हज़रत ख्वाजा शैख़ बुरहानुद्दीन गरीब हांसवी चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा शैख़ बुरहानुद्दीन गरीब हांसवी चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह

विलादत शरीफ

बुरहानुल औलिया, क़ुत्बे विलायत, जहाने सिद्क़, ज़ुहदो वरा, साहिबे ज़ोको शोक, इश्को मस्ती में मारूफ, आलिमे दीन, हज़रत ख्वाजा शैख़ बुरहानुद्दीन गरीब हांसवी चिश्ती सुम्मा खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! आप की विलादत बसआदत 654, या 656, हिजरी मुताबिक 1254, ईसवी को शहर हांसी! ज़िला हिसार, सूबा हरयाना हिन्द में हुई।

इस्मे गिरामी

आप का नामे नामी इस्मे गिमी “बुरहानुद्दीन” ख़िताब, “बायज़ीद” है, और लक़ब गरीब है,
और आप सिलसिलए चिश्तिया में “ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह” के नाम से मश्हूरो मारूफ हैं।

वालिद माजिद

हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद माजिद का नाम मुबारक “हज़रत महमूद हांसवी” है, जो हज़रत ख्वाजा जमालुद्दीन हांसवी के सगे भाई हैं, ये वहीँ जमालुद्दीन हांसवी हैं जिन के नाम से चिश्तिया खानदान में जमाली सिलसिला! चला, और ये दोनों भाई शैख़े कामिल हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह! से मुरीद थे,
आप के वालिद माजिद हज़रत महमूद हांसवि और आप की वालिदा मुकर्रमा इबादत गुज़ार मुत्तक़ी दीनदार और परहेज़गार थीं।

बचपन से नमाज़ की पाबंदी

हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! जब आप की उमर छे 6, साल की हुई तो आप ने तन्हाई में ज़िक्रुल्लाह यानि अल्लाह पाक का ज़िक्र करना शुरू किया और दीगर औरादो वज़ाइफ़ में मसरूफ हो गए, और सोमो सलात (नमाज़, रोज़ा) की पाबंदी के साथ साथ जब आप तेराह बर्स की उमर को पहुंचे तो अपनी खुराक घटा कर सिर्फ सात लुक़मे करदी और उसी वक़्त से अहिद कर लिया के में अपनी सारी ज़िन्दगी इबादत में सर्फ़ करूंगा, और तजररुद (जो निकाह ना करे) की ज़िन्दगी गुज़ारूंगा, आप की रियाज़तो मुजाहिदा का ये आलम था के पच्चीस साल! तक ईशा के वुज़ू से फजर की नमाज़ पढ़ी और तीस साल तक मुसलसल रोज़े रखे, फजर की नमाज़ के बाद मुक़र्ररा वज़ाइफ़ और तस्बीहात के अलावा सौ रकआत निफल नमाज़ पढ़ते और चाशत की नमाज़ अदा करते फिर तीन सिपारे कुरआन शरीफ के पढ़ते,
इस के बाद ज़ियारते कुबूर! को जाते और एक हज़ार मर्तबा सूरह इखलास पढ़ते, ईशा की नमाज़ बा जमाअत तिहाई रात को पढ़ते, ज़िक्रे इलाही मुजाहिदा नफ़्स कुशी की वजह से आप का दिल आइना बन गया था, इल्मे कश्फ़ के ज़रिए हर बात आप पर अयाँ ज़ाहिर हो जाती।

इजाज़तो खिलाफत

ज़ाहिर सी बात है के जिस शख्स के लैलो निहार (रातो दिन) यादे खुदा में गुज़रते हों, उसको दुनिया से क्या लगाओ शग़फ़ होगा? हालांके आप की वालिदा बीबी हाजरा! चाहती थीं के आप भी निकाह फ़रमालें और घर आबाद हो जाए, आप न माँ के हुक्म को टाल सकते थे, और ना यादे खुदा में किसी और चीज़ का खलल डालने की इजाज़त दे सकते थे, लिहाज़ा आप ने ग़िज़ा में और कमी कर दी यहाँ तक के आप की नक़ाहत कमज़ोरी देख कर आप की वालिदा ने ये ख्याल तर्क कर दिया,
आप की कमज़ोरी का ये आलम था के आसमान की तरफ बड़ी मुश्किल से सर उठाते थे,
आप उन्नीस 19, साल की उमर में सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुए, और बैअत मुरीद हो कर खिलाफत व इजाज़त हासिल की, जब आप मुरीद हुए तो आप ने फ़रमाया के में ने इस बैअत से पहले एक ख्वाब देखा था के में एक गहरे गड़े में गिर गया हूँ और कोशिश करने के बावजूद बाहर नहीं निकल पा रहा हूँ, यहाँ तक के सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! तशरीफ़ लाए और अपना हाथ आप के हाथ में दे कर आप को इस गड्ढे गंदक से निकाल लिया,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने ये ख्वाब सुनकर तब्बसुम फ़रमाया और बहुत नरम लहजे में कहा बुरहानुद्दीन! हमने उसी दिन तुझको अपना हाथ दे दिया था जिस रोज़ तूने ख्वाब देखा था।

आप का ख़िताब बायज़ीद

हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! का ख़िताब “बायज़ीद” था, ज़ाहिर है के सुल्तानुल आरफीन हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह! किस आला मक़ाम के वलिए कामिल थे, और बुज़ुर्गाने दीन में उनका क्या मर्तबा था, इससे कौन नहीं वाकिफ, आप से किसी शख्स से निस्बत देना उस शख्स के लिए इंतिहाई ख़ुशी की बात है, और ये ख़िताब हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! को मिला,
एक रोज़ सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के दरबार में सुल्तानुल आरफीन हज़रत बायज़ीद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह! का ज़िक्र निहायत अदबो एहतिराम के साथ कर रहे थे, जब ये ज़िक्र ख़त्म हुआ तो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया: हम भी एक बायज़ीद! रखते हैं,
एक दोस्त ने मालूम किया वो कहाँ है? क्यों के सब को इश्तियाक था, के रोज़ सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने ये बात किस के लिए कही है, आप ने जवाब दिया के वो जमात खाने में है, इक़बाल नामी एक खादिम शोक और तजससुस में कमरे में देखने गया के वो खुशनसीब कौन है? वहां सिवाए हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! के कोई दूसरा नहीं था, उस दिन से ही आप को ये ख़िताब मिल गया,
“गरीब” का लक़ब!
गरीब! का लक़ब इस तरह मशहूर हुआ के जब आप अपने वतन शहर हांसी सूबा हरयाना! से दिल्ली तशरीफ़ लाए तो इंतिहाई सादा पुर कनाअत तवक्कुल और फकीराना दुरवेशाना ज़िन्दगी गुज़ारते रहे, आने के बाद एक छोटी सी मस्जिद में क़याम किया और यादे इलाही में मसरूफ हो गए, आप हर तरह से अपने आप को छुपाते थे, लेकिन नूरे मारफत विलायत ज़ाहिर हो गया, मखलूके खुदा आप की तरफ आने लगी, और सारे मोतक़िदीन मुतावस्सिलीन आशिक़ीन, आप के पास जमा होने लगे लेकिन उस दौरान अपने पीरो मुर्शिद के यहाँ आमदो रफ़्त जारी रखी, एक रोज़ जब सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुए तो आप के इकबाल नामी खादिम ने अर्ज़ किया के आप से मुलाकात के लिए “ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब” तशरीफ़ लाए हैं, ये बात सुनकर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया: सारी मखलूक आप की आशना और जानती पहचानती है और वो अब भी गरीब हैं, इस के बाद से गरीब! लक़ब से आप मशहूर हो गए।

पीरो मुर्शिद का अदब

हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! को अपने पीरो मुर्शिद से वालिहाना अक़ीदतो मुहब्बत थी, आप को अपने दोस्त अहबाब में इम्तियाज़ी शान हासिल थी, और अपने मुर्शिद का अदब इतना करते थे के आप घर में हों या हालते सफर में कभी गियासपुर की तरफ पैर फैला कर ना लेटे ना बैठे और न कभी आप ने पीठ की और ना उस तरफ लुआबे धन डाला क्यों के गियासपुर ही में सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का माकन था जिस में आप रहा करते थे और आखिर में आप का मद्फ़न भी वहीँ बना,
और इसी अदब ने आप को इनते आली मनसब व दर्जे पर पंहुचा दिया, इसी अदब व एहतिराम की वजह से सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की निगाहों में भी महबूबो मुअज़्ज़म हो गए, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया: था हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! से जो मुहब्बत करेगा वो भी मक़बूले खलाइक और साहिबे हशमत होगा, एक और मोके पर आप ने फ़रमाया: “बुरहानुद्दीन” हमारा मजमूआ है, यानि मेरे अख़लाक़ो आदात और उलूम का मजमूआ है।

चौदह सौ औलियाए किराम तशरीफ़ ले गए

जिस वक़्त देओगीर खुल्दाबाद शरीफ महराष्ट्र! में हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! के भाई हज़रत ख्वाजा मुंतज़ीबुद्दीन ज़र्ज़री ज़र बख्श दुलाह रहमतुल्लाह अलैह का विसाल हुआ तो सब से पहले इस का इल्म बाजरिए कश्फ़ सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को मालूम हुआ क्यों के इन्हीं की हिदायत पर आप “सात सौ पालकियां चौदह सौ औलियाए किराम” को साथ में ले कर देओगीर खुल्दाबाद शरीफ महराष्ट्र! गए थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अपने अज़ीज़ सआदत मंद मुरीद की वफ़ात पर थोड़ी देर तक खामोश रहे, उस के बाद हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! आप के पास तशरीफ़ लाए तो इन से सवाल किया,
के बुरहानुद्दीन! तुम्हारे छोटे भाई मुंतज़ीबुद्दीन ज़र्ज़री ज़र बख्श दुलाह! की उमर कितनी होगी? ये सवाल बड़ा माना ख़ेज़ था, आप ने भी मुराकिबा किया और बात की तह तक पहुंच गए, जवाब में बड़े सब्र और तहम्मुल से कहा 34, या 35, साल होगी, इस के बाद आप घर आ कर रंजीदह ग़मगीन और अफ़सुर्दा हो कर बैठ गए,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बा नफ़्से नफीस आप के पास आए, उस वक़्त इन की वालिदा बीबी हाजरा हयात थीं, इन को तसल्ली दिलासा दिया, अपने मुरीद के लिए फातिहा पढ़ी और दुआए मगफिरत फ़रमाई, और चंद दिनों बाद हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! को अपना खिरकए खिलाफत! अता फ़रमाया और दक्कन की विलायत दे कर देओगीर खुल्दाबाद शरीफ महराष्ट्र रुखसत किया,
हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! के साथ दिल्ली से दक्कन आने वाले चौदह सौ औलियाए किराम और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीदों की फहरिस्त बहुत तवील है, बहरे कैफ आप अपने दोस्त अहबाब अज़ीज़ो अक़ारिब के साथ आए और पुरफज़ा पहाड़ी पर क़याम फ़रमाया, जहाँ आज अब आप का मज़ार शरीफ है, यहाँ आप ने ना सिर्फ क़ुरआनो हदीस के मुताबिक अपनी ज़िन्दगी गुज़ारी बल्के अपने पीरो मुर्शिद! के नक़्शे कदम पर ता हयात चलते रहे, और लोगों को रुश्दो हिदायत तबलीग़े दीन का काम करते रहे,आप के मलफ़ूज़ात और तालीमात दुनियाए तसव्वुफ़ में गोहरे शब् चिराग हैं और सब से बड़ी बात ये है के आप ने जो कुछ फ़रमाया इस पर पहले खुद अमल किया, और आप की बातें नसीहतें, फ़लसफ़ियाना, तदब्बुर और तफ़क्कुर की जान हैं,
खुल्दाबाद शरीफ! के क़याम के दौरान हज़ारों आदमी आप की ज़ाते बाबरकात से मुस्तफ़िज़ो मुस्तानीर हुए और आप की ज़ात की वजह से हज़ारों राह गुमकरदह लोगों ने हिदायत पाई।

मुझे दुनिया अता कर दो

मन्क़ूल है के: एक मर्तबा एक मुसाफिर हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुआ, और ये मुसाफिर अच्छी तरह जानता था, के एक तरफ मारफत और तसव्वुफ़ के सारे ख़ज़ाने हज़रत! के कदमो में हैं दूसरी तरफ उमरा, वुज़रा, अमीर कबीर, सलातीन, आप के दरबार में दस्त बस्ता सर झुकाए खड़े रहते हैं, इस लिए उस ने अर्ज़ की,
ऐ मरदे खुदा! में आप के पास दो चीज़ें लेने आया हूँ एक “दीन” हासिल करने के लिए और दूसरी दुनिया के लिए, यानि मुझे दीन व दुनिया की दौलत अता फरमा दीजिए,
आप ने सर उठा कर उस की तरफ देखा और कहा उन दोनों चीज़ों पर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का इख़्तियार है, वहीं देने वाला है, पहले अपने अल्लाह पाक को पाले! फिर वही ये दोनों चीन तुझे अता कर देगा,
जवाब जितना माकूल था इतना ही मुफक्किराना! दीन और दुनिया की तलब बड़ी आसान पुरकशिश है लेकिन इस को पाने का रास्ता एक ही है और वो बड़ा कठिन और मुश्किल है,
यही नहीं बल्के आप ने सारी ज़िन्दगी में नफ़्स की पाकीज़गी और तहारत बातिन की इस्लाह पर बहुत ज़ोर दिया क्यों के उस के बगैर ना कोई इबादत क़ुबूल होती है और ना अमल,
पाकीज़गी दो तरह की होती है, एक जिस्म की और दिल की फि ज़माना लिबास और जिस्म की सफाई पर सब ही ज़ोर देते हैं लेकिन तहारते क्लब और बातिन की पाकीज़गी की तरफ कोई तवज्जुह नहीं देता, जब तक दिल से हिर्स हवस, तमआ लालच, बुग्ज़ व कीना बदगुमानी, और रियाकारी से पाक ना हो एक इंसान सच्चा इंसान नहीं बन सकता, और ना वो किसी भी मर्तबे को पहुंच सकता, दिलों दिमाग की तहारत दुरवेशी की जान है, आप फरमाते हैं के जो चीज़! यानि नसीहत फ़कीर या दुर्वेश से सही मानो में हासिल की जाती है, वो गोद से कब्र तक रहती है,

हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन देहलवी

हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! और हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! में बड़ी गहरी दोस्ती थी, दोनों पीर भाई थे और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के नज़रे करम से वलिए कामिल बने थे, जब भी हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ऊध! फैज़ाबाद! से दिल्ली आते, हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! के मकान पर ही ठरते थे लेकिन ये साथ उस वक़्त छूटा जब आप दिल्ली से दक्कन तशरीफ़ ले आए,
और यहाँ पर आप से लाखों लोगों ने फ़ैज़ो बरकात रुश्दो हिदायत हासिल की।

करामत कहित साली

हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! के विसाल के एक साल बाद सख्त कहित सूखा पड़ा, पानी के काल के वजह से गल्ला बहुत महंगा हो गया, और दरगाह के मुतावस्सिलीन, सज्जादनशीनो की गुज़र औकात मुश्किल से मुश्किल तर हो गई, अब ना बादशाह तुगलक की हुकूमत थी न दौलताबाद दारुल खिलाफ (राजधानी) था बल्के बहमनी सल्तनत का तूती बोल रहा है था जिस का पायाए तख़्त “बिदर” बन चुका था, यो लोग जाते तो कहाँ जाते, सब के सब धरना दे कर हज़रत ख्वाजा बुरहानुद्दीन गरीब चिश्ती खुल्दाबादी रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार शरीफ! पर बैठ गए, दुआएं मांगें लगे मुराकिबे किए और इन लोगों को बशारत हुई के तुम लोग फ़िक्र ना करो अल्लाह पाक की जानिब से तुम को रिज़्क़ ज़रू मिलेगा,
चुनांचे दुसरे दिन आप के आस्ताने के सामने जो पथ्थर लगे हुए थे उन में से चांदी के जैसे अंखुए कोंपल किल्ले फूटे और देखते ही देखते एक बलिश्त तक निकल आए चांदी की तरह चमकते थे, सभी दरगाह के मुतावस्सिलीन ने इन को काट कर अपना खर्च निकाला और ये सिलसिला उस वक़्त तक जारी रहा जब तक के खुश्क साली और कहित बाकी रहा,
ये वाक़िआ छे सौ साल पुराना था, लेकिन अब भी ज़ायरीन यहाँ आते हैं तो पथ्थरों के अंदर इन चमकते हुए नगीनो को देखते हैं, जहाँ से चांदी की ये मेंखें कोंपल किल्ले फूटे निकले थे, इन में से कुछ सियाह हो गए हैं और कुछ अब भी सफ़ेद चमकदार दिखाई देते हैं।

आप के खुलफाए किराम

  1. बाईस ख्वाजा हज़रत ख्वाजा ज़ैनुद्दीन दाऊद शिराज़ी
  2. हज़रत मौलाना फरीदुद्दीन अदीब
  3. हज़रत मौलाना फखरुद्दीन शमशुल मलिक
  4. हज़रत मौलाना सय्यद नसीरुद्दीन

विसाल

आप रहमतुल्लाह अलैह! का इन्तिकाल सात सौ इकतालीस 741, हिजरी में हुआ,
हिंदुस्तान का एक बहुत बड़ा शहर “बुरहानु पुर” आप के नाम से आबाद किया गया, इस शहर को आबाद करने के लिए शैख़ सलाहुद्दीन दुर्वेश और शैख़ रमज़ान ने बड़ा अहम किरदार अदा किया।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक खुल्दाबाद शरीफ ज़िला औरंगाबाद सूबा महराष्ट्र में ही मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  1. ख़ज़ीनतुल असफिया
  2. मिरातुल असरार
  3. तज़किराए औलियाए बर्रे सगीर
  4. सीयारुल औलिया
  5. शाहाने बे ताज

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