सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

सरकार मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 2)

सायाए जुमला मशाइख या खुदा हम पर रहे
रहम फ़रमा आले रहमा मुस्तफा के वास्ते

उलमा व सादाते किराम की ताज़ीम

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह को उलमा व सादाते किराम का एहतिराम वरासत में मिला था, ऐसे वालिहाना अंदाज़ से इन हज़रात की ताज़िमों तौकीर करते थे के इस का बयान करना मुश्किल है, 1979, ईस्वी का वाकिअ है के:

गर्मी के ज़माने में दोपहर में एक खातून एक बच्चे के साथ तावीज़ लेने के लिए आई, लोगों ने फ़रमाया के हज़रत आराम फरमा रहे हैं मगर इन्हें तावीज़ की सख्त ज़रूरत थी, इन्होने कहिलवाया के देख लिया जाए के हज़रत! जागे हों और मुझे तावीज़ मिल जाए मगर हज़रत के पास किसी को जाने की हिम्मत ना हुई, बिला आखिर वो खातून अपने बच्चे से बोलीं, चलो बेटे ये क्या मालूम था के यहाँ सय्यदों की बातें नहीं सुनी जातीं, ना मालूम हज़रत ने कैसे सुन लिया और खादिमा को आवाज़ दे कर कहा: जल्दी बुलाओ शहज़ादी कहीं नाराज़ न हो जाएं, इन्हें रोक लिया गया, बच्चा हज़रत के पास गया, हज़रत ने नाम पूछा उस ने नाम बताया हज़रत ने उस बच्चे को बड़ी इज़्ज़तो मुहब्बत के साथ बिठाया, सर पर हाथ फेरा, सेब मगा कर दिया और परदे की आड़ से मुहतरमा खातून से हाल मालूम कर के उन्हें उसी वक़्त तावीज़ लिख कर दिया और घर में ये कह कर रुकवा लिया के धूप खत्म हो जाए तब जाने देना और इनकी ख़ातिरो मदारत करो,

मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! में जब हज़रत सद रुश्शरिया मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह! बरैली तशरीफ़ लाए तो हज़रत इन के इस्तकबाल के लिए स्टेशन जाते और बेपनाह क़द्रो मन्ज़िलत करते, हाफिज़े मिल्लत हज़रत अल्लामा शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे मुरादाबादी रहमतुल्लाह अलैह! व शेर बेशाए अहले सुन्नत हज़रत अल्लामा हशमत अली खान रहमतुल्लाह अलैह! व हुज़ूर मुफ़्ती बुरहानुल हक जबलपरी रहमतुल्लाह अलैह से और इनकी औलाद से बहुत मुहब्बत फरमाते थे और जब भी ये सब हज़रात आते तो हज़रत इन की बे इंतेहा क़द्रो मन्ज़िलत करते थे, रईसे आज़म उड़ीसा हुज़ूर मुजाहिदे मिल्लत अल्लामा शाह हबीबुर रहमान रहमतुल्लाह अलैह! की भी बहुत इज़्ज़त करते थे अपने खुलफाए किराम व तलामिज़ा (शागिर्द) व दीगर मुरीदीन और पीर ज़ादगान मारहरा मुक़द्दसा का अगर खादिम भी आ जाए तो उन तमाम की इसी अंदाज़ में इज़्ज़त करते थे के वो बेचारे खुद शर्मिंदा हो जाते थे।

ज़ियारते हरमैन तय्येबैन

खुदा खैर से लाए वो दिन भी नूरी
मदीने की गलियां बुहारा करूँ में

हज व ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन की सआदत दो बार आप को तक़सीमे हिंदुस्तान से पहले हासिल हुई, तीसरी बार 1391, हिजरी मुताबिक 1971, ईस्वी में इस शान के साथ हज बैतुल्लाह मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा के लिए तशरीफ़ ले गए के बहुत से उल्माए किराम के नज़दीक हज के लिए फोटो जाइज़ है मगर आप की अज़ीमत की बुनियाद पर बैनुल अक्वामि राइजुल वक़्त अमल के खिलाफ बगैर फोटू के पासपोर्ट हासिल हुआ और सफरे हज के दौरान जहाज़ में कोई टीका वगेरा भी ना लगवा कर एहतियात व तक्वा की उस दौरान में एक रोशन मिसाल काइम कर दी, और ज़ोफो नक़ाहत के बावजूद जिस निशात और मुस्तअदी और शेफ्तागि व वारफतागि के साथ मानसिक हज अदा किए वो हम सब के लिए काबिले रश्क हैं,
इस सफर में आप ने मक्का मुकर्रमा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा में उन उल्माए हरमैन से भी मुलाकात की जिन्हों ने मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! से उन के वक़्त में हरमैन शरीफ़ैन! में मुलाकात व इस्तिफ़ादा किया था, ये हज़रात सय्यद याहया अलमान रहमतुल्लाह अलैह के तलामिज़ा शागिर्द में से हैं, उन के अस्मा गिरामी ये हैं: (1) हज़रत सय्यद अमीन कुतबी, हज़रत सय्यद अब्बास अल्वी, हज़रत सय्यद नूर मुहम्मद, रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, इन तीनो हज़रात ने मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के दौर के हालात व वाक़िआत बतलाए, उन के इल्मो फ़ज़ल की तारीफ व तौसीफ की और हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह से खिलाफत! हासिल की, मुफ्तिए आज़म का इल्मी मकाम,

तसव्वुफ़  फलसफा  तफ़्सीर के फ़िक़्ही  मसाइल 
सभी कहते हैं के उक दाहकुशा हैं मुफ्तिए आज़म

मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! का वो शहज़ादाह जो “दारुल उलूम मन्ज़रे इस्लाम” में दौरान तालीम पहला फतवा तहरीर फरमा कर मुफ़्ती की हैसियत से मंसबे इफ्ता पर फ़ाइज़ हुआ था, कुछ अरसे के बाद दुनिया ने देख के जब आप के इल्मो फ़ज़्ल की सलाहीयत और फ़िक़्ही महारत उजागर होती चली गई तो आप मुफ्तिए आज़म हिन्द कहलाए के ये लक़ब ही गोया आप का इस्म! हो गया, जहाँ जहाँ मुफ्तिए आज़म हिन्द बोला गया वहां सिर्फ आप ही की ज़ात मुबारक समझ में आई।

मौलाना मुस्तफा रज़ा को “मुफ्तिए आज़म का खिताब” किस ने दिया?

ये अम्र तो मुसल्लम व मुहक़्क़क़ है के आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की हयाते मुबारक ही में उन के खलफ़े असगर बद रूश्शरिया वत तरीका मौलाना मुहम्मद मुस्तफा रज़ा नूरी! कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को “मुफ्तिए आज़म” कहा जाने लगा था और हज़रत मौलाना मुस्तफा रज़ा नूरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी “मुफ्तिए आज़म” के लक़ब से अच्छी तरह मश्हूरो मुतआरिफ़ हो गए थे, हज़रत मौलाना मुस्तफा रज़ा नूरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के तिलमीज़े रशीद, ख़लीफ़ए सईद मौलाना अल हाज मुबीनुद्दीन रज़वी मुहद्दिसे अमरोहा यूपी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं:

एक मोके पर सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! इन की मजलिस में मुआसिरीन का तज़किराह हो रहा था, इस में मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के शहज़ादाए असगर हज़रत मौलाना मुस्तफा रज़ा नूरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को “मुफ्तिए आज़म” कहा गया, मजलिस में एक साहब ने ऐतराज़न कहा वो “मुफ्तिए आज़म” कब से और कैसे हो गए? हज़रत सदरुल अफ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: ये तो अपने पीरो मुर्शिद आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! से पूछो के जब उन की हयाते तय्यबा में उन के फ़रज़न्दे जलील हज़रत मौलाना मुस्तफा रज़ा नूरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को “मुफ्तिए आज़म” कहा गया, तो आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने क्यों और कैसे बरकरार रखा, हज़रत सदरुल अफ़ाज़िल रहमतुल्लाह अलैह! के इस जवाब पर मुआतरिज़ खामोश हो गए,

रहा ये अम्र के बद रूश्शरिया वत तरीका मौलाना मुहम्मद मुस्तफा रज़ा नूरी! कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की हयात मुबारक में लोग यूँही अक़ीदतन मुफ्तिए आज़म कहने लगे थे, या इस की भी को तक़रीब हुई जिस में मुफ्तिए आज़म! का लक़ब अता किया गया, इस सिलसिले में हज़रत मौलाना सय्यद एजाज़ हुसैन बरेलवी एडीटर “माह नामा आला हज़रत” बरैली का फैसला कुन बयान मुलाहिज़ा हो,

हज़रत मुफ्तिए आज़म! मुजद्दिदे दीनो मिल्लत आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत अल हाज मौलाना मौलवी मुहम्मद अहमद रज़ा खान साहब रदियल्लाहु अन्हु के खलफ़े असगर और ज़ेबे सज्जादए आस्तानए आलिया रज़विया, हज़रत मौसूफ़ की दीनी व दुनियावी बरकात अज़हर मिनश शम्श! हैं, आप कम उमर ही से आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की खिदमात में मसरूफ रहे, यहाँ तक के बाद तालीमे फरागत इमामे अहले सुन्नत के पेशकार, और दस्त रास्त रहे, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की किताबों की तस्नीफ़ में और मसाइल के जवाबात में मसरूफ रहते, और किताबों के हवाले के लिए आप ही क़ुतुब खाना रज़विया! से मतलूबा किताबें निकाल कर पेश करते, यहाँ तक के खुद आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने एक बार अपनी और दूसरे उल्माए अहले सुन्नत की मौजूदगी में आप से जब फतवा लिखवाया और खुद अपनी तस्दीक से मुज़य्यन फरमा कर आप को “मुफ्तिए आज़म” का ख़िताब बख्शा,

रहा हज़रत के लक़ब में “मुफ्तिए आज़म” के साथ हिन्द! का इज़ाफ़ा तो ये अब तक साबित ना हो सका के किस ने कब और क्यों किया? जब के खुद आला हज़रत इमामे अहले सुन्नत रदियल्लाहु अन्हु! ने अपने नूरे नज़र को जो लक़ब अता किया वो भी “मुफ्तिए आज़म” है ना के मुफ्तिए आज़म हिन्द! 25, सफारुल मुज़फ्फर 1347, हिजरी अगस्त 1928, ईस्वी को खानकाहे आलिया कादरिया रज़विया बरैली शरीफ के अज़ीमुश्शान इज्तिमा में जिस में हज़ारों की तादाद में अहले इस्लाम शरीक थे मकामी उल्माए किराम, औलियाए इज़ाम, मशाहीरे कोम के अलावा सीरी लंका, बंगाल, पंजाब, मुंबई, गुजरात, काठ्ठिया वाड़, गोंडल, मद्रास चेन्नई, यूपी, राजपूताना सरहद के जलीलुल कद्र फुज़्ला, व अमाये दीन कोम भी हाज़िरे जलसा थे, इस तारीखी इजलास में हज़रत मौलाना मुस्तफा रज़ा नूरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को “मुफ्तिए आज़म, और सद रूल उलमा! ना सिर्फ कहा गया बल्के शाहज़ादए अकबर हुज्जतुल इस्लाम हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के हुक्म से इस इजलास! में जो तजावीज़ पास हुईं, उनमे तजवीज़ नंबर 3, में आप को “मुफ्तिए आज़म, और सद रूल उलमा! लिखा गया,

सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! ने 1946, ईस्वी में हज़रत मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान मौलाना सरदार अहमद रज़वी रहमतुल्लाह अलैह को “सुन्नी कॉन्फ़िरेन” बनारस में शिरकत का जो दावत नाम इरसाल (रवाना करना भेनजा) किया था, इस में भी हज़रत को “मुफ्तिए आज़म” ही लिखा ना के मुफ्ती आज़म हिन्द,

आल इंडिया सुन्नी कॉन्फ़िरेन

1946, ईस्वी में बर्रे सगीर मुल्के हिंदुस्तान के उल्माए किराम व मशाईखे इज़ाम ने “आल इंडिया सुन्नी कॉन्फ़िरेन” के इजलास के मोके पर बर्रे सगीर के लिए जिस “दारुल क़ज़ा” के लिए चंद मुफ्तियाने किराम के अस्मा पर इत्तिफाक किया गया इन में हज़रत मुफ्ती आज़म का नामे नामी सिरे फहरिस्त है, “आल इंडिया सुन्नी कॉन्फ़िरेन” शहर बनारस का एक तारिख साज़ जलसा! 24, ता 27, जमादीयुल ऊला 1335, हिजरी मुताबिक 27, ता 30, अप्रेल को मुनअकिद हुआ, इस इजलास! में पांचों 500, मशाइखे इज़ाम, सात हज़ार उल्माए किराम! और दो लाख से ज़ियादा अवामे अहले सुन्नत शरीक हुए, इस जलसे! में हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह ने मरकज़ी किरदार अदा किया और कॉन्फ़िरेन! की तरफ से मुसलमानो की फलाहो बहबूद के लिए मुख्तलिफ कमेटियां मुकर्रर हुईं उन में से बाज़ की सरबराही हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह ने कबूल फ़रमाई, जिन मजालिस में आप का इन्तिखावाब हुआ वो ये हैं: तालीमे पाकिस्तान, “दारुल क़ज़ा” आईली क़वानीन, जमीयत आईंन साज़।

मुफ्तिए आज़म हिन्द! व सद रुश्शारिया क़ाज़ी हैं

फकीहे अस्र मुफ़्ती मुहम्मद शरीफुल हक अमजदी “शारेह बुखारी शरीफ” रहमतुल्लाह अलैह हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के पहले फतवे के मुतअल्लिक़ फरमाते हैं: ये अजीब इत्तिफाक है के आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने भी पहला फतवा रज़ाअत! ही का लिखा था, और उन के आइनाए जमालो कमाल “मुफ्तिए आज़म” ने भी पहला मसला रज़ाअत ही का लिखा, ख़ास बात ये है के इससे पहले फतवे पर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने ना एक लफ्ज़ घटाया ना एक लफ्ज़ बढ़ाया, कोई इस्लाह ना की, पहला फतवा ही हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द रहमतुल्लाह अलैह ने ऐसा सही और मुकम्मल लिखा के कहीं इस में कोई ऊँगली रखने की जगह ना थी, आगाज़ का जब ये आलम है, अंजाम का आलम क्या होगा, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु को अपने फ़रज़न्दे असगर मुफ्तिए आज़म! की फुकाहत व सिकाहत (सिका होना, काबिले ऐतिबार होना) पर इस नुईयत का एतिमाद के अपने बाज़ फतावा पर इन की ताईदी दस्तखत कर वाते थे, मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने अपनी हयाते तय्यबा में सैंकड़ों मसाइल में अपने खलफ़े असगर मुफ्तिए आज़म! से लिखवाए और उन की तस्दीक व तसवीब (तस्दीक, मंज़ूरी, दुरुस्त) फ़रमा कर अपने दस्तखत किए, माहे रजब 1339, हिजरी में मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! ने मुत्तहदा मुल्के हिंदुस्तान के लिए “दारुल क़ज़ा शरई” क़ाइम फ़रमाया और बाज़ उल्माए किराम की मौजूदगी में हज़रत सद रुश्शारिया बदरुत्तरिका अल्लामा मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह, और हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह इन को मंसबे इफ्ता व क़ज़ा! पर मामूर फरमाते हुए इरशाद फ़रमाया:

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त और उस के रसूले करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जो इख़्तियार मुझे अता फ़रमाया है इस की बिना पर इन दोनों “मुफ्तिए आज़म, सद रुश्शारिया” को ना सिर्फ मुफ़्ती बल्के शरआ की जानिब से इनदोनो को “काज़ी” मुकर्रर करता हूँ के इन के फैसले की वही हैसियत होगी जो एक काज़िए इस्लाम! की होती है, फिर अपने सामने तख़्त पर बिठाया इस काम के लिए कलम और दवात वगेरा सुपुर्द फ़रमाया और मुक़द्दीमात के फैसले करवाए।

आप से उल्माए हिजाज़ ने खिलाफत हासिल की

मुजद्दिदे आज़म आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा मुहद्दिसे बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु! के विसाल के बाद “रज़वी दारुल इफ्ता बरैली शरीफ” में आने वाले हज़ार हा मसाइल के लिखने वाले सिर्फ दो थे, एक हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह दूसरे हज़रत सद रुश्शारिया बदरुत्तरिका अल्लामा मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत हुज्जतुल इस्लाम हामिद रज़ा खान रहमतुल्लाह अलैह अगरचे हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के उस्ताद थे, खुद ज़बरदस्त मुफ़्ती! थे मगर मसाइल इन दोनों हज़रात के पास इरसाल (भेजना) करते थे, बहुत कम ऐसा इत्तिफाक होता के खुद कोई फतवा तहरीर फरमाते, और जब हज़रत सद रुश्शारिया बदरुत्तरिका अल्लामा मुफ़्ती अमजद अली आज़मी रहमतुल्लाह अलैह, अजमेर शरीफ! चले गए तो हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह “रज़वी दारुल इफ्ता बरैली शरीफ” में आने वाले तमाम मसाइल को लिखा करते थे, उस ज़माने में लोग दीनदार आज के बा निस्बत ज़ियादा थे, आज बी हमदीही तआला मदारिसे इस्लामिया बा कसरत हैं और तकरीबन हर मदरसे में “दारुल इफ्ता” है, अब अंदाज़ा लगाएं के हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह कितने मसाइल लिखते होंगे, फिर फतवे की शान वो थी के सब में आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! का तर्ज़ मौजूद है,, व्ही उस्लूब, बयान, वही ज़ोरे इस्तदलाल, वही जुज़ियात फ़िक़्ह के शवाहिद का ज़खीरा, मालूम होता है के हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह का कलम है और मज़मून है आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! का उस वक़्त मुल्क के तूलो अर्ज़ में बहुत से उलमा व फुकहाए किराम थे, किसी के यहाँ वो जामीईयत जो मुफ्तिए आज़म! के फतवे में थी, नहीं मिलती और ना मिलेगी,
आफ़ताबे शरीअतो माहताब तरीकत में यकता अपने दौर में हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह की ताबानी सिर्फ मुल्के हिंदुस्तान तक ही महदूद ना रही बल्के तमाम आलमे इस्लाम आप की इल्मियत व फुकाहत और तरीकत के नूर से मुस्तफ़ीज़ हुआ, हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह जब हज्जे बैतुल्लाह के लिए तशरीफ़ ले गए तो उल्माए हिजाज़, मुल्के मिस्र, मुल्के शाम, जिसे आज सीरिया कहते हैं, मुल्के इराक, और तुर्की, वगेरा के उल्माए आलम ने आप से मसाइल दरयाफ्त किए, इस के अलावा आप के पास मुल्के अरब, अफ्रीका, मुरीशश, इंग्लैंड, अमरीका, सीरी लंका, मलेशिया, बंगला देश, और पाकिस्तान से इस्तिफता आए और आप ने उन के जवाबात तहरीर फरमाए।

आप के तलामिज़ा “शागिर्द” व मुस्तफ़ीद

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के तलामिज़ा “शागिर्द” व मुस्तफ़ीद की एक बड़ी जमाअत है जो हिंदुस्तान व पाकिस्तान के हर हिस्से में हक़ की आवाज़ बुलंद कर रही है, हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के तलामिज़ा “शागिर्द” व मुस्तफ़ीद आलिम, आमिल, मुदर्रिस, मुकर्रिर, मुफ़स्सिर, मुहद्दिस, मुनाजिर मन्तक़ी, फलसफी, मुहक्किक, मुसन्निफ़, फकीह, व क़ाज़ी, और मुफ़्ती होने के साथ साथ मुल्को मिल्लत के बही ख़्वाह, हम दर्द और बे लौस खादिम हैं,

उस्ताज़ की सीरतो किरदार, इल्मो अमल की पुख्तगी और कोलो फेल की यकसानियत और हम आहंगी का असर तलामिज़ा “शागिर्द” पर ज़रूर पड़ता है ख़ुसूसन जब के उस्ताज़ की इल्मी व रूहानी कुव्वत अपने मुआसिर उलमा व मशाइखे इज़ाम से भी खिराजे अकीदत वुसूल कर चुकी हो, यही वजह है के हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के तलामिज़ा “शागिर्द” व मुस्तफ़ीद रुसूख़ फ़िल इल्म, इस्तिक़ामत फिद्दीन, मसलक से वालिहाना मुहब्बत, इश्के मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और दीगर मक़ासिदे इल्म में ऐसे मुमताज़ मुनफ़रिद हैं के अपनी मिसाल आप हैं: आप के फ़ैज़ याफ्ता उलमा, फुकहा, मुफ़स्सिरीन, मुहद्दिसीन, मुतकल्लिमीन, व मुनाज़िरीन, मुहक़्क़िक़ीन, मुसन्निफीन, व मुअल्लिफ़ीन, मुकर्रिरीन, व मुदर्रिसीन, व फ़लासिफ़ा, शोआरा काज़ियाने अदालत, और मुफ्तियाने शरीअत, ज़माने के हर चैलेंज देने की पूरी सलाहीयत रखते हैं, और अपने अंदर ऐसी तवानाई और कुव्वत पाते हैं के जहाँ हों वहां एक जहान आबाद करते हैं, और आज तक आप का इल्मी फैज़ हिंदो पाक और उसकी सरहदों के पार भी फ़ज़ाओं को मुनव्वर कर रहा है।

आप के दरसी तलामिज़ा “शागिर्द”

हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के बेशुमार तलामिज़ा “शागिर्द” में चंद के अस्मा मुलाहिज़ा हों:
(1) मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान हज़रत मौलाना मुफ़्ती सरदार अहमद रज़वी गुरदास पुरी कुद्दीसा सिररुहु “बानी
जामिया रज़विया मज़हरे इस्लाम” फैसलाबाद पाकिस्तान,
(2) फकीहे अस्र मौलाना एजाज़ वली खान रज़वी बरेलवी कुद्दीसा सिररुहु “शैखुल हदीस जामिया नईमिया”
लाहौर पाकिस्तान,
(3) मुनाज़िरे आज़म हिन्द मुफ़्ती हशमत अली खान रज़वी पीली भीत कुद्दीसा सिररुहु बानी “दारुल उलूम
हश्मतुर रज़ा” पीलीभीत यूपी,
(4) उस्ताज़ुल उलमा मुफ़्ती अल हाज मुबीनुद्दीन रज़वी कुद्दीसा सिररुहु शैखुत तफ़्सीर “जामिया नईमिया”
मुरादाबाद यूपी,
(5) सदरुल उलमा मुहद्दिसे बरेलवी मुफ़्ती मुहम्मद तहसीन रज़ा खान कुद्दीसा सिररुहु शेखुल हदीस “जामिया
नूरिया रज़विया” बरैली शरीफ,
(6) फकीहे हिन्द मुफ़्ती मुहम्मद शरीफुल हक अमजदी कुद्दीसा सिररुहु सदर मुफ़्ती “जामिया अशरफिया
मुबारकपुर” आज़म गढ़,
(7) रेहाने मिल्लत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद रेहान रज़ा खान रज़वी कुद्दीसा सिररुहु मतवल्ली व मोहतमिम
“जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(8) फकीहे इस्लाम ताजुश्शरिया अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान अज़हरी रज़वी बरेलवी सदर मुफ़्ती
“मरकज़ी दारुल इफ्ता” बरैली शरीफ,
(9) नासिरे मिल्लत हज़रत अल्लामा मौलाना मुहम्मद खालिद अली खान रज़वी बरेलवी कुद्दीसा सिररुहु
मोहतमिम “जामिया रज़विया मज़हरे इसलाम” बरैली शरीफ,
(10) मुहद्दिसे कबीर हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद ज़ियाउल मुस्तफा रज़वी अमजदी शैखुल हदीस व सदरुल
मुदर्रिसीन “जामिया अशरफिया मुबारकपुर” आज़म गढ़,
(11) शैखुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद आज़म साहब रज़वी तांडवी शैखुल हदीस “जामिया रज़विया
मज़हरे इस्लाम” खतीबों इमाम नूरी मस्जिद जक्शन वाली बरैली शरीफ,
(12) उस्ताज़ुल उलमा हज़रत अल्लामा व मौलाना सय्यद मुहम्मद आरिफ रज़वी नानपारवी शैखुल हदीस
“जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(13) उम्दतुल मुदर्रिसीन मौलाना मुहम्मद नईमुल्लाह खान रज़वी बस्तवी सदरुल मुदर्रिसीन “जामिया रज़विया
“जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(14) मुबल्लिगे इस्लाम अल्लामा व मौलाना मुहम्मद इब्राहीम खुश्तर सिद्दीकी रज़वी कुद्दीसा सिररुहु बानी
सुन्नी रज़वी सोसाइटी मॉरीशस अफ्रीका,
(15) फाज़ले जलील अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद मंज़ूर अहमद फ़ैज़ी रज़वी कुद्दीसा सिररुहु बानी “मदरसा
मदीनतुल उलूम” बहावल पुर पाकिस्तान,
(16) फकीहे जलील हज़रत अल्लामा मुईनुद्दीन शाफ़ई कादरी कुद्दीसा सिररुहु नाज़िमे आला “जामिया कादिरिया
रज़विया” फैसलाबाद पाकिस्तान,
(17) शैखुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती गुलाम जिलानी घोस्वी शैखुल हदीस “जामिया रज़विया मज़हरे
इस्लाम” बरैली शरीफ यूपी,
(18) फकीहे मिल्लत हज़रत अल्लामा क़ाज़ी अब्दुर रहीम बस्तवी कुद्दीसा सिररुहु मुफ़्ती “मरकज़ी दारुल इफ्ता”
बरैली शरीफ,
(19) फकीहे जलील अल्लामा मुफ़्ती जलालुद्दीन अमजदी कुद्दीसा सिररुहु “दारुल उलूम फ़िज़ुर रसूल” बराऊँ
शरीफ यूपी,
(20) बदरुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती बदरुद्दीन रज़वी गोरखपुरी कुद्दीसा सिररुहु “सदर मुदर्रिस “मदरसा
गौसिया बढ़िया” ज़िला बस्ती,
(21) शैखुल हदीस मुफ़्ती मुहम्मद यूनुस नईमी कुद्दीसा सिररुहु सदरुल मुदर्रिसीन “दारुल उलूम फ़िज़ुर रसूल”
बराऊँ शरीफ यूपी,
(22) फाज़ले जलील हज़रत अल्लामा मुहम्मद हनीफ कादरी मुदर्रिस “दारुल उलूम फ़िज़ुर रसूल” बराऊँ शरीफ
यूपी, ज़िला बस्ती,
(23) फाज़ले शहीर हज़रत अल्लामा मुफ़्ती कुदरतुल्लाह रज़वी “दारुल उलूम फ़िज़ुर रसूल” बराऊँ शरीफ यूपी,
ज़िला बस्ती,
(24) फकीहे शहीर मुफ़्ती मुहम्मद मुतीउर रहमान रज़वी मुदीरे आम! किशन गंज बिहार,
(25) हज़रत अल्लामा लुत्फुल्लाह कुरैशी रज़वी अली गढ़ी खतीब शाही जामा मस्जिद व मुफ्तिए! शहर मथरा,
(26) हज़रत मौलाना नज़ीर अहमद रज़वी पंजाबी,
(27) हज़रत मौलाना मुहम्मद इस्माईल रज़वी पूरनपुरी,
(28) हज़रत मौलाना बिलाल अहमद रज़वी बिहारी मुदर्रिस “जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(29) हज़रत मौलाना अब्दुल खालिक नूरी बिहारी मुदर्रिस “जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(30) हज़रत मौलाना मुहम्मद हाशिम यूसफि बिहारी मुफ़्ती “दारुल इफ्ता “जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम”
बरैली शरीफ,
(31) मौलाना अब्दुल हमीद रज़वी अफ़्रीकी,
(32) मौलाना अहमद मुकद्दम रज़वी अफ़्रीकी,
(33) मौलाना मुहम्मद मियां रज़वी बरेलवी,
(34) हस्सानुल हिन्द हज़रत कारी मुहम्मद अमानत रसूल रज़वी कुद्दीसा सिररुहु पीलीभीत शरीफ,
(35) फकीरे नूरी हज़रत मुफ़्ती सय्यद शाहिद अली रज़वी रामपुरी शैखुल हदीस व नाज़िम “अल जामियातुल
इस्लामिया” रामपुर यूपी,

आप के दरसे इफ्ता! के तलामिज़ा “शागिर्द”

(1) मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान हज़रत मौलाना मुफ़्ती सरदार अहमद रज़वी गुरदास पुरी कुद्दीसा सिररुहु “बानी
जामिया रज़विया मज़हरे इस्लाम” फैसलाबाद पाकिस्तान,
(2) मुफ्तिए आज़म पाकिस्तान हज़रत अल्लामा अबुल बरकात सय्यद अहमद रज़वी शैखुल हदीस “दारुल
उलूम हिज़्बुल अहनाफ” लाहौर पाकिस्तान,
(3) अफ़्कहुल फुकहा हज़रत मुफ़्ती सय्यद अफ़ज़ल हुसैन रज़वी मोंगीरी कुद्दीसा सिररुहु शैखुल हदीस “जामिया
कादरिया रज़विया फैसलाबाद पाकिस्तान,
(4) आलमुल उलमा हज़रत मुफ़्ती अल हाज मुबीनुद्दीन रज़वी कुद्दीसा सिररुहु शैखुत तफ़्सीर “जामिया नईमिया”
मुरादाबाद यूपी,
(5) फकीहे अस्र मुफ़्ती मुहम्मद अहमद जहांगीर खान रज़वी आज़मी “जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” बरैली
शरीफ,
(6) शैखुल मुहद्दिसीन सदरुल उलमा मुफ़्ती तहसीन रज़ा खान कुद्दीसा सिररुहु शेखुल हदीस “जामिया नूरिया
रज़विया” बरैली शरीफ,
(7) फकीहे हिन्द मुफ़्ती मुहम्मद शरीफुल हक अमजदी कुद्दीसा सिररुहु सदर मुफ़्ती “जामिया अशरफिया
मुबारकपुर” आज़म गढ़,
(8) फकीहे इस्लाम ताजुश्शरिया अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद अख्तर रज़ा खान अज़हरी रज़वी बरेलवी सदर मुफ़्ती
“मरकज़ी दारुल इफ्ता” बरैली शरीफ,
(9) मुहद्दिसे कबीर हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद ज़ियाउल मुस्तफा रज़वी अमजदी शैखुल हदीस व सदरुल
मुदर्रिसीन “जामिया अशरफिया मुबारकपुर” आज़म गढ़,
(10) फकीहे मिल्लत हज़रत अल्लामा क़ाज़ी अब्दुर रहीम बस्तवी कुद्दीसा सिररुहु मुफ़्ती “मरकज़ी दारुल इफ्ता”
बरैली शरीफ,
(11) शैखुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती मुहम्मद आज़म रज़वी तांडवी शैखुल हदीस “जामिया रज़विया
मज़हरे इस्लाम” खतीबों इमाम
नूरी मस्जिद जक्शन वाली बरैली शरीफ,
(12) बहरुल उलूम हज़रत मुफ़्ती अब्दुल मन्नान आज़मी कुद्दीसा सिररुहु शैखुल हदीस व मुफ़्ती “शमशुल
उलूम” घोसी ज़िला आज़म गढ़,
(13) बुलबुले हिन्द हज़रत मुफ़्ती मुहम्मद रजब अली रज़वी कुद्दीसा सिररुहु नानपारा यूपी, बानी व
मोहतमिम “मदरसा अज़ीज़ुल उलूम, ज़िला बहराइच शरीफ यूपी,
(14) यादगारे सल्फ हज़रत मौलाना मुहम्मद हबीब रज़ा खान रज़वी कुद्दीसा सिररुहु “नाज़िमे इदारा सुन्नी
दुनिया” बरैली शरीफ,
(15) फाज़ले जलील हज़रत मुफ़्ती अबरार हुसैन सिद्दीकी तिलहर, मुफ़्ती जमाअत रज़ाए मुस्तफा व मुदीरे आला
माह नामा यादगारे रज़ा बरैली शरीफ,
(16) शैखुल उलमा मुफ़्ती गुलाम जिलानी घोस्वी शैखुल हदीस “जामिया रज़विया मज़हरे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(17) उस्ताज़ुल उलमा हज़रत मुफ़्ती ख़्वाजा मुज़फ्फर हुसैन रज़वी पूरनपुरी शैखुल माकुलात “दारुल उलूम
फ़िज़ुर रसूल” बराऊँ शरीफ यूपी, ज़िला बस्ती,
(18) शैखुल हदीस मौलाना गुलाम यज़दानी घोस्वी सदर मुदर्रिस “जामिया रज़विया मज़हरे इस्लाम” बरैली
शरीफ,
(19) हज़रत अल्लामा गुलाम मुहम्मद यासीन रशीदी पूरनपुरी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी,
(20) मौलाना मुईनुद्दीन खान आज़मी मुदर्रिस “जामिया रज़विया मज़हरे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(21) मुफ़्ती मुहम्मद ताहिर हुसैन अशरफी मुफ़्ती “रज़वी दारुल इफ्ता” बरैली शरीफ,
(22) मुफ़्ती मुहम्मद मुतीउर रहमान रज़वी बिहारी “मुदीरे आम” “अल इदारतुल हनफ़िया” किशन गंज बिहार,
(23) मौलाना हसन मंज़र कदीरी फाज़ले “जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(24) मौलाना अब्दुल हमीद रज़वी दीनाजपुरी बिहार,
(25) मुफ़्ती मुहम्मद सालेह रज़वी मुदर्रिस “जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(26) मौलाना मुजीबुल इस्लाम नसीम आज़मी मुदर्रिस “जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(27) मौलाना मुज़फ्फर हुसैन ग़ाज़ीपुरी कराची पाकिस्तान,
(28) मुफ़्ती रियाज़ अहमद सीवानी नाइब मुफ़्ती “जामिया रज़विया मन्ज़रे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(29) मुफ़्ती जलालुद्दीन कादरी टांडा ज़िला फैज़ाबाद यूपी,
(30) मुफ़्ती अब्दुल गफूर बिहारी मुदर्रिस “जामिया रज़विया मज़हरे इस्लाम” बरैली शरीफ,
(31) मौलाना मुहम्मद अनवर रज़वी टानडवी मुफ़्ती “रज़वी दारुल इफ्ता” बरैली शरीफ,
(32) मौलाना रईसुद्दीन रज़वी पूरनपुरी मुदर्रिस “जामिया रज़विया मज़हरे इस्लाम” बरैली शरीफ,

हज़रत का “तारीखी फतवा”

अब आइए हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह को मुफ्तिए आज़म व आलम! कहे जाने के सुबूत में मुन्दर्जा ज़ैल वाक़िआ मुलाहिज़ा फरमाएं: जज़ल अय्यूब खान! के दौर में पाकिस्तान में हुकूमत की तरफ से एक रुईयते हिलाल कमेटी! क़ाइम की गई थी, जिस के उहदे दरान ईद व बकरा ईद के मोके पर ख़ास तौर से मशरिक़ी व मगरिबी पाकिस्तान में जहाज़ के ज़रिए चाँद देखने का एहतिमाम करते थे, और फिर इन की तस्दीक पर हुकूमत की जानिब से मुल्क में रुईयते हिलाल कमेटी का ऐलान किया जाता था, एक बार ईद के मोके पर 29, रमज़ानुल मुबारक को इस रुईयते हिलाल कमेटी के अफ़राद हवाई जहाज़ के ज़रिए चाँद देखने को उड़े, मशरिक़ी पाकिस्तान से, मगरिबी पाकिस्तान जाते हुए उन्हें चाँद नज़र आ गया और इन्होने इस की खबर हुकूमत को दे दी और फिर हुकूमत की जानिब से रुईयते हिलाल कमेटी! का ऐलान कर दिया गया मगर पाकिस्तान के सुन्नी उल्माए किराम! ने इस को नहीं माना, और उन्होंने दुनिया के तमाम इस्लामी ममालिक जैसे मुल्के शाम, उर्दन, जॉर्डन, सऊदी अरब, मिस्र वगेरा के मुफ्तियाने किराम से इस सिलसिले में फतवा मांगा और एक इस्तिफता! हज़रत मुफ्तिए आज़म हिन्द मुस्तफा रज़ा नूरी रहमतुल्लाह अलैह के पास बरैली शरीफ भी रवाना किया, तकरीबन दुनिया के सभी मुफ्तियाने किराम ने रुईयते हिलाल कमेटी! पाकिस्तान की ताईद की मगर इल्मो फ़ज़्ल के ताजदारे मुफ्तिए आज़मे आलम मुस्तफा रज़ा खान नूरी रहमतुल्लाह अलैह ने इसे नहीं माना और अपना फतवा दिया के जिस का मज़मून इस तरह है:

चाँद देख कर रोज़ा रखने और ईद करने का शरई हुक्म है और जहाँ चाँद नज़र ना आए वहां शरई शहादत पर काज़िए शरआ! हुक्म देगा, चंद को सतेह ज़मीन या ऐसी जगह से के जो ज़मीन से मिली हुई हो वहां से देखना चाहिए ये गलत है, क्यों के चंद गुरुब होता है फना, नहीं होता, इस लिए कहीं 29, को कहीं 30, को नज़र आता है और अगर जहाज़ उड़ाकर चाँद देखना शर्त है तो और बुलंदी पर जाने के बाद 27, और 28, तारीख को भी नज़र आ सकता है तो क्या 27, और 28, तारीख को भी चाँद का हुक्म दिया जाएगा और ना ही कोई अक्लमंद इस का ऐतिबार करेगा, ऐसी हालत पर जहाज़ पर 29, को चाँद देखना कब मुअतबर होगा? हज़रत मुफ्तिए आज़मे आलम मुस्तफा रज़ा खान नूरी रहमतुल्लाह अलैह के इस जवाब को पाकिस्तान के हर जली सुर्ख़ियों! के साथ शाए (छापना) किया गया और इस फतवे को पाकिस्तान मे जाने के बाद अगले महीने मे 27, और 28, तारीख को हुकूमत की जानिब से जहाज़ के ज़रिए इस बात की तस्दीक कराइ गई तो बुलंदी पर परवाज़ करने पर चाँद नज़र आया, तब हुकूमत ने हुज़ूर मुफ्तिए आज़म! के फतवे को तस्लीम कर के रुईयते हिलाल कमेटी! तोड़ दी और दुनिया के तमाम मुफ्तियाने किराम ने आप की बारगाहे इल्मो फ़ज़्ल मे सरे अकीदत ख़म कर दिया, आप ने अपनी उमर शरीफ मे कमो बेश “पचास हज़ार फतावे” सादिर फरमाए, आप के इल्मे फ़िक़्ह को बड़े बड़े उल्माए किराम ने तस्लीम किया है और आप की अबक़री शख्सीयत का ऐतिराफ़ किया है,

चुनांचे हुज़ूर शमशुल उलमा हज़रत अल्लामा मुफ़्ती शमशुद्दीन जाफरी रज़वी जौनपुरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के: इल्मे फ़िक़्ह का इतना बड़ा माहिर इस ज़माने मे कोई दूसरा नहीं है, मे उन की खिदमत मे जब हाज़िर होता हूँ तो सर झुका कर बैठा रहता हूँ और ख़ामोशी के साथ उन की बातें सुनता हूँ उन से ज़ियादा बात करने की हिम्मत नहीं पड़ती।

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • मुफ्तिए आज़म हिन्द और उनके खफा
  • तज़किराए उल्माए अहले सुन्नत
  • मुफ्तिए आज़म हिन्द
  • जहाने मुफ्तिए आज़म हिन्द
  • अखबार दब दाए सिकन्दरी 22, मई 1911, ईस्वी
  • तारीखे मशाईखे कादिरिया
  • हयाते मुफ़्ती आज़म हिन्द
  • मुफ़्ती आज़म हिन्द नंबर इस्तेक़ामत कानपुर मई 1983, ईस्वी
  • हयाते मुफ़्ती आज़म की एक झलक

Share this post