हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 31)

हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा   

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सब से पहली रफ़ीके हयात हैं | इन के वालिद का नाम ख़ुवैलद बिन असद है और इन की वालिदा का नाम फातिमा बिन्ते ज़ाइदा है | ये खादाने कुरेश की बहुत ही मुअज़्ज़ और निहायत दौलत मंद खातून थीं | अहले मक्का इन की पारसाई की बिना पर इन को “ताहिरा” के नाम से याद करते थे | इन्हों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अख़लाक़ो आदात और जमाले सूरत व कमाले सीरत को देख कर खुद ही हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से निकाह की रगबत ज़ाहिर की और फिर बा कायदा निकाह हो गया |    

अल्लामा इब्ने असीर और इमाम ज़हबी का बयान है की इस बात पर तमाम उम्मत का इज्मा है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर सब से पहले यही ईमान लाईं और शुरू इस्लाम में जब की हर तरफ से आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की 

मुखालफत का तूफ़ान उठ रहा था ऐसे कठिन वक़्त में सिर्फ इन्ही की ज़ात थी जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मूनिसे हयात बन कर तसकीने खातिर का बाइस थीं | इन्हों ने इतने खौफनाक और खतरनाक औकात में जिस इस्तक़लाल और इस्तिकामत के साथ ख़तरात व मसाइब का मुकाबला किया और जिस तरह तन मन धन से बारगाहे नुबुव्वत में अपनी कुर्बानी पेश की इस खुसूसियत में तमाम अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना पर इन को एक खुसूसी फ़ज़ीलत हासिल है चुनांचे वलीयुद्दीन इराकी का बयान है की कौले सहीहा और मज़हबे मुख़्तार ये है की उम्महातुल मोमिनीन में हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा सब से ज़ियादा अफ़ज़ल हैं |

इन के फ़ज़ाइल में चंद हदीसें वारिद भि हुई हैं | चुनांचे हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु रावी हैं की हज़रते जिब्राइल अलैहिस्सलाम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास तशरीफ़ लाए और अर्ज़ किया की ऐ मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि  वसल्लम ये खदीजा हैं जो आप के पास एक बर्तन ले कर आ रही हैं जिस में खाना है | जब ये आप के पास आ जाएं तो आप इन से इन के रब का और मेरा सलाम कह दें और इन को ये खुश ख़बरी सुना दें की जन्नत में इन के लिए मोती का एक घर बना है जिस में न कोई शोर होगा न कोई तकलीफ होगी | 

इमाम अहमद व अबू दाऊद व नसाई, हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा से रावी हैं की अहले जन्नत की औरतों में “सब से अफ़ज़ल हज़रते खदीजा, हज़रते फातिमा, हज़रते मरयम व हज़रते आसिया हैं” |

इसी तरह रिवायत है की एक बार जब हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़बाने मुबारक से हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा की बहुत ही ज़ियादा तारीफ सुनी तो गैरत आ गई और उन्हों ने ये कह दिया की अब तो अल्लाह पाक ने आप को उन से बेहतर बीवी आता फरमा दी है | ये सुनकर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की नहीं खुदा की कसम ! खदीजा से बेहतर मुझे कोई बीवी नहीं मिली जब सब लोगों ने मेरे साथ कुफ्र किया उस वक़्त वो मुझ पर ईमान लाईं और जब सब लोग मुझे झुटला रहे थे उस वक़्त उन्हों ने मेरी तस्दीक की और जिस वक़्त कोई शख्स मुझे कोई चीज़ देने के लिए तय्यार न था उस वक़्त खदीजा ने मुझे अपना सारा माल दे दिया और उन्हीं के शिकम से अल्लाह पाक ने मुझे औलादें अता फ़रमाई |

हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा का बयान है की अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना में सब से ज़ियादा मुझे हज़रते खदीजा के बारे में गैरत आया करती थी की हालां की में ने उन को देखा भि नहीं था गैरत की वजह ये थी की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बहुत ज़ियादा उनका ज़िक्रे खेर फरमाते रहते थे और अक्सर ऐसा हुआ करता था की आप जब कोई बकरी ज़िबह फरमाते थे तो कुछ गोश्त हज़रते खदीजा की सेहलियों के घरों में ज़रूर भेज दिया करते थे इसे से में चिढ़ जाया करती थीं और कभी कभी ये कह दिया करती थीं की “दुनिया” में बस एक खदीजा ही तो आप की बीवी थीं | मेरा ये जुमला सुन कर आप फ़रमाया करते थे की हाँ हाँ बेशक वो थीं उन्ही के शिकम से तो अल्लाह पाक ने मुझे औलाद अता फ़रमाई |

इमाम तबरानी ने हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा से एक हदीस नकल की है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा को दुनिया में जन्नत का अंगूर खिलाया | इस हदीस को इमाम सुहिली ने भी नकल फ़रमाया है | 

हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा पचीस साल तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत गुजारी से सरफ़राज़ रहीं | हिजरत से तीन साल पहले पैसठ साल की उम्र पा कर माहे रमज़ान में मक्का शरीफ के अंदर इन्हों ने वफ़ात पाई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मक्का शरीफ के मशहूर कब्रिस्तान हजून जन्नतुल माला में खुद बा नफ़्से नफीस इन की कब्र में उतर कर अपने मुकद्द्स हाथों से इन को सुपुर्दे ख़ाक फ़रमाया चूँकि उस वक़्त तक नमाज़े जनाज़ा का हुक्म नाज़िल नहीं हुआ था इस लिए आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन की नमाज़े जनाज़ा नहीं पढ़ाई | 

हज़रते सौदाह रदियल्लाहु अन्हा

इन के वालिद का नाम “ज़मआ” और इन की वालिदा का नाम “शामूस बिन्ते केस बिन अम्र” है | ये पहले अपने चचा ज़ाद भाई सकरान बिन अम्र से बिहाई गई थीं | ये मियां बीवी दोनों शुरू इस्लाम में ही मुस्लमान हो गए थे और इन दोनों ने हब्शा की हिजरते सानिया में हब्शा की तरफ हिजरत भी की थी, लेकिन जब हब्शा से वापस आ कर ये दोनों मियां बीवी मक्का शरीफ आए तो इन के शोहर सकरान बिन अम्र रदियल्लाहु अन्हु वफ़ात पा गए और ये बेवा हो गईं इन के एक लड़का भी था जिस का नाम “अब्दुर रहमान” था |

हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की हज़रते सौदाह रदियल्लाहु अन्हा ने एक ख्वाब देखा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पैदल चलते हुए इन की तरफ तशरीफ़ लाएं और इन की गर्दन पर अपना मुकद्द्स पाऊं रख दिया | जब हज़रते सौदाह रदियल्लाहु अन्हा ने इस ख्वाब को अपने शोहर से बयान किया तो उन्हों ने कहा की अगर तेरा ख्वाब सच्चा है तो में यक़ीनन अन करीब ही मर जाऊँगा और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुझ से निकाह फ़रमाएंगें | इस के बाद दूसरी रात में हज़रते सौदाह रदियल्लाहु अन्हा ने ये ख्वाब देखा की एक चाँद टूट कर इन के सीने पर गिरा है सुबह को इन्हों ने इस ख्वाब का भी अपने शोहर से ज़िक्र किया तो इन के शोहर हज़रते सकरान रदियल्लाहु अन्हु ने चौंक कर कहा की अगर तेरा ये ख्वाब सच्चा है तो में अब बहुत जल्द इन्तिकाल कर जाऊँगा और तुम मेरे बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से निकाह करोगी | चुनांचे ऐसा ही हुआ की उसी दिन हज़रते सकरान रदियल्लाहु अन्हु बीमार हुए और चंद दिनों के बाद वफ़ात पा गए |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा की वफ़ात से हर वक़्त बहुत ज़ियादा मगमूम और उदास रहा करते थे | ये देख कर हज़रते खौला बिन्ते हकीम रदियल्लाहु अन्हा ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में ये दरख्वास्त पेश की, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप हज़रते सौदाह रदियल्लाहु अन्हा से निकाह फरमा लें ताकि आप का खानए मईशत आबाद हो जाए और एक वफादार और खिदमत गुज़ार बिवि की सुहबत व रिफाकत से आप का गम मिट जाएगा | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के इस मुख़ लिसाना मश्वरे को कबूल फरमा लिया | चुनांचे हज़रते खौला बिन्ते हकीम रदियल्लाहु अन्हा ने हज़रते सौदाह रदियल्लाहु अन्हा के बाप से बात चीत कर के निस्बत तै करा दी और निकाह हो गया और ये उम्महातुल मोमिनीन के ज़ुमरे में दाखिल हो गईं और अपनी ज़िन्दगी भर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ौजियत के शरफ़ से सरफ़राज़ रहीं इंतिहाई वालिहाना अक़ीदत व मुहब्बत के साथ आप की वफादार और खिदमत गुज़ार रहीं | ये बहुत ही फ़य्याज़ और सखी थीं एक बार हज़रते अमीरुल मोमिनीन उमर रदियल्लाहु अन्हु ने दिरहमों से भरा हुआ एक थैला इन की खिदमत में भेजा आप ने पूछा ये क्या है? लाने वाले ने बताया की दिरहम हैं | आप ने फ़रमाया की भला दिरहम खजूरों के थैले में भेजे जाते हैं? ये कहा और उठ कर उसी वक़्त उन तमाम दिरहमों को मदीने के फ़क़ीरों मसाकीन को बाँट दिए |

इन की वफ़ात के साल में मुख्तलिफ और मुतज़ाद अक़वाल हैं, 

इमाम ज़हबी और इमाम बुखारी ने इस रिवायत को सही बताया है की हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु के आखरी दौरे खिलाफत सं. 23, हिजरी में मदीना शरीफ के अंदर इन की वफ़ात हुई, लेकिन वाकदी ने इस कौल को तरजीह दी है की इन की वफ़ात का साल स. 54, हिजरी है और साहिबे अकमाल ने भी इन का सने वफ़ात शव्वाल स. 54, हिजरी ही तहरीर किया है, मगर हज़रते अल्लामा इब्ने हजर अस्क़लानी ने अपनी किताब तक़रीबुत्तहज़ीब में ये लिखा है की इन की वफ़ात शव्वाल स. 55, हिजरी में ही हुई |

हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा

ये अमीरुल मोमिनीन हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की नूरे नज़र और दुख्तरे नेक अख्तर हैं | इन की वालिदा माजिदा का नाम “उम्मे रूमान” है | ये छे साल की थीं जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐलाने नुबूवत के दसवें साल माहे शव्वाल में हिजरत से तीन साल पहले निकाह फ़रमाया और शव्वाल स. 2, हिजरी में मदीना शरीफ के अंदर ये काशानए नुबुव्वत में दाखिल हुईं और नो 9, साल तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुहबत से सरफ़राज़ रहीं | अज़्वाजे मुतह्हिरात में ये ही कुँअरि थीं और सब से ज़ियादा बारगाहे रिसालत में महबूब तरीन बीवी थीं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इन के बारे में इरशाद है की किसी बीवी के लिहाफ में मेरे ऊपर वही नाज़िल नहीं हुई मगर हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा जब मेरे साथ बिस्तरे नुबुव्वत पर सोती रहती हैं उस इस हालत में भी मुझ पर वहिए इलाही उतरती रहती है | बुखारी व मुस्लिम की रिवायत है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा से फ़रमाया की तीन रातों में ख्वाब में यह देखता रहा की एक फरिश्ता तुम को एक रेशमी कपड़े में लपेट कर मेरे पास लाता रहा और मुझ से ये कहता रहा की ये आप की बीवी है | जब में ने तुम्हारे चेहरे से कपड़ा हटा कर देखा तो अचानक वो तुम ही थीं | इस के बाद में ने अपने दिल में कहा की अगर ये ख्वाब अल्लाह पाक की तरफ से है तो वो इस ख्वाब को पूरा कर दिखाए |

इल्मे फ़िक़्ह, व इल्मे हदीस, में अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना के अंदर इन का दर्जा बहुत ही बुलंद है | दो हज़ार दो सो दस हदीसें, इन्हों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत की हैं | इन की रिवायत की हुई हदीसों में से एक सौ सत्तरह, हदीसें ऐसी हैं जो बुखारी व मुस्लिम दोनों किताबों में हैं और चौव्वन 54, हदीसें ऐसी हैं जो सिर्फ जो बुखारी शरीफ में हैं, और अड़सठ हदीस, वो हैं जिन को सिर्फ इमाम मुस्लिम ने अपनी किताब सही मुस्लिम में लिखा है इन के अलावा बाकि हदीसें अहादीस की दूसरी किताबों में नज़कूर हैं |   

इब्ने साद ने हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा से नकल किया है की खुद हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा फ़रमाया करती थीं की मुझे तमाम अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना पर ऐसी दस फ़ज़ीलतें हासिल हैं जो दूसरी अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना को हासिल नहीं हुई | 

  1. हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरे सिवा किसी दूसरी कुँअरि औरत से निकाह नहीं फ़रमाया | 
  2. मेरे सिवा अज़्वाजे मुतह्हिरात में से कोई भी ऐसी नहीं जिस के माँ बाप दोनों मुहाजिर हों |     
  3. अल्लाह पाक ने मेरी बराअत और पाक दामनी का बयान आसमान से कुरआन शरीफ में नाज़िल फ़रमाया | 
  4. निकाह से पहले हज़रते जिब्राइल अलैहिस्सलाम ने एक रेशमी कपड़े में मेरी सूरत ला कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को दिखा दी थी और आप तीन रातों ख्वाब में मुझे देखते रहे | 
  5. में और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम एक ही बर्तन में से ले ले कर ग़ुस्ल किया करते थे ये शरफ़ मेरे सिवा अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना में से किसी को भी नसीब नहीं हुआ | 
  6. हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़े तहज्जुद पढ़ते थे और में आप के आगे सोइ रहती थीं उम्महातुल मोमिनीन में से कोई भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इस तरह करीमाना मुहब्बत से सरफ़राज़ नहीं हुई | 
  7. में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ एक लिहाफ में सोती रहती थी और आप पर खुदा की वही नाज़िल हुआ करती थी ये वो ऐजाज़े खुदा बंदी है जो मेरे सिवा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की किसी ज़ौजए मुतह्हरा को हासिल नहीं हुआ | 
  8. वफ़ात के वक़्त में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपनी गोद में लिए हुए बैठी थी और आप का सरे अनवर मेरे सीने और हलक के दरमियान था और इसी हालत में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का विसाल हुआ |  
  9. हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरी बारी के दिन वफ़ात पाई |
  10. हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कब्रे अनवर खास मेरे घर में बनी | 

इबादत में भी आप रदियल्लाहु अन्हा का मर्तबा बहुत ही बुलंद है आप के भतीजे हज़रते इमाम कासिम बिन मुहम्मद बिन अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हुम का बयान है की हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा रोज़ाना बिला नागा नमाज़े तहज्जुद पढ़ने की पाबंद थीं और अक्सर रोज़े से रहा करती थीं | 

सखावत और सदकातो खैरात के मुआमले में भी तमाम उम्महातुल मोमिनीन रदियल्लाहु अन हुन्ना में खास तौर पर बहुत मुमताज़ थीं | उम्मे दुर्रह रदियल्लाहु अन्हा कहती हैं की में हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा के पास थीं उस वक़्त एक लाख दिरहम कहीं से आप के पास आए आप ने उसी वक़्त उन सब दिरहमों को लोगों में बाँट दिए और एक दिरहम भी घर में बाकी नहीं छोड़ा | उस दिन में वो रोज़दार थीं में ने अर्ज़ किया की आप ने सब दिरहमों को बाँट दिया और एक दिरहम भी बाकि नहीं रखा ताकि आप गोश्त खरीद कर रोज़ा इफ्तार करती तो आप रदियल्लाहु अन्हा ने फ़रमाया की तुम ने अगर मुझ से पहले कहा होता में एक दिरहम का गोश्त मांगा लेती |

हज़रते उरवा बिन ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हुमा जो आप रदियल्लाहु अन्हा के भांजे थे इन का बयान है की फ़िक़्ह, व हदीस, के अलावा में ने हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा से बढ़ कर किसी को अशआरे अरब का जानने वाला नहीं पाया वो दौराने गुफ्तुगू में हर मोके पर कोई न कोई शेर पढ़ दिया करती थी जो बहुत ही बर महल हुआ करता था |

इल्मे तिब और मरीज़ों के इलाज मुआलिजे में भी इन्हें काफी बहुत महारत थी | हज़रते उरवा बिन ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हुमा कहते हैं की में ने एक दिन हैरान हो कर हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा से अर्ज़ किया की ऐ अम्मा जान ! मुझे आप के इल्मे हदीस व फ़िक़्ह पर कोई तअज्जुब नहीं क्यूंकि आप ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ौजियत और सुहबत का शरफ़ पाया है और आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सब से ज़ियादा महबूब तरीन ज़ौजए मुक़द्दसा हैं इसी तरह मुझे इस पर भी कोई तअज्जुब और हैरानी नहीं है की आप को इस कदर ज़ियादा अरब के अशआर क्यूँ और किस तरह याद हो गए? इस लिए की में जानता हूँ की आप हज़रते अबू बकर सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की नूरे नज़र हैं और वो अशआरे अरब के बहुत बड़े हाफ़िज़ व माहिर थे मगर में इस बात पर बहुत ही हैरान हूँ की आखिर ये तिब्बी मालूमात और इलाजो मुआलजा की महारत आप को कहाँ से और कैसे हासिल हो गई? ये सुनकर हज़रते आइशा रदियल्लाहु अन्हा ने फ़रमाया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी आखरी उम्र शरीफ में अक्सर अलील हो जाया करते थे और अरबो अजम के अतिब्बा आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए दवाएं तजवीज़ करते थे और में उन दवाओं से आप का इलाज किया करती थी इस लिए मुझे तिब्बी मालूमात भी हासिल हो गई | 

आप रदियल्लाहु अन्हा के शागिर्दो में सहाबा और ताबेईन की एक बहुत बड़ी जमाअत है और आप के फ़ज़ाईलों मनाक़िब में बहुत सी हदीसे भी वारिद हुई हैं |

17, रमज़ान सेह शम्बा सं. 57, हिजरी या सं. 58, हिजरी में मदीना शरीफ के अंदर आप रदियल्लाहु अन्हा का विसाल हुआ | हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु ने आप की नमाज़ें जनाज़ा पढ़ाई और आप की वसीयत के मुताबिक रात में लोगों ने आप को जन्नतुल बाकी के कब्रिस्तान में दूसरी अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना की कब्रों के पहलू में दफन किया | 

हज़रते हफ्सा रदियल्लाहु अन्हा

उम्मुल मोमिनीन हज़रते हफ्सा रदियल्लाहु अन्हा के वालिद माजिद अमीरुल मोमिनीन हज़रते उमर इब्नुल खत्ताब रदियल्लाहु अन्हु हैं और इन की वालिदा माजिदा हज़रते ज़ैनब बिन्ते मज़उन रदियल्लाहु अन्हुमा हैं जो एक मशहूर सहाबिया हैं | हज़रते हफ्सा रदियल्लाहु अन्हा की पहली शादी हज़रते खुनैस बिन हुज़ैफ़ा सहमी रदियल्लाहु अन्हु से हुई और उन्हों ने अपने शोहर के साथ मदीना शरीफ को हिजरत भी की थी लेकिन इन के शोहर जंगे बद्र या जंगे उहद में ज़ख़्मी हो कर वफ़ात पा गए और ये बेवा हो गईं फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सं. 3, हिजरी में इन से निकाह फ़रमाया और ये उम्मुल मोमिनीन की हैसियत से काशानए नबी की सुकूनत से मुशर्रफ हो गई |  

यह बहुत ही शानदार, बुलंद हिम्मत और सखावत शीआर खातून हैं | हक गोई हाज़िर जवाबी और फ़ह्मो फिरासत में अपने बुज़र्गवार का मिजाज़ पाया था | अक्सर रोज़दार रहा करती थीं और तिलावते क़ुरआम शरीफ और दूसरी किस्म किस्म की इबादतों में मसरूफ रह करती थीं | इन के मिजाज़ में कुछ सख्ती थी इसी लिए हज़रते अमीरुल मोमिनीन उमर बिन अल खत्ताब रदियल्लाहु अन्हु हर वक़्त इस फ़िक्र में रहते थे की कहीं इन की किसी सख्त कलामी से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दिल आज़ारी न हो जाए | चुनांचे आप रदियल्लाहु अन्हु बार बार इन से फ़रमाया करते की ऐ हफ्सा ! तुम को जिस चीज़ की ज़रूरत हो मुझ से मांग लिया करो, खबरदार कभी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से किसी चीज़ का तकाज़ा न करना न हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कभी भी हरगिज़ हरगिज़ दिल आज़ारी करना वरना याद रखो की अगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तुम से आज़ारी नाराज़ हो गए तो तुम खुदा के गज़ब में गिरफ्तार हो जाओगी | 

ये बहुत बड़ी इबादत गुज़ार होने के साथ साथ फ़िक़्ह व हदीस में भी एक मुमताज़ दर्जा रखती थीं इन्हों ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से साठ हदीसें रिवायत की हैं जिन में से पांच हदीसें बुखारी शरीफ में मज़कूर हैं बाकी अहादीस दूसरी क़ुत्बे हदीस में मौजूद हैं | इल्मे हदीस में बहुत से सहाबा और ताबईन इन के शागिर्दों की फहरिस्त में नज़र आते हैं जिन में खुद इन के भाई अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हु बहुत मशहूर हैं | माहे शाबान सं. 45, हिजरी में मदीना शरीफ के अंदर इन की वफ़ात हुई उस वक़्त हज़रते अमीरे मुआविया रदियल्लाहु अन्हु की हुकूमत का ज़माना था और मरवान बिन हकम मदीने का हाकिम था | इसी ने इन की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और कुछ दूर तक इन के जनाज़े को भी उठाया फिर हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु कब्र तक जनाज़े को कांधा दिए चलते रहे | इन के दो भाई हज़रते अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु अन्हु और हज़रते आसिम बिन उमर रदियल्लाहु अन्हु और इन के तीन भतीजे हज़रते सालिम बिन अब्दुल्लाह व हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्दुल्लाह व हज़रते हम्ज़ा बिन अब्दुल्लाह बिन अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हुम ने इन को कबर में उतारा और ये जन्नतुल बाकि में दूसरी अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना के पहलू में मद्फूं हुईं थीं | 

हज़रते उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन्हा

इन का नाम हिन्द है कुन्नियत “उम्मे सलमा” है मगर ये अपनी कुन्नियत के साथ ही ज़ियादा मशहूर हैं | इन के बाप का नाम “हुज़ैफ़ा” और बाज़ मुअर्रिख़ीन के नज़दीक “सहल” है मगर इस पर तमाम मुअर्रिख़ीन का इत्तिफाक है की इन की वालिदा “आतिका बिन्ते आमिर” हैं इन का निकाह पहले हज़रते अबू सलमा अब्दुल्लाह बिन अब्दुल असद रदियल्लाहु अन्हु से हुआ था जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के रज़ाई भाई थे | ये दोनों  मियां  बीवी  ऐलाने नुबुव्वत के बाद जल्द ही इस्लाम में दाखिल हो गए | और सब से पहले इन दोनों ने हब्शा की तरफ हिजरत की फिर ये दोनों हब्शा से मक्का शरीफ आ गए और मदीना शरीफ की तरफ  हिजरत का इरादा किया | चुनांचे हज़रते अबू सलमा अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु ने ऊँट पर कजावा बांधा और हज़रते उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन्हा और अपने बेटे सलमाह को कजावे में सवार कर दिया मगर जब ऊँट की नकेल पकड़ कर हज़रते अबू सलमा रवाना हुए तो हज़रते उम्मे सलमा के मेके वाले दोनों मुगीरा दौड़ पड़े और उन दोनों ने ये कहा की हम अपने खानदान की इस लड़की को हरगिज़ हरगिज़ मदीने नहीं जाने देंगें और ज़बर दस्ती उन को ऊँट से उतार लिया | ये देख कर हज़रते अबू सलमा रदियल्लाहु अन्हु के खानदानी लोगों को भी तैश आ गया और उन लोगों ने गज़ब नाक हो कर कहा की तुम लोग उम्मेह सलमाह को सिर्फ इस बिना पर रोकते हो की ये तुम्हारे ख़ानदान की लड़की है तो हम इस के बच्चे “सलमाह” को हरगिज़ हरगिज़ तुम्हारे पास नहीं रहने देंगें इस लिए की ये बच्चा हमारे ख़ानदान का एक फर्द है |         

ये कह कर उन लोगों ने बच्चे को उस की माँ की गोद से छीन लिया मगर हज़रते अबू सलमाह रदियल्लाहु अन्हु ने हिजरत का इरादा तर्क नहीं किया बल्कि बीवी और बच्चे दोनों को छोड़ कर तन्हा मदीना शरीफ चले गए | हज़रते बीबी उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा अपने शौहर और बच्चों की जुदाई पर सुबह से शाम तक मक्के की पथरीली ज़मीन में किसी चट्टान पर बैठी हुई तक़रीबन सात दिनों तक ज़ारों कतार रोती रहीं इन का ये हाल देख कर इन के एक चचा ज़ाद भाई को इन पर रहम आ गया और उस ने बनू मुगीरा को समझा बुझा कर ये कहा की आखिर उस मिस्कीना को तुम लोगों ने उस के शोहर और बच्चों से क्यों जुदा कर रखा है? तुम लोग क्यों नहीं उस को इजाज़त देते की वो अपने बच्चों को साथ ले कर अपने शोहर के पास चली जाए | बिल आखिर बनू मुगीरा इस पर रज़ा मंद हो गए की ये मदीने चली जाए | फिर हज़रते अबू सलमाह रदियल्लाहु अन्हु के खानदान वाले बनू अब्दुल असद ने भी बच्चों को हज़रते उम्मे सलमाह के सुपुर्द कर दिया और हज़रते बीबी उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा बच्चे को गोद में ले कर ऊँट पर सवार हो गईं और अकेली मदीना को चल पड़ी मगर जब मक़ामे “तनईम” में पहुंचीं तो उस्मान बिन तल्हा से मुलाकात हो गई जो मक्के का माना हुआ एक निहायत ही शरीफ इंसान था | उस ने पूछा की ऐ उम्मेह सलमाह ! कहाँ? का इरादा है? उन्हों ने कहा की में अपने शोहर के पास मदीने जा रही हूँ उस ने कहा की क्या तुम्हारे साथ कोई दूसरा नहीं है? हज़रते बीबी उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा ने दर्द भरी आवाज़ में जवाब दिया की नहीं मेरे साथ अल्लाह और मेरे इस बच्चे के सिवा कोई नहीं है | ये सुनकर उस्मान बिन तल्हा की रागे शराफत भड़क उठी और उस ने कहा की खुदा की कसम ! मेरे लिए ये ज़ेब नहीं देता की तुम्हारी जैसी एक शरीफ ज़ादी और एक शरीफ इंसान की बीवी को तनहा छोड़ दूँ | ये कह कर उस ने ऊँट की महार अपने हाथ में ले ली और पैदल चलने लगा हज़रते बीबी उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा का बयान है की खुदा की कसम ! में ने उस्मान बिन तल्हा से ज़ियादा शरीफ किसी अरब को नहीं देखा | जब हम किसी मंज़िल पर उतरते तो वो अलग किसी पेड़ के नीचे लेट जाता और में अपने ऊँट के पास सो जाती | फिर रवानगी के वक़्त जब में अपने बच्चे को गोद में ले कर ऊँट पर सवार हो जाती तो वो ऊँट की महार पकड़ कर चलने लगता | इसी तरह मुझे उस ने कुबा तक पंहुचा दिया और वहां से वो ये कह कर मक्के चला गया अब तुम चली जाओ तुम्हारा शोहर इसी गाऊं में है | चुनांचे हज़रते बीबी उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा इस तरह बा खैरियत मदीना शरीफ पहुंच गईं |     

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,  

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