हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 8)

हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी (Part- 8)

कुफ्फार का सिपह सालार मारा गया

कुफ्फार का सिपह सालार उतबा बिन रबीआ अपने सीने पर शुतुर मुर्ग का पर लगाए हुए अपने भाई शैबा बिन रबीआ और अपने बेटे वलीद बिन उतबा को साथ ले कर गुस्से में भरा हुआ अपनी सफ से निकल कर मुकाबले की दावत देने लगा इस्लामी सफों में से हज़रते ओफ़ व हज़रते मुआज़ व अब्दुल्लाह बिन रवाहा रदियल्लाहु अन्हुम मुकाबले को निकले | उतबा ने इन लोगों का नाम व नसब पूछा, जब मालूम हुआ की ये लोग अंसारी हैं तो उतबा ने कहा की हम को तुम लोगों से कोई गरज़ नहीं फिर उतबा ने चिल्ला कर कहा ऐ मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ये लोग हमारे जोड़ के नहीं हैं अशराफे कुरेश को हम से लड़ने के लिए मैदान में भेजिए |

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते हम्ज़ा व हज़रते अली व हज़रते उबैदा रदियल्लाहु अन्हुम को हुक्म दिया की आप लोग इन तीनो के मुकाबले के लिए निकले | चुनांचे ये तीनो बहादुराने इस्लाम मैदान में निकले चूँकि ये तीनो हज़रात सर पर खोद पहने हुए थे जिस से इन के चेहरे छुप गए थे इस लिए उतबा ने इन हज़रात को नहीं पहचाना और पूछा की तुम कौन लोग हो? जब इन तीनो ने अपने अपने नाम व नसब बताए तो उतबा ने कहा की “हाँ अब हमारा जोड़ है” जब इन लोगों में जंग शुरू हुई तो हज़रते हम्ज़ा व हज़रते अली व हज़रते उबैदा रदियल्लाहु अन्हु ने अपनी ईमानी शुजाअत का ऐसा मुज़ाहरा किया की बद्र की ज़मीन दहल गई और कुफ्फार के दिल थर्रा गए और इन की जंग का अंजाम ये हुआ की हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने उतबा का मुकाबला किया, दोनों इंतिहाई बहादुरी के साथ लड़ते रहे मगर आखिर कार हज़रते हम्ज़ा रदियल्लाहु अन्हु ने अपनी तलवार के वार से मार मार कर उतबा को ज़मीन पर ढेर कर दिया |

वलीद ने हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु से जंग की, दोनों ने एक दूसरे पर बढ़ बढ़ कर कातिलाना हमला किया और खूब लड़े लेकिन असदुल्लाहिल ग़ालिब की ज़ुल्फ़िकार ने वलीद को मार गिराया और वो ज़िल्लत के साथ क़त्ल हो गया मगर उतबा के भाई शैबा ने हज़रते उबैदा रदियल्लाहु अन्हु को इस तरह ज़ख़्मी कर दया की वो ज़ख्मो की ताब न लाकर ज़मीन पर बैठ गए | ये मंज़र देख कर हज़रते अली रदियल्लाहु अन्हु झपटे और आगे बढ़ कर शैबा को क़त्ल कर दिया और हज़रते उबैदा रदियल्लाहु अन्हु को अपने कन्धों पर बिठा कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पास लाए | उन की पिंडली टूट लकर चूर चूर हो गई थी और नली का गूदा बह रहा था, इस हालत में अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! क्या में शहादत से महरूम रहा? इरशाद फ़रमाया के नहीं, हर गिज़ नहीं! बल्कि तुम शहादत से सरफ़राज़ हो गए | हज़रते उबैदा रदियल्लाहु अन्हु ने कहा की रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! अगर आज मेरे चचा अबू तालिब ज़िंदा होते तो वो मान लेते की उनके इस शेर का मिस्दाक़ में हूँ की: यानि हम मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को उस वक़्त दुश्मनो के हवाले करेंगे जब हम इन के गिर्द लड़ लड़ कर पछाड़ दिए जाएंगे और हम अपने बेटों और बीवियों को भूल जाएंगें |

हज़रते ज़ुबेर की तारीखी बरछी

इस के बाद सईद बिन अल आस का बेटा “उबैदा” सर से पाऊं तक लोहे के लिबास और हथियारों से छुपा हुआ सफ से बाहर निकला ये कह कर इस्लामी लश्कर को ललकारने लगा की “में अबू करश हूँ” उस की ये मगरूराना ललकार सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फ़ूफीज़ाद भाई हज़रते ज़ुबेर बिन अल अव्वाम रदियल्लाहु अन्हु जोश में भरे हुए अपनी बरछी ले कर मुकाबले के लिए निकले मगर ये देखा की उस की दोनों आँखों के सिवा उस ने बदन का कोई हिस्सा भी ऐसा नहीं है जो लोहे से छुपा हुआ न हो | हज़रते ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हु ने ताक कर उस की आँख में इस ज़ोर से बरछी मारी की वो ज़मीन पर गिरा और मर गया |

बरछी उस की आँख को छेड़ती हुई खोपड़ी की हड्डी में चुभ गई थी | हज़रते ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हु ने जब उस की लाश पर पाऊँ रख कर पूरी ताकत से खींचा तो बड़ी मुश्किल से बरछी निकली लेकिन उस का सर मुड़ कर टेड़ा हो गया था ये बरछी तारीखी यादगार बन कर बरसों तबर्रुक बनी रही | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हु से ये बरछी लेली थी और उस को हमेशा अपने पास रखा फिर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बाद चरों खुल्फ़ए राशिदीन के पास मुन्तक़िल होती रही फिर हज़रते ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हुके बेटे हज़रते अब्दुल्लाह बिन ज़ुबेर रदियल्लाहु अन्हुमा के पास आई यहाँ तक की सं. 73, हिजरी में जब बनू उमय्या के ज़ालिम गवर्नर हज्जाज बिन युसूफ सक़फ़ी ने इन को शहीद कर दिया तो ये बरछी बनू उमय्या के कब्ज़े में चली गई फिर इस के बाद ला पता हो गई |

अबू जहल ज़िल्लत के साथ मारा गया

हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ़ रदियल्लाहु अन्हु का बयान है की में सफ में खड़ा था और मेरे दाएं बाएं दो नो उम्र लड़के खड़े थे एक ने चुपके से पूछा की चचा जान! क्या आप अबू जहल को पहचानते हैं? मेने उससे कहा की क्यूँ भतीजे! तुम को अबू जहल से क्या काम है? उस ने कहा की चचा जान! मेने खुदा से ये अहद लिया है की में अबू जहल को जहाँ देख लूँगा या तो उस को क़त्ल कर दूंगा या खुद लड़ता हुआ मारा जाऊँगा की वो अल्लाह पाक के रसूल हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बहुत ही बड़ा दुश्मन है | हज़रते अब्दुर रहमान रदियल्लाहु अन्हु कहते हैं की में हैरत से उस नौजवान का मुँह तक की रहा था की दूसरे नो जवान ने भी मुझ से यही कहा | इतने में अबू जहल तलवार घुमाता हुआ सामने आ गया और मेने इशारे से बता दिया की अबू जहल येहि है, बीएस फिर क्या था ये दोनों लड़के तलवारें ले कर उस पर इस तरह झपटे जिस तरह बाज़ अपने शिकार पर झपटता है दोनों ने अपनी तलवारों से मार मार कर अबू जहल को ज़मीन पर ढेर कर दिया ये दोनों लड़के हज़रते मुअव्वज़ और हज़रते मुआज़ रदियल्लाहु अन्हु थे जो “अफरा” के बेटे थे |

अबू जहल के बेटे इकरिमा ने अपने बाप के कातिल हज़रते मुआज़ रदियल्लाहु अन्हु पर हमला कर दिया और पीछे से उन के बाएं कंधे पर तलवार मारी जिससे उन का बाज़ू कट गया लेकिन थोड़ा सा चमड़ा बाक़ी रह गया और हाथ लटकने लगा | हज़रते मुआज़ रदियल्लाहु अन्हु ने इकरिमा का पीछा किया और दूर तक दौड़ाया मगर इकरिमा भाग कर बच निकला | हज़रते मुआज़ रदियल्लाहु अन्हु इस हालत में ही लड़ते रहे लेकिन कटे हुए हाथ के लटकने से तकलीफ हो रही थी तो उन होने अपने कटे हुए हाथ को पाऊं से दबा कर इस ज़ोर से खींचा की हाथ अलग हो गया और फिर वो आज़ाद हो कर एक हाथ से लड़ते रहे | हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु अबू जहल के पास से गुज़रे, उस वक़्त अबू जहल में कुछ कुछ ज़िन्दगी की रक़म बाकी थी हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु ने उस की गर्दन को अपने पाऊं से रौंद कर फ़रमाया की “तू ही अबू जहल है! बता आज मुझे अल्लाह ने कैसा रुस्वा किया | अबू जहल ने इस हालत में भी घमंड के साथ ये कहा की तुम्हारे लिए ये कोई बड़ा कारनामा नहीं है, मेरा क़त्ल हो जाना इससे ज़्यादा नहीं है की एक आदमी को उस की कौम ने क़त्ल कर दिया |

हाँ! मुझे इस का अफ़सोस है की काश! मुझे किसानो के सिवा कोई दूसरा शख्स क़त्ल करता | हज़रते मुअव्वज़ और हज़रते मुआज़ रदियल्लाहु अन्हुमा चूँकि ये दोनों अंसारी थे और अंसार खेती बड़ी का काम करते थे और कबीलए कुरेश के लोग किसानो को बड़ी ज़िल्लत की नज़र से देखा करते थे इस लिए अबू जहल ने किसानो के हाथ से क़त्ल होने को अपने लिए काबिले अफ़सोस बताया |जंग ख़त्म हो जाने के बाद हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु को साथ ले कर जब अबू जहल की लाश के पास से गुज़रे तो लाश की तरफ इशारा कर के फ़रमाया की अबू जहल इस ज़माने का “फिर ओन” है की फिर अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहु अन्हु ने अबू जहल का सर काट कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के क़दमों पर डाल दिया | (बुखारी शरीफ, दलाईलुन नुबूवत)

अबुल बख़्तरी का क़त्ल

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जंग शुरू होने से पहले ही ये फरमा दिया था की कुछ लोग कुफ्फार के लश्कर में ऐसे भी हैं जिन को कुफ्फारे मक्का दबाव डाल कर लाए हैं ऐसे लोगों को क़त्ल नहीं करना चाहिए उन लोगों के नाम भी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बता दिए थे | इन्ही लोगों में से अबुल बख़्तरी भी था जो अपनी ख़ुशी से मुसलमानो से लड़ने के लिए नहीं आया था बल्कि कुफ्फारे कुरेश उस पर दबाव डाल कर ज़बरदस्ती कर के लाए थे | ऐन जंग की हालत में हज़रते मजज़र बिन ज़ियाद रदियल्लाहु अन्हु की नज़र अबुल बख़्तरी पर पड़ी जो अपने एक गहरे दोस्त जुनादा बिन मलीहा के साथ घोड़े पर सवार था | हज़रते मजज़र बिन ज़ियाद रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया की ऐ अबुल बख़्तरी! चूँकि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हम लोगों को तेरे क़त्ल से मना फ़रमाया है इस लिए में तुझ को छोड़ देता हूँ | अबुल बख़्तरी ने कहा के मेरे साथी जुनादा के बारे में तुम क्या कहते हो? तो हज़रते मजज़र बिन ज़ियाद रदियल्लाहु अन्हु ने साफ़ साफ़ कह दिया की इस को हम ज़िंदा नहीं छोड़ सकते ये सुन कर अबुल बख़्तरी तैश में आ गया और कहा की में अरब की औरतों का ये ताना सुन्ना पसंद नहीं कर सकता की अबुल बख़्तरी ने अपनी जान बचाने के लिए अपने साथी को तनहा छोड़ दिया ये कह कर अबुल बख़्तरी ने ये शेर पढ़ा | एक शरीफ ज़ादा अपने साथी को कभी हर गिज़ नहीं छोड़ सकता जब तक की मरना जाए या अपना रास्ता न देख ले |

उमय्या की हलाकत

उमय्या बिन खलफ बहुत ही बड़ा दुश्मने रसूल था जंगे बद्र में जब कुर्फ व इस्लाम के दोनों लश्कर गुथ्थम गुथ्था हो गए तो उमय्या ने अपने पुराने ताअल्लुक़ात की बिना पर हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ़ रदियल्लाहु अन्हु से चिमट गया की मेरी जान बचाइए | हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ़ रदियल्लाहु अन्हु को रहम आ गया और आप ने चाहा की उमय्या बच कर निकल भागे मगर हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु ने उमय्या को देख लिया | हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु जब उमय्या के गुलाम थे तो उमय्या ने इन को बहुत ज़्यादा सताया था इस लिए जोशे इंतिकाम में हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु ने अंसार को पुकारा, अंसारी लोग फौरन टूट पड़े | हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ़ रदियल्लाहु अन्हु ने उमय्या से कहा की तुम ज़मीन पे लेट जाओ वो लेट गया तो हज़रते अब्दुर रहमान बिन ओफ़ रदियल्लाहु अन्हु उस को बचने के लिए उस के ऊपर लेट कर उस को छुपाने लगे लेकिन हज़रते बिलाल रदियल्लाहु अन्हु व अंसार ने उन की टांगों के अंदर हाथ डाल कर और बगल से तलवार घोंप घोंप कर उस को क़त्ल कर दिया |

फरिश्तों की फौज

जंगे बद्र में अल्लाह पाक ने मुसलमानो की मदद के लिए आसमान से फरिश्तों का लश्कर उतार दिया था पहले एक हज़ार फ़रिश्ते आए फिर तीन हज़ार हो गए इस के बाद पांच हज़ार हो गए |(क़ुरआन शरीफ, सूरह आले इमरान व अनफाल) जब खूब घमसान की जंग शुरू हुई तो फ़रिश्ते किसी को नज़र नहीं आते थे मगर उनकी हरबो ज़र्ब के असरात साफ़ नज़र आते थे कुछ काफिरों की नाक और मुँह पे कोड़ों की मार का निशाँ पाया जाता था, कहीं बगैर तलवार मारे सर कट कर गिरता नज़र आता था, ये आसमान से आने वाले फरिश्तों के कारनामे थे |

कुफ़्फ़ार ने हथियार डाल दिए

उतबा, शैबा, अबू जहल, वगैरा कुफ्फारे कुरेश के सरदारों की हलाकत से कुफ्फारे मक्का की कमर टूट गई और उन के पाऊं उखड़ गए और वो हथियार डाल कर भाग खड़े हुए और मुसलमानो ने उन लोगों को गिरफ्तार करना शुरू कर दिया |इस जंग में कुफ्फार के 70, सत्तर आदमी क़त्ल और सत्तर आदमी गिरफ्तार हुए | बाकि अपना सामान छोड़ कर फरार हो गए इस जंग में कुफ्फारे मक्का को ऐसी ज़बर दस्त शिकस्त हुई की उन की अस्करी ताकत ही खत्म हो गई कुफ्फारे कुरेश के बड़े बड़े नामवर सरदार जो बहादुरी फन्ने सिपाह गिरी में यकताए रोज़गार थे एक एक कर के सब मौत की घाट उतार दिए गए | इन नामवरों में उतबा, शैबा, अबु जहल, अबुल बख़्तरी, ज़मआ, आस बिन हिशाम, उमय्या बिन खलफ, मुनब्बेह बिन अल हज्जाज, उक़्बा बिन अबी मुईत, नज़र बिन अल हारिस, वगैरा कुरेश के सरताज थे ये सब मारे गए |

शोहदाए बद्र के नाम

जंगे बद्र में कुल 14, चौदह मुसलमान शहादत से सरफ़राज़ हुए जिन में से 6, छे मुहाजिर और 8, आठ अंसार थे शोहदाए मुहाजिरीन के नाम ये हैं: 1, हज़रते उबैदा बिन अल हारिस 2, हज़रते उमैर बिन अबी वक़्क़ास 3, हज़रते ज़ुशशिमालेंन उमैर बिन अब्दे अम्र 4, हज़रते आकिल बिन अबी बुकेर 5, हज़रते महजअ 6, हज़रते सफ़वान बिन बैज़ा |

और अंसार के नमो की फहरिस्त ये है:- 7, हज़रते साद बिन खैसमा 8, हज़रते मुबश्शिर बिन अब्दुल मुनज़िर 9, हज़रते हारिस बिन सुराका 10, हज़रते मुअव्वज़ बिन अफरा 11, हज़रते उमैर बिन हमाम 12, हज़रते राफे बिन मुअल्ला 13, हज़रते ओफ़ बिन अफरा 14, हज़रते यज़ीद बिन हारिस | इन शोहदाए बद्र में से 13, तेहरा हज़रात तो मैदाने बद्र में ही मदफ़ून हुए मगर हज़रते उबैदा बिन हारिस रदियल्लाहु अन्हु ने चूँकि बद्र से वापसी पर मंज़िले “सफर” में इन्तिकाल फ़रमाया इस लिए इन की कब्र शरीफ मंज़िले “सफर” में है |

बद्र का गढ़ा (गढ्ढा)

हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हमेशा ये तर्ज़े अमल रहा की जहाँ कहीं कोई लाश नज़र आती थी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम उस को दफ़न करवा देते थे लेकिन जंगे बद्र में क़त्ल होने वाले कुफ्फार चूँकि तादाद में बहुत ज़्यादा थे सब को अलग अलग दफन करना एक दुश्वार काम था इस लिए तमाम लाशों को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बद्र के एक गड्ढे में डाल देने का हुक्म दिया चुनांचे सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम ने तमाम लाशों को घसीट घसीट कर गड्ढे में डाल दिया | उमय्या बिन ख़लफ़ की लाश फूल गई थी सहाबए किराम ने उस को घसीटना चाहा तो उस के जिस्म के हिस्से अलग अलग होने लगे इस लिए उस की लाश वहीँ मिटटी में दबा दी गई |

कुफ्फार की लाशों से खिताब

जब कुफ्फार की लाशें बद्र के गड्ढे में डाल दी गई तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उस गड्ढे के किनारे खड़े हो कर मक़तूलीन का नाम ले कर इस तरह पुकारा की ऐ उतबा बिन रबीआ! ऐ शैबा बिन रबीआ! ऐ फुला! ऐ फुलां! क्या तुम लोगों ने अपने रब के वादे को सच्चा पाया? हमने तो अपने रब के वादे को बिलकुल ठीक ठीक सच पाया | हज़रते उमर फ़ारूक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु ने जब ये देखा की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुफ्फार की लाशों से खिताब फरमा रहे हैं तो उन को बड़ा तअज्जुब हुआ | चुनांचे उन हों ने अर्ज़ किया की या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! क्या आप इन बे रूह के जिस्मो से बात फरमा रहे हैं? ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया की ऐ उमर! कसम खुदा की जिस के क़ब्ज़ए क़ुदरत में मेरी जान है की तुम “ज़िंदा लोगों” मेरी बात को इन से ज़्यादा नहीं सुन सकते लेकिन इतनी बात है की ये मुर्दे जवाब नहीं दे सकते | (बुखारी शरीफ जल्द 1,)

ज़रूरी तम्बीह

बुखारी वगैरा की इस हदीस से ये मसअला साबित होता है की जब कुफ्फार के मुर्दे ज़िन्दों की बात सुनते हैं तो फिर मोमिनीन खास तौर से अम्बियाए किराम, सहाबए किराम, ताबाईने किराम, औलियाए किराम, शोहदाए किराम, बुज़ुर्गाने दीन, इन्तिकाल के बाद यक़ीनन हम ज़िन्दों का सलाम व कलाम और हमारी फ़रयादें सुनते हैं और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब कुफ्फार की मुर्दा लाशों को पुकारा तो फिर खुदा के बरगुज़ीदाह बन्दों यानि औलियाए किराम, सूफ़ियाए किराम, वलयों, शहीदों और नबियों को उन के इन्तिकाल के बाद पुकारना भला क्यूं न, नाजाइज़ होगा? इसी लिए तो हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब मदीने के कब्रिस्तान में तशरीफ़ ले जाते तो कब्रों की तरफ अपना चेहराए मुबारक कर के यूं फरमाते:

“अस्सलामु अलयकुम या अहलल क़ुबूरि यगफिरुल्लाहु लना वला कुम अन्तुम सला फुना व नहनू बिल असारी” (मिश्कत शरीफ

तर्जुमा :- यानि ऐ क़ब्र वालों! तुम पर सलामती हो खुदा हमारी और तुम्हारी मगफिरत फरमाए, तुम लोग हम से पहले चले गए और हम तुम्हारे बाद आने वालेहैं| और हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपनी उम्मत को भी ये हुक्म दिया है और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम को इस तरह तालीम देते थे की जब तुम लोग कब्रों की ज़्यारत के लिए जाओ तो ये पढ़ो: “अस्सलामु अलयकुम अहलद दियारी मिनल मोमिनीन वल मुस्लीमीना व इन्ना इनशा अल्लाह बिकुम लला हिकूना नस अलुल्लाहा लना वला कुमुल आफिआ | (मिश्कत शरीफ) इन हदीसों से साफ़ ज़ाहिर व साबित है की मुर्दे ज़िन्दों का सलाम व कलाम सुनता हैं ज़ाहिर है की जो लोग सुनते ही नहीं उनको सलाम करने से क्या हासिल? |

मदीने को वापसी

फ़त्ह के बाद तीन दिन तक हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने बद्र में क़ियाम फ़रमाया फिर तमाम अमवाले गनीमत और कुफ़्फ़ार कैदियों के साथ ले कर रवाना हुए | जब “वादिये सफ़रा” में पहुंचे तो अमवाले गनीमत को मुजाहिदीन के दरमियान तक़्सीम फ़रमाया | हज़रते उस्माने गनी रदी अल्लाहु तआला अन्हु की ज़ोजए मोहतरमा हज़रत बीबी रुक्य्या रदी अल्लाहु तआला अन्हा जो हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की साहिब ज़ादी थी जंगे बद्र के मोका पर बीमार थी इसलिए हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने हज़रते उस्माने गनी रदी अल्लाहु तआला अन्हु को साहिब ज़ादी की तीमार दारी के लिए मदीने में रहने का हुक्म दे दिया था इसलिए वोह जंगे बद्र में शामिल ना हो सके मगर हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने माले ग़नीमत में से उन को मुजाहिदीने बद्र के बराबर ही हिस्सा ही दिया था और उनके बराबर ही अजरो सवाब की बशारत भी दी इसी लिए हज़रते उस्माने गनी रदी अल्लाहु तआला अन्हु को भी अस्हाबे बद्र की फ़ेहरिस्त में शुमार किया जाता है |

मुजाहिदीने बद्र का इस्तिक़बाल

हुजूरे अक़्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने फ़त्ह के बाद हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदी अल्लाहु तआला अन्हु को फ़त्हे मुबीन की खुश ख़बरी सुनाने के लिए मदीने भेज दिया था | चुनान्चे हज़रते ज़ैद बिन हारिसा रदी अल्लाहु तआला अन्हु यह खुश ख़बरी जब मदीने पहुंचे तो तमाम अहले मदीना जोशे मसर्रत के साथ हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम की आमद आमद के इन्तिज़ार में बे करार रहने लगे और जब तशरीफ़ आवरी की खबर पहुंची तो अहले मदीना ने आगे बढ़ कर मक़ामे “रोहा” में आप का पुरजोश इस्तकबाल किया |

कैदियों के साथ सुलूक

कुफ्फारे मक्का जब असीराने जंग बन कर मदीने में आए तो उन को देखने के लिए बहुत बड़ा मजमा इकठ्ठा हो गया और लोग उन को देख कर कुछ न कुछ बोलते रहे | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की जौज़ए मुहतरमा हज़रते बीबी सौदाह रदियल्लाहु अन्हा उन कैदियों को देख ने के लिए तशरीफ़ लाईं और ये देखा की उन कैदियों में उन के एक करीबी रिश्तेदार “सुहैल” भी हैं तो वो बेसाख्ता बोल उठीं “ऐ सुहैल! तुम ने भी औरतों की तरह बेड़ियाँ पहन लीं तुम से ये न हो सका की बहादुर मर्दों की तरह लड़ते हुए क़त्ल हो जाते |इन कैदियों को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबा में तकसीम फरमा दिया और ये हुक्म दिया की इन कैदियों को आराम के साथ रखा जाए | चुनांचे दो दो चार चार कैदी सहाबा के घरों में रहने लगे और सहाबा ने इन लोगों के साथ ये हुस्ने सुलूक किया की इन लोगों को गोश्त रोटी वगैरा ज़रूरत के मुताबिक बेहतीरीन खाना खिलते थे और खुद खजूरें खा कर रहते थे | कैदियों में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चचा हज़रते अब्बास के बदन पर कुरता नहीं था लेकिन वो इतने लम्बे क़द के आदमी थे की किसी का कुरता उन के बदन पे ठीक नहीं आता था अब्दुल्लाह बिन उबय्य (मुनाफिक़ीन का सरदार) चूँकि कद में इन के बराबर था इस लिए इस ने अपना कुरता इन को पहना दिया | बुखारी में ये रिवायत है की हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अब्दुल्लाह बिन उबय्य के कफ़न के लिए जो अपना कुरता शरीफ अता फ़रमाया था वो इसी एहसान का बदला था |

असीराने बद्र का अंजाम

इन कैदियों के बारे में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़राते सहाबा रदियल्लाहु अन्हुम से मश्वरा फ़रमाया की इन के साथ क्या मुआमला क्या जाए? हज़रते उमर रदियल्लाहु अन्हु ने ये राए दी की इन सब दुश्मने इस्लाम को क़त्ल कर देना चाहिए और हम में से हर शख्स अपने अपने करीबी रिश्तेदार को अपनी तलवार से क़त्ल करें | मगर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु ने ये मश्वरा दिया की आखिर ये सब लोग अपने अज़ीज़ो अक़ारिब ही हैं लिहाज़ा इन्हें क़त्ल न किया जाए बल्कि इन लोगों से बतौर फ़िदया ( जुरमाना, जान छुड़ाने का बदला) कुछ रकम ले कर इन सब को रिहा कर दिया जाए | इस वक़्त मुसलमानो की माली हालत बहुत कमज़ोर है फिदिए की रक़म से मुसलमानो की माली इमदाद का सामान भी हो जाएगा और शायद आइंदा अल्लाह पाक इन लोगों को इस्लाम की तौफीक नसीब फरमाए | हुज़ूर रहमते आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हज़रते अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु की संजीदा राए को पसंद फ़रमाया और उन कैदियों से चार चार हज़ार दिरहम फ़िदया लेकर उन लोगों को छोड़ दिया जो लोग मुफ़लिसी की वजह से फ़िदया नहीं दे सकते थे वो यूही बिला फ़िदया छोड़ दिए गए इन कैदियों में जो लोग लिखना जानते थे उनमे से हर एक का फ़िदया ये था की वो अंसार के 10,लड़को को लिखना सिखा दे |

हज़रते अब्बास का फ़िदया

अंसार ने हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ये दरखास्त की के या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हज़रते अब्बास हमारे भांजे है लिहाज़ा हम इनका फ़िदया माफ़ करते है लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ये दरखास्त मंजूर नहीं फ़रमाई हज़रते अब्बास क़ुरैश के उन दस दौलत मंद रईसों में से थे जिन्होंने लश्करे कुफ्फार के राशन की जिम्मेदारी अपने सर ली थी इस गर्ज़ के लिए हज़रते अब्बास के पास बीस ऊकिया सोना था चूँकि फौज को खाना खिलाने में अभी हज़रते अब्बास की बारी नहीं आयी थी इसलिए अभी तक वो सोना उनके पास महफ़ूज़ था उस सोने को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने माले गनीमत में शामिल फरमा लिया और हज़रते अब्बास से मुतालबा फ़रमाया की वो अपना और अपने दोनों भतीजे अकील बिन अबी तालिब और नौफल बिन हारिस और अपने हलीफ़ (साथी) उतबा बिन अम्र बिन जहदम चार शख्सों का फ़िदया अदा करे हज़रते अब्बास ने कहा की मेरे पास कोई माल ही नहीं है में कहा से फ़िदया अदा करू ये सुन कर हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की चचा जान आप का वो माल कहाँ है? जो आपने जंगे बद्र के लिए रवाना होते हुए आपकी बीबी उम्मुल फज़ल को दिया था और ये कहा था की अगर में इस लड़ाई में मारा जाऊं तो इस में से इतना इतना माल मेरे लड़को को दे देना ये सुन कर हज़रते अब्बास ने कहा की कसम है उस खुदा की जिसने आप को हक़ के साथ भेजा है की यक़ीनन आप अल्लाह पाक के रसूल है कियूंकि उस माल का इल्म मेरे और मेरे बीवी उम्मुल फ़ज़ल के सिवा किसी को नहीं था चुनांचे हज़रते अब्बास ने अपना और अपने दोनों भतीजो और अपने हलीफ़ का फ़िदया अदा कर के रिहाई हासिल की फिर इस के बाद हज़रते अब्बास और हज़रते अकील और हज़रते नौफल तीनो मुशर्रफ बा इस्लाम हो गए | (मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 2,)

हज़रते ज़ैनब का हार

जंगे बद्र के कैदियों में हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दामाद अबुल आस बिन अरबिआ भी थे | ये हाला बिन्ते ख़ुवैलिद के लड़के थे और हाला हज़रते बीबी खदीजा रदियल्लाहु अन्हा की बहन थीं इस लिए हज़रते बीबी खदीजा रदियल्लाहु अन्हा ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मश्वरा ले कर अपनी लड़की हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा का अबुल आस बिन अरबिआ से निकाह कर दिया था | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जब अपनी नुबूवत का ऐलान फ़रमाया तो आप की साहबज़ादी हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा ने तो इस्लाम कबूल कर लिया मगर इन के शोहर अबुल आस मुस्लमान नहीं हुए और न हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को अपने से जुदा किया | अबुल आस बिन अरबिआ ने हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा के पास कासिद (खत ले जाने वाला, डाकिया, रसूल सफीर,) भेजा की फिदिए की रकम भेज दें | हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को उन की वालिदा हज़रते बीबी खदीजा रदियल्लाहु अन्हा ने जहेज़ में एक क़ीमती हार भी दिया था हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा ने फिदिए की रकम के साथ वो हार भी अपने गले से उतार कर मदीने भेज दिया | जब हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नज़र उस हार पर पड़ी तो हज़रते बीबी खदीजा रदियल्लाहु अन्हा और की मुहब्बत की याद ने कल्बे मुबारक पर ऐसा रिक़्क़त अंगेज़ असर डाला की आप रो पड़े और सहाबा से फ़रमाया की “अगर तुम लोगों की मर्ज़ी हो तो बेटी को उस की माँ की यादगार वापस कर दो” ये सुन कर तमाम सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम इस बात को कबूल कर लिया और ये हार हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा के पास मक्का भेज दिया गया |

अबुल आस रिहा हो कर मदीने से मक्का आए और हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा को मदीने भेज दिया | अबुल आस बहुत बड़े ताजिर थे ये मक्का से अपना समाने तिजारत ले कर मुल्के शाम ले गए और वहां से नफा कमा कर मक्का आ रहे थे की मुसलमान मुजाहिदीन ने इन के काफिले पर हमला कर दिया और इन का सब माल लूट लिया और ये माले गनीमत तमाम सिपाहियों पर तकसीम (बाँटना) भी हो गया | अबुल आस छुप कर मदीने पहुंचे और हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा ने इन को पनाह दे कर अपने घर में उतारा | हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम से फ़रमाया की अगर तुम लोगों की ख़ुशी हो तो अबुल आस का माल व सामान वापस कर दो | फरमाने रिसालत का इशारा पाते ही तमाम मुजाहिदीन ने सारा माल व सामान अबुल आस के सामने रख दिया | अबुल आस अपना सारा माल व सामान ले कर मक्का आए और अपने तमाम तिजारत के शरीक़ों को पाई पाई का हिसाब समझा कर और सब को उस के हिस्से की रकम अदा कर के अपने “मुसलमान” होने का ऐलान कर दिए और अहले मक्का से कह दिया की में यहाँ आ कर और सब का पूरा पूरा हिसाब अदा कर के मदीने जाता हूँ ताकि कोई ये न कहे की अबुल आस हमारा रुपया ले कर तकाज़े के डर से मुसलमान हो कर मदीने भाग गया इस के बाद हज़रते अबुल आस रदियल्लाहु अन्हु मदीने आ कर हज़रते ज़ैनब रदियल्लाहु अन्हा के साथ रहने लगे |
(तारीखे तिबरी, सीरते नबविया)

रेफरेन्स हवाला

शरह ज़ुरकानि मवाहिबे लदुन्निया जिल्द 1,2, बुखारी शरीफ जिल्द 2, सीरते मुस्तफा जाने रहमत, अशरफुस सेर, ज़िया उन नबी, सीरते मुस्तफा, सीरते इब्ने हिशाम जलिद 1, सीरते रसूले अकरम, तज़किराए मशाइख़े क़ादिरया बरकातिया रज़विया, गुलदस्ताए सीरतुन नबी, सीरते रसूले अरबी, मुदारिजुन नुबूवत जिल्द 1,2, रसूले अकरम की सियासी ज़िन्दगी, तुहफए रसूलिया मुतरजिम, मकालाते सीरते तय्यबा, सीरते खातमुन नबीयीन, वाक़िआते सीरतुन नबी, इहतियाजुल आलमीन इला सीरते सय्यदुल मुरसलीन, तवारीखे हबीबे इलाह, सीरते नबविया अज़ इफ़ादाते महरिया,

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