हामिदो महमूद और हम्माद अहमद कर मुझे
सय्यदी हामिद रज़ाए मुस्तफा के वास्ते
विलादत शरीफ
आप की विलादत बा सआदत सूबा उत्तर प्रदेश के शहर ज़िला बरैली शरीफ में माहे रबीउल अव्वल 1292, हिजरी मुताबिक 1875, ईसवी में हुई।
इस्मे मुबारक व लक़ब
“अकीके” में आप का नाम हस्बे दस्तूर खानदानी “मुहम्मद” रखा गया, जिन के आदाद 92, हैं, और यही नाम आप का तारीखी हो गया और उर्फ़ी नाम “हामिद रज़ा” और लक़ब “हुज्जतुल इस्लाम” और आप हुज्जतुल इस्लाम के नाम से ही ज़ियादा मशहूर हैं।
तालीमों तरबीयत
आप की तालीम व तरबीयत आग़ोशे वालिद माजिद इमामे अहले सुन्नत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी में हुई वालिद माजिद आप से बड़ी मुहब्बत फरमाते और इरशाद फरमाते के “हामिदुम मिन्नी व अना मिन हामिद” जुमला उलूमो फुनून आप ने अपने वालिद माजिद से पढ़े, यहाँ तक के: इल्मे हदीस, इल्मे तफ़्सीर, इल्मे फ़िक़्ह व क़ुतुब, मअक़ूल व मन्क़ूल को पढ़ कर सिर्फ उन्नीस 19, साल की उमर शरीफ में फ़ारिगुत तहसील हो कर माहिर जय्यद आलिम, फ़ाज़िल, मुफ़्ती, मुहद्दिस, शैख़े तरीकत बन गए।
बैअतो खिलाफत
आप मुरीद व खलीफा हैं, हज़रत सिराजुस्सालिकींन सय्यद शाह अबुल हुसैन अहमदे नूरी मारहरवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी थे! और आप के वालिद माजिद सय्यदी सरकार आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! से भी आप को खिलाफत व इजाज़त हासिल थी।
आप के फ़ज़ाइलो कमाल
रईसुल उलमा, ताजुल अतकिया, आफ़ताबे शरीअतो तरीकत, शैखुल मुहद्दिसीन, रासुल मुफ़स्सिरीन, मुफक्किरे इस्लाम, आलिमे उलूमे इस्लाम, हज़रत अल्लामा अश्शाह हुज्जतुल इस्लाम मौलाना अल हाज कारी मुहम्मद हामिद रज़ा खान कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! आप सिलसिलाये आलिया कादिरिया रज़विया के चालीसवे इमाम व शैख़े तरीकत हैं! आप खलफ़े अकबर इमामे अहले सुन्नत शैखुल इस्लाम वल मुस्लीमीन सय्यदी सरकार आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के हैं, आप अपने वालिद माजिद की तमाम खूबियों के जामे थे, आप की शख्सीयत व हक्कानियत इस्लाम की बोलती तस्वीर थी, अक्सर गैर मुस्लिम आप के चेहरए अनवर को देख कर हल्का बगोशे इस्लाम हुए, हुस्ने ज़ाहिरी का ये आलम था के एक नज़र में देखने वाला पुकार उठता के “हाज़ा हुज्जतुल इस्लाम” (ये इस्लाम की दलील हैं) और हरमैन तय्यबेन की हाज़री पर हज़रत शैख़ सय्यद हुसैन दब्बाग, और सय्यद मालकी तुरकी! ने आप की काबिलियत को खिराजे तहसीन पहेश करते हुए फ़रमाया,
हमने मुल्के हिंदुस्तान के अतराफो अक्नाफ में “हुज्जतुल इस्लाम” जैसा फसीहो बलीग़ नहीं देखा, आप कमालाते बातनि के जामे थे, अपने अहिद के लासानी और बे नज़ीर मुदर्रिस थे, हदीसो तफ़्सीर का दर्स खास तौर पर मशहूर था, और अरबी अदब में मुनफ़रिद हैसियत के मालिक थे, शेरो अदब का बहुत नाज़ुक और पाकीज़ा ज़ोक रखते थे, आप ने मसलके अहले सुन्नत व सिलसिलए आलिया कादरिया रज़विया की बे मिसाल खिदमात अंजाम दीं, और पूरी उमर और मुसलमानाने आलमें इस्लाम की फलाहो तरक्की में लगे रहे।
आदाते करीमा
आप अपने अस्लाफ बुज़ुर्गाने दीन, सूफ़ियाए किराम व आबाओ अजदाद के मुकम्मल नमूना थे, अख़लाक़ व आदात के जामे थे, आप जब बात करते तो तबस्सुम फरमाते हुए, लहजा इंतिहाई मुहब्बत अमेज़ होता, बुज़ुरगों का एहतिराम, छोटों पर शफकत फरमाते आप के तीनत! के जोहर नोमाया थे, हमेशा नज़रें नीची रखते, दुरुद शरीफ का अक्सर विर्द फरमाते यही वजह है के अक्सर नींद के आलम में भी दुरुद शरीफ पढ़ते देखा गया, आप की तबीयत इंतिहाई नफासत पसंद थी, चुनांचे आप का लिबास आप की नफासत का बेहतरीन नमूना होता था, अँगरेज़ और उसकी मुआशरत के आप अपने वालिद माजिद की तरह शदीद मुखालिफ रहे, और उस की मुखालिफत में नोमाया काम अंजाम दिए।
आजीज़िओ इंकिसारी
हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी उलूमो फुनून के शहंशाह ज़ोहदो तक्वा में यगाना और खिताबत के शहसवार थे, आप ने अपने अख़लाक़ो किरदार से अपने अस्लाफ का जो नमूना कोम के सामने छोड़ा है वो एक ऐनी शाहिद चश्म दीद की ज़बानी मुलाहिज़ा फरमाएं:
हज़रत शैखुद दलाइल मदनी रहमतुल्लाह अलैह इरशाद फरमाते हैं के “मौलाना हामिद रज़ा हुज्जतुल इस्लाम” नूरानी शक्लो सूरत वाले हैं मेरी इतनी इज़्ज़त करते के जब में मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा से उन के यहाँ गया तो कपड़ा ले कर मेरी जूतियां तक साफ़ करते अपने हाथ से खाना खिलाते, हर तरह खिदमत करते कुछ रोज़ क़याम (ठरना रुकना) करने के बाद जब में बरैली शरीफ से वापस मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा होने लगा तो हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने फ़रमाया: “मदीना मुनव्वरा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा” में सरकारे आज़म हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में मेरा सलाम अर्ज़ करना और:
अबतो मदीने ले बुला गुम्बदे सब्ज़ दे दिखा
“हामिदो” मुस्तफा तेरे हिन्द हैं में गुलाम दो
हुस्ने सीरत व अख़लाक़
जिस तरह हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी का चेहरा खूबसूरत था, इसी तरह उनका दिल भी हसीन था, वो हर एक से हसीन थे, सूरतो सीरत, अख़लाक़ो किरदार, गुफ़्तारो रफ़्तार, इल्मों फ़ज़्ल, ज़ोहदो तक्वा, सब हसीन व खूबसूरत, हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बुलंद पाया किरदार और पाकीज़ा अख़लाक़ के मालिक थे, मुतावज़ेह, ख़लीक़, खुश आदत, मिनलसार, महिरबान और रहीमो करीम, अपने तो अपने बेगाने भी उनके हुस्ने सीरत और अख़लाक़ की बुलंदी के मोअतरिफ थे, अल बत्ता आप दुश्मनाने दीनो सुन्नत और गुस्ताखे खुदाओ रसूल के लिए बरहना शमशीर (नग्गी तलवार) थे, और गुलामाने मुस्तफा के लिए गुलाब के फूल की तरह थे,
शबे बरात आती तो सब से माफ़ी मांगते हत्ता के छोटे बच्चों और खदिमाओं और खादिमो और मुरीदों से भी फरमाते के अगर मेरी तरफ से कोई बात हो गई हो तो माफ़ कर दो और किसी का हक रह गया हो तो बता दो, आप अपने शागिर्दो और मुरीदों से भी बड़े लुत्फ़ो करम से पेश आते थे, और हर मुरीद और शागिर्द यही समझता था के इसी से मुहब्बत करते हैं।
पहले मरीज़ को देखने चले गए
एक मर्तबा का वाक़िआ है के आप लम्बे सफर से बरैली घर वापस आए, अभी घर पर उतरे भी ना थे और तांगे पर बैठे हुए थे के मोहल्ला बिहारीपुर बरैली के एक शख्स ने जिस का बड़ा भाई आप का मुरीद था और उस वक़्त बिस्तरे अलालत पर पड़ा हुआ था, आप से अर्ज़ किया: हुज़ूर! रोज़ाना ही आ कर देख जाता हूँ लेकिन चूंकि आप सफर पर थे इस लिए दौलत कदे पर मालूम कर के ना उम्मीद लोट जाता था, मेरे भाई आप के मुरीद हैं और सख्त बीमार हैं चल फिर नहीं सकते, उन की बड़ी तमन्ना है के किसी सूरत से अपने मुर्शिदे करीम का दीदार कर लें, इतना कहना था के आप ने घर के सामने तांगा रुकवा कर इसी पर बैठे अपने छोटे साहबज़ादे “नोमान मियां साहब” को आवाज़ दी और कहा सामान उतरवा लो, में बीमार की ईयादत कर के अभी आता हूँ और आप फ़ौरन अपने मुरीद की ईयादत के लिए चले गए,
इसी तरह का एक और वाक़िआ है के: शहर बनारस के एक मुरीद आप के बहुत मुँह चढ़े थे, और आप से बहुत ही अक़ीदतो मुहब्बत भी रखते थे, एक बार उन्होंने आप की दावत की, मुरीदों में घिरे रहने के सबब आप उनके यहाँ वक़्त पर खाने में ना पहुंच सके, उन साहब ने काफी इन्तिज़ार किया और जब आप ना पहुंचे तो घर में ताला लगा कर और बच्चों को ले कर कहीं चले गए, आप जब उन के मकान पर पहुचें तो देखा के ताला बंद है, मुस्कुराते हुए लोट आए बाद में मुलाकात होने पर उन्होंने नाराज़गी भी ज़ाहिर की और रूठने की वजह भी बताई, आप ने बजाए उन पर नाराज़ होने के और उन्हें उल्टा मनाया और दिल जोई की।
“हम शबीहे गौसे आज़म” का लक़ब आप ने दिया
हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी खुलफाए आला हज़रत और अपने हम अस्र उल्माए किराम से ना सिर्फ मुहब्बत करते थे बल्कि उनका एहतिराम भी करते थे जब के बेशतर (ज़्यादातर) आप से उमर और तकरीबन सभी इल्मो फ़ज़्ल में आप से छोटे और कम पाए के थे, सादाते किराम ख़ुसूसन मारहरा मुक़द्दसा! के मखदूम ज़ादगान के सामने तो बिछ जाते थे, और आकाओं की तरह उनका अदबो एहतिराम करते थे,
हुज़ूर अशरफी मियां किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह से आप को बड़ी उनसीयत व मुहब्बत थी, और दोनों में बहुत अच्छे गहरे मरासिम तअल्लुक़ात भी थे इन को आप ही ने “हम शबीहे गौसे आज़म” का लक़ब दिया, आप हर जल्से पिरोगराम और ख़ुसूसन बरैली शरीफ की तकरीबात में इन का बहुत शनदार तार्रुफ़ कराते थे, हज़रत मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह से भी अच्छे मरासिम थे,
सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! और सद रुश्शरिया बदरुत्तरीका हज़रत मुफ़्ती अमजद अली आज़मी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को भी बहुत मानते और चाहते थे,
शेर बेशाये अहले सुन्नत हज़रत अल्लामा हशमत अली खान पीलीभीती कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से बड़े ही लुत्फ़ो इनायत के साथ पेश आते थे, और आप की शादी में हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने शिरकत भी फ़रमाई,
हाफिज़े मिल्लत हज़रत अल्लामा शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे मुरादाबादी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बानी यानि फाउंडर अल जामिआतुल अशरफिया मुबारक पुर अरबी यूनिवर्सिटी! पर भी खुसूसी तवज्जुह फरमाते थे, इन की दावत पर आप अपने फ़रज़न्दे असगर हज़रत नोमान मियां साहब! के हमराह 1334, हिजरी में आप मुबारकपुर जिला आज़म गढ़ तशरीफ़ ले गए,
आप को अपने दामाद शागिर्द व खलीफा हज़रत मौलाना तक़द्दुस अली खान से भी बड़ी मुहब्बत थी मौलाना तक़द्दुस अली खान सफर में आप के हमराह (साथ) रहते थे।
ज़ुहदो तक्वा
हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी निहायत ही मुत्तक़ी और परहेज़गार थे, इल्मी व तब्लीगी कामो से फुर्सत पाते तो ज़िक्रे इलाही और दुरूद शरीफ के विर्द में मसरूफ हो जाते, आप के जिसमें अक़दस पर एक फोड़ा निकल आया था, जिस का ऑपरेशन नागुज़ीर था, डॉक्टर ने बेहोशी का इंजेक्शन लगाना चाहा तो मना फरमा दिया, और आप ने साफ़ साफ कह दिया के में नशे का इंजेक्शन नहीं लगवाऊंगा, आलमे होश में दो तीन घंटे तक ऑपरेशन होता रहा, दुरूद शरीफ पढ़ते रहे और किसी भी दर्दो कर्ब बेचैनी का इज़हार नहीं किया, डॉक्टर आप की हिम्मत और इस्तेक़ामत और तक्वा पर शुश्दर हैरान रह गया।
इल्मी व तब्लीगी कार नामा
हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी एक बुलंद पाया खतीब, माया नाज़ अदीब, और यगानाए रोज़गार आलिमो फ़ाज़िल थे, दीने मतीन की खिदमत व तब्लीग, नामूसे मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की हिफाज़त, कौम की फलाहो बहबूद उनकी ज़िन्दगी के असली मक़ासिद थे और यही सच है के वो गलबाए इस्लाम की खातिर ज़िंदाह रहे और सफरे आख़िरत फ़रमाया तो परचमे इस्लाम बुलंद कर के इस दुनिया से सुर्खरू व कामरान हो गए, चौदवी सदी हिजरी के मुजद्दिद! इन के वालिद माजिद सय्यदी सरकार आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने खुद इनकी इल्मी व दीनी खिदमत को सराहा है, और इन पर नाज़ किया है मसलके अहले सुन्नत वल जमाअत की तरवीजो इशाअत की खातिर हिंदुस्तान पाकिस्तान के मुख्तलिफ शहरों और कस्बों के दौरे फरमाए हैं, गुस्ताखे रसूल वहाबीया दयाबिना से मुनाज़िरे किए हैं, सियासत दानो के दामे फरेब से मुसलमानो को निकाला है शुद्धी तहरीक की पासपाई के लिए जी तोड़ कर कोशिश की है और हर जिहत से बातिल और बातिल परिस्तों का रद्द और इंसिदाद बन्दों बस्त किया है।
इल्मे सियासत और हक की हिमायत
हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी सियासत दानो की चालों को खूब समझते थे और अपने ज़माने के हाल से पूरी तरह बा खबर रह कर मुसलमानो को सियासत व रियासत के चुंगल से बचाओ की हर मुमकिन जिद्दो जाहिद करते रहते थे, साथ ही साथ इस आंधी में उड़ने वाले मुसिलम उल्माए किराम और दानिश्वरों से इफ़्हामो तफ़हीम और हक़ को क़ुबूल ना करने पर उन से हर तरह की नबरद आज़माई के लिए भी तय्यार थे,
हज़रत मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली पर इन की कुछ सियासी हरकात और तहरीरात की बिना पर सय्यदी सरकार आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने इन पर फतवा सादिर फ़रमाया, हज़रत मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली ने नजदियों के ज़रिए हरमैन शरीफ़ैन के क़ुब्बा जात गिराने और बे हुर्मति करने के सिलसिले में लखनऊ एक कॉन्फरेंस मुनअकिद की, हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी “जमात रज़ाए मुस्तफा” की तरफ से चंद मशहूर उल्माए किराम के हमराह (साथ) लखनऊ तशरीफ़ ले गए, वहां मौलाना अब्दुल बारी साहब! और उन के मुतअल्लिक़ीन व मुरीदीन ने ज़बरदस्त इस्तकबाल किया और जब मौलाना अब्दुल बारी ने हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से मुसाफा करना चाहा तो आप ने हाथ खींच लिया और फ़रमाया: जब तक मेरे वालिद माजिद का फतवा है और जब तक आप तौबा नहीं कर लेंगें में आप से नहीं मिल सकता, हज़रत मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी का लक़ब सूरतुल ईमान था, उन्हों ने हक को समझ कर खुले दिल से तौबा कर ली और ये फ़रमाया: लाज रहे या ना रहे, में अल्लाह पाक के खौफ से तौबा कर रहा हूँ मुझ को उसी के दरबार में जाना है “मौन अहमद रज़ा खाना कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी” ने जो कुछ लिखा है सही लिखा है।
इस्लामी कानून में आप की जिराह और बेबाकी
लखनऊ शहर ही में मुसलमानो के निकाह व तलाक के मुआमले में कानून बनाने पर एक कॉन्फरेंस के मोके पर हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी और सदरुल अफ़ाज़िल हज़रत अल्लामा मुफ़्ती सय्यद नईमुद्दीन मुरादाबादी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! और मौलाना तक़द्दुस अली खान कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी बरैली शरीफ से शिरकत के लिए हाज़िर हुए थे, इस कॉन्फरेंस में शीआ राफ्ज़ी और नदवी मौलवियों के अलावा शाह सुलेमान चीफ जस्टिस हाईकोर्ट और हज़रत मौलाना अब्दुल बारी फिरंगी महली कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के दामाद व भतीजे अब्दुल वली भी थे हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह! ने जिराह! में सब को उखाड़ दिया, और फैसला इन्ही के हक में हुआ, हिमायते इस्लाम और शरीअते मुस्तफा व नामूसे रिसालत के मुआमले में हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह! ने हमेशा हक गोई से काम लिया, और किसी भी मस्लिहत को भटकने नहीं दिया।
आप की मस्लेहाना शानो शौकत
1935, ईसवी में मुसलमानो के मज़हबी, कौमी, सियासी, समाजी, और मुआशी इस्तेहकाम के सिलसिले में एक लाइहा अमल तय्यार करने की गरज़ से मुरादाबाद में चार रोज़ कॉन्फरेंस मुनअकिद की गई थी जिस के इजलास की सदारत हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाई थी और इस मोके पर जो फसीहो बलीग़ पुर मग्ज़ पुर तदबीर खुत्बा दिया था वो उन की सियासी बसीरत, इल्मी वजाहत, कियदतो सियादत और मिल्ली व कौमी हमदर्दी और दीनी जमात की एक शानदार मिसाल है, और जिस से उन की आलिमाना, मुस्लिहाना व मुफक्किराना शानो अज़मत का भर पूर इज़हार होता है, ये खुत्बा अवाम व ख्वास, उल्माए किराम व तलबा हर एक को मुतालआ करना चाहिए इस ख़ुत्बे! में हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह! की “अदबी शान” भी झलकती है।
ज़बानो अदब पर महारत
हुज्जतुल इस्लाम हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की ज़बान दानी की फ़साहतो बलाग़त नस्र निगारी व शायरी ख़ुसूसन अरबी ज़बान व अदब पर उबूर और महारत की तारीफ उल्माए अरब ने भी की है, हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह! के दूसरे हज व ज़ियारत (1342) हिजरी के मोके पर मारूफ अरबी दां! हज़रत शैख़ सय्यद दब्बाग और सय्यद मालकी तुर्की! ने आप की अरबी दानी और काबीलियत को खिराजे तहसीन पेश करते हुए इस तरह ऐतिराफ़ किया है:
हमने मुल्के हिंदुस्तान के अकनाफ़ो अतराफ़ में “हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम हामिद रज़ा” जैसा फसीहो बलीग़ दूसरा नहीं देखा जिसे अरबी ज़बान में इतना उबूर महारत हासिल हो”, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ही की हयात में हज़रत अल्लामा व मौलाना ज़ियाउद्दीन मदनी रहमतुल्लाह अलैह ने एक बार आपने एक रिसाले पर जिसे उन्होंने इल्मे ग़ैब पर लिखा था, हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से तकरीज लिखने की फरमाइश की हज़रत ने कलम बर्दाशता उन के सामने अरबी ज़बान में एक वसी तक़रीज़ तहरीर फ़रमादि, आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! की अरबी ज़बान की किताब “अद्दौलतुल मक्किया” और “किफलुल फकीहिल फाहिम” की तबाअत के वक़्त आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के हुक्म पर उसी वक़्त अरबी ज़बान में तम्हीद तहरीर कर दीं जिन्हें देख कर आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! बहुत खुश हुए, खूब सराहा और दुआएं दीं।
आप की अरबी ज़बान में महारत मर्तबा
हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी को एक बार “दारुल उलूम मुईनिया अजमेर शरीफ” में तलबा का इम्तिहान लेने और “दारुल उलूम मुईनिया अजमेर शरीफ” के मुआइना के लिए दावत दी गई, तलबा के इम्तिहान वगेरा से फारिग हो कर जब आप चलने लगे तो मौलाना मुईनुद्दीन साहब अजमेरी! ने “दारुल उलूम मुईनिया अजमेर शरीफ” के मुआइने के सिलसिले में कुछ लिखने की फरमाइश की, आपने फ़रमाया: फ़क़ीर तीन ज़बाने जानता है, अरबी, फ़ारसी, और उर्दू, आप जिस ज़बान में कहें लिख दूँ, मौलाना मुईनुद्दीन साहब! उस वक़्त तक आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! या हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी से इतने मुतअस्सिर ना थे जितना होना चाहिए था, उन्होंने कह दिया के अरबी में तहरीर कर दीजिए,
हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने फ़ौरन कलम बर्दाशता कई सफ़हात का निहायत फसीहो बलीग़ अरबी में मुआइना तहरीर फरमा दिया हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी के इस कलम बर्दाशता लिखने पर मौलाना मुईनुद्दीन साहब! हैरत ज़दाह भी थे और सोच भी रहे थे के जाने क्या लिख रहे हैं क्यों के इन को भी अपनी अरबी दानी पर बड़ा नाज़ था,
जब मुआइना! लिख कर “हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी” चले आए तो बाद में उस के तर्जुमे के लिए मौलाना मरहूम बैठे तो उन्हें “हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी” की अरबी समझने में बड़ी दिक्कत हुई, बा मुश्किल तमाम लुगत देख देख कर तर्जुमा किया, वो भी पूरा पूरा तर्जुमा नहीं कर सके और बाज़ अल फ़ाज़ इन्हें लुगत में भी नहीं मिले बाद में इन्हें मुल्के अरब के उल्माए किराम की ज़बान और उनकी क़ुतुब से हसिल किए तब जा कर इन्हें अल फ़ाज़ और मुहावरों का इल्मा हुआ।
गोवालियर के राजा की अकीदत
आप के हुस्नो जमाल का ये आलम था के सिर्फ सूरत देख कर लोग आशिको शैदा बन जाते थे, चुनांचे आप एक मर्तबा शहर गोवालियर! तशरीफ़ ले गए, आप का क़याम जब तक वहां रहा हर रोज़ वहाँ का राजा! सिर्फ आप की ज़ियारत के लिए हाज़िर होता था और आप के हुस्नो जमाल को देख कर हैरत ज़दाह होता था, इसी तरह चित्तोड़ गढ़ उदयपुर राजगांन आप के बड़े शैदाई थे,
यूँही एक मर्तबा आप सफर से तशरीफ़ लाए स्टेशन पर आप जिस वक़्त उतरे तो उसी वक़्त अताउल्लाह बुखारी भी उतरा, उस ने लोगों से पूछा के ये कौन बुज़रुग हैं? लोगों ने बताया के आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के जानशीन हुज्जतुल इस्लाम हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी हैं ये सुन कर कहने लगा के में ने “मौलाना” तो बहुत देखे मगर इन से ज़ियादा हसीन किसी मौलाना को नहीं पाया।
हज्जो ज़ियारत
आप ज़ियारते हरमैन शरीफ़ैन से भी मुशर्रफ़ हुए चुनांचे 1333, हिजरी बा मुताबिक़ 1905, ईसवी में अपने वालिदे मुहतरम इमामे अहले सुन्नत सय्यदी सरकार आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! के हमराह हज के लिए तशरीफ़ ले गए, ये हज आप का इल्मी व तहक़ीक़ी मैदान में अज़ीम हज था और जो कार हाए नोमाया आप ने इस हज में अदा फ़रमाया वो “अद्दौलतुल मक्किया” की तरतीब है जिस को इमामे अहले सुन्नत सय्यदी सरकार आला हज़रत रदियल्लाहु अन्हु! ने सिर्फ आठ घंटे की क़लील मुद्दत में कलम बर्दाशता लिखा, मज़कूरा किताब के अज्ज़ा हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम रहमतुल्लाह अलैह! को देते जाते, आप उनको साफ़ करते जाते थे, फिर इस का तर्जुमा भी आप ही ने किया ये तर्जुमा बहुत ही अहम है जो देखने से तअल्लुक़ रखता है, हुज़ूर नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इश्तियाक किस दर्जा आप को था, इस का सही अंदाज़ा आप के मुन्दर्जा ज़ैल शेअर से होता है:
इसी तमन्ना में दम पड़ा है यही सहारा है ज़िन्दगी का
बुला लो मुझ को मदीने सरवर नहीं तो जीना हराम होगा
और दूसरा हज आप ने 1334, हिजरी में अदा फ़रमाया।
मुल्के पाकिस्तान में आप की आमद
कयामे पाकिस्तान से पहले आप 1925, ईस्वी में “अंजुमन हिज़्बुल अहनाफ” के सालाना जलसे में शिरकत की गरज़ से लाहौर तशरीफ़ ले गए, चुनांचे उसी दौरान वहाबी देओबंदी को मुनाज़रे का चेलेंज दिया गया और मुनाज़रे की गरज़ से आप के साथ अकाबिर उल्माए अहले सुन्नत तशरीफ़ ले गए, लेकिन ऐन वक़्त पर फरीके मुखालिफ ने उज़रे लंग पेश कर के जल्सागाह में आने से इंकार कर दिया, जैसा के जनाब सय्यद अय्यूब अली साहब! अपनी एक मनकबत में इसी मुनाज़रे की तरफ इशारा करते हुए फरमाते हैं:
हिंदुस्तान में धूम है, किस बात की मालूम है
लाहौर में दूलाह बना हामिद रज़ा हामिद रज़ा
समझते थे क्या और क्या हुआ अरमान दिल में रह गया
तेरे ही सर सेराह रहा हामिद रज़ा हामिद रज़ा
अय्यूब किस्सा मुख़्तसर आया ना कोई वक़्त पर
तेरे मुक़ाबिल मनचला हामिद रज़ा हामिद रज़ा
इसी मुनाज़रे के मोके पर हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी की मुलाकात डॉक्टर इकबाल से भी हुई और डॉक्टर इकबाल को जब हज़रत अल्लामा शाह हामिद रज़ा खान बरेलवी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानीने देओबंदी मौलवियों की गुस्ताखाना इबारते सुनाईं तो वो सुन कर हैरत ज़दाह रह गए और बेसाख्ता बोल उठे मौलाना ये ऐसी ईबारात गुस्ताखाना हैं के इन पर आसमान क्यों नहीं टूट पड़ा, इन पर तो आसमान टूट जाना चाईए, इस जलसे से सब से बड़ा फाइदा जो दुनियाए सुन्नियत को हुआ वो हज़रत मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान मौलाना सरदार अहमद कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी, जैसी अज़ीम तिरीन बुज़रुग हस्ती का हुसूल है, वाक़िआत इस तरह मन्क़ूल है: हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! “अंजुमन हिज़्बुल अहनाफ” के जलसे में तशरीफ़ ले गए, वहां चंद रोज़ आप का क़याम रहा जलसा गाह में दूसरे लोगों की तरह हज़रत मुहद्दिसे आज़म पाकिस्तान मौलाना सरदार अहमद कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी भी आए और हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! की ज़ियारत से मुशर्रफ हुए (हज़रत मौलाना सरदार अहमद उस वक़्त अंग्रेजी तालीम हासिल कर रहे थे) हज़रत की ज़ियारत ने आप के क्लब पर जो असरात छोड़े, उन्हें आप से ज़ियादा कोई नहीं जानता, उसी रोज़ से बराबर हज़रत की क़याम गाह पर जाते रहे, दूसरे लोग आते और अपनी अपनी हाजतें बयान करते लेकिन मौलाना सरदार अहमद कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी अज़ अव्वल ता आखिर खामोश अदब के साथ बैठे रहते और जब हज़रत के आराम का वक़्त होता तो लोगों के साथ उठ कर चले जाते, इसी तरह कई दिन गुज़र गए और हज़रत की वतन वापसी में एक या दो दिन बाकी रह गए चुनांचे एक रोज़ खुद हुज़ूर हुज्जतुल इस्लाम कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी! ने आप से दरयाफ्त किया के साहबज़ादे क्या वजह है के आप रोज़ाना आते हैं लेकिन खामोश हो कर बैठ कर चले जाते हैं? दरयाफ्त हासिल पर मौलाना सरदार अहमद कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने इल्मे दीन हासिल करने की गरज़ से आप के हमराह यानि साथ चलने का इरादा फ़रमाया, हज़रत ने बखुशी मंज़ूर फरमा लिया, और अपने साथ बरैली शरीफ लाए, चुनांचे हज़रत की बा करामत सुहबत से और अपने वक़्त के अज़ीम मुहद्दिस, और कामयाब मुदर्रिस, बन गए और तक़सीमे पाकिस्तान के बाद लाहौर में सुन्नी मुसलमानो की क़ियादत आप के हिस्से में आई।
आप की मिल्ली दीनी खिदमात
आप ने बर्रे सगीर के मुसलमानो की मुआशरत ना गुफ्ता बिही हालत को बेहतर बनाने के लिए 1925, ईस्वी में “आल इण्डिया सुन्नी कॉन्फरेंस” मुनअकिद की गई जिस में चंद तजावीज़ का ज़िक्र आपने अपने ख़ुत्बाए सदारत में किया है मगर गौर से देखा जाए तो ये एक ऐसा दस्तूरुल अमल है के अगर इस के मुताबिक़ काम हुआ होता तो आज मुसलमानो की हालत कुछ और ही होती और मुआशी, तालीम तिजारती हर दीनी दुनियावी उमूर में मुसलमान किसी भी कौम से पीछे ना होता, इसी ख़ुत्बाए सदारत में मुलाज़िमत की हौसला शिकनी कर के सनअती और तालीम व तिजारत पर ज़ोर दिया है मुलाज़िमत का हाल यूं बयान फरमाते हैं:
हमारा ज़रियाए मआश सिर्फ नौकरी और गुलामी है और इस की भी ये हालत है के हिन्दू नवाब मुसलमानो को मुलाज़िम रखने से परहेज़ करते हैं, रहें गोरमिंटी मुलाज़मतें इन का हुसूल तूल है अगर रात दिन की तागो दौ (सख्त मेहनत) और इन कोशिशों से कोई मअक़ूल सिफारिश पहुंची तो कहीं उम्मीद वारों में नाम दर्ज होने की नौबत आती है बरसों बाद जगह मिलने की उम्मीद पर रोज़ाना खिदमत मुफ्त अंजाम दिया करो अगर बहुत बुलंद हिम्मत हो और क़र्ज़ पर बसर औकात कर के बरसों के बाद कोई मुलाज़िमत हासिल भी की तो उस वक़्त तक क़र्ज़ का इतना अम्बार हो जाता है जिस को मुलाज़िमत की आमदनी से अदा नहीं कर सकते, फिर गैर मुस्लिम (हिन्दुओं) के अक्सरियत के बाइस आँखों में खटकते रहते हैं, हमे ये ना समझना चाहिए के हमारी रोज़ी नौकरी पर मुन्हसिर है, हमें दस्तकारी हुनर और पेशे सीखना चाहिए, अब इस की तमाम काबीलियत हेच हैं सनादें बेकार हैं, ज़िन्दगी वबाल है, औलाद की तरबीयत इस नादारी में क्यों हो सके, खुद तबाह नस्ल बर्बाद, लेकिन पेशा होता, हाथ में कोई हुनर रखता तो इस तरह मुहताज न हो जाता, नौकरी गई बला से इस का ज़रिए मआश इस के साथ होता, हमे नौकरी का ख्याल ही छोड़ देना चाइये, नौकरी किसी कौम को मेराजे तरक्की तक नहीं पंहुचा सकती, दस्तकारी और पेशे और हुनर से तअल्लुक़ पैदा करना चाहिए।
रेफरेन्स हवाला
- तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
- फ़ैज़ाने आला हज़रत
- ख़ुत्बाए हुज्जतुल इस्लाम
- माह नामा आला हज़रत जून 1963, ईस्वी
- माह नामा हिजाज़ जदीद अप्रेल 1989, ईस्वी
- फाज़ले बरेलवी उल्माए हिजाज़ की नज़र में
- तज़किराए उल्माए अहले सुन्नत
- फकीहे इस्लाम
- माह नामा आला हज़रत बरैली शरीफ 1986, ईस्वी