विलादत बसआदत
क़ुत्बे वक़्त, फरदुल अफ़राद, साहिबे कशफो करामात, इमामुल अखियार, वहीदुल अस्र, बक़ीयतुस सल्फ उम्दतुल खल्फ, कुदवतुस सालिकीन, हाजियुल हरमैन हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह नाएबे रसूल कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी का नामे नामी व इस्मे गिरामि “हाजी सय्यद खाजा रहमतुल्लाह नाएबे रसूल” है, आप रहमतुल्लाह अलैह हुसैनी सादाते किराम से हैं, आप के वालिद माजिद हज़रत ख्वाजा आलम नक्शबंद रहमतुल्लाह अलैह तूरान से हिंदुस्तान हिजरत कर के तशरीफ़ लाए थे, तूरान मुल्के अफगानिस्तान के शुमाली इलाके को कहते हैं, जिस में आज कल उज़्बेकिस्तान वगेरा मौजूद हैं, किताब का नाम “तज़किराए औलियाए दक्कन” में मौलाना अब्दुल जब्बार खान साहब! फरमाते हैं: हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह नाएबे रसूल कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के वालिद माजिद तूरान से तशरीफ़ लाने के बाद कुछ अरसा आसिफ जाह अव्वल के साथ रहे और फिर बल्गाम (मौजूदा रियासत करनाटक का ज़िला) की जामा मस्जिद के खतीब मुकर्रर हुए, वहीँ आप ने शादी की और वहीं 1105/ हिजरी मुताबिक 1694/ ईसवी में हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह नाएबे रसूल कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी तवल्लुद (पैदा होना, पैदाइश) हुए।
इजाज़तों खिलाफत
हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अभी कम उम्र ही थे के आप की वालिदा माजिदा का इन्तिकाल हो गया, और वालिद मुहतरम ने दूसरी शादी करली, नई वालिदा यानि सौतेली वालिदा थीं, तब आप ने वालिद माजिद की इजाज़त से बल्गाम से हिजरत फ़रमाई और शहर कर्नूल, में अपनी खाला साहिबा के पास रहने लगे, वहीँ आप की तालीमों तरबियत हुई, यहाँ आप दो सरकारी घोड़ों के मुलाज़िम हो गए, उसी दौरान शहर बीजापुर तशरीफ़ ले गए, और हज़रत अल्वी बुरूम रहमतुल्लाह अलैह! के दस्ते मुबारक पर बैअत की, एक दफा कर्नूल में सख्त कहित पड़ा, वहां के हाकिम नवाब ने एक मजज़ूब इन के पास आते जाते थे, अपनी पेरशानी का इज़हार किया, मजज़ूब साहब ने हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के पास हाज़िर हो कर बारिश के वास्ते इन से दुआ करवाई, हज़रत से मुलाकात के बाद नवाब के अपने महिल पहुंचने से पहले ही इतनी बारिश हुई के इन को घुटने बराबर पानी में से जाना पड़ा।
हज़रत अशरफ मक्की से खिलाफत
जब ज़ोको शोक और बातिन की सफाई और दर्जाए कमाल को पहुंचे राहे सुलूक की मंज़िलें तय कीं, फिर रिसालते मआब हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैही वसल्लम के हुक्म की तामील में हज्जो ज़ियारत के लिए हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्लाहु शरफउं व तअज़ीमा तशरीफ़ ले गए, मक्का शरीफ में आप हज़रत अशरफ मक्की रहमतुल्लाह अलैह के दस्ते मुबारक पर नक्शबंदी सिलसिले में बैअत फ़रमाई और खिलाफत से सरफ़राज़ हो कर मदीना शरीफ तशरीफ़ ले गए,
हज से वापसी
जब हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफउं व तअज़ीमा से वापसी हुई, हज से वापसी के बाद आप रहमतुल्लाह अलैह कुछ वक़्त शहर कर्नूल में रहे, फिर शहर ननदियाल में आप ने शादी की, एक बेटी की विलादत हुई, लेकिन ज़ियादा दिन नहीं गुज़रे थे, के आप की ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) और साहबज़ादी का इन्तिकाल हो गया, फिर शहर ननदियाल (ये आंध्रा प्रदेश का शहर है) से उधये गीर के किला दार साहब के पास तशरीफ़ लाए और क़स्बा अनासमन्दर के करीब एक ज़मीन खरीद कर अपने नाम से मौजूदा बस्ती रहमताबाद! बसाई, और फिर हमेशा यहीं सुकूनत इख़्तियार की, फिर यहाँ हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने दूसरा निकाह हज़रत बीवी हबीबा खातून रहमतुल्लाह अलैहा से किया, आप रहमतुल्लाह अलैह की अहलिया मुहतरमा शहर कर्नूल के नवाब! की साहबज़ादी थीं, आप एक नेक परसा मुत्तकिया खातून थीं, क्या मुस्लमान, क्या हिन्दू सब अक्सर ज़ाएरीन मुहिब्बीन आप को अम्मा जान! कहते हैं, और आप के नाम पर अपनी बच्चियों के नाम रखते हैं,
1748/ ईसवी में हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने छप्पर की मस्जिद और खानकाह बनाई, मस्जिद का नाम मदीना मस्जिद रखा।
सीरतो ख़साइल
हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी शरीअत के पाबंद, बल्के बचपन से ही आप रहमतुल्लाह अलैह हुस्न परस्ती, गाना बजाना, सुक्र नशा, लहू लाअब इस्तेहज़ाह फ़ुज़ूल गोई तमाम ममनू नाजाइज़ चीज़ों से सख्त परहेज़ करते थे, आप रहमतुल्लाह अलैह साहिबे फ़ज़्लो कमाल बुज़ुरगों की तरह अमल व क़साबे फकीरी को इख़्तियार किया, हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी जब हज्जे बैतुल्लाह के लिए और ज़ियारते मदीना हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैही वसल्लम के लिए मुल्के अरब को तशरीफ़ ले गए तो जहाँ भी आप ठहरते थे, जहाज़, में शहर, गाऊं, में वादी में वहां के लोग आप की खिदमत और एहतिराम उसी तरह करते थे, जैसे के सच्चा मुरीद और खादिम अपने पीरों मुर्शिद की करते हैं, हज़रते क़िबला आरिफ़े बिल्लाह, जब अपने मुरीदों और शागिर्दों को तौहीद और तसव्वुफ़ के उलूमो फुनून और फकीरी के सुलूक की तालीम देते थे, तो गोया ऐसा लगता माने के समंदर से मोती लुटा रहे हैं, और जो कुछ भी फरमाते हैं ज़रा भी ख़िलाफ़े शरआ नहीं होता,
किसी से कीना और बुग़्ज़ो दुश्मनी, नहीं रखते सिवाए दोस्ती भी अल्लाह के लिए दुश्मनी भी अल्लाह के लिए, अपने नफ़्स की खातिर ना दोस्ती करते न दुश्मनी, अगर आप से कहा जाता के फुला ने आप की ग़ीबत की है तो मुस्कुराते हुए फरमाते में उससे भी ज़ियादा हूँ, आप खुद किसी की ग़ीबत नहीं करते और आप के आगे किसी की ग़ीबत नहीं की जाती, जो सादिकुल ऐतिकाद शख्स आप रहमतुल्लाह अलैह के साथ नमाज़ बा जमात अदा करता उसे इत्मीनान और हुज़ूरे क्लब हासिल होता, आप रहमतुल्लाह अलैह बरोज़ जुमा या दीगर दिनों में जब औरादो वज़ाइफ़ का फातिहा के साथ ख़त्म फरमाते तो चेहराए मुबारक पर इस्तगराक के अहवाल तारी हो जाते हैं, जब माहे रमज़ानुल मुबारक आता तो रोज़ा दारों के इफ्तार के लिए बहुत एहतिमाम करते थे, इफ्तार में दाल फीरिनि खीर, मेवे छोटो बड़ों सब के आगे बराबर रखते थे, माहे रबीउल अव्वल शरीफ में पहली तारीख़ से 12/ तारीख़ तक आप रहमतुल्लाह अलैह खाना पकवाते, और तमाम हाज़रीने मजलिस को खिलाते और घर घर भिजवाते थे, माहे रबिउस सानी में ग्यारवी शरीफ! की फातिहा का एहतिमाम करते थे, फिर तमाम बुज़ुरगों की फातिहा! और उर्स के दिनों में ऐसा ही एहतिमाम करते थे, और सब को खाना खिलाते थे।
बादशाहे दिल्ली की तरफ से तशरीफ़ लाने का हुक्म
हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी शहर कड़पा में मुकीम थे, बादशाह अहमद शाह! (मुग़ल बादशाह मुहम्मद रोशन शाह अख्तर के साहबज़ादे थे) ने दिल्ली से आप रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में खत भेजा, के में आप की ज़ियारत से मुशर्रफ हो कर कदम बोसी करना चाहता हूँ, आप को तशरीफ़ लाना है, बादशाह अहमद शाह! ने मुल्के के तमाम उमरा सरदार वुज़रा को हुक्म दिया, के हज़रत! की सवारी के लिए मुहाफ़िज़ दस्ता, पालकी, रथ, घोड़े, तांगे, और खिदमत गारों को हुक्म दिया के वो हज़रत! को दिल्ली ले कर आएं, आप रहमतुल्लाह अलैह ने बादशाह अहमद शाह! को खत लिखा, और रवाना किया के खुद को शरीअत पर साबित कदम रख अपने हर दीनी और दुनियावी अमल को दीने इस्लाम के मुताबिक ग़ुज़ारोगे, तो गोया तुमने तमाम बुज़ुर्गों की ज़ियारत करली, फ़कीर को बादशाहे मजाज़ी से क्या काम अल्लाह पाक ने अपने फ़ज़्ल से हर चीज़ मुहय्या करदी है, इस तरह आपने खत का जवाब भेज दिया और खुद नहीं गए, हालांके आप अगर जाते तो आप को कुछ न कुछ बादशाह रुपया पैसा ज़रूर देता और कुछ जागीर भी मिलती, लेकिन आपने इस दुनियावी मालो असबाब को तिनके के बराबर भी नहीं समझा, जो कमाल इस्तिगना की दलील है।
हज़रत ख्वाजा अलैहिर रहमा का घोड़ा
अक्सर सिका मोतबर लोगों से ये बात मुतावातिर सुनने में आई है के आप की सवारी का घोड़ा कभी लोगों के खेतों से घास का तिनका तक नहीं खाता था, जब आप घास खरीद कर उसके सामने डालते थे तब ही खाता था।
हज़रत मखदूम सावी अलैहिर रहमा की नज़र में हज़रत ख्वाजा का मकाम
हज़रत शैख़ मुहम्मद अली ने अपनी किताब में तहरीर किया है के हज़रत शैख़ मखदूम सावी अलैहिर रहमा सूबा करनाटक के औलियाए कईबार में से थे, इन के पोते हज़रत मुहम्मद उस्मान ने रिवायत की है, के इन के शैख़ अब्दुल क़ादिर फरमाते थे, के हमारे दादा जान (हज़रत शैख़ मखदूम सावी अलैहिर रहमा) की मुलाकात हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से शहर कड़पा (सूबा आंध्र प्रदेश में है) में हुआ करती थी, हज़रत मखदूम ने अरबो आजम की सियाहत के दौरान बड़े बड़े बुज़ुर्गों से फियूज़ो बरकात हासिल किए, उनमे ही से एक हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! भी थे, मौसूफ़ जब भी अपनी महफ़िल में हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! का तज़किराह करते तो फरमाते थे के ज़िन्दगी भर में ने कभी ऐसी जलीलुल कद्र कामिल हस्ती नहीं देखि, इन के पास आने से ऐसा मालूम होता था, गोया के में अपने मुर्शिद की खिदमत में हाज़िर हूँ।
राहे सुलूक में नफ़्सों शैतान से रुकावट
हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फ़रमाया करते थे के सालिक (राहे तरीकत पर चलने वाला) को राहे सुलूक में दो चीज़ें अटकाती रुकावट बनती हैं, एक कमीना नफ़्स, और दूसरा मलऊन शैतान, जब तक के इन दोनों पर ग़लबा हासिल ना हो जाए तब तक सालिक अपनी मंज़िले मक़सूद तक नहीं पहुँचता, हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते थे, के सय्यदुल अम्बिया हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैही वसल्लम की रूहे मुबारक पर दुरूद शरीफ पढ़ना सालिक के पोदे की नशो नुमा का मूजिब होता है, जितना हो सके इतना दुरूद पढ़ने में कोशिश करता रहे।
ऐहलुल्लाह से दुनियादारों के मेलजोल
हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फ़रमाया करते थे, के दौलतमंद लोग ऐहलुल्लाह सूफ़ियाए किराम से महिज़ दुनियावी फवाइद के लिए मेलजोल रखते हैं, ना के अपनी आक़िबत सुधारने के लिए, जब भी इनका ये मकसद हासिल हो जाता है तो फिर अल्लाहो रसूल सलल्लाहु अलैही वसल्लम का खौफ और पासो लिहाज़ इन के दिल से निकल जाता है, और दुनिया में इस कदर मुंहमिक हो जाते हैं, के फिर अल्लाह पाक की तरफ रुजो होना और अपनी बद आमालियों पर नादिम होते हैं,
हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ और हज़रत ख्वाजा बंदा नवाज़ गेसूदराज़ रहमतुल्लाह अलैहा से इक्तिसाबे फैज़
हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते थे के में ने सुल्तानुल हिन्द अताये रसूल ख्वाजाए ख्वाजगान हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह के चमानै ज़ारे विलायत से अपना दामन भर कर गुलहाए अकीदत चुने, और इसी तरह शहंशाहे दक्कन हज़रत ख्वाजा बंदा नवाज़ गेसूदराज़ चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह से भी फीयूज़ो बरकात हासिल किए, चुनांचे बयान किया जाता है, एक शख्स अजमेर शरीफ से सफर करता हुआ रहमताबाद शरीफ पहुंच कर सिलसिलए चिश्तिया में दाखिल हुआ, चंद दिन बाद, आप रहमतुल्लाह अलैह ने उसे ज़ादे राह देख कर रुखसत अजमेर शरीफ रवाना किया, और फ़रमाया के जब तुम हज़रत ख्वाजा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की बारगाहे अक़दस में पहुचों तो मेरी तरफ से फातिहा पढ़ना और सलाम पेश करना।
अक़्द मसनून (निकाह)
हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह नाएबे रसूल रहमतुल्लाह अलैह! ने दो निकाह किए, मगर औलाद नहीं हुई, कहते हैं के सिर्फ पहली बीवी से एक साहबज़ादी तवल्लुद (पैदाइश) हुईं, लेकिन पैदाइश के चंद दिन बाद ही वफ़ात पा गईं।
कशफो करामात
अल्लाह तआला की शान का मज़हर देखना हो तो प्यारे आक़ा अलैहिस् सलाम के दरबार को देखो और मज़हर ए शान ए हुज़ूर देखना हो तो इमामुल औलिया ताजदारे बगदाद हुज़ूर सय्यदुना अब्दुल कादिर जिलानी गौस ए आज़म रदियल्लाहु त’आला अन्हु को देखो, और यही वो दरबार है जहां तमाम आलम के औलिया किराम बा अदब खड़े रहते हैं, और अपनी हाजत रवाई करवाते हैं और हुज़ूर गौस ए आज़म नवाज़ते हैं हुज़ूर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा ख़ान फाज़ले बरेलवी अलैहिर् रहमा लिखते हैं:
मज़र’ए चिश्त ओ बुखराओ इराक़ो अजमेर
कोन सी किश्त पे बरसा नहीं झाला तेरा
उन्ही में हुज़ूर गौस ए आज़म के चहीते प्यारे उनके मज़हर और अपने वक्त के गौस ए आज़म कुतुब ए आलम हुज़ूर सय्यदुना अब्बा हुज़ूर ख़्वाजा रहमतुल्लाह नाइबे रसूल और उनकी अहलिया अपने वक्त की पारसा आबिदा ज़ाहिदा तय्यबा ताहिरा सय्यदा अम्मी जान हबीबुन् निसा हैं अलैहिमर् रेहमा हैं,
हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी साहिबे कशफो करामात बुज़रुग हैं, और आज भी आप रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार मुकद्द्स से फीयोज़ो बरकात जारी और सारी है, अक्सर आप की करामात ज़ुहूर पज़ीर होती रहती हैं, और बेशुमार परेशान हाल मुसीबत ज़दा, बीमार बुखार, सर दर्द शुगर, हत्ता के कैंसर जैसी मूज़ी बीमारी के मरीज़ भी आप रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार मुकद्द्स से शिफयाब होते हैं, और हमेशा ज़ाएरीन का हुजूम रहता है, आप के आस्ताने पर, पूरे मुल्के हिंदुस्तान भर से और बैरूने मुल्क से भी ज़ाएरीन आते हैं,
आप के आस्ताने पर आलिमे बा अमल पीरे तरीकत मुनाज़िरे अहले सुन्नत हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शहादत हुसैन रज़वी, बानी दारुल उलूम अनवारे मुस्तफा क़स्बा शहाबाद ज़िला हरदोई यूपी, और आप के साहबज़ादे हज़रत मुफ़्ती अकमल साहब क़िबला, सूबा उत्तर प्रदेश ज़िला बरैली शरीफ से दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! के शैखुल हदीस हज़रत अल्लामा मुफ़्ती आकिल साहब क़िबला! हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद हनीफ हसाब क़िबला, सदरुल मुदर्रिसीन जामिया नूरिया रज़विया बाकर गंज बरैली शरीफ, हज़रत मुफ़्ती सलीम साहब क़िबला! उस्ताज़ दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम! बरैली शरीफ, ख़लीफ़ए सरकार ताजुश्शरिया हज़रत अल्लामा मुफ़्ती अफ़ज़ाल रज़वी साहब क़िबला, आलिमे बा अमल पीरे तरीकत हज़रत अल्लामा अल हाज रफीक अहमद रज़वी नूरी, बानी मदरसा फ़ैज़ाने आला हज़रत राजीव नगर कच्ची खजुरी दिल्ली, जैसे अज़ीम उल्माए किराम “रहमताबाद शरीफ” हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के आस्तानाए मुबारक पर हाज़िर होते हैं, और आप रहमतुल्लाह अलैह के फ़ैज़ो बरकात से मालामाल होते हैं,
कैंसर के मरीज़ को कैंसर से छुटकारा और आखों की बिनाई मिल गई
इन्ही गुलाम अहमद की वालिदा जब दरे अब्बा हुज़ूर और अम्मी जान से शिफायाब हुई तो वो अपने नवासे को भी गलीबन सन् 2018 में लेकर रहमत आबाद शरीफ ले गईं, रहमत आबाद शरीफ के सफर के दौरान बच्चा बड़ा ही दर्द से बैचेन था, और अपने सर को ट्रेन की सीट पर मार रहा था बच्चे की नानी बच्चे को लेकर हज़रत के पास आईं अर्ज़ की, हज़रत बच्चा बहुत परेशान है जब बच्चे को देखा तो पाया कि बच्चा दर्द के मारे अपने सर को ज़ोर ज़ोर से पटक रहा था जिसकी वजह से उसके होंठ कट गए थे खून निकल रहा था हज़रत ने अब्बा हुज़ूर की बारगाह में इस बच्चे की अर्ज़ी यानि तकलीफ को पेश किया, तो इशारा हुआ इस बच्चे के दिमाग के अंदर कैंसर की तीन गाठें हैं, और इसी कैंसर की वजह से एक आंख की पूरी तरह रोशनी चली गई और दूसरी आंख में भी बिनाई चौथाई हिस्सा बाक़ी रह गया है, इसी वजह से अपने सर को कभी दीवार और ज़मीन पर मरता है, हज़रत ने अपने दोनों हाथों को उठाया ही था कि बच्चे को फोरन आराम मिल गया, हज़रत ने बच्चे की नानी से फरमाया की अब्बा हुज़ूर का इशारा हुआ है इस बच्चे के दिमाग में तीन गाठें है और इसी की वजह से आखों की रोशनी इतनी इतनी जा चुकी है, उन बड़ी बी ने कहा हज़रत आप सही कह रहे हैं ऐसा ही है डॉक्टर ने तो जवाब ही दे दिया था अब ये बचा बचेगा नहीं, जब हज़रत पूरे काफिले के साथ रहमत आबाद शरीफ पहुंचे और दरबारे अब्बा हुज़ूर और अम्मी जान में हाज़िरी का शर्फ हुआ और रात को जब दरगाह शरीफ के अहाते में सब ने रात गुज़ारी सुबह उठे तो बच्चा मुस्कुराता हुआ आया हज़रत ने पूछा अब कैसा है उसने कहा अब आंखों से साफ दिख रहा है और कहा कि रात को ख्वाब में कोई बुज़ुर्ग तशरीफ लाए और मेरे सिरहाने खड़े हो गए और मेरे सर पर और आंखों पर अपना हाथ शरीफ फेरने लगे और कहा जाओ अब तुम ठीक हो गए एक ही हाज़िरी में अब्बा हुज़ूर और अम्मी जान का ऐसा करम हुआ की बच्चा बिलकुल सेहत मंद हो गया, आक़ा करीम की बारगाह से अल्लाह वालों को ऐसा सदका मिला जिसका कोई जवाब नहीं और यह कहना गलत नहीं होगा:
ना हो आराम जिस बीमार को सारे ज़माने से
उठा ले जाए थोड़ी ख़ाक उनके आस्ताने से
ज़िंदगी से मायूस को ज़िंदगी मिल गई
यूपी रसिया खानपुर, के रहने वाले गुलाम अहमद इनकी वालिदा साहिबा की काफी अरसे से तबिअत बहुत खराब थी काफी अरसे उनका इलाज करा रहे थे, लेकिन कहीं से भी उम्मीद की किरने नज़र नहीं आ रही थीं, और डॉक्टर ने मायूसी की खबर सुना दी की अब इनकी खिदमत करते रहो डॉक्टरों ने उन्हें लाइलाज बता दिया था उनके जिस्म में दिल दिमाग फेफड़े वगैरह सब धीरे धीरे काम करना छोड़ रहे थे
तो इनकी मुलाक़ात हमारे हज़रत खलीफा ए हुज़ूर ताजुश शरी’आह व हुज़ूर गुलज़ार ए मिल्लत हज़रत अल्लामा मौलाना मुहम्मद रफीक़ अहमद नूरी साहब किब्ला से हुई, हज़रत ने कहा इन्हे अब्बा हुज़ूर ख़्वाजा रहमतुल्लाह नाइबे रसूल रहमतुल्लाह अलैह और अम्मी जान हबीबुन् निसा के दरबार में हाज़िरी दो इंशा अल्लाह शिफा मिल जाएगी हज़रत के कहने पर वो दरबार ए अब्बा हुज़ूर ख़्वाजा रहमतुल्लाह नाइबे रसूल रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़िरी दी जहां दुनिया के डॉक्टर फैल हो जाते है वहां अल्लाह वालों की करम की बारिश बरसने लगती है, अब्बा हुज़ूर और अम्मी जान का ऐसा करम हुआ जो ज़िंदगी से मायूस थीं, अब्बा हुज़ूर और अम्मी जान ने उन्हें शिफा दे दी उनकी तमाम बीमारियों को दूर कर दिया वो आज भी रसिया खानपुर की सर ज़मीन पर मुस्कुरा रही हैं, और बता रही हैं अब्बा हुज़ूर और अम्मी जान की वो बारगाह है जहां दुनिया वाले अपनी परेशानियों से छुटकारा पाते हैं,
तू आइंदा साल नहीं रहेगा
हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी शहर नंदियाल में किला के अंदर मस्जिद के करीब तशरीफ़ फरमा थे, इस कसबे में एक बुतखाना था, उसी साल पुजारी ने बुत को बाहर निकाला और तीन हज़ार की जमईयत लशकर को साथ लेकर शहर का गश्त करता हुआ, किले के अंदर आना चाहता था, ताके वहां के बुत से मुलाकात कराए, आप रहमतुल्लाह अलैह को मालूम हुआ तो आप ने उस पुजारी को कहला भेजा के बुत को किले के अंदर नहीं लाया, पुजारी काफी नाराज़ हुआ और बुत को वापस ले गया, और कहने लगा के इस साल तो न हो सका, आइंदा अपना इरादा ज़रूर पूरा करूंगा और उस वक़्त बहादुरी देखूँगा, ये बात जब हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को मालूम हुई, तो आप ने फ़रमाया इंशा अल्लाह आइंदा साल तक नहीं रहेगा, हज़रत! के फरमान के मुताबिक वो पुजारी तीन चार बाद शहर कर्नूल गया, तो एक अफगान के क़त्ल के बदले में उस के वारिसों के हाथों मारा गया जिस को इस ने इससे पहले कभी क़त्ल किया था और वो इस की ताक में थे इस तरह वो जहन्नम रसीद हुआ।
कड़पा के अब्दुस्सलाम खान को शिफा
शहर कड़पा में अब्दुस्सलाम खान उर्फ़ छम्मू मियां! रहते थे, हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के मुरीद थे, और आप वहां के दौलतमंद लोगों से ज़ियादा आप हज़रत ख्वाजा अलैहिर रहमा! से अक़ीदतो मुहब्बत रखते थे, हज़रत ख्वाजा अलैहिर रहमा! ने इनके बाग़ में मकान बनवाया था, चंद रोज़ के बाद अब्दुस्सलाम खान बीमार हुए बीमारी इतनी बड़ गई के सभी तबीबों यानि डॉक्टर्स ने जवाब दे दिया, इनके बीवी बच्चों ने हज़रत ख्वाजा अलैहिर रहमा! से आप से दुआ के लिए अर्ज़ किया, हज़रत ख्वाजा अलैहिर रहमा! ने फ़रमाया के अल्लाह पाक पर नज़र रखो वही शाफिए मुतलक़ है खुद अपने फ़ज़्ल से बिमारी को दूर कर देगा, इस के बाद हज़रत! ने उन पर ऐसी निगाहें करम डाली, इनकी बीमारी बिलकुल जाती रही और अब्दुस्सलाम खान शिफयाब हो गए।
सफरे हज में ग़ैब से खाने का इंतिज़ाम
हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी जब हज के लिए तशरीफ़ ले गए, तो आप के एक खादिम कबीर मुहम्मद नामी साथ में थे, सफर के चंद दिन जंगलों, पहाड़ों, और वादियों में से गुज़र हुआ, एक जगह जंगल में क़याम किया, जब के तीन चार वक़्त का फाका हो गया था, खादिम ने हज़रत से अर्ज़ की के अब फाके बर्दाश्त करने की ताकत नहीं है, हज़रत ने फ़रमाया सब्र करो अल्लाह पाक खाने का इंतिज़ाम करेगा, खादिम गश खा कर बेहोश हो गया, ईशा की नमाज़ के वक़्त हज़रत ने इन को नमाज़ के लिए बेदार किया, खादिम बेदार हो कर क्या देखते हैं, के एक मस्जिद है जो लोगों से भरी हुई है, वो लोग एक बर्तन लज़ीज़ खाने लाए हैं, हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने इन लोगों और अपने खादिम को खाने का हुक्म दिया, खाना सब ने खा लिया और बच भी गया, हज़रत ने खादिम को हुक्म दिया के अगर चाहो तो सुबह के लिए रख लो, उन्होंने ऐसा ही किया और सो गए, फजर को उठे तो देखा के ना मस्जिद है न जमात बल्के पहले की तरह जंगल है, इन को तअज्जुब हुआ, हज़रत ने इन से फ़रमाया ये बात किसी से ना कहना, इन्होने आखिर उम्र तक पोशीदा रखा मगर इन्होने अपने इन्तिकाल के वक़्त शहर नंदियाल में मौजूदा लोगों के सामने बयान किया,
डूबते हुए जहाज़ को बचा लेना
एक मर्तबा हज़रत ख्वाजा रहमतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी तशरीफ़ फरमा थे, के आप रहमतुल्लाह अलैह ने बड़ी ज़ोर से चीख मारी और अपनी जगह से इस तरह उछले के जुब्बाये मुबारक की आस्तीन दस्ते मुबारक से फट गई, मुहम्मद हुसैन मक्की जो आप के मुंशी थे और ये मुंशी साहब उस वक़्त आप के पास ही थे, इन्होने मुज़्तरिब हो कर बे इख़्तियार हो कर आप से हक़ीकते हाल दरयाफ़्ता किया, आप रहमतुल्लाह अलैह ने जलाल की हालत में आप की तरफ निगाह डाली और फ़रमाया के और फुकरा की हालत हमेशा यकसां नहीं रहती, अदब का तकाज़ा ये है, के बे सोचे समझे फौरी तौर पर उनके हालात की तफ्तीश नहीं करनी चाहिए, मुंशी साहब खामोश हो गए, और आप रहमतुल्लाह अलैह के कदमो पर गिर कर माफ़ी चाहि, आप तो अबरे रहमत थे, और फ़रमाया के एक ताजिर का जहाज़ ज़बरदस्त भंवर में फंस गया था, करीब था के डूब ही जाए उस के मालिक ने बे इख़्तियार हमारी दुहाई दे कर हम से मदद तलब की, जैसे ही है मालूम हुआ उसे सही सालत साहिल पर पंहुचा दिया, हज़रत! के इरशाद के बाद चंद दिन ही गुज़रे थे, के मज़कूरा ताजिर (बिजनिसमैन) तोहफे तहाइफ़ ले कर एक रेले की तरह रहमताबाद शरीफ! पहुंचे आप रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में हाज़री दी, और खुद पर जो हालात गुज़रे थे पूरे बे ऐनीही उसी तरह जिस तरह हज़रत ने इरशाद फ़रमाया था सुना दिए।
आप के खुलफाए किराम
1, हज़रत सय्यद मुर्तज़ा
2, हज़रत मुहम्मद सरवर
3, हज़रत शाह अबुल हसन क़ुरबी
4, हज़रत मौलाना शाह मुहम्मद रफ़ी रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन,
विसाल
आप रहमतुल्लाह अलैह की वफ़ात 26/ रबीउल अव्वल 1195/ हिजरी मुताबिक 22/ मार्च 1781/ ईसवी में हुई।
मज़ार
आप रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार मुबारक: क़स्बा रहमताबाद शरीफ ज़िला नेल्लोरे सूबा आंध्रप्रदेश में मरजए खलाइक है, आप रहमतुल्लाह अलैह का मज़ार मुबारक ज़िला नेल्लोरे से पचास 50/ किलोमीटर दूर है, बस स्टैंड से बस के ज़रिये आसानी से जा सकते हैं ज़ियारत के लिए।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
रेफरेन्स हवाला
(2) तज़किराए औलियाए दक्कन
(3) बहरे रहमत
(4) अक़ीदतुत तालिबीन