हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 40)


हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु और एक प्याला दूध

एक दिन हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु भूक से निढाल हो कर रास्ते में बैठ गए, हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु सामने से गुज़रे तो उन से इन्हों ने कुरआन शरीफ की एक आयात को दरयाफ्त किया । मकसद ये था की शायद वो मुझे अपने घर ले जा कर कुछ खिलाएंगें मगर उन्हों ने रास्ता चलते हुए आयत बता दी और चले गए । फिर हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु उस रास्ते से निकले उन से भी इन्हों ने एक आयात का मतलब पूछा गरज़ वो ही था की वो कुछ खिला देंगें मगर वो भी आयात का मतलब बता कर चल दिए । इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तशरीफ़ लाए और हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु के चेहरे को देख कर अपनी खुदादाद बसीरत से जान लिया की ये भूके हैं, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इन्हें पुकारा, इन्हों ने जवाब दिया और साथ हो लिए जब आप काशानए नुबुव्वत में पहुंचे तो घर में दूध से भरा हुआ एक प्याला देखा । घर वालों ने आप को उस शख्स का नाम बतलाया जिस ने दूध का तोहफा भेजा था, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया की जाओ और तमाम अस्हाबे सुफ़्फ़ा को बुला लाओ ।

हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु अपने दिल में सोचने लगे की एक ही प्याला तो दूध है इस दूध का सब से ज़ियादा हकदार तो में था अगर मुझे मिल जाता तो मुझ को भूक की तकलीफ से कुछ राहत मिल जाती अब देखिए अस्हाबे सुफ़्फ़ा के आ जाने के बाद भला इस में से कुछ मुझे मिलता है या नहीं? इन के दिल में ये खयालात चक्कर लगा रहे थे । मगर अल्लाह व रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इताअत से कोई चारा न था । लिहाज़ा वो अस्हाबे सुफ़्फ़ा को बुला कर ले गए । ये सब लोग अपनी अपनी जगह कतार में बैठ गए फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु को हुक्म दिया की “तुम खुद ही इन सब लोगों को दूध पिलाओ” चुनांचे उन्हों ने सब को दूध पिलाना शुरू कर दिया जब सब के सब शिकम सेर हो गए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दस्ते रहमत से ये प्याला ले लिया और हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु की तरफ देख कर मुस्कुराए और फ़रमाया की अब सिर्फ हम और तुम बाकी रह गए हैं आओ बैठो और तुम पीना शुरू कर दो । इन होने पेट भर दूध पी कर प्याला रखना चाहा तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की और पीओ, चुनांचे इन्होने फिर पिया लेकिन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बार बार फरमाते रहे की और पीओ, यहाँ तक की हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मुझे उस ज़ात की कसम है जिस ने आप को हक के साथ भेजा है की अब मेरे पेट में बिलकुल ही गुंजाइश नहीं है । इस के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने प्याला अपने हाथ में ले लिया और जितना दूध बच गया था आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बिस्मिल्लाह पढ़ कर पी गए ये वो मोजिज़ा है जिस की तरफ इशारा करते हुए मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं की :

क्यूँ जनाबे बू हुरैरा कैसा था वो जामे शीर
जिस से सत्तर साहिबों का दूध से मुँह फिर गया

सांप का ज़हर उतर गया

हम हिजरत के बयान में तफ्सील से लिख चुके हैं की जब गारे सौर में हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु के पाऊं में सांप ने काट लिया और दर्दो कर्ब तकलीफ की शिद्दत से बे ताब हो कर रोपड़े तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के ज़ख्म पर अपना लुआबे दहन लगा दिया जिस फ़ौरन ही दर्द जाता रहा और सांप का ज़हर उतर गया ।

टूटी हुई टांग ठीक हो गई

बुख़ारीफ शरीफ की एक तवील हदीस में मज़कूर है की हज़रते अब्दुल्लाह बिन अतीक रदियल्लाहु अन्हु जब अबू राफे यहूदी को क़त्ल कर के वापस आने लगे तो उस के कोठे के जीने से गिर पड़े जिस से उन की टांग टूट गई और उन के साथी उन को उठा कर बारगाहे रिसालत हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में लाए, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन की ज़बान से अबू राफे के क़त्ल का सारा वाक़िआ सुना । फिर उन की टूटी हुई टांग पर अपना दस्ते मुबारक फेर दिया तो वो फ़ौरन ही अच्छी हो गई और ये मालूम होने लगा की उनकी टांग में कभी कोई चोट लगी ही नहीं थी ।

तलवार का ज़ख्म अच्छा हो गया

ग़ज़वए खैबर में हज़रते सलमाह बिन अक्वा रदियल्लाहु अन्हु की टांग में तलवार का ज़ख्म लग गया, वो फ़ौरन ही बारगाहे नुबुव्वत में हाज़िर हो गया । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के ज़ख्म पर तीन बार दम कर दिया फिर उन्हें दर्द की कोई शिकायत महसूस नहीं हुई सिर्फ ज़ख्म का निशान रह गया था ।

अन्धा, बीना रोशन हो गया

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में एक अन्धा हाज़िर हुआ और अपनी तकलीफ बयान करने लगा, आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अगर तुम्हारी ख्वाइश हो तो में दुआ कर दूँ अगर चाहो तो सब्र करो ये तुम्हारे लिए बेहतर है । उस ने दरख्वास्त की, के या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरी बीनाई रौशनी के लिए दुआ फरमा दीजिए । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की तुम अच्छी तरह वुज़ू कर के ये दुआ मांगों की “अल्लाह पाक” अपने रहमत वाले पैगम्बर के वसीले से मेरी हाजत पूरी कर दे, तिरमिज़ी और हाकिम की रिवायत में इतना ही मज़मून है मगर इब्ने हमबल और हाकिम की दूसरी रिवायत में इस के बाद ये भी है की उस अंधे ने ऐसा किया तो फ़ौरन ही अच्छा हो गया और उस की आँखों पर भरपूर रौशनी आ गई ।

गूंगा बोलने लगा

हज्जतुल विदा के मोके पर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में कबीलए “खस अम” की एक औरत अपने बच्चे को ले कर आई और कहने लगी की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! ये मेरा इकलौता बेटा बोलता नहीं है । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पानी तलब फ़रमाया और उस में हाथ धो कर कुल्ली फरमा दी और इरशाद फ़रमाया की ये पानी इस बच्चे को पिला दे और कुछ इस के ऊपर छिड़क दो । दूसरे साल वो औरत आई तो उस ने लोगों से बयान किया की उस का लड़का अच्छा हो गया और बोलने लगा ।

हज़रते क़तादा रदियल्लाहु अन्हु की आँख

जंगे उहद में हज़रते क़तादा बिन नोमान रदियल्लाहु अन्हु की आँख में एक तीर लगा जिस से इन की आँख रुखसार पर बह कर आ गई, ये दौड़ कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हो गए, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़ौरन ही अपने दस्ते मुबारक से इन की बही हुई आँख को आँख के हल्के में रख कर अपना मुकद्द्स हाथ उस पर फेर दिया तो उसी वक़्त इन की आँख अच्छी हो गई और ये आँख इन की दूसरी आँख से ज़ियादा खूबसूरत और रौशनी रही ।

एक रिवायत में ये भी आया है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की अगर तुम चाहो तो तुम्हारी आँख को तुम्हारे हल्काए चश्म में रख दूँ और वो अच्छी हो जाए और अगर तुम चाहो तो सब्र करो और तुम्हे इस के बदले पर जन्नत मिलेगी । इन्हों ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! जन्नत बिला शुबा बहुत ही बड़ी नेमत है मगर मुझे काना होना बहुत बुरा मालूम होता है इस लिए आप मेरी आँख अच्छी कर दीजिए और मेरे लिए जन्नत की दुआ भी फरमा दीजिए । हुज़ूर रहमतुल्लिल आलमीन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अपने इस जांनिसार पर प्यार आ गया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन की आँख को हल्काए चश्म में रख कर हाथ फेर दिया तो उन की आंख भी अच्छी हो गई और उन के लिए जन्नती होने की दुआ भी फरमा दी और ये दोनों नेमतों से सरफ़राज़ हो गए ।

फाएदा

ये मोजिज़ा बहुत ही मशहूर है और हज़रते क़तादा बिन नोमान रदियल्लाहु अन्हु की औलाद में हमेशा इस बात का तफ़ाख़ुर रहा की इन के जद्दे आला की आँख हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दस्ते मुबारक की बरकत से अच्छी हो गई । चुनांचे हज़रते क़तादा बिन नोमान रदियल्लाहु अन्हु के पोते हज़रते आसिम रदियल्लाहु अन्हु जब ख़लीफ़ए आदिल हज़रते उमर बिन अब्दुल, अज़ीज़ उमवी रदियल्लाहु अन्हु के दरबारे खिलाफत में पहुंचे तो उन्हों ने अपना तआरुफ़ कराते हुए अपना ये कता शेर पढ़ा की : में उस शख्स का बेटा हूँ की जिस की आँख उस के रुखसार पर निकल आई थी तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हथेली से वो अपनी जगह पर क्या ही अच्छी तरह से रख दी गई तो फिर वो जैसी पहली थी वैसी ही हो गई तो क्या ही अच्छी वो आँख थी और क्या ही अच्छा हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का उस आँख को उस की जगह रखना था।

कै, यानि उलटी में काला पिल्ला गिरा

एक औरत अपने बेटे को ले कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास आई और अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! मेरे इस बच्चे पर सुबह शाम जूनून का दौरा पड़ता है । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस बच्चे के सीने पर अपना दस्ते रहमत फेर दिया और दुआ दी तो उस बच्चे को एक ज़ोर दार कै, यानि उलटी हुई और एक काले रंग का कुत्ते का पिल्ला कै उलटी में गिरा जो दौड़ता फिर रहा था और बच्चा शिफयाब हो गया ।

जूनून अच्छा हो गया

हज़रते याला बिन मुर्राह रदियल्लाहु अन्हु बयान करते हैं की में ने एक सफर में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तीन मोजिज़ात देखे । पहला मोजिज़ा ये की एक ऊँट को देखा की उस ने बिलबिला कर अपनी गर्दन आप के सामने डाल दी । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस ऊँट के मालिक को बुलाया और उस से फ़रमाया की इस ऊँट ने काम की ज़ियादती और खुराक की कमी का मुझ से शिकवा किया है लिहाज़ा तुम इस के साथ अच्छा सुलूक करते रहो । दूसरा मोजिज़ा ये है की एक मंज़िल में आप सौ रहे थे तो में ने देखा की एक पेड़ चल कर आया और आप को ढांप लिया फिर लोट कर अपनी जगह पर चला गया । जब आप बेदार हुए और में ने आप से इस का ज़िक्र किया तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की उस पेड़ ने अपने रब से इजाज़त मांगी थी वो मुझे सलाम करे तो अल्लाह पाक ने उस को इजाज़त दे दी और वो मेरे सलाम के लिए आया था । तीसरा मोजिज़ा ये है की एक औरत अपने बच्चे को ले कर आई जो जुनून का मरीज़ था तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस बच्चे के नथने को पकड़ कर फ़रमाया की “निकल जा क्यूंकि में मुहम्मदुर रसूलुल्लाह हूँ” फिर हम वहां से चल पड़े और जब वापसी में हम उस जगह पहुंचे और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस औरत से उस के बच्चे के बारे में पूछा तो उस ने कहा की उस ज़ात की कसम जिस ने आप को हक के साथ भेजा है की आप के तशरीफ़ ले जाने के बाद इस बच्चे को कोई तकलीफ होते हुए हमने नहीं देखा ।

जला हुआ बच्चा अच्छा हो गया

मुहम्मद बिन हातिब रदियल्लाहु अन्हु एक सहाबी हैं ये बचपन में अपनी माँ की गोद से आग में गिर पड़े और कुछ जल गए, इन की माँ इन को ले कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में ले कर आईं तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना लुआबे दहन इन पर मलकर दुआ फरमा दी । मुहम्मद बिन हातिब रदियल्लाहु अन्हु की माँ कहती हैं की में बच्चे को ले कर वहां से उठने भी नहीं पाई थीं की बच्चे का ज़ख्म बिलकुल ही अच्छा हो गया ।

मरज़े निसयान दूर हो गया

तग़य्युरे अल्फ़ाज़ और चंद जुमलों की कमी बेशी के साथ बुखारी शरीफ की मुतअद्दिद रिवायतों में इस मोजिज़ों का ज़िक्र है की हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु ने अपने हाफ़िज़े की कमज़ोरी की शिकायत की तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन से फ़रमाया की अपनी चादर फैलाओ । उन्हों ने फैलाया, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपना दस्ते मुबारक उस चादर पर डाला फिर फ़रमाया की अब इस को समेट लो । हज़रते अबू हुरैरा रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की में ने ऐसा ही किया इस के बाद से फिर में कोई बात नहीं भूला ।

कुरेश पर कहत का अज़ाब

जब कुफ्फारे कुरेश हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और आप के सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम पर बे पनाह मज़ालिम ढाने लगे जो ज़ब्त व बर्दाश्त से बाहर थे तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन शरीरों की सरकशी का इलाज करने के लिए उन लोगों के हक में कहत की दुआ फ़रमा दी । चुनांचे अल्लाह पाक ने उन लोगों पर कहत का ऐसा अज़ाबे शदीद भेजा की अहले मक्का सख्त मुसीबत में मुब्तला हो गए यहाँ तक की भूक से बे ताब हो कर मुर्दार जानवर की हड्डियां और सूखे चमड़े उबाल उबाल कर खाने लगे । बिल आखिर इस के सिवा कोई चारा नज़र नहीं आया की रहमतुलिल्ल आलमीन हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाहे रहमत का दरवाज़ा खट खटाएं और उन के हुज़ूर में अपनी फर्याद पेश करें । चुनांचे अबू सुफियान बा हालते कुफ्र चंद रूसाए कुरेश के साथ ले कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाज़िर हुए और गिड़गिड़ा कर कहने लगे की ऐ मुहम्मद ! (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) तुम्हारी कोम बर्बाद हो गई खुदा से दुआ करो की ये कहत का अज़ाब टल जाए । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उन लोगों की बे करारी और गिरया व ज़ारी पर रहम आ गया । चुनांचे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुआ के लिए हाथ उठाए फ़ौरन ही आप की दुआ मकबूल हुई और इस कदर ज़ोर दार बारिश हुई की सारा अरब सेराब हो गया और अहले मक्का को कहत के अज़ाब से निजात मिली ।

सरदाराने कुरेश की हलाकत

एक बार हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सहने हरम में नमाज़ पढ़ रहे थे की कुफ्फारे कुरेश के चंद सरकश शरीरों ने बा हालते नमाज़ आप की मुकद्द्स गर्दन पर एक ऊँट की ओझड़ी ला कर डाल दी और खूब ज़ोर ज़ोर से हसने लगे और मारे हसीं के एक दूसरे पर गिरने लगे । हज़रते फातिमा रदियल्लाहु अन्हा ने आ कर उस ओझड़ी को आप की पुश्ते अनवर से उठाया । जब आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सजदे से सर उठाया तो उन शरीरों का नाम ले ले कर नाम बा नाम ये दुआ मांगी की या अल्लाह ! तू इन सभी को अपनी गिरफ्त में पकड़ ले । चुनांचे से सब के सब जंगे बद्र में इंतिहाई ज़िल्ल्त के साथ क़त्ल हो कर हलक हो गए ।


मदीने की आबो हवा अच्छी हो गई

पहले मदीने की आबो हवा अच्छी न थी । वहां किस्म किस्म की वबाओं का असर था । चुनांचे हिजरत के बाद अक्सर मुहाजिरीन बीमार पड़ गए और बीमारी की हालत में अपने वतन मक्का को याद कर के पुर दर्द लहजे में अशआर पढ़ा करते थे । आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगों का ये हाल देख कर ये दुआ फ़रमाई की इलाही ! मदीने को भी हमारे लिए महबूब कर दे जैसा की मक्का महबूब है बल्कि इस से भी ज़ियादा महबूब बना दे । इलाही ! हमारे सआ और मुद , में बरकत दे और मदीने को हमारे लिए सेहत बख्श बना दे और यहाँ के बुखार को “ज़ुह्फ़ा” में भेज दे । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआ हर्फ़ बा हर्फ़ मकबूल हुई और मुहाजिरीन को शहर मदीना से ऐसी उल्फत और वालिहाना मुहब्बत हो गई की वो हज़रते अबू बक्र व हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अनहुमा जो चंद रोज़ पहले मदीने की बिमारियों से घबरा उठे थे और अपने वतन मक्का की याद में खून रुलाने वाले अशआर गया करते थे । अब मदीने के ऐसे आशिक बन गए की फिर कभी भूल कर भी मक्का की सुकूनत का नाम नहीं लिया और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह पाक ने ख्वाब में ये दिखला दिया की मदीने की वबाएँ मदीने से दफा खत्म हो गईं और मदीने की आबो हवा सेहत बख्श हो गई ।

उम्मे हिराम के लिए दुआए शहादत

एक रोज़ हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते बीबी उम्मे हिराम रदियल्लाहु अन्हा के मकान में खाने के बाद कैलूला (कुछ देर के लिए दोपहर का खाना खा कर सो जाना) फरमा रहे थे की अचानक हसंते हुए नींद से बेदार हुए हज़रते बीबी उम्मे हिराम रदियल्लाहु अन्हा ने हंसी की वजह मालूम की तो इरशाद फ़रमाया की मेरी उम्मत में मुजाहिदीन का एक गिरोह मेरे सामने पेश किया गया जो जिहाद की गरज़ से दरिया में कश्तियों पर इस तरह बैठा हुआ सफर करेगा जिस तरह तख़्त पर बादशाह बैठे रहा करते हैं । ये सुन कर उन्हों ने दरख्वास्त की के हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! दुआ फरमा दीजिए की में भी उन मुजाहिदीन के गिरोह में शामिल रहूँ । आप ने दुआ फरमा दी चुनांचे हज़रते अमीरे मुआविया रदियल्लाहु अन्हु के ज़माने में जब बहरी जंग का सिलसिला शुरू हुआ तो हज़रते बीबी उम्मे हिराम रदियल्लाहु अन्हा भी मुजाहिदीन की इस जमात के साथ कश्ती पे सवार हो कर रवाना हुईं और दरिया से निकल कर जब खुश्की पर आईं तो सवारी से गिर कर शहीद हो गईं इस तरह आप ने शहादत का शरफ़ हासिल किया ।

सत्तर साल का जवान

हज़रते अबू क़तादा सहाबी रदियल्लाहु अन्हु के हक में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये दुआ फरमा दी की यानि फलाह वाला हो जाए तेरा चेहरा या अल्लाह ! इस के बाल और इस की खाल में बरकत दे । हज़रते अबू क़तादा रदियल्लाहु अन्हु ने सत्तर साल की उमर पा कर वफ़ात पाई मगर इन का एक बाल भी सफेद नहीं हुआ था न बदन में झुर्रियां पड़ीं थीं, चेहरे पर जवानी की ऐसी रोकन थी की गोया अभी पन्दरह साल के जवान हैं ।

औलाद में बरकत की दुआ

हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु की बीवी हज़रते उम्मे सुलैम रदियल्लाहु अन्हा बड़ी होशमंद और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की निहायत ही जांनिसार थीं इन का बच्चा बीमार हो गया और हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु घर से बाहर ही थे की बच्चे का इन्तिकाल हो गया । हज़रते उम्मे सुलैम रदियल्लाहु अन्हा ने बच्चे को अलग मकान में लिटा दिया और जब हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु मकान में दाखिल हुए और बीवी से पूछा की बच्चा कैसा है? बीवी ने जवाब दिया की उस का साँस ठहर गया है मुझे उम्मीद है की वो आराम पा गया है हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु ने ये समझा की वो अच्छा है । चुनांचे दोनों मियां बीवी एक ही बिस्तर पे सोए लेकिन जब सुबह को अबू तल्हा ग़ुस्ल कर के मस्जिदे नबवी में नमाज़ फजर के लिए जाने लगे तो बीवी ने बच्चे की मोत का हाल सुना दिया । हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु ने रात का सारा माजरा बारगाहे नुबुव्वत में अर्ज़ किया तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की मुझे उम्मीद है की अल्लाह पाक तुम्हारी आज की रात में बरकत अता फरमाएगा । चुनांचे उस रत की बरकत मुक़र्ररा महीने के बाद ज़ाहिर हुई की हज़रते अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु के फ़रज़न्द हज़रते अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु पैदा हुए और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को अपनी गोद में बिठा कर और अज़वा खजूर को चबा कर उन के मुँह में डाला और उन के चेहरे पर अपना दस्ते रहमत फिरा दिया और अब्दुल्लाह नाम रखा । एक अंसारी हज़रते इबाया बिन रिफाआ रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की दुआए नबवी की बरकत का ये असर हुआ की में ने अबू तल्हा रदियल्लाहु अन्हु की नो 9, औलादों को देखा जो सब के सब कुरआन शरीफ के कारी थे ।

हज़रते जरीर रदियल्लाहु अन्हु के हक में दुआ

हज़रते जरीर बिन अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हा सहाबी घोड़े की पीठ पर जम कर बैठ नहीं सकते थे हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन को “ज़ुल खलसा” के बुत खाने को तोड़ने के लिए भेजना चाहा तो उन्हों ने यही उज़्र पेश किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में घोड़े की पीठ पर जम कर बैठ नहीं सकता । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के सीने पर हाथ मारा और ये दुआ फ़रमाई की “या अल्लाह ! इस घोड़े पर जमकर बैठने की क़ुव्वत अता फरमा और इस को हादी व मेहदी बना” इस दुआ के बाद हज़रते जरीर रदियल्लाहु अन्हु घोड़े पर सवार हुए और कबीलए अहमस के एक सौ पचास सवारों का लश्कर ले कर गए और उस बुत खाने को तोड़ फोड़ कर जला डाला और मुज़ाहमत कर ने वाले कुफ्फार को भी क़त्ल कर डाला जब वापस आए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन के लिए और कबीलए अहमस के लिए दुआ फ़रमाई ।

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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