हज़रत अल्लामा शैख़ नूरुल हक कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत अल्लामा शैख़ नूरुल हक कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

विलादत शरीफ

हज़रत अल्लामा शैख़ नूरुल हक कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! आप मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बड़े साहबज़ादे हैं, आप की पैदाइश मुबारक 983, हिजरी में हुई।

तालीमों तरबियत

आप रहमतुल्लाह अलैह की तालीमों तरबियत वालिद माजिद मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने फ़रमाई और अलिफ़, बा, ता, की तख्ती से ले कर आखिर तक वालिद मुकर्रम ने खुद ही पढ़ाया और फारिगुत तहसील हुए, आप इल्मो फ़ज़्ल में अपने वालिद मुकर्रम के नक़्शे कदम पर थे, वालिद मुकर्रम आप से बहुत खुश रहते थे, और अपना वुजूदे सानी फरमाते थे।

इजाज़त व खिलाफत

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने एक रिसाला वसीयत नामा में अपने मुताअल्लिक़ीन को हिदायत फ़रमाई थी के मेरे बाद मेरे प्यारे बेटे नूरुल हक! को मेरा खलीफा मानना और उन के साथ अदबो एहतिराम से पेश आना, हज़रत अल्लामा शैख़ नूरुल हक कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अपने वालिद माजिद से बैअत थे, और बाद में आप हज़रत ख्वाजा निज़ामुद्दीन नारनूली हरयानवी रहमतुल्लाह अलैह की औलाद में से हज़रत आशिक मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह से अकीदत पैदा हो गई थी और उनके मुरीदों में शामिल हो गए थे।

आगरा के क़ाज़ी

हज़रत अल्लामा शैख़ नूरुल हक कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने वालिद मुकर्रम ही की हयाते मुबारिका में शहर आगरा का काज़ी! बनना कबूल फरमा लिया था, शाह जहाँ बादशा बनने से पहले ही आप की काबिलियत का ऐतिराफ़ करता था, जब बादशा बना तो इसरार कर के ये खिदमत आप के सुपुर्द करदी, आप ने ये काम निहायत अच्छी तरीके से अंजाम दिया लेकिन इस उहदे पर आप ज़ियादा दिनों तक न रह सके क्यों के हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के विसाल फरमाने के बाद आप ने वालिद माजिद की मसनद को सभाल लिया था,

हज़रत अल्लामा शैख़ नूरुल हक कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने बहुत से किताबें भी तस्नीफ़ कीं, “तयस्सिरूल कारी” के नाम से छे 6/ जिल्दों में बुखारी शरीफ की भी शरह शामिल है, जिस को आप ने हज़रत औरंगज़ेब आलमगीर रहमतुल्लाह अलैह के नाम से मंसूब किया था,
हज़रत अल्लामा शैख़ नूरुल हक कादरी देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने अज़ीमुल मरतबत बाप की तरह ज़ियादा वक़्त इल्मे हदीस की तब्लीग में सर्फ़ किया।

विसाल

आप का इन्तिकाल 9/ शव्वालुल मुकर्रम 1073/ हिजरी को 90/ साल की में हुआ।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक दिल्ली! महरोली शरीफ में होज़ शम्शी के पास अपने वालिद माजिद के रौज़े! के बराबर में पूरब की जानिब मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली

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