हज़रत मौलाना शैख़ ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत मौलाना शैख़ ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह

नाम मुबारक

आप का नामे नामी इस्मे गिरामी बुरहानुल आरफीन हज़रत मौलाना शाह “निज़ामुद्दीन” औरंगबादी चिश्ती निज़ामी है, रहमतुल्लाह अलैह! आप का सिलसिलए नसब शैख़ुश शीयूख हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह! के वास्ते से ख़लीफ़ए अव्वल हज़रत सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु तक पहुँचता है, इस लिए आप “सिद्दीकी” हैं, आप की ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) हज़रत ख्वाजा सय्यद मुहम्मद गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के खानदान से थीं।

विलादत शरीफ

आप की पैदाइश मुबारक 1060, हिजरी मुताबिक 1650, ईसवी को “क़स्बा नगराऊं” क़स्बा काकोरी! के पास शहर लखनऊ के पास हिंदुस्तान में हुई।

तहसीले इल्मे दीन

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने इब्तिदाई तालीम अपने वतन ही में हासिल की, और मज़ीद तालीम हासिल करने के लिए उन दिनों आप हिन्द की राजधानी दिल्ली तशरीफ़ लाए, उस ज़माने में दिल्ली हिंदुस्तान का इल्मी व रूहानी मरकज़ था, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के इल्मी कमालात का शुहरा सुनकर आप की खानकाह में तशरीफ़ लाए, उस वक़्त आप के दौलत कदे पर महफिले सिमअ मुनअकिद थी, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! महफिले सिमअ के वक़्त दरवाज़ा बंद करवा देते थे, आप ने दरवाज़े पर दस्तक दी, हज़रत के इशारे पर एक मुरीद ने बाहर जा कर देखा के एक गैर मोतारिफ शख्स खड़ा नज़र आया, इस ने नाम दरयाफ्त कर के वापस आ कर हज़रत को बताया, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया जाओ उन्हें अंदर बुलालाओ,

हाज़रीने मजलिस को बड़ा तअज्जुब हुआ के हज़रत ने एक ना आशना को इस खुसूसी महफ़िल में क्यों मदऊ कर लिया, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया ये शख्स गैर नहीं है अपना ही है, इस इरशाद की वजह ये थी के जब आप रहमतुल्लाह अलैह क़ुत्बे मदीना हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह! से खिलाफ़तो इजाज़त हासिल की थी, तो रुखसत के वक़्त आप के पीरो मुर्शिद ने हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से फ़रमाया था के तुम्हारे पास इस शक्लो शबाहत का एक शख्स निज़ामुद्दीन नामी आएगा, तुम उन को मुरीद कर लेना, और खिलाफत से भी नवाज़ देना, और जो कुछ तुम्हें हम से मिला है वो सब उनको सौंप देना, क्यों के हमारी निस्बत का वही मालिक है वो आलम को अपने फ़ैज़ो बरकात इल्मी कमालात से मालामाल करेगा और ज़ुल्मतों जिहालत बद्द अमली को श्मए हिदायत से रोशन करदेगा।

मौलाना निज़ामुद्दीन पर मुर्शिद की नज़र

अल गर्ज़ हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! से निहायत खुलूसो मुहब्बत के साथ मिले, और आप की ज़ाहिरी तालीमों तरबियत कीज़िम्मेदारी कबूल की, चुनांचे एक अरसा तक हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! पीरो मुर्शिद की खिदमते बा बरकत में आप उलूमे ज़ाहिरी हासिल करते रहे,
एक दिन हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का एक पीर भाई खिदमते अक़दस में हाज़िर हुआ, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! उस वक़्त हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को किसी किताब का दर्स दे रहे थे, पीर भाई आप को देखते ही मस्ती और कैफियत के आलम में बे होश हो गए, हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ये मंज़र देख कर तअज्जुब में पड़ गए, और उसी दिन से आप की इरादत और अक़ीदतो मुहब्बत में इज़ाफ़ा हो गया।

इजाज़तो खिलाफत

एक रोज़ पीरो मुर्शिद मजलिस से उठ कर फर्श के किनारे बैठे थे, हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने आगे बढ़ कर जूते उठा कर साफ कर के रख दिए, आप के पीरो मुर्शिद ने हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की तरफ मुहब्बत से देख कर पूछा, तुम हमारे पास उलूमे ज़ाहिरी की तकमील के लिए आए हो या उलूमे बातनी के लिए आए हो? ये सुन कर हज़रत को अपने पीरो मुर्शिद हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह! का फरमान याद आ गया, जो मदीना शरीफ से रुखसत के वक़्त आप के मुर्शिद हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह! ने इरशाद फ़रमाया था, आप ने उसी वक़्त आप को अपने हल्काए इरादत में शामिल फरमा लिया, मुरीदों बैअत होने के बाद हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! इबादतों रियाज़त मुजाहिदा में मशग़ूलो मसरूफ हो गए, थोड़े ही अरसे में इस मंज़िल को भी तह कर लिया, और आप के मुर्शिद हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने मुरीद किया और बैअतो खिलाफत! से नवाज़ा और दर्जाए कमाल पर फ़ाइज़ होने के बाद पीर! के हुक्म से दक्कन रवाना हुए।

मुर्शिद के हुक्म से दक्कन की रवानगी

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! उस ज़माने में दक्कन तशरीफ़ ले गए, जब हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह मुरहिटो से आखरी और फैसला कुन मारकों में मसरूफ थे, मुगलिया सल्तनत की शानो शौकत इकबालो इक्तिदार का दौर खतम हो रहा था, हर तरफ बगावत के शोले भड़क रहे थे, ऐवाने शाही मुताज़लज़ल और हर तरफ ख़ौफ़ो हिरास का आलम था, ज़ाहिर है के ऐसे वक़्त में सरमायाए दीनो मिल्लत की हिफाज़त बहुत दुश्वार शदीद काम था, मगर चूंके अल्लाह पाक ने बेपनाह सलाहियतों का मालिक बनाया था, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के हुक्म से दक्कन पहुंच कर इर्शादो तलकीन रुश्दो हिदायत में मसरूफ हो गए, लाखों इंसान आप के फैज़ान से फ़ैज़याब हुए, बाज़ तज़किरों के मुताले से पता चलता है के दक्कन में आप के कई हज़ार से भी ज़ाइद मुरीद थे,
हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के मक्तूबात के मुताला से मालूम होता है के हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! शाही लश्कर के साथ दिल्ली से दक्कन गए थे, और वहां एक अरसा तक अपने पीरो मुर्शिद की हिदायत पर लश्करियों में तब्लीगी व इस्लाह का काम करते रहे, और उनको इस कोशिश में बड़ी कामयाबी मिली, बीजापुर और बुरहानपुर में भी आप का क़याम रहा, आखिर में आप औरंगाबाद जा कर मुस्तकिल मुकीम हो गए, और वहां खानकाहे आलिया चिश्तिया निज़ामिया काइम की थोड़े ही अरसे में आप मरजए खासो आम बन गए।

आप की रूहानी कशिश

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की सुह्बते फैज़ का इतना असर था के आप जिस की तरफ देख लेते, वो आप का ही गरवीदह हो जाता था, आप के एक मुरीद का बयान है के आप के जमाले जहाँ आरा देख कर मेरे दिल में आग भड़क उठी और उस के शोलों से मेरा खिरमने हस्ती जल गया, आप की ज़ुल्फ़े गिरहगीर ने जकड़ बंद कर के तीरे मिज़ग़ां ने मर डाला, आप के इश्क ने मुझे फरोख्त कर दिया और आप के हुस्न ने मुझे खरीद लिया।

पीरो मुर्शिद की फरमाबरदारी

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! जिस तरह हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के महबूब मुरीद व खलीफा थे, वैसे ही आप की हिदायत पर अमल किया करते थे, दक्कन सूबा महराष्ट्र ज़िला औंरंगबाद पहुंच कर हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने जिस सरगर्मी और जाँफ़िशानी से पीरो मुर्शिद के हुक्म के मुताबिक तबलीगो इस्लाह और आलाए कलिमतुल हक का हक अदा किया, और आप का ही हिस्सा था, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! अपने मुरीद हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की फरमाबरदारी से बहुत खुश हुए।

सुन्नत पर अमल करना

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! अपने पीरो मुर्शिद हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की तरह मुत्तबाए सुन्नते नबवी थे आप का हर कौल, फेल और हाल सुन्नते रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मुताबिक था, कभी कोई काम सुन्नत के खिलाफ देखा या सुना नहीं गया, हमेशा सुन्नत पे सख्ती से अमल करते थे।

आप की इबादतों रियाज़त

दक्कन पहुंचने के बाद शुरू शुरू में मुताला क़ुतुब का बहुत शोक रहा लेकिन औरंगाबाद में पहुंच कर आप अपना सारा वक़्त इबादतों रियाज़त में गुज़ारने लगे, नमाज़े फजर बा जमात अदा करने के बाद आप कई घंटे तक खल्वत में यादे हक ज़िकरुल्लाह में मशगूल रहते थे, अशग़ाल से फरागत के बाद हुजरे का दरवाज़ा खोल दिया जाता था, लोग आप से मुलाकात करते थे, नमाज़े ज़ोहर के बाद हुजरे का दरवाज़ा बंद कर दिया जाता था, असर की नमाज़ के वक़्त खुलता था, उस वक़्त हज़रत ख्वाजा नूरुद्दीन मिशकात शरीफ या और कोई किताब पढ़ा करते थे, असर की नमाज़ के बाद मशाइखे इज़ाम व मुरीदीन मोतक़िदीन के हालात सुना करते थे, मगरिब की नमाज़ के बाद हुजरे में चले जाते थे, उस वक़्त सिर्फ मख़सूस लोगों को हाज़री की इजाज़त थी।

आप का लिबास व तआम

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने खाना कभी तनहा नहीं खाया, अगर कभी ऐसा इत्तिफाक होता के कोई शख्स शरीके तआम न हो सकता तो दोस्तों और मुख्लिसों के घर खाना भिजवाते थे, आप का लिबास बा मुश्किल ढाई तीन रूपये की कीमत का होता था, आप निहायत सादगी पसंद थे, तकल्लुफ पसंद नहीं फरमाते थे, कुरता पाजामा मिटटी के रंग के जैसा रंगा हुआ ज़ेबेतन फरमाते थे, बेशकीमत कपड़ा पसंद नहीं करते थे, एक मर्तबा हज़रत ख्वाजा कामगार खां साहब ने शाल और गरम कपड़े आप की खिदमत में पेश किए तो आप ने ये कह कर वापस कर दिए के हमे ऐसे लिबास की रगबत ज़रूरत नहीं।

आप पीरो मुर्शिद की नज़र में

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! पर आप के पीरो मुर्शिद की ख़ास नज़रे करम थी एक मर्तबा आप को शुबा हुआ के शायद किसी शख्स ने आप की बुराई हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में लिख कर भेजी है, आप ने एक खत पीरो मुर्शिद की खिदमत में भेजा जिस के जवाब में आप के मुर्शिदे करीम ने तहरीर फ़रमाया के मेरे पास तुम्हारी कोई शिकायत नहीं आई, अगर आती भी तो में कब इससे असर लेने वाला था, एक मर्तबा आप के मुर्शिदे करीम ने आप को तहरीर फ़रमाया था के तुम ने ये गुमान क्यों कर लिया के में तुम पर महिर्बान नहीं हूँ, अगर में दुनिया में तुम पर महिर्बान ना हूँगा तो दुनिया में मेरा कौन नूर चश्म है जिस पर महिर्बान होगा।

मुरीदों की तरबियत

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! मुरीदों की रूहानी तरबियत के बारे में बड़ी सख्ती से काम लेते थे, दिन रात हर वक़्त मुरीदों की देख भाल रखते थे, निस्फ़ शब के बाद मुरीदों को देख ने के लिए तशरीफ़ ले जाया करते थे, जिस को सोता हुआ पाते उस के मुँह पर ठंडा पानी डाल कर जगा दिया करते थे, हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की रूहानी तरबियत में पास इनफास और ज़िक्रे जिहर को खास अहमियत हासिल थी, आप जामा मस्जिद औरंगाबाद में हल्काए ज़िक्र क्या करते थे, दो दो सो तीन तीन सो मुरीद आप के साथ ज़िक्रे जिहर किया करते थे।

मिस्कीन व गुरबा परवरी

शुरू ज़माने में आप ने किसी से भी नज़राना कबूल नहीं करते, लेकिन पीरो मुर्शिद के हुक्म से बाद में कबूल फरमाने लगे, जुमा के दिन की फुतूह नज़राना कव्वालों या मुस्तहिक़ हाज़रीन मजलिस में तकसीम होती थी, बाकी अय्याम में जो आता था, वो मुहताजों को दिया जाता था, आप के पास अशरफी, रूपया, पैसे अलैदह अलैदह कागज़ में बन्धे रखे रहते थे।

महफिले सिमअ

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! सिमअ के मुआमले में हमेशा मशाइखे मुताक़द्दिमीन के उसूलों के पाबंद रहे, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की महफिले सिमअ! की तरह आप की महफ़िल में भी हरकसो नाकस फासिक फ़ाजिर, शराबी दाढ़ी मुंडा, बेनमाज़ी बद्द अमल नहीं आ सकता था।

आप के दर से कोई खाली नहीं जाता

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की आदत थी के जब कोई शख्स आप के पास आता तो आप उसको ज़रूर कुछ ना कुछ खिलाते थे, और अगर कुछ ना होता तो इत्र खुशबू इनायत फरमा देते थे, आप के पास से कोई शख्स खाली हाथ न लोटता था, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की तरह किसी शख्स को रंजीदह करना आप को बिलकुल पसंद नहीं था, दिलजोई और दिल गीर आप का मकसदे हयात था।

शाही दरबार में जाने से इंकार

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! उमरा और दुनिया दार से दूर रहते थे, और उनके तहाइफ़ भी कबूल नहीं किया करते थे, एक मर्तबा शाहे दक्कन! ने आप को बुलाया था, मगर आप ने दरबार में जाने से इंकार कर दिया था, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को मालूम हुआ तो उन्होंने फ़रमाया: तुमने बहुत अच्छा किया जो तुम दरबार में नहीं गए, फ़कीर अमीर के दरवाज़े पर अच्छा मालूम नहीं होता।

आप की औलादे अमजाद

पीरो मुर्शिद की इजाज़त से आप ने शादी की, पहली बीवी से हज़रत मौलाना ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी, मुहम्मद इस्माईल, और एक बेटी थीं, और दूसरी बीवी से तीन लड़के (1) गुलाम मोईनुद्दीन, (2) गुलाम बहाउद्दीन (3) गुलाम कलीमुल्लाह पैदा हुए, इन बच्चों भाईयों में से सिवाए मुहम्मद इस्माईल के बाकी सब मुहिब्बुन नबी हज़रत मौलाना ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी कुद्दीसा सिररुहु से मुरीद बैअत थे।

करामात

निज़ामुल मलिक आसिफ जाह को हिंदुस्तान में दक्कन पहुंचे थोड़ा ही अरसा हुआ था के मुबारिज़ खा ने एक भरी फौज से लश्कर खेड़े! पर हमला कर दिया, नवाब साहब घबराए हुए, हाज़िरे खिदमत हुए, पूरी सूरते हाल अर्ज़ की और दुआ के तलबगार हुए, हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने थोड़ी देर तअम्मुल गोरो फ़िक्र के बाद इरशाद फ़रमाया घबराओ नहीं, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त कादिर है फ़तेह तुम को ही हासिल होगी, नवाब साहब ने अर्ज़ किया हज़रत मेरे पास तो फौज भी कम है और दुश्मन बड़ी तादाद के सात हमला के लिए तय्यार है फ़तेह अता करना तो खुदा के हाथ में है, हज़रत मुझे कोई ऐसी अलामत निशानी बता दें जिससे इत्मीनान हो जाए, हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया: कल जुमेरात है सरकार आसिफिया के डेरों में संदली पंजा नमूदार होगा यही फ़तेह की निशानी है, चुनांचे ऐसा ही हुआ जुमेरात के दिन तमाम छोटे बड़ों डेरों में संदली पंजे का निशान नमूदार हुआ और अल्लाह पाक ने फ़तेह अता फ़रमाई।

जोगन ने इस्लाम कबूल कर लिया

मन्क़ूल है के: हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के गुलामो में एक शख्स मिर्ज़ा सईद बेग रोज़ाना हाज़िरे खिदमत हुआ करता था, वो इत्तिफाकन एक हसीनो जमील जोगन के इश्क में इस दर्जा मुब्तला हो गया के हज़रत की खिदमत में हाज़री छोड़ दी, कई रोज़ बाद हाज़िरे खिदमत हुआ तो आप ने गैर हाज़री का सबब दरयाफ्त किया मिर्ज़ा से सारा माजरा बयान कर के अर्ज़ किया, हज़रत ये सुनकर खामोश हो गए पीर भाइयों ने सलाह की के हज़रत को किसी रोज़ किसी बहाने से जोगन के घर ले चलें, शायद हमारे दोस्त का काम हो जाए पीर भाई हज़रत को जोगन के घर तो ना ले जा सके, मगर जोगन को हज़रत की खिदमत में ले आए, अगले दिन हज़रत ने मिर्ज़ा जी से कहा मियां तुम कल इस जोगन के पास गए जोगन देखते ही फ़ौरन बा अदब ताज़ीम के लिए खड़ी हो गई, और कहने लगी मुझे हज़रत की खानकाह में ले चलो, चुनांचे ये दोनों ख़ुशी ख़ुशी खानकाह में हाज़िर हुए जोगन कदम बोसी कर के मज़हबे इस्लाम में दाखिल हुई और बैअत होने की दरखास्त की हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने कलमा शरीफ पढ़ा कर बैअत से मुशर्रफ किया, और उस का निकाह मिर्ज़ा जी से कर दिया, इस वाकिए को देख कर ढाई सो गैर मुस्लिम मुशर्रफ बा इस्लाम हुए।

आप की तस्नीफ़

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने ज़िक्र अज़कार के मोज़ू पर एक बे मिस्ल किताब “निज़ामुल क़ुलूब” तस्नीफ़ फ़रमाई थी, इस किताब में मुख्तलिफ अज़कार व अशग़ाल को तफ्सील से बयान किया गया है।

चंद मशाहीर खुलफाए किराम के असमाए गिरामी दर्ज किए जाते हैं

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के बेशुमार खुलफाए किराम मुख्तलिफ इलाकों में मखलूके खुदा की रहनुमाई के लिए फैले हुए थे उन में से चंद ये है:
(1) ख्वाजा कामगार खां
(2) गुलाम कादिर खां
(3) मुहम्मद अली
(4) ख्वाजा नूरुद्दीन
(5) सय्यद शाह शरीफ
(6) शाह इशकुल्लाह
(7) मुहम्मद जाफर
(8) करम अली शाह
(9) मुहम्मद यार बेग
(10) शैख़ महमूद
(11) खुसूसियत के साथ सिलसिले की इशाअत मुहिब्बुन नबी हज़रत मौलाना ख्वाजा फखरुद्दीन फखरे जहाँ देहलवी से हुई जो आप के मुरीदो खलीफा व जानशीन बने रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

वफ़ात

हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! 12, ज़ीकायदा 1142, हिजरी मुताबिक 29, मई 1730, ईसवी बरोज़ मंगल को हुआ।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक सूबा महराष्ट्र के शहर औरंगाबाद में ज़ियारत गाहे खलक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  • ख़ज़ीनतुल असफिया
  • फखरे जहाँ देहलवी
  • हयाते कलीम
  • तज़किराए औलियाए हिन्दो पाकिस्तान

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