सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी

सरकार आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी रदियल्लाहु अन्हु की ज़िन्दगी (पार्ट- 4)

कर अता अहमद रज़ाए अहमदे मुरसल मुझे
मेरे मौलाना हज़रते अहमद रज़ा के वास्त

“मामूलाते आला हज़रत”

हम फतवा नहीं बेचते

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की बारगाह में सवालात बहुत कसरत से आते थे, एक मोके पर किसी साइल ने कुछ इस तरह लिख दिया के जवाब की जो कुछ फीस होगी अदा की जाएगी, असल मसले का जवाब देने के बाद आप तहरीर फरमाते हैं, यहाँ बी हम्दिहि तआला फतवे पर कोई फीस नहीं ली जाती, बी फ़ज़्लीही तआला तमाम हिंदुस्तान और दूसरे ममालिक चीन, व अफ्रीका, व अमरीका, व खुद अरब शरीफ, व ईराक, से इस्तफ्ता आते हैं और एक वक़्त में चार चार सो फतावा जमा हो जाते हैं, बी हम्दिहि तआला हज़रते जद्दे अमजद कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के वक़्त से इस 1337, हिजरी तक इस दरवाज़े से फतवे जारी होते हुए 91, साल हुए हैं, और खुद इस फ़क़ीर के कलम से फतवा देते हुए 51, साल होने आए हैं, यानि इस सफर की 14, तारिख को 50, साल 6, महीने गुज़रे, इस नो कम सो साल में कितने हज़ार फतवे लिखे गए, 12, बारह तो मुजल्द्द तो सिर्फ फ़क़ीर के फतावा के हैं, बी हम्दिहि तआला यहाँ कभी एक पैसा न लिया गया न लिया जाएगा।

में इल्म नहीं बेचता

एक बार आप को मिटटी के तेल की ज़रूरत दर पेश हुई तो जहांगीर खान रज़वी “तेल बेचने वाले” से फ़रमाया के मुझ को एक पीपा (लोहे की टीन का कनस्तर) मिटटी के तेल की हाजत है, चुनांचे जहांगीर साहब ने एक पीपा मिटटी का तेल ला कर हाज़िर कर दिया, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने फ़रमाया इस की कीमत क्या है?, तो अर्ज़ किया हुज़ूर! वैसे तो इसकी कीमत इतनी है मगर आप कम कर के इतनी अता फरमाएं, इस पर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने फ़रमाया: नहीं जो कीमत अवाम से लेते हो व्ही मुझ से लो इस पर उन्होंने अर्ज़ की हुज़ूर! आप मेरे बुज़रुग हैं, आलिम हैं, आप से भला आम भाव कैसे लूँ, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने फ़रमाया “में इल्म नहीं बेचता” और फिर वही कीमत अता फ़रमाई।

तुम फाम नहीं कर सकते

एक मर्तबा शाम के वक़्त हस्बे मामूल पान लाने में देर हो गई, काफी देर में एक बच्चा पान ले कर हाज़िर हुआ, रमज़ानुल मुबारक का महीना और तकरीबन मगरिब के बाद दो घंटे हो चुके थे और आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! इफ्तार के बाद सिर्फ पान ही पर इक्तिफा फरमाते थे, लाने वाले बच्चे से फ़रमाया: “इतनी देर में क्यों लाया और उस को एक थप्पड़ रसीद कर दिया” वाकिअ तो गुज़र गया मगर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी! ने बाद में सोचा के में ने गलती की के इस बच्चे को एक चपत रसीद कर दी, लिहाज़ा रहा ना गया और सहरी के वक़्त बच्चे को बुलाया और फ़रमाया शाम को में ने तुम्हें थप्पड़ मारा था, हालांके कुसूर तुम्हारा नही भेजने वाले का था, लिहाज़ा अब इस गलती की माफ़ी इस तरह होगी के तुम भी मेरे सर पर थप्पड़ मारो और सर से टोपी उतार कर ज़िद फरमाने लगे, हाज़रीन ये तमाशा देख कर हैरान और परेशान हो गए, बच्चा भी हैरत में पड़ गया और अर्ज़ क्या हुज़ूर! में ने मुआफ किया, इस पर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने फ़रमाया “तुम नाबालिग हो तुम्हें मुआफ करने क्या हक? तुम थप्पड़ मारो” मगर बच्चा न मार सका, उस के बाद आपने पैसों वाला बॉक्स निकाल कर उस में से मुठ्ठी भर कर पैसे निकाले और फ़रमाया में तुम को ये इतने पैसे दूंगा तुम थप्पड़ मारो, मगर वो बच्चा कहता रहा हुज़ूर! में ने मुआफ किया, आखिर कार आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने ये देखा के ये बदला नहीं ले रहा है तो उस का हाथ पकड़ कर अपने सर मुबारक पर बहुत से थप्पड़ मारें और फिर उस बच्चे को पैसे दे कर रुखसत किया, अल्लाहु अकबर! क्या ही ख़ौफ़े आख़िरत है।

परदे के पीछे बिठा थे

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की बारगाह में जब कोई औरत मुरीद होने के लिए आती, परदे के उस पार उसे बिठा ते और बजाए हाथ में हाथ लेने के कपड़ा रुमाल मुबारक बढ़ा देते, उस का एक सिरा वो औरत पकड़ती और दूसरा आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के दस्ते मुबारक में होता और कल्माते तय्यबा तलकीन फरमाते।


आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने मुसाफा नहीं किया

इस सिलसिले में आप इस दर्जा मुहतात थे के दूसरों के लिए भी इस बात को पसंद ना करते के वो बे हिजाब बे पर्दा औरतों से मुरीद करें चुनांचे: एक मर्तबा आप पीली भीत शरीफ के मश्हूरो मारूफ बुज़रुग हज़रत शैख़ शाह जी मुहम्मद शेर मियां! रहमतुल्लाह अलैह से मिलने हज़रत मुहद्दिसे सूरति रहमतुल्लाह अलैह के हमराह (साथ) तशरीफ़ ले गए, देखा के हज़रत शाह जी मुहम्मद शेर मियां! रहमतुल्लाह अलैह बे हिजाब बे पर्दा औरतों को मुरीद कर रहें हैं, एहकामे शरआ पर कमाल गैरत के बाइस आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! बगैर मुलाकात किए वापस आ गए, कोई दूसरा होता तो बिगड़ जाता मगर शाह जी मियां! साहब की बे नफ्सि व हक पसंदी का कमाल इस तरह जलवागर हुआ के शाम को स्टेशन तक छोड़ने के लिए खुद तशरीफ़ लाए आला हज़रत! को और बे हिजाबाना मुरीद करने पर इज़हारे अफ़सोस के साथ कहा: मौलाना! अब आइंदा में औरतों को परदे के साथ में ही मुरीद करूंगा इस के बाद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने उन से मुसाफा किया और मुआनका यानि गले से लगा लिया।

लोगों की बात को सच्चा कर दिया

किसी ने आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के पास खत लिखा तो उस में दीगर अल काबो आदाब के साथ “हाफ़िज़” भी लिख दिया, उस वक़्त आप हाफिज़े कुरआन ना थे, अगरचे तमाम ही आयाते मुबारिका आप के ज़बानो कलम पर रहा करती और हस्बे ज़रूरत उन से इस्तदलाल व इस्तमबात भी करते हज़रत शेर बेशए अहले सुन्नत मौलाना हशमत अली खान कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी (शागिरदे आला हज़रत) 29, शअबानुल मुअज़्ज़म 1337, हिजरी का अपना ऐनी मुशाहिदा बयान करते हैं के:

एक खत में आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी अपने अलक़ाबात के साथ “हाफ़िज़” देख कर आबदीदा हो गए और ख़ौफ़े खुदा से दिल काँप उठा और फ़रमाया में इस बात से डरता हूँ के मेरा हश्र उन लोगों में न हो जिन के बारे में अल्लाह पाक कुरआन मजीद में फरमाता है, तर्जुमा कंज़ुल ईमान: वो उसे पसंद करते हैं के उन की ऐसी खूबियां बयान की जाएं जो उन में नहीं, इस वाकिए के बाद आप ने कुरआन शरीफ हिफ़्ज़ करने का अज़्मे मुसम्मम कर लिया और रोज़ाना इशा का वुज़ू फरमाने के बाद जमात होने से पहले बस इस तरह याद करते के कोई एक पारा या ज़ियादा आप को सुना देता आप बागोर सुनते फिर आप उसे वही पारा सुना देते 20, शअबानुल मुअज़्ज़म को शुरू किया और 27, रमज़ानुल मुबारक तक पूरा कुरआन हिफ़्ज़ कर लिया और तरावीह में सुना भी दिया।

“हयाते आला हज़रत” में है के आप ने एक मोके पे इरशद फ़रमाया: मेने कुरआन शरीफ बा तरतीब बा कोशिश याद कर लिया और ये इस लिए के इन बन्दगाने खुदा का जो मेरे नाम के आगे हाफ़िज़ लिख दिया करते हैं कहना गलत साबित न हो।

ये उलटी नज़र कैसी

हामिद अली खान नवाब रामपुर से हज़रत सय्यद शाह मेहदी हसन मियां सज्जादा नशीन मारहरा शरीफ के मरासिम तअल्लुक़ात थे, एक बार इन होने चाहा के आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी से नवाब साहब! की मुलाकात कराऊँ चुनांचे एक बार नवाब साहब! हज़रत सय्यद शाह मेहदी हसन मियां कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के साथ रामपुर से बा रास्ता बरेली नैनीताल जा रहे थे, इसपेशल ट्रेन से बरेली शरीफ पहुंचे तो हज़रत सय्यद शाह मेहदी हसन मियां कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने अपने नाम से ढेड़ हज़ार रूपए मदारुल मुहाम (यानि हाकिम सरबराह) की मारफअत बातौरे नज़र स्टेशन से आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की खिदमत में भेजे और वालिए रियासत नवाब हामिद अली साहब! को मुलाकात का मौका दिया जाए, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! को मदारुल मुहाम (यानि हाकिम सरबराह) के आने की खबर हुई तो अंदर से दरवाज़े की चौखट पर खड़े खड़े मदारुल मुहाम (यानि हाकिम सरबराह) साहब से फ़रमाया, के मियां साहब! को मेरा सलाम अर्ज़ कर दीजिये और ये कहना के “ये उलटी नज़र कैसी” मुझे मियां की खिदमत में नज़र पेश करनी चाहिए ना के मियां मुझे नज़र पेश करें, ये डेढ़ हज़ार हो या जितने हो ले जाओ फ़क़ीर का मकान ना इस काबिल के किसी हाकिम को बुला सकूं, न में हाकिमो के आदाब से वाकिफ के खुद जा सकूं, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के इस्तिगना आलिमाना शान, वा वकार और दीन परवरी का खुला सुबूत है, ये शिद्दत नहीं बल्के खालिस शरीअत की पैरवी है और हमारे अस्लाफ का यही मामूल रहा है के सलातीन हुक्काम, उमरा दौलत सरवत से दूर रहा करते थे, तारिख के सफ़हात पर सैंकड़ों मिसालें मौजूद हैं।

उर्स में शिरकत ना फ़रमाई

एक बार हज़रत सय्यद शाह मेंहदी हसन मियां सज्जादा नशीन मारहरा शरीफ सरकारे मारहरा मुक़द्दसा के उर्स की दावत दी, आपने फ़रमाया में खुद ही इरादा कर रहा था के बहुत अरसा से हाज़री भी नहीं हुई है, ये खबर मशहूर होते ही लोग भी तय्यार होने लगे, सय्यद शाह मेंहदी हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह ने इधर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी को दावत दी उधर नवाब हामिद अली खान रियासते रामपुर (जो मुआतकीदीन में से थे) को भी दावत दी चूंके नवाब साहब बरसों से आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की ज़ियारत व मुलाकात के मुश्ताक थे इस लिए ये सूरत निकाली गई के उर्स शरीफ के मोके पर मुलाकात हो जाएगी, नवाब साहब ने फ़ौरन दावत मंज़ूर करली और इज़हारे नियाज़मन्दी व खुश ऐति कादी के लिए बहुत कुछ साज़ो सामान मारहरा शरीफ पहुंचाया, जक्शन से ले कर आबादी तक दोनों जानिब रौशनी का इंतिज़ाम किया गया अच्छी तरह, और हर ट्रेन पर ज़ाईरीन के लिए रियासते रामपुर की तरफ से मोटर और एक हाथी सजा कर गश्त लगा रहे थे, नवाब साहब का पिरोगराम था के जिस वक़्त आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! बरेली से रवाना होंगें उसी वक़्त में भी खास सवारी से रवाना हो जाऊँगा, सय्यद शाह मेंहदी हसन मियां रहमतुल्लाह अलैह ने मज़ीद इत्मीनान के लिए एक अरीज़ा आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की बारगाह में लिख कर भेजा और उस में आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की अदमे शिरकत की खबर का ज़िक्र किया, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के पास जिस वक़्त ये खत पंहुचा तो चेहरे पर जलाल के आसार नुमाया हो गए, और फ़रमाया में जनता हूँ! के मियां साहब ने किस मकसद से ऐसा खत मेरे पास लिखा है, सिर्फ इस लिए के में जोश में आ कर ये लिख दूँ के ये किसी ने गलत उड़ाया है, में ज़रूर आऊँगा, मुझ से रजिस्टिरि करानी मक़सूद है ताके नवाब साहब को दिखने के लिए दलील हो जाए, मियां समझते हैं के में इस चार दीवारी के अंदर बैठा हूँ, उसे क्या खबर हालांके मेरे खबर देने वालों ने ज़र्रा ज़र्रा की खबर दी है, में जनता हूँ मेरी रवानगी होते ही नवाब का स्पेशल भी रवाना हो जाएगा जो बिलकुल तय्यार खड़ा है बिला आखिर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी ने उस उर्स में शिरकत नहीं की, अल्लाह अल्लाह! ये है इमामे अहले सुन्नत की शान के नवाबों की भी परवा न फ़रमाई, ये तो खेर नवाब साहब! थे आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की बारगाह में एक मर्तबा हिन्दू लीडर गाँधी ने मुलाकात करना चाही तो आप ने उस को भी मिलने से इंकार कर दिया।

मेरा दीन पाराऐ नान नहीं

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के दौर में नवाबों के कसीदह पढ़ने का रिवाज था, बहुत से अहले इल्म इसी को ज़रियाए मआश बनाए हुए थे लेकिन आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने ये ज़मीर फरोशी कभी नहीं की और नाही किसी दुनिया दार की तारीफ या तौसीफ, मदाह व सताइश से अपनी ज़बान को आलूदह किया, एक बार नवाब रियासते “नान पारा” ने ख्वाइश भी की के मौलाना! मेरे सिलसिले में कोई मनकबत और कसीदह कहें, लेकिन आप ने सख्ती से ये अर्ज़ दाश्त ठुकरादि और उस के जवाब में एक नात शरीफ लिखी जिस का मत्लअ ये है:

वो कमाल हुस्ने हुज़ूर है के गुमाने नक्से जहां नहीं यही

फूल खार से दूर है यही शमा है के धुँआ नहीं

और मक्ते में “नान पारा” की बंदिश बड़े लुत्फ़ इशारे में अता करते हुए इरशाद फ़रमाया:

करूँ मदहे अहले दुवल “रज़ा” पड़े इस बला में मिरि बला

में गदा हूँ अपने करीम का मेरा दीन पाराऐ नां नहीं

नान पारा रियासते नान पारा का नाम पाराऐ नान रोटी का टुकड़ा यानि मेरा दीन कोई रोटी का टुकड़ा नहीं ।

“आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की जूदो सखावत”


अपनी चादर भी देदी

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी कमाल दर्जे के सखी थे आप यतीमो बेवाओं और गुरबा व मसाकीन का माहवार वज़ीफ़े मुकर्रर कर रखे थे, सर्दी के मौसम में एक मर्तबा नन्नेह मियां (यानि आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के छोटे भाई मुहम्मद रज़ा खान साहब!) ने आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की खिदमत में एक चादर पेश की आला हज़रत! का मामूल था के सर्दियों में रजाईयां लिहाफ तय्यार करवाकर गरीबों में बांटते थे, उस वक़्त तक सब रजाईयां तकसीम हो चुकी थीं, के एक साहब ने आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! से रज़ाई की दरख्वास्त की तो आप ने नन्नेह मियां! साहब वाली चादर अपने ऊपर से उतार कर उसे अता कर दी।

इसे ओढ़ लीजिए

जनाब ज़काउल्लाह खान साहब (ख़ादिमें आला हज़रत) का बयान है के सर्दी का मौसम था, बाद नमाज़े मगरिब आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! हस्बे मामूल फाटक में तशरीफ़ ला कर सब लोगों को रुखसत कर रहे थे, खादिम को देख कर फ़रमाया: आप के पास रज़ाई नहीं है? में खामोश रहा उस वक़्त आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी जो रज़ाई ओढ़े हुए थे वो इस खादिम को दे कर फ़रमाया इसे ओढ़ लीजिए खादिम ने बसद अदब कदम बोसी की सआदत हासिल की और आप के फरमान पर अमल करते हुए वो रज़ाई ओढ़ली।

नई रज़ाई भी अता कर दी

इस वाकिए के दो तीन रोज़ बाद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के लिए नई रज़ाई तैयार हो कर आई, उसे ओढ़ते हुए अभी चंद दिन ही गुज़रे थे के एक रात मस्जिद में कोई मुसाफिर आया जिस ने हुज़ूर से अर्ज़ की के मेरे पास ओढ़ने के लिए कुछ नहीं है, आप ने वो नई रज़ाई! उस मुसाफिर को अता फरमा दी।

मेरी ख़ुशी इसी में है

एक साहब ने बहुत ही खूबसूरत एक चादर पार्सल के ज़रिए आप को भेजी, मौलवी अमजद रज़ा साहब का बयान है, जिस वक़्त वो पार्सल बरेली पंहुचा उस वक़्त में भी हाज़िरे खिदमत था सील मुहर जुदा करने के बाद पार्सल खुला और चादर निकाली, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी उस को देख कर बहुत खुश हुए और जितने लोग उस वक़्त काशानए अक़दस पर मौजूद थे सब ने पसंद किया और बहुत तारीफ की और वाकई चादर काबिले तारीफ थी, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने सब के इसरार से ओढ़ा और मुसैरी यानि चार पाई पर तशरीफ़ फरमा हुए के मेरी ज़बान से बे इख्तियार ये जुमला निकला, वाकई बहुत उम्दा चादर है, जवानो के लाइक है, ये सुनते ही आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने वो चादर मुझे अता फरमा दी के तुम इसे ओढ़ो हालांनके में ने इस मकसद से ये जुमला नहीं कहा था लेकिन आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने बा इसरार ज़िद कर के मुझे दे दी और इरशाद फ़रमाया के मेरी ख़ुशी इसी में है।

जो में मांगू अता फरमा देंगें

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब का बयान है के बारिश के मौसम में रात के वक़्त जनाब सय्यद महमूद खान साहब कादरी बरकाती नूरी रहमतुल्लाह अलैह हाज़िर हो कर अर्ज़ करते हैं, हुज़ूर! जो में मांगू अता कर देंगें? इरशाद फ़रमाया सय्यद साहब! अगर मेरे पास होगी तो ज़रूर हाज़िर करूंगा, सय्यद साहब! ने अर्ज़ किया के हुज़ूर! आप के मकान में है, फ़रमाया क्या चीज़ दरकार है? सय्यद साहब! ने अर्ज़ किया सिर्फ 22, गज़ कपड़ा कफ़न के लिए चाहता हूँ, चुनांचे सुबह बाज़ार खुलते ही 22, गज़ कफ़न का कपड़ा मंगवा कर सय्यद साहब की नज़र कर दिया,

वज़ीफ़े का संदूक या खज़ाना

आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी एक मर्तबा हज़रत मौलाना अब्दुस्सलाम रहमतुल्लाह अलैह की दावत पर “जबल पुर” तशरीफ़ ले गए हज़रत मौलाना अब्दुस्सलाम ने एक सफ़ेद चीनी की बड़ी प्याली में एक हज़ार रूपए रख कर बतौरे नज़र आप की खिदमत में पेश किया, जिसे आप ने क़ुबूल फरमाने के बाद अपने खादिम हाजी किफ़ायतुल्लाह साहब से इरशाद फ़रमाया: इसे रख लो मेरे वज़ीफ़े के संदूक को उठलाओ हाजी साहब वो संदूक उठा कर आप को पेश कर दिया, (ये वज़ीफ़े की संदूकची आप को अपने शैख़ से मिली थी जिसे बाद नमाज़े फजर पढ़ा करते थे और इस में ताला लगा रहता था और इस की चाबी आप के पास ही रहती थी इस में सिर्फ वज़ीफ़े के और कोई चीज़ नहीं रहती थी और ना ही इस में गुंजाइश थी) अब आप ने इस संदूकची को अपने सामने रख लिया और उस का ढक्कन थोड़ासा उठा कर अपना सीधा हाथ उसमे डालना शुरू किया और रूपए निकलते जाते और एक एक कर मौलाना! के मुलाज़मीन खादिमो को तकसीम करते रहे, इसी पर बस नहीं बल्के हज़रत मौलाना अब्दुस्सलाम की बहू, आप की अहलिया, और आप की बच्चियों, के लिए सोने के ज़ेवरात, बल्के सब से छोटे बच्चे के लिए सिला हुआ कुरता और टोपी, इसी संदूक से निकाल कर दिया, मौलाना हसनैन रज़ा कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं के ना सिर्फ हज़रत मौलाना अब्दुस्सलाम ही के अइज़्ज़ा के लिए खास खास सेठ साहिबान की बच्चियों के लिए भी काफी सोने के ज़ेवरात, आप ने इसी संदूक से निकाल कर अता फरमाए, हम सब हैरान थे के ये जेवरात कब आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने खरीदों और कब इस संदूक ची में रखे! ये वाक़िआ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी की सेर चश्मी की दलील है और सखावत की रौशनी है उसी तरह “बय्यन करामत” का भी सुबूत है, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की सखावत गुरबा परवरी गिरदोह नवाह में मशहूर थी, इस बारे में हज़रत मौलाना बदरुद्दीन अहम्म्द कादरी रज़वी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी फरमाते हैं, के आप के मकान मुबारक से कोई साइल खाली हाथ वापस ना जाता, बेवाओं की इमदाद और ज़रूरत मंदों की हाजत रवाई के लिए आप की तरफ से महीने पर वज़ीफ़े मुकर्रर थे और ये इमदाद सिर्फ मकामी लोगों के लिए ही ना थी बल्के बाहर से बा ज़रिए मनी आडर भी इमदाद करते।

आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु और एक जादूगर

जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब का बयान है के एक बार सय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी मस्जिद में तशरीफ़ ला रहे थे, देखा के एक जादूगर के पास लोगों का मजमा है और जादूगर पानी से भरा हुआ प्याला एक डोरे का सिरा डाल कर उसे उठा रहा था, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने अपना जूता उतार कर उस के सामने डाल दिया और फ़रमाया: इस को तू लोट उठा दे भला वो क्या टस से मस करता, आखिर पहिन कर आप घर तशरीफ़ लाए,

यही वाकिअ कुछ तफ्सील के साथ किताब “तजल्लियाते इमाम अहमद रज़ा” में है, हज़रत शाह माना मियां रहमतुल्लाह अलैह! का बयान है के एक बार मेरे पेरो मुर्शिद आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी अपनी मस्जिद से नमाज़ पढ़ कर तशरीफ़ ला रहे थे के मुहल्लाह सोदगिरान की गली में लोगों की भीड़ देखि, आप ने मालूम किया ये भीड़ कैसी? तो बताया गया के एक गैर मुस्लिम जादूगर अपना जादू दिखा रहा है, तीन चार किलो पानी से भरा हुआ बर्तन कच्चे धागे से उठा रहा है, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! भी इस मजमे की तरफ बड़े और जादूगर से फरमाने लगे हमने सुना है तीन चार किलो पानी से भरा हुआ बर्तन कच्चे धागे से उठा लेते हो, उसने कहा जी हाँ, आप ने इरशाद फ़रमाया कोई और चीज़ भी उठा सकते हो? उसने कहा लाओ जो चीज़ आप दें उठा सकता हूँ, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने अपने जूते को अपने पैर से निकालते हुए आप ने फ़रमाया इस को उठाना तो दूर की बात अपनी जगह से हटा दो तो बड़ी बात है, जादूगर ने बहुत कोशिश की लेकिन वो इस नालेंन मुकद्द्स को अपनी जगह से हिला नहीं सका, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने फ़रमाया अच्छा बर्तन ही को अब उठा कर दिखा दो, अब जो उस ने बर्तन को उठाना चाहा तो बर्तन भी नहीं उठ सका, वो जादू गर इस करामत को देख कर आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के कदमो में गिर पड़ा और कलमा शरीफ पढ़ कर मुशर्रफ बा इस्लाम हो गया आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की बारगाह से रूहानियत की दौलते उज़्मा लेकर वापस हुआ।

रहज़न डाकू आप के कदमो पर

1323, हिजरी का वाक़िआ है के हज़रत मौलाना शाह वसी अहमद मुहद्दिसे सूरति पीली भीती कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के साहबज़ादे हज़रत मौलाना अल हाज अब्दुल अहद साहब पीली भीति की शादी “गंज मुरादाबा शरीफ” (कानपुर के पास ये उन्नाओ ज़िले में है) में हज़रत सय्यदना शैख़ मौलाना फज़लुर रहमान रहमतुल्लाह अलैह गंज मुरादाबादी की नवासी यानि मौलाना अब्दुल करीम! की साहबज़ादी “हमीदाह खातून” से हुई, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी भी इस बरात में तशरीफ़ फरमा थे, वापसी पर आप रुखसत हो कर उस ज़माने के रेलवे स्टेशन “माधू गंज” (जो के गंज मुरादाबाद से काफी दूर था) जाने के लिए रवाना हुए, स्टेशन से तीन मील पहले ही मगरिब का वक़्त हो गया, सब ने नमाज़े मगरिब आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की इक़्तिदा में जमात के साथ अदा की, जंगल का रास्ता और करीब का गाऊं डाकुओं की बस्ती मशहूर थी, उस गाऊं के एक शख्स ने आ कर ये इत्तिला दी के बारात वापस “गंज मुरादाबाद” ले जाइए के रात हो चुकी है, रास्ता खतरनाक है, और ये करीब का गाऊं तो डाकुओं का गाऊं मशहूर है, में हज़रत सय्यदना शैख़ मौलाना फज़लुर रहमान रहमतुल्लाह अलैह गंज मुरादाबादी का मुरीद हूँ और ये बरात चूंके वहीं से आ रही है, इस नाते से में ये मश्वरा दे रहा हूँ,

हुज़ूर मुहद्दिसे सूरति पीली भीति रहमतुल्लाह अलैह ने आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! से अर्ज़ की अब आप जो हुक्म फरमाएं वो किया जाए, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने इरशाद फ़रमाया: “अल्लाह और उस के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हमारी मदद फरमाएं गें, आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के हुक्म से बरात स्टेशन की तरफ चलदी, कुछ ही फासले पर के बाद सामने से मुसल्लह डाकुओं का एक गिरोह आता हुआ दिखाई दिया, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने इरशाद फ़रमाया: “हस्बुनाल्लाहू व नेमल वकील” और बारात को वहीं रोका कर आप खुद डाकुओं की तरफ चल दिए डाकुओं ने जब आप को अपनी तरफ आते हुए देखा तो वो सब वहीं रुक गए, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! उन के करीब जा कर डाकओं से फ़रमाया: ऐ रहज़नो डाकुओं! हम तुम्हारे इलाके एक बुज़रुग की नवासी को निकाह कर के ले जा रहे हैं, तुम्हारा तो ये काम होना चाहिए था, के इस बरात को स्टेशन तक पहुंचाने में रहबरी करते ना के रहज़नी, क्या ऐसी हालत में तुम बारात को लूटना अच्छा समझते हो, अल्लाह पाक के खौफ से डरो और अपने रब के हुज़ूर तौबा करो और उस वक़्त को गनीमत जानो, “अल्लाह पाक तुम्हें सीधे रास्ते की हिदायत अता फरमाएं” आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के इस फरमान का डाकुओं पर खास असर हुआ और सब डाकुओं पर इस शेरे हक का रुआब छा गया और उन सब पर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की करामत से लरज़ा तारी हो गया और सब के सब उसी वक़्त अपने नापाक ख्याल से बाज़ आए और माफ़ी चाहि और अल्लाह पाक की तौफीक से सभी डाकुओं ने आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा फाज़ले बरेलवी के हाथ पर तौबा की जिन की तादाद चालीस थी और सब ने दाखिले सिलसिला आलिया रज़विया होने का शरफ़ हासिल किया, (ये वाकिया हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के उस वाकिए को याद दिलाता है जिस में चालीस डाकुओं ने हुज़ूर गौसे आज़म रदियल्लाहु अन्हु के दस्ते हक परस्त पर तौबा की)।

रेफरेन्स हवाला

  • तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
  • सवानेह आला हज़रत
  • सीरते आला हज़रत
  • तज़किराए खानदाने आला हज़रत
  • तजल्लियाते इमाम अहमद रज़ा
  • हयाते आला हज़रत अज़
  • फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में
  • इमाम अहमद रज़ा अरबाबे इल्मो दानिश की नज़र में
  • फ़ैज़ाने आला हज़रत
  • हयाते मौलाना अहमद रज़ा बरेलवी
  • इमाम अहमद रज़ा रद्दे बिदअतो व मुन्किरात
  • इमाम अहमद रज़ा और तसव्वुफ़

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