हज़रत सय्यदना ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी (पार्ट-1)हज़रत सय्यदना ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी (पार्ट-1)

हज़रत सय्यदना ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी (पार्ट-1)

आप के खानदानी हालात

जय्यद आलिमे दीन, कुत्बे दिल्ली, महबूबे इलाही, उम्दतुल अतकिया, ज़ीनतुल असफिया, सुल्तानुल मशाइख, सुल्तानुल औलिया, सय्यदुल औलिया, नजीबुत तरफ़ैन, साहिबे कशफो करामात, साहिबे तकवाओ तदय्युन, हज़रत सय्यदना मुहम्मद ख्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया बुखारी चिश्ती बदायूनी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह! के आबाई खानदान का तअल्लुक़ मुल्के उज़्बेकिस्तान के मशहूर शहर बुखारा! से था, आप के दादा हज़रत ख्वाजा सय्यद अली! रहमतुल्लाह अलैह और आप के नाना हज़रत ख्वाजा सय्यद अरब बुखारी!रहमतुल्लाह अलैह ने भी बुखारा में नशो नुमा परवरिश हुई, ये दोनों बुज़रुग एक ही नसब से तअल्लुक़ रखते थे इस लिए दोनों के माबैन दोस्ताना मरासिम भी थे, बुखारा के ये सादात माली तौर पर भी बेहद मुस्तहकम थे और उनके पास माले तिजारत के साथ साथ गुलामो की भी कसीर तादाद थी और इन्हें मुआशिरा में इज़्ज़तो एहतिराम के साथ देखा जाता था, फिर सातवीं सदी हिजरी में जब तातारियों का फितना उठा और इस फ़ितने ने आलमे इस्लाम को अपनी लपेट में ले लिया, तातारियों ने एक एक कर के कई इस्लामी शहरों को तहिस नहिस बर्बाद किया और उनके सदियों के सरमाया (मालो दौलत) को लूट लिया, कई शहर जो उलूमो फुनून का मरकज़ थे वो खंडरात में बदल गए, बुखारा शहर भी तातारी फ़ितने से महफूज़ ना रहा और उस शहर की रौनकें भी कम हो गईं, तातारियों की तबाही व बर्बादी ने उस बा रौनक शहर को भी खंडर में बदल दिया, इस नागाहा सूरते हाल में बुखारा के सादात ने भी बुखारा शहर से तरके सुकूनत! इख़्तियार की और हिंदुस्तान की जानिब आज़िमे सफर हुए, बुखारा के उन सादात के काफिले का पहला पड़ाव पाकिस्तान के शहर लाहौर में हुआ जहाँ कुछ अरसा क़याम के बाद ये काफिला अपनी अगली मंज़िल “बदायूं” रवाना हुआ,

बदायूं शरीफ का इंतिख्वाब इस लिए किया गया था के ये शहर सियासत और जंग के हंगामो से अलग थलग था और बुखारा के ये सादात अब अपनी ज़िन्दगी सुकून से बसर करना चाहते थे क्यों के वो अपना शहर छोड़ कर आए थे और इस बदहाली ने इन्हें दुनियावी अशिया और जाहो मनसब से मुतानाफ्फिर कर दिया था, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह! के दादा और नाना दोनों ने बदायूं शरीफ में सुकूनत इख़्तियार की और यहाँ भी इन दोनों हज़रात के माबैन सफ़रों हज़र की वजह से तअल्लुक़ात में जो पुख्तगी थी वो बरकरार रही, यहाँ तक के हज़रत ख्वाजा सय्यद अरब बुखारी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी साहबज़ादी हज़रत बीबी ज़ुलैख़ा का निकाह हज़रत ख्वाजा सय्यद अली के साहबज़ादे हज़रत ख्वाजा सय्यद अहमद से कर दिया।

आप के वालिद माजिद

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह! आप के वालिद माजिद का नामे नामी इस्मे गिरामी “सय्यद अहमद” था, और आप के दादा जान का नाम मुबारक “सय्यद अली बुखारी” रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत सय्यद अहमद बुखारी रहमतुल्लाह अलैह तरीकत में अपने वालिद के ही “मुरीदो खलीफा” थे, हज़रत सय्यद अहमद बुखारी रहमतुल्लाह अलैह नेक सीरत और साहिबे फ़ज़्लो कमाल थे, हज़रत सय्यद अरब बुखारी रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत सय्यद अली बुखारी रहमतुल्लाह अलैह दोनों बुज़रुग अल्लाह के बुर्गज़ीदाह बन्दे थे, दोनों बुज़ुर्गों ने आपस में मश्वरा किया और अपने खानदानी रिश्ते को मज़ीद मज़बूत मुस्तहकम करते हुए हज़रत सय्यद अहमद बुखारी रहमतुल्लाह अलैह की शादी हज़रत सय्यदा ज़ुलैख़ा बीबी रहमतुल्लाह अलैह से कर दी,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह! के वालिद माजिद मादर ज़ाद वली थे, और वो जवान होने से परेशतर ही तमाम उलूमे ज़ाहिरी में आलिमो फ़ाज़िल हो गए थे।

वालिदा माजिदा

आप की वालिदा साहिबा का नाम हज़रत सय्यदा ज़ुलैख़ा बीबी रहमतुल्लाह अलैहा था जो हज़रत सय्यद अरब बुखारी रहमतुल्लाह अलैह की बेटी थीं, जो ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, में कमाल का दर्जा रखती थीं, इबादत गुज़ार और शब् बेदार थीं अपने वक़्त की वलिया कामिला थीं और उनको अपने वक़्त की राबिया बसरी कहा जाता था, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह! फरमाते हैं के मेरी वालिदा को जब भी कोई काम दरपेश होता था तो उसके होने से पहले ही उसके अंजाम के बारे में आप को ख्वाब में मालूम हो जाता था, के इस काम का अंजाम क्या होने वाला है।

विलादत बसआदत

सरज़मीने हिन्द पर अल्लाह पाक ने जिन औलियाए किराम को पैदा फ़रमाया उन में से एक एक सिलसिलए चिश्तिया के अज़ीम पेशवा और मशहूर वलिये कामिल सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! सूफ़ियाए नामदार, औलियाए किबार, सुल्तानुल मशाइख मरतबाए अज़ीम, और आला मकाम रखते हैं, और आप की पैदाइश मुबारक बरोज़ बुद्ध तुलु आफताब के वक़्त बतारीख 27/ सफर 636/ हिजरी सूबा उत्तर प्रदेश के शहर बदायूं शरीफ में हुई, विलादत के बाद आप का नाम हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के इस्म मुबारक की मुनासिबत से आप का नाम “मुहम्मद” रखा गया, मगर दुनिया में आप ने अपने अलकबात से सुल्तानुल मशाइख, महबूब, महबूबे इलाही, सुल्तानुस सलातीन, सुल्तानुल औलिया, और निज़ामुद्दीन औलिया, के लक़ब से शुहरत पाई, मगर आप की तारीखे विलादत के मुतअल्लिक़ मुअर्रिख़ीन की मुतअद्दिद आरा पाई जाती हैं, कुछ के नज़दीक आप की विलादत 634/ हिजरी मुताबिक 1239/ ईसवी को पैदा हुए जब के कुछ के नज़दीक आप का सने विलादत 636/ हिजरी है भी लिखा है।

आप के नाम की वज़ाहत

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह! के लक़ब “निजामुद्दीन” के मुतअल्लिक़ मशहूर है के आप जिन दिनो बदायूं में हुसूले इल्म में मशगूल थे आप के मकान के पास किसी ने आप को “मौलाना निज़ामुद्दीन” कह कर पुकारा, आप जब मकान से बाहर तशरीफ़ लाए तो एक शख्स खड़ा था, उसने आप को देखते ही फिर “मौलाना निज़ामुद्दीन” कहा चुनांचे उस दिन के बाद आप “निज़ामुद्दीन” के लक़ब से मशहूर हुए,
“महबूब का लक़ब” सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का लक़ब “महबूब” भी है, आप के इस लक़ब के मुतअल्लिक़ “सेरूल आरफीन” में मन्क़ूल है के एक मर्तबा शैखुल आलम हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने आप के हक़ में यूं दुआ फ़रमाई, “ऐ अल्लाह! निज़ामुद्दीन तुझ से जो भी मांगे तो उसे अता करना, शैखुल आलम हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की दुआ पूरी हुई, और यूं सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह! “महबूब” के लक़ब से सरफ़राज़ हुए।

आप की नशो नुमा परवरिश

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद माजिद का जब विसाल हो गया तो आप की तालीमों तरबियत व परवरिश की तमाम ज़िम्मेदारी आप की वालिदा माजिदा हज़रत सय्यदह ज़ुलैख़ा रहमतुल्लाह अलैहा पर आन पड़ी जो निहायत समझदारी और दीनदार खातून थीं, आबिदा ज़ाहिदा थी, आप बहुत दौलतमंद घराने की बेटी थीं मगर वज़ा दारी का ये आलम था के दौलत मंद भाइयों ने अपनी बहिन की माली मदद करनी चाहि तो इंकार कर दिया और घर की गुज़र बसर के लिए सूत कातना शुरू कर दिया, इससे जो मिलता घर का खर्च चलाती थीं इस के बावजूद घर में अक्सर औकात कई दिन फाका भी रहता था मगर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह! कमसिन होते हुए भी कभी खाने के लिए ज़िद नहीं किया करते थे और सब्र बर्दाश्त का मुज़ाहिरा फरमाते थे, जिस रोज़ घर में फाके की नौबत आती और आप अपनी वालिदा माजिदा से खाना तलब फरमाते तो आप की वालिदा जिदा फरमाती के बेटा! आज हम अल्लाह पाक के मेहमान हैं, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! इस वाकिए का ज़िक्र करते हुए फरमाते हैं के जब मेरी वालिदा मुझ से ये फरमाती के आज हम अल्लाह के मेहमान हैं तो इन की ये बात सुनकर मुझे बहुत लुत्फ़ आता था और में इस इन्तिज़ार में रहता था के मेरी वालिदा माजिदा कब फरमाती हैं के हम अल्लाह के मेहमान हैं इस लिए के इन के इस फरमाने से मुझे जो लुत्फ़ व सुकून महसूस होता था वो बयान से बाहर है।

तालीमों तरबियत

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की वालिदा माजिदा ने आप को कुरआन शरीफ पढ़ने के लिए मदरसे में दाखिल करा दिया चूंके आप पर अल्लाह पाक का खुसूसी फ़ज़्लो करम था इस लिए आप ने बहुत जल्द कुरआन शरीफ हिफ़्ज़ कर लिया इस के बाद आप ने मज़ीद दीनी तालीम हासिल करने की गर्ज़ से हज़रत मौलाना अलाउद्दीन उसूली रहमतुल्लाह अलैह के दर्स में शामिल हो गए, आप के उस्तादे मुहतरम ने आप के इल्मी ज़ोको शोक को देखते हुए आप पर खुसूसी तवज्जुह दी, इब्तिदाई दीनी तालीम के बाद इल्मे फ़िक़्ह की मशहूर किताब “कुदूरि” पढ़ाना शुरू की, जब ये किताब आप ने मुकम्मल पढ़लि तो आप के उस्ताज़े मुहतरम ने फ़रमाया, बेटा अब तुम एक मुस्तनद किताब पूरी कर रहे हो इस लिए अब ज़रूरी है के आप के सर पर आलिम की दस्तार बाँधी जाए, उस्ताज़े मुहतरम की बात सुन कर आप घर तशरीफ़ ले गए और अपनी वालिदा माजिदा को ये बात बताई के उस्ताज़े मुहतरम ने दस्तार बांधने के लिए कह रहे हैं आज किताब मुकम्मल हो गई है,
वालिदा माजिदा ने जब ये बात सुनी तो बहुत ख़ुशी हुई और फ़रमाया बेटा तुम्हें फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं के दस्तार बंधी का इंतिज़ाम कैसे होगा अल्लाह पाक ज़रूर असबाब पैदा फरमाएगा, और तुम्हारी दस्तार बंधी भी होगी, फिर आप की वालिदा माजिदा ने खुद अपने हाथों से सूत कात कर इससे कपड़ा तय्यार किया और इसकी दस्तार बनाई इस के साथ साथ शबो रोज़ सूत कातने में मशगूल हो गईं और मेहनत करने लगीं ताके सूत बाजार में फरोख्त कर के दस्तार बंधी की तक़रीब के लिए कुछ रकम इखठठी करली, इधर वालिदा माजिदा अपने प्यारे बेटे की दस्तार बंधी की गर्ज़ से रात दिन सूत कातने में मशगूल थीं, और उधर अज़ीमुल मरतबत बेटा पढाई करने में मसरूफ था फिर जल्द ही वो दिन भी आ गया के जब आप ने तालीम पूरी हासिल करली, आप की वालिदा माजिदा ने बेटे की दस्तार बंधी की तक़रीब का एहतिमाम किया शहर के जय्यद उल्माए किराम को इस तक़रीब में बुलाया गया, महमानो के लिए खाने का इंतिज़ाम भी किया गया था, इस मजलिसे पाक में आप के सर मुबारक पर दसराते फ़ज़ीलत बाँधी गई

एक रिवायत ये भी है के आप के सर मुबारक पर हज़रत ख्वाजा अली रहमतुल्लाह अलैह ने दस्तारे फ़ज़ीलत बाँधी जो उस वक़्त के औलियाए किराम में से थे, और हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह के मुरीद और साहिबे करामत वली थे, और एक रिवायत के मुताबिक आप के उस्ताज़े मुहतरम हज़रत मौलाना अलाउद्दीन उसूली रहमतुल्लाह अलैह ने आप के दस्तार बाँधी थी, दस्तार बंधी के बाद हज़रत ख्वाजा अली रहमतुल्लाह अलैह ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के हक में दुआ की और फ़रमाया या अल्लाह निज़ामुद्दीन! को उल्माए किराम की सफ में शामिल फरमा और अपने फ़ज़्लो करम से बुलंद मर्तबा अता फरमा इस के बाद सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इस मजलिस में मौजूद दीगर बुज़ुर्गों की सआदत दस्त बोसी हासिल की।

दिल्ली इल्मे हदीस हासिल करना

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! मज़ीद इल्मे दींन हासिल करने के लिए अपनी वालिदा माजिदा अपनी हमशीरा और अपने एक अज़ीज़ बुज़रुग हज़रत ओज़ के हमराह बदायूं शरीफ से दिल्ली के लिए रवाना हुए, दिल्ली उन दिनों उल्माए किराम व फुज़्ला का मरकज़ था नामवर उल्माए किराम दिल्ली में मौजूद थे और मखलूके खुदा को फ़ैज़याब कर रहे थे, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के सफर के दौरान जब हम जंगल बियाबान से गुज़रे और कहीं शेर या चोर का खतरा दरपेश हुआ तो मेरे अज़ीज़ बुज़रुग हज़रत ओज़ बुलंद आवाज़ में पुकारने लगे के ऐ पीर! तशरीफ़ ऐ पीर! तशरीफ़, जब रात भरके इस जंगल के सफर के बाद सुबह हुई और हम अपनी मंज़िल की तरफ चलने लगे तो में ने उन से पूछा के आप कोन से पीर! को पुकारते थे? उन्होंने जवाब दिया के में हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह को पुकारता था, ये सुनकर मेरे दिल में हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की मुहब्बत पैदा हो गई,
दिल्ली में सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने हज़रत मौलाना शमशुद्दीन ख्वारज़मी रहमतुल्लाह अलैह के दर्स में शामिल हुए, हज़रत मौलाना शमशुद्दीन ख्वारज़मी रहमतुल्लाह अलैह से आप ने अरबी ज़बान की दक़ीक़ तिरीन किताब “मक़ामाते हरिरि” पढ़ी और इस किताब के चालीस सबक आप ने हिफ़्ज़ किए, आपने तकरीबन दो साल तक हज़रत मौलाना शमशुद्दीन ख्वारज़मी रहमतुल्लाह अलैह से इल्म हासिल किया, इस अरसे में आप ने अरबी ज़बान पर उबूर हासिल कर लिया, आप के अंदर कमाल की खूबी थी जो चीज़ एक बार याद कर लेते उसे भूलते नहीं, यही वजह थी के थोड़े ही अरसे में आप की इल्मी लियाकत, काबिलियत, दानिशमंदी,

मुआमला फहमी की शोहरत उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम और तालिबे इल्मों में मशहूर हो गई हर मुश्किल मसले का जवाब फ़ौरन दलाइल की रौशनी में देते जिससे सुनने वाले दंग रह जाते नो उमरी ही में लोगों ने आप को मौलाना निज़ामुद्दीन बहास शिकन व महफ़िल शिकन के ख़िताब से नवाज़ा और ये आप की इल्मी काबिलियत का ऐतिराफ़ था जिस का लोग इज़हार करते थे,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इल्मे हदीस की तालीम अपने वक़्त के मशहूर और कामिल तिरीन बुज़रुग और आलिमे दीन हज़रत मौलाना कमालुद्दीन से हासिल की, इल्मे हदीस व रिवायत को पढ़ा और मशहूर किताब “मशारिकुल अनवार” पढ़ी,
हज़रत मौलाना कमालुद्दीन ज़ाहिद रहमतुल्लाह अलैह ने अपने शागिर्दी खास पर खुसूसी तवज्जुह फ़रमाई और थोड़े ही अरसे में इल्मे हदीस के फन में कामिल कर दिया, हज़रत मौलाना कमालुद्दीन ज़ाहिद रहमतुल्लाह अलैह जैसे बुज़रुग आप के उस्ताज़ थे,

इल्मो फ़ज़्ल में आला मकाम रखते थे, दिल में दुनिया की मुहब्बत बिलकुल नहीं थी, इनके इल्मो फ़ज़्ल सलाहियत का शुहरा हिंदुस्तान के हाकिम सुल्तान गियासुद्दीन बलबन तक भी पंहुचा तो सुल्तान चूंके अल्लाह के नेक बन्दों से हुस्ने ज़न रखता था, इस लिए उसके दिल में ये ख्वाइश पैदा हुई के हज़रत मौलाना कमालुद्दीन ज़ाहिद रहमतुल्लाह अलैह को अपना इमाम मुकर्रर करे चुनांचे इस मकसद के लिए उस ने मौलाना को पोगाम भेजा के अगर आप तशरीफ़ लाएं तो ये मेरी बड़ी खुशबख्ती होगी, इस पैगाम को सुन कर मौलाना! सुल्तान गियासुद्दीन बलबन के दरबार में तशरीफ़ ले गए बादशाह आप को देख कर बहुत खुश हुआ और कहने लगा, में आप से बेहद अकीदत रखता हूँ आप का मोतक़िद हूँ, आप का ये मुझ पर बहुत बड़ा करम होगा और ये मेरी खुश नसीबी होगी के आप हमारी इमामत कबूल फ़रमालें, में समझता हूँ के इससे मुझे यकीन कामिल हो जाएगा के अल्लाह पाक की बारगाह में मेरी नमाज़ को ज़रूर कबूलियत की सनद हासिल होगी, हज़रत मौलाना कमालुद्दीन ज़ाहिद रहमतुल्लाह अलैह ने बादशाह की तरफ देखा और फ़रमाया मेरे पास तो कुछ भी नहीं और जिस के पास कुछ भी न हो वो किसी दूसरे को क्या दे सकता, ले दे कर सिर्फ एक नमाज़ ही मेरे पास रहने दी जाए, सुल्तान गियासुद्दीन बलबन ने मौलाना! का ये जवाब सुना तो वो हक्का बक्का रह गया और कोई जवाब न दिया दरबार में तलब करने पर मौलाना! से माज़रत की और इनको इज़्ज़तो एहतिराम से रुखसत कर दिया सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने एक अरसा तक मौलाना कमालुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह से तालीम हासिल की और अपनी इल्मी तिशनगी को सेराब करते रहे ।

मुर्शिद से मुहब्बत

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं मेरी उमर 12/ साल की थी और में बदायूं में इल्मे दीन हासिल कर रहा था तो मेरे उस्ताज़ हज़रत मौलाना अलाउद्दीन उसूली रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में एक शख्स अबू बकर खैरात जिस को अबू बकर कव्वाल भी कहते थे वो मुल्तान से आप की खिदमत में हाज़िर हुआ, मेरे उस्ताज़े मुहतरम ने मुल्तान के मशाइखे इज़ाम और बुज़ुर्गाने दीन का हाल उससे मालूम किया तो इस ने पहले तो शैखुल इस्लाम बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की तारीफ की और कहा उनकी इबादतों रियाज़त बयान से बाहर है यहाँ तक के उनके खुद्दाम काम की हालत में भी ज़िक्र से गाफिल नहीं होते, उसकी तरफ तमाम विलायत को उन्होंने अपने फैज़ से बा फैज़ कर रखा है, और में ने उनको समा भी सुनाया है कव्वाल के इस बयान से मेरे दिल में कोई असर ना हुआ, इस के बाद उसने बताया के जब में मुल्तान से पाकपटन पंहुचा तो वहां ऐसे बुज़रुग देखे के तमाम आलम उनकी विलायत का मुसख्खर था, वो एक माहे तमाम! हैं और उन्होंने आलम को अपने नूरे मार्फ़त से मुनव्वर कर दिया है, में ने जो शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की मनकबत उसकी ज़बान से सुनी तो कुदरती मुहब्बत दिल में पैदा हो गई,

इस मुहब्बत ने इतनी तरक्की की के शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह का इस्मे मुबारक मेने हर नमाज़ के बाद अपना विर्द बना लिया चुनांचे में दस बार शैख़ फरीद रहमतुल्लाह अलैह और दस बार मौलाना फरीद रहमतुल्लाह अलैह कहता था और जब तक ये वज़ीफ़ा न पढ़ लेता था रात को आराम ना करता था, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं जब में सोला साल का हुआ तो बदायूं से दिल्ली की तरफ हिजरत की तो इस दौरान रास्ते में एक शख्स ओज़ नामी हमारे साथ हो गया, जब कोई खौफ का मौका आता तो वो फ़ौरन बेसाख्ता पुकार उठता, “या पीर हाज़िर बाश के मादर पनाह तू मी रवेम” सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने उस शख्स से पूछा तुम्हारे पीर कोन हैं और कहाँ रहते हैं, जिनकी पनाह और मदद तुम चाहते हो,? उसने जवाब दिया के मेरे पीर वही हैं जिन्होंने तुम्हारे दिल को अपनी तरफ खींच लिया है और तुम को अपनी मुहब्बत में फ़रेफ्ता बनाया है, यानि शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं उस रोज़ से हज़रत बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में मेरा इखलास और ऐ तिक़ाद बहुत ज़ियादा बढ़ गया यहाँ तक के जब में दिल्ली पंहुचा तो हज़रत ख्वाजा शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल चिश्ती भाई व खलीफा शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के औसाफ़ व महासिन सुनकर मेरा इश्तियाक बहुत तरक्की करता गया यहाँ तक के इस में तीन साल गुज़र गए।

हज़रत बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह से मुहब्बत

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने तमाम दोस्त अहबाब से दरखास्त की के मुझे किसी जगह से मुरीद करा दो, सब ने कहा के इस वक़्त हज़रत ख्वाजा शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह से बढ़ कर दिल्ली में कोई बुज़रुग नहीं तुम इन से मुरीद हो जाओ, आप रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया और दोस्तों की बात सुन कर हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल रहमतुल्लाह अलैह से दरख्वास्त बैअत की उन्होंने फ़रमाया दो बड़े बुज़रुग मुक़्तदाए असर हैं जिन में से एक हज़रत बाबा फरीद रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह हैं तुम उनमे से जिस के चाहो मुरीद हो जाओ।

पाकपटन रवानगी

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने जब हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतावक्किल रहमतुल्लाह अलैह से दो अज़ीम औलियाए किराम का तज़किरा सुना तो इरादत का शोक ग़ालिब हुआ के अगले दिन बगैर ज़ादेराह के रवाना हुए, जब हांसी पहुचें तो रास्ता इस कदर पुरसुकून ना था के बे ख़ौफ़ो खतर हर शख्स मंज़िल तय कर सके लिहाज़ा आप को काफिले का इन्तिज़ार करना पड़ा, जब दो तीन रोज़ में काफिला जमा हो गया तो आप भी इन के साथ रवाना हो गए, एक शख्स काफिले का रहबर था वो जिधर जाता था सब उधर ही जाते थे, जिस जगह अगर कोई खतरा महसूस होता और बुलंद आवाज़ से पुकारता था, “हज़रत पीर दस्तगीर शफीये वक़्त” और फिर रवाना हो जाता था,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इससे पूछा के तुम्हारा पीर कौन है जिस को तुम पुकारते हो और मदद तलब करते हो? सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के उस शख्स ने मुझ से कहा मेरे पीरो मुर्शिद शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह हैं और में उन्हीं को याद करता हूँ, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं ये जवाब सुनकर मेरा दिल और भी पाक पतन की जामिब माइल हुआ, यहाँ तक के जब हम क़स्बा सिरसा में पहुंचे तो वहां से दो रास्ते जाते थे, एक मुल्तान की तरफ और दूसरा पाकपटन की तरफ जाता था मुझे तश्वीश हुई के किधर जाऊं मुल्तान की तरफ या अजोधन की तरफ? इसी सोच में तीन दिन गुज़र गए और में कोई फैसला न कर पाया,

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं में इसी शशो पंज में था के मुझे कोनसा रास्ता इख़्तियार करना चाहिए मगर में कुछ समझ ना सका, फिर मुझे तीसरी रात ख्वाब में हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत नसीब हुई, और हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से फ़रमाया: मौलाना निज़ामुद्दीन! तुम पाकपटन चले जाओ, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फरमान के बाद मुझे यकीन हो गया के मेरी मंज़िल पाकपटन ही है, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं में ने हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का हुक्म मिलते ही पाकपटन का सफर शुरू किया और अपने तमाम औरादो वज़ाइफ़ तर्क कर दिए और में सिर्फ फरीद फरीद कहता हुआ पाकपटन रवाना हुआ जब 655/ हिजरी को शहर पाक पटन में दाखिल हुआ और बाद नमाज़े ज़ोहर शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़री दी और कदम बोसी का शरफ मिला।

खिलाफ़तो इजाज़त

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हो कर बैअत की दरख्वास्त की, तो शैखुल मशाइख हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने आप की दरख्वास्त मंज़ूर करते हुए सूरह फातिहा पढ़वाई और फिर सूरह इखलास के बाद क़ुरआन शरीफ की तिलावत करवाई और फ़रमाया यूं कहो में ने इस फ़कीर बाबा मसऊद गंजे शकर! और इस के ख्वाजगां और हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दस्ते मुबारक पर बैअत की और अहिद करता हूँ, के अपने हाथ पैर को महफूज़ रखूंगा और शरीअत की पाबन्दी करता रहूंगा, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अलफ़ाज़ दुहराए और फिर हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने कैंची ले कर आप के बालों की एक लट दाहिनी जानिब से काटी और अपना एक कुरता अपने ही हाथों से पहनाया, उस वक़्त हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह कुरआन शरीफ की तिलावत कर रहे थे, फिर हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैहने हाज़रीने मजलिस से फ़रमाया हमने आज एक ऐसा दरख़्त लगाया है जिस के साये से मखलूके खुदा आराम पाएगी, फिर हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को वसीयत करते हुए फ़रमाया, जो इस फ़कीर का मुरीद हो उसे क़र्ज़ नहीं लेना चाहिए और अपने दुश्मनो को खुश करना चाहिए और हकदार को उसका हक देना चाहिए।

मुर्शिद की बारगाह में हाज़री

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं में अपने मुर्शिद हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की हयाते मुबारिका में तीन बार हाज़िर हुआ हूँ और बादे वफ़ात छेह या सात 6/ या 7/ बार मज़ार मुबारक पर हाज़री दी मगर ग़ालिब गुमान यही है सात मर्तबा और मुझे यकीन है में कुल दस मर्तबा गया हूँ और हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह ने उन्नीस 19/ मर्तबा हाज़री दी है।

तवक्कुल की तालीम

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं फिर जब में हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में शरफ़े बैअत से मुशर्रफ हुआ तो में ने चाहा अपने औकात को आप की खिदमत में सर्फ़ करूँ और इसे गनीमत समझूँ, उन अय्याम में आपकी खानकाह में तंगदस्ती ऊसरत थी, अक्सर ऐसा होता के हफ्ते में दो या तीन बार रोज़ा इफ्तार करते और आप की बरकते सुहबत से किसी के हाल में कुछ फर्क न होता,
हज़रत मौलाना इसहाक बदरुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह जंगल की लकड़ियां इखठठी कर के लाते और शैख़ जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह दरख्त करेल के फल जिन को टेंट कहते हैं और सिरका वगेरा में लोग उनका अचार डालते और हज़रत मौलाना हुस्सामउद्दीन काबुली रहमतुल्लाह अलैह पानी ला कर बावर्ची खाना के बर्तन धोते थे, में देग में इन करेल के फल को जोश दे कर निकालता था, और इफ्तार के वक़्त आप और जुमला मजलिस के सामने पेश करता था, इस खाने में कभी नमक होता था कभी नहीं, मस्जिद खानकाह के नज़दीक एक बक्काल (सब्ज़ी बेचने वाला) की दूकान थी और जब कुछ खानकाह में नज़राना वगेरा आता था तो इस बक्काल से गल्ला वगेरा और मसाले खरीदे जाते थे,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के एक दफा मेरे दिल में कुछ ख़याल आया तो इस बक्काल से एक दिरहम का नमक उधार ले आया और सब्ज़ी में दाल दिया, जब खाना तय्यार हो गया तो हस्बे दस्तूर हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पेश किया, आप ने मुझे, शैख़ जमालुद्दीन हांसवी रहमतुल्लाह अलैह और हज़रत मौलाना इसहाक बदरुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह को हुक्मदिया के खाना खाओ, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं, जब हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने खाने के लिए जैसे ही लुक्मा उठाया तो हाथ लरज़ने लगा, और आप ने फ़रमाया:

मालूम होता है के इस खाने में कुछ शुबाह है जो हाथ इस के तनावुल की इजाज़त नहीं देते, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं फिर इस लुक़मे को हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने दुबारा उस बर्तन में डाल दिया, में इस बात को सुनकर काँप उठा और अर्ज़ करने लगा, हुज़ूर! लकड़ियां और करेल के फल और पानी हज़रत शैख़ जलालुद्दीन और हज़रत मौलाना इसहाक बदरुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह लाते हैं और ये ज़ईफ़ उनको तय्यार करता और बहुत एहतिमाम बजा लाता है, उस के बाद में आप को पेश करते हैं, शुबह की इल्लत मुझ को मालूम नहीं होती आप पर तो सब कुछ रोशन है, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: खाने में नमक किसने डाला है और कहाँ से आया था?
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं ये सुनते ही में अपने होश में आया और समझ गया के में ने जो नमक क़र्ज़ ले कर डाला है ये उस का ही सबब है, में ने दुबारा अर्ज़ किया, हुज़ूर मेने नमक क़र्ज़ से लिया था, हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: दुर्वेश फाके से मरजाता है मगर लज़्ज़ते नफ़्स के वास्ते क़र्ज़ नहीं लिया करता क्यों के क़र्ज़ और तवक्कुल में बादल मशरिक़ैन है दोनों साथ दुरुस्त नहीं होते के क़र्ज़ अदा न हो और गर्दन पर रह जाए, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं फिर हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने इरशाद फ़रमाया: दुरवेशों के आगे से ये प्याले उठा कर फकीरों को दे दो,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं में ने ऐसा ही किया और मुझे यकीन हो गया के ये इरशाद ख़ास मेरे लिए है क्यों के पहले मुझ को ज़रूरत होती थी तो क़र्ज़ ले लिया करता था, उसी वक़्त में ने अस्तगफार पढ़ा और अहिद किया के हरगिज़ क़र्ज़ ना लूँगा कितनी भी ज़रूरत हो, उसी वक़्त हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह ने एक कम्बल जो वो रखते थे मुझे अता फ़रमाया और दुआ दी, इंशा अल्लाह इस के बाद तुम को क़र्ज़ लेने की ज़रूरत न होगी ।

रेफरेन्स हवाला

(1) रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
(2) औलियाए दिल्ली की दरगाहें
(3) मिरातुल असरार
(4) ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द दो
(5) ख्वाजगाने चिश्त
(6) दिल्ली के 32/ ख्वाजा
(7) दिल्ली के बाईस 22/ ख्वाजा
(8) मरदाने खुदा
(9) सेरुल अक्ताब
(10) तज़किराए औलियाए हिन्दो पाकिस्तान

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