हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी (पार्ट- 1)

खानदानी हालात

क़ुत्बुल अक्ताब, शैखुल इस्लाम, बदरुल वासलीन, रईसुल कमिलीन, आलिमे दीन, सुल्ताने अरबाबे मुशाहिदा, महबूबे हक़, अस्हाबे मुजाहिदा, सनादुल वासिलीन, खानदाने चिश्त के चश्मों चिराग, आप सिलसिलए आलिया चिश्तिया! के शुहराए आफ़ाक़ मश्हूरो मारूफ बुज़रुग हैं, सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत शैख़ अलाउद्दीन साबिर पाक कलियरी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह!, शहंशाहे दक्कन हज़रत ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज़ रहमतुल्लाह अलैह, के रूहानी पेशवा हैं,
हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का तअल्लुक़ क़स्बा ऊश! मुल्के करगीज़िस्तान, के सादाते किराम से था आप रहमतुल्लाह अलैह! हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु की औलादे अमजाद से हैं,।

आप का नसब नामा

किताब “सेरुल अक्ताब” के मुताबिक आप का नसब नामा इस तरह है, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बिन सय्यद कमालुद्दीन अहमद, बिन सय्यद मूसा, बिन सय्यद मुहम्मद, बिन सय्यद अहमद, बिन सय्यद इस्हाक, बिन सय्यद मारूफ, बिन सय्यद अहमद चिश्ती, बिन सय्यद हुस्सामुद्दीन, बिन सय्यद रशीदुद्दीन, बिन सय्यद इमाम जाफर, बिन सय्यद इमाम मुहम्मद तकी, बिन सय्यद जव्वाद, बिन सय्यद इमाम अली रज़ा, बिन सय्यद इमाम मूसा काज़िम, बिन सय्यद इमाम जाफर सादिक, बिन सय्यद इमाम मुहम्मद बाकर, बिन सय्यद इमाम ज़ैनुल आबिदीन, बिन सय्यदुश शुहदा हज़रते इमामे हुसैन बिन, हज़रते अली शेरे खुदा कर्रामल्लाहु तआला वजहहुल करीम रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

विलादत बसआदत

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप की विलादत यानि पैदाइश मुबारक “क़स्बा ऊश” में हुई, “क़स्बा ऊश” के बारे में कहा जाता है के ये क़स्बा मावरा उन्नहर! में था, बाज़ हज़रात का कहना है के “क़स्बा ऊश” इलाका फरगाना सौलत अफगानी में है के “क़स्बा ऊश” बाग्दाद् शरीफ के मुज़ाफ़ात यानि गाँव में था, या फिर “क़स्बा ऊश” करगेज़िस्तान में है, आप की तारीखे पैदाइश के बारे में इख्तिलाफ है kitab! “दिल्ली के बाइस ख्वाजा” में आप की तारीख़े पैदाइश 569/ हिजरी लिखा है, और “तज़किराए औलियाए बर्रे सगीर अख्तर देहलवी” में 582/ हिजरी दर्ज है, मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने अपनी किताब “अख़बारूल अखियार” 505/ हिजरी लिखा है, वल्लाहु आलम।

इस्मे गिरामी

आप का नामे नामी इस्मे गिरामी “कुतबुद्दीन” है, मगर बाज़ का कहना है के आप का नाम “बख्तियार” है, और “कुतबुद्दीन” अल्लाह पाक का दिया हुआ ख़िताब है, और किताब “सेरुल अक्ताब” के मुताबिक आप का पहला नाम “बख्तियार” है, और अल्लाह पाक से आप को “कुतबुद्दीन” का ख़िताब मिला था, लेकिन “मिरातुल असरार” के मुताबिक़ गुले गुलज़ारे चिश्तियत सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को अज़ राहे महरबानी “कुतबुद्दीन बख्तियार” कहा करते थे।

विलायत के आसार

आप की वालिदा माजिदा का बयान है के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! मेरे शिकम यानि पेट में थे तो में तहज्जुद के वक़्त उठ्ठति थीं, और नमाज़ पढ़ती, और मेरे पेट में हरकत होती थी, ज़िक्र की आवाज़ आती थी, एक पहर तक यही होता रहता था, आप की वालिदा का ये भी कहना है के आप निस्फ़ शब् के बाद पैदा हुए और पैदाइश के वक़्त अनवारो बरकात का नुज़ूल हुआ के आप की वालिदा ने समझा के सूरज निकल आया, उन्होंने देखा के पैदा होते ही आप सजदे में चले गए और अल्लाह अल्लाह कह रहे हैं, ये देख कर आप हैरान हुईं, और डरने भी लगीं, इस के बाद आप ने सर ऊपर उठाया और रफ्ता रफ्ता वो नूर कम हो गया, ग़ैब से आवाज़ आई के ये नूर जो तुमने देखा है, हमारे राज़ों में से एक राज़ था, जो हमने तुम्हारे बेटे के क्लब में रखा है।

वालिद माजिद का इन्तिकाल

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अभी शीर ख्वार बच्चे ही थे के आप के वालिद माजिद का इन्तिकाल हो गया, उस वक़्त आप की उमर डेढ़ साल थी, आप की परवरिश की तमाम ज़िम्मेदारी आप की वालिदा माजिदा ने संभाली, इन्होने बड़ी मुहब्बत और तवज्जुह से आप की परवरिश की आप की वालिदा माजिदा निहायत पाक दामन और सालिहा थीं।

तालीमों तरबियत

आप रहमतुल्लाह अलैह! की तालीम के बारे में किताब “सेरुल अक्ताब” में है के आप की उमर जब चार साल, चार माह, और चार दिन, हुई तो आप की वालिदा माजिदा ने आप को गुले गुलज़ारे चिश्तियत सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में भेजा, उस वक़्त आप ने उन के लिए तख्ती पर कुछ लिखना चाहा तो ग़ैब से आवाज़ आई के ऐ मुईनुद्दीन कुछ देर ठहर जाओ हमीदुद्दीन नागोरी आ रहा है, हमारे क़ुतुब को वही तालीम देगा, उस रोज़ हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! “क़स्बा ऊश” में थे, और हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी नागौर में, ग़ैब से आवाज़ आई के ऐ हमीदुदीन जल्दी जाओ, हमारे क़ुतुब की तख्ती लिखो, और इन को दीनी इल्म सिखाओ, हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह! ने कहा या इलाही आप का क़ुतुब कहा है, आवाज़ आई के “क़स्बा ऊश” में है, चुनांचे उन्होंने ऑंखें बंद कीं, और फ़ौरन “क़स्बा ऊश” में पहुंच गए, इस के बाद आप गुले गुलज़ारे चिश्तियत सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में पहुंचे और तख्ती हाथ में लेकर पूछा के ऐ कुतबुद्दीन क्या लिखूं? आप ने जवाब दिया के “सुब्हानल लज़ी असरा बी अब्दीही लईलम मिनल मस्जिदल हराम”, हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह! ने कहा के पंदरवा 15/ पारा है, आप ने पहले क़ुरआन शरीफ कहा पढ़ा है, उन्हों ने जवाब दिया के मेरी वालिदा माजिदा को 15/ पारे याद हैं, मेने वालिदा के शिकम पेट में उनके क्लब पर नज़र डाली, अल्लाह पाक के करम से याद कर लिए चुनांचे मेरी वालिदा हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह! ने तख्ती पर लिखा सुब्हानल लज़ी असरा पूरी सूरत चार रोज़ में क़ाज़ी साहब ने आप को कुरआन शरीफ ख़त्म करवा दिया, और फ़रमाया के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! तुम्हे अल्लाह पाक ने तमाम इल्म बचपन में पढ़ा दिए है, इस वजह से तुम अल्लाह पाक के दोस्तों में से हो, इस के बाद इन्होने हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को कहा के ये आप के मुरीद हैं, आप इनकी तरबियत फरमाएं।

खिज़र अलैहिस्सलाम से मुलाकात

“मिरातुल असरार” में आप के इल्मे दीन हासिल करने के बारे में लिखा है, के आप की वालिदा माजिदा साहिबा ने आप को एक पड़ोसी के ज़रिए उस्ताज़ के पास भेजा, रास्ते में एक नूरानी शक्ल के बुज़रुग मिले, उन्होंने हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का हाथ शफकत से पकड़ कर हज़रत शैख़ अबू हफ्स रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में ले गए, वो अपने वक़्त के क़ुतुब थे, उन्होंने हज़रत शैख़ अबू हफ्स रहमतुल्लाह अलैह से कहा के इन को अच्छी तरह तालीम दें, क्यों के ये अकाबिर औलियाए किराम में से होंगें हज़रत शैख़ अबू हफ्स रहमतुल्लाह अलैह ने आप को दिलो जान से क़ुबूल किया, जब वो बुज़रुग चले गए तो हज़रत शैख़ अबू हफ्स रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से पूछा के क्या तुम इस बुज़रुग को जानते हो,
आप ने कहा नहीं, फ़रमाया: ये खिज़र अलैहिस्सलाम थे, जिन्होंने आप की तालीम का मुआमिला मेरे सुपुर्द किया, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! “खेरुल मजालिस” में फरमाते हैं के हज़रत शैख़ अबू हफ्स रहमतुल्लाह अलैह के फैज़े सुहबत से हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को तहज़ीबुल अख़लाक़ ज़ाहिरी व बातनि और इरादत शरीअतो तरीकत बाकमाल हासिल हुई, और आप का ज़ाहिरो बातिन आरास्ता व परास्त हो गया, और आप हर रोज़ शबो रोज़ दो सो पचास 250/ रकआत नमाज़े निफ़्ल पढ़ते थे, हमा वक़्त अल्लाह पाक के साथ मशगूल रहते थे।

बैअतो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! तक़रीबन 17/ साल की उमर में सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की बैअत से मुशर्रफ हुए, “सबे सनाबिल” में है के हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम चालीस रोज़ तक हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! के ख्वाब में तशरीफ़ ला कर फरमाते रहे, ऐ मुईनुद्दीन! कुतबुद्दीन हमारा दोस्त है, तुम्हारा खलीफा और सज्जादा नशीन है तुम्हें जो नेमतें सीना बा सीना अपने बुज़ुर्गों से मिली हैं इसे दो दो इससे बेहतर तुम्हें कोई काइम मकाम नहीं मिलेगा,
इधर बारगाहे नुबुव्वत रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! को हिदायतो बशारत मिल रही थी उधर हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! पीरो मुर्शिद की तलाश में सरगर्दां थे,
किताब “सेरुल अक्ताब” में है इसी तलाशे हक जलवागर हुआ, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! “क़स्बा ऊश” से रवाना हो कर बाग्दाद् शरीफ पहुंच कर और हज़रत इमाम अबुल लैस समरकंदी रहमतुल्लाह अलैह की मस्जिद में गुले गुलज़ारे चिश्तियत सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुए, इस मजलिस में हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन उमर सोहरवर्दी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत शैख़ औहदुद्दीन किरमानी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत शैख़ बुरहानुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत शैख़ मुहम्मद अस्फहानी औलियाए कामीलीन भी मौजूद थे,

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने “दलीलुल आरफीन” की पहली मजलिस में मुरीद होने का ज़िक्र यूं फ़रमाया है, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं, बाग्दाद् शरीफ में जमादीयुल अव्वल 514/ हिजरी जुमेरात इस फ़कीर को हज़रत इमाम अबुल लैस समरकंदी रहमतुल्लाह अलैह की मस्जिद में सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की कदम बोसी हसली की, दिल में बेपनाह अकीदत पैदा हुई, उसी वक़्त हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने मुझे शरफ़े बैअत यानि मुरीद फ़रमाया, और टोपी कुलाहे मुबारक फ़कीर के सर पर रखी, हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की नज़रे करम से हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! चंद रोज़ में दर्जाए कमाल को पहुंच गए, और हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने खिरकाए खिलाफत अता फ़रमाया, किताब “सेरुल अक्ताब” में है हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने थोड़े ही अरसे में पीर रोशन ज़मीर की मख़सूस बरकात से दरजात राहे सुलूक की मंज़िलें तय कर लिए उस वक़्त आप की उमर 17/ साल थी, दाढ़ी तक नहीं निकली थी हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने खिलाफत हासिल कर के खिरकाए खिलाफत ज़ेबे तन फ़रमाया, मेने इस नेमते उज़्मा के हासिल होने पर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का बहुत बहुत शुक्र अदा किया।

शजराए तरीकत

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का शजराए तरीकत हस्बे ज़ैल है,
(1) हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी विसाल 14/ रबीउल अव्वल 635/ हिजरी,
(2) सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी विसाल 6/ रजब 633/ हिजरी,
(3) हज़रत ख्वाजा उस्मान हारूनी विसाल 6/ शव्वालुल मुकर्रम 590/ हिजरी,
(4) हज़रत ख्वाजा हाजी शरीफ ज़न्दनी विसाल 10/ रजब 612/ हिजरी,
(5) हज़रत ख्वाजा कुबुद्दीन मौदूद चिश्ती विसाल 1/ रजब 527/ हिजरी,
(6) हज़रत ख्वाजा अबू युसूफ चिश्ती विसाल 3/ रजब 459/ हिजरी,
(7) हज़रत ख्वाजा अबू मुहम्मद चिश्ती विसाल 4/ रबीउल अव्वल 411/ हिजरी,
(8) हज़रत ख्वाजा अबू अहमद अब्दाल चिश्ती विसाल 3/ जमादीयुल सानी 355/ हिजरी,
(9) हज़रत ख्वाजा अबू इसहाक शामी चिश्ती विसाल 14/ रबीउल सानी 329/ हिजरी,
(10) हज़रत ख्वाजा मुम्शाद अली देनोरि विसाल 4/ मुहर्रमुल हराम 299/ हिजरी,
(11) हज़रत ख्वाजा अबू हबीरा बसरी विसाल 7/ शव्वालुल मुकर्रम 279/ हिजरी,
(12) हज़रत ख्वाजा हुज़ैफ़ा मरअशी/ विसाल 24/ शव्वालुल मुकर्रम 207/ हिजरी,
(13) हज़रत ख्वाजा इब्राहीम इब्ने अदहम/ विसाल 1/ शव्वालुल मुकर्रम 162/ हिजरी,
(14) हज़रत ख्वाजा फ़ुज़ैल बिन अयाज़/ विसाल 3/ रबीउल अव्वल 187/ या 181/ हिजरी,
(15) हज़रत ख्वाजा अब्दुल वाहिद बिन ज़ैद/ विसाल 27/ सफर 176/ या 170/ हिजरी,
(15) हज़रत ख्वाजा हसन बसरी विसाल/ 4/ मुहर्रमुल हराम 110/ हिजरी,
(15) हज़रत सय्यदना अली शेरे खुदा रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन विसाल/ 21/ रमज़ान मुबारक 40/ हिजरी।

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन को “काकी” क्यों कहते हैं

हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ज़िन्दगी निहायत तंगदस्ती की थी घर में अक्सर फाका रहता था, आप को किसी से नज़राना कबूल करने की आदत ना थी, अपना बेश्तर वक़्त अल्लाह पाक की इबादतों रियाज़त में गुज़ारते थे, आप के पड़ोस में एक परचून की दूकान थी जिससे आप क़र्ज़ लिया करते थे, एक दिन इस दुकानदार की बीवी ने आप की अहलिया को ताना दिया के अगर हम लोग तुम्हारे पड़ोस में ना होते तो तुम लोग भूके मरते, इस औरत की ये बात आप की अहलिया को बहुत नागवार गुज़री और इस बात का ज़िक्र हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से किया इस पर आप ने फ़रमाया: आइंदा इससे क़र्ज़ ना लेना और में भी अहिद करता हूँ के आइंदा इससे क़र्ज़ ना लूँगा, जब ज़रूरत हो तो हमारे उझरे के ताक! में हाथ डालकर पाकि हुई रोटियां ले लेना और उसको अपनी ज़रूरत के मुताबिक इस्तेमाल करना और जिस को चाहो इसमें से दे भी देना, चुनांचे इस अहिद के बाद अल्लाह पाक के फ़ज़्ल से हर रोज़ एक रोटी मिल जाती जो आप के घर के लिए काफी होती, इस रोटी को काक! कहा जाता है और इसी मुनासिबत से आप को काकी के लक़ब! से याद करते है,
“सेरुल औलिया” में लिखा है के एक दिन इस दुकानदार ने अपने दिल में ये ख़याल किया के शायद कोई ऐसी बात हो गई है के जिस के सबब आप रहमतुल्लाह अलैह ने क़र्ज़ लेना छोड़ दिया है, चुनांचे उसने अपनी बीवी को सूरते हाल मालूम करने के लिए आप के घर भेजा, उसकी बीवी ने आप की अहलिया मुहतरमा से बातों बातों में मालूम कर लिया के अस्ल वजह क्या है, चुनांचे जब आप की अहलिया ने दुकानदार की बीवी से ये बात बयान कर दी की ग़ैब से रोटी मिलती है तो फिर वो रोटी मिलना बंद हो गई, आप ने अपनी अहलिया से पूछा के क्या तुमने रोटी के मिलने का वाकिअ किसी को बताया है? तो आप की अहलिया ने कहा हाँ मेने ये बात परचून वाले दुकानदार को बताई थी,

किताब “सेरुल अक्ताब” में है के एक शख्स ने हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से दरयाफ्त किया के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को काकी! किस वजह से कहते हैं, आप ने फ़रमाया एक दिन आप रहमतुल्लाह अलैह! अपने असहाब के साथ होज़ शम्शी के पास बैठे हुए थे, के एक आदमी ने कहा क्या ही अच्छा होता के इस ठंडी हवा के साथ गरम नान मिल जाती, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपना हाथ होज़ में डालकर नाने गरम निकाली और अपने असहाब के सामने रख दी, और सब ने सेर होकर खाया, उस रोज़ से आप को लोग काकी! कहने लगे,
ये भी बयान किया जाता है के एक मर्तबा बादशाह शमशुद्दीन अल्तमश ने गैबी खाने की इल्तिजा की, आप ने फ़ौरन अपनी दोनों आस्तीन हिला दिए तो निहायत उम्दा और गरम नान यानि रोटी निकली बादशाह शमशुद्दीन अल्तमश ने निहायत आजिज़ी से नान खाई और मश्कूर हुए, इस वजह से आप का लक़ब “काकी” मशहूर हो गया।

हिंदुस्तान में आप की आमद

बाग्दाद् शरीफ में हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह से मालूम हुआ के आप के पीरो मुर्शिद सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! खुरासान से हिंदुस्तान तशरीफ़ ले गए हैं और दिल्ली में क़याम है, तो आप अपने पीरो मुर्शिद की कदम बोसी के लिए हिंदुस्तान रवाना हुए, हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी रहमतुल्लाह अलैह आप के साथ में थे, आप रहमतुल्लाह अलैह! मुल्तान में रौनक अफ़रोज़ हुए, ये ज़माना बादशाह शमशुद्दीन अल्तमश! का था, कुबाचा बेग मुल्तान का हाकिम था उसी ज़माने में हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह पाकिस्तान के शहर मुल्तान में सिलसिलए रुश्दो हिदायत आम कर रहे थे, चुनांचे ये दोनों बुज़रुग जब मुल्तान आए तो गौसे ज़मा हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह की खानकाह में रिहाइश इख़्तियार की।

हज़रत शैख़ बहाउद्दीन मुल्तानी से आप के तअल्लुक़ात

किताब “सेरुल अक्ताब” में है हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह को जब हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की तशरीफ़ आवरी की इत्तिला मिली तो आप हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी रहमतुल्लाह अलैह! के इस्तकबाल के लिए तशरीफ़ ले गए और निहायत ताज़िमों तकरीम के साथ अपनी खानकाह में ठहराया और ज़ियाफ़त की, हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह ने लिखा है के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! मुल्तान की एक मस्जिद में ठहरे, गौसे ज़मा हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह ने नूरे बातिन से मालूम कर के एक खादिम को आप के पास भेजा जिस वक़्त खादिम आप के पास आया आप वुज़ू फरमा रहे थे, रेष मुबारक से जो पानी क़तरा बनके टपकता था, उसको फ़रिश्ते नूर के तबक में रख कर आस्मांन पर ले जा रहे थे, वो खादिम भी अहले नज़र और साहिबे बातिन था,
खादिम ने ये हाल देख कर आप को पूरा वाकिया बता दिया, हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह पालकी के साथ आप के पास तशरीफ़ लाए जहाँ आप ठहरे हुए थे, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को पालकी में सवार कर के अपनी खानकाह में बसद इज़्ज़तो एहतिराम ले आए और खूब ज़ियाफ़त की, मुल्तान में हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! पर लोग परवानो की तरह निसार होने लगे, और रुश्दो हिदायत हासिल करने लगे, बहुत से लोगों ने बैअत होने के लिए कहा लेकिन आप ने किसी को बैअत नहीं किया, और आप ने फ़रमाया ये इलाका मेरे भाई हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी रहमतुल्लाह अलैह का है मुझे ज़ेब नहीं देता के में मुरीद करूँ।

दिल्ली में आप का क़याम

मुल्तान में कुछ अरसा ठहरने के बाद आप दिल्ली के लिए रवाना हो गए जब आप मुल्तान से चले तो आप के हमराह कुछ लोग थे जिन्हें आप ने हांसी में मुरीद किया कहा जाता है के हंसी पहुंच कर हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने एक खत! सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में भेजा और खुद दिल्ली रवाना हो गए, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने खत में ये लिखा के: मेरा दिल आप की ज़ियारत करना चाहता है अगर इजाज़त हो तो कदम बोसी के लिए हाज़िर हो जाऊं, इस के जवाब में हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया के तुम दिल्ली में क़याम करो अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने दिल्ली की विलायत! तुम्हे अता फ़रमाई है,
रूहानी मुलाकात तो हर वक़्त ही है इंशा अल्लाह में चंद रोज़ बाद तुम्हारे पास आऊंगा तो ज़ाहिरी मुलाकात भी हो जाएगी इस खत के मिलते ही हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! मुस्तकिल तौर पर दिल्ली में क़याम पज़ीर हो गए, “सेरुल आरफीन” में लिखा है के जब आप दिल्ली में रहने लगे उस वक़्त सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश शाही हुक्मरान थे,

सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश! एक फौजी दस्ते के साथ हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के इस्तकबाल के लिए शहर से बाहर आए और आप से इल्तिमास की के आप शहर में क़याम फरमाएं लेकिन आप ने मंज़ूर नहीं किया, बल्कि अपनी रिहाइश के लिए किलोखड़ी गाऊं जो जमना किनारे था उसको पसंद किया, उस ज़माने में किलोखड़ी गाऊं! उस मकाम पर आबाद था जहाँ हुमायूँ बादशाह का मकबरा था, उस वक़्त दिल्ली के शैखुल इस्लाम हज़रत शैख़ जमालुद्दीन बस्तामी थे, वो आप के बड़े मोतक़िद थे,
रफ्ता रफ्ता तमाम शहर आप का शैदा हो गया, शहर के खासो आम का मजमा हर वक़्त लगा रहता, हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! भीड़ भाड़ से बचते थे, के किसी दूसरी जगह गोशा नाशिनी इख़्तियार करलें, लोगों की अक़ीदतों मुहब्बत यहाँ तक बढ़ी के आप के पास हर वक़्त लोगों का मेला लगा रहता था, खुद बादशाह सलामत हफ्ते में दो बार ज़ियारत के लिए आते थे।

हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी का ख्वाब

किताब “सेरुल अक्ताब” में है के दिल्ली में हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की तशरीफ़ लाने से पहले हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह ने ख्वाब में देखा के आफताब तुलु हो चुका है जिससे तमाम शहर मुनव्वर रोशन और ताबनाक है और वो हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह के मकान में उतर आया है और वो सूरज क़ाज़ी साहब! से कह रहा है के अब में तुम्हारे मकान में ही रहूंगा, हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह ये ख्वाब देख कर हैरान थे, के देखो इसकी क्या ताबीर निकलती है आप के दिल में ये बात थी के अनक़रीब दिल्ली में कोई वलीए कामिल! आने वाला है और वो मेरे मकान में कायम पज़ीर होंगें, इस ख्वाब को देखे दो ही दिन गुज़रे थे के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! दिल्ली में तशरीफ़ ले आए, और एक भटियारे के मकान में जो हज़रत का मोतक़िद था क़याम पज़ीर हुए उसी रोज़ क़ाज़ी साहब को ख्वाब में ये हुक्म हुआ के हमारा दोस्त कुदबुद्दीन! इस शहर में आया हुआ है फुलां भटियारे के मकान में ठहरा हुआ है जल्दी जाओ उन्हें अपने घर ले आओ वो तुम्हारे यहाँ क़याम करेंगें,
हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह फ़ौरन भटियारे के मकान पर पहुंचे और हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को निहायत एहतिराम के साथ अपने मकान पर ले आए, हज़रत ख्वाजा क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागोरी रहमतुल्लाह अलैह अगरचे हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के उस्ताद! थे लेकिन क़ाज़ी साहब ने वो खिदमत और अदबो एहतिराम किया के लोग हैरान रहते के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! तो तमाम मशाइख के क़ुतुब! हैं और काज़ी साहब रहमतुल्लाह अलैह से काफी आला मर्तबे पर फ़ाइज़ है, काज़ी साहब रहमतुल्लाह अलैह आप की बाल बराबर भी बराबरी नहीं करते ।

शैखुल इस्लाम का मनसब

हज़रत जमालुद्दीन मुहम्मद बस्तामी रहमतुल्लाह अलैह दिल्ली में शैखुल इस्लाम! अज़ीम उहदे पर फ़ाइज़ थे, इनके इन्तिकाल के बाद सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश की ख्वाइश थी के हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ये उहदा कबूल फ़रमालें, जब सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश ने क़ुतुब साहब रहमतुल्लाह अलैह! से इस की दरख्वास्त की तो आप ने उहदा कबूल करने से साफ़ इंकार कर दिया, सुल्तान शमशुद्दीन अल्तमश ने आखिर कार शैख़ नजमुद्दीन सुगरा को ये उहदा दे दिया।

मुर्शिद की खिदमत में हाज़री

दिल्ली क़याम के दौरान हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को अपने पीरो मुर्शिद सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की कदम बोसी का बेहद इश्तियाक पैदा हुआ तो आप ने हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में एक खत अजमेर शरीफ भेजा, इस खत में आप ने कदम बोसी का शोके इज़हार किया और खिदमत में हाज़िर होने की इजाज़त चाही, सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने जवाब दिया अगरचे ज़ाहिर में दूरी है लेकिन रूहानी तौर पर करीब हो वहीँ रहो,
हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! ने हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को अजमेर शरीफ आने से मना फ़रमाया था बल्के आप खुद बा नफ़्से नफीस दिल्ली तशरीफ़ ले आए, आप ने हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाह में क़याम फ़रमाया और हज़रत ख्वाजा कुतबुद्दीन बख्तियार काकी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की इज़्ज़त अफ़ज़ाई फ़रमाई, दिल्ली में कुछ दिन ठहरने के बाद रूहानी इरफ़ानी फैज़ की दौलत लुटा कर हज़रत ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! अजमेर शरीफ वापस तशरीफ़ ले गए, फिर इस के बाद आप और भी मुलाकात के लिए तशरीफ़ लाते रहे और फ़ैज़ो बरकात हासिल करते रहे।

रेफरेन्स हवाला

  1. रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
  2. औलियाए दिल्ली की दरगाहें
  3. मिरातुल असरार
  4. ख़ज़ीनतुल असफिया जिल्द दो
  5. ख्वाजगाने चिश्त
  6. सीरते कुतबुद्दीन बख्तियार काकी
  7. दिल्ली के 32/ ख्वाजा
  8. दिल्ली के बाईस 22/ ख्वाजा
  9. मरदाने खुदा
  10. सेरुल अक्ताब
  11. तज़किराए औलियाए हिन्दो पाकिस्तान

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