हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी (पार्ट-2 )

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी (पार्ट-2 )

ख्वाजा नजमुद्दीन सुगरा की बेरुखी

“सेरुल आरफीन” में है के शैख़ नजमुद्दीन सुगरा बड़ी अच्छी आदत और अख़लाक़ के आदमी थे मगर शैखुल इस्लाम का उहदा मिलते ही इनकी हालत बदल गई, दुनियावी जाहो जलाल पर फ़रेफ्ता होने लगे, शैख़ नजमुद्दीन सुगरा! ने भी यही सोचा था के शैखुल इस्लाम बनने के बाद में भी मरजए खलाइक बन जाऊंगा मगर शैखुल इस्लाम! बनने के बाद किसी ने भी इनको मुँह न लगाया वो रस्मी तौर पर शैखुल इस्लाम! ज़रूर थे मगर इनको कोई पूछता तक नहीं था, लेकिन हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ये हालत थी के लोग अपना घर बार छोड़ कर आप की गुलामी में फख्र महसूस करते थे,
शैख़ नजमुद्दीन सुगरा! ये हाल देख कर हसद करने लगे, एक मर्तबा सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! दिल्ली तशरीफ़ लाए और हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाह में क़याम फ़रमाया तो हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने बादशाह सलामत को तशरीफ़ लाने की खबर देना चाहि मगर हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने मना फरमा दिया, लेकिन इसके बावजूद अवामो खवास को आप की तशरीफ़ आवरी की इत्तिला मिल गई, लोग जोक दर जोक आप की ज़ियारत के लिए आने लगे, लेकिन शैख़ नजमुद्दीन सुगरा! से हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की खुरासान से मुलाकात थी मगर हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से हसद की वजह से हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! से मिलने ना आए,

हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! खुद शैख़ नजमुद्दीन सुगरा! से मिलने गए तो उस वक़्त शैख़ नजमुद्दीन सुगरा! अपना मकान तामीर कर रहे थे, शैख़ नजमुद्दीन सुगरा! ने ना हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! का इस्तकबाल ना किया खुश आमदीद कहा न अच्छी तरह मुलाकात की इस पर हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया के मुझ से मिलने मशाइखे किबार उल्माए किराम आमो ख़ास आए मगर तुम नहीं आए,
तुम ने शैखुल इस्लामी! के घमंड में पुराने दोस्तों को भुला दिया, शैख़ नजमुद्दीन सुगरा! ये बात सुनकर बहुत शर्मिंदा हुए और हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! के कदमो पर सर रख कर माज़रत करने लगे के में जैसा आप का मुख्लिस था वैसा अब भी हूँ मगर हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने मेरी क़द्रो मन्ज़िलत ख़त्म करदी, ये बात हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! को सख्त नागवार गुज़री, हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया: बा बा क़ुतुब साहब! तुम मेरे साथ चलो, यहाँ बाज़ लोग तुम से नाराज़ हैं, ये फरमा कर हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! शैख़ नजमुद्दीन सुगरा! के मकान से वापस आ गए, शैख़ नजमुद्दीन सुगरा! ने हर चंद मिन्नत समाजत की खाना तय्यार हो रहा है खा कर जाना हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने इनकी कोई बात ना सुनी और हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से अहले दिल्ली को बेपनाह अक़ीदतों मुहब्बत पैदा हो गई।

                                                             "आप की कशफो करामात" 

अपने चाहने वाले को बदकारी से बचा लिया

एक मर्तबा एक शख्स रवाना हुआ के दिल्ली जा कर हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में तौबा करूंगा, रास्ते में एक फाहिशा औरत इस के हमराह (साथ) हो गई जो ये चाहती थी के किसी तरह इस मर्द से तअल्लुक़ हो जाए चूंके मर्द की नियत सादिक व साफ़ थी, इस लिए इसकी तरफ तवज्जुह भी ना की, आखिर एक मंज़िल में जब वो एक ही कजावे में सवार हुए तो वो औरत उस के पास बैठ गई और कोई पर्दा वगेरा भी ना था शायद मर्द ने उससे कोई बात की या हाथ बढ़ाया, उसी वक़्त देखा के एक मर्द ने आ कर उसके मुँह पर थपड़ मारा कुतब साहब! की बारगाह में तौबा की नियत से जा रहा है और ऐसी गन्दी हरकत कर रहा है इसने फ़ौरन तौबा की और इस औरत की तरफ फिर देखा तक नहीं जब वो हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की बारगाह में हाज़िर हुआ तो पहले ही आप ने फ़रमाया के उस दिन अल्लाह पाक ने तुझे बुराई से बचा लिया।

दूध की नहर

एक मर्तबा एक शख्स हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में इस नियत से हाज़िर हुआ के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! इसे दुनिया अता करें और जहाँ पर हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बैठे हैं वहां दूध की नहर जारी हो अभी वो दूर ही था के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने उसकी तरफ मुखातिब हो कर फ़रमाया के दोस्त आते हैं और अल्लाह पाक की मगबूज़ा चीज़ तलब करते हैं, चूंके तेरे दिल में ये ख़याल है इस लिए इस ईंट को जिस पर तू बैठा है उठा जब उठाई तो नीचे अशर्फियों का ढेर उठा लिया तो कुतब साहब ने फ़रमाया के तेरी ख्वाइश दूध चावल की है जो तेरे आगे हैं खा जब उसने निगाह की तो देखा के दूध चावल की नदी बह रही है।

मुल्तान के हाकिम की फ़तेह

एक रोज़ हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह ये तीनो हज़रात खानकाह में तशरीफ़ फरमा थे के सुल्तान नासिरुद्दीन कुबाचा मुल्तान का हाकिम दौड़ कर आया और आ कर इल्तिजा करने लगा के सरकार दुआ फरमाए अल्लाह पाक मेरी मदद करे, क्यों के मुगलों ने किले को घेर लिया है, उसी वक़्त हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने एक तीर पर कुछ पढ़ कर दम कर के देते हुए ये फ़रमाया के ये तीर शाम के वक़्त दुश्मन के लश्कर की जानिब फेंक देना, सुल्तान नासिरुद्दीन हस्बे हिदायत आप के हुक्म पर अमल किया सुबह हुई तो मैदान साफ था, जहाँ किले के पास मुग़ल मुहासरा किए हुए थे वहां किसी के मुगल का नामो निशान भी मौजूद न था, सुल्तान नासिरुद्दीन ने खुदा का शुक्र अदा किया और खानकाह में हाज़िर हो कर हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का शुक्रिया अदा किया।

तुम्हारे घर में चांदी के सिक्के हैं

एक दफा का ज़िक्र है के एक शख्स हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुआ और अपनी ग़ुरबत और अफ्लास की शिक़ायत करने लगा आप ने उससे फ़रमाया के अगर में ये कहूँ के मेरी निगाह अल्लाह पाक के अर्श तक पहुँचती है तो क्या तुम इस बात का यकीन कर लोगे? वो शख्स कहने लगा हाँ में यकीन कर लूँगा बल्कि मेरा ऐतिक़ाद तो आप पर इससे भी ज़ियादा है, इस पर हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया: अच्छा जब तुम मुझ पर इस क़द्र यकीन रखते हो तो सुनो के वो चांदी के सिक्के! जो तुमने अपने घर में छुपा कर रखें हैं पहले उनको खर्च कर लो फिर अपनी गरीबी की शिक़ायत करना, उस आदमी ने जब आप की ये बात सुनी तो बहुत शर्मिंदा हुआ और शर्म से अपनी निगाहें नीचे कर के अपने घर को वापस लोट आया।

होज़े शम्शी की तामीर

सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश बड़ा नेक सिफ़त औलियाए किराम व सूफ़ियाए इज़ाम से बे पनाह अक़ीदतो मुहब्बत और एहतिराम करने वाले हाकिम थे, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! की बड़ी ख्वाइश ये थी के शहर के नज़दीक पानी का एक होज़ तामीर करवाया जाए ताके शहर के लोगों को पानी आसानी से मिल सके क्युंके उन दिनों शहर में पानी की बहुत ज़ियादा किल्लत थी और पानी का हुसूल बहुत मुश्किल था, एक दिन सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! ने ख्वाब में हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत की, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! ने देखा के हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम घोड़े पर तशरीफ़ फरमा एक मकाम पर खड़े हैं और इरशाद फरमा रहे हैं ऐ शमशुद्दीन! इस जगह पर लोगों के लिए पानी का एक होज़ बनवा दो, सुबह हुई तो, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! ने फ़ौरन एक खादिम हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में भेजा के मेने आज रात जो ख्वाब देखा है अगर आप हुक्म दें तो में खिदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ करूँ, खिदमत ने जब ये पैगाम पेश किया तो आप ने फ़रमाया:
बादशाह! से जा कर कह दो के हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिस मक़ाम पर होज़ तामीर करने का हुक्म दिया है में उसी जगह पर जा रहा हूँ तुम भी वहां पर पहुंच जाओ, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! ये बात सुन कर बहुत हैरान हुए के हज़रत क़ुतुब साहब! ने नूरे बातिन से इस ख्वाब को मालूम कर लिया चुनांचे वो घोड़े पर सवार हो कर एक समत चल पड़ा उसको रास्ते में किसी ने बताया के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फुलां मक़ाम पर जलवा अफ़रोज़ हैं और तुम्हारा इन्तिज़ार कर रहे हैं सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! तेज़ी से घोड़ा दौड़ाता हुआ उस मक़ाम पर पहुंच गया, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! ने देखा के आप नमाज़ में मशगूल हैं, नमाज़ से फारिग होने के बाद सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! आगे बड़ा और आप के हाथों को बोसा दिया, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! ने जिस मक़ाम पर हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ख्वाब में ज़ियारत की थी उस जगह पर घोड़े के सुम के निशान साफ़ दिखाई दे रहे थे और वहां पानी भी था, चुनांचे सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! ने उसी जगह पर होज़ की तामीर शुरू करादी,
सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! का तामीर कराया हुआ होज़ आज भी इस मक़ाम पर मौजूद है, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की अक्सर इसी होज़ के किनारे इबादते इलाही में मसरूफ रहा करते थे, सुल्तानुश शोरा हज़रत ख्वाजा अबुल हसन अमीर खुसरू रहमतुल्लाह अलैह ने इस होज़ की बहुत कुछ तारीफ की, आप फरमाते हैं, इस होज़ के किनारे अक्सर बुज़ुर्गाने दीन औलियाए किराम मदफ़ून हैं, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अक्सर इस होज़ के किनारे इबादतों रियाज़त में मशगूल रहा करते थे, इसी होज़ के किनारे हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का दरबारे कुतबियत आरास्ता होता था, दरबारियों में हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी, हज़रत ख्वाजा महमूद मुअय्यना दोज़, हज़रत ख्वाजा शैख़ बदरुद्दीन ग़ज़नवी, हज़रत ख्वाजा ताजुद्दीन मुनव्वर रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, काबिले ज़िक्र हैं, इस होज़ के किनारे एक “औलिया मस्जिद” भी है जहाँ आप ने कुछ अरसा चिल्ला कशी की।

सीरतो ख़ासाइल

आप का “फ़क्ऱो फाका” हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फ़क्ऱो फाका! आप के मामूलात का इम्तियाज़ी वस्फ़ था आप ने तमाम उमर तंगी में गुज़ारी क्युंके आप का ग़ुज़ारा उमर भर खुदाई ज़रिये पर रहा इसलिए आप के अहलो अयाल का ज़िन्दगी भर ग़ुरबत और फाका होता था, आप के घर में फाका मस्ती का आलम रहता मगर इस का इज़हार किसी पर ना करते, आप फ़क्ऱो फाका! में भी हमेशा अल्लाह का शुक्र अदा करते,
“तवक्कुल” हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ज़िन्दगी सब्रो क़नाअत और तवक्कुल का बड़ा अच्छा नमूना है, आप ज़िन्दगी भर अल्लाह पाक पर भरोसा किए रहे, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का तवक्कुल वाकई तवक्कुल था, आप बीस साल तक तवक्कुल में रहे, किसी से कोई सरोकार ना रखते थे, बा वर्ची खाने का खर्चा इस तरह चलता था के जब ज़रूरत होती खादिम हाज़िर होता था, आप किसी तरफ इशारा कर देते, जिस कदर ज़रूरत हो ले लो, जब सूफियों के लिए ज़रुरत होती तो आप मुसल्ले के नीचे से अशर्फियाँ निकाल कर खादिम को देते थे, दिन भर के खर्चे में ये सब रकम खर्च हो जाती थी,
कोई मुसाफिर या ज़रुरत मंद आप के दर से खाली वापस नहीं जाता था,
हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अपना हाल दुसरे लोगों पर ज़ाहिर करना पसंद ना फरमाते थे, आप ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी और इबादत में जो भी तरीका इख़्तियार करते और दूसरे लोगों से हमेशा छुपाते थे इसकी वजह ये थी के ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन को छुपाने से अमल में इस्तिक़ामत रहती है आप को शुहरत नामवरी बिलकुल पसंद नहीं थी, एक मर्तबा हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने आप से चिल्ला कशी की इजाज़त चाहि, आप ने इजाज़त नहीं दी, और फ़रमाया: इस की ज़रुरत नहीं, क्युंके इन बातों से भी शुहरत होती है, और फकीरों के लिए शुहरत का होना आफत है।

मुराकिबा व इस्तगराक

किताब “असरारुल आरफीन” में है के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! शबो रोज़ मुराकिबा में रहते थे, नमाज़ के वक़्त आँखे खोल कर ग़ुस्ल और ताज़ा वुज़ू कर के नमाज़ अदा करते, आप को अल्लाह पाक के साथ मशग़ूलियत की यहाँ तक नोबत पहुंच गई थी, के जब कोई शख्स आप की ज़ियारत के वास्ते आता तो उसे कुछ देर इन्तिज़ार करना पढता था, आप को इत्तिला दी जाती थी तब आप होशियार हो कर बात करते थे, फिर फरमाते थे मुझे माज़ूर रखो इस के बाद मुराकिबा में मसरूफ हो जाते थे, आप के कैफ व वज्द का ये हाल था के एक मर्तबा सात शबाना रोज़ आप आलमे तहय्यर में रहे, नमाज़ के बाद होश में आते,
किताब “सेरुल अक्ताब” में है के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अल्लाह पाक की इबादत की वजह से सोना बिलकुल तर्क कर दिया था, शुरू शुरू में नींद के ग़लबा के वक़्त घंटा आध घंटा सो भी जाते थे, आखिर में तो ये हालत हो गई थी के आप चोबीस घंटा मुराकिबा फरमाते थे बिस्तर पर आराम तक नसीब नहीं होता था ।

मुर्शिद से वालिहाना मुहब्बत

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अपने मुर्शिद से वालिहाना मुहब्बत थी आप अक्सर इनको अपनी गुफ्तुगू में याद फ़रमाया करते थे, आप काफी अरसा इन के साथ रहे और तरह की खिदमत बजा लाते रहे, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बीस साल तक गुले गुलज़ारे चिश्तियत सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में रहे, मेने इस अरसे में कभी न देखा के किसी को आप ने अपने पास आने ना दिया हो लेकिन वहां जब आप के लंगर में कुछ ना होता तो खादिम आ कर खड़ा होता हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! मुसल्ला उठा कर फरमाते, के जितना आज और कल के लिए हो उठालो पूरी साल यही तरीका रहा अगर कोई मुसाफिर आ जाता तो जो कुछ वो मांगता उसे देते थे, विदा करते वक़्त मुसल्ले के नीचे हाथ डालते जो कुछ हाथ में आ जाता वो उसे अता कर देते।

आप की इबादते इलाही

आप रहमतुल्लाह अलैह! ने ज़िन्दगी भर कसरत से अल्लाह पाक की इबादत व रियाज़त की बिना पर अल्लाह का क़ुर्ब और मार्फ़त हासिल हुई आप पाँचों वक़्त की नमाज़ पाबंदी से पढ़ते थे क्युंके आप को बचपन ही से नेक तरबियत ने सोमो सलात का पाबंद बना दिया था, आप की नमाज़ में अल्लाह पाक की तरफ तवज्जुह होती थी, इब्तिदा में आप नवाफिल की तलकीन फरमाते थे, और आप के बारे में कहा जाता है के आप रोज़ाना 300/ तीन सो रकअत नवाफिल पढ़ते थे, आप रहमतुल्लाह अलैह! ने ज़िन्दगी भर ज़िक्रे इलाही में बड़ी कसरत की गर्ज़ चलते फिरते उठते बैठे हर दम अल्लाह पाक के ज़िक्र में मशगूल रहते थे, आप रात को रोज़ाना सोते वक़्त तीन हज़ार मर्तबा दुरुद शरीफ पढ़ा करते थे,
हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बीस साल तक इबादते इलाही में ना सोए, और ना लेटे दुर्वेश के लिए सोना अच्छा नहीं है, इस लिए के जब दरवेशी आती है तो नींद आराम वगेरा कम हो जाता है।

कुरान शरीफ की तिलावत

आप रहमतुल्लाह अलैह को क़ुरआने पाक की तिलावत का बहुत शोक था आप हाफिज़े कुरआन थे, अक्सरो बेश्तर तिलावत में मशगूल रहते, एक मर्तबा हज़रत ख्वाजा काज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! और हज़रत शैख़ जमालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह, और हज़रत ख्वाजा बदरुद्दीन ग़ज़नवी रहमतुल्लाह अलैह, ने दिल्ली की जामा मस्जिद में मोतक़िफ़ (ऐतिकाफ करने वाला) हुए, हर एक ने दो कुरआन शरीफ ख़त्म करने का वज़ीफ़ा मुकर्रर किया, एक रात एक दूसरे से कहा के अगर हो सके तो हम एक पाऊं पर खड़े हो कर इबादत करें यानि दो रकअत में ही दिन चढ़ा दें सब ने कहा बेहतर है, चुनांचे हज़रत ख्वाजा काज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह इमाम बने, और बाकी मुक्तदी सब एक पाऊं पर खड़े हुए, क़ाज़ी साहब! ने एक पाऊं पर खड़े हो कर कुरआन शरीफ ख़त्म किया, और चार पारे और दूसरी रकअत में दूसरी मर्तबा कुरआन शरीफ ख़त्म किया, फिर सलाम फेर कर इल्तिजा की के अल्लाह पाक जैसा इबादत का हक़ है वैसे हम से अदा नहीं हो सका हमें बख्श दे और हमारी खिदमत से अपनी कमाल मारफ़त के सबब माफ़ कर दे, एक कोने से आवाज़ आई के ऐ हमारे दोस्तों! तुमने मुझे अच्छी तरह पहचाना और उम्दा इताअत की पस तुम्हें बख्शा और जो तुम्हारा मतलूब है वो तुम्हे दिया।

आप की तसानीफ़

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! एक बुलंद पाया मुसन्निफ़ भी हैं, एक अच्छे शायर भी हैं, आप की तसानीफ़ हस्बे ज़ैल हैं
(1) दलीलुल आरफीन
(2) ज़ुब्दतुल हक़ाइक़
(3) रिसाला, आप ने एक रिसाला भी तहरीर किया है,
(4) मसनवी एक मसनवी भी आप से मंसूब की जाती है,
(5) आप का दीवान, ये दीवान फ़ारसी में है और शाए हो चुका है ।

अक़्द मस्नून निकाह

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की पहली शादी आप के वतन क़स्बा ऊश में हुई थी, आप की वालिदा माजिदा ने आप का निकाह एक खातून के साथ कर दिया, तीन रोज़ बाद आप रहमतुल्लाह अलैह ने बीवी को तलाक दे दी, आप के औरादो वज़ाइफ़ में खलल आया और ये बात आप को गवराना हुई,
हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने शादी की थी आमदो रफ़्त और मसरूफियत के बाइस मुतावातिर तीन रात वो वज़ीफ़ा न पढ़ सके और ना ही हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में दुरूदो सलाम का नज़राना भेज सके, यानि शादी दुरूद शरीफ का तोहफा भेजने में रुकावट बनी इस लिए आप रहमतुल्लाह अलैह! ने उस वक़्त बीवी को बुलाया और उसे तलाक दे कर उसका हक महर अदा किया और उसको बा इज़्ज़त रुखसत किया, और फिर अपने औरादो वज़ाइफ़ में मशगूल हो गए, उसके बाद आप ने एक मुद्दत तक शादी नहीं की,
दूसरा निकाह! आप ने दूसरी शादी दिल्ली में सुकूनत इख़्तियार करने के बाद की, ये शादी आपने ने आखरी उमर में की उससे आप के दो लड़के तवल्लुद हुए, एक बेटे का नाम “अहमद” था और दूसरे का नाम “शैख़ मुहम्मद” था, “शैख़ मुहम्मद” का सात साल की उमर में इन्तिकाल हो गया, जब इन के इन्तिकाल पर इनकी वालिदा की रोने की आवाज़ हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के कानो तक पहुंची तो आप ने शैख़ बदरुद्दीन से पूछा के ये रोने की आवाज़ घर से क्यों आ रही है उन्होंने जवाब दिया के हुज़ूर आप के साहबज़ादे “शैख़ मुहम्मद” का इन्तिकाल हो गया है इस लिए इनकी वालिदा रो रही हैं, तो हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया: अगर मुझे लड़के की बीमारी की खबर होती तो में रब्बुल इज़्ज़त से इस के लिए कुछ उमर मांग लेता, मुझे उम्मीद है के मेरी दरखास्त कबूल होती, मगर इसे मरना ही था, इस लिए मुझे इस की बीमारी की खबर तक न हुई, इस के बाद आप रहमतुल्लाह अलैह ने अहलिया मुहतरमा को दिलासा तसल्ली दे कर जज़ा फ़ज़ा से मना किया और अल्लाह पाक की इबादत में मशगूल हो गए।

आप के खुलफाए किराम

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने सिलसिलए चिश्तिया को फरोग देने के लिए बड़ी अहम् खिदमात अंजाम दी हैं, आप सिलसिलए चिश्तिया बड़े अज़ीमुश्शान औलियाए किराम से हैं, आप के कई खुलफाए इज़ाम हुए हैं, मगर उन सब में मश्हूरो मारूफ सरे फहरिस्त हज़रत बाबा फरीद! हैं
(1) हज़रत ख्वाजा बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर,
(2) हज़रत ख्वाजा शैख़ बदरुद्दीन ग़ज़नवी
(3) हज़रत ख्वाजा सुल्तान शमशुद्दीन
(4) हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी
(5) हज़रत ख्वाजा निजामुद्दीन अबुल मुअय्यद
(6) हज़रत ख्वाजा शाह खिज़र कलंदर
(7) हज़रत ख्वाजा हसन शैख़ शाही मूयेताब बदरुद्दीन बदायूनी उर्फ़ बड़े सरकार
(8) हज़रत ख्वाजा शरफुद्दीन बू अली शाह कलंदर पानीपत
(9) हज़रत ख्वाजा फखरुद्दीन हलवाई
(10) हज़रत ख्वाजा शैख़ अहमद जामी
(11) हज़रत ख्वाजा शैख़ नजमुद्दीन कलंदर
(12) हज़रत ख्वाजा शैख़ हुसैन
(13) हज़रत ख्वाजा शैख़ फीरोज़ुद्दीन
(14) हज़रत बाबा संजर बहर दरिया
(15) हज़रत ख्वाजा शैख़ सआदुद्दीन
(16) हज़रत ख्वाजा शैख़ महमूद बिहारी
(17) हज़रत मौलाना हज़र मोईन
(18) हज़रत सुल्तान नसीरुद्दीन गाज़ी
(19) हज़रत मौलाना शैख़ मुहम्मद
(20) हज़रत मौलाना बुरहानुद्दीन
(21) हज़रत ख्वाजा शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी
(16) हज़रत ख्वाजा शैख़ ज़ियाउद्दीन रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, इन तमाम को हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से खिरकाए खिलाफत मिला और फिर इन्होने सिलसिलए चिश्तिया की नशरों इशाअत में बड़ा अहम् किरदार अदा किया।

आप के मलफ़ूज़ात शरीफ

(1) फ़रमाया जो शख्स कामिल होता है वो कभी दोस्त का राज़ फाश नहीं करता,
(2) फ़रमाया दुरवेशी राहत नहीं बल्के दुनिया की मुसीबतों में मुब्तला रहना,
(3) फ़रमाया जो दुर्वेश दुनिया को दिखाने की ग़र्ज़ से अच्छा लिबास पहने वो दुर्वेश नहीं बल्के राहे सुलूक का रहज़न है,
(4) फ़रमाया के जो शख्स हकीकत के मर्तबे पर पहुँचता है अपने नेक आमाल की वजह से पहुँचता है अगरचे फैज़ सब पर होता है लेकिन कोशिश लाज़िम है,
(5) फ़रमाया जिस दिल में ये चार खसलतें होती हैं उस में हिकमत नहीं ठहर सकती, (1) दुनिया की हवस (3) कल का गम के कल क्या होगा, (3) जाहो शराफ की मुहब्बत, (4) मुसलमानो के साथ बुग़्ज़ो हसद रखना, अगर किसी के दिल में इन चारों में से एक भी खसलत मौजूद हो उस का दिल हिकमत से खाली रहेगा,
(6) फ़रमाया जो शख्स अल्लाह की मुहब्बत का दावा करे और मुसीबत के वक़्त फर्याद करे वो दर हकीकत सच्चा दोस्त नहीं,
(7) फ़रमाया ज़िक्रे इलाही ज़बान पर जारी रहना ईमान की निशानी और निफ़ाक़ से बेज़ारी है।

आप का विसाल

आप रहमतुल्लाह अलैह का विसाल 14/ रबीउल अव्वल 633/ या 635/ हिजरी मुताबिक 27/ नवम्बर 1235/ इसी को हुआ,


आप की नमाज़े जनाज़ा

आप के विसाल की खबर से दिल्ली में कुहराम मचगया, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! दिल्ली के फुकरा, मशाइखे इज़ाम, सूफ़ियाए किराम, आमो खास सब ही नमाज़े जनाज़ा में शिरकत के लिए जमा हो गए, आप की वसीयत! जब जनाज़ा तय्यार हो गया तो मौलाना अबू सईद ने हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की वसीयत बयान फ़रमाई के मेरे जनाज़ा की नमाज़ वो शख्स पढ़ाए जिसने कभी हराम ना किया हुआ और जिससे असर की सुन्नत और तक्बीरे ऊला कभी फौत न हुई हो, बाज़ हज़रात कहते हैं के ये भी वसीयत थी के किसी ना महरम को न देखा हो,
जब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ये वसीयत लोगों को मालूम हुई तो लोग हैरान थे के आखिर वो कौन खुश किस्मत है के जो आप के जनाज़े की नमाज़ पढ़ाएगा, लोग खामोश थे, आखिर बादशाह सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! आगे बढे, आप ने कहा के मुझे हरगिज़ मंज़ूर ना था के किसी को मेरे हाल की खबर हो, मगर हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की मर्ज़ी से हुआ, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! ने आप की नमाज़े जनाज़ा पढाई आप के जनाज़े के साथ लोगों की कसीर तादाद थी सब ने जनाज़े को कन्धा दिया, और आप को उसी जगह दफ़न किया जिस जगह आप ने अपनी हयाते ज़ाहिरी में अपनी आखरी आरामगाह चुनली थी।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक दिल्ली में महरोली शरीफ में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
(2) औलियाए दिल्ली की दरगाहें
(3) मिरातुल असरार
(4) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द दो
(5) ख्वाजगाने चिश्त
(6) सीरते कुतबुद्दीन बख्तियार काकी
(7) दिल्ली के 32/ ख्वाजा
(8) दिल्ली के बाईस 22/ ख्वाजा
(9) मरदाने खुदा
(10) सेरुल अक्ताब
(11) तज़किराए औलियाए हिन्दो पाकिस्तान

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