हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 34)

 “हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स बांदियां”

मज़कूरा बाला अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना के अलावा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की चार बांदियां भी थीं जो आप के ज़ेरे तसर्रुफ़ थीं जिन के नाम हस्बे ज़ेल हैं :

हज़रते मारिया क़िब्तिया रदियल्लाहु अन्हा

इन को मिस्र व इस्कंदरिया के बादशाह मक़ूक़स क़िब्ती ने बारगाहे अक़दस मे चंद हदाया और तहाइफ़ के साथ बतौर हिबा के नज़्र किया था | इन की माँ रूमी थीं, और बाप मिसरी इस लिए ये बहुत ही हसींन व खूबसूरत थीं | ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मे वलद हैं क्यूंकि आप के फ़रज़न्द हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु इन के शिकमे मुबारक से पैदा हुए थे | 

कनीज़ होने के बावजूद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन को परदे मे रखते थे और इन के लिए मदीना शरीफ के करीब मक़ामे आलिया मे आप ने एक अलग घर बनवा दिया था जिस मे ये रहा करती थीं और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन के पास तशरीफ़ ले जाया करते थे | वाक्दी का बयान है :

की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद हज़रते अमीरुल मोमिनीन अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु अपनी ज़िन्दगी भर इन के नान व नफके (खाना रोटी कपड़ा वगैरा) का इंतिज़ाम करते रहे और इन के बाद हज़रते अमीरुल मोमिनीन उमर फारूक रदियल्लाहु अन्हु ये खिदमत अंजाम देते रहे यहाँ तक की सं. 15, हिजरी या सं. या 16, हिजरी मे इन की वफ़ात हो गई और अमीरुल मोमिनीन उमर फारूक रदियल्लाहु अन्हु ने इन की नमाज़े जनाज़ा मे शिरकत के लिए खास तौर पर लोगों को जमा फ़रमाया और खुद ही इन की नमाज़े जनाज़ा पढ़ा कर जन्नतुल बकी मे मदफ़ून किया |

हज़रते रिहाना रदियल्लाहु अन्हा

ये यहूद के खानदान बनू क़ुरैज़ा से थीं, गिरफ्तार हो कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आईं मगर इन्हों ने कुछ दिनों तक इस्लाम कबूल नहीं किया जिससे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन से नाराज़ रहा करते थे मगर अचानक एक दिन एक सहाबी ने आ कर ये खुश खबरि सुनाई की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! रिहाना, ने इस्लाम कबूल कर लिया है इस खबर से आप बहुत खुश हुए और आप ने उन से फ़रमाया की ऐ रिहाना ! अगर तुम चाहो तो मे तुम को आज़ाद कर के तुम से निकाह कर लूँ | मगर इन्हों ने ये गुज़ारिश की, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप मुझे अपनी लोंडी ही बना कर रखें | ये मेरे और आप दोनों के हक मे अच्छा है और आसान रहेगा |

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने ही जब आप हिज्जातुल वदा से वापस तशरीफ़ लाए सं. 10, हिजरी मे वफ़ात पा कर जन्नतुल बाकी मे दफन हुईं | 

हज़रते नफीसा रदियल्लाहु अन्हा

ये पहले हज़रते ज़ैनब बिन्ते जहश रदियल्लाहु अन्हु की मम्लूका लोंडी थीं | उन्हों ने इन को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में बतौरे हिबा के नज़्र कर दिया और ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के काशानए नुबुव्वत मे बांदी की हैसियत से रहने लगीं | 

चौथी बांदी साहिबा

मज़कूरा बाला बांदियों के अलावा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक चौथी बांदी साहिबा भी थीं जिन के बारे मे आम तौर पर मुअर्रिख़ीन ने लिखा है की इन का नाम मालूम नहीं | ये भी किसी जिहाद मे गिरफ्तार हो कर बारगाहे रिसालत मे आई थीं और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बांदी बन कर आप की सोहबत से सरफ़राज़ होती रहीं | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादे किराम” 

औलादे किराम

इस बात पर तमाम मुअर्रिख़ीन का इत्तिफ़ाक़ है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादे किराम की तादाद छेः 6, हैं | दो साहब ज़ादे (बेटा) हज़रते कासिम व हज़रते इब्राहिम और चार साहब ज़ादियाँ (बेटियां) हज़रते ज़ैनब व हज़रते रुकय्या व हज़रते उम्मे कुलसूम व हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हुम लेकिन बाज़ मुअर्रिख़ीन ने ये बयान फ़रमाया है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के एक साहब ज़ादे अब्दुल्लाह भी हैं जिन का लक़ब तय्यबो ताहिर है | इस क़ौल की बिना पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुक़द्दस औलाद की तादाद सात हैं | तीन साहब ज़ाद गान और चार साहिब ज़ादियाँ, हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने इसी कौल को ज़ियादा सही बताया है | इस के अलावा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुकद्द्स औलाद के बारे मे दूसरे अक़वाल भी हैं जिनका तज़किरा तवालत से खाली नहीं | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इन सातों मुकद्द्स औलाद मे से हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु हज़रते मारिया क़िब्तिया रदियल्लाहु अन्हा के शिकम से तव्वलुद यानि पैदा हुए थे बाकी तमाम औलादें किराम हज़रते ख़दीजातुल कुबरा रदियल्लाहु अन्हा के शिकम मुबारक से पैदा हुए | 

अब हम इन औलादे किराम के ज़िक्रे जमील पर कद्रे तफ्सील के साथ रौशनी डालते हैं | 

हज़रते कासिम रदियल्लाहु अन्हु

ये सब से पहले फ़रज़न्द हैं जो हज़रते बीबी खदीजा रदियल्लाहु अन्हा की आग़ोशे मुबारक मे नुबुव्वत से पहले पैदा हुए | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की कुन्नियत अबुल कासिम इन्ही के नाम पर है | जमहूर उलमा का यही कौल है की ये पाऊं पर चलना सीख गए थे की इन की वफ़ात हो गई और इब्ने साद का बयान है की इन की उमर शरीफ दो साल की हुई मगर अल्लामा गलाबी कहते हैं की ये फ़क्त सत्तरह 17, माह ज़िंदा रहे | 

हज़रते अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु

इन ही का लक़ब तय्यबो ताहिर है | ऐलाने नुबुव्वत से पहले मक्का शरीफ मे पैदा हुए और बचपन ही मे इन्तिकाल हो गया | 

हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की औलादे मुबारक मे सब से आखरी फ़रज़न्द हैं | ये ज़ुल हिज्जा सं. 8, हिजरी मे मदीना शरीफ के करीब मक़ामे “आलिया” के अंदर हज़रते मारिया क़िब्तिया रदियल्लाहु अन्हा के शिकमे मुबारक से पैदा हुए | इस लिए मक़ामे आलिया का दूसरा नाम “मशराबए इब्राहिम” भी हैं | इन की विलादत की खबर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आज़ाद करदा गुलाम हज़रते अबू राफे रदियल्लाहु अन्हु ने मक़ामे आलिया से मदीने आ कर बारगाहे अक़दस मे सुनाई | ये खुश खबरी सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इनाम के तौर पर हज़रते अबू राफे रदियल्लाहु अन्हु को एक गुलाम अता फ़रमाया | इस के बाद फ़ौरन ही हज़रते जिब्राइल अलैहिस्सलाम नाज़िल हुए और आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को (ऐ इब्राहिम के बाप) कह कर पुकारा, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बे हद खुश हुए और इन के अकीके मे दो मेंढे आप ने ज़ब्ह फरमाए और इन के सर के बाल के वज़न के बराबर चांदी खैरात फ़रमाई और इन के बालों को दफन करा दिया और “इब्राहिम” नाम रखा, फिर इन को दूध पिलाने के लिए हज़रते “उम्मे सैफ” रदियल्लाहु अन्हा के सिपुर्द फ़रमाया | इन के शोहर हज़रते अबू सैफ रदियल्लाहु अन्हु लोहारी का पेशा करते थे | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु से बहुत ज़ियादा मुहब्बत थी और कभी कभी आप इन को देखने के लिए तशरीफ़ ले जाया करते थे | चुनांचे हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की हम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ हज़रते अबू सैफ रदियल्लाहु अन्हु के मकान पर गए तो ये वक़्त था की हज़रते इब्राहिम जाँकनी के आलम मे थे | ये मंज़र देख कर रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की आँखों से आसूं जारी हो गए | उस वक़्त अब्दुर रहमान बिन ओफ़ रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या आप भी रोते हैं आप ने इरशाद फ़रमाया की ओफ़ के बेटे ! ये मेरा रोना एक शफकत का रोना है | इस के बाद फिर दोबारा जब चश्माने मुबारक से आसूं बहे तो आप की ज़बाने मुबारक पर ये कलिमात जारी हो गए की :

आँख आसूं बहाती और दिल गमज़दा है मगर हम वो ही बात ज़बान से निकालते हैं जिस से हमारा रब खुश हो जाए और बिला शुबा ऐ इब्राहिम ! हम तुम्हारी जुदाई से बहुत ज़ियादा गमगीन है | 

जिस दिन हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु का इन्तिकाल हुआ इत्तिफाक से उसी दिन सूरज मे गिरहन लगा | अरबों के दिलों मे ज़मानए जाहिलियत का ये अक़ीदा जमा हुआ था की किसी बड़े आदमी की मोत से चाँद और सूरज मे गिरहन लगता है | चुनांचे बाज़ लोगों ने ये ख़याल किया की गालिबन ये सूरज गिरहन हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु की वफ़ात की वजह से हुआ है | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इस मोके पर एक खुत्बा दिया जिस मे जाहिलियत के इस अक़ीदे का रद्द फरमाते हुए इरशाद फ़रमाया की :

यक़ीनन चाँद और सूरज अल्लाह पाक की निशानियों मे से दो निशानियां हैं | किसी के मरने या जीने से इन दोनों मे गिरहन नहीं लगता जब तुम लोग गिरहन देखो तो दुआएं मांगों और नमाज़ों कुसूफ़ पढ़ो, यहाँ तक की गिरहन ख़त्म हो जाए |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये भी फ़रमाया की मेरे फ़रज़न्द इब्राहिम ने दूध पीने की मुद्दत पूरी नहीं की और दुनिया से चला गया | इस लिए अल्लाह पाक ने उस के लिए बहिश्त मे एक दूध पिलाने वाली को मुकर्रर फरमा दिया है जो मुद्दते रज़ाअत भर उस को पिलाती रहेगी | 

रिवायत है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु को जन्नतुल बकी के पास दफ़न फ़रमाया और अपने दस्ते मुबारक से उन की कब्र पर पानी का छिड़काव किया | बा वक़्ते वफ़ात हज़रते हज़रते इब्राहिम रदियल्लाहु अन्हु की उमर शरीफ 17, या 18, माह की थी|

हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहबज़ादियों मे सब से बड़ी थीं | ऐलाने नुबुव्वत से दस साल पहले जब की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उमर शरीफ तीस साल की थी मक्का शरीफ मे इन की पैदाइश हुई | ये शुरू इस्लाम ही मे मुस्लमान हो गईं थीं और जंगे बद्र के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन को मक्का शरीफ से मदीना शरीफ बुला लिया था और ये हिजरत कर के मदीना शरीफ तशरीफ़ ले गए | 

ऐलाने नुबुव्वत से पहले ही इन की शादी इन के खाला ज़ाद भाई अबुल आस बिन अबुल रबी से हो गई थी | अबुल आस हज़रते बीबी खदीजा रदियल्लाहु अन्हा की बहन हज़रते हाला रदियल्लाहु अन्हु के बेटे थे | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते बीबी खदीजा रदियल्लाहु अन्हा की सिफारिश से हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हु का अबुल आस के साथ निकाह फरमा दिया था | हज़रते ज़ैनब तो मुसलमान हो गईं थीं मगर अबुल आस शिर्क व कुफ्र पर अड़ा रहा | रमज़ान सं. 2, हिजरी मे जब अबुल आस जंगे बद्र से गिरफ्तार हो कर मदीने से आए | उस वक़्त तक हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा मुसलमान होते हुए मक्का शरीफ ही मे मुकीम थीं, चुनांचे अबुल आस को कैद से छुड़ाने के लिए इन्होने मदीने मे अपना वो हार भेजा जो इन की माँ हज़रते खदीजा रदियल्लाहु अन्हा ने इन को जहेज़ मे दिया था | ये हार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इशारा पा कर सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा के पास वापस भेज दिया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अबुल आस से ये वादा ले कर उन को रिहा कर दिया की वो मक्का पहुंच कर हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को मदीना शरीफ भेज देंगें | चुनांचे अबुल आस ने अपने वादे के मुताबिक हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को अपने भाई किनाना की हिफाज़त मे “बतने याजज” मे भेज दिया था | इधर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु को एक अंसारी के साथ पहले ही मक़ामे “बतने याजज” मे भेज दिया था | चुनांचे ये दोनों हज़रात “बतने याजज” से अपनी हिफाज़त मे हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को मदीना शरीफ लाए | 

मन्क़ूल: है की जब हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा मक्का शरीफ से रवाना हुईं तो कुफ्फारे कुरेश ने इन का रास्ता रोका यहाँ तक की एक बद नसीब ज़ालिम, “हीबार बिन अल अस्वद” ने इन को नेज़े से डरा कर ऊँट से गिरा दिया जिस के सदमे से इन का हमल गिर गया | मगर इन के देवर किनाना ने अपने तरकश से तीरों से बाहर निकाल कर ये धमकी दी की जो शख्स भी हज़रते ज़ैनब के ऊँट का पीछा करेगा | वो मेरे इन तीरों से बच कर न जाएगा | ये सुनकर कुफ्फारे कुरेश सहम गए | फिर सरदारे मक्का अबू सुफियान के बीच मे पड़ कर हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा के लिए मदीना शरीफ की रवानगी के लिए रास्ता साफ़ करा दिया | हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को हिजरत कर ने मे ये दर्द नाक मुसीबत पेश आई इसी लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन के फ़ज़ाइल मे ये इरशाद फ़रमाया की ये मेरी बेटियों मे इस एतिबार से बहुत ही ज़ियादा फ़ज़ीलत वाली है की मेरी जानिब हिजरत कर ने मे इतनी बड़ी मुसीबत उठाई | इस के बाद अबुल आस मुहर्रमुल हराम सं. 7, हिजरी मे मुसलमान हो कर मक्का शरीफ से मदीना शरीफ हिजरत कर के चले आए और हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा के साथ रहने लगे |            

सं. 8, हिजरी मे हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा की वफ़ात हो गई और हज़रते उम्मे ऐमन व हज़रते सौदाह बिन्ते ज़मआ व हज़रते उम्मे सलमा रदियल्लाहु अन हुन्ना ने इन को ग़ुस्ल दिया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन के कफ़न के लिए अपना तहबन्द शरीफ अता फ़रमाया और अपने दस्ते मुबारक से इन को कब्र में उतारा |

हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा की औलाद में एक लड़का जिस का नाम “अली” और एक लड़की हज़रते “उमामा” थीं | “अली” के बारे में एक रिवायत है की आप अपनी वालिदा माजिदा की हयात ही में बूलूग के करीब पहुंच कर वफ़ात पा गए लेकिन इब्ने असाकिर का बयान है की नसब नामो के बयान करने वाले बाज़ उलमा ने ये ज़िक्र किया है की ये जंगे यरमूक में शहादत से सरफ़राज़ हुए | 

हज़रते उमामा रदियल्लाहु अन्हा से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बड़ी मुहब्बत थी | आप इन को अपने दोशे मुबारक पर बिठा कर मस्जिदे नबवी में तशरीफ़ ले जाते थे| 

रिवायत है की एक बार हब्शा के बादशाह नज्जाशी ने आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में बतौरे हदिय्या के एक हुल्लाह भेजा जिस के साथ सोने की एक अंगूठी भी थी जिस का नगीना हब्शी था | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये अंगूठी हज़रते उमामा को अता फ़रमाई | 

इसी तरह एक बार बहुत ही खूब सूरत सोने का हार किसी ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को नज़्र किया जिस की खूब सूरती को देख कर तमाम अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना हैरान रह गईं | आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी मुकद्द्स बीवियों से फ़रमाया की में ये हार उस को दूंगा जो मेरे घर वालों में मुझे सब से ज़ियादा महबूब है | अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना ने ये ख़याल कर लिया के यक़ीनन ये हार हज़रते बीबी आइशा रदियल्लाहु अन्हा को अता फ़रमाएंगें मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उमामा रदियल्लाहु अन्हा को करीब बुलाया और अपनी प्यारी नवासी के लगे में अपने दस्ते मुबारक से ये हार डाल दिया | 

हज़रते रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा

ये ऐलाने नुबुव्वत से सात साल पहले जब की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उमर शरीफ का तैंतीसवाँ साल था पैदा हुई और शुरू इस्लाम ही में मुशर्रफ बा इस्लाम हो गईं | पहले इन का निकाह अबू लहब के बेटे “उतबा” से हुआ था लेकिन अभी इन की रुखसती नहीं हुई थी “सूरह तब्बत यदा” नाज़िल हो गई | अबू लहब कुरआन में अपनी इस दाइमी रुस्वाई का बयान सुन कर गुस्से में आग बगोला हो गया और अपने बेटे उतबा को मजबूर कर दिया की वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की साहिब ज़ादी हज़रते रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा को तलाक दे दे | चुनांचे उतबा ने तलाक दे दी |

इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा का निकाह हज़रते उस्मान बिन अफ्फान रदियल्लाहु अन्हु से कर दिया | निकाह के बाद हज़रते उस्मान बिन अफ्फान रदियल्लाहु अन्हु ने हज़रते रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा को साथ ले कर मक्के से हब्शा की तरफ हिजरत की फिर हब्शा से मक्के से वापस आ कर मदीना शरीफ की तरफ हिजरत की और ये मियां बीवी दोनों “साहिबुल हिजरातेन” यानि दो हजिरातों वाले के मुअज़्ज़ज़ लक़ब से सरफ़राज़ हो गए | जंगे बद्र के दिनों में हज़रते रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा बहुत सख्त बीमार थीं | चुनांचे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उस्मान रदियल्लाहु अन्हु को जंगे बद्र में शरीक होने से रोक दिया और ये हुक्म दिया की वो हज़रते रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा की तीमार दारी करें | हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदियल्लाहु अन्हु जिस दिन जंगे बद्र में मुसलमानो की फ़तेह मुबीन की खुश खबरी ले कर मदीने पहुंचे उसी दिन हज़रते रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा ने बीस साल की उमर पा कर वफ़ात पाई | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जंगे बद्र  के सबब से इन के जनाज़े में शरीक न हो सके | 

हज़रते उस्माने गानी रदियल्लाहु अन्हु अगरचे जंगे बद्र में शरीक न हुए लेकिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन को जंगे बद्र के मुजाहिदीन में शुमार फ़रमाया और जंगे बद्र के माले गनीमत में से इन को मुजाहिदीन के बराबर हिस्सा भी अता फ़रमाया और शुरकाए जंगे बद्र के बराबर अज्रे अज़ीम की बशारत भी दी |

हज़रते रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा के शिकमे मुबारक से हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु के साहब ज़ादे भी पैदा हुए थे जिन का नाम “अब्दुल्लाह” था ये अपनी माँ के बाद सं. 4, हिजरी में छे 6, साल की उमर में इन्तिकाल कर गए |

हज़रते उम्मे कुलसूम रदियल्लाहु अन्हा

ये पहले अबू लहब के बेटे “उतबा” के निकाह में थीं लेकिन अबू लहब के मजबूर कर देने से बद नसीब उतबा ने इन को रुखसती से पहले ही तलाक दे दी और इस ज़ालिम ने बारगाहे नुबुव्वत में इंतिहाई गुस्ताखी भी की | यहाँ तक की बद ज़बानी करते हुए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर झपट पड़ा और आप के मुकद्द्स पैराहन को फाड़ डाला | इस गुस्ताख़ की बे अदबी से आप के कल्बे नाज़ुक पर इंतिहाई रंज व सदमा गुज़रा और जोशे गम में आप की ज़बाने मुबारक से ये अलफ़ाज़ निकल पड़े की “या अल्लाह” ! अपने कुत्तों में से किसी कुत्ते को इस पर मुसल्लत फरमा दे |

इस दुआए नबी का ये असर हुआ की अबू लहब और उतबा दोनों तिजारत के लिए एक काफिले के साथ मुल्के शाम गए और मक़ामे “ज़रका” में एक राहिब के पास रात में ठहरे राहिब ने काफिले वालों को बताया की यहाँ दरिंदें बहुत हैं | आप लोग ज़रा होशियार हो कर सोएं | ये सुन कर अबू लहब ने काफिले वालों से कहा की ऐ लोगो ! मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरे बेटे उतबा के लिए हलाकत की दुआ कर दी है | लिहाज़ा तुम लोग तमाम तिजारती सामानो को इकठ्ठा कर के उस के ऊपर उतबा का बिस्तर लगा दो और सब लोग उस के इर्द गिर्द चारों तरफ सो जाएं ताकि मेरा बेटा दरिंदों के हमले से महफूज़ रहे | चुनांचे काफिले वालों ने उतबा  की हिफाज़त का पूरा पूरा बन्दों बस्त किया लेकिन रात में बिलकुल अचानक एक शेर आया और सब को सूंघते हुए उतबा के बिस्तर पर पंहुचा और उस के सर को चबा डाला | लोगों ने हर चंद शेर को तलाश किया मगर कुछ भी पता नहीं चल सका की ये शेर कहाँ से आया था? और किधर चला गया | 

खुदा की शान देखिए अबू लहब के दोनों बेटे उतबा और उतैबा ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दोनों शहज़ादियों को अपने बाप के मजबूर करने से तलाक दे दी मगर उतबा ने चूँकि बारगाहे नुबूवत में कोई गुस्ताखी और बे अदबी नहीं की थी | इस लिए वो कहरे खुदा में गिरफ्तार नहीं हुआ बल्कि फतह मक्का के दिन इस ने और इस के एक दूसरे भाई “मुअतब” दोनों ने इस्लाम कबूल कर लिया और दस्ते मुबारक पर बैअत कर के शरफ़े सहाबीयत से सरफ़राज़ हो गए | और “उतबा” ने अपनी ख़बासत से चूँकि बारगाहे अक़दस में गुस्ताखी व बे अदबी की थी इस लिए वो कहहरे कह्हार व गज़ब जब्बार में गिरफ्तार हो कर कुफ्र की हालत में एक खूंख्वार शेर के हमले का शिकार बन गया | 

हज़रते बीबी रुकय्या रदियल्लाहु अन्हा की वफ़ात के बाद रबीउल अव्वल सं. 3, हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते उम्मे कुलसूम रदियल्लाहु अन्हा का हज़रते उस्माने गनी रदियल्लाहु अन्हु से निकाह कर दिया मगर इन के शिकम मुबारक से कोई औलाद नहीं हुई | शाबान सं. 9, हिजरी में हज़रते उम्मे कुलसूम रदियल्लाहु अन्हा ने वफ़ात पाई और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और ये जन्नतुल बकी में मदफ़ून हुई |    

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,  

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