हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 35)

हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सब से छोटी मगर सब से ज़ियादा प्यारी और लाडली शहज़ादी हैं | इन का नाम “फातिमा” और लक़ब “ज़हरा” और बतूल” है | इन की पैदाइश के साल में उलमा का इख्तिलाफ है | अबू उमर का कौल है की ऐलाने नुबुव्वत के पहले साल जब की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उमर शरीफ इकतालीस 41, साल की थी ये पैदा हुई और बाज़ ने लिखा है की ऐलाने नुबुव्वत से एक साल पहले इन की पैदाइश हुई और अल्लामा इब्ने जौज़ी ने ये तहरीर फ़रमाया की ऐलाने नुबुव्वत से 5,  पांच साल पहले इन की पैदाइश हुई | 

अल्लाहु अकबर :- इन के फ़ज़ाइलो मनाक़िब का क्या कहना ? इन के मरातिब व दरजात के हालात से कुतबे अहादीस के सफ़हात मालामाल हैं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है की ये सय्यदातुनिस्सा आलामीन (तमाम जहान की औरतों की सरदार) और जन्नत की तमाम औरतों की सरदार हैं, इन के हक में इरशादे नबवी है की “फातिमा मेरी बेटी मेरे बदन की एक बोटी है” जिस ने फातिमा को नाराज़ किया उस ने मुझे नाराज़ किया |

सं. 2, हिजरी में हज़रते अली शेरे खुदा रदियल्लाहु अन्हु से इन का निकाह हुआ और इन के शिकम मुबारक से तीन साहब ज़ादे पैदा हुए | हज़रते हसन, हज़रते हुसैन, हज़रते मुहसिन, रदियल्लाहु अन्हुम | और तीन साहब ज़ादी हुईं, ज़ैनब, व उम्मे कुलसूम, व रुकय्या, रदियल्लाहु अन हुन्ना | हज़रते मुहसिन व रुकय्या रदियल्लाहु अन्हुमा तो बचपन ही में वफ़ात पा गए | 

उम्मे कुलसूम हुज़ूर सल्लल्लाहु का निकाह अमीरुल मोमिनीन हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु से हुआ | जिन के शिकमे मुबारक से आप के एक फ़रज़न्द हज़रते ज़ैद और एक साहब ज़ादी हज़रते रुकय्या रदियल्लाहु अन्हुमा की पैदाइश हुई और हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा की शादी हज़रते अब्दुल्लाह बिन जाफर रदियल्लाहु अन्हु से हुई |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के विसाल शरीफ का हज़रते बीबी फातिमा रदियल्लाहु अन्हा के कल्बे मुबारक पर बहुत ही जान का सदमा गुज़रा | चुनांचे विसाले अक़दस के बाद हज़रते बीबी फातिमा रदियल्लाहु अन्हा कभी हंसती हुई नहीं देखी गई | यहाँ तक की विसाले नबी के छे 6, महीने के बाद 3, रमज़ानुल मुबारक सं. 11, हिजरी मंगल की रात में आप ने दाईये अजल को लब्बैक कहा | हज़रते अली या हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और सब से ज़ियादा सही और मुख़्तार कौल ये है की जन्नतुल बकी में मदफ़ून हुई | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचाओं की तादाद

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चाचाओं की तादाद में मुअर्रिख़ीन का इख्तिलाफ है | बाज़ के नज़दीक इन की तादाद नो 9, बाज़ ने कहा की दस 10, बाज़ का कौल है की ग्यारह 11, साहिबे मवाहिबे लदुन्निया “ज़खाइरुल उक़्बा फी मनाकिबे ज़विल क़ुर्बा” से नकल करते हुए तहरीर फ़रमाया की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के वालिदे माजिद हज़रते अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु के अलावा अबदुल मुत्तलिब के बारह 12, बेटे थे जिन के नाम ये हैं :

  1. हारिस      
  2. अबू तालिब 
  3. ज़ुबेर
  4. हम्ज़ा
  5. अब्बास 
  6. अबू लहब 
  7. गैदाक
  8. मकूम 
  9. ज़रार
  10. कस्म
  11. अब्दुल काबा 
  12. जहल

इन में से सिर्फ हज़रते हम्ज़ा व हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा ने इस्लाम कबूल किया | हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु बहुत ही ताकत वर और बहादुर थे | इन को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “अल्लाह हो रसूल का शेर” के मुअज़्ज़ज़ व मुमताज़ लक़ब से सरफ़राज़ फ़रमाया | ये सं. 3, हिजरी में जंगे उहद के अंदर शहीद हो कर “सय्यदुश्शुहदा” के लक़ब से मशहूर हुए और मदीना शरीफ से तीन मील दूर ख़ास जंगे उहद के मैदान में आप का मज़ारे पुर अनवार ज़ियारत गाहे आलमे इस्लाम है | 

हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु के फ़ज़ाइल में बहुत सी अहादीस वारिद हुई हैं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन के और इन की औलाद के बारे में बहुत सी बशारतें दीं और अच्छी अच्छी दुआएं भी फ़रमाई हैं |

सं. 32, हिजरी या सं. 33, हिजरी में सत्तासी या अठ्ठासी 87, या 88, साल की उमर में आप का विसाल हुआ और जन्नतुल बकी में दफ़न किया गया | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफियां

आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की फूफियों की तादाद छेह 6, है जिन के नाम ये हैं :

  1. आतिका
  2. उमैमा 
  3. उम्मे हकीम 
  4. बर्रह
  5. सफिय्या 
  6. अरवी 

इन में मुअर्रिख़ीन का कित्तिफ़ाक़ है की हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा ने इस्लाम कबूल किया | ये ज़ुबेर बिन अल अव्वाम की वालिदा हैं | ये बहुत ही बहादुर और हौसला मंद खातून थीं | ग़ज़वए खंदक में इन्हो ने एक मुसल्लह और हमला आवर यहूदी को तनहा एक चोब (लाठी डंडा) से मार कर क़त्ल कर दिया था | रिवायत है की जंगे उहद में भी जब मुसलमानो का लश्कर बिखर चुका था ये अकेली कुफ्फार पर नेज़ा चलाती रहीं यहाँ तक की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को इन की गैर मामूली शुजाअत पर इंतिहाई तअज्जुब हुआ और आप ने इन के बेटे हज़रते ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हु को मुख़ातब फरमा कर इरशाद फ़रमाया की ज़रा इस औरत की बहादुरी और जाँनिसारी तो देखो | सं. बीस 20, हिजरी में तेहत्तर साल की उमर पा कर मदीना शरीफ में वफ़ात पाई जन्नतुल बाकी में दफ़न हुईं |

हज़रते सफिय्या रदियल्लाहु अन्हा, के इलावा अरवी व आतिका उमैमा के इस्लाम में मुअर्रिख़ीन का इख्तिलाफ है | बाज़ ने इन तीनो को मुस्लमान तहरीर किया है | और बाज़ के नज़दीक इन का इस्लाम साबित नहीं | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ख़ास खुद्दाम

यूं तो तमाम सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के परवाने थे और इंतिहाई जाँनिसारी के साथ आप की खिदमत गुज़ारी के लिए सभी तन मन धन से हाज़िर रहते थे मगर फिर भी चंद ऐसे खुश नसीब हैं जिन का शुमार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खुसूसी खुद्दाम में है | इन खुश बख्तों की मुकद्द्स फहरिस्त में मुनदर्जए ज़ैल सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ख़ास तौर पर काबिले ज़िक्र हैं :

(1) हज़रते अनस बिन मालिक रदियल्लाहु अन्हु : 

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सब से ज़ियादा मशहूर व मुमताज़ खादिम हैं | इन्हों ने दस साल बराबर हर सफर व हज़र में आप की वफादार खिदमत गुज़ारी का शरफ़ हासिल किया | इन के लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने खास तौर पर ये दुआ फ़रमाई थी की ऐ अल्लाह पाक ! इस के माल और औलाद में कसरत अता फरमा और इस को जन्नत में दाखिल फरमा |

हज़रते अनस बिन मालिक रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इन तीन दोआओं में से दो दुआएं कबूल हुईं और में ने इन का जलवा देख लिया की हर शख्स का बाग़ साल में एक बार फलता देता है और मेरा बाग़ साल में दो बार फलता है | और फलों में मुश्क की खुशबू आती है | और मेरी औलादों की तादाद एक सौ छेह 106, हैं जिन में सत्तर लड़के और बाकी लड़कियां हैं | और में उम्मीद रखता हूँ की में तीसरी दुआ का जलवा भी ज़रूर देखूँगा यानि जन्नत में दाखिल हो जाऊंगा | इन्हों ने दो हज़ार दो सौ छियासी हदीसें हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से रिवायत की हैं और हदीस में इन के शागिर्दों की तादाद बहुत ज़ियादा है | इन की उमर सौ साल से बहुत ज़ियादा हुई | बसरा में सं. इक्कीयांनवे 91, हिजरी या 92, हिजरी या सं. तिरानवे 93, हिजरी में वफ़ात पाई |

(2) हज़रते रबीआ बिन काब अस्लमी रदियल्लाहु अन्हु :

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए वुज़ू कराने की खिदमत अंजाम देते थे | यानि पानी व मिस्वाक वगैरा का इंतिज़ाम करते थे | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन को जन्नत की बशारत दी थी | सं. 63, हिजरी में वफ़ात पाई |

(3) हज़रते ऐमन बिन ऐमन रदियल्लाहु अन्हु : 

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की एक छोटी मश्क जिसे से आप इस्तिंजा और वुज़ू फ़रमाया करते थे हमेशा आप ही की तहवील में रहा करती थी | ये जंगे हुनैन के दिन शहादत से सरफ़राज़ हुए | 

(4) हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु : 

ये नालैंन शरीफ और वुज़ू का बर्तन और मसनद व मिस्वाक अपने पास रखते थे और सफर व हज़र में हमेशा ये खिदमत अंजाम दिया करते थे साठ साल से ज़ियादा उमर पा कर सं. 32, हिजरी या सं. 33, हिजरी में बाज़ का कौल है की मदीने में और बाज़ के नज़दीक कूफ़ा में विसाल फ़रमाया | 

(5) हज़रते उक़्बा बिन आमिर जुहनी रदियल्लाहु अन्हु : 

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सवारी के खच्चर की लगाम थामे रहते थे | कुरआन शरीफ और फ़राइज़ के उलूम में बहुत ही माहिर थे, और आला दर्जे के फसीह खतीब और शोला बयान शायर थे | हज़रते अमीर मुआविया रदियल्लाहु अन्हु ने अपनी हुकूमत के दौर में इन को मिस्र का गवर्नर बना दिया था | सं. 58, हिजरी में मिस्र के अंदर ही इन का विसाल हुआ | 

(6) हज़रते अस्ला बिन शरीक रदियल्लाहु अन्हु : 

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ऊँट पर कजावा बांधने की खिदमत अंजाम दिया करते थे | 

(7) हज़रते अबू ज़र गिफारी रदियल्लाहु अन्हु : 

ये बहुत ही क़दीमुल इस्लाम सहाबी हैं | इंतिहाई तारीकुद्दुनिया और आबीदो ज़ाहिद थे और दरबारे नबी के बहुत ही ख़ास खादिम थे | इन के फ़ज़ाइल में चंद हदीसें भी वारिद हुईं हैं | सं. 31, हिजरी में मदीना शरीफ से कुछ दूर “रब्ज़ा” नामी गाँव में इन का इन्तिकाल हुआ और हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु ने इन की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई | 

(8) हज़रते मुहाजिर मौला उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हु : 

ये उम्मुल मोमिनीन हज़रते उम्मे सलमाह रदियल्लाहु अन्हा के आज़ाद करदा गुलाम थे | शरफ़े सहाबीयत के साथ साथ पांच साल तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत का भी शरफ़ हासिल किया | बहुत ही बहादुर मुजाहिद थे | मिस्र को फतह करने वाली फौज में शामिल थे | कुछ दिनों तक मिस्र में रहे | फिर “तहा” चले गए और वहां अपनी वफ़ात तक मुकीम रहे |

(9) हज़रते हुनैन मौला अब्बास रदियल्लाहु अन्हुमा : 

ये पहले हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुलाम थे और दिन रात आप की खिदमत करते थे | फिर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन्हें अपने चाचा हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु को अता फरमा दिया और ये हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु के गुलाम हो गए | लेकिन चंद ही दिनों के बाद हज़रते अब्बास रदियल्लाहु अन्हु ने इन को इस लिए आज़ाद कर दिया ताकि ये दिन रात बारगाहे नबी में हाज़िर रहें और खिदमत करते रहें |

(10) हज़रते नुऐम बिन रबीआ अस्लमी रदियल्लाहु अन्हु : 

ये भी खादिमाने बारगाहे रिसालत की ख़ास फेहरिश्त में शुमार होते हैं | 

(11) हज़रते अबुल हमरा रदियल्लाहु अन्हु : 

इन का नाम हिलाल बिन अल हारिस था | ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आज़ाद करदा गुलाम और खादिम ख़ास हैं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की वफ़ात के बाद ये मदीना से “हम्स” चले गए थे और वहीँ इन की वफ़ात हुई |

(12) हज़रते अबुस समा रदियल्लाहु अन्हु : 

ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गुलाम थे फिर आप ने इन को आज़ाद फरमा दिया मगर ये दरबारे नबी से जुदा नहीं हुए हमेशा खिदमत गुज़ारी में मसरूफ रहे | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अक्सर ये ग़ुस्ल कराया करते थे इन का नाम “इयाद” था | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खुसूसी मुहाफिज़ीन

कुफ्फार चूँकि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जानी दुश्मन थे और हर वक़्त इस ताक में लगे रहते थे की अगर इक ज़रा भी मौका मिल जाए तो आप को शहीद कर डालें | बल्कि कई बार कातिलाना हमला भी कर चुके थे | इस लिए कुछ जांनिसार सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम बारी बारी से रातों को आप की मुख्तलिफ ख्वाब गाहों (सोने की जगह) और क़ियाम गाहों का शमशीर वक्फ हो कर पहरा दिया करते थे | ये सिलसिला उस वक़्त तक जारी रहा जब की ये आयत नाज़िल हो गई की “वल्लाहु यासिमुका मिनन्नास: यानि अल्लाह आप को लोगों से बचाएगा | इस आयत के नुज़ूल के बाद आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अब पहरा देने की कोई ज़रूरत नहीं | अल्लाह पाक ने मुझ से वादा फरमा लिया है की वो मुझ को मेरे तमाम दुश्मनो से बचाएगा | इन जांनिसार पहरा दरों में चंद ख़ुश नसीब सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम खुसूसियत के साथ कबीले ज़िक्र हैं जिन के असमाए गिरामी ये हैं :

  1. हज़रते अबू बक्र सिद्दीक 
  2. हज़रते साद बिन मुआज़ अंसारी          
  3. हज़रते मुहम्मद बिन मसलमा 
  4. हज़रते ज़कवान बिन अब्दे केस 
  5. हज़रते ज़ुबेर बिन अल अव्वाम 
  6. हज़रते साद बिन अबी वक्कास 
  7. हज़रते अब्बद बिन बिशर 
  8. हज़रते हज़रते अबू अय्यूब अंसारी 
  9. हज़रते बिलाल 
  10. हज़रते मुगीरा बिन शअबा रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन |        
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कातिबिने वही

जो सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम कुरआन शरीफ नाज़िल होने वाली आयातों और दूसरी खास खास तहरीरों को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुक्म के मुताबिक लिखा करते थे उन मोतबर कातिबों में खास तौर पर मुनदर्जाए ज़ेल हज़रात कबीले ज़िक्र हैं :

  1. हज़रते अबू बक्र सिद्दीक 
  2. हज़रते उमर फारूक 
  3. हज़रते उस्माने गनी
  4. हज़रते अली मुतज़ा शेरे खुदा 
  5. हज़रते तल्हा बिन उबैदुल्लाह 
  6. हज़रते साद बिन अबी वक्कास 
  7. हज़रते ज़ुबेर बिन अल अव्वाम 
  8. हज़रते आमिर बिन फुहेरा 
  9. हज़रते साबित बिन केस 
  10. हज़रते हन्ज़ला बिन रबी 
  11. हज़रते ज़ैद बिन साबित 
  12. हज़रते उबय्य बिन काब 
  13. हज़रते अमीरे मुआविया 
  14. हज़रते अबू सुफियान रदियल्लाहु अन्हुम अजमईन |    
हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरबार के शोआरा

यूं तो बहुत से सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मदहो सना के क़सीदे लिखने की सआदत से सरफ़राज़ हुए मगर दरबारे नबी के खुसूसी शोआराए किराम तीन हैं जो नात गोई के साथ साथ कुफ्फार के शायराना हमलो का अपने कसीदों के ज़रिए मुँह तोड़ जवाब भी दिया करते थे | 

(1) हज़रते काब बिन मालिक अंसारी सुलमी रदियल्लाहु अन्हु:- जो जंगे तबूक में शरीक न होने की वजह से मातूब हुए मगर फिर इन की तौबा की मकबूलियत कुरआन शरीफ में नाज़िल हुई | इन का बयान हैं की हम लोगों से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की तुम लोग मुश्रिकीन की हिजू किया करो क्यूंकि मोमिन अपनी जान और माल से जिहाद करता रहता हैं और तुम्हारे अशआर गोया कुफ्फार के हक में तीरों की मार के बराबर हैं | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु की सल्तनत के दौरे खिलाफत या हज़रते अमीरे मुआविया की सल्तनत के दौर में इन की वफ़ात हुई |

(2) हज़रते अब्दुल्लाह बिन रवाहा अंसारी ख़ज़रजी रदियल्लाहु अन्हु:- इन के फ़ज़ाइलो मनाक़िब में चंद अहादीस भी हैं | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इन को “सय्यदुश्शुआरा” का लक़ब अता फ़रमाया था ये जंगे मोता में शहादत से सरफ़राज़ हुए | 

(3) हज़रते हस्सान बिन साबित बिन मुनज़िर बिन अम्र अंसारी ख़ज़रजी रदियल्लाहु अन्हु:- ये दरबारे रिसालत के शुआरए किराम में सब से ज़ियादा मशहूर हैं हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन के हक में दुआ फ़रमाई की या अल्लाह ! हज़रते जिब्राइल अलैहिस्सलाम के ज़रिए इन की मदद फरमा | और ये भी इरशाद फ़रमाया की जब तक ये मेरी तरफ से कुफ्फारे मक्का को अपने अशआर के ज़रिए जवाब देते रहते हैं उस वक़्त तक हज़रते जिब्राइल अलैहिस्सलाम इन के साथ रहा करते थे | एक सौ बीस साल की उमर पा कर सं. 54, हिजरी में इन की वफ़ात हुई साठ साल की उमर ज़मानए जाहिलियत में गुज़री और साठ साल की उमर खिदमते इस्लाम में सर्फ की | ये एक तारीखी लतीफा हैं की इन के और इन के वालिद “साबित और इन के दादा “मुनज़िर” और नगर दादा “हीराम” सब की उमरें एक सौ बीस साल की हुईं | 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खुसूसी मुअज़्ज़िनीन

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के खुसूसी मुअज़्ज़िज़ीन की तादाद चार हैं :

  • हज़रते बिलाल बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हु
  • हज़रते अब्दुल्लाह बिन उम्मे मकतूम रदियल्लाहु अन्हु (नबीना)

ये दोनों मदीना शरीफ के मस्जिदे नबवी के मुअज़्ज़िन हैं |

  • हज़रते साद बिन आइज़ जो सादे “क़रज़” के नाम से मशहूर हैं | ये मस्जिदे कुबा के मुअज़्ज़िन थे 
  • हज़रते अबू महज़ूरा रदियल्लाहु अन्हु ये मक्का शरीफ की मस्जिदे हराम में अज़ान पढ़ा करते थे |   
रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,  

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