हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

खानदानी हालात

आमिले क़ुरआनो सुन्नत, शैख़े कामिल, पीरे तरीकत, रहबरे शरीअत, शैखुल मशाइख मख़्दूमुल आरफीन हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप के दादा जान “शैख़ अब्दुल लतीफ़” मुल्के ईरान के शहर खुरासान! से हिजरत कर के लाहौर तशरीफ़ लाए, और आप के बेटे हज़रत शैख़ याहया लाहोर से सुकूनत छोड़ कर ऊध उत्तर प्रदेश तशरीफ़ ले गए, और आप के बेटे हज़रत शैख़ यहयाह लाहौर से सुकूनत तर्क कर के ऊध उत्तर प्रदेश तशरीफ़ ले आए।

वालिदैन

हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद हज़रत शैख़ यहयह! और आप की वालिदा यूपी में सुकूनत पज़ीर थे, आप के वालिद माजिद सूफी सिफ़त नेक इंसान थे, आप की वालिदा माजिदा निहायत नेक थीं, अपना ज़्यादातर वक़्त इबादतों रियाज़त में गुज़ारती थीं, वो अपने ज़माने की राबिया थीं, और आप के वालिद माजिद कपड़े का काम करते थे, आप के घर गुलाम भी थे।

आप का नसब नामा

आप का नसब नामा पिदरी हस्बे ज़ैल है: हज़रत शैख़ नसीरुद्दीन महमूद बिन, शैख़ याहया बिन, शैख़ अब्दुल लतीफ़ बिन, युसूफ बिन, अब्दुर रशीद बिन, सुलेमान बिन, शैख़ अहमद बिन, शैख़ युसूफ बिन, शैख़ मुहम्मद बिन, शैख़ शहाबुद्दीन बिन, शैख़ सुल्तान बिन, शैख़ इसहाक बिन, शैख़ मसऊद बिन, शैख़ अब्दुल्लाह बिन, हज़रत वाइज़ असगर बिन, वाइज़ अकबर बिन, इसहाक बिन, सुल्तान इब्राहीम बिन अधहम बल्खी बिन शैख़ सुलेमान बिन, नासिर बिन, हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमीरुल मोमिनीन हज़रत सय्यदना उमर फ़ारूके आज़म रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।

विलादत बा सआदत

हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश 673, हिजरी मुताबिक 1274, ईसवी को फैज़ाबाद यूपी हिन्द में हुई।

नाम व लक़ब

आप का नाम मुबारक “नसीरुद्दीन” है, ख़िताब आप का महमूद है, और आप का लक़ब “चिराग देहलवी” है आप के चिराग देहलवी कहलाने की चंद वुजुहात हैं,
हज़रत ख्वाजा जलालुद्दीन बुखारी मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह जब मक्का शरीफ पहुंचे और हज़रत इमाम याफ़ई अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह से मिले तो बातों बातों में दिल्ली के बुज़ुर्गों का ज़िर्क आया, हज़रत इमाम याफ़ई अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: पहले तो दिल्ली! में कई बुज़ुर्गाने दीन थे, वो सब दुनिया से तशरीफ़ ले गए, फिर हज़रत इमाम याफ़ई अब्दुल्लाह रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: के “अब तो शैख़ नसीरुद्दीन महमूद दिल्ली! के चिराग” हैं, जो अभी बाकी हैं,
हज़रत ख्वाजा जलालुद्दीन बुखारी मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त रहमतुल्लाह अलैह कुछ अरसे के बाद मक्का मुअज़्ज़ा से दिल्ली वापस आए और हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से बैअत मुरीद हुए, और खिलाफत हासिल की, आप के “चिराग दिल्ली” कहलाने की दूसरी वजह ये है के:

एक मर्तबा चंद दुर्वेश सियाहत करते हुए दिल्ली आए और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से मुलाकात की, और वो दुर्वेश सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में बैठे हुए थे के इत्तिफाक से हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! भी हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमते बा बरकत में हाज़िर हुए, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को बैठने का हुक्म दिया, आप ने अर्ज़ किया: “दुवेशों की तरफ मेरी पीठ हो जाएगी” सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाया: के “चिराग की रू पुश्त नहीं होती” अपने पीरो मुर्शिद के हुक्म के मुताबिक आप बैठ गए, आप की रू पुश्त यकसां एक जैसी हो गई, जैसा के आप आगे से देखते थे, अब पुश्त की तरफ से भी देखने लगे उसी रोज़ से आप चिराग दिल्ली! के लक़ब से मशहूर,
तीसरी वजह! ये है के एक मर्तबा बादशाह ने जो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से हसद रखता था और जिस को उन का इक्तिदार ना पसंद था, ऐन उर्स के मोके पर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाह के वास्ते तेल बंद कर दिया, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने ये वाक़िआ हज़रत महबूबे इलाही रहमतुल्लाह अलैह से बताया, तो आप ने फ़रमाया “बाऊली जो खुद रही है, उसमे कुछ पानी निकला है” आप ने अर्ज़ किया हुज़ूर! हाँ निकला है,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने हुक्म दिया: उसी पानी को चिरागों में डाल कर रोशन करो, आप ने ऐसा ही किया, तमाम चिराग तेल से नहीं पानी से रोशन हो गए, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! सारे जहां में “चिराग देहलवी” के लक़ब से मशहूर हो गए।

तालीमों तरबियत

हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की उमर जब नो साल की हुई, वालिद माजिद का सायाए आतिफ़त सर से उठ्ठ गया,
वालिद के इन्तिकाल के बाद आप की तालीमों तरबियत की ज़िम्मेदारी आप की वालिदा माजिदा ने बा हुस्ने खूबी अंजाम दी, उन्होंने अपनी पूरी ज़िम्मेदारी के साथ आप की तालीमों तरबियत में बहुत कोशिश की, आप को हज़रत मौलाना अब्दुल करीम शेरवानी के सुपुर्द किया, और उनकी वफ़ात के बाद आप ने मौलाना इफ्तिखारुद्दीन गिलानी से इल्मे दीन हासिल किया, आप ने उलूमे ज़ाहिरी से जल्द ही फरागत हसली की, और बीस साल की उमर में तमाम उलूम हासिल कर के फारिग हो गए।

दुर्वेश की सुहबत

आप शुरू ही से मुजाहिदाए नफ़्स में लगे रहते थे, आप ने एक दुर्वेश की सुहबत में रहना शुरू किया, ये दुर्वेश शहर से दूर जंगल में रहते थे, दुनिया से उन को कुछ गर्ज़ ना थी, घास और पत्ते खा कर गुज़ारा करते थे।

बैअतो खिलाफत

आप तैंतालीस साल 43, साल की उमर में दिल्ली में रौनक अफ़रोज़ हुए, दिल्ली पहुंच कर आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हाज़िर हुए और आप एक मुद्दत तक सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में रहे,
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को बैअत मुरीद फ़रमाया: और खिरकाए खिलाफत अता किया, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! पर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खास नवाज़िश और माहिरबानी थी, हज़रत! ने आप को अपना साहिबे सज्जादा और जानशीन बनाया, और वो तमाम तबर्रुकात जो आप को हज़रत बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह! से मिले थे, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को सुपुर्द कर दिए, और नसीहत फ़रमाई के वो इन तबर्रुकात को इसी तरह वो अपने पास रखें, जिस तरह उन्होंने और ख्वाजगान चिश्त ने बा सद एहतिरामो अदब रखा है।

आप ने रज़ाई दे दी

हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी के मुरीद हज़रत ख्वाजा मुहम्मद गाज़रूनी रहमतुल्लाह अलैह एक मर्तबा सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के पास आए, आप इस रात खानकाह में ठहरे, जब तहज्जुद की नमाज़ का वक़्त आया, तो आप ने वुज़ू करने की गर्ज़ से अपनी रज़ाई उतारी, रज़ाई एक जगह रख कर चले गए, जब वुज़ू कर के वापस आए तो उस जगह रज़ाई को ना पाया, आप खानकाह के खादिम ख्वाजा मुहम्मद को सख्त डांट रहे थे, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! खानकाह में इबादत में मशगूल थे, आप ने जब ये गुफ्तुगू सुनी, आप उठे और अपनी रज़ाई ख्वाजा मुहम्मद गाज़रूनी! को दे कर किस्सा ख़त्म किया, किसी ने ये खबर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को पहुंचाई, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को ऊपर बुलाया और अपनी खास रज़ाई आप को अता की, आप के लिए दुआए खेर फ़रमाई, और आप को दीनी व दुनियावी नेमतों से सरफ़राज़ फ़रमाया।

मुजाहिदात

हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने सख्त से सख्त मुजाहिदे किए, एक मर्तबा नफ़्स ने आप को परेशान किया, आप ने नफ़्स को मगलूब करने की गर्ज़ से इस क़दर लीमू खाए के आप सख्त बीमार हो गए,
एक दफा आप ने दस रोज़ तक कुछ नहीं खाया, किसी ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को इस बात की इत्तिला कर दी, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को अपने पास बुलाया, जब आप खिदमते अक़दस में हाज़िर हुए, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने ख्वाजा इकबाल को हुक्म दिया के एक रोटी लाओ, ख्वाजा इक़बाल एक रोटी पर हलवा रख कर लाए, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को हुक्म दिया के वो सब खा लें, आप हैरान हुए के ये सब एक मर्तबा में कैसे खाएंगें, लेकिन पीरो मुर्शिद का हुक्म कैसे टाल सकते थे, सब खा लिया।

सीरतो ख़ासाइल

आप की ज़ाते पसंदीदा और औसाफ़े बुर्गज़ीदा थे, आप इल्म, अक्ल और इश्क, में अपनी मिसाल नहीं रखते थे, तहम्मुल बुर्दबारी और ईसार में यगानाए रोज़गार थे, आप मखलूक के जोरो सितम पर सब्र करते थे, बुराई का बदला अच्छाई से देते थे, आप अहले इरादत के लिए नज़ीर थे, राहे सुलूक में बे नज़ीर थे, आप एक मिसालि पीर थे, ऐन जवानी में जो के कामरानी का ज़माना समझा जाया करता था, आप को दुनिया से कोई मुहब्बत नहीं थी, आप अमीर से बे परवा थे, आप अपने पीरो मुर्शिद की पैरवी में मसरूफ रहते थे।

आप का ख़ुलूस

एक मर्तबा का वाकिया है के एक कलंदर आप की खानकाह में आया, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अपने हुजरे में तशरीफ़ फरमा थे, वो कलंदर हुजरे में दाखिल हुआ, खानकाह के हुजरे में दाखिल होने का किसी को पता ना चला, उसने आप के चेहराए मुबारक पे कई वार किए और आप के कई ज़ख्म आए, आप इस दर्जा इसतगराक की हालत में थे के आप को कुछ पता नहीं चला, हुजरे की नाली से जब खून बाहर निकला तो लोग हुजरे के अंदर गए, कलंदर को पकड़ा, आप ने कलंदर को सज़ा देने से मना कर दिया, आप ने उस कलंदर को तेज़ रफ़्तार घोड़ा और कुछ पैसे दिए, और उससे फ़रमाया के जल्द शहर से चले जाओ ताके लोग तुम्हें तकलीफ न पहुचाएं, उस कलंदर ने ऐसा ही किया।

आप के खुलफाए किराम

  1. हज़रत ख्वाजा बंदानवाज़ गेसूदराज गुलबर्गा शरीफ करनाटक
  2. हज़रत शैख़ अल्लामा कमालुद्दीन दिल्ली
  3. हज़रत शैख़ ज़ैनुलद्दीन दिल्ली
  4. हज़रत शैख़ जलालुद्दीन बुखारी मखदूम जहानियाँ जहाँ गश्त पाकिस्तान
  5. हज़रत शैख़ सदरुद्दीन तय्यब दूलह
  6. हज़रत सय्यद मुहम्मद जाफर मक्की हुसैनी,
  7. हज़रत मौलाना शैख़ अलाउद्दीन संडीला यूपी
  8. हज़रत मौलाना ख्वाजगी कालपी शरीफ
  9. हज़रत मौलाना अहमद थानीसर
  10. हज़रत शैख़ मोईनुद्दीन खुर्द
  11. क़ाज़ी अब्दुल मुक्तदिर बिन क़ाज़ी रुकनुद्दीन
  12. क़ाज़ी मुहम्मद सावी दिल्ली
  13. हज़रत शैख़ सुलेमान रुदौली शरीफ यूपी
  14. हज़रत मुहम्मद मुतावक्किल
  15. हज़रत शैख़ दानियाल उर्फ़ ऊद
  16. हज़रत शैख़ क़वामुद्दीन चिश्ती लखनऊ रिदवानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन।
                                                                     "चंद करामात"
  

उसकी ज़बान समझता हूँ

हज़रत सय्यद मुहम्मद गेसू दराज़ रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के हजऱत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फ़रमाया करते थे के जिस वक़्त में बच्चा था और मस्जिद में उस्ताज़ से पढ़ा करता था उस मस्जिद में एक खुश्क दरख़्त था, एक कव्वा उस पेड़ पर रोज़ाना आ कर बैठता था और जो कुछ वो कहता और बोलता था में उस की ज़बान को खूब समझता था।

फ़िरोज़ शाह बादशाह बनेगा

सुल्तान मुहम्मद तुगलक जब ठठ्ठा रवाना हुआ तो उसने दिल्ली के बुज़ुर्गों को अपने साथ लिया, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! को भी इस सफर की तकलीफ दी, आपने फ़रमाया के सुल्तान को इस सफर में मेरा साथ लेना मुबारक नहीं है, क्यों के वो सही सलामत वापस नहीं आएगा, चुनांचे ऐसा ही हुआ सुल्तान मुहम्मद तुगलक का इन्तिकाल हुआ और आप की दुआ से फ़िरोज़ शाह बादशाह बना।

राज़ न खुले

हज़रत अज़ीज़ुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह जो के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के रिश्तेदारों में से थे, बयान करते है के एक मर्तबा में हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! कि मजलिस मुबारक में बैठा हुआ था, के आप ने एक कागज़ पर कुछ लिखा और वो मुझ को दे दिया, फ़रमाया इस को सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार मुबारक पर पेश कर देना, में ने उसको पढ़ना चाहा लेकिन ये सोच कर ना पढ़ा के पहले हुक्म की तामील करनी चाहिए, बाद को पढूंगा, में ने उस कागज़ को सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार मुबारक के सामने रखा फिर चाहा के इसे पढूं तो कागज़ को बिलकुल कोरा साफ़ पाया, में सख्त हैरान हुआ, हज़रत ख्वाजा अमीर खुर्द रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के जब खुदा का दोस्त चाहता है के वो अपने हालात को जो असरारे इलाही होते हैं अपने दूसरे दोस्त की खिदमत में पेश करे तो वो दोस्त ये नहीं चाहता के उन के पोशीदा बातों से कोई दूसरा वाकिफ हो कर राज़ खोल दे।

हमें खाने की चीज़ दो

हज़रत ख्वाजा अमीर खुर्द किरमानी रहमतुल्लाह अलैह बयान करते हैं के एक दफा में अपने भाइयों सय्यद इमामुद्दीन और सय्यद नूरुद्दीन के साथ हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में जा रहा था, जाड़े का मौसम था, रास्ते में मेरे एक भाई ने कहा के अगर हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! साहिबे करामात हैं, तो हमारे सामने शिरीन पेश करेंगें, जब हम आप की खिदमत बा बरकत में हाज़िर हुए तो कदम चूम कर बैठ गए, फिर आप ने अपने खादिम से फ़रमाया शरबत पिलाओ, जब शरबत के प्याले हम सब को दिए जा चुके तो हमारे दिल में ख्याल गुज़रा के ये तो पीने की चीज़ है और हमने तो खाने के लिए कहा था, अभी हम ये बात सोच ही रहे थे के आप ने खादिम से फ़रमाया के कोई दूसरी मिठाई लाओ, हमने अर्ज़ किय के अभी तो हमने शरबत पिया है फ़ौरन ही आप ने इरशाद फ़रमाया वो पीने की चीज़ थी और ये खाने की चीज़ है, फ़रमाया हज़रत ख्वाजा अमीर खुर्द किरमानी रहमतुल्लाह अलैह ने मुझ को आप की मजलिस से वही खुशबु आती थी जो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की महफ़िल से आती थी।

आप के चंद मलफ़ूज़ात शरीफ

तमाम कामो में नियत खालिस होना चाहिए
तिजारत का लुक्मा अच्छा लुक्मा है
जिस क़द्र सालिक को मारफते खुदा हासिल होती है उसी क़द्र तअल्लुक़ात कम हो जाते हैं
दुर्वेश को चाहिए के अगर उस पर फाका गुज़रे तब भी अपनी हाजत गैर से न कहे
तालिबे दुनिया में अगर नियत खेर की हो तो वो फिल हकीकत तालिबे आख़िरत है

विसाले पुरमलाल

आप ने बादशाह फ़िरोज़ शाह के दौरे हुकूमत में 18, रमज़ानुल मुबारक चाशत के वक़्त 757, हिजरी मुताबिक 1356, ईसवी को आप का विसाल हुआ और जिस हुजरे में आप रहते थे उसी में दफ़न किया गया, बा वक़्ते विसाल आपने वसीयत फ़रमाई थी के मेरे मुर्शिद का खिरका मेरे सीने पर और लकड़ी का प्याला मेरे सिरहाने और तस्बीह मेरे ऊँगली में और असा और जूते मेरे बराबर रख देना चुनांचे ऐसा ही किया गया,

मज़ार शरीफ

आप का मज़ार शरीफ दिल्ली के इलाका चिराग दिल्ली! में मश्हूरो मारूफ है, और आप के मज़ार शरीफ पर हमेशा ज़ाएरीन आते रहते हैं, आप की दरगाह शरीफ का गुंबद आप की ज़िन्दगी में ही बादशाह फ़िरोज़ शाह तुगलक ने 749, हिजरी में तामीर करवाया था।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली
(2) औलियाए दिल्ली की दरगाहें
(3) मिरातुल असरार
(6) दिल्ली के 22, ख्वाजा

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