हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 30)

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का लुआबे दहन

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का लुआबे दहन (थूक) ज़ख्मियों और बिमारियों के लिए शिफा और ज़हरों के लिए तिरयाके आज़म था | चुनांचे आप मोजिज़ात के बयान में पढ़ेंगें की हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के पाऊं में गारे सौर के अंदर सांप ने काटा उस का ज़हर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लुआबे दहन से उतर गया और ज़ख्म अच्छा हो गया | 

हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु के आशेबे चश्म के लिए ये लुआबे दहन “शिफाउल ऐन) बन गया | 

हज़रते रिफ़ाअ बिन राफे रदियल्लाहु अन्हु की आँख में जंगे बद्र के दिन तीर लगा और फुट गई मगर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लुआबे दहन से ऐसी शिफा हासिल हुई की दर्द भी जाता रहा और आँख की रौशनी भी बर करार रही | 

हज़रते अबू क़तादा रदियल्लाहु अन्हु के चेहरे पर तीर लगा, आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस पर अपना लुआबे दहन लगा दिया फ़ौरन ही खून बंद हो गया और फिर ज़िन्दगी भर उन को कभी तीर व तलवार का ज़ख्म न लगा | 

शिफा के अलावा और भी लुआबे दहन से बड़ी बड़ी मोजिज़ाना बरताक का ज़हूर हुआ | 

चुनांचे हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु के घर में एक कुँआ था | आप ने उस में अपना लुआबे दहन डाल दिया तो उस का पानी इतना मीठा हो गया की मदीना शरीफ में इससे बढ़ कर कोई मीठा कुँआ न था | 

इमाम बहकी ने ये हदीस रिवायत की है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आशूर के दिन दूध पीते बच्चे को बुलाते थे और उन के मुँह में अपना लुआबे दहन डाल देते थे | और उन की माँओं को हुक्म देते थे की वो रात तक अपने बच्चों को दूध न पिलाएं | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये लुआबे दहन उन बच्चों को इस कदर शिकम सेर और सेराब कर देता था की उन बच्चों को दिन भर न भूक लगती थी न प्यास | 

मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं की:

जिस  से  खारी  कुएँ  शीरए  जां बने 

उस ज़ुलाले हलावत पे लाखों सलाम 

आवाज़ मुबारक

ये हज़राते अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलाम के ख़ासाइस में से है की वो खूबसूरत और खुश आवाज़ होते हैं लेकिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तमाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम से ज़ियादा ख़ूबरू और सब से बढ़ कर खुश ग्लू खुश आवाज़ और खुश कलाम थे खुश आवाज़ के साथ साथ आप इस कदर बुलंद आवाज़ भी थे की ख़ुत्बे में दूर और नज़दीक वाले सब बराबर अपनी अपनी जगह पर आप का मुकद्द्स कलाम सुन लिया करते थे |

पुरनूर गर्दन

हज़रते हिन्द बिन अबी हाला रदियल्लाहु अन्हु ने बयान फ़रमाया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की गर्दन मुबारक निहायत ही मोतदिल सुराही दार और सुडोल थी | खूबसूरती और सफाई में निहायत ही बे मिस्ल खूबसूरत और चांदी की तरह साफ व शफ़्फ़ाफ़ थी |

दस्ते मुबारक

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स हथेलियां चौड़ीं पुर गोश्त, कलाईयाँ लम्बी, बाज़ू दराज़ और गोश्त से भरे हुए थे |

हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की में ने किसी रेशम और दीबा को आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हथेलियों से ज़ियादा नर्म व नाज़ुक नहीं पाया और न किसी खुशबू को आप की खुशबू से बेहतर और बढ़ कर खुशबू दार पाया | 

जिस शख्स से आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मुसाफा फरमाते वो दिन भर अपने हाथों को खुशबू दार पाता जिस बच्चे के सर पर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपना दस्ते मुबारक फेर देते थे वो खुशबू में तमाम बच्चों से मुमताज़ होता था | हज़रते जाबिर बिन समुराह रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की में ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ नामज़े ज़ोहर अदा की फिर आप अपने घर की तरफ रवाना हुए और में भी आप के साथ ही निकला | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को देख के छोटे छोटे बच्चे आप की तरफ दौड़ पड़े तो आप उन में से हर एक के रुखसार पर अपना दस्ते रहमत फेरने लगे | में सामने आया तो मेरे रुखसार पर भी आप ने अपना दस्ते मुबारक लगा दिया तो मेने अपने गालों पर आप के दस्ते मुबारक की ठंडक महसूस की और ऐसी खुसबू आई की गोया आप ने अपना हाथ किसी इत्र फरोश की संदूकची में से निकाला है | 

मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं की :

हाथ जिस सम्त उठ्ठा गनी कर दिया 

मोजे बेहरे समाहत पे लाखों सलाम 

जिस को बारे दो आलम की परवा नहीं 

ऐसे  बाज़ू  की कुव्वत पे लाखों सलाम 

नूर  के   चश्मे   लहरएँ   दरिया    बहें  

उँगलियों की करामात पे लाखों सलाम    

शिकम (पेट) व सीना

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का शिकम (पेट) व सीना दोनों हमवार और बराबर थे | न सीना शिकम से ऊंचा था न शिकम सीने से | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का सीना चौड़ा था और सीने के ऊपर के हिस्से से नाफ तक मुकद्द्स बालों की एक पतली सी लकीर चली गई थी मुकद्द्स छातियां और पूरा शिक़म बालों से खली था | हाँ शानो और कलाईयों पर क़द्रे बाल थे, आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का शिक़म सब्रो कनाअत की एक दुनिया और आप का सीना मारफअत इलाही के अनवार का सफीना और वहीए इलाही का गन्जीना था | 

मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं की : 

कुल जहाँ मिल्क और जों की रोटी ग़िज़ा 

उस शिक़म की कनाअत पे लाखों सलाम 

पाए अक़दस

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुकद्द्स पाऊं चौड़े पुर गोश्त, एड़ियां कम गोश्त वाली, तलवा ऊंचा जो ज़मीन में न लगता था | दोनों पिंडलियाँ क़द्रे पतली और साफ़ व शफ़्फ़ाफ़, पाऊं की नरमी और नज़ाकत का ये आलम था की उन पर पानी ज़रा भी नहीं ठहरता था |

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चलने में बहुत ही वकार व तवाज़ो के साथ क़दम शरीफ को ज़मीन पर रखते थे | हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की चलने में, में ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से बढ़ कर तेज़ रफ़्तार किसी को नहीं देखा गोया ज़मीन आप के लिए ज़मीन लपेटी जाती थी हम लोग आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ दौड़ा करते थे मगर आप निहायत ही वकार व सुकून के साथ चलते रहते थे मगर फिर भी हम सब लोगों से आप आगे ही रहते थे |

लिबास

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ज़ियादा तर सूती लिबास पहनते थे | ऊँन और कतान का लिबास भी कभी कभी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस्तिमाल फ़रमाया है | लिबास के बारे में किसी खास पोशाक या इम्तियाज़ी लिबास की पाबंदी नहीं फरमाते थे | जुब्बा, कुबा, पैरहन, चादर, इमाम, टोपी, मोज़ा, इन सब को आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़ेबे तन फ़रमाया है | पैजामा को आप ने पसंद फ़रमाया और मिना के बाजार में एक पैजामा ख़रीदा भी था लेकिन ये साबित नहीं की कभी आप ने पैजामा पहना हो | 

इमाम

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इमामे में शिमला छोड़ते थे जो कभी एक शाने पर और कभी दोनों शानो के बीच पड़ा रहता था | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इमाम सफ़ेद, सब्ज़, ज़ाफ़रानी, काले रंग का था | फ़तेह मक्का के दिन आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम काले रंग का इमामा बांधे हुए थे | 

इमामे के नीचे टोपी ज़रूर होती थी फ़रमाया करते थे की हमारे और मुश्रिकीन के इमामो में यही फर्क व इम्तियाज़ है की हम टोपियों पर इमामा बांधते हैं | 

चादर

यमन की तय्यार की हुई सूती धारी दार चादरें जो अरब में “हिबरा या बुरदे यमनी” कहलाती थीं | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत ज़ियादा पसंद थी और आप इन चादरों को बा कसरत इस्तिमाल फरमाते थे | कभी कभी सब्ज़ रंग की चादर भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस्तिमाल फ़रमाई है | 

कमली

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कलमी भी बा कसरत इस्तिलाम फरमाते थे | यहाँ तक की विसाल के वक़्त भी एक कमली ओढ़े हुए थे | हज़रते अबू बरदह रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की हज़रते आईशा रदियल्लाहु अन्हा ने एक मोटा कंबल और एक मोठे कपड़े का तहबन्द निकाला और फ़रमाया की इन्हीं दोनों कपड़ों में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने वफ़ात पाई | 

नालैंन अक़दस

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नालेंन अक़दस की शक्लो सूरत और नक्शा बिलकुल ऐसा ही था जैसे हिंदुस्तान में चप्पल होते हैं | चमड़े का एक तला होता था जिस में तस्मे लगे होते थे आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुक़द्दस जूतियों में दो तस्मे आम तौर पर लगे होते थे जो कुरूम चमड़े के हुआ करते थे | 

पसंदीदा रंग

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सफ़ेद, काला, सब्ज़, ज़ाफ़रानी रंगों के कपड़े इस्तिमाल फरमाए हैं | मगर सफ़ेद कपड़ा आप को बहुत पसंद था, सुर्ख रंग के कपड़ों को आप ज़ियादा पसंद नहीं करते थे | 

एक बार हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हुमा सुर्ख रंग के कपड़े पहने हुए बारगाहे रिसालत में हाज़िर हुए तो आप  हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने न पसंदी का इज़हार करते हुए फ़रमाया की ये कपड़ा कैसा है? उन्हों ने उन कपड़ों को जला दिया | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सुना तो फ़रमाया की उस को जलाने की ज़रूरत नहीं थी किसी औरत को दे देना चाहिए था क्यूंकि औरतों के लिए सुर्ख लिबास पहिनने में कोई हर्ज नहीं है | इसी तरह हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक मर्तबा एक ऐसे शख्स के पास से गुज़रे जो दो सुर्ख रंग के कपडे पहने हुए था उस ने आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सलाम किया तो आप ने उस के सलाम का जवाब नहीं दिया |

खुशबू

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को खुशबू बहुत ज़ियादा पसंद थी आप हमेशा इत्र का इस्तिमाल फ़रमाया करते थे हालां की खुद आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिसमे पाक से ऐसी खुशबू निकलती थी की जिस गली में से आप गुज़र जाते थे वो गली खुशबू से महकने लगती थी | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फ़रमाया करते थे | की मर्दों की खुशबू ऐसी होनी चाहिए की खुशबू फैले और रंग नज़र न आए और औरतों के लिए वो खुशबू बेहतर है की वो खुशबू न फैले और रंग नज़र आए | कोई आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास खुशबू भेजता तो आप कभी रद्द न फरमाते और इरशाद फरमाते की खुशबू के तोहफे को रद्द मत करो क्यूंकि ये जन्नत से निकली हुई है | 

सुरमा

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रोज़ाना रात को “इसमिद” का सुरमा लगाते थे | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास एक सुरमे दानी थी उस में से तीन तीन सलाई दोनों आँखों में लगाया करते थे और फ़रमाया करते थे की इसमिद का सुरमा लगया करो की ये निगाह को रोशन और तेज़ करता है और पलक के बाल उगाता है | 

सवारी

घोड़े की सवारी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत पंसद थी | घोड़े के अलावा ऊँट, खच्चर, हिमार यानि अरबी गधा जो घोड़े से बहुत खूबसूरत होता है इन सभि की सवारी फ़रमाई है |

नफासत पसंदी :- हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मिजाज़ निहायत ही लतीफ़ और नफासत पंसद था एक आदमी को आप  हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेले कपड़े पहने हुए देखा तो न गवरी के साथ इरशाद फ़रमाया इससे इतना भी नहीं होता की ये अपने कपड़ों को धो लिया करे? इसी तरह एक शख्स को देखा की उस के बाल उलझे हुए हैं तो फ़रमाया की क्या इस को कोई ऐसी चीज़ तेल कंगी नहीं मिलती की ये अपने बालों को सवांर ले|

इसी तरह एक आदमी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास बहुत ही खराब किस्म के कपड़े पहने हुए आ गया तो आप ने उस से पूछा की तुम्हारे पास क्या कुछ माल भी है? उस ने अर्ज़ किया की जी हाँ मेरे पास ऊँट, बकरियां, घोड़े, गुलाम सभी किस्म के माल हैं | तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की जब अल्लाह पाक ने तुम को माल दिया है तो चाहिए की तुम्हारे ऊपर उसकी नेमतों का कुछ निशान भी नज़र आए | (यानि अच्छे और साफ सुथरे कपड़े पहनो) 

पसंदीदा ग़िज़ाएं

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स ज़िन्दगी चूँकि बिलकुल ही ज़ाहिदाना और सब्रो कनाअत का मुकम्मल नमूना थी इस लिए आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कभी लज़ीज़ और पुर तकल्लुफ खानो की ख्वाइश ही नहीं फरमाते थे यंहा तक की कभी आप ने चपाती नहीं खाई फिर बाज़ खाने आप को बहुत पसंद थे जिन को काफी पसंद फरमाते थे | मसलन अरब में एक खाना होता है जो “हैस” कहलाता है ये घी और पनीर और खजूर मिला कर पकाया जाता है इस को आप बड़ी रगबत से खाते थे |

जों की मोटी मोटी रोटियां अक्सर ग़िज़ा में इस्तिलाम फरमाते, सालन में गोश्त, कद्दू पड़ा होता तो प्याले में से कद्दू के टुकड़े तलाश कर के खाते थे |

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बकरी, भेड़, दुम्बा, ऊँट, गोरखर, खरगोश, मुर्गा, बटेर, मछली का गोश्त खाया है | इसी तरह खजूर और सत्तू भी कसरत से तनावुल फरमाते थे | तरबूज़ को खजूर के साथ मिला कर, खजूर के साथ ककड़ी मिला कर, रोटी के साथ खजूर भी कभी कभी खाते थे | अंगूर अनार वगैरा फल फुरूट भी खाया करते थे | 

ठंडा पानी बहुत पसंद था | दूध में कभी पानी मिलाकर और कभी खालिस दूध नोश फरमाते | कभी किशमिश और खजूर पानी में मिलाकर उस का रास पीते थे जो कुछ पीते तीन साँसों में पीते थे | टेबल मेज़ पर कभी खाना नहीं खाते थे | हमेशा कपड़े या चमड़े के दस्तरख्वान पर खाना खाते मसनद या तकिये पर टेक लगा कर या लेट कर कभी कुछ न खाते न इस को पसंद फरमाते | खाना सिर्फ उँगलियों से तनावुल फरमाते चमचा कांटा वगैरा से खाना पसंद नहीं फरमाते हाँ उबले हुए गोश्त को कभी कभी छोरी से काट काट कर भी खाते थे |

नमाज़

ऐलाने नुबुव्वत से पहले भी आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम गारे हीरा में क़ियाम व मुराकिबा और ज़िक्रो फ़िक्र के तौर पर अल्लाह पाक की इबादत में मसरूफ रहते थे, नुज़ूले वही के बाद ही आप को नमाज़ का तरीका भी बता दिया गया | फिर शबे मेराज में नामज़े पंजगाना फ़र्ज़ हुई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़े पाजंगाना के अलावा नामज़े इशराक, नामज़े चाशत, तहिय्यतुल वुज़ू, तहिय्यतुल मस्जिद, सलातुल अव्वाबीन, वगैरा सुनन व नवाफिल भी अदा फरमाते थे | रातों को उठ उठ कर नमाज़ें पढ़ा करते थे | तमाम उम्र नमाज़े तहज्जुद के पाबंद रहे, रातें के नवाफिल के बारे में मुख्तलिफ रिवायात हैं कुछ रिवायतों में ये आया है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़े ईशा के बाद कुछ देर सोते फिर कुछ देर तक उठ कर नमाज़ पढ़ते फिर सो जाते फिर उठ कर नमाज़ पढ़ते | गरज़ सुबह तक यही हालत काइम रहती | कभी दो तिहाई रात गुज़र जाने के बाद बेदार होते और सुबह सादिक तक नमाज़ों में मशगूल रहते | कभी आधी रात गुज़र जाने के बाद बिस्तर से उठ जाते और फिर सारी रात बिस्तर पर पीठ नहीं लगाते थे और लम्बी लम्बी सूरतें नमाज़ों में पढ़ा करते थे कभी रुकू सजदे लम्बे करते थे कभी क़याम लम्बा होता | कभी छे रकत, कभी आठ रकत, कभी इससे कम कभी इससे ज़ियादा | 

आखरी उम्र शरीफ में कुछ रकअते खड़े हो कर कुछ बैठ कर अदा फरमाते, नमाज़े वित्र नमाज़े तहज्जुद के साथ अदा फरमाते रमज़ान शरीफ ख़ुसूसन आखरी अशरे में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इबादत बहुत ज़ियादा बढ़ जाती थी | आप पूरी रात बेदार रहते और अपनी अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना से बे तकल्लुफ हो जाते थे और घर वालों को नमाज़ों के लिए जगाया करते थे और ऐतिकाफ फ़रमाया करते थे | नमाज़ों के साथ साथ कभी खड़े हो कर कभी बैठ कर कभी सर बा सुजूद हो कर निहायत आहो ज़ारी और गिरया व बुका के साथ गिड़गिड़ा गिड़गिड़ा कर रातों में दुआएं भी माँगा करते थे, रमज़ान शरीफ में हज़रते जिब्राइल अलैहिस्सलाम के साथ कुरआन शरीफ की दौर भी फरमाते थे और तिलावते कुरआन शरीफ के साथ साथ तरह तरह की मुख्तलिफ दुआओं का विर्द भी फरमाते थे और कभी कभी पूरी रात नमाज़ों और  दुआओं में खड़े रहते यहाँ तक की पैर मुबारक में वरम आ जाता था | 

रोज़ा

रमज़ान शरीफ के रोज़ों के अलावा शाबान में भी करीब करीब महीना भर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रोज़दार ही रहते थे | साल के बाकि महीनो में भी ये कैफियत रहती थी की अगर रोज़ा रखना शुरू फरमा देते तो मालूम होता था की अब कभी रोज़ा न छोड़ेंगें फिर छोड़ देते तो मालूम होता था की अब कभी रोज़ा नहीं रखेंगें | ख़ास कर हर महीने में तीन दिन अय्यामे बैज़ के रोज़े पीर व जुमेरात के रोज़े आशूरा के रोज़े अशरए ज़ुल हिज्जा के रोज़े, शव्वाल के छे रोज़े रखा करते थे | यानि कई कई दिन रात का एक रोज़ा मगर अपनी उम्मत को ऐसा रोज़ा रखने से मना फरमाते थे, कुछ सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने अर्ज़ की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम आप तो सौमे विसाल रखते हैं | इरशाद फ़रमाया की तुम में मुझ जैसा कौन है? में अपने रब के दरबार में रात बसर करता हूँ और वो मुझ को रूहानी ग़िज़ा खिलता और पिलाता है |

ज़कात

चूँकि हज़राते अम्बिया अलैहिमुस्सलाम पर अल्लाह पाक ने ज़कात फ़र्ज़ नहीं फ़रमाई है इस लिए आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर ज़कात फ़र्ज़ ही नहीं थी | लेकिन आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सद्कातो खैरात का ये आलम था की आप अपने पास सोना चांदी या तिजारत का कोई सामान या मवेशियों का कोई रेवड़ रखते ही नहीं थे बल्कि जो कुछ भी आप के पास आता सब अल्लाह पाक की राह में मुस्तहक़ीन पर तकसीम फरमा दिया करते थे | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को ये गवारा ही नहीं था की रात भर कोई मालो दौलत काशानए नुबूव्वत में रह जाए | एक बार ऐसा इत्तिफ़ाक़ पड़ा की खिराज की रकम इस कदर ज़ियादा आ गई की वो शाम तक तकसीम करने के बावजूद खत्म न हो सकी तो आप रात भर मस्जिद ही में रह गए जब | हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु ने आ कर ये खबर दी की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! सारी रकम तकसीम हो चुकी तो आप ने अपने मकान में क़दम रखा | 

हज

ऐलाने नुबूवत के बाद मक्का शरीफ में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दो या तीन हज किए |

लेकिन हिजरत के बाद मदीना शरीफ से सं. 10, हिजरी में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक हज फ़रमाया जो हिज्जातुल विदा के नाम से मशहूर है जिस का मुफ़स्सल बयान गुज़र चुका | हज के अलावा हिजरत के बाद आप ने चार उमरे भी अदा फरमाए |  

मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं की :

उनके  मौला  के  उन  पर  करोड़ों  दुरूद

उन के असहाबो इतरत पे लाखों सलाम      

पारहाए      सुहुफ़      गुंचाए       क़ुद्स 

अहले   बैते  नुबुव्वत   पे  लाखों सलाम 

अहले    इस्लाम    की    मादरे   शफ़ीक़ 

बानु  वाने   तहारत   पे   लाखों   सलाम 

अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निस्बते मुबारक की वजह से अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना का भी बहुत ही बुलंद मर्तबा है इन की शान में कुरआन शरीफ की बहुत सी आयात नाज़िल हुई हैं जिन में इन की अज़मतो का तज़किरा और उन की रिफ़अतों शान का बयान है | चुनांचे अल्लाह पाक ने कुरआन शरीफ पारा 22, सूरह अहज़ाब आयात 32, में इरशाद फ़रमाया की :

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- ऐ नबी की बीवियों ! तुम और औरतों की तरह नहीं हो अगर अल्लाह से डरो | कुरआन शरीफ पारा 21, सूरह अहज़ाब आयात 6, में इरशाद फ़रमाया की :

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- और इस (नबी) की बीवियां उन (मोमिनीन) की माएं हैं | 

ये पूरी उम्मत का मुत्तफिक अलैह मसअला है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स बीवियां दो बातों में हकीकी माँ के मिस्ल हैं | एक ये की उन के साथ हमेशा हमेशा के लिए किसी का निकाह जाइज़ नहीं | दूसरी ये की उन की ताज़ीम व तकरीम हर उम्मती पर लाज़िम है जिस तरह हकीकी माँ की बल्कि इसे भी बहुत ज़ियादा लेकिन नज़र और ख़लवत के मुआमले में अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना का हुक्म हकीकी माँ की तरह नहीं है | क्यूंकि कुरआन शरीफ पारा 22, सूरह अहज़ाब आयत 53, में अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है की :

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- जब नबी की बीवियों से तुम लोग कोई चीज़ मांगो तो परदे के पीछे से मांगों |

मुस्लमान अपनी हकीकी माँ यानि अपनी सगी माँ को देख भी सकता है | और तन्हाई में बैठ कर उससे बात चीत भी कर सकता है मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बीवियों से हर मुस्लमान के लिए पर्दा फ़र्ज़ है और तन्हाई में इन के पास उठना बैठना हराम है |

इसी तरह हकीकी माँ के माँ बाप, लड़कों के नानी नाना और हकीकी माँ के भाई बहन, लड़कों के मामू और खला हुआ करते हैं मगर           

अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना के माँ बाप उम्मत के नानी नाना और अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना के भाई बहन उम्मत के मामू खाला नहीं हुआ करते | 

ये हुक्म हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उन तमाम अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना के लिए है जिन से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने निकाह फ़रमाया, चाहे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से पहले उन का इन्तिकाल हुआ हो या हुज़ूर अलैहिस्सलाम के बाद उन का विसाल हुआ हो | ये सब की सब उम्मत की माएं हैं और हर उम्मती के लिए उस की हकीकी माँ से बढ़ कर लाइके ताज़ीम और वाजिबुल एहतिराम हैं | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कितने निकाह फरमाए?

अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना की तादाद और उन के निक़ाहों की तरतीब के बारे में मुअर्रिख़ीन का कद्रे इख्तिलाफ है मगर 11, ग्यारा उम्महातुल मोमिनीन रदियल्लाहु अन हुन्ना के बारे में किसी का भी इख्तिलाफ नहीं है इन में से हज़रते खदीजा और हज़रते ज़ैनब बिन्ते खुज़ैमा रदियल्लाहु अनहुमा का तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने ही इन्तिकाल हो गया था मगर नो 9, बीवियां हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात के वक़्त मौजूद थीं |

इन ग्यारा उम्मत की माओ में से छे खानदाने कुरेश के ऊंचे घराने की चश्मों चिराग थीं जिन के मुबारक नाम ये हैं :

  1. हज़रते खदीजा बिन्ते ख़ुवैलद        
  2. हज़रते आइशा बिन्ते अबू बक्र सिद्दीक 
  3. हज़रते हफ्सा बिन्ते उमर फारूक 
  4. हज़रते उम्मे हबीबा बिन्ते अबू सुफियान 
  5. हज़रते उम्मे सलमाह बिन्ते अबू उमय्या 
  6. हज़रते सौदाह बिन्ते ज़मआ रदियल्लाहु अन हुन्ना |

और चार अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना खानदाने कुरेश से नहीं थीं बल्कि अरब के दूसरे कबाइल से तअल्लुक़ रखती थीं वो ये हैं :

  1. हज़रते ज़ैनब बिन्ते जहश  
  2. हज़रते मैमूना बिन्ते हारिस 
  3. हज़रते ज़ैनब बिन्ते खुज़ैमा “उम्मुल मसाकीन”
  4. हज़रते जुवैरिया बिन्ते हरिस और एक बीवी यानि सफिय्या बिन्ते हुई ये अरबियुन नस्ल नहीं थीं बल्कि खानदाने बनी इसराइल की एक शरीफुन्न नसब रईस ज़ादी थीं रदियल्लाहु अन हुन्ना थीं |

इस बात में भी किसी मुअर्रिख़ का इख्तिलाफ नहीं है की सब से पहले हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा से निकाह फ़रमाया और जब तक वो ज़िंदा रहीं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने किसी दूसरी औरत से निकाह नहीं फ़रमाया |  

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया, 

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