हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 41)

कबीलए दौस का इस्लाम

हज़रते तुफैल दौसी रदियल्लाहु अन्हु अपने चंद साथियों के साथ बारगाहे अक़दस में हाज़िर हुए और अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! कबीलए दौस ने इस्लाम की दावत कबूल करने से इंकार कर दिया, लिहाज़ा आप उस कबीले की हलाकत के लिए दुआ फरमा दीजिए । लोगों ने आपस में ये कहना शुरू कर दिया की अब आप की दुआए हलाकत से ये कबीला हलाक हो जाएगा । लेकिन रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कबीलए दौस के लिए ये रहमत भरी दुआ फ़रमाई की इलाही तू ! कबीलए दौस को हिदायत दे और उन को मेरे पास ला । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ये दुआ कबूल हुई । चुनांचे पूरा कबीला मुस्लमान हो कर बारगाहे रिसालत में हाज़िर हप गया ।

एक तकब्बुर करने वाले का अंजाम

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने एक शख्स बाएं हाथ से खाने लगा, हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की दाएं हाथ से खाओ उस ने गुरूर से कहा में दाएं हाथ से नहीं खा सकता । चूँकि उस मगरूर ने घमंड से ऐसा कहा था इस लिए आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की “खुदा करे ऐसा ही हो” चुनांचे इस के बाद ऐसा ही हुआ की वो अपने हाथ को उठा कर वाकई अपने मुँह तक नहीं ले जा सकता था ।

मुरदे ज़िंदा हो गए

अल्लाह पाक के हुक्म से मुर्दों को ज़िंदा कर देना ये हज़रते ईसा अलैहिस्सलाम का एक बहुत ही मशहूर मोजिज़ा है मगर चूँकि अल्लाह पाक ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तमाम अम्बिया के मोजिज़ात का जामे बनाया है इस लिए हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को भी इस मोजिज़ें के साथ सरफ़राज़ फ़रमाया है । इस किस्म के चंद मोजिज़ात अहादीस और सीरते नबविया की किताबों में मौजूद हैं ।

लड़की कब्र से निकल आई

रिवायत है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक शख्स को इस्लाम की दावत दी तो उस ने कहा की में उस वक़्त तक आप पर ईमान नहीं ला सकता जब तक की मेरी मुर्दा बच्ची ज़िंदा न हो जाए । उस ने अपनी लड़की की कब्र दिखाई । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमने उस लड़की का नाम ले कर पुकारा तो उस लड़की ने कब्र से निकल कर जवाब दिया की ऐ हुज़ूर ! में आप के दरबार में हाज़िर हूँ । फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस लड़की से फ़रमाया क्या तुम फिर इस दुनिया में लोट कर आना पसंद करती हो? लड़की ने जवाब दिया की नहीं, या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में ने अल्लाह पाक को अपने माँ बाप से ज़ियादा महरबान और आख़िरत को दुनिया से बेहतर पाया ।

पकी हुई बकरी ज़न्दा हो गई

हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु ने एक बकरी ज़िबाह कर के उस का गोश्त पकाया और रोटियों का चूरा कर के सरीद बनाया और उस को को बारगाहे रिसालत में ले कर हाज़िर हुए । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने उस को तनावुल फ़रमाया जब सब लोग खाने से फारिग हो गए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने तमाम हड्डियों को एक बर्तन में जमा फ़रमाया और उन हड्डियों पर अपना दस्ते मुबारक रख कर कुछ कलमात इरशाद फरमा दिए तो ये मोजिज़ा ज़ाहिर हुआ की वो बकरी ज़िंदा हो कर खड़ी हो गई और दुम हिलाने लगी फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की ऐ जाबिर ! तुम अपनी बकरी अपने घर ले जाओ । चुनांचे हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु जब उस बकरी को ले कर मकान में दाखिल हुए तो उन की बीवी ने हैरान हो कर पूछा की ये बकरी कहाँ से आ गई? हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु ने कहा की हम ने अपनी इस बकरी को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए ज़िबह किया था, उन्हों ने अल्लाह से दुआ मांगी तो अल्लाह पाक ने इस बकरी को ज़िंदा फरमा दिया । ये सुन कर उन की बीवी ने बुलंद आवाज़ से “कलमए शहादत” पढ़ा, इस हदीस को जलीलुल कदर मुहद्दिस अबू नुऐम ने रिवायत किया है और मशहूर हाफिज़ुल हदीस मुहम्मद बिन अल मुनज़िर ने भी “किताबुल अजाइब वल गराइब” में इस हदीस को नकल फ़रमाया है ।

जिन्नो ने इस्लाम की तरग़ीब दिलाई

हज़रते सवाद बिन कारिब रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की एक जिन्न मेरा ताबे फरमा बरदार हो गया था । वो आइंदा की खबरें मुझे दिया करता था और में लोगों को वो खबरें बता कर नज़राने वुसूल किया करता था । एक बार उस जिन्न ने मुझे आ कर जगाया और कहा की उठ और होश में आ, अगर तुझ को कुछ शऊर है तो चल बनी हाशिम के सरदार के दरबार में हाज़िर हो कर उन का दीदार कर जो लुई बिन ग़ालिब की औलाद में पैगबर हो कर तशरीफ़ लाए हैं हज़रते सवाद बिन कारिब रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की मुसलसल तीन रातें ऐसी ही गुज़रीं की मेरा ये जिन्न मुझे नीद से जगा जगा कर बराबर यही कहता रहा यहाँ तक की मेरे दिल में इस्लाम की उल्फत व मुहब्बत पैदा हो गई और में अपने घर से रवाना हो कर मक्का शरीफ में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाज़िर हो गया । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे देख कर “खुश आमदीद” कहा और फ़रमाया की में जनता हूँ की किस सबब से तुम यहाँ आए हो । में ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! में ने आप की मदाह में एक कसीदा कहा है पहले आप उस को सुन लीजिए । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की पढ़ो चुनांचे में ने अपना क़सीदए बाईया जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तारीफ में नज़्म किया था पढ़ कर रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सुनाया उस कसीदे का आखिरी शेर ये है की : आप उस दिन मेरे शफ़ाअत करने वाले बन जाइए जिस दिन आप के सिवा सवाद बिन कारिब की न कोई शफ़ाअत करने वाला होगा न कोई नफा पहुंचाने वाला होगा । इस हदीस को इमाम बहकी ने रिवायत फ़रमाया है ।

जिन्नो का सलाम व पैगाम

इब्ने साद ने जाद बिन कैस मुरादी से रिवायत की है की हम चार आदमी हज का इरादा कर के अपने वतन से रवाना हुए । यनम के एक जंगल में हम लोग चल रहे थे की अचानक अशआर पढ़ने की आवाज़ आई हम ने उन अशआर को गौए से सुना तो उन का मज़मून ये था की ऐ सवारों ! जब तुम लोग ज़मज़म और हतीम पर पहुचों तो हज़रत मुहम्मद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खिदमत में हमारा सलाम अर्ज़ कर देना जिन को अल्लाह पाक ने अपना रसूल बना कर भेजा है और हमारा ये पैगाम भी पंहुचा देना की हम आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीन के फरमा बरदार हैं क्यूंकि हज़रते मसीह बिन मरयम अलैहिस्सलाम ने लोगों को इस बात की वसीयत फ़रमाई थी । यकीनन ये यमन के जंगल में रहने वाले जिन्नो की आवाज़ थी ।

जिन्न सांप की शक्ल में आया

खतीब हज़रते जाबिर बिन अब्दुल्लाह रदियल्लाहु अन्हु से रावी हैं की हम लोग एक सफर में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के साथ थे । आप एक खजूर के पेड़ के नीचे तशरीफ़ फरमा थे की बिलकुल ही अचानक एक बहुत बड़े काले सांप ने आप की तरफ रुख किया, लोगों ने उस को मार डालने का इरादा किया लेकिन आप ने फ़रमाया की इस को मेरे पास आने दो । जब ये आप के पास पंहुचा तो अपना सर आप के कानो के पास कर दिया । फिर आप ने उस सांप के मुँह के करीब अपना मुँह कर के चुपके चुपके कुछ इरशाद फ़रमाया इस के बाद उसी जगह यकबारगी वो सांप इस तरह गाइब हो गया की गोया ज़मीन उस को निगल गई । हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की हम लोगों ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! आप ने सांप को अपने कानो तक पहुंचने दिया ये मंज़र देख कर हम लोग डर गए की कहीं ये सांप आप को काट न ले । हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की ये सांप नहीं था बल्कि जिन्नो की जमात का भेजा हुआ एक जिन्न था । फुलां सूरह में से कुछ आयतें ये भूल गया । उन आयतों को मालूम करने के लिए जिन्नो ने उस को मेरे पास भेजा था । में ने उस को वो आयतें बता दीं और वो उन को याद करता हुआ चला गया ।

अंगुश्ते मुबारक की नहरें

अहादीस की तलाश व जुस्तुजू से पता चलता है की आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुबरक उँगलियों से तकरीबन 13, तेराह मवाक़े पर पानी की नहरें जारी हुईं । इन में से सिर्फ एक मोके का ज़िक्र यहाँ करते हैं । सं 6, हिजरी में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उमराह का इरादा कर के मदीना शरीफ से मक्का मुकर्रमा के लिए रवाना हुए और हुदैबिया के मैदान में उतर पड़े । आदमियों की कसरत की वजह से हुदैबिया का कुँआ खुश्क हो गया और हाज़रीन पानी के एक एक क़तरे के लिए मुहताज हो गए । उस वक़्त रहमते आलम हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का दरियाए रहमत में जोश आ गया और आप ने एक बड़े प्याले में अपना दस्ते मुबारक रख दिया तो आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की मुबरक उँगलियों से इस तरह पानी की नहरें जारी हो गईं की 1500, पन्दरह सौ का लश्कर सेराब हो गया । लोगों ने वुज़ू व ग़ुस्ल भी किया, जानवरों को भी पिलाया तमाम मश्कों और बर्तनो को भी भर लिया । फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने प्याले में से दस्ते मुबारक को उठा लिया और पानी खत्म हो गया । हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु से लोगों ने पूछा की उस वक़्त तुम लोग कितने आदमी थे? तो उन्हों ने फ़रमाया की हम लोग पन्दरह सौ की तादाद में थे मगर पानी इस कदर ज़ियादा था की अगर हम लोग एक लाख भी होते तो सब को ये पानी काफी हो जाता । ये हदीस बुखारी शरीफ में भी है और हज़रते जाबिर रदियल्लाहु अन्हु के अलावा हज़रते अनस व हज़रते बरा बिन आज़िब रदियल्लाहु अन्हुमा की रिवायतों से भी उँगलियों से पानी की नहरें जारी होने की हदीसें मरवी हैं आप मुलाहज़ा फरमा सकते हैं । सुब्हान अल्लाह ! इसी हसीं मंज़र की तस्वीर कशी करते हुए मुजद्दिदे आज़म सय्यदी सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रहमतुल्लाह तआला अलैह फरमाते हैं की :

उँगलियाँ हैं फ़ैज़ पर टूटे हैं प्यासे झूम कर
नद्दियां पंजाबे रहमत की हैं जारी वाह वाह

ज़मीन ने लाश को बाहर फेंक दिया

एक नसरानी मुसलमान हो कर दरबारे नुबुव्वत में रहने लगा । सूरह बकरा और सूरह आले इमरान पढ़ चुका था । खुश बख्त कातिब था इस लिए उस को “वही” लिखने की खिदमत सौंप दी गई । मगर ये बद नसीब फिर काफिर व मुरतद हो कर कुफ्फार से जा मिला और कहने लगा की नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बस इतना ही इल्म रखते हैं जितना में उन को लिख कर दे दिया करता था । कहरे इलाही ने इस गुस्ताख़ को अपनी गिरफ्त में पकड़ लिया और ये मर गया । नसरानियों ने इस को दफन किया मगर ज़मीन ने इस की लाश को बाहर फेंक दिया नसरानियों ने गहरी कब्र खोद कर तीन बार इस को दफन किया मगर हर बार ज़मीन ने इस की लाश को बाहर फेंक दिया । चुनांचे नसरानियों ने भी इस बात का यकीन कर लिया की इस की लाश को ज़मीन के बाहर निकाल फेंकना ये किसी इंसान का काम नहीं है इस लिए उन लोगों ने इस की लाश को ज़मीन पर डाल दिया ।

जंगे खनदक की आंधी

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की पुरवा हवा से मेरी मदद की गई और कोमे आद पछाऊँ हवा से हलाक की गई ।
इस का वाक़िआ ये है की ग़ज़वए खंदक में कबाईले कुरेश व गतफान और कुरेज़ा व बनी नज़ीर के यहूद और दूसरे मुशरिकीन ने मुत्तहिद अफ़वाज के दल बादल लश्करों के साथ मदीने पर चढ़ाई कर दी और मुसलमानो ने मदीने के गिर्द खंदक खोद कर उन अफ़वाज के हमलों से पनाह ली तो उन शैतानी लश्करों ने मदीने का ऐसा सख्त मुहासरा कर लिया की मदीने के अंदर मदीने के बाहर से एक गेहूं का दाना और एक क़तरा पानी का जाना मुहाल हो गया था । सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम इन मसाइबो शदाइद से गो परेशान हाल थे मगर उन के जोशे ईमानी के इस्तक़लाल में बाल बराबर फर्क नहीं आया था । ठीक इसी हालत में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का ये मोजिज़ा ज़ाहिर हुआ की पूरब की तरफ से एक ऐसी ज़ोर दार आंधी आई जिस में कड़ाके का जाड़ा भी था और उस में शिद्दत के झोंके और झटके थे की गरदो गुबार का बादल छा गया । कुफ्फार की ऑंखें धूल और कंकरियों से भर गईं, इन के चूलुहों की आग बुझ गई और बड़ी बड़ी देंगें चूलोंह से उल्ट पलट कर दूर तक लुढ़कती हुईं चली गईं, खेमे की मेखें उखड़ गईं और खेमे उड़ उड़ कर फट गए, घोड़े एक दूसरे से टकरा कर लड़ने लगे, गरज़ ये आंधी कुफ्फार के लिए एक ऐसा अज़ाबे शदीद बन कर उन पर मुसल्लत हो गई की कुफ्फार के कदम उठड़ गए उन की कमरे हिम्मत टूट गई और वो फरार पर मजबूर हो गए और बद हवासी के आलम में सर पर पैर रख कर भाग निकले ।

मूए मुबरक यानि बाल को आग जला न सकी

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मोजिज़ात में बहुत से ऐसे वाक़िआत हैं की आग उन चीज़ों को न जला सकी जिन को आप की ज़ात से कोई तअल्लुक़ रहा हो । चुनांचे क़ुतबुद्दीन कस्तलानी रहमतुल्लाह अलैह ने “जुमलुल इजाज़ी फिल ऐजाज़” में लिखा है की वो आग जो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की खबरे ग़ैब के मुताबिक 654, हिजरी में मदीना शरीफ के पास एक कबीलए क़ुरैज़ा की पहाड़ियों से नमूदार हुई वो पथ्थरों को जला देती थी और कुछ पथ्थरों को गला देती थी । ये आग जब बढ़ते बढ़ते हरमे मदीना के करीब एक पथ्थर के पास पहुंची जिस का आधा हिस्सा हरमे मदीना में दाखिल था और आधा हिस्सा हरमे मदीने से ख़ारिज था तो पथ्थर का जो हिस्सा खारिजी हरम था उस को उस आग ने जला दिया लेकिन जब उस निस्फ़ हिस्से तक पहुंची जो हरमे मदीने में दाखिल था तो फ़ौरन ही वो आग बुझ गई ।

इसी तरह इमाम कुरतबी रहमतुल्लाह अलैह ने तहरीर फ़रमाया है की वो आग मदीना शरीफ के करीब से ज़ाहिर हुई और दरिया की तरह मौज मारती हुई यमन के एक गाऊं तक पहुँच गई और उस को जला कर राख कर दिया मगर मदीना शरीफ की जानिब उस आग में से ठंडी ठंडी नसीमे सुब्ह जैसी हवाएं आती थीं । इसी तरह “नसीमुर रियाज़” में लिखा है की “अदीम बिन ताहिर अल्वी” के पास चौदह मुए मुबारक थे उन्हों ने उन को अमीरे हलब के दरबार में पेश किया । अमीरे हल्ब ने खुश हो कर इस मुकद्द्स तोहफे को कबूल किया और अल्वी साहिब की इंतिहाई ताज़ीम तकरीम करते हुए उन को इनआमों इकराम से माला माल कर दिया लेकिन इस के बाद जब दोबारा अल्वी साहिब अमीरे हल्ब के दरबार में गए तो अमीर ने तेवर चढ़ा कर बहुत ही तुर्श रोइ के साथ बात की और उन की तरफ से निहायत ही बे इल्तिफ़ाति बे तवज्जुह ही के साथ मुँह फेर लिया । अल्वी साहब ने इस बे तवज्जुह ही के बारे में पूछा तो अमीरे हल्ब ने कहा की में ने लोगों की ज़बान से सुना है की तुम जो मूए मुबारक (बाल) मेरे पास लाए थे उन की कुछ असल और कोई सनद नहीं है । अल्वी साहब ने कहा की आप उन मुकद्द्स बालों को मेरे सामने लाओ । जब वो आ गए तो उन्हों ने आग मंगवाई और मूए मुबरक जलती हुई आग में डाल दिए पूरी आग जल कर राख हो गई मगर मूए मुबारक पर आंच तक नहीं आई बल्कि आग के शोलो में मूए मुबरक की चमक दमक और ज़ियादा निखर गई । ये मंज़र देख कर अमीरे हल्ब ने अल्वी साहब के कदमो का बोसा लिया और फिर इस कदर इनआमों इकराम से अल्वी साहब को नवाज़ा की अहले दरबार उन के ऐजाज़ व वकार को देख कर हैरान रह गए ।

इसी तरह हज़रते अनस रदियल्लाहु अन्हु के दस्तर ख्वान की रिवायत मशहूर है की चूँकि इस दस्तर ख्वान से हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने दस्ते मुबारक और रूए अक़दस को साफ़ कर लिया था इस लिए ये दस्तर ख्वान आग के जलते हुए तन्नूर में डाल दिया जाता था मगर आग इस को नहीं जलाती थी बल्कि इस को साफ़ सुथरा कर देती थी ।

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चंद खसाइसे कुबरा
  1. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पैदाइश के ऐतिबार से “अव्वलुल अम्बिया” होना जैसा की हदीस शरीफ में आया है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस वक़्त शरफ़े नुबुव्वत से सरफ़राज़ हो चुके थे की जब आदम अलैहिस्सलाम जिस्म व रूह की मंज़िल से गुज़र रहे थे ।
  2. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का आखरी नबी होना ।
  3. तमाम मखलूक आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए पैदा हुई ।
  4. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मुकद्द्स नाम अर्श और जन्नत की पेशानियों पर तहरीर किया गया है ।
  5. तमाम आसमानी किताबों में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बशारत दी गई ।
  6. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की विलादत के वक़्त तमाम बुत औंधें हो कर गिर पड़े ।
  7. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का शके सद्र यानि आप का सीना मुबारक चाक किया गया ।
  8. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मेराज का शरफ़ अता किया गया और आप की सवारी के लिए बुराक पैदा किया गया ।
  9. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर नाज़िल होने वाली किताब तब्दील व तहरीफ़ से महफूज़ कर दी गई है और क़यामत तक इस की बका व हिफाज़त की ज़िम्मेदारी अल्लाह पाक ने अपने ज़िम्मे ले ली है ।
  10. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को आयतुल कुर्सी अता की गई ।
  11. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तमाम ज़मीन के ख़ज़ानों की कुंजियाँ अता कर दी गईं ।
  12. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को जवामिउल कलम के मोजिज़ें से सरफ़राज़ किया गया ।
  13. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को रिसालते आम्मा के शरफ से मुमताज़ किया गया ।
  14. (आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तस्दीक के लिए मोजिज़ाए शक्कुल कमर ज़ुहूर में आया ।
  15. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए माले गनीमत को अल्लाह पाक ने हलाल फ़रमाया ।
  16. तमाम रूए ज़मीन को अल्लाह पाक ने आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के लिए मस्जिद और पाकी हासिल करने (तयम्मुम) का सामान बना दिया ।
  17. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुछ मोजिज़ात कुरान शरीफ कयामत तक बाकी रहेंगें ।
  18. अल्लाह पाक ने तमाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम को उन का नाम ले कर पुकारा मगर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अच्छे अच्छे अलक़ाब से पुकारा ।
  19. अल्लाह पाक ने आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को “हबीबुल्लाह” के मुअज़्ज़ज़ लक़ब से सरफ़राज़ किया ।
  20. अल्लाह पाक ने आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की रिसालत, आप की हयात, आप के शहर, आप के ज़माने की कसम याद फ़रमाई ।
  21. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तमाम औलादे आदम के सरदार हैं ।
  22. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह पाक के दरबार में अकरमुल ख़ल्क़ हैं ।
  23. कब्र में आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ात के बारे में मुनकरो नकीर सवाल करेंगें ।
  24. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद आप की अज़्वाजे मुतह्हिरात रदियल्लाहु अन हुन्ना के साथ निकाह हराम है ।
  25. हर नमाज़ी पर वाजिब कर दिया गया की बा हालते नमाज़ आप “अस्सलामु अलाईका अय्यू हन्नबी” कह कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सलाम करे ।
  26. अगर किसी नमाज़ी को बा हालते नमाज़ आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पुकारें तो वो नमाज़ छोड़ कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पुकार पर दौड़ पड़े ये उस पर वाजिब है और ऐसा कर ने से उस की नमाज़ फ़ासिद भी नहीं होगी ।
  27. अल्लाह पाक ने अपनी शरीअत का आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मुख़्तार बना दिया है, जिस के लिए जो चाहें हलाल फरमा दें और जिस के लिए जो चाहें हराम फरमा दें ।
  28. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मिम्बर और कब्र शरीफ के बीच की ज़मीन जन्नत के बागो में से एक बाग़ है ।
  29. सूर फूंकने पर सब से पहले आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपनी कब्रे अनवर से बाहर तशरीफ़ लाएंगें ।
  30. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मक़ामे महमूद अता किया गया ।
  31. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के शफ़ाअते कुबरा के ऐजाज़ से नवाज़ा गया ।
  32. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कयामत के दिन “लिवाउल हम्द” अत किया गया ।
  33. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सब से पहले जन्नत में दाखिल होंगें ।
  34. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हौज़े कौसर अत किया गया ।
  35. कयामत के दिन हर शख्स का नसब व तअल्लुक़ खत्म हो जाएगा मगर आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नसब खत्म नहीं होगा ।
  36. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सिवा किसी नबी के पास हज़रते इस्राफील अलैहिस्सलाम नहीं उतरेंगें ।
  37. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दरबार में बुलंद आवाज़ से बोलने वाले के आमाले सालिहा बरदाब कर दिए जाते हैं ।
  38. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के हुजरे के बाहर से पुकारना हराम कर दिया गया है ।
  39. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अदना सी गुस्ताखी करने वाले की सज़ा क़त्ल है ।
  40. आप हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तमाम अम्बिया अलैहिमुस्सलाम से ज़ियादा मोजिज़ात अता के गए ।
रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

Share this post