नाम व लक़ब
आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी हज़रत ख्वाजा मसऊद नखासी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह! बज़ाहिर एक मजज़ूब मर्द थे लेकिन बहुत बड़े “साहिबे बातिन” थे, किताब “फवाईदुल फवाइद” में महमूद! और अख़बारूल अखियार! में मसऊद! नाम लिखा है, ख्वारज़म में पैदा हुए, वहीँ बूदो बाश परविरश हुई, इस लिए बाज़ किताबों में आप का नांम महमूद ख्वारज़मी! लिखा है, हज़रत मौलाना जलालुद्दीन रूमी रहमतुल्लाह अलैह! के साहबज़ादे हज़रत मौलाना बहाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह! से दीनी और दुनियावी इल्म हासिल किया, हज़रत शैख़ नजमुद्दीन कुबरा से मुरीद हो कर खिरकाए खिलाफत हासिल किया था,
आप के मुआसिरन: सुहबत याफ्ता में हज़रत शैख़ मज्दुद्दीन बगदादी, हज़रत बाकमाल खुजनदी, हज़रत शैख़ रज़ीउद्दीन, और शैख़ नज्म राज़ी रहमतुल्लाह अलैहिम के थे, मुतअद्दिद दुरवेशों के साथ पीरो मुर्शिद की खानकाह में रह कर रियाज़त और मुजाहिदे करते थे, एक दिन हज़रत शैख़ मज्दुद्दीन कुबरा रहमतुल्लाह अलैह अपने तमाम मुरीदीन और मोतक़िदीन को बुला कर फ़रमाया, तुम लोग अपने अपने मक़ामात को चले जाओ, मशरिक से आग लगने वाली है, जो मगरिब तक चली जायेगी, इस में मेरी भी शहादत होगी, ये आप का इशारा मंगोलों की कत्लों गारत गिरी की तरफ था।
आप की हिंदुस्तान में आमद
चुनांचे सब मुरीद रखते सफर बाँध कर अपनी अपनी मंज़िल की तरफ रवाना हो गए, महमूद ख्वार ज़मी किरमान की तरफ निकल गए, वहां से अस्फहान और निशापुर होते हुए, गौर पहुंचे, इस के बाद सुल्तान मुहम्मद गौरी की फौज में दाखिल हो कर हज़रत मीरा खुन्क सवार चिश्ती के साथ 588/ हिजरी में हिन्दुस्तान आ कर अजमेर शरीफ में रिहाइश इख़्तियार की, सुल्तान शम्सुद्दीन अल्तमश के दौरे अहिद में बदायूं शरीफ तशरीफ़ लाए, और ज़ेरे तामीर जामा मस्जिद मशरिक की तरफ रहने लगे, दिन भर नखासा में रह कर लोगों को पनदो नसीहत करते, शाम को लकड़ियों का गठ्ठा सर पर रख कर अपनी क़याम गाह पर चले आते, उलूमे रस्मी और हकीकी के माहिर थे, वज़ा रिंदाना और मशरब कलंदराना रखते थे, महीने 15/ दिन सुलूक में रहते थे और 15/ दिन जज़्ब में, जज़्ब के दौरान जंगल की समत निकल जाते और दरख्तों की पत्तियां खा कर दिन गुज़ारते थे, जब सुलूक में हो जाते तो आबादी में चले आते, दिन के अपने अलाओ की आग के एहतिमाम में मसरूफ रहते और रात भर शहर का गश्त मिस्ल चौकीदारों के लगाते, सिपाहियों जैसा लिबास पहिनते थे, तलवार कमर में होती थी, और नेज़ह हाथ में, किसी दुनिदार से लगाओ ना रखते, हज़रत मौलाना ज़ैनुद्दीन सदर मुदर्रिस मदरसा मुइज़्ज़िया आप से बहुत अकीदत रखते थे।
सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन
हज़रत सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया रहमतुल्लाह अलैह! से मन्क़ूल है के बदायूं में एक बुज़रुग हज़रत ख्वाजा मसऊद नखासी रहमतुल्लाह अलैह रहते थे, एक मर्तबा मौलना ज़ैनुद्दीन ने आप को बुलाया और कहा हमे कुछ फायदे की बातें बताएं, आप ने फ़रमाया अव्वल शराब लाओ, जब शराब आ गई तो आप ने फ़रमाया जामा मस्जिद के होज़ के किनारे बैठ कर पीयूंगा, चुनांचे हज़रत मौलाना ज़ैनुद्दीन आप को होज़ के किनारे ले गए, वहां पहुंच कर हज़रत मौलाना ज़ैनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह से आप ने फ़रमाया: तुम साकी बनो और मुझे प्याले भर भर के पिलाओ, हज़रत मौलाना ज़ैनुद्दीन रहमतुल्लाह अलैह ने ऐसा ही किया, जब मस्त हो गए तो कपड़े उतार कर होज़ में घुस गए, थोड़ी देर बाद बाहर आए और फ़रमाया, अब तुम मुझ से फायदे की बातें पूछो तो आप ने 5/ नसीहतें कीं, (1) ये के घर का दरवाज़ा खुला रख जो कोई आए उसे मना ना कर, (2) ये के कोशादह पेशानी और बशाश्त रहे, (3) ये के जो कुछ क़लील या कसीर मयस्सर हो उस के देने में नफरत ना करना, (4) ये के अपना बोझ किसी पर मत रख, (5) ये के लोगों का बार अपने कन्धों पर लो,
एक मर्तबा नसीरुद्दीन नाज़िम बदायूं के यहाँ आप पहुंच गए, वो अपने अहबाब के साथ खाना खा रहे थे, आप को देखते ही बोला खाना खा लीजिए, आप ने फ़ौरन खाना खाना शुरू कर दिया, एक कुत्ता भी आप के पीछे आ रहा था, वो भी आ कर खाने लगा, ये देख कर सब लोग दस्त कश हो गए मगर आप खाना खाते रहे, जब खा चुके तो लोगों ने पूछा आप ने कुत्ते के साथ खाना खा लिया, फिर आप ने फ़रमाया: हुज़ूर रह्मते आलम नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का इरशाद है, “दुनिया मुरदार है और ख्वाइश मंद कुत्ते हैं” इस लिए तुम दुनियादारों और कुत्ते के साथ खाना बराबर है, हज़रत शैख़ शाही रहमतुल्लाह अलैह के विसाल के बाद ऐसे बीमार पड़े के उठने बैठने की ताकत ना रही, इसी हालत में जज़्ब शुरू हो गया था, और आप का विसाल हो गया।
वफ़ात
आप की सही तारीखे विसाल मालूम ना हो सकी, लेकिन मोहल्ले वाले 29/ रमज़ानुल मुबारक को उर्स मनाते हैं।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
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रेफरेन्स हवाला
(1) मरदाने खुदा
(2) तज़किरतुल वासिलीन