हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

नामे मुबारक

क़ुत्बुल अफ़राद, क़ुत्बे यगाना, क़ुत्बे वहदत, क़ुत्बे हकीकत, पेशवाए महबूबियत व इश्क, मुक़्तदाए आरिफा, फरदुल अफ़राद, क़ुत्बुल अफ़राद, आलिमे रब्बानी, मुहिब्बुन नबी, फ़रीदे यगाना, शहसवारे विलायत, सदरे नशीन, साहिबे तक्वा, आप का नाम “फखरुद्दीन” है, और लक़ब “मुहिब्बुन” है,
बुरहानुल आरफीन हज़रत मौलाना शैख़ ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्दे अर्जमन्द हैं, आप का सिलसिलए नसब शैख़ुश शीयूख हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह के वास्ते से हज़रते सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु तक पहुँचता है, आप की वालिदा माजिदा हज़रत सय्यदना शैख़ ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती गुलबर्गवी रहमतुल्लाह अलैह तक पहुँचता है।

तारीखे विलादत

आप की पैदाइश 1126, हिजरी मुताबिक 1717, ईसवी को बा मक़ाम शहर औरंगाबाद! हिन्द इण्डिया में हुई।

लक़ब मुहिब्बुन नबी की वजह तस्मिया

हज़रत मौलाना शैख़ ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! “मुहिब्बुन नबी” के लक़ब से मशहूर थे, इस लक़ब और ख़िताब से मुमताज़ होने की वहज तस्मिया ये बताई जाती है के एक मर्तबा उर्स के मोके पर हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार शरीफ पर हाज़िर थे, आप ने देखा के हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को लंगर से कुछ तबर्रुक इनायत फ़रमाया, और इरशाद फ़रमाया के तुम “मुहिब्बुन नबी” हो, उस रोज़ से आप ने “मुहिब्बुन नबी” के मुबारक लक़ब से शुहरत हासिल की,
दूसरी वजह ये बयान की जाती है के: के आप गुले गुलज़ारे चिश्तियत सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार मुबारक पर अजमेर शरीफ हाज़िर हुए तो उस वक़्त साहिबे दिल बुज़रुग अपने किसी काम के वास्ते दरबारे ख्वाजा गरीब नवाज़ रहिमहुल्लाह में हाज़िर थे, उन बुज़रुग को सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने बशारत दी के इन को पहचान लो और आप की हाजत इन से पूरी होगी, इन का नाम “मुहिब्बुन नबी” है, उस बुज़रुग ने आप को तलाश किया और सारा किस्सा बयान किया, उस रोज़ से आप उस लक़ब से मशहूर हुए ये लक़ब और ख़िताब सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! और हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के अता किए हुए हैं।

तालीमों तरबियत

हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की तालीमों तरबियत निहायत आला पैमाने पर हुई, आप के वालिद माजिद हज़रत मौलाना शैख़ ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह खुद एक ज़बरदस्त आलिमे दीन थे, आप ने तालीमों तरबियत का ख़ास इन्तिज़ामो इनसिराम किया और उस वक़्त के मश्हूरो मारूफ उल्माए किराम से आप की तालीम की तकमील कराइ, कुरआन शरीफ, और उस की तफ़्सीर, शरेह वकाया, मशारिकुल अनवार, मसनवी शरीफ, फुतूहाते मक्किया, नफ़्हातुल उन्स, ये किताबें आप ने अपने वालिद माजिद से पढ़ीं, इसके अलावा तफ़्सीरे कुरआन, इल्मे हदीस, और इल्मे फ़िक़्ह भी मुकम्मल हासिल किया,
अगरचे बातनी तालीम अपने वालिद माजिद से बहुत कुछ हासिल कर चुके थे, हज़रत हाफ़िज़ असअद अंसारी से भी हदीस शरीफ तसव्वुफ़, मंतिक, और फलसफा, के उलूम पर कामिल महारत हासिल की, और हदीस शरीफ की सनद भी हासिल की,
आप हाफ़िज़ शैख़ मुहम्मद इब्राहीम कुर्दी रहमतुल्लाह अलैह के शागिर्द थे आप शैख़े कुर्दी! जय्यद आलिम, फ़ाज़िल, और मुहद्दिस थे, इन किताबों के अलावा फुसूसुल हिकम! मियां मुहम्मद जान रहमतुल्लाह अलैह से पढ़ीं, मियां मुहम्मद जान रहमतुल्लाह अलैह अपने ज़माने के उम्दा आलिमे दीन, थे,
आप ज़ाहिरी उलूम की तकमील में इस कद्र मशग़ूलो मसरूफ रहे, के वालिद माजिद के विसाल के तीन साल बाद इल्म में आला कमाल हासिल किया।

इबादतों रियाज़त

आप रहमतुल्लाह अलैह के वालिद माजिद के विसाल के बाद आप ज़ियादत तर इबादत में मशगूल रहते थे, और आप के बारे में किसी को खबर नहीं होती थी, जो लोग आप के करीबी थे, उन को भी आप की इबादतों रियाज़त, और मुजहिदात का इल्म ना था, एक दिन आप के पीर भाई हज़रत ख्वाजा कामगार खान रहमतुल्लाह अलैह ने आप से कहा के आप हल्काए ज़िक्र कराया करें आप मुस्कुराए और उन से फ़रमाया के वो आप के वास्ते दुआ करें अल्लाह पाक उन को इन कामो की तौफीक दे, उन्हों दे दुआ के लिए हाथ उठाए, उन को जो दौलतों नेमत हासिल हुई थी वो फ़ौरन सल्ब हो गई, और माफ़ी के ख़्वास्तगार हुए,, आप ने उन को माफ़ कर दिया, और वो तमाम दौलतो नेमत जो सल्ब हुई थी वो और उस के अलावा मज़ीद नेमत मिल गई,
वालिद माजिद के विसाल के बाद सज्जादा नाशिनी के बजाए आप ने लश्कर में मुलाज़िमत इख़्तियार करली, आप की ख्वाइश पर नवाब निज़ामुद्द्दौला नासिर जंग ने आप को उहदाए सिपह सालारी! या इस का नाइब आप को बना दिया,

मुलाज़िमत के दौरान नवाब निज़ामुद्द्दौला नासिर जंग और हिम्मत यार खान जो आसिफ जाह अव्वल के मोतबर सिपहसालारों में से था आप से तअल्लुक़ात पैदा हो गए, फौज कशी शमशीर ज़नी का मौका मिला उन दिनों आप पूरी रात औरादो वज़ाइफ़ में मशगूल रहते थे, और दिन में ज़ाहिरी काम क्या करते थे, ताके किसी को आप के राज़ का पता न चले कुछ आप के अमाल चालीस अय्याम के होते थे, इस लिए दीगर फौजी सिपाही हैरान हो कर आप से इतने दिन तक लिबास तब्दील ना करने की, वजह पूछते तो आप किसी न किसी बात से खामोश कर देते थे, आप ने बा हुस्ने खूबी आठ साल तक फ़राइज़ अंजाम दिए, जो लोग आप की ज़ाहिरी हालत को देखते वो कभी इस बात का गुमान भी नहीं कर सकते थे, आप एक “वलियुल्लाह” हैं, जिस के रुहानी मरातिब मदारिज बहुत बुलंद हैं, जिस कद्र आप दुर्वेशी, विलायत, को छुपाते थे इतनी ही शुह्ररत होती चली गई,
आखिर कार आप ने मुलाज़िमत छोड़ दी, औरंगाबाद आ आकर वालिद माजिद की खानकाह में सारा वक़्त गुजरने लगे।

आप की इल्मी दीनी व अदबी खिदमात

हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के निज़ामे सिलसिलए चिश्तिया और तब्लीग से से मालूम होता है, के आप के मदरसे! की तालीमों तरबियत इत्तिबाए सुन्नत व क़ुरआनो हदीस पर अमल और तब्लीगी सिलसिले में आप का मसलक बुज़ुर्गाने चिश्त की पैरवी ही था,
आप के अक्सर खुलफाए किराम व मुरीदीन मुहिब्बीन आशिक़ीन, मोतक़िदीन आप के मदरसे के तलबा ही थे, जिन्होंने आप के मदरसे से रूहानी तरबियत परवरिश और सुलूक की तालीम हासिल की, जो इस तहरीक के महवर व मदार था, आप की दरसगाह का खास हिस्सा था, दूर दराज़ मुल्क के हिस्सों में जा कर सिलसिलए आलिया निज़ामिया चिश्तिया की मुस्तकिल खानकाहें काइम कराईं, और रुश्दो हिदायत की शमआ को फ़रोज़ा किया, हज़ारों इंसानो ने आप के वसीले से रूहानी तालीमों तरबियत पाई और राहे सुलूक की मंज़िलें तय कीं, आप ज़ाहिरी व बातनी तदरीस में मसरूफ रहते थे,
सिलसिलए आलिया चिश्तिया निज़ामिया की शानदार दर्स गाह जिसे हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाह जहाँ आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने दिल्ली में बाज़ार खानम! में काइम की थी, इस खानकाह को आप ने वुसअत व तरक्की दी, इरशादो तलकीन और रूहानी तालीमों तरबियत का आला इंतिज़ाम किया, सिलसिलए आलिया चिश्तिया निज़ामिया! की ज़िन्दगी का आगाज़ हुआ, आप की सुहबत जादू का असर रखती थी, जो आप की खानकाह में एक बार आ जाता, मुतअस्सिर हुए बगैर नहीं रह सकता था, आप के मुजाहिदात व रियाज़ात, कशफो करामात, रुश्दो हिदायत, अख़लाक़ो मुहब्बत, पंदो नसाहे, मवाइज़ और आप की क़ुदरतो महारत से सब कोमे मुतअस्सिर हुईं, गैर मुस्लिम कुर्फ की तारीकी से निकल कर इस्लाम की आगोश में आते और मुशर्रफ बा इस्लाम होते थे।

दिल्ली की मुमताज़ दरसगाहें

उस पुर आशोब और बदअमनी के दौर में दिल्ली में सैंकड़ों दरसगाहें थीं लेकिन “मदरसा रहीमिया” “मदरसा बाज़ार खानम” और मदरसा अजमेरी दरवाज़ह! इम्तियाज़ी शान रखते थे, “मदरसा रहीमिया” को हज़रत शैख़ अब्दुर रहीम रहमतुल्लाह अलैह! ने दिल्ली में उस मकाम पर काइम किया जो अब हिंदियों के नाम से मशहूर है, इस मदरसे में इल्मे हदीस! की तालीम दी जाती थी, हज़रते शाह वलियुल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने वालिद माजिद के इन्तिकाल के बाद “मदरसा रहीमिया” में दरसे हदीस! देना शुरू किया, इन के बाद सिराजुल हिन्द हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी ने दरसे हदीस! देना शुरू किया, के आप को अमराज़ लाहक़ हो गए, जिस की वजह से बिनाई आंखों की रौशनी पर असर पड़ा, इस वजह से मदरसे का सारा इन्तिज़ामो इनसिराम हज़रत शाह फरीउद्दीन अलैहिर रह्मा और हज़रत शाह अब्दुल क़ादिर अलैहिर रह्मा को सौंप दिया,
यही दोनों भाई तलबा को दरसे हदीस देते थे, और तसनरीफो तालीफ़, फतवा नवेसी वाइज़ो नसीहत का भी काम बराबर जारी रहता दिल्ली के और दिल्ली के बाहर के उल्माए किराम आप के दरसे निज़ामी यानि आलिम! कोर्स में शामिल होते और आलिमे दीन बनते और फ़ैज़याब होते थे,

सिराजुल हिन्द हज़रत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह जुमा और पीर मंगल के रोज़ मजलिसे वाइज़ अपने मदरसे में मुनअकिद करते थे, ये वाइज़ काफी देर तक होता था, उल्माए किराम तफ़्सीरे बैज़ावी शरीफ, तफ़्सीरे निशापुरी और दीगर तफ़ासीर अपने सामने रखते और समझते थे, के फुलां आयात का शाने नुज़ूल ये है ये है, कई बार ये भी देखा गया है, के जिस शख्स के दिल में किसी किस्म का ऐतिराज़ या शुबाह आता था, आप की तक़रीर से वो शख्स मुत्मइन हो जाता था, और आप की फैज़े सुहबत से अक्सर गैर मुस्लिम मुस्लमान हो जाते थे,
दूसरा मदरसा! बाज़ार खानम! दिल्ली में था, इस मदरसे के बानी मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाह जहाँ आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! चूंके आप दिल्ली में रहते थे, और दिल्ली बादशाह शाह जहाँ! ने बसाई थी, और आप के मदरसे के इलाके को शाह जहाँ आबाद! कहते थे, और आप शाह जहाँ आबादी! के नाम से मशहूर हुए, इस मदरसे में दरसे हदीस को बहुत अहमियत हासिल थी, और ये रूहानी तालीमों तरबियत का मरकज़ था, और इस मदरसे में राहे सुलूक की आला तालीम दी जाती थी, मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाह जहाँ आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के बाद इस मदरसे के नाज़िमे आला! सज्जादा नशीन आप की औलादे अमजाद में से थे, उन्होंने इल्मे हदीस को जारी रखा था, और तीसरे मदरसे का नाम “मदरसा अजमेरी दरवाज़ा! था, इन सभी मदारिस में दीनी तालीम रुश्दो हिदायत का आलिम फ़ाज़िल तब्लीगी व इस्लाही काम होते थे।

तालीमात व दरसो तदरीस

मशाइख़ीने चिश्त इबादत गुज़ार तक्वा शिआर और इल्मो अख़लाक़ के अमलबरदार थे, और इन मशाइख़ीन की पूरी ज़िन्दगी किताबों सुन्नत के मुताबिक गुज़री, उन का हर कदम अल्लाह पाक की रज़ा के लिए उठता था, उन के हर अमल का मंशा खुदा की ख़ुशनूदी था, और इस बात के आमिल भी थे, के जो सुन्नत की जितनी ज़ियादा पैरवी करता है और जो हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की इत्तिबा करता है, उतना ही वो बुज़ुर्गी में अफ्ज़लो आला होता है, मशाइखे चिश्त में अहादीसे नबवी पर ख़ास तवज्जुह देते और अपनी मजलिसों में अहादीस को बयान करते थे, सही बुखारी व मुस्लिम शरीफ, और मिश्कात शरीफ को इन मरकजों में खस मकबूलियत हासिल रही,
हज़रत ख्वाजा हाफ़िज़ जमालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के हमारे शैख़ हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! इल्मे हदीस के सिर्फ आलिम नहीं बल्के आलम थे, दरसो तदरीस पढ़ना और पढ़ाना आप बहुत पसंद करते थे, और सही बुखारी शरीफ का दर्स दिया करते थे, जिस जगह आप दरसे हदीस देते थे, उस जगह पर गुलाब छिड़कते और लोबान वगेरा की खुशबु सुलगाते फिर हदीस शरीफ! पढ़ाते थे, हासिले कलाम ये है के कुरआन शरीफ क़ुत्बे हदीस और क़ुत्बे तसव्वुफ़ खास तौर से मुताक़द्दिमीन, में सूफ़ियाए किराम के हालात का मुताला और अंदाज़े फ़िक्र कुव्वतो तवानाई बख्शता है और दीनी तालीम व तरबियत राहे सुलूक अक्सर मशाइखे चिश्त की दरसगाहों खानकाहों में होता रहा,
मशाइखे चिश्त की दरसगाहों खानकाहों में हदीस शरीफ के बाद कुतुबे तसव्वुफ़ ख़ास कर सूफ़ियाए किराम के हालात का मुताला बहुत ज़रूरी समझा जाता था, अवारिफुल मआरिफ़, कीमियाए सआदत, राहातुल क़ुलूब, रूहुल अरवाह, कशफ़ुल महजूब, नफ़्हातुल उन्स, फुसूसुल हिकम, तज़किरातुल औलिया, शरहे लमआत, वगेरा पढाई जाती थी, हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के दर्स में ऐसी किताबें भी पढ़ाई जाती थीं, जिन से मज़ीद जज़्बए इश्क पैदा हो, और शरीअत पर भी सख्ती से अमल हो।

दिल्ली की चंद अहम् दर्स गाहें

मज़कूरा फ़ितने के ज़माने में इन अज़ीमुल मरतबत शख्सियतों के अलावा और चंद दरख़शिन्दा हस्तियां नज़र आती है, जिन के कारनामे तारीख़ में आज भी यादगार हैं, और जिन की खिदमात आबे ज़र से लिखने के काबिल है, जिन्होंने इस्लाम की रूह को ताज़ा किया, और खिदमते ख़ल्क़ को रुश्दो हिदायत और तबलीगो इस्लाह की भरपूर कोशिश की,
हज़रत शाह वियुल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत शाह रफीउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत शाह अब्दुल कादिर देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत ख्वाजा शमशुद्दीन उर्फ़ मिर्ज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद नक्शबंदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत अब्दुल्लाह उर्फ़ अल्लामा शाह गुलाम अली देहलवी नक्शबंदी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत अल्लामा शाह अबू सईद मुजद्दिदी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत अल्लामा शाह अहमद सईद देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मौलाना शाह अब्दुल गनी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह,

हज़रत शाह अफाक मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मौलाना शाह मुहम्मद इसहाक रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत मौलाना शाह कुतबुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन उर्फ़ काले शाह रहमतुल्लाह अलैह, ने इन बुरिया नशीन का बावजूद अवाम की इस्लाह की और उनको दीनी तालीम की तरफ अपने मकानों और खानकाहों में इन बुज़ुरगों ने दर्स गाहें क़ाइम कीं, और मुफ्त तालीम दी, और इन दर्स गाहों से बड़े बड़े फलसफी मन्तक़ी, आलिम फ़ाज़िल, फकीह, मुहद्दिस, शायर और हुर्रियत हक गो अहले इल्म पैदा हुए,
इन सूफ़ियाए किराम बुज़ुरगों की खानकाहें बहुत अहमियत रखती थीं, इन खानकाहों में तज़कियाए बातिन और तज़कियाए नफ़्स का दर्स दिया जाता था, ईमानो अक़ीदे को मज़बूत किया जाता था, बातनी ज़िन्दगी संवारी जाती थी, मुसलमानो को दीनी ज़िन्दगी को संवार ने में इन खानकाहों का ख़ास हिस्सा था और इन्ही बोरिया नशीनो की तालीमात ने दीनी एहसास को बेदार किया, और मखलूके खुदा को राहे हिदायत मिली।

इजाज़तो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! कम उमर में ही अपने वालिद माजिद से मुरीद बैअत हुए, जब आप की उमर 15, साल की हुई तो आप के वालिद माजिद हज़रत शैख़ ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी रहमतुल्लाह अलैह ने आप को खिरकाए खिलाफत से सरफ़राज़ किया, और आप अपने वालिद की मसनद के सज्जादा नशीन बने।

आप का शजराए तरीकत

हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! सलासिले अरबा यानि नक्शबंदिया, कादिरिया, सोहरवर्दिया, और चिश्तिया के जामे थे, और इन सिलसिलों में आप को खिरकाए खिलाफत हासिल था, मगर तरिकाए चिश्तिया आप ने खुसूसियत के साथ अपनाया, बैअत के वक़्त आप अपने मुरीदों से इस्तिफ़सार फरमाते थे के वो किस सिलसिले में बैअत होना चाहते हैं, अगर मुरीद किसी सिलसिले का नाम लेता तो उस सिलसिले में बैअत फरमाते वरना उसे सिलसिलए चिश्तिया ही में बैअत मुरीद करते थे:
हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आप मुरीद हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगबादी, आप मुरीद हज़रत ख्वाजा शाह कलीमुल्लाह शाह जहाँ आबादी, आप मुरीद हज़रत शैख़ याह्या मदनी आप मुरीद, हज़रत शैख़ मुहम्मद चिश्ती आप मुरीद, हज़रत शैख़ हसन आप मुरीद, हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन आप मुरीद, हज़रत ख्वाजा महमूद राजन, आप मुरीद हज़रत ख्वाजा इल्मुल हक वद्दीन, आप मुरीद हज़रत ख्वाजा सिराजुद्दीन, आप मुरीद हज़रत अल्लामा कमालुद्दीन, आप मुरीद ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी, आप मुरीद सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी, आप मुरीद हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर, आप मुरीद क़ुत्बुल अक्ताब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी, आप मुरीद गुले गुलज़ारे चिश्तियत सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

सीरतो ख़ासाइल

आप की ज़ात मुबारक औसाफ़े ज़ाहिरी और बातनी की जामे थी, आप निहायत खलीक मिलनसार थे, आप हर आने वाली की ताज़िमों तकरीम बिला किसी इम्तियाज़ के करते थे, हर छोटे बड़े की ताज़ीम के लिए खड़े हो जाते थे, बिमारी की हालत में भी आप हर आने वाले की इसी तरह ताज़ीम करते थे, इसारे नफ़्स व कुर्बानी बदर्जाए गायत थी, इबादत, रियाज़त, मुजाहिदा, और मुराकिबा में ज़ियादा वक़्त गुज़ारते थे, सखावत का ये हाल था के जो रुपया और चीज़ें नज़र में आती थीं सब को तकसीम कर देते थे, अपने लिए कुछ नहीं रखते थे,
मुसीबत दुःख में हर शख्स की मदद करते थे,
लोगों की ख़ुशी और गम में शिरकत फरमाते बीमार को देखने जाते और मुरीदीन को हिदायत करते के वो बार बार मिज़ाज पुरसी के लिए जाएं अगर किसी गरीब के यहाँ कोई ख़ुशी या गमी होती तो कई कई बार तशरीफ़ ले जाते और उसकी दिलजोई करते और उनकी खैरियत मालूम करने के लिए बेचैन रहते,

हज़रत शाह वलियुल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के साहबज़ादों को जब बादशाह के मुलाज़िमों ने हवेली से अलैहदा कर दिया और हवेली ज़ब्त करली थी, उस वक़्त हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने साहबज़ादों को अपने पास जगह दी और बहुत हमदर्दी फ़रमाई, फिर आप ने कोशिश कर के बादशाहे वक़्त से इनकी हवेली इनको वापस दिलवा दी, हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! अपनी तारीफ से नाखुश होते थे, बिला वजह हाथ जोड़ने सर झुकाने और इस किस्म की ज़ाहिरी बातों और नुमाइश से नफरत करते थे, जब आप से कोई मिलने आता तो निहायत बशाशत और खन्दा रोई के साथ गुफ्तुगू फरमाते थे, रात को सोने का इरादा होता मगर जब तक सब लोग चले ना जाते बराबर जागते रहते थे, सोते वक़्त किताब फवाईदुल फवाइद सर के पास रखते थे, हर एक से खुश हो कर खनदा पेशानी से गुफ्तुगू फरमाते मुरीदों दोस्तों की गमख्वारी और परवरिश करते थे, दुनियावी उमूर की तरफ ज़रा भी तवज्जुह नहीं देते थे, हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह!, हमेशा गरीबों की दावत करते और उन का घर कितना भी दूर होता और खाना कैसा ही हल्का होता, किसी की दिल शिकनी ना करते, तशरीफ़ भी ले जाते कुछ न कुछ तनावुल भी करते थे, आप रहमतुल्लाह अलैह खाना बहुत कम खाते थे, यहां तक के पानी भी कम पीते थे, हज़रत ख्वाजा गुलाम फरीद रहमतुल्लाह अलैह (चाचड़ा शरीफ) की खानकाह में रोज़ाना 12, मन आटा पकता था, और हज़रत ने अपनी ज़िन्दगी में अस्सी लाख! रुपये फुकरा और मसाकीन मुहताजों में तकसीम किए थे, दिल खोल कर खर्च करते थे, आप के अंदर आजिज़ी इंकिसारी हमदर्दी और इखलास खुसूसियत के साथ थे।

आप की कशफो करामात

बुखार ठीक हो गया

क़ाज़ी अनवर ज़िया मुहम्मद साकिन सोनीपत बुखार में गिरफ्तार हो गए, सात माह तक यही हालत रही, आखिर ज़िन्दगी से मायूस हो गए दिल में ख़याल आया के हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के कदमो में जान निकले, आप की खिदमत में हाज़िर हुए, ये हालत देख कर आप रहमतुल्लाह अलैह को रहम आया, आप ने इन को अपने गले से लगा लिया, उस दिन से ही इनकी हालत दुरुस्त होना शुरू हो गई, यहाँ तक के आप को कामिल शिफा हो गई।

आँखों में रौशनी आ गई

बयान करते हैं के आप रहमतुल्लाह अलैह औरंगाबाद शरीफ से दिल्ली शरीफ तशरीफ़ लाते हुए रास्ते में एक नाबीना बुढ़िया आप की खिदमत में आई और फरयाद की के इस की ऑंखें रोशन हो जाएं, आप ने अपना हाथ उस बुढ़िया की आँखों पर फेरा, उस बुढ़िया की आँखों में रौशनी आ गई।

ये हमारा हो जाएगा

बयान करते हैं के हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के इन्तिकाल से दो साल पहले महल सुल्तानी में तशरीफ़ ले गए, चंद बेगमाते शाही आप से मुरीद हुईं, जिन में बादशाह बहादुर शाह ज़फर की वालिदा भी थीं, इन होने बहादुर शाह ज़फर जिन की उमर उस वक़्त आठ साल की थी, हज़रत से मुरीद कराया, हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने कुछ पढ़ कर बादशाह बहादुर शाह ज़फर पर दम किया, और अकबर शाह सानी से फ़रमाया, के अगर ये बच्चा बादशाह न होता तो में इसको अपना बना लेता, बादशाह ने अर्ज़ की अब भी आप ही का है, फ़रमाया ये खुद ही हमारा हो जाएगा।

मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर व इशाअते दीने इस्लाम

आप की सुहबत जादू का असर रखती थी, जो आप की खानकाह में आ जाता था, मुतअस्सिर हुए बगैर नहीं रह सकता था, जिस पर नज़र पड़ जाती वो शिकार हो जाता था, जराइम पेशा लोग पनाह लेने के लिए खानकाह में आते और वली बनकर निकलते, जो तकलीफ पहुंचाने की खातिर आते वो आप के गुलाम बन जाते, आप का इल्मे कश्फ़ और तसर्रुफ़ गायत दर्जा बुलंद था, दिल्ली में एक बुढ़िया ने आप को अपने यहाँ ठहराया, बुढ़िया के मकान के करीब एक बुत खाना था, हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के क़याम से बुत खाने की रोक खत्म हो गई और गैरमुस्लिम कुफ्फार! भी आप की अकीदत का दमभरने लगे,

रुश्दो हिदायत और इसलाहो तरबियत की आवाज़ खूब बुलंद की थी और हर तरफ गूंजे लगी थी, आप ने इत्तिबाए शरीअतो सुन्नत की तलकीन की और रुश्दो हिदायत तब्लीगी काम के लिए एक जमात भी तय्यार की, मुबल्लिग़ीन को अपने हल्के में रख कर पूरी तरह तरबियत देते फिर इशाअते दीने इस्लाम के फ़रीज़े की अदाएगी के लिए फिर मुख्तलिफ ममालिक को रवाना किया, और सिलसिलए आलिया चिश्तिया निज़ामिया की खानकाहें काइम कीं,
आप की सरगर्मियों का दायरा बहुत वसी था, उमरा वुज़रा सलातीन आप के अकीदतमंद थे, और आप की बैअत से मुशर्रफ थे, शाह आलम बादशाह को आप से काफी मुहब्बत थी, और आप से मुलाकात के लिए आया करता था, इन की बहन खेरून निसा! भी हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! से मुरीद थी, और नवाब ज़ीनत महल वालिदा शाह आलम “और मुगलिया दौर के हिन्द के आखरी बादशाह बहादुर शाह ज़फर आप के बहुत मोतक़िद अकीदतमंद थे” इन के अलावा फौज के सैंकड़ों सरदार आप से मुरीद थे, मजदुद द्दौला बहादुर! और नवाब ज़ाब्ता खान जो मशहूर सरदारों में से थे, आप के मुख्लिस मुरीदों में से थे कई गाऊं दिहात आप को देना चाहते थे मगर आप ने कबूल न किया,

मज़कूरा बयानात से ये बात अयाँ ज़ाहिर होती है के उस वक़्त ये तमाम बुज़रुग तबलीगो इस्लाह के काम में मसरूफ थे और गैर मुस्लिम भी मुशर्रफ बा इस्लाम होते थे, आप के मुरीदीन बिलख़ुसूस हज़रत ख्वाजा नूर मुहम्मद महारवी रहमतुल्लाह अलैह, महार शरीफ पंजाब पाकिस्तान, हज़रत ख्वाजा नियाज़ अहमद चिश्ती बरेलवी रहमतुल्लाह अलैह, यूपी में, हज़रत हाजी लाल अहमद रहमतुल्लाह अलैह, ने दिल्ली के अतराफ़ में, हज़रत मौलाना जमालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, ने रामपुर में हज़रत मीर ज़ियाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, ने जयपुर में, हज़रत मीर शम्सुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह, ने अजमेर शरीफ में, बहुत मेहनत और जिद्दो जहिद कोशिश की और सिलसिलए आलिया चिश्तिया निज़ामिया को मुल्क के दूर दूर हिस्सों तक फैलाया और खूब दीनी व इस्लाही काम को अंजाम दिया।

हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के अक़वाल

(1) वक़्त की कद्र करो और इस का कोई लम्हा भी किसी फ़ुज़ूल काम में ज़ाए मत करो
(2) अपने अंदाज़े बयान को इस कद्र मुस्तनद बनालो के अगर कोई बंदह तुझ से अल्लाह का नाम भी सीखले तो इस का ये अमल तेरे नामए अमाल में इज़ाफ़ा का देगा
(4) हराम माल की मालदारी से ग़ुरबत बेहतर है
(5) इंसान की ज़िन्दगी में उस के हमनशीनो की सुहबत का बहुत गहरा असर होता है लिहाज़ा तंग नज़र लोगों की महफ़िल में मत बैठा करो
(6) तालिबे हक को चाहिए के रात को सोने से क़ब्ल अपने पूरे बदन का मुहासिबा करे और ये देखे के इस ने बंदा होने का हक अदा किया है या नहीं?
(7) फ़रमा बरदार बनकर ज़िन्दगी गुज़ारोगे तो फलाह पाओगे और अगर मखदूम बन कर नाज़ो नखरे वाली ज़िन्दगी गुज़ारना चाहोगे तो परेशानियों को दावत दोगे।
(8) ऐ नादान दुनिया से दिल मत लगा ये आरज़ी ठिकाना है

मसनदे सज्जादगी

हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के एक साहबज़ादे हज़रत गुलाम कुतबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह थे, जो आप के विसाल के बाद सज्जादा नशीन बने, बाज़ हज़रात कहते हैं, के मुहम्मद अकबर शाह और बादशाह बहादुर शाह ज़फर आप ही से मुरीद थे, इन के विसाल के बाद इन के साहबज़ादे हज़रत मियां नसीर रहमतुल्लाह अलैह उर्फ़ काले साहब सज्जादा नशीन बने, आप के ज़माने के निहायत नामी गिरामी शैख़े तरीकत बुज़रुग थे, बादशाह और तमाम बड़े बड़े उमरा सदर आप के मोतक़िद आशिक़ीन थे, हज़रत मियां नसीर रहमतुल्लाह अलैह उर्फ़ काले साहब के बाद इन के बड़े साहबज़ादे हज़रत गुलाम मोईनुद्दीन साहब सज्जादा नशीन बने, इन के बाद सज्जादगी हज़रत मियां नसीर रहमतुल्लाह अलैह उर्फ़ काले साहब के नवासों में मुन्तक़िल हो गई।

आप के चंद मशाहीर खुलफाए किराम

हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के तकरीबन चालीस ख़ुलफ़ा! हुए हैं यहाँ उन में से चंद के असमाए गिरामी लिखते हैं:
(1) हज़रत ख्वाजा नूर मुहम्मद महारवी पंजाब पाकिस्तान में
(2) हज़रत ख्वाजा शाह नियाज़ अहमद चिश्ती बरेलवी बरैली शरीफ में
(3) हज़रत ख्वाजा हाजी लाल मुहम्मद दिल्ली शरीफ में
(4) हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन रामपुर में
(5) हज़रत मीर ज़ियाउद्दीन जयपुर में
(6) हज़रत मीर शमशुद्दीन अजमेर शरीफ में
(7) हज़रत मौलाना सय्यद बदीउद्दीन
(8) हज़रत मौलाना नूरुल्लाह
(9) हज़रत मौलाना फरीद अली
(10) हज़रत मौलाना हसन अली
(11) हज़रत मौलाना मुकर्रम
(12) हज़रत मौलाना रोशन अली रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

आप की तसनीफ़

  1. निज़ामुल अक़ाइद
  2. रिसाला मरजिया
  3. फखरुल हसन

विसाले पुमलाल

हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का इन्तिकाल तकरीबन 73, साल की उमर में 27, जमादीयुस सानी 1199, हिजरी मुताबिक 1784, ईसवी को हुआ।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक दिल्ली शरीफ (इंडिया) हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार शरीफ के पास में ही है महरोली, शरीफ में मरजए खासो आम है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • ख़ज़ीनतुल असफिया
  • फखरे जहाँ देहलवी
  • हयाते कलीम
  • तज़किराए औलियाए हिन्दो पाकिस्तान

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