हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी कादरी रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी कादरी रहमतुल्लाह अलैह

नामे मुबारक

मुहक्किके अलल इतलाक़, शैखुल मुहक़्क़िक़ीन, मुजद्दिदे वक़्त, इमामुल हिन्द, फखरे मिल्लत, नाबगाए रोज़गार, हाफ़िज़, कारी, आलिम, फ़ाज़िल, फकीह, मुहद्दिस, मुहक्किक, हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का नाम मुबारक “शैख़ अब्दुक हक” और लक़ब मुहक्किके अलल इतलाक़, ख़ातिमुल मुहद्दिसीन है।

विलादत बसआदत

आप की पैदाइश मुबारक माहे मुहर्रमुल हराम 958, हिजरी मुताबिक 1551, ईसवी को बा मकाम दिल्ली शरीफ मुल्के हिन्द में हुई।

खानदानी हालात

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के आबाओ अजदाद शहर बुखारा! मुल्के उज़्बेकिस्तान के रहने वाले थे, आप के जद्दे आला आगा मुहम्मद तुर्क बुखारी, सुल्तान मुहम्मद अलाउद्दीन खिलजी के ज़माने में शहर बुखारा! मुल्के उज़्बेकिस्तान से हिजरत कर के दिल्ली तशरीफ़ लाए, सुल्तान ने आप की बड़ी इज़्ज़तो अफ़ज़ाई की, और आला उहदों मनसब पर फ़ाइज़ किया, अल्लाह पाक ने आप को बेशुमार नेमतों से नवाज़ा था, आप के एक सौ एक बेटे थे, लेकिन एक होलनाक सानेहा में सौ बेटे इन्तिकाल कर गए, सब से बड़े साहबज़ादे मआज़ुद्दीन बचे, इन्ही से इस खानदान का सिलसिला जारी हुआ, आप फ़रज़न्द शैख़ मूसा ने बड़ी शोहरत नामवरी हासिल की, शैख़ मूसा के कई बेटे थे, लेकिन शैख़ फ़िरोज़ सब से इम्तियाज़ी हैसियत के मालिक थे, आप को सिपाह गिरी और शेरो शायरी में कमाल हासिल था, 860, हिजरी में बहराइच शरीफ के किसी मारके में शहीद हो गए,
उस वक़्त उनकी ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) हामिला थीं, कुछ दिनों के बाद फ़िरोज़ बख्त साहबज़ादे की पैदाइश हुई, जिस का नाम सअदुल्ला! रखा गया, उन में भी बाप के तमाम ख़ासाइल मौजूद थे 22, रबीउल अव्वल 928, हिजरी को आप का विसाल हो गया, आप के दो फ़रज़न्द थे, शैख़ रिज़्क़ुल्लाह! और शैख़ सैफुद्दीन! यही आप के वालिद हैं

वालिद माजिद

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद माजिद हज़रत “सैफुद्दीन” 920, हिजरी मुताबिक 1514, ईसवी को दिल्ली में पैदा हुए, अल्लाह पाक ने उन को इल्मो अमल की बहुत सी खूबियों से नवाज़ा था, और आप शेरो सुखंन का भी ज़ौक़ रखने वाले आलिम और साहिबे हाल बुज़रुग थे, लोग इन की ज़राफतो लताफत, मुआमला फहमी और खुश उस्लूबी के मोतरिफ थे, आप सिलसिलए आलिया कादिरिया में हज़रत शैख़ अमानुल्लाह पानीपती रहमतुल्लाह अलैह (मुतावफ़्फ़ा 957/ हिजरी मुताबिक़ 1550/ ईसवी) के मुरीद और खलीफा थे, 2, शाबान 990, हिजरी मुताबिक 1582, ईसवी को आप का विसाल हो गया था।

तालीमों तरबियत

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इब्तिदाई तालीम अपने वालिद माजिद से हासिल की, अय्यामे तफूलियत यानि बचपन ही से इन्होने बेटे की तालीम व तरबियत की तरफ तवज्जुह दी, इस तअल्लुक़ से खुद हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं, के: रात दिन में उनकी आग़ोशे रहमतो इनायत में तरबियत हासिल करता था,
वालिद माजिद ने सब से पहले कुरआन शरीफ पढ़ाया, दो तीन महीने में आप ने पूरा कुरआन शरीफ पढ़ लिया, आप निहायत ज़हीन फतीन तेज़ थे, आप के अंदर इल्मे दीन हासिल करने का जज़्बा व शोक खूब था, आप ने कुरआन शरीफ एक या दो साल में हिफ़्ज़, कर लिया, उस के बाद उलूमे इस्लामिया की तरफ मुतवज्जेह हुए तो बराह तेरह साल की उमर में शरहे शमशीया, और शरहे अक़ाइद पढ़लि, 15, 16, की उमर में मुख़्तसर और मुतव्वल से फारिग हो गए,
हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! अठ्ठारह साल की उमर में उलूमे अकलिया व अनक्लिया के तमाम गोशों की सेर करने के बाद मावराउन नहर! के उल्माए किराम व मुफ्तियाने इज़ाम से भी इक्तिसाबे फैज़ किया, और इल्मे कलाम, व फलसफा में ऐसा कमाल हासिल किया के आप के असातिज़ा भी आप की ज़हानत व फतानत के काइल हो गए, चुनांचे खुद फरमाते हैं हम तुम से इस्तिफ़ादा करते हैं, और हमारा तुम पर कोई एहसान नहीं।

हज्जे बैतुल्लाह

जब हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने हिजाज़े मुकद्द्स का सफर किया तो मक्का मुअज़्ज़ा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा तशरीफ़ ले गए, और मक्का शरीफ के मुहद्दिसीन! से सहीहैन यानि इल्मे हदीस! का दर्स लिया, फिर हज़रत शैख़ अब्दुल वहाब मुत्तक़ी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में हाज़िर हो कर मिश्कात शरीफ का दर्स लिया, इल्मे दीन हासिल करने का शोक आप को इस क़द्र था के हर वक़्त मुताला व क़ुतुब बीनी में मशगूल रहते अगर कोई मुफीद इल्मी किताब दस्तियाब हो जाती तो पूरी देखे बगैर ना रहते और जब तक बा ज़ाते खुद हल ना कर लेते तब तक उसी में मुंहमिक रहते थे,
हज़रत शैख़ अब्दुल वहाब मुत्तक़ी रहमतुल्लाह अलैह की निगरानी में हरम शरीफ में इबादत की, आप ख़ास ख़ास मक़ामात पर हाज़िर हो कर दुआ भी करते थे, आप फरमाते थे,
ये फ़कीर जब मक्का मुअज़्ज़ा ज़ादा हल्लाहु शरफऊं व तअज़ीमा था तो हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दौलत कदे पर जिसे बैते हज़रत खदीजा रदियल्लाहु आहना कहते हैं, और वो मक्का शरीफ में बैतुल्लाह के बाद सब मक़ामात से अफ़ज़ल है, हाज़िर होता था, और और वहां खड़ा हो जाता था, और फकीरों की तरह चीखता था और ये कहता था, ऐ अल्लाह के रसूल! कुछ अता कीजिये और ऐ अल्लाह के रसूल! ये फ़कीर आप का साइल आप के दरवाज़े पर हाज़िर है, जो कुछ उस वक़्त सूझती थी और ज़बाने हाल गोयाई देती थी तलब करता था और दामने उम्मीद भर कर वापस आता था।

इबादतों रियाज़त

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने तज़कियाए नफ़्स के साथ इफ़्फ़त क्लबों निगाह का भी पूरा पूरा ख्याल रखा, तबियत बचपन ही से इबादत व रियाज़त की तरफ माइल थी, इब्तिदाई ज़माने में आप का मामूल था के रात में बेदार हो कर इबादत में मसरूफ हो जाते थे, वालिद माजिद ने इन में इश्के हकीकी की ऐसी शमआ जलाई थी जो आखरी उमर तक इन के क्लबों जिगर को जिला बख्शती रही।

बैअतो खिलाफत

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! सब से पहले अपने वालिद माजिद से मुरीद हुए, इस के बाद वालिद के हुक्म पर हज़रत सय्यद जमालुद्दीन मूसा पाक शहीद गिलानी रहमतुल्लाह अलैह से जो कादरी सिलसिले के मशहूर बुज़रुग थे आप बैअत हुए, और इजज़तो खिलाफत हासिल की,
हज़रत सय्यद जमालुद्दीन मूसा पाक शहीद गिलानी रहमतुल्लाह अलैह से शरफ़े बैअत हासिल कर ने के बाद जब आप ने मक्का शरीफ का सफर किया तो वहां पर क़ुत्बुल वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल वहाब मुत्तक़ी शाज़ली रहमतुल्लाह अलैह! जिन्हें सिलसिलए आलिया कादिरिया, सिलसिलए शाज़िलिया, सिलसिलए चिश्तिया से खिलाफत हासिल थी, आप को ज़ाहिरी व बातनी उलूम की तालीम फ़रमाई, और आप बैअत ले कर खिलाफत से नवाज़ा, और आप को चलते वक़्त इमामुल औलिया हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी गौसे आज़म बगदादी रदियल्लाहु अन्हु! का पैरहन मुबारक भी अता फ़रमाया।

आप के तज्दीदे कार नामे

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! (1000, हिजरी /1953,) में हिंदुस्तान वापस तशरीफ़ लाए, उस वक़्त यहाँ मुख्तलिफ अफ़कारो नज़रियात की हामिल तहरीकें परवान चढ़ रही थीं, जिन का मकसद सिर्फ इस्लाम की जड़ को कमज़ोर करना था, हिंदुस्तान बिदआत व मुनकिरात का गहवारा बन चुका था, शिआरे इस्लाम का खुल्लम खुल्ला मज़ाक उड़ाया जा रहा था, दरबारे अकबरी में “उल्माए सू” का दबदबा था, जो ज़ाती फायदे के खिलाफ शरई उमूर को ऐन शरीअत के मुताबिक करार देते थे, तो ऐसे नाज़ुक दौर में आप ने उन तमाम तहरीकों का तहरीरों तकरीर के ज़रिए डट कर मुकाबला किया, और दींन के खिलाफ उठने वाले तमाम फ़ितनो का किला कमा किया, हकीकत में आप की ज़िन्दगी का मकसद ही अहयाए दीन, व मिल्लत और तबलीगो शरीअतो तरीकत था,

महदवी तहरीक

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के ज़माने का बहुत बड़ा फितना महदवी तहरीक थी, महदवी तहरीक का बानी सय्यद मुहम्मद जौनपुरी था जो जुमादीयुल ऊला 847, हिजरी मुताबिक 1443, ईसवी में पैदा हुआ, इस ने 1495, ईसवी में महदवियत का ऐलान कर दिया, महदवियत का तसव्वुर इस्लाम के मुआमलात उसूल खत्मे नुबुव्वत से टकराता था, इस तहरीक का बानी सय्यद मुहम्मद जौनपुरी! कहता था, हर वो कमाल जो हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को हासिल था, मुझे भी हासिल है, फर्क सिर्फ इतना है के वहां इसालतन था और यहाँ तबअन यानि पैरोकार होने की वजह से,

इस अक़ीदए बातिल और ख़याले फ़ासिद के खिलाफ हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने बरवक़्त कदम उठाया और हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सीरते मुबारक पर “मुदारिजुन नुबुव्वत” किताब तस्नीफ़ फरमा कर इस फ़ित्ने का सद्देबाब किया और मखलूके खुदा को पैग़म्बरे इस्लाम के आला व अरफ़ा मकाम से रोशनास कराया, नज़रियाए अल्फी: नज़रियाए अल्फी में आम तौर पर लोगों को बताया जाता था के इस्लाम की मुद्दत सिर्फ एक हज़ार साल की थी इस मुद्दत के खात्मे के बाद एहकामे इस्लामी और शरीअते इस्लामिया के इत्तिबाअ ज़रूरत खत्म हो गई,
हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने मज़कूरा नज़रिए की तरदीद करते हुए फ़रमाया के: इस्लामी एहकाम हर ज़माना और हर कोम के लिए हैं, ज़मान व मकान की पाबंदी, बे माना है, नीज़ शरीअते मुहम्मदी ऐतिदाल का रास्ता है और यही इस शरीअत के अब्दी होने की दलील है।

दरबारे अकबरी का फितना

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के ज़माने का एक बहुत बड़ा फितना था जिसे उस वक़्त के “उल्माए सू” ने बरपा किया था, क़ाज़ी खान बदख्शानि ने बादशाह अकबर को सिजदा करने का फतवा दिया था दाढ़ी कटवाने की हदीस हज़रत शैख़ अमानुल्लाह पानीपती रहमतुल्लाह अलैह के भतीजे ने निकाली थी, और हज के फ़र्ज़ न होने का फतवा दिया था, अब्द व मअबूद के दरमियान फर्क बे माना समझा जाता था,
वक़्त के गुमराह सूफ़िया ने भी मज़हब को नुक्सान पहुंचाने में कोई दक़ीक़ा व गुज़ाश्त न किया, इन के नज़दीक शरीअतो तरीकत दो मुख्तलिफ चीज़ें थीं, उनका अक़ीदा था के बनदा सिर्फ मार्फ़त का मुकल्लफ़ है, शरीअत पर अमल करने का मकसद महिज़ मारफते हक तआला है और जब मारफते खुदा वन्दी हासिल हो जाती है तो तकालीफ़ भी साकित हो जाती हैं, अपने इसतिशहाद में वो ये आयते करीमा पेश करते थे, नीज़ रक्सो सुरूर उस वक़्त तसव्वुफ़ की जान थी,
इन्ही अक़ाइदे बातिला और ख़यालाते फासिदा रखने वाले उल्माए किराम ने अकबर बादशाह को दीन से बरगश्ता कर दिया, अकबर ने दीन को खेर आबाद कह दिया था, जिस का सुबूत दरबारे अकबरी में होने वाली गैर शरई हरकत से मिलता है जो

मुन्दर्जा ज़ैल हैं:
नुबूव्वतो रिसालत, दीदारे इलाही और हश्रो नश्र के मुतअल्लिक़ तमस्खुर अंदाज़ में शुकूको शुबहात ज़ाहिर किए जाते थे, कुरआन शरीफ के तवातुर और कुरआन पाक के कलामे इलाही, होने जिस्म के फना होने के बाद रूह के बाकी रहने और सवाब व इकाब को मुहाल समझा जाता था, दीवान खाने में ऐलानिया किसी नमाज़ को पढ़ने की मजाल ना थी, इस्लाम की मुखालिफत में सुअर, और कुत्ता, के नापाक होने का मसला मंसूख करार दे दिया गया था, शाही महल के नीचे ये दोनों जानवर बांधे जाते थे, बादशाह इन का देखना इबादत ख़याल करता था, इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे तफ़्सीर, और हदीस पढ़ने, वाले मरदूद मतउन करार देते थे,

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इन्ही हालात के पेशे नज़र तकरीरी दावतों इस्लाह के साथ साथ तहरीर का भी सहारा लिया और “तकमीलुल ईमान” तस्नीफ़ फरमा कर मज़कूरा अक़ाइदे बातिला व ख़यालाते फासिदा रखने वाले उलमा का मुँह तोड़ दनदान शिकन जवाब दिया, अक़ाइद के मोज़ू पर ही आप रहमतुल्लाह अलैह की मज़कूरा किताब अज़ीम शुहरत रखती है, इस किताब में आप ने इस्लामी अक़ाइद और कवाइदे शरआ की रौशनी में मामूलाते अहले सुन्नत को तफ्सील से बयान किया है,
अहदे अकबरी में हरकसो नाकस मज़हबी मुआमलात में दखलंदाज़ी करता था, जिससे बिदअते और गुमराहियाँ बकसरत जनम लेती थीं, आप ने सख्ती से इस का रद्द किया और हरकसो नाकस को दखल अंदाज़ होने से मना फ़रमाया, गैर शरई और गैर इस्लामी रस्मो रिवाज को दूर करने के लिए किताबें और रसाइल तहरीर फरमाएं चुनांचे हज़रते सय्यदना इमामे हुसैन रदियल्लाहु अन्हु, की शहादत के तअल्लुक़ से जो खुराफात राइज थीं और माहे सफर के बारे में अवाम में जो ये मशहूर था, के ये महीना मसऊद व नामुबारक़ है, आप ने अपनी किताब “मा सबाता मिनस सुन्नाह” में अहादीस की रौशनी में इन खुराफात की तरदीद फ़रमाई।

आप की तसानीफ़

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ही वो पहली ज़ात है जिसने हमारे मुल्के हिंदुस्तान में इल्मे हदीस शरीफ! के फरोग और इस की नश्रो इशाअत के लिए दरसो तदरीस और तस्नीफो तालीफ़ के ज़रिए अहम और ज़बरदस्त खिदमात अंजाम दी हैं, आप ने क़ुतुब अहादीस को निसाब का लाज़मी हिस्सा करार दिया और अपने मदरसे में अहादीस का बा काइदा दर्स दिया करते थे, आप की मश्हूरो मारूफ किताब “अश अतुल लमआत” शरहे मिश्कात शरीफ हदीस शरीफ की बेहतरीन किताब है, जिसे हर दौर में मकबूलियत हासिल रही, आज इस के कई तराजिम शाए हो चुके हैं,
हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! शबो रोज़ दरसो तदरीस और तस्नीफो तकलीफ में मशगूल रहते, आप की तसानीफ़ को काफी मकबूलियत हासिल है, जिस की कोई मिसाल नहीं, आप की तसानीफ़, उम्मते मुहम्मदिया पर एहसाने अज़ीम है, आप की ज़ात, इल्मी व तस्नीफी, खिदमात के ऐ तिबार से निहायत ही बुलंद पाया बुज़रुग हैं, आप की पूरी ज़िन्दगी दीने इस्लाम की तब्लीग व इशाअत में गुज़री, आप ने इस्लाम के अहम् मौज़ूआत अपनी तसानीफ़ का गिरां क़द्र सरमाया छोड़ा है, सिर्फ हदीस और इल्मे हदीस में आप ने मुन्दर्जा ज़ैल तस्नीफ़ात यादगार छोड़ी हैं:
(1) अश अतुल लमआत शरहे मिश्कात शरीफ
(2) लमआतुत तन्क़ीह फी शरहे मिश्क़ातुल मसाबीह
(3) जज़्बुल क़ुलूब इला दियरिल महबूब
(4) अख़बारूल अखियार
(5) शरहे हुश शमसिया
(6) मदारिजुन नुबुव्वत
(7) मिफ्ताहुल फुतूह लिफ़तहे अबवाबिन नुसूस
(8) तकमीलुल ईमान

मज़कूरा बाला तहरीर से येबात साफ़ तौर पर अयाँ हो जाती है, के हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने ग्यारवी सदी के पुर आशोब दौर में जो हमा गीर कलमी, फ़िक्री, तब्लीगी और इस्लाही जिहाद किया है, उसे तारीख़ कभी फरामोश नहीं कर सकती।

आप की सीरते मुबारक

आप रहमतुल्लाह अलैह एक जय्यद बा अमल आलिमे दीन, मुहद्दिस, फकीह, थे, साहिबे हाल और साहिबे निस्बत सूफी सिफ़त बुज़रुग थे, बल्के तसव्वुफ़ में बुलंद रुतबा हैं, इबादतों रियाज़त में बहुत मशगूल रहते थे, फ़राइज़ व सुन्नतों पर सख्ती से अमल करते थे, आप हिंदुस्तान भर में मुहद्दिसे देहलवी! के नाम से मशहूर हैं, आप को इल्मे हदीस पर ज़बरदस्त महारत हासिल थी,
अहले इल्म पर वाज़ेह है के ये राय इंसाफो दियानत से बहुत दूर और तशद्दुद खयालात को ज़ाहिर करती है,
हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का असल मकसद ये था के इल्मे फ़िक़्ह! को इज़्ज़तो एहतिराम की निगाह से देखा जाना चाहिए, इस लिए के इस की बुनियाद कुरआन व हदीस पर है और वो एक ऐसी रूह की पैदावार है जिस पर इस्लामी रंग चढ़ा हुआ है, खास तौर पर फ़िक़ाह हनफ़ी पर ये ऐतराज़ के वो महिज़ कयास और राय का नाम है बिलकुल बे बुनियाद है, इस की बुनियाद मुस्तहकम तौर पर आहादीस पर रखी गई है, मिश्कात शरीफ का गहरा मुताला फ़िक़्ह हनफ़ी की तरतीब को साबित करता है,

ऐसे दौर में जब के मुसलमानो का समाजी निज़ाम निहायत तेज़ी से इनहितात पज़ीर हो रहा था, जब इज्तिहाद गुमराही फैलाने का दूसरा नाम था, जब उल्माए सू! की हीला बाज़ियों ने बानी इसराइल की हीला साज़ फितरत को शर्मा दिया था, सलातीने ज़माना के दरबारों में और मुख्तलिफ मक़ामात पर लोग अपनी अपनी फ़िक्रों नज़र में उलझ कर उम्मत के शीराज़ा को मुन्तशिर कर रहे थे, तो ऐसे वक़्त में खास तौर पर कोई आफ़ियत की राह हो सकती थी तो वो तक़लीद ही थी,
रहा इल्मे हदीस तो इसकी इशाअत के सिलसिले में हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का तमाम अहले हिन्द पर अज़ीम एहसान है ख़्वाह वो मुक़ल्लिदीन हों या गैर मुक़ल्लिदीन हों, बल्के गैर मुक़ल्लिदीन जो आज कल अहले हदीस होने के दावे दार हैं उन को तो ख़ास तौर पर मरहूनो मिन्नत होना चाहिए के सब से पहले इल्मे हदीस की तरवीजो इशाअत में नुमाया किरदार आप ही ने अदा किया है बल्के इस फन मे अव्वलियत का सेहरा आप ही के सर है, क्यों के इल्मे हदीस लाने वाले और मुल्के हिन्द में फैलाने वाले आप ही हैं, गर्ज़ ये बात वाज़ेह हो चुकी के हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने इल्मे हदीस! की नशरो इशाअत का वो अज़ीम कारनामा अंजाम दिया है, जिससे आज बिला इख्तिलाफ मज़हबो मसलक सब मुस्तफ़ीद हैं, ये दूसरी बात है के अक्सर शुक्र गुज़ार हैं, और बाज़ कुफ़राने नेमत में मुब्तला हैं,
आप की औलादे अमजाद और तलामिज़ा के बाद इस इल्मे हदीस की इशाअत में नुमाया किरदार अदा करने वाले आप के साहबज़ाद गान हैं जिन की इल्मी खिदमात ने हिंदुस्तान को इल्मे हदीस के अनवारो तजल्लियात से मामूर किया।

औलादे अमजाद

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के तीन फ़रज़न्द थे, हज़रत शैख़ नूरुल हक, हज़रत शैख़ अली मुहम्मद, और शैख़ मुहम्मद हाशिम, आप के सभी साहबज़ादे आलिम फ़ाज़िल बने और खूब खूब दीनी खिदमात अंजाम दीं।

हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की दुआ

ऐ अल्लाह! मेरा कोई अमल ऐसा नहीं जिसे तेरे दरबार में पेश करने के लाइक समझूँ, मेरे तमाम अमाल फ़सादे नियत का शिकार हैं, अलबत्ता मुझ फ़कीर का एक अमल महिज़ तेरी ही इनायत से इस काबिल (और लाइके इल्तिफ़ात) है और वो ये है के मजलिसे मीलाद के मोके पर खड़े हो कर सलाम पढता हूँ और निहायत ही आजिज़ी व इंकिसारी, मुहब्बतों ख़ुलूस के साथ तेरे हबीबे पाक सलल्लाहु अलैहि वसल्लम पर दुरूदो सलाम भेजता हूँ,
ऐ अल्लाह! वो कोनसा मकाम है जहाँ मिलादे पाक से पढ़ कर तेरी तरफ से खेरो बरकत का नुज़ूल होता है? इस लिए ऐ अल्लाह मुझे पक्का यकीन है के मेरा ये अमल कभी रायगा बेकार नहीं जाएगा बल्के यकीनन तेरी बारगाह में कबूल होगा और जो कोई दुरूदो सलाम पढ़े और उस के ज़रिए से दुआ करे वो कभी मुस्तरिद नहीं हो सकती।

विसाल

इल्मो मारफत का ये आफताब बातिल नज़रयात का सद्द्देबाब कर के 21, रबीउल अव्वल 1052, हिजरी को मुताबिक 1642, ईसवी को आप का इन्तिकाल हो गया, आप के जिस्म मुबारक को होज़ शम्सी के किनारे सुपुर्दे खाद किया गया और वसीयत के मुताबिक आप के साहबज़ादे हज़रत मौलाना शैख़ नूरुल हक़ अलैहिर रह्मा ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई।

मज़ार मुक़द्दस

आप का मज़ार मुबारक महरोली शरीफ होज़ शम्सी के किनारे दिल्ली शरीफ में ज़ियारत गाहे खासो आम है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

  1. ख़ज़ीनतुल असफिया
  2. मुहद्दिसीने उज़्ज़ाम हायतो खिदमात
  3. मुजद्दिदीने इस्लाम नंबर
  4. दिल्ली के बत्तीस 32, ख्वाजा
  5. दिल्ली के बाइस 22, ख्वाजा
  6. रहनुमाए मज़ाराते दिल्ली

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