हज़रत बीबी ज़ुलैख़ा उर्फ़ माई साहिबा चिश्तिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैहा की ज़िन्दगी

हज़रत बीबी ज़ुलैख़ा उर्फ़ माई साहिबा चिश्तिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैहा की ज़िन्दगी

नाम मुबारक

आप सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की वालिदा साहिबा हैं, आप का नामे नामी इस्मे गिरामी “सय्यदा ज़ुलैख़ा” था जो सय्यद अरब की बेटी थीं, जो ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, में कमाल का दर्जा रखती थीं, इबादत गुज़ार और शब्बेदार थीं, अपने वक़्त की वलीये कामिला थीं, और आप को अपने वक़्त की राबिया बसरी कहा जाता था।

सय्यद अरब बुखारी

हज़रत सय्यद अरब बुखारी रहमतुल्लाह अलैह आप सय्यद मुहम्मद अज़हर कादरी बुखारी रहमतुल्लाह अलैह के साहबज़ादे और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के नाना जान! हैं आप सहींयुंन नसब सय्यद हैं, आप के आबाओ अजदाद मुल्के उज़्बेकिस्तान के मशहूर शहर बुखारा! से हिजरत कर के मुल्के अफगानिस्तान के शहर गज़नी! आए, और शहर गज़नी ही में हज़रत ख्वाजा अरब की पैदाइश 551, हिजरी मुताबिक 1227, ईसवी में हुई, फिर गज़नी शहर से लाहौर! आए और 606, हिजरी में बदायूं शरीफ तशरीफ़ लाए, आप इल्मो फ़ज़्ल में यगानए अस्र और मरतबाए विलायत पर पहुंचे हुए बुज़रुग थे।

आप का नसब नामा

आप सहींयुंन नसब हुसैनी सादाते किराम में से हैं, ज़ुलैख़ा बिन्ते, अरब बिन, अबुल मफ़ाख़िर बिन, मुहम्मद अज़हर बिन, हसन बिन, अली बिन, अहमद बिन, अब्दुल्लाह बिन, अली असगर बिन, जाफर बिन, अली बिन, हादी बिन, मुहम्मद तकी बिन, अली रज़ा बिन, मूसा काज़िम बिन, जाफर बिन, सादिक बिन, मुहम्मद बाकर बिन, ज़ैनुल आबिदीन बिन, हुसैन बिन अली रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

लोंडी वापस आ गई

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मेरी वालिदा को जब कोई हाजत दरपेश होती तो गोद फैला कर पांच सो मर्तबा हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बारगाह में दुरुद शरीफ पढ़तीं, फ़ौरन वो हाजत पूरी हो जाती थी, चुनांचे आप की एक लोंडी (लड़की, नौकरानी) भाग गई, दूसरा कोई खिदमत करने वाला नहीं था, आप को इस के भाग ने से तकलीफ हुई, आप ने मुसल्ला बिछा कर सर नग्गा किया और पांच सो मर्तबा दुरुद शरीफ पढ़ा और गोद फैला कर ये दुआ की ऐ अल्लाह! जब तक मेरी लोंडी वापस नहीं आएगी में सर को नहीं ढकूँगी, उसी वक़्त गैब से आवाज़ आई के तुम्हारी लोंडी को हमने गिरफ्तार कर के यहाँ पंहुचा दिया, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के में बाहर आया और लोंडी को पकड़ कर वालिदा की खिदमत में पंहुचा दिया।

आज हम अल्लाह के मेहमान हैं

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मेरी वालिदा माजिदा इतनी मकबूल थीं के जब हमारे घर में खाने को कुछ ना होता तो आप कहतीं “आज हम अल्लाह पाक के मेहमान हैं” इनकी इस बात से मुझ को एक खास ज़ोक हासिल हुआ ही था के अचानक कोई आदमी एक अशरफी का गल्ला हमारे घर डाल गया और वो इतने दिन चला के में उस के ख़त्म ना होने से तंग आ गया और इस ज़ोक का मुन्तज़िर रहा के वालिदा माजिदा फरमाएं के आज हम अल्लाह पाक के मेहमान हैं, चुनांचे वो गल्ला ख़त्म हो गया, उस दिन हमारे घर में खाने को कुछ नहीं था, मेरी वालिदा ने मुझ से कहा बाबा निज़ाम! आज हम अल्लाह के मेहमान हैं, इनकी इस बात से मुझे वो सुकून मिला जिसे में बयान नहीं कर सकता,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते थे के मेरी वालिदा माजिदा को अल्लाह पाक से एक खास लगाओ मुहब्बत थी, जब उनको कोई ज़रुरत होती तो वो पहले ही ख्वाब में देख लिया करती थीं और उस काम को अंजाम देने में उन्हें इख़्तियार हासिल हो जाता था, मेरी खुद ये हालत है के जब कोई ज़रुरत पड़ती है तो में वालिदा माजिदा के मज़ार मुबारक जा कर अर्ज़ करता हूँ और मेरा वो काम तकरीबन एक हफ्ते के अंदर ही हो जाता है।

झंडे के नीचे आ जाओ

हज़रत ख्वाजा सय्यद अमीर खुर्द रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के मेरी बीवी ने बताया के मेने ख्वाब में देखा के क़यामत कायम हो गई है और लोग परशानी की हालत में इधर उधर भाग रहे हैं और में हैरानो परेशान थी के किधर जाऊं, इसी आलम में, में ने देखा के एक आदमी झंडा लिए हुए खड़ा है और मुझ से कहता है के ये झंडा हज़रत बीबी ज़ुलैख़ा उर्फ़ माई साहिबा! का है जो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की वालिदा माजिदा हैं, तुम भी इस झंडे के नीचे आ जाओ, चुनांचे मुझे भी इस भीड़ भाड़ में इस झंडे के नीचे जगह मिल गई।

वफ़ात

हज़रत बीबी ज़ुलैख़ा उर्फ़ माई साहिबा रहमतुल्लाह अलैहा को उसी मकान में मदफ़ून किया गया जहाँ आप रहती थीं और ये मकान हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह जो हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के भाई थे इन के पड़ोस में था और इन के साथ हज़रत बीबी नूर रहमतुल्लाह अलैहा और हज़रत बीबी हूर रहमतुल्लाह अलैहा जो हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह की बेटियां थीं, इन का मकान था और वो भी अपने मकान ही में मदफ़ून हुईं, इन तीनो बेटियों के माबैन इत्तिफाको इत्तिहाद उल्फत बे मिस्ल थी,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के मेरी वालिदा माजिदा की वफ़ात की तारीख़ 1, जमादीयुल उखरा है मेरी वालिदा मुकर्रमा ने इसी शब् में वफ़ात पाई, विसाल की रात चाँद रात थी, इस रात को जब चाँद नज़र आया तो में हस्बे आदत चाँद की मुबारक बाद देने आप की बारगाह में हाज़िर हुआ, सर को आप के कदमो पर रखा, उस वक़्त मेरी वालिदा ने फ़रमाया के आइंदा चाँद रात को सर किस के कदमो पर रखोगे? में समझ गया के इन की वफ़ात का वक़्त करीब आ गया है, में रोने लगा और अर्ज़ किया ऐ मखदूमा! मुझ गरीब को किस के सुपुर्द करोगी? आप ने फ़रमाया इस का जवाब कल सुबह दूँगी, जाओ आज रात हज़रत शैख़ नजीबुद्दीन मुतवक्किल चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के मकान में रहो, में उन के हुक्म के मुताबिक़ मकान में चला गया, जब सुबह होने को थी बांदी दौड़ती हुई आई और उसने कहा के आप की वालिदा आप को बुला रही हैं, में ने डरते डरते पूछा के मेरी वालिदा हयात हैं, उसने कहा हाँ, जब में अपनी वालिदा की खिदमत में पंहुचा तो उन्होंने फ़रमाया के रात तुमने एक बात n पूछी थी, में ने कहा था उस का जवाब सुबह दूँगी अब में उस का जवाब देती हूँ, उन्होंने मेरा दाहिना हाथ पकड़ा और अल्लाह की बारगाह में अर्ज़ किया “ऐ अल्लाह! इस को में तेरे सुपुर्द करती हूँ, ये कह कर रहमते हक से जा मिलीं,
आप फरमाते हैं के में ने अपने दिल में कहा अगर मेरी वालिदा ज़र जवाहर सोना पूरा घर भी मीरास में छोड़ती तो में इतना खुश कभी नहीं होता जितना खुश में इन के कलमात से हुआ हूँ, आप का उर्से मुबारक 28, 29, 30, जमादीयुल अव्वल को मनाया जाता है।

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार मुबारक अढ़चनी गाऊं अरविंद मार्ग सीधे हाथ को मशहूर है जब के आप आल इंडिया मेडिकल से जाएंगे तो सीधे हाथ को पड़ेगा और महरूली से आएंगे तो बाएं हाथ को पड़ेगा।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
(2) औलियाए दिल्ली की दरगाहें

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