हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part-29)

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तबर्रुकात

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इन मतरुकात सामानो के अलावा बाज़ यादगीर तबर्रुकात भी जिन को आशिकाने रसूल फरते अक़ीदत से अपने अपने घरों में महफूज़ किए हुए थे और इन को अपनी जानो से ज़ियादा अज़ीज़ रखते थे | चुनांचे मूए मुबारक, नालेंन शरीफ, और एक लकड़ी का प्याला जो चांदी के तारों से जुड़ा हुआ था हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु ने इन तीनो आसारे मुताबर्रीका को अपने घर में महफूज़ रखा था |

इसी तरह एक मोटा कंबल हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा के पास था जिन को वो बतौरे तबर्रुक अपने पास रखे हुए थीं और लोगों को उस की ज़ियारत कराती थीं | चुनांचे हज़रते अबू दरदा रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की हम लोगों को हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा की खदमते मुबारक में हाज़री का शरफ़ हासिल हुआ तो उन्होंने एक मोटा कंबल निकला और फ़रमाया की ये वो ही कंबल है जिस में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वफ़ात पाई |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक तलवार जिस का नाम “ज़ुल्फ़िकार” था | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के पास थी इन के बाद इन के खानदान में रही यहाँ तक की ये तलवार कर्बला में हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु के पास थी | इस के बाद इन के बेटे व जानशीन हज़रते इमाम ज़ैनुल अबिदीन रदियल्लाहु अन्हु के पास रही | चुनांचे हज़रते इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की शहादत के बाद जब हज़रते इमाम ज़ैनुल अबिदीन रदियल्लाहु अन्हु यज़ीद बिन मुआविया के पास से रुखसत हो कर मदीना तशरीफ़ लाए तो मशहूर सहाबी हज़रते मिस्वर बिन मख़रमा रदियल्लाहु अन्हु हाज़िरे खिदमत हुए और अर्ज़ किया की अगर आप को कोई हाजत हो या मेरे लाइक कोई खिदमत हो तो आप मुझे हुक्म दें में आप के हुक्म की तामील के लिए हाज़िर हूँ | आप ने फ़रमाया की मुझे कोई हाजत नहीं | फिर हज़रते मिस्वर बिन मख़रमा रदियल्लाहु अन्हु ने ये गुज़ारिश की आप के पास हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जो तलवार जुल्फकार है क्या आप मुझे वो दे सकते हैं? क्यूंकि मुझे खतरा है की कहीं यज़ीद की कौम आप पर ग़ालिब आ जाए और आप ने इस मुकद्द्स तलवार को मुझे अता फरमा दिया तो खुदा की कसम ! जब तक एक सांस बकी रहेगी उन लोगों की इस तलवार तक रसाई भी नहीं हो सकती मगर हज़रते इमाम ज़ैनुल अबिदीन रदियल्लाहु अन्हु ने उस मुकद्द्स तलवार को अपने से जुदा करना गवारा नहीं फ़रमाया |  

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अंगूठी और असाए मुबारक पर जा नशीन होने की बिना पर खुल्फ़ए किराम हज़रते अबू बक्र सिद्दीक व हज़रते उमर फरूके आज़म हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हुम अपने अपने दौरे खिलाफत में काबिज़ रहे मगर अंगूठी हज़रते उस्मान रदियल्लाहु अन्हु के हाथ से कुँए में गिर कर ज़ाए हो गई | उस कुँए का नाम “बीरे उरेस” है जिस को लोग “बीरे खातिम” भी कहते हैं |

इसी तरह के दुसरे और भी तबर्रुकात हैं जो मुख्तलिफ सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के पास मौजूद थे जिन का तज़किरा अहादीस और सीरत की किताबों में जगह जगह मौजूद है | और इन मुकद्द्स तबर्रुकात से सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम और ताबाईने इज़ाम को इस कदर वालिहाना मुहब्बत थी की वो इन को अपनी जान से भी ज़ियादा अज़ीज़ (प्यारा) समझते थे | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शमाईल (आदत) व ख़ुसु सियात

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्ल्सह पाक ने जिस तरह कमाले सीरत में तमाम अव्वालीनो आखिरीन से मुमताज़ और अफ्ज़लो आला बनाया इसी तरह आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जमाले सूरत में भी बे मिसलो बे मिसाल पैदा फ़रमाया | हम और आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शाने बे मिसाल को भला क्या समझ सकते हैं? हज़राते सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम जो दिन रात सफ़रो हज़र में जमाले नुबुव्वत की तजल्लियां देखते रहे उन्हों ने महबूबे खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जमाले बे मिसाल के फ़ज़्लो कमाल की जो मुसव्वरी की है उस को सुन कर यही इतना कहना पड़ता है जो किसी मद्दाहे रसूल ने क्या खूब कहा है |

अल्लाह पाक ने हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मिस्ल पैदा फ़रमाया ही नहीं और में यही जानता हूँ की वो कभी न पैदा करेगा | सहाबिए रसूल और ताजदारे दो आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरबारी शायर हज़रते हस्सान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु ने अपने क़सीदए हमज़िया में जमाले नुबुव्वत की शाने बेमिसाल को इस शान के साथ बयान फ़रमाया की |

या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप से ज़ियादा हुस्नो जमाल वाला मेरी आँखों ने कभी किसी को देखा ही नहीं और आप से ज़ियादा कलाम वाला किसी औरत ने जना ही नहीं |

या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप हर ऐब व नुक्स से पाक पैदा किए गए हैं गोया आप ऐसे ही पैदा किए गए जैसे हसीनो जमील पैदा होना चाहते थे |

हज़रते अल्लामा बूसीरी रहमतुल्लाह तआला अलैह ने अपने क़सीदए बुरदा शरीफ में फरमाते हैं की |

हज़रते महबूबे खुदा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी खूबियों में ऐसे यकता हैं की इस मुआमले में इन का कोई शरीक ही नहीं है | क्यूंकि इन में जो हुस्न का जोहर है वो काबिले तकसीम ही नहीं | 

मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं की 

 तेरे ख़ुल्क़  को  हक ने अज़ीम कहा 

तेरी ख़ल्क़ को हक ने जमील किया

कोई तुझ सा हुआ  है न  होगा शहा  

तेरे ख़ालिको हुस्नो अदा की कसम 

बहर हाल इस पर तमाम उम्मत का तनासूबे आज़ा और हुस्नो जमाल में हुज़ूर नबी आखरुज़्ज़मा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बे मिसलो बे मिसाल हैं| 

जिसमे अतहर (पाक जिस्म)

हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जिसमे मुबारक निहायत नरमो नाज़ुक था | में ने दीबा व हरीर यानि रेशमी कपड़ों को भी आप के बदन से ज़ियादा नरम व नाज़ुक नहीं देखा और आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिसमे मुबारक की खुशबू से ज़ियादा ज़ियादा अच्छी कभी कोई खुशबू नहीं सूंघी |

हज़रते काब बिन मालिकम रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खुश होते थे तो आप का चेहरए अनवर इस तरह चमक उठता था की गोया एक चाँद का टुकड़ा है और हम लोग इसी कैफियत से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शादमानी व मसर्रत को पहचान लेते थे | आप के रूखे अनवर पे पसीने के क़तरात मोतियों की तरह ढलकते रहते थे और उस में से मुश्को अम्बर से बढ़ कर खुशबू आती रहती थी | चुनांचे हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु की वालिदा हज़रते बीबी उम्मे सुलैम रदियल्लाहु अन्हा एक चमड़े का बिस्तर 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए बिछा देती थीं और आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस पर दो पहर को कैलूला (दो पहर के वक़्त कुछ देर सोना) फ़रमाया करते थे तो आप के जिसमें अतहर के पसीने को वो एक शीशी में जमा कर लेतीं थीं | फिर उस को अपनी खुशबू में मिला लिया करती थीं | चुनांचे हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु ने वसीयत की थी की मेरी वफ़ात के बाद मेरे बदन और कफ़न में वो ही खुशबू लगाई जाए जिस में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिस में अतहर का पसीना मिला हुआ है |

जिसमे अनवर का साया न था

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कदे मुबारक का साया न था | हकीम तिरमिज़ी (मुतवफ़्फ़ा सं. 255, हिजरी) ने अपनी  किताब “नवादिरूल उसूल” में हज़रते ज़कवान ताबई रहमतुल्लाह अलैह से ये हदीस नकल की है की सूरज की धूप और चाँद की चांदनी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साया नहीं पड़ता था | 

इमाम इब्ने सबा रहमतुल्लाह अलैह का कौल है की ये आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़साइस में से है की आप का साया ज़मीन पर नहीं पड़ता था और आप नूर थे इस लिए जब आप धूप या चांदनी में चलते तो आप का साया नज़र न आता था और बाज़ का कौल है की इस की इस की शाहिद वो हदीस है जिस में आप की इस दुआ का ज़िक्र है की आप ने ये दुआ मांगी की खुदा वंदा ! तू मेरे तमाम आज़ा को नूर बना दे और आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी इस दुआ को इस कौल पर खत्म फ़रमाया की या अल्लाह ! तू मुझ को सरापा नूर बना दे | ज़ाहिर है की जब आप सरापा नूर थे तो फिर आप का साया कहाँ से पड़ता? इसी तरह अब्दुल्लाह बिन मुबारक इब्ने जौज़ी रहमतुल्लाह अलैहिमा ने भी हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा से रिवायत है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का साया नहीं था |

मख्खी, मच्छर, जूँएं, से महफूज़

हज़रते इमाम फखरुद्दीन राज़ी रहमतुल्लाह अलैह ने इस रिवायत को नकल फ़रमाया है और अल्लामा हिजाज़ी रहमतुल्लाह अलैह वगैरा से भी यही मन्क़ूल है की बदन तो बदन आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कपड़ों पर भी कभी मख्खी नहीं बैठी, न कपड़ों में कभी जूंए पड़ीं, न कभी खटमल या मच्छर ने आप को काटा, इस मज़मून को अबुर रबी सबा रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब “शिफा उस्सुदूर फी आलामु नुबूव्वतुर रसूल” में बयान फरमाते हुए तहरीर फ़रमाया है की इस की एक वजह तो ये है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नूर थे | फिर मख्खियों की आमद, जूओं का पैदा होना चूँकि गन्दगी बदबू वगैरा की वजह से हुआ करता है और आप चूँकि हर किस्म की गंदगियों से पाक और आप का जिस में अतहर खुशबू दार था इस लिए आप इन चीज़ों से महफूज़ रहे | इमाम सबती रहमतुल्लाह अलैह ने भी इस मज़मून को “आज़मुल मवारिद” में मुफ़स्सल लिखा है |

मुहरे नुबुव्वत

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दोनों शानो के दरमियान कबूतर के अंडे के बराबर मुहरे नुबुव्वत थी | ये बज़ाहिर सुर्खी माइल उभरा हुआ गोश्त थ| चुनांचे हज़रते जाबिर बिन समुराह रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं की में ने 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दोनों शानो के बीच में मुहरे नुबुव्वत को देखा जो कबूतर के अंडे की मिक़्दार में सुर्ख उभरा हुआ एक गुदूद था |लेकिन एक रिवायत में ये भी है की मुहरे नुबुव्वा कबूतर के अंडे के बराबर थी और उस पर ये इबारत लिखी हुई थी की | एक अल्लाह है उस का कोई शरीक नहीं (ऐ रसूल) आप जहाँ भी रहेंगे आप की मदद की जाएगी | और एक रिवायत में ये भी है की  मुहरे नुबुव्वत एक चमकता हुआ नूर था | रावियों ने इस की ज़ाहिरी शक्लो सूरत और मिक़्दार को कबूतर के अंडे से तश्बीह दी है |

कद मुबारक

हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम न बहुत ज़ियादा लम्बे थे न पस्त क़द बल्कि आप दरमियानी क़द वाले थे और आप का मुकद्द्स बदन इंतिहाई खूबसूरत था जब चलते थे तो कुछ ख़मीदा हो कर चलते थे | 

इसी तरह हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम न तवीलुल कामत थे न पस्त क़द बल्कि आप मियाना क़द थे चलते वक़्त ऐसा मालूम होता था की गोया आप किसी बुलंदी से उतर रहे हैं | में ने आप का मिस्ल न आप से पहले देखा न आप के बाद |

इस पर सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम का इत्तिफाक है की आप मियाना कद थे लेकिन ये आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जो मोजिज़ाना शान है की मियाना कद होने के बाद अगर आप हज़ारों इंसानो के मजमे में खड़े होते थे तो आप का सरे मुबारक सब से ज़ियादा ऊंचा नज़र आता था | 

सरे मुबरक

हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुल्याए मुबारक बयान फरमाते हुए फ़रमाया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सरे मुबारक “बड़ा” था जो शानदार और वजीह होने का निशान है | 

मुकद्द्स बाल

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मूए मुबारक न घूंघर दार थे न बिलकुल सीधे बल्कि इन दोनों कैफिय्यतों के दरमियान थे | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुकद्द्स बाल पहले कानो की लो तक थे फिर शानो तक खूबसूरत गेसू लटकते रहते थे मगर हिज्जातुल वदा के मोके पर आप ने अपने बालों को उतरवा दिया सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह ने आप के मुकद्द्स बालों की इन तीनो सूरतों को अपने दो शेरों में बहुत ही नफीस लतीफ़ अंदाज़ में बयान फ़रमाया है की 

गोश तक सुनते थे फरयाद अब आए ता दोश

की   बने   खाना   बदोशों   को   सहारे  गेसू  

आख़िरे  हज गमे उम्मत में परेशां हो कर 

तीरह बख्तों की शफ़ाअत को सिधारे गेसू 

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अक्सर बालों में तेल भी डालते थे और कभी कभी कंघी भी करते थे और आखिर ज़माने में बीच सर में मांग भी निकलाते थे | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुकद्द्स बाल आखिर उम्र तक काले रहे, सर और धड़ी शरीफ में बीस बालों से ज़ियादा सफ़ेद नहीं हुए थे |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हिज्जातुल विदा में जब अपने मुकद्द्स बाल उतर वाए तो सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम में बतौरे तबर्रुक तकसीम हुए और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने निहायत ही अकीदत के साथ इस मूए मुबारक को अपने पास महफूज़ रखा और इस को अपनी जानो से ज़ियादा अज़ीज़ रखते थे | 

हज़रते बीबी उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन्हा ने इन मुकद्द्स बालों को एक शीशी में रख लिया था जब किसी इंसान को नज़र लग जाती या कोई मर्ज़ हो जाता तो आप तो आप उस शीशी को पानी में डुबो कर देती थीं और उस पानी से शिफा हासिल होती थी |

रूखे अनवर

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चेहरए मुनव्वर जमाले इलाही का आईना और अनवारे तजल्ली का मज़हर था | निहायत ही वजीह, पुर गोश और किस कदर गोलाई लिए हुए था | हज़रते जाबिर बिन समुराह रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की में ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को एक मर्तबा चांदनी रात में देखा | में एक बार चाँद की तरफ देखता और एक मर्तबा आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहराए अनवर को देखता तो मुझे आप का चेहरा चाँद से भी ज़ियादा खूब सूरत नज़र आता था |

हज़रते बरा बिन आज़िब रदियल्लाहु अन्हु से किसी ने पूछा की क्या हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चेहरा चमक दमक में तलवार की तरह था? तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की नहीं बल्कि आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का चेहरा चाँद के मिस्ल था | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु ने आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुल्यए मुबारक को बयान करते हुए ये कहा की: जो आप को अचानक देखता वो आप के रोब दाब से डर जाता और पहचानने के बाद आप से मिलता वो आप से मुहब्बत करने लगता था | 

हज़रते बरा बिन आज़िब रदियल्लाहु अन्हु का कौल है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तमाम इंसानो से बढ़ कर ख़ूबरू और सब से ज़ियादा अच्छे अख़लाक़ वाले थे |

हज़रते अब्दुल्लाह बिन सलाम रदियल्लाहु अन्हु ने आप के चेहराए अनवारे के बारे में ये कहा :में ने जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहराए अनवर को बागोर देखा तो में ने पहचान लिया की आप का चेहरा किसी झूठे आदमी का चेहरा नहीं है | सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह क्या खूब फरमाते हैं की |

चाँद  से  मुँह  पे  तांबा  दरख्शां  दुरूद 

नमक आगीं सबाहत पे लाखो सलाम  

जिस से  तरीक  दिल  जग मगाने लगे 

उस चमक वाली रंगत पे लाखों सलाम   

अरबी ज़बान में किसी मद्दाहे रसूल ने आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रूखे अनवर के हुस्ने जमाल का कितना हसीन मंज़र और कितनी बेहतीरिन पेश की है | यानि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हुस्नो जमाल के भी नबी हैं यूं तो इन की हर हर चीज़ हुस्न का मोजिज़ा है लेकिन खास  कर इन का चेहरा तो आयते कुबरा (बहुत ही बड़ा मोजिज़ा) है | 

मेहराबे अबरू

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की भवें दराज व बारीक और घने बाल वाली थीं और दोनों भवों इस कदर मुत्तसिल थीं की दूर से दोनों मिली हुई मालूम होती थीं और इन दोनों भवें के दरमियान एक रग थी जो गुस्से के वक़्त उभर जाती थी | सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह क्या खूब फरमाते हैं की |

जिन के सजदे को मेहराबे काबा झुकी 

उन भवों की लताफत पे लाखों सलाम 

नूरानी आँख

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की चश्मे मुबारक बड़ी बड़ी और कुदरती तौर पर सुरमगि थीं | पलके घनी और दराज थीं | पुतली की सियाही खूब सियाह और आँख की सफेदी खूब थी जिन में बारीक़ बारीक़ सुर्ख डोरे थे | 

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स आँखों का ये एजाज़ है की आप बयक वक़्त आगे पीछे, दाएं, बाएं, ऊपर नीचे दिन रात अँधेरे उजाले में यकसां देखा करते थे | चुनांचे बुखारी व मुस्लिम की रिवायत में आया है की यानि ऐ लोगों ! तुम रुकू व सुजूद को दुरुस्त तरीके से अदा करो क्यूंकि खुदा की कसम ! में तुम लोगों को अपने पीछे से भी देखता रहता हूँ | 

साहिबे मिरकात ने इस हदीस की शरह में फ़रमाया की | ये बाब आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के उन मोजिज़ात में से हैं जो आप को अता किए गए हैं | फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँखों का देखना मह्सूसात ही तक महदूद नहीं था बल्कि आप गैर मरई व गैर महसूस चीज़ों को भी जो आँखों से देखने के लाइक ही नहीं है देख लिया करते थे चुनांचे बुखारी शरीफ की एक रिवायत है की |

यानि खुदा की कसम ! तुम्हारा रुकू व खुशुओ मेरी निगाहों से पोशीदा नहीं रहता | सुब्हानल्लाह ! प्यारे मुस्तफा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नूरानी आँखों के एजाज़ का क्या कहना? की पीठ के पीछे से नमाज़ियों के रुकू बल्कि उन के ख़ुशू को भी देख रहे हैं |

“ख़ुशू” क्या चीज़ है ?

ख़ुशू दिल में खौफ और आजिज़ी की एक कैफियत का नाम है जो आँख से देख ने की चीज़ ही नहीं है मगर निगाहे नुबुव्वत का ये मोजिज़ा देखो की किसी चीज़ को भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम  ने अपनी आँखों से देख लिया की ऐसी चीज़ को भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी आँख से देख ,लिया जो आंख से देख ने के काबिल ही नहीं है | सुब्हानल्लाह ! चश्मे मुस्तफा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के एजाज़ की शान का क्या कोई बयान कर सकता है | 

बिनी मुबारक

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुबारक नाक खूबसूरत दराज़ और बुलंद थी जिस पर एक नूर चमकता था | जो शख्स बागोर नहीं देखता वो ये समझता था की आप की मुबारक नाक बहुत ऊंची है हालां की आप की नाक बहुत ज़ियादा ऊंची न थी बल्कि बुलंदी उस नूर की वजह से महसूस होती थी जो आप की मुकद्द्स नाक के ऊपर जलवा फ़िगन था | सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह क्या खूब फरमाते हैं की |       

नीची  आँखों  की  शर्मो  हया  पर  दुरूद 

ऊंची बिनी की रिफ़अत पे लाखों सलाम  

मुकद्द्स पेशानी

हज़रते हिन्द बिन अबी हाला रदियल्लाहु अन्हु आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चेहरए अनवर का हुलिया बयान करते हैं की आप की मुबारक पेशानी कुशादा और चौड़ी थी |

कुदरती तौर पर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पेशानी पर एक नूरानी चमक थी | चुनांचे देबारे रिसालत के शायर मद्दाहे रसूल हज़रते हस्सान बिन साबित रदियल्लाहु अन्हु ने इसी हसीनो जमील नूरानी मंज़र को देख कर ये कहा है की: जब अँधेरी रात में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स पेशानी ज़ाहिर होती हो तो इस तरह चमकती है जिस तरह रात की तारीकी में रोशन चराग चमकते हैं |

गोशे मुबारक

आप की आँखों की तरह आप के कान में भी मोजिज़ाना शान थी | चुनांचे आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खुद अपनी ज़बाने अक़दस से इरशाद फ़रमाया की यानि में उन चीज़ों को देखता हूँ जिन को तुम में से कोई नहीं देखता और में उन आवाज़ों को सुनता हूँ जिन को तुम में से कोई नहीं सुनता |

इस हदीस से साबित होता है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुनने व देखने की कुव्वत बे मिसाल मोजिज़ाना शान रखती थी | क्यूंकि आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम दूर नज़दीक की आवाज़ों को बराबर एक जैसा सुनते थे | चुनांचे आप के हलीफ़ बनी ख़ुज़ा ने, जैसा के फ़तेह मक्का के बयान में हमने बताया है | तीन दिन की मुसाफत से आप को अपनी इमदाद व मदद के लिए पुकारा तो आप ने उन की फर्याद सुनली | अल्लामा ज़ुर कानी ने इस हदीस की शराह में फ़रमाया की: अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तीन दिन की मुसाफत से एक फरयादी की फर्याद सुनली तो ये आप से कोई बईद नहीं है क्यूंकि आप तो ज़मीन पर बैठे हुए आसमानो की चरचराहट को सुनले थे बल्कि अर्श के नीचे चाँद के सजदे में गिरने की आवाज़ को सुनलिया करते थे | सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह क्या खूब फरमाते हैं की |       

दूर नज़दीक के सुनने वाले  वो कान 

काने लाले करामत पे लाखों  सलाम 

दहन शरीफ

हज़रते हिन्द बिन हाला रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रुखसार नर्म व नाज़ुक और हमवार थे और आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मुँह फराख, दन्त कुशादा और रोशन थे | जब आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम गुफ्तुगू फरमाते तो आप के दोनों अगले दांतों के दरमियान से एक नूर निकलता था और जब कभी अँधेरे में आप मुस्कुरा देते तो दांत मुबारक की चमक से रौशनी हो जाती थी |

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को कभी जमाई नहीं आई और ये तमाम सभी अम्बिया अलैहिमुस्सलाम का खास्सा है की इन इन को कभी जमाई नहीं आती क्यूंकि जमाई शैतान की तरफ से आती है और हज़राते अम्बिया अलैहिमुस्सलाम शैतान के तसल्लुत से महफूज़ व मासूम हैं | सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह क्या खूब फरमाते हैं की |       

वो दहन जिस की हर बात वाहिये खुदा 

चश्मए इल्मो हिकमत पे लाखों सलाम 

ज़बाने अक़दस

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बाने अक़दस वाहिये इलाही की तर्जुमान और सर चश्मए आयात व मख़्ज़ने मोजिज़ात है इसी की फ़साहतो बलाग़त इस कदर हद्दे ऐजाज़ को पहुंची हुई है की बड़े बड़े फुसहा व बलीग़ आप के कलाम को सुन कर दांग रह जाते थे | सरकार आला हज़रत मुजद्दिदे आज़म इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह क्या खूब फरमाते हैं की |       

तेरे   आगे   यूं   हैं  दबे   लचे  फुसहा   अरब   के  बड़े  बड़े 

कोई जाने मुँह में ज़बां नहीं, नहीं बल्कि जिस्म में जां नहीं   

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स ज़बान की हुक्मरानी और शान का ये ऐजाज़ था की ज़बान से जो फरमा दिया वो एक आन में मोजिज़ा बन कर आलमे वुजूद में आ गया |

वो  ज़बां  जिस को  सब  कुन की कुंजी कहें 

उस की नाफ़िज़ हुकूमत पाए लाखो सलाम

उस की प्यारी फसाहत पे बेहद दुरूद उस

की  दिलक्श  बलाग़त  पे  लाखों  सलाम 

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया, 

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