हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 36)

“हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मोजिज़ात”

साहिबे रजअते शम्सो शक्कुल कमर 

नाइबे  दस्ते  कुदरत पे लाखों सलाम  

अर्श   ता   फर्श   है  जिस  के  ज़ेरे  नगीं

उस की क़ाहिर रियासत पे लाखों सलाम

मोजिज़ा किसे कहते हैं ?

हज़राते अम्बियाए किराम अलैहिमुस्सलाम से उन की नुबुव्वत की सदाकत ज़ाहिर करने के लिए किसी तअज्जुब ख़ेज़ चीज़ का ज़ाहिर होना जो आदतन नहीं हुआ करती इसी ख़िलाफ़े आदत ज़ाहिर होने वाली चीज़ का नाम “मोजिज़ा” है | 

मोजिज़ा चूँकि नबी की सदाकत ज़ाहिर करने के लिए एक खुदा वन्दी निशान हुआ करता है | इस लिए मोजिज़ें के लिए ज़रूरी है की वो खारिके आदत हो | यानि ज़ाहिरी इलल व असबाब और आदातो जारिया के लिए बिलकुल ही खिलाफ हो वरना ज़ाहिर है की कुफ्फार कह सकते हैं की ये तो फुला सबब से हुआ है और ऐसा तो हमेशा आदतन हुआ ही करता है | इस बिना पर मोजिज़ें के लिए लाज़मी शर्त है बल्कि ये मोजिज़ें के मफ़हूम में दाखिल है की वो किसी न किसी ऐतिबार से असबाबे आदिया और आदाते जारिया के खिलाफ हो और ज़ाहिरी असबाब व इलल के अमल दखल से बिलकुल ही बाला तर हो, ताकि उस को देख कर कुफ्फार ये मानने पर मजबूर हो जाएं की चूँकि इस चीज़ का कोई ज़ाहिरी सबब भी नहीं है और आदतन कभी ऐसा हुआ भी नहीं करता इस लिए बिला शुबा इस चीज़ का किसी शख्स से ज़ाहिर होना इंसानी ताकतों से बाला तर कारनामा है | लिहाज़ा यकीनन ये शख्स अल्लाह पाक की तरफ से भेजा हुआ और उस का नबी है | 

“आसमानी मोजिज़ात” 

चाँद दो टुकड़े हो गया

हुज़ूर खात मुन्नबीय्यीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मोजिज़ात में से “शक्कुल कमर” का मोजिज़ा बहुत ही अज़ीमुश्शान और फैसला कुन मोजिज़ा है | हदीसों में आया है की कुफ्फारे मक्का ने आप से ये मुतालबा किया की आप अपनी नुबुव्वत की सदाकत पर बतौरे दलील कोई मोजिज़ा और निशानी दिखाइए | उस वक़्त आप ने उन लोगों को “शक्कुल कमर” का मोजिज़ा दिखाया की चाँद दो टुकड़े हो कर नज़र आया | चुनांचे हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद, हज़रते अब्दुल्लाह बिन अब्बास व हज़रते अनस बिन मालिक व हज़रते ज़ुबेर बिन मुतइम व हज़रते अली अबी तालिब व हज़रते अब्दुल्लाह बिन उम्र, हज़रते हुज़ैफ़ बिन यमान रदियल्लाहु अन्हुम वगैरह ने इस वाकिए की रिवायत की है | 

इन रिवायात में सब से ज़ियादा सही और मुस्तनद हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु की रिवायत है जो बुखारी व मुस्लिम व तिर्मिज़ी वगैरा में मज़कूर है | हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु इस मोके पर मौजूद थे और उन्हों ने इस मोजिज़ें को अपनी आँखों से देखा था | उन का बयान है की 

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में चाँद दो टुकड़े हो गया | एक टुकड़ा पहाड़ के ऊपर और एक टुकड़ा पहाड़ के नीचे नज़र आ रहा था | आप ने कुफ्फार को ये मंज़र दिखा कर उन से इरशाद फ़रमाया की गवाह हो जाओ गवाह हो जाओ |

इन अहादीसे मुबारक के अलावा इस अज़ीमुश्शान मोजिज़ें का ज़िक्र कुरआन शरीफ में भी है चुनांचे अल्लाह पाक इरशाद फरमाता है पारा 27, सूरह कमर आयत 1, 2, :

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- क़यामत करीब आ गई और चाँद फट गया और ये कुफ्फार अगर कोई निशानी देखते हैं तो उससे मुँह फेर लेते हैं और कहते हैं की ये जादू तो हमेशा से होता चला आया है | 

इस आयत का साफ व सरीह मतलब ये है की कयामत करीब आ गई और दुनिया की उम्र का क़लील हिस्सा बाकी रह गया है क्यूंकि चाँद के दो टुकड़े हो जाना अलामाते कयामत में से था वो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में हो चुका मगर ये वाज़ेह तिरीन और फैसला कुन मोजिज़ा देख कर भी कुफ्फारे मक्का मुस्लमान नहीं हुए बल्कि ज़ालिमों ने ये कहा की मुहम्मद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हम लोगों पर जादू कर दिया और इस किस्म की जादू की चीज़ें तो हमेशा होती ही रहती हैं | 

एक गलत फहमी का इज़ाला :- आयते मज़कूरा के बारे में कुछ मुलहिदीन का जो मोजिज़ाए शक्कुल कमर के मुनकिर हैं ये ख्याल है की इस शक्कुल कमर से मुराद खालिस कयामत के दिन चाँद का टुकड़े टुकड़े होना है जब की आसमान फट जाएगा और चाँद सितारे झाड़ कर बिखर जाएंगें, 

मगर अहले फ़हम पे रोशन है की इन मुलहिदों की ये बकवास सरासर लग़्व बल्कि बे सरो पा खुराफात वाली बात है क्यूंकि अव्वलन तो इस सूरत में बिला किसी करीने के (चाँद फट गया) माज़ी के सेगे को (चाँद फट जाएगा) मुस्तकबिल के माना में लेना पड़ेगा जो बिलकुल ही बिला ज़रूरत है | दूसरे ये की चाँद शक होने का ज़िक्र करने के बाद ये फ़रमाया गया पारा 27, सूरह कमर आयत 2, :

तर्जुमा कंज़ुल ईमान :- यानि शक्कुल कमर की अज़ीमुश्शान निशानी को देख कर कुफ्फार ने ये कहा की ये जादू है जो हमेशा से होता है | 

ज़ाहिर है की जब कुफ्फारे मक्का ने शक्कुल कमर का मोजिज़ा देखा तो उस को जादू कहा वरना खुली हुई बात है की कयामत के दिन आसमान फट जाएगा और चाँद सितारे टुकड़े टुकड़े हो कर झड़ जाएंगे और तमाम इंसान मर जाएंगें तो उस वक़्त उस को जादू कहने वाला भला कौन होगा? इस लिए बिला शुबा यकीनन इस आयत के यही माना मुतअय्यन हैं की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के ज़माने में चाँद फट गया और इस मोजिज़ें को देख कर कुफ्फार ने इस को जादू का करतब बताया | 

एक सवाल और उस का जवाब :- हाँ अलबत्ता यहाँ एक सवाल पैदा होता है की जो अक्सर लोग पूछा करते हैं की शक्कुल कमर का मोजिज़ा जब मक्का में ज़ाहिर हुआ तो आखिर ये मोजिज़ा दुसरे ममालिक और दुसरे शहरों में क्यूँ नहीं नज़र आया ?

इस सवाल का ये जवाब है की अव्वल तो ये मक्का शरीफ के अलावा दूसरे शहरों के लोगों ने भी जैसा की अहादीस से साबित है की की इस मोजिज़ें को देखा | चुनांचे हज़रते मसरूक ने हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु से रिवायत की है ये मोजिज़ा देख कर कुफ्फारे मक्का ने कहा की अबू कबशा के बेटे (मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने तुम लोगों पे जादू कर दिया है | फिर उन लोगों ने आपस में ये तै किया की बाहर से आने वाले लोगों से पूछना चाहिए की देखें वो लोग इस बारे में क्या कहते हैं? क्यूँ की मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जादू तमाम इंसानो पर नहीं चल सकता | चुनने बाहर से आने वाले मुसाफिरों ने भी ये गवाही दी की हमने भी “चाँद दो टुकड़े” देखा है | 

और ये तस्लीम भी कर लिया जाए की दूसरे ममालिक और शहरों के बाशिंदों ने इस मोजिज़ें को नहीं देखा तो किसी चीज़ के न देखने से ये कब लाज़िम आता है की वो चीज़ हुई ही नहीं | आसमान में रोज़ाना किस्म किस्म के आसार नमूदार होते रहे | मसलन रंग बिरंग के बादल, कैस क़ज़ह, सितारों का टूटना, ये सब आसार उन्ही लोगो को नज़र आते हैं जो इत्तिफाक से उस वक़्त आसमान की तरफ देख रहे हों दूसरे लोगों को नज़र नहीं आते |

इसी तरह दूसरे ममालिक और शहरों में ये मोजिज़ा नज़र न आने की एक वजह ये भी हो सकती है इख़्तिलाफ़े मतला की वजह से कुछ मक़ामात पर एक वक़्त में चाँद का तुलू होता है और उस वक़्त में दूसरे शहरों के अंदर चाँद का तुलू होना ही नहीं होता इसी लिए जब चाँद में गिरहन नज़र नहीं आता| बाज़ मर्तबा ऐसा भी होता है की दूसरे मुल्कों और शहरों में अब्र या पहाड़ वगैरा के हाइल हो जाने से किसी किसी वक़्त चाँद नज़र नहीं आता | 

सूरज पलट आया

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आसमानी मोजिज़ात में सूरज पलट आने का मोजिज़ा भी बहुत ही अज़ीमुश्शान मोजिज़ा और सदाकते नुबुव्वत का एक वाज़ेह तरीन निशानी है | इस का वाक़िआ ये है की हज़रते बीबी अस्मा बिन्ते उमेस रदियल्लाहु अन्हा का बयान है की  “खैबर” के करीब मंज़िले “सहबा” में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नमाज़े असर पढ़ कर हज़रते अली     रदियल्लाहु अन्हु की गोद में अपना सरे अक़दस रख कर सो गए और आप पर वही नाज़िल होने लगी | हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु सरे अक़दस को अपनी आगोश में लिए हुए बैठे रहे | यहाँ तक की सूरज डूब गया और आप को मालूम हुआ की हज़रते अली     रदियल्लाहु अन्हु की नमाज़े असर क़ज़ा हो गई तो आप ने ये दुआ फ़रमाई की या अल्लाह ! यकीनन अली तेरी और तेरे रसूल की इताअत में थे लिहाज़ा तू सूरज को वापस लोटा दे ताकि अली नमाज़े असर अदा कर लें | 

हज़रते बीबी अस्मा बिन्ते उमेस रदियल्लाहु अन्हा का बयान है की मेने अपनी आँखों से देखा की डूबा हुआ सूरज पलट आया और पहाड़ों की चोटियों पर और ज़मीन के ऊपर हर तरफ धूप फेल गई | 

इस में शक नहीं की बुखारी की रिवायतों में इस मोजिज़ें का ज़िक्र नहीं है लेकिन याद रखिए किसी हदीस का बुखारी में न होना इस बात की दलील नहीं की वो हदीस बिलकुल ही बे असल है | इमाम बुखारी को छेह 6, लाख हदीसें ज़बानी याद थीं  | इन्हीं हदीसों में चुन कर उन्हों ने बुखारी शरीफ में अगर मुक़र्ररातव मुताबाअत को शामिल कर के शुमार की जाएं तो सिर्फ नो हज़ार बयासी हदीसें लिखीं हैं और अगर मुक़र्ररातव व मुताबाअत को छोड़ कर गिनती की जाए तो कुल हदीसों की तादाद दो हज़ार सात सौ इकसठ (2761) रह जाती हैं | 

बाकी हदीसें जो हज़रते इमाम बुखारी रहमतुल्लाह अलैह को ज़बानी याद थी | ज़ाहिर है की वो बे असल और मौज़ू न होंगी बल्कि वो भी यकीनन सही या हसन ही होंगी तो आखिर वो सब कहाँ है? और क्या हुई? तो इस बारे में ये कहना ही पड़ेगा की दूसरे मुहद्दिसीन ने उन्हीं हदीसों को और कुछ दूसरी हदीसों को अपनी अपनी किताबों में लिखा होगा | चुनांचे मंज़िले सहबा में हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु की असर की नमाज़ के लिए सूरज पलट आने की हदीस को बहुत से मुहद्दिसीन ने अपनी किताबों में लिखा है | जैसा की हज़रते शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया की हज़रते अबू जाफर तहावी, अहमद बिन सालेह, व इमाम तबरानी, व क़ाज़ी अयाज़ ने इस हदीस को अपनी अपनी किताबों में तहरीर फ़रमाया है और इमाम तहावी ने तो ये भी तहरीर फ़रमाया है की इमाम अहमद बिन सालेह जो इमाम अहमद बिन हंबल के हम पल्ला हैं, फ़रमाया करते थे की ये रिवायत अज़ीम तिरीन मोजिज़ा और अलामाते नुबुव्वत में से है लिहाज़ा इस को याद करने में अहले इल्म को न पीछे रहना चाहिए न गफलत बरतनी चाहिए | 

बहर हाल जिन जिन मुहद्दिसीन ने इस हदीस को अपनी अपनी किताबों में लिखा है उन की एक मुख़्तसर फहरिस्त ये है :-

नाम मुहद्दिस नाम किताब
(1) हज़रते इमाम अबू जाफर तहावी रहमतुल्लाह अलैह ने   मुश्किलुल आसार में
(2) हज़रते इमाम हाकिम रहमतुल्लाह अलैह ने      मुसतदरक में
(3) हज़रते इमाम तबरानी रहमतुल्लाह अलैह ने   मोजमे कबीर में
(4) हज़रते हाफ़िज़ इब्ने मरदूइया रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी मारवियात में
(5) हज़रते हाफ़िज़ अबुल बशर रहमतुल्लाह अलैह ने  अज़्ज़ुर्रिय तित्ताहिरा में
(6) हज़रते क़ाज़ी अयाज़ रहमतुल्लाह अलैह ने     शिफा शरीफ में
(7) हज़रते खतीब बगदादी रहमतुल्लाह अलैह ने    तलख़ीसुल मुतशाबेह में
(8) हज़रते हाफ़िज़ मुगल ताई रहमतुल्लाह अलैह ने   अज़्ज़हरुल बासिम में
(9) हज़रते अल्लामा ऐनी रहमतुल्लाह अलैह ने   उम्दतुल कारी में
(10) हज़रते अल्लामा जलालुद्दीन सीयूती रहमतुल्लाह अलैह ने कशफ़ुलबस में 
(11) हज़रते अल्लामा इब्ने युसूफ दमिश्क़ी रहमतुल्लाह अलैह नेमुज़ीलुल लबस
(12) हज़रते शाह वलीयुल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने इज़ा लतिल खिफा में
(13) हज़रते शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह नेमदारिजुन नुबुव्वह में  
(14) हज़रते अल्लामा मुहम्मद बिन बाकी रहमतुल्लाह अलैह नेज़ुर कानी अलल मवाहिब में
(15) हज़रते अल्लामा कस्तलानी रहमतुल्लाह अलैह ने मवाहिबे लदुन्नीय्यह
सूरज ठहर गया

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आसमानी मोजिज़ात में से सूरज पलट आने के मोजिज़ें की तरह चलते हुए सूरज का ठहर जाना भी एक बहुत ही अज़ीम मोजिज़ा है जो मेराज की रात गुज़र कर दिन में ज़ाहिर हुआ | चुनांचे यूनुस बिन बुकैर ने इब्ने इसहाक से रिवायत की है की जब कुफ्फारे कुरेश ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से अपने उस काफिले के हालात मालूम किए जो मुल्के शाम से मक्का आ रहा था तो आप ने फ़रमाया की हाँ में ने तुम्हारे उस काफिले को बैतुल मुकद्द्स के रास्ते में देखा है और वो बुध के दिन मक्का आ जाएगा |

चुनांचे कुरेश ने बुध के दिन शहर से बाहर निकल कर अपने काफिले की आमद का इन्तिज़ार किया यहाँ तक की सूरज ग़ुरूब होने लगा और काफिला नहीं आया उस वक़्त हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बारगाहे इलाही में दुआ मांगी तो अल्लाह पाक ने सूरज को ठहरा दिया और एक घडी दिन को बड़ा दिया ! यहाँ तक की वो काफिला आन पंहुचा | 

वाज़ेह रहे की “हबसुशमश” यानि सूरज को रोक देने का मोजिज़ा ये हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ही के लिए मख़सूस नहीं बल्कि अम्बियाए साबिक़ीन में से हज़रते यूशा बिन नून अलैहिस्सलाम के लिए भी ये मोजिज़ा ज़ाहिर हो चुका है जिस का वाकिया ये है की : जुमे के दिन वो बैतुल मुकद्द्स में कोमे जब्बारीन से जिहाद फरमा रहे थे अचानक सूरज डूबने लगा और ये खतरा पैदा हो गया की अगर सूरज डूब गया तो सनीचर का दिन आ जाएगा और सनीचर के दिन मूसा अलैहिस्सलाम की शरीअत के मुताबिक जिहाद न हो सकेगा तो उस वक़्त अल्लाह पाक ने एक घड़ी तक सूरज को चलने से रोक दिया यहाँ तक की हज़रते यूशा बिन नून अलैहिस्सलाम कोमे जब्बारिन पर फ़तेह याब हो कर जिहाद से फारिग हो गए | 

मेराज शरीफ

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के आसमानी मोजिज़ात में से मेराज का वाक़िआ भी बहुत ज़ियादा अहमियत का हामिल और हमारी माद्दी दुनिया से बिलकुल ही अक्ले इंसानी के कयास व गुमान की सरहदों से बहुत ज़ियादा बाला तर है | 

मेराज का दूसरा नाम “असरा” भी है | असरा के माना रात को चलना या रात को ले जाना | चूँकि हदीसों में मेराज का वाकिअ बयान फरमाते हुए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने “ओरीजा बी” (मुझ को ऊपर चढ़ाया गया) का लफ्ज़ इरशाद फ़रमाया इस लिए इस वाकिए का नाम मेराज पड़ा | 

अहादीस व सीरत की किताबों में इस वाकिए को बहुत कसीरुत्त तादाद सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने बयान किया है | चुनांचे अल्लामा ज़ुर कानी  रहमतुल्लाह अलैह ने  45, सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम के नाम बा नाम गिनाया है जिन्हों ने हदीसे मेराज को रिवायत किया है | 

मेराज कब हुई ?

मेराज की तारीख, और दिन महीने में बहुत ज़ियादा इख्तिलाफ है लेकिन इतनी बात पर बिला इख्तिलाफ सब का इत्तिफ़ाक़ है की मेराज नुज़ूले वही के बाद और हिजरत से पहले का वाक़िआ है जो मक्का शरीफ में पेश आया और इब्ने कुतैबा दीनवारी (मुतवफ़्फ़ा सं. 267, हिजरी) और इब्ने अब्दुल बर्र (मुतवफ़्फ़ा सं. 463, हिजरी) और इमाम राफेई व इमाम नबवी ने तहरीर फ़रमाया की वाकिअए मेराज रजब के महीने में हुआ | और मुहद्दिसीन अब्दुल गनी ,मकदसि ने रजब की सत्ताईसवीं भी मुतअय्यन कर दी है और अल्लामा ज़ुर कानी  रहमतुल्लाह अलैह ने तहरीर फ़रमाया है की लोगों का इसी पर अमल है और बाज़ मुअर्रिख़ीन की राय है की ये सब से ज़ियादा कवि रिवायत है | 

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,  

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