हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह

गियारवी सदी के मुजद्दिद

मुजद्दिद वक़्त, क़ुत्बे ज़माना, आफ़ताबे इल्मो मारफ़त, आबिदो ज़ाहिद, आफ़ताबे हकीकत, मुजद्दिदे वक़्त, साहिबे कशफो करामात, आरिफ़े बिल्लाह, फनी फिल्लाह, मुहद्दिसे कामिल, मुजद्दिदे सिलसिलए आलिया चिश्तिया निज़ामिया हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! सिलसिलए चिश्तिया निज़ामिया के “मुजद्दिद” हैं, शुमाली, जुनूबी, हिंदुस्तान आप ही के रूहानी फियूज़ो बरकात से मालामाल है, आप की सीरत और तालीमात तसव्वुफ़ और तालीमें चिश्तिया की जान है, गियारवी सदी हिजरी में जब मुसलमानाने हिन्द के अंदरूनी हालात बद्दतर हो चुके थे, सारा सियासी निज़ाम बिलकुल दरहम बरहम हो चुका था, और मुआशिरा फिस्को फसाद, जंगो जिदाल, बद अमली, की ज़द में आ कर जबूं हाली (कमज़ोर नाकारा) का शिकार हो चुका था, इसी दरमियान में अहले सुन्नत व जमात के सलासिले तरीकत में सिलसिलए निज़ामिया चिश्तिया का दौरे तजदीद व अहया अमल में आया जिस के ज़रिये ना गुफ्ता बीह हालात जल्द ही काबू में आ गए, नशातुस्सानिया (हयाते नो, ज़वाल के बाद उरूज) का सेहरा! तमाम तर अगर किसी के सर बंधता है वो हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के सर है,

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! सिलसिलए आलिया चिश्तिया निज़ामिया ही के “मुजद्दिद” नहीं थे बल्के अपनी सदी के मुजद्दिद व मुहय्ये मिल्लत भी थे हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! जिस दौर में मसनदे इरशाद व रुश्दो हिदायत पर जलवा अफ़रोज़ हुए, वो इस्लामी हिंदुस्तान का तारिख का निहायत ही नाज़ुक दौर था, हज़रत औरंगज़ेब आलम गीर रहमतुल्लाह अलैह के आखरी अय्याम थे, मुग़ल हुकूमत दम तोड़ रही थी, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! साहिबे कश्फ़े करामात वक़्त के नब्ज़ सनाश थे आप की नज़रों में इस्लामी हुकूमत के तज़लज़ुल के असबाब थे, वो समझते थे, के हुकूमत के तबदीली के क्या क्या असरात ज़हूर में आती हैं,
हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने वक़्त की नज़ाकत का अहसास कर के अपनी पूरी कुव्वत दीने इस्लाम तब्लीग व इस्लाह के काम में लगा दी, नशातुस्सानिया (हयाते नो, ज़वाल के बाद उरूज) का सेहरा! तमाम तर अगर किसी के सर बंधता है वो हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के सर है।

विलादत शरीफ

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! 24, जमादियुस सानी 1060, हिजरी मुताबिक 1650, ईसवी को हिन्द की राजधानी दिल्ली में आप की पैदाइश हुई।

खानदानी हालात

आप के आबाओ अजदाद मुल्के तक़ाजिस्तान के शहर खुजन्द! के रहने वाले थे, आप के दादा जान शैख़ अहमद! मेमार शाहजहां के दौरे हुकूमत के मश्हूरो मारूफ मेमार में से थे, और उन्हें सलतनाते मुगलिया की तरफ से “नादिरूल अस्र” का ख़िताब मिला था, शैख़ अहमद! मेमार (मिस्त्री) के सब से छोटे साहबज़ादे “नूरुल्लाह” थे, जो हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद माजिद! थे, शैख़ अहमद! मेमार अपने ज़माने के बे मिसाल ख़त्तात नक्काशी के जानकर एक बेहतरीन इंजिनियर थे, इल्मे रियाज़ी पर अक़्लीदस कामिल उबूर रखते थे,
शाजहाँ बादशाह ने दिल्ली में लाल किले! की तामीर के लिए इन्हें शहर खुजन्द! मुल्के तजाकिस्तान से बुलवाया था, और आप हिजरत कर के दिल्ली आए, और यही सुकूनत इख़्तियार करली,

इस्मे गिरामी व शजराए नसब

आप का नामे नामी इस्मे गिराम “कलीमुल्लाह” है, आप हज़रत शैख़ नूरुल्लाह के फ़रज़न्द हैं, आप कुरेशियुल नस्ल हैं, और सिलसिलए नसब हज़रते सय्यदना अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहु अन्हु तक जाता है, आप का शजराए नसब दर्ज ज़ैल है: शाह कलीमुल्लाह बिन नूरुल्लाह, मेमार अहमद बिन मेमार, नादिरूल अस्र बिन हामिद।

तालीमों तरबियत

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की इब्तिदाई तालीमों तरबियत बहुत आला पैमाने पर हुई थी, आप ने बड़ी मेहनत जाँफ़िशानीं से इल्मे दीन हासिल किया, इल्मे हदीस, इल्मे फ़िक़्ह, और दीगर उलूमे ज़ाहिरी आप ने शैख़ बुरहानुद्दीन अल मारूफ शैख़ बहलूल बिन कबीर मुहम्मद बिन अली सिद्द्की बुरहानपूरी, और हज़रत शैख़ अबू रज़ा हिंदी रहमतुल्लाह अलैह से पढ़ीं, हज़रत शैख़ बहलूल रहमतुल्लाह अलैह हज़रत सय्यद मुहम्मद गौस गुवालियारी रहमतुल्लाह अलैह साहिबे जवाहिरे खम्सा! की औलाद से थे, हज़रत शैख़ अबू रज़ा हिंदी रहमतुल्लाह अलैह जो हज़रत शाह वलियुल्लाह मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के ताया थे, इन दोनों बुज़ुर्गों से हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने उलूमे शरीअत की आला तालीम हासिल की और आप अठ्ठारह साल की उमर में एक बेहतरीन आलिमे दीन व फ़ाज़िल मुहद्दिस बन गए।

आप की वाइज़ो खिताबत

हजरत शेख याकूब चिश्ती अलैहिर रह्मा ने लिखा है के हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बचपन ही से काफी ज़हीन व फ़तीन थे, यही वजह थी के आप ने बहुत ही कम अरसे में उलूमे ज़ाहिरी मुकम्मल हासिल कर लिया, और अपनी इम्तियाज़ी ख़ुसुसियात की वजह से हम अस्र उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम पर फौकियत ले गए, आप की एक इम्तियाज़ी शान ये भी थी के अल्लाह पाक ने आप को तहरीरों तकरीर पर यकसां कुव्वत अता फ़रमाई थी, आप रहमतुल्लाह अलैह! की तकरीर मुबालगा अमेज़ बातों से पाक होती थी, और आप के कलाम की शीरीं बयान की नुदरत इस कद्र दिल आवेज़ होती थी, के सुनने वाले हैरान हो जाते थे, आप की तकरीर का एक एक लफ्ज़ दरदो असर में दूबा हुआ होता था, और उनके अक्सर जुमले ऐसे रूह परवर होते थे, जो तीरो नश्तर की तरह सुनने वालों के दिलों पर उतरते थे, आप की सेहर आफ़रीँ तकरीरों से मुतअस्सिर हो कर हज़ारहा फासिको फ़ाजिर मुत्तक़ी परहेज़गार बन गए।

मरदे खुदा की निगाहें करम

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! एक रोज़ आप ज़ीनतुल मसज्जिद में बैठे दर्स दे रहे थे, के एक मरदे खुदा ने आप से कहा के इन कामो से कुछ हासिल नहीं होगा वो करो जो तुम्हारा काम है, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया:
के इससे ज़ियादा में क्या काम करूँ, पांचों वक़्त की नमाज़ अदा करता हूँ, रोज़ाना कुरआन शरीफ पढ़ता हूँ, रमज़ान शरीफ के रोज़े रखता हूँ, गुरबा मसाकीन महताजों के साथ हुस्ने सुलूक करता हूँ, एहकामे इलाही व शरीअते मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दिन रात अमल करता हूँ,
हिदायत व रहनुमाई के लिए दर्स व खिताबत का सिलसिला जारी है, उन्होंने का मगर तुम्हारा काम सिर्फ यही नहीं ये तो सब ऊपरी ज़ाहिरी काम हैं, तुम हकीकत से दूर और बेगाना हो, तुम्हारी ज़िन्दगी बे कैफ है, नशरो तब्लीग अच्छा काम है, मगर इससे ज़ियादा ज़रूरी खुद अपने नफ़्स में हक व हकीकत को फैलाना है, दूसरों को हिदायत देने से पहले खुद अपने आप को हिदायत देनी चाहिए, तुम्हारा काम इन बातों के ज़िन्दान खाने में मुक़य्यद रहना नहीं है, तुम इससे बुलंद तर काम के लिए आए हो, तुम्हे इस दलदल से निकल कर महरमे असरार बनना चाहिए, मंतिको फलसफा में क्या रखा है।

अब तो दुनिया तेरे दीवाने की

इस के बाद हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की दुनिया ही बदल गई, हर रोज़ हालत बदलने लगी, महबूबात व मालूफ की तमाम रही सही ज़ंजीरें ख़त्म हो गईं, और आप रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी इज्ज़ो इंकिसारी, सिद्क़ो ख़ुलूस मुहब्बतों इस्तगराक, का मुजस्समा बन गई बिलकुल तारिकुद दुनिया हो गए, किसी से कुछ वास्ता न था न घर से न दर से, सब कुछ इश्के इलाही में सौंप दिया और मस्ताना वार फिरने लगे,
जज़्बो सर मस्ती का इब्तिदाई ज़माना था, महीनो एतिकाफ में बैठे रहते थे, मुसलसल रोज़े रखते रहते थे, एक दिन में दो कुरआन शरीफ पढ़ते थे, जब दुरूद शरीफ पढ़ने बैठते तो तीन लाख बार पढ़ते थे, इस्मे ज़ात का विर्द करते तो इस विर्द में गर्क हो जाते जिस्म से पसीना जारी हो जाता था, और जब इन बातों से जी भर जाता तो सब छोड़ छाड़ कर जंगल की तरफ चले जाते, जहाँ जी में आता बैठ जाते,

हुस्ने इत्तिफाक से एक रोज़ तुगलकाबाद के वीराने में एक साहिबे दिल से मुलाकात हो गई,
उन्होंने कहा तुम किस वहशत में हो, तअल्लुक़ात की ज़ंजीर काट लेना ही काफी नहीं दिल में भी दर्दो सोज़ होना चाहिए, तलब सादिक होना चाहिए, जोश हरदम ताज़ा हो, हकीकत का जलवा जहाँ भी नज़र आए, बे तअम्मुल दौड़ जाओ,
हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने जवाब दिया जो बात मेरे इख़्तियार में है इस के लिए तैयार हूँ, मगर दर्दो सोज़ किस्से मांगू? जोश को जितना ताज़ा कवि रख सकता हूँ, रखता हूँ, सिद्क़ इखलास जितना मेरे इख़्तियार में है पैदा कर लिया है, हाथ की ज़रूरत है जिससे में अबतक महरूम हूँ, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ये बात सुनकर उन्होंने जवाब दिया आप तलाश जारी रखें आप मंज़िले मक़सूद को पहुंच जाओगे।

जज़्ब से सुलूक की तरफ

आख़िरकार जज़्बो मस्ती इस्तगराकी हालात का ज़माना ख़त्म हुआ तो मैदाने हकीकत में कदम रखा, उस ज़माने में बुज़ुरगों की अरवाह रूहों से मुलाकातें हुईं, कई मर्तबा हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत से मुशर्रफ हुए, गौसे ज़माना हज़रत ख्वाजा मौदूद चिश्ती, रहमतुल्लाह अलैह सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत शैख़ अहमद रहमतुल्लाह अलैह, इमामे रब्बानी मुजद्दिदे अल्फिसानी शैख़ अहमद सरहिंदी रहमतुल्लाह अलैह, और हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! से भी मिले, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के लिए दो ठिकाने बन गए, (1) मज़ारात मुबारक पर मोतक़िफ़ हो कर कसबे फैज़ (2) या अहलुल्लाह की सुहबतें, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की ये हालत थी के जिस किसी शख्स के मुतअल्लिक़ सुनते के वो खुदा रसीदा है, उस की खिदमत में फ़ौरन हाज़िर होते, और जो तरीका वो बतलाते उस पर अमल पैरा होते थे, इसी तरह आप को पूरा साल गुज़र गया, मुख्तलिफ अहवाल मुन्कशिफ़ होते रहे, कभी जज़्बो शोक पड़ जाता था कभी सुरूर पड़ जाता था,
हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! दिल्ली में हज़रत मुहम्मद सादिक रहमतुल्लाह अलैह के पास आया जाया करते थे,

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! पर जज़्ब की कैफियत तरी थी एहतिराम शरीअत को मलहूज़ रखते हुए, आप इस हालत को छुपाने की हद से ज़ियादा कोशिश करते थे, लेकिन जब ज़ब्त का याराना रहा और बिलकुल मजबूर हो गए, तो मजज़ूब से अपनी हालत बयान कर के इमदाद की दरख्वास्त की उन्होंने जवाब दिया, के अगर इसी किस्म की आग चाहते हो तो मेरे पास बहुत है लेकिन पानी हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह के पास है उनके पास जाओ, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का क्लब व जिगर इस आग से पहले ही सख्त हो चुका था, रहमत की बारिश के मुन्तज़िर थे, हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह का नाम सुनते ही बे ताब हो गए, और मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा के लिए रवाना हो गए मक्का शरीफ पहुंच कर तवाफ़ व साई से फारिग हुए इस के बाद मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा की तरफ चल पड़े और चंद रोज़ के बाद हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पहुंच गए।

इजाज़तो खिलाफत

मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा पहुंच कर हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने अपना ज़ियादा वक़्त क़ुत्बे ज़माना की खिदमत में गुज़ारा, उन दिनों हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह! अपनी मसनद पर जलवा अफ़रोज़ थे, दुनिया जहाँ के लोग आप की खिदमत में हाज़िर हो कर अपने मकसद को पहुंचते थे, हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह! को देखते ही बेताब हो गए, हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह! बहुत खुश हुए हल्काए इरादत में दाखिल फरमा कर खिलाफत से सरफ़राज़ किया, हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में रह कर हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने कमालाते ज़ाहिरी व बातनी हासिल किए और दर्जाए विलायत व कुतबियत पर फ़ाइज़ हुए,
खिरका पोशी के बाद हज़रत शैख़ याहया मदनी रहमतुल्लाह अलैह! ने हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को ज़ाहिरी व बातनी नेमतों से सरफ़राज़ किया,

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! एक मुद्दत तक मदीना शरीफ में मुकीम रहे, उन अय्याम में हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की इबादत में हैरत अंगेज़ इज़ाफ़ा हो गया था, बाज़ अय्याम ऐसे गुज़रे के हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! तीन दिन के बाद एक जों की रोटी पानी में भिगो कर रोज़ा अफ्तार करते थे, हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आला दर्जे के मुतवक्किल थे, तवक्कुल व रज़ा आप का शिआर था, गियारा साल तक आप ने शबो रोज़ मुजाहिदा किया मदारिजे विलायत व कुतबियत से गुज़र कर दर्जाए महबूबी तक पहुंच गए थे, आप कोई हाजत मंद आप के पास आता था बहुत जल्द उस का मकसद पूरा हो जाता था,
आप के हम अस्र बुज़रुग हज़रत ख्वाजा शमशुद्दीन मुबारक रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाया करते थे, के जिस किसी को दीनी व दुनियावी मुराद जल्द हासिल करनी हो वो हमारे ज़माने के शैख़े आज़म हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! से तलब करे, हज़रत शैख़ जमालुद्दीन हसनी लिखते हैं के मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! अपने ज़माने के आरिफ़े कामिल थे, ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, और कश्फ़ में ला सानी थे, जो कुछ फरमा देते थे वही होता था।

आप की खानकाह

मदीना शरीफ से वापसी के बाद हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने शाहजहां आबाद में जामा मस्जिद दिल्ली और लाल किला के दरमियान बाजार खानम! में सुकूनत इख़्तियार फ़रमाई और सिलसिलए दरसो तदरीस जारी कर दिया, इस मकाम पर आप की खानकाह एक बहुत बड़ी ईमारत थी जो इबादत खाना और मजलिस खाना, और लंगर खाना और ज़नान खाना वगेरा पर मुश्तमिल थी, 1857, की जंग, के बाद ना खानम का बाज़ार रहा, ना आप रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह! हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की इल्मी शुहरत हिंदुस्तान के अलावा बैरूने ममालिक तक थी, आप के मदरसे में दूर दूर से तलबा इल्मे दीन हासिल करने के लिए आते थे, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को हदीस के दर्स से खास दिलचस्पी थी हज़रत ख्वाजा मिर्ज़ा मज़हरे जाने जाना शहीद रहमतुल्लाह अलैह! एक बार आप से मिलने के लिए आए तो आप उस वक़्त बुखारी शरीफ का दर्स दे रहे थे, आप का दौलत कदा मदरसा भी था, और खानकाह भी तालिबे इल्मो के लिए रिहाइश का इंतिज़ाम था, खाना कपड़ा मुगलिया सरकार से मिला करता था।

आप की शाने इस्तिगना

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! में शाने इस्तिगना बदर्जाए अतम मौजूद थी, आम तौर पर किसी शख्स का नज़राना कबूल नहीं करते थे, ख़ास दोस्त अहबाब का नज़राना कबूल फरमा लेते थे, मगर फ़ौरन मसाकीन को तकसीम फरमा देते थे, एक दफा शहर गज़नी का एक बा कमाल शायर तालिबे इल्म हाज़िरे खिदमत हुआ, अर्ज़ की में एक कसीदह लिख कर लाया हूँ, मेरी ख्वाइश है के फर्ख सेर के दरबार में कबूल हो जाए, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया इंशा अल्लाह ऐसा ही होगा, दुसरे दिन उसे दरबार में पहुंचने और कसीदा सुनाने का मौका मिल गया, फर्ख सेर कसीदा सुन कर बहुत खुसा हुआ, और तालिबे इल्म को कीमती इनआम अता किया,
तालिबे इल्म ये सब रूपया ले कर हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की बारगाह में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया के हज़रत आप की दुआ से मुझे ये रूपया मिला है, कबूल फरमा कर इज़्ज़त अफ़ज़ाई फरमाएं आप ने फ़रमाया नहीं नहीं ये तुम्हारा ही हक है इस को अपने मुतअल्लिक़ीन को पंहुचा दो,
हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के ज़मानाए हयात में फुतूहात नज़राना कम ही थी, लेकिन फिर भी जो कुछ आता था, लंगर खाने में सर्फ़ हो जाता था, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की ज़ाती आमदनी सिर्फ दो रूपये आठ आने! माहवार थी जो आप के एक ज़ाती मकान का किराया था, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! इसी क़लील रकम में मआ अहलो अयाल के गुज़र फरमाते थे,

सियारूल औलिया! में लिखा है के इन ढाई रूपये में से हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! आठ आने! माहवार मकान का किराया दिया करते थे और दो रूपये में पूरे घर का खर्च चलाते थे, कहित या और इत्तिफाकि खर्च की वजह से हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को क़र्ज़ लेने की नौबत आ जाती थी, लेकिन उसरत ग़ुरबत तंगी मुफलिसी के बावजूद किसी बादशाह का कोई नज़राना नहीं लेते थे, बादशाह फर्ख सेर ने हर चंद कोशिश की के शाही ख़ज़ाने से आप का वज़ीफ़ा मुकर्रर कर दिया जाए, या जागीर अता की जाए, लेकिन आप रहिमहुल्लाह ने साफ इंकार कर दिया।

आप का अख़लाक़ो किरदार

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! हिल्म सब्र और ज़ब्त की जीती जागती तस्वीर थे, खुफ्तगी नाराज़गी, क्या होती? आप तो दुश्मनो और मुख़ालिफ़ों से भी कभी नाराज़ न होते थे, अगर किसी दुश्मन से कोई तकलीफ पहुँचती तो आप फरमाते: जो शख्स हमें तकलीफ पहुंचाए उस को बहुत बहुत राहत नसीब हो और जिस का कोई यार मददगार न हो अल्लाह पाक उस का मददगार बन जाए, जो शख्स दुश्मनी के क़स्द से हमारी राह में कांटे बिछाए उसकी उमर की बाग़ का जो फूल खिले खुदा करे बेखार हो, दक्कन के कुछ लोगों ने एक दफा हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को बुरा भला कहा, हज़रत मौलाना शाह निज़ामुद्दीन औरंगाबादी रहमतुल्लाह अलैह! जो आप के ख़लीफ़ए आज़म थे आप को इत्तिला दी, तो आप ने जवाब में फ़रमाया: अगर कोई शख्स हमे बुराई से याद करता है तो हमे उससे कोई शिकायत नहीं इस लिए के हम उससे ज़ियादा गुनहगार हैं, हमने उसे माफ़ कर दिया तुम भी उसे माफ़ कर दो,
हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की ज़ाते गिरामी मम्बए फीयोज़ो बरकात थी, अमीर फ़कीर, बेकस मुसीबत ज़दा सब ही आप की ज़ाते गिरामी से फैज़ हासिल करते थे, हज़रत! की खिदमत में अगर कोई मुसीबत ज़दा हाज़िर होता तो उससे निहायत हमदर्दी से हाल पूछते और रूपया पैसे से मदद करते थे, कोई साइल आप के दर से खाली न जाता था, खेर ये बात तो हज़रत की ज़िन्दगी में थी विसाल के बाद भी आप अपने ज़ायरीन मुहिब्बीन आशिक़ीन, मोतक़िदीन मुतावस्सिलीन की हर तरह से मदद फरमाते हैं जो मुहताजे बयान नहीं,

हज़रत ख्वाजा मुहम्मद युसूफ रहीमहुल्लाह बयान करते हैं के हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को अपने मुरीदों से बेहद मुहब्बत थी अपने किसी खादिम को तकलीफ में देख कर बेक़रार हो जाते थे, अगर किसी मुरीद की बिमारी का इल्म हो जाता तो आप उस के मकान पर मिजाज़ पुरसी के लिए तशरीफ़ ले जाते और सेहत के लिए दुआ फरमाते थे,
हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! बेपनाह अफू करम महरबानी का ये आलम था के जिन लोगों ने अपनी इरादत मुरीदी के नशे में आप को तकलीफ पहुंचाते थे, आप ने उन के हक में कभी बद्दुआ न की अगर किसी खादिम से किसी वक़्त कोई नुकसान हो जाता था तो गुस्सा तो बहुत दूर बल्के नरम लहजे से उसकी परेशानी दूर करते थे, इल्तिफ़ात और नज़रे करम की ये हालत थी के हर मुरीद यही समझता था के हज़रत मुझ से ज़ियादा मुहब्बत फरमाते हैं,
हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! सिमअ! के बेहद शाइक थे लेकिन आप की महफिले सिमा में हरकसो नाकस आम आदमी को बिलकुल इजाज़त ना थी, जो इस के लाइक होता वहीँ आता था, जैसे अमरद (बगैर दाढ़ी वाला) शराबी फासिक फ़ाजिर, बे नमाज़ी कज़्ज़ाब वगेरा वगेरा।

आप की इबादतों रियाज़त

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! अगरचे आफ़ताबे इल्मो मार्फ़त थे, लेकिन अक्सर औकात खामोश रहते थे, अगर किसी वक़्त किसी उन्वान पर तकरीर फरमाते तो सामईन पर वज्द व कैफ का आलम तारी हो जाता था, ज़बाने फैज़े तर्जुमान में हैरत अंगेज़ तासीर कशिश थी,
आप रहमतुल्लाह अलैह! का मामूल था के रात को बिलकुल आराम ना फरमाते थे, हमेशा बवुज़ू रहते थे, और हर वुज़ू के साथ तहीयतुल वुज़ू पढ़ते थे, और इशा की नमाज़ के बाद खल्वत इख़्तियार कर के इबादत में मशगूल हो जाते थे, उस वक़्त किसी शख्स को हुजरे में आने की इजाज़त ना थी, तुलू सेहर तक इबादत में मशगूल रहते, फजर और ज़ोहर की नमाज़ के बाद कुरआन शरीफ की तिलावत करते थे,
आप रहमतुल्लाह अलैह! को कुरआन शरीफ की तिलावत का बेहद शोक था, कभी कभी हिजाज़ी अंदाज़ में तिलावत फरमाते थे, के सामईन वजदो कैफ में गर्क हो जाते थे, तिलावत करते करते आप खुद भी अश्कबार हो जाते थे, आप रहमतुल्लाह अलैह! कसरत से नवाफिल पढ़ा करते थे,
आप के बाज़ मुरीदीन बयान करते हैं के आप ने बीस साल तक इशा के वुज़ू से फजर की नमाज़ पढ़ी, इसनाए तिलावत में जहाँ जहाँ इनआमाते खुदावन्दी का तज़किरा आता, उन आयतों को बार बार पढ़ते थे, इन आयात को पढ़ते पढ़ते मुराकिबा में मुस्तग़रक हो जाते, उस वक़्त आप का चेहराए ज़ेबा नूर की तरह खिल जाता।

आप के तब्लीगी व इस्लाही कारनामे

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने मुरीदों की इस्लाह व तरबियत के लिए एक मुकम्मल निज़ाम! बनाया था, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! दिल्ली में अपनी खानकाह में बैठे बैठे उन तमाम खुलफ़ा की, जो तब्लीगी व इस्लाही काम पर मामूर किए गए थे, निहायत सख्त निगरानी फरमाते थे, और उन से बार बार दरयाफ्त करते थे, के सब लोगों की तरबियत वगेरा बेहतर हो रही है, मामूली से मामूली मुआमलात पर मरकज़ से हिदायत जारी होती रही थीं, तमाम मुरीदों को हुक्म था, के वो बा कायदा अपने हालात से मुत्तला करते रहें, अगर किसी सबब से इत्तिला में ताख़ीर होती तो ये अम्र आप पर शाक मुश्किल गुज़रता था,
आप रहमतुल्लाह अलैह! की हिदायत थी के मुरीद आप को जो तहरीर करें उसमे वारदात हालात और तक़सीमे औकात की पूरी पूरी तफ्सील लिखी हो ताके ये पता चलता रहे के किन किन मशागिल में वक़्त सर्फ़ हो रहा है, और फराइज़े मंसबी की अदाएगी में सरगरम का क्या हाल है, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने मुरीदों की पूरी निगरानी और हिफाज़त के लिए उन की जलवतो ख़ल्वत का पूरा पूरा इंतिज़ाम करते थे, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! वक़्त की पाबंदी पर बहुत ज़ोर दिया करते थे, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के मक्तूबात के मुताला से मालूम होता है के आप रहमतुल्लाह अलैह! ने मुरीदों के लिए निज़ामुल औकात! भी बनाया था, फजर की नमाज़ से रात तक का इंफिरादि पिरोगराम बताने के बाद आप ने इज्तिमाई पिरोगराम की तरफ इस तरह तवज्जुह दिलाई के:

अहले इल्म हज़रात को चाहिए के तफ़्सीर, इल्मे हदीस, और इल्मे फ़िक़्ह, का दर्स बाद नमाज़े फजर या ज़ोहर व असर के दरमियान दिया करें, ज़ाती मुताले के लिए आप रहमतुल्लाह अलैह! की हिदायत थी के अह्याउल उलूम, कीमियाए सआदत, और मशाईखे मुताक़द्दिमीन की किताबें मुताले में रखें, इत्तिबाए शरीअत की हिदायत! हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! अपने तमाम मुरीदीन व खुलफाए इज़ाम को इत्तिबाए शरीअत यानि शरीअत पर सख्ती से अमल करने का हुक्म देते थे, आप का हुक्म था के दाखिले सिलसिला तमाम लोगों को हिदायात करनी चाहिए के वो अपना ज़ाहिर शरीअत से आरास्ता रखें, और बातिन इश्के इलाही से, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! फ़रमाया करते थे, के जो शख्स शरीअत पर नहीं चलता वो गुमराह है, ऐसा आदमी तरीकत व हकीकत की मंज़िल तक नहीं पहुंच सकता, आप फ़रमाया करते थे के अगर किसी शख्स की रूहानी बुलंदी या पस्ती का हाल मालूम करना हो तो ज़ाहिरी शरीअत के मेआर पर उस को जाँच लिया जाए, जो शख्स जिस दर्जाए शरीअत का पाबंद होगा उसी कद्र उस की रूहानियत बुलंद होगी, और जो शख्स जितना शरीअत पर अमल नहीं करेगा, उतनी ही उसकी रूहानियत ज़ईफ़ होगी।

कशफो करामात और ख्वारिक

अंधे की आँखें रोशन हो गईं

एक मर्तबा हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! सहरा की तरफ जा रहे थे रास्ते में एक नाबीना को देख कर उसकी हालते ज़ार पर रहम आया, अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की बारगाह में दुआ की, या अल्लाह इस की आँखों की रौशनी बहाल कर दे, उसी वक़्त उसकी आँखें रोशन हो गईं।

हज़रत का हाथ आग से नहीं जला

एक मशहूर पारसी फिरामर्ज़ फ़िरोज़ आप की खिदमत में हाज़िर हुआ, हज़रत ने फ़रमाया तुम्हारी सारी उम्र आतिश परस्ती में गुज़री लेकिन कोई फाइदा हासिल न हुआ, में आजतक आग की पूजा नहीं की लेकिन आग मुझे नहीं जला सकती तुम पचास साल से आग की पूजा कर रहे हो, देखें वो तुम्हारे साथ क्या बर्ताव करती है, आओ हम तुम दोनों आग में हाथ डालें मेरा रब अगर चाहे तो आग की मजाल नहीं ज़र्रा बराबर जला सके ये कह कर आप ने आग में हाथ डाल दिया, और काफी देर तक डाले रहे, बड़ी देर के बाद हज़रत! ने आग से हाथ निकाला तो एक बाल तक नहीं जला था, फिरामर्ज़ पारसी ये देख कर हैरान व शुश्दर रह गया, अर्ज़ करने लगा, हज़रत मेरी उमर का अक्सर हिस्सा ज़ाए बर्बाद हो गया, अब क्या करूँ?
आप ने फ़रमाया कलमा पढ़ मुस्लमान हो जा, फिरामर्ज़ पारसी ने कहा में इस्लाम कबूल करने को तय्यार हूँ, लेकिन शर्त ये है के गुज़िश्ता गुनाहों की सज़ा में अज़ाब ना हो हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया अल्लाह की रहमत बहुत वसी है तुम मुसलमान हो जाओ कुछ नहीं होगा पारसी ख़ुशी से खुद मुस्लमान हो गया।

ग़ैब से खाना मिल जाता

एक शख्स अबू हमज़ाह हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के साथ सफरे हज में शरीक था, उनका बयान है के हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! जिस मंज़िल पर ठहरते थे, वहां आप को ग़ैब से खाना मिल जाता कुछ रोटियां और थोड़ा सालन पानी आ जाता था।

एक आवारा आप की नसीहत से खुदा परस्त बन गया

एक शख्स को किसी औरत से मुहब्बत थी वो उस के इश्क में इस कद्र दीवाना था के रात भर महबूबा के मकान का तवाफ़ किया करता था, एक रोज़ वो इत्तिफ़ाक़ से हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुआ, हज़रत ने फ़रमाया मियां सिर्फ हवाए नफ़्सानी की खातिर रात भर तकलीफ उठाते हो, अगर इतनी मशक्कत नमाज़ पढ़ने में बर्दाश्त करते तो ना मालूम तुम क्या से क्या बन जाते, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के इन अल फ़ाज़ का इस शख्स के दिल पर इतना गहरा असर हुआ के उसने उसी वक़्त तौबा करली और इबादतों रियाज़त में मशगूल हो गया और आप की दुआ से आरिफ़े कामिल बन गया।

जमना की तुगियानी लहरें खत्म हो गईं

हज़रत शाह मुहम्मद हाशिम रहमतुल्लाह अलैह बयान फरमाते हैं के एक मर्तबा दरियाए जमना में शदीद तुगियाना लहरें आ गईं, तमाम शहर वाले परेशान हो गए, चंद बुज़ुर्गों ने आप से अर्ज़ किया, हज़रत इस तूफ़ान को रोकिए वरना दिल्ली वालों की जान खतरे में है, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! उसी वक़्त कुरआन शरीफ हाथ में लेकर जमना के किनारे तशरीफ़ ले गए, और अल्लाह पाक से दुआ की ऐ मअबूद क्या तू हमे ऐसी हालत में गर्क कर देगा जबके तेरी मुकद्द्स किताब हमारे पास है उसी वक़्त जमना का तूफ़ान व जोश कम हो गया, और दरिया की तुगियानी एक घंटे में खत्म हो गई।

अनार मीठे हो गए

हज़रत ख्वाजा ज़ियाउद्दीन का बयान है के हज़रत! के एक मुरीद के बाग़ में काफी तादाद में अनार के दरख्त थे लेकिन अनार तुर्श खट्टे होते थे, हज़रत! बाग़ में तशरीफ़ ले गए, मुरीद ने चार अनार आप को पेश किए, हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने दुआ फ़रमाई, या अल्लाह इन फलों को शीरीं कर दे, उसी दिन से तमाम फल शीरीं मीठे हो गए।

आप की औलादे अमजाद

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के चार साहबज़ादे और तीन बेटियां थीं, बेटों के नाम ये हैं:
1, ख्वाजा मुहम्मद
2, हामिद सईद
3, मुहम्मद फ़ज़्लुल्लाह
4, मुहम्मद एहसानुल्लाह, बेटियों के नाम ये हैं:
1, बीबी फखरुन्निसा
2, बीबी ज़ैनब
3, बीबी राबिया,
हज़रत ख्वाजा मुहम्मद का इन्तिकाल आप ही की ज़िन्दगी में हो गया था, बाकी औलादें आप के विसाल के बाद हयात रही,
हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के विसाल के बाद साहबज़ादों की औलाद बाकी ना रही इस वजह से आप के इन्तिकाल के बाद आप की दुख्तर बीबी ज़ैनब उर्फ़ बीबी मिसरी आप के मज़ार शरीफ खानकाह, की मतवल्ली बनी, इन के बाद इन के साहबज़ादे हज़रत शाह मुहम्मद गौस साहब बने, और इन के बाद इनकी साहबज़ादी हुसैनी बेगम, और उन के बाद इन की साहबज़ादी इमामी बेगम मतवल्ली बनी, इमामी बेगम के सात बेटे थे, इमामी बेगम के इन्तिकाल के बाद इन के बेटे सय्यद मुहम्मद सादिक साहब मतवल्ली बने और इन के बाद सय्यद अब्दुल गनी मतवल्ली सज्जादा नशीन हुए,
इन के इन्तिकाल के बाद साहबज़ादा मुहम्मद हुसैन सज्जादा नशीन बने, जो बाज़ाब्ता तौर पर हुकूक बनाम साहबज़ादा मुहम्मद मुस्तहसन साहब फारूकी हिजरत कर के पाकिस्तान चले गए।

आप के खुलफाए किराम

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के बाद सिलसिलए आलिया चिश्तिया निज़ामिया का जो मरकज़ी निज़ाम कमज़ोर हो गया था आप ने उस को निहायत आला पैमाने पर काइम किया था लोगों की रुश्दो हिदायत के लिए आप के कई अज़ीम खुलफ़ा! तय्यार किए उन में से चंद के नाम ये हैं:

  1. हज़रत शाह मुहम्मद हाशिम
  2. हज़रत मौलाना शाह जलालुद्दीन
  3. हज़रत मौलाना ज़ियाउद्दीन
  4. हज़रत मौलाना शाह मुहम्मद अली
  5. हज़रत मौलाना शाह जमालुद्दीन जयपुरी
  6. हज़रत मौलाना शाह अब्दुल लतीफ़
  7. हज़रत मौलाना हाफ़िज़ मुहम्मद अब्दुल्लाह
  8. हज़रत शाह असदुल्लाह
  9. हज़रत मौलाना अब्दुस समद
  10. हज़रत मौलाना क़ाज़ी अब्दुल वाली सिंघाना
  11. हज़रत मखदूम शैख़ थारू
  12. हज़रत शाह जलील कादरी
  13. हज़रत शैख़ बदीउद्दीन उर्फ़ शैख़ मदारी मज़ार मुबारक नागौर सिंघाना में है,
  14. हज़रत मौलाना ख्वाजा मुस्तफा
  15. हज़रत मौलाना सय्यद मुहम्मद अली
  16. शैख़ बुध्धन
  17. हाफ़िज़ महमूद
  18. हाफ़िज़ सईद पिसर शाह साहब
  19. हज़रत शाह नानू मज़ार शरीफ मस्जिद फतेहपुरी दिल्ली 6, में है,
  20. हज़रत मौलाना अब्दुल माजिद मज़ार शरीफ हैदराबाद में है,
  21. हज़रत मौलाना शैख़ ख्वाजा निज़ामुद्दीन औरंगाबादी रहमतुल्लाह अलैह आप के सब से मश्हूरो मारूफ खलीफा है और आप का मज़ार शरीफ सूबा महरष्ट्र औरंगाबाद में है।

आप की तसानीफ़

हज़रत शैख़ कलीमुल्लाह शाहजहां आबादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! साहिबे तस्नीफ़ बुज़रुग थे, तीस के करीब तसानीफ़ के नाम मिलते हैं, जिन में से चंद हस्बे ज़ैल हैं:
(1) क़ुरआनुल कुरआन
(2) अशरए कामिला
(3) सवा अस्सबील
(4) कश्कोल
(5) मुरक्का
(6) तस्नीम
(7) इलहामाते कलीमी
(8) रिसाला तशरीहुल अफ़लाक
(9) शरहे अल कानून

रद्दे रवाफिज़ में भी बाज़ क़ुतुब थीं और इसी तरह शायरी का मजमूआ भी तारिख में मिलता है लेकिन ये सब कुछ अफ़सोस ज़माने के दस्तबुर्द कुछ हंगामो और अपनों की बे ऐतिनाई की नज़र हुईं, चंद बची रहीं जो तबआ हो कर मन्ज़रे आम पर आ गईं हैं, बा हज़रात कहते हैं के आप ने कुरआन शरीफ की तफ़्सीर भी लिखी थी।

विसाले पुरमलाल

आप ने बादशाह मुहम्मद शाह के दौरे हुकूमत में 24, रबीउल अव्वल 1142, हिजरी मुताबिक 17, अक्टूबर 1729, ईसवी को 81, साल की 9, माह की उमर पाकर इन्तिकाल हुआ,।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार शरीफ दिल्ली में लाल किले के सामने कबूतर मार्कीट व कोर्ट मार्कीट में मस्जिद के अंदर ही मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  1. ख़ज़ीनतुल असफिया
  2. रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
  3. औलियाए दिल्ली की दरगाहें
  4. दिल्ली के बाईस ख्वाजा
  5. मुजद्दीद्दीने इस्लाम नंबर
  6. हयाते कलीम
  7. फखरे जहाँ देहलवी
  8. तज़किराए औलियाए हिन्दो पाकिस्तान
  9. दिल्ली के बत्तीस 32, ख्वाजा

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