलिकुल मोत अपने सारे लश्करों के साथ फिर गिरोह दर गिरोह मेरे पास हाज़िर हो कर मुझ पर दुरूदो सलाम अर्ज़ करते जाओ | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कब्र शरीफ

हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु ने कब्र शरीफ तय्यार की जो बागली थी | जिसमे पाक को हज़रते अली व हज़रते फ़ज़्ल बिन अब्बास व हज़रते अब्बास व हज़रते कुसुम बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हुम ने क़ब्रे अनवर में उतारा | लेकिन अबू दाऊद की रिवायतों से मालूम होता है की हज़रते उसामा और अब्दुर रहमान बिन ओफ भी कब्र में उतरे |

सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम में ये इख्तिलाफ रुनुमा हुआ की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कहाँ दफ़न किया जाए | कुछ लोगों ने कहा की मस्जिदे नबवी में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मद्फ़न होना चाहिए और कुछ ने ये राए दी की आप को सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के कब्रिस्तान में दफ़न करना चाहिए | इस मोके पर हज़रते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की में ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ये सुना है की हर नबी अपनी वफ़ात के बाद उसी जगह दफन किया जाता है जिस जगह उस की वफ़ात हुई हो | हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं की इसी हदीस को लोगों ने सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बिछोने को उठाया और उसी जगह (हुजराए आइशा रदियल्लाहु अन्हा) में आप की कब्र तय्यार की और आप उसी जगह में मदफ़ून हुए | हमारे प्यारे नबी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मज़ार शरीफ मुल्क सऊदी अरब के शहर मदीना शरीफ में है |

 “अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”  

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का तरका

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स ज़िन्दगी इस कदर सादगी ज़ाहिदाना परहेज़गार थी की कुछ अपने पास रखते ही नहीं थे | इस लिए ज़ाहिर है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वफ़ात के बाद क्या छोड़ा होगा? चुनांचे अम्र बिन अल हारिस रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी वफ़ात के वक़्त न दिरहम व दीनार, छोड़ा न लोंडी, व गुलाम, न और कुछ | सिर्फ अपना सफ़ेद खच्चर और हथियार और कुछ ज़मीन जो आम मुसलमानो पर सदका कर गए छोड़ा था | बहर हाल फिर भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मतरूकात में तीन चीज़ें थीं (1) बनू नज़ीर, फ़िदक, खैबर की ज़मीने,   (2) सवारी के जानवर  (3) हथियार| ये तीनो चीज़ें काबिले ज़िक्र हैं | 

ज़मीन

बनू नज़ीर, फ़िदक खैबर की ज़मीनो के बगात वगैरा की आमदनी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने और अपनी अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना के साल भर के इख़राजात और और फुकरा व मसाकीन और आम मुसलमानो की हाजात में सर्फ़ (खर्च करना) फरमाते थे |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद हज़रते अब्बास और हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अनहुमा और कुछ अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना चाहती थी की इन जायदादों को मीरास के तौर पर वारिसों के बीच बाट देना चाहिए | चुनांचे अमीरुल मोमिनीन हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के सामने इन लोगों ने इस की दरख्वास्त पेश की मगर आप और हज़रते उमर वगैरा अकाबिर बड़े बड़े सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने इन लोगों को ये हदीस सुनादि की हम (अम्बिया) का कोई वारिस नहीं होता हमने जो कुछ छोड़ा वो मुसलमानो पर सदका है |

और इस हदीस की रौशनी में साफ साफ कह दिया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम वसीयत के मुताबिक ये जायदादें वक़्फ़ हो चुकीं हैं | 

लिहाज़ा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी मुकद्द्स ज़िन्दगी में जिन मद्दात व मसारीफ में इन की अमदनियाँ खर्च फ़रमाया करते थे उस में कोई तबदीली नहीं की जा सकती | हज़रते  उमर रदियल्लाहु अन्हु ने अपने दौरे खिलाफत में हज़रते अब्बास व हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हुमा के ज़िद से बनू नज़ीर की जायदाद का इन दोनों को इस शर्त पर मुतवल्ली बना दिया था की इस जायदाद की अमदनियाँ उन्हीं मसारिफ में खर्च करते रहेंगें जिन में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खरच फ़रमाया करते थे | फिर इन दोनों में कुछ अनबन हो गई और इन दोनों हज़रात ने ये ख्वाइश ज़ाहिर की, के बनू नज़ीर की जायदाद तकसीम कर के आधी हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु की तौलियत में दे दी जाए और आधी को मुतवल्ली हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु रहें मगर हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने इस दरख्वास्त को न मंज़ूर फरमा दिया |

लेकिन खैबर और फ़िदक की ज़मीने हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रदियल्लाहु अन्हु के ज़माने तक खुलफ़ा ही के हाथों में रहीं | हाकिमे मदीना मरवान बिन हकम ने इस को अपनी जागीर बना ली थी मगर हज़रते उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ रदियल्लाहु अन्हु ने अपने ज़मानाए खिलाफत में फिर वो ही अमल दर आमद जारी कर दिया जो हज़रते अबू बकर व हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हुमा के दौरे खिलाफत में था |   

सवारी के जानवर

ज़ुर कानी अलल मवाहिब वगैरा में लिखा हुआ है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मिल्कियत में सात घोड़े, पांच खच्चर, तीन गधे, दो ऊँटनीयां थीं | लेकिन इस में तसरीह नहीं है की बा वक़्ते वफ़ात इन में से कितने जानवर मौजूद थे क्यूंकि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने जानवर दूसरों को अता फरमाते रहते थे | कुछ नए खरीदते कुछ हदाया और नज़राने में मिलते भी रहे | 

बहर हाल रिवायते सहीहा से मालूम होता है की वफ़ाते अक़दस के वक़्त जो सवारी के जानवर मौजूद थे उन में एक घोड़ा था जिस का नाम “लहीफ” था एक सफ़ेद खच्चर था जिस का नाम “दुलदुल” था ये बहुत ही उमर दराज़ हुआ | हज़रते अमीरे मुआविया रदियल्लाहु अन्हु के ज़माने तक ज़िंदा रहा इतना बूढ़ा हो गया था | की इस के तमाम दन्त गिर गए थे और आखिर में अँधा भी हो गया था | इब्ने असाकिर की तारिख में है की हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु भी जंगे ख़वारिज में इस पर सवार हुए थे |

एक अरबी गधा था जिस का नाम “अफीर”था एक ऊंटनी थी जिस का नाम “अज़बा व कस्वा” था | ये वो ही ऊंटनी थी जो हिजरत के वक़्त आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु से ख़रीदा था इस ऊंटनी पर आप ने हिजरत फ़रमाई और इस की पुश्त पर हिज्जतुल विदा में आप ने अरफ़ात व मिना का खुत्बा पढ़ा था |

हथियार

चूँकि जिहाद की ज़रूरत हर वक़्त दर पेश रहती थी इस लिए आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के असलिहा खाना में नो या दस तलवारें, सात लोहे की ज़िरहें, छेह कमाने, एक तीर दान, एक ढाल, पांच बरछियाँ, दो मिगफर, तीन जुब्बे, एक काले रंग का बड़ा झंडा बाकि सफ़ेद व पीला रंग के झंडे थे और एक खेमा भी था |

हथियारों में तलवारों के बारे में हज़रते शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने लिखा है की मुझे इस का इल्म नहीं है की ये सब तलवारें बयक वक़्त जमा थीं या मुख्तलिफ औकात में आप के पास रहीं |

ज़ुरूफ़ (बर्तन) मुख्तलिफ सामान

ज़ुरूफ़ और बर्तनो में कई प्याले थे एक शीशे का भी प्याला था | एक प्याला लकड़ी का था तो हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु ने उस के शिगाफ़ को बंद करने के लिए एक चांदी की ज़ंजीर से उस को जकड़ दिया था | चमड़े का एक डोल, एक पुरानी मश्क, एक पथ्थर का तगार, एक बड़ा सा प्याला जिस का नाम “अल सअ” था, एक चमड़े का थैला जिस में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आईना, कैचीं और मिस्वाक रखते थे, एक कंघी, एक सुरमा दानी, एक बहुत बड़ा प्याला जिस का नाम “अल गरा” था सआ और मुद दो नापने के पैमाने |

इन के अलावा एक चार पाई जिस के पाए सियाह लड़की के थे | ये चारपाई हज़रते साद बिन ज़ररा रदियल्लाहु अन्हु हदीयतन आप को पेश की थी | बिछोना और तकिया चमड़े का था जिस में खजूर की छाल भरी हुई थी, मुकद्द्स जूतियां ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के असबाब व सामान की एक फ़हरिस है जिन का ज़िक्र अहादीस में अलग अलग तरीकों से लिखा है | 

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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