दिल को अच्छा तन को सुथरा जान को पुरनूर कर
अच्छे प्यारे शम्सुद्द्दीं बदरुल उला के वास्ते
विलादत शरीफ
आप की पैदाइश मुबारक 28, रमज़ानुल मुबारक 1160, हिजरी में हुई।
आप के वालिद माजिद
आप के वालिद माजिद का नाम मुबारक खल्फ़ुर रशीद हज़रत सय्यद शाह हमज़ाह ऐनी मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु है ।
इस्म शरीफ
आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “सय्यद आले अहमद” और लक़ब शम्से मारहरा, शम्सुद्दीन, अच्छे मियां, कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी है ।
विलादत की बशारत
हुज़ूर साहिबुल बरकात सुल्तानुल आशिक़ीन सय्यद शाह बरकतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने ये बशारत दी थी के मुझे खुदा के फ़ज़्ल से चार वास्तों के बाद एक लड़का इनायत होगा जिससे खानदान की रौनक दो बाला होगी, इस के बाद सुल्तानुल आशिक़ीन सय्यद शाह बरकतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी ने अपना एक खिरका अता फ़रमाया और हुक्म दिया के ये उस साहब ज़ादे के लिए है, उस्ताज़ुल मुहक़्क़िक़ीन हजऱत सय्यदना शाह आले मुहम्मद रहमतुल्लाह अलैह (हुज़ूर साहिबुल बरकात रहमतुल्लाह अलैह के बड़े बेटे) ने हज़रत सय्यद शाह आले अहमद अच्छे मियां मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु को बिस्मिल्लाह ख्वानी के वक़्त गोद में बिठा कर इरशाद फ़रमाया: ये वही शहज़ादे हैं जिन की बशारत वालिद माजिद ने दी थी।
तालीमों तरबियत
आप ने उलूम ज़ाहिरी व बातनि व राहे सुलूक की मंज़िलें अपने वालिद माजिद से पूरी फ़रमाई, और आप के रूहानी मुअल्लिम उस्ताद हुज़ूर सय्यदना गौसे आज़म मुहीयुद्दीन अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु थे, इस के अलावा आप ने फन्ने तिब बा कायदा कलीम नसरुल्लाह साहब मारहरवी से हासिल फ़रमाया था मगर इस इल्म से सिवाए सत्तर तसर्रुफ़ात के काम न लिया जाता था, बा ज़ाहिर मरीज़ को मामूली दवा या किसी दरख्त के पत्ते तजवीज़ फरमाते, मगर हकीकतन खुद चारा साज़ी फरमाते।
फ़ज़ाइलो कमालात
कुद वतुल कामिलीन, क़ुत्बुल आरफीन, आशिके खुदा, माशूके सरकार मुस्तफा, मज़हरे जनाबे गौसियात मआब सय्यद फखरुल औलिया, शम्सुद्दीन अबुल फ़ज़्ल हज़रत सय्यद शाह आले अहमद अच्छे मियां मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु आप सिलसिलए आलिया कादिरिया के छत्तीस वे 36, इमाम व शैख़े तरीकत हैं, आप बड़े बा कमाल व आरिफ़े बिल्लाह थे, करामात व तसर्रुफ़ात में अपना सानी नहीं रखते थे, उलूमे ज़ाहिर व बातिन में बे हमता थे आप ने सख्त तरीन रियाज़तें कीं और मुजाहिदात व सुलूक में एक खास शान के हामिल थे, गुलामो की हिफाज़त, किफ़ालत खुद फरमाते और अख़लाके नबवी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पैकर थे,
आम मखलूक पर आप की नज़र महिर्बान होती ही थी लेकिन बदायूं शरीफ के खादिमो पर आप की ख़ास नवाज़िशें होती थीं “और इरशाद फरमाते के बदायूं हमारी जागीर है” जो जागीर हम को हुज़ूर सय्यदना गौसे आज़म मुहीयुद्दीन अब्दुल कादिर जिलानी रदियल्लाहु अन्हु से अता हुई है, आप उलूमे ज़ाहिर व बातिन के बेहतरीन आलिम थे अक्सर उलमा व फ़ुज़लाए किराम आप के खादिम थे, उलमा के दक़ीक़ व मुश्किल मसाइल ऐसी खूबी से हल फरमा देते के अक्लें हैरान रह जाती एक बार हजऱत के आखरी अहिद में हजऱत मौलाना शाह अब्दुल मजीद ऐनुल हक बदायूनी कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी जो अजिल्लाए खुलफ़ा में से हैं अर्ज़ किया: मस्लए किरतास में हर चंद उलमा ने जवाब दिए हैं लेकिन हुज़ूर मीर तस्कीन खातिर फ़रमा दें? हजऱत ने दवात कलम का हुक्म फ़रमाया फ़ौरन हजऱत शाह ऐनुल हक पर मसाइल की तहक़ीक़ वारिद हुई और फ़रमाया: फ़क़ीर को हिदायात शाफी मिल चुके हैं और हजऱत के फ़ज़ाइल व मनाक़िब हजऱत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह के “मलफ़ूज़ात अज़ीज़ी” में मौजूद हैं।
मस्लए वह्दतुल वुजूद
वाक़िआ इस तरह है के एक शख्स ने हजऱत नकीबुल अशराफ बग़दाद रहमतुल्लाह अलैह की खिदमते बा बरकात में हाज़िर हो कर “मस्लए वह्दतुल वुजूद” समझना चाहा, तो हजऱत ने हिंदुस्तान के सफर की हिदायत फ़रमाई, वो साहिबे उलमा व मशाइख़ीने इज़ाम से मिलते हुए हजऱत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की खिदमत में पहुंचे, अपनी बात अर्ज़ की मगर तशफ्फी न हुई, हजऱत शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह ने फ़रमाया: आप मारहरा शरीफ में हज़रत सय्यद शाह आले अहमद अच्छे मियां मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की खिदमत में जाओ वो आप की तस्कीन खातिर फ़रमाएंगें।
इबादतों रियाज़त
हज़रत सय्यद शाह आले अहमद अच्छे मियां मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु इबादतों रियाज़त में बहुत बुलंद रुतबा रखते थे, आप हमेशा इक्तिसाबे अज़कार व मुराकीबा व अशग़ाल में मसरूफ रहते यहाँ तक के फ़राइज़ पंज वक्ता के अलावा जैसे कबीर, सलात नमाज़, सलाते मन्कूस व सोम रोज़ह, नवाफिल और मुजाहिदात रियाज़त बातिन औरादो अशग़ाल का लाज़मी तौर पर करते थे।
आप के आदात व मामूलात
हज़रत सय्यद शाह आले अहमद अच्छे मियां रदियल्लाहु अन्हु के मामूलात रोज़ो शब् इस तरह से थे, आप आखिर शब् में उठ कर हवाइज ज़रूरिया से फारिग होते, फिर वुज़ू फरमाकर नमाज़े तहज्जुद अदा करते इस के बाद दीन की तरक्की और मुतावस्सिलीन के लिए दुआए मगफिरत फरमाते, जब दुआ से फारिग हो जाते तो फुकरा ग्यारह बार ज़िक्र कलमा शरीफ बुलंद आवाज़ से करते, उस वक़्त दरवाज़ा बंद हो जाता था और किसी गैर को खल्वते ख़ास में जाने की मजाल न होती, इस के बाद महल सरा में तशरीफ़ ले जाते, थोड़ी देर बाद खानकाह में तशरीफ़ लाते और दुरवेशों को तलब फरमा कर इस्तिफ़सार व इरादत फरमाते बा क़द्रे हौसला हर एक की इस्लाह फरमाते, फिर दरगाह शरीफ जा कर पहले अपने वालिद माजिद के मज़ार पर फातिहा व कदम बोसी के लिए हाज़िर होते और फिर वालिदा माजिदा जद्दे अमजद चचा मुहतरम के मज़ारात पर फातिहा पढ़ते अक्सर औकात दरगाहे मुअल्ला से मुत्तसिल पाईती बाग़ में तशरीफ़ ले जाते और जामन के दरख्त के नीचे दरी बिछा कर जलवा अफ़रोज़ होते वहां से उठ कर खानकाह तशरीफ़ ले जाते, उस वक़्त दरबारे आम होता हर एक अपना अपना मतलब अर्ज़ करता,
आप अपने खुद्दाम को सख्तम मेहनत और रियाज़त से बचाते अहले हाजात को भी वज़ाइफ़ व आमाल बहुत कम अता करते ज़बानी अर्ज़ी या अर्ज़ी पर हुक्म होता और काम पूरा हो जाता, अपने अकाबिर की तरह तसर्रुफ़ात में पोशीदगी फरमाते, दो पहर के वक़्त खाना तनावुल फरमाते तो गेहूं की दो या तीन हल्की चपातियां शोरबा या मूंग की दाल के साथ खाते, फिर कैलूला करते इस के बाद वुज़ू फरमाते और ज़ोहर की नमाज़ अदा करते इस के बाद कुरआन शरीफ पढ़ते, फिर खानकाह में जलवा अफ़रोज़ हो कर दुरुद का वज़ीफ़ा पढ़ते फिर असर की नमाज़ मस्जिद में अदा करते फिर खानकाह में रौनक अफ़रोज़ होते, फिर नमाज़े मगरिब मासिज में अदा फरमाते बा जमात, फिर इस के बाद फुकराए खत्म ख्वाजगान करते फिर खानकाह में हाज़िर होते उस वक़्त खुद्दाम व सब हाज़रीन दस्त बस्ता आदाब बजा लाते, हज़रत रौनक अफ़रोज़ हो कर तस्बीह दुरुद शरीफ का वज़ीफ़ा पढ़ते, फिर नमाज़े इशा मस्जिद में अदा फरमाते और बादे इशा दरवाज़े मगलूक बंद हो जाते थे ।
तसानीफ़ व इल्मी खिदमात
आप की तसानीफ़ के बारे में हज़रत अल्लामा व मौलाना शाह मुहम्मद मियां मारहरवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के हज़रत की तस्नीफ़ व तालीफ़ से सब से बड़ी ज़खीम किताब “आईने अहमदी” है, सुना है के इस की चौंतीस व बारिवायते साठ 60, जिल्दें बहुत मसबूत उलूमो फुनून में थीं अपने नज़दीक उलूमे मुतादाविला में से कोई इल्मो फन ऐसा नहीं छोड़ा था जो इसमें ना हो इस की बहुत सी जिल्दें गुम हो गईं , अब फ़क़ीर के क़ुतुब खाने में चंद जिल्दें हैं जिन में एक अक़ाइद व फ़िक़्ह में बतौरे मुताकल्लिमीन व सूफ़िया बाक़िया अशग़ाल व औराद वगेरा में हैं और कुछ जिल्दें हुज़ूर सय्यद मेहदी हसन चचा मुहतरम के क़ुतुब खाने में थीं और कुछ जिल्दें मदरसा कादिरिया बदायू में हज़रत अल्लामा व मौलाना फ़ज़्ले रसूल बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह ने क़ुतुब खाने में मौजूद हैं, बयाज़े अमल व मामूल, आदाबुस सालिकीन, इसकी तीन मर्तबा जदीद इशाअत हो चुकी है, मसनवी अशआर तसव्वुफ़ में, दीवाने अशआर फ़ारसी में।
कशफो करामात
बर्स अच्छा हो गया
जनाब शैख़ रसूल बख्श बयान करते हैं के एक मर्तबा एक बर्स ज़दाह सिपाही हाज़िर हुआ और दूर ही खड़ा रहा, हज़रत ने फ़रमाया भाई आगे आओ? वो अर्ज़ करने लगा हुज़ूर! में इस काबिल नहीं हूँ, फ़रमाया: आगे आओ वो शख्स आगे आया तो जिस जगह सफ़ेद दाग था हज़रत ने अपना दस्ते मुबारक को रखा और इरशाद फ़रमाया यहाँ तो कुछ भी नहीं है? इस के बाद सिपाही ने देखा तो सफ़ेद दाग बिलकुल गायब था।
राहे सुलूक दुरुद शरीफ से तैय
“आसारे अहमदी” में लिखा हुआ है के बुखारा का रहने वाला एक शख्स मारहरा शरीफ हाज़िर हुआ और नमाज़े ज़ोहर खानकाह शरीफ में पढ़कर आप की खिदमत में हाज़िर हुआ और अर्ज़ किया: हज़रत का नाम सुनकर तलब हक के लिए आया हूँ, क्युंके मुझ में मुजाहिदा करने की ताकत नहीं है हुज़ूर की तवज्जुह से बे मेहनत इस अज़ीम फैज़ से मुशर्रफ होना चाहता हूँ, हज़रत ने तबस्सुम आमेज़ लहजे में फ़रमाया: इतनी बड़ी दौलत इस कदर जल्दी चाहते हो? हाज़रीन में से एक शख्स ने ताना दिया के ये भी कोई हलवा है, जो तुम्हारे मुँह में रख दिया जाए? हज़रत ने फ़रमाया ऐसा न कहो खुदा से क्या बईद है, फिर इस नौजवान को दुरुद शरीफ तालीम फरमा कर कहा: आज रात को पढ़ना? इसने रात को पढ़ा, दुरुद शरीफ पढ़ने की हालत में हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज़ियारत से मुशर्रफ हुआ और एक हालत इस पर तारी हो गई जिस से इस की बातनि गिराह खुल गई, सुबह को हज़रत की खिदमत में अर्ज़ करने लगा, सुब्हानल्लाह! हुज़ूर नबी करीम सलल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझ से इरशाद फ़रमाया: हर सदी के बाद मेरी उम्मत में एक शख्स ऐसा होगा जो मेरे दीन को ज़िंदह करेगा तो वो ज़ात मुकद्द्स आज इस सदी में हुज़ूर आप की है।
तीन औलाद की बशारत
खलीफा मुहम्मद इरादतुल्लाह बदायूनी आप के मुरीद थे और हमा वक़्त इसी फ़िक्र में रहते थे के अल्लाह पाक एक बेटा अता फरमाए एक मर्तबा हुज़ूर साहिबुल बरकात के उर्स में अपने मुर्शिद के रूबरू खड़े थे, दरियाए इरफ़ानी सखावत जोश पर था, इरशाद फ़रमाया इरादतउल्लाह क्या चाहते हो उन्होंने अर्ज़ किया: गुलाम कोई फातिहा ख्वां नहीं है? हज़रत ने फ़रमाया: अल्लाह पाक हमारे इरादतुल्लाह को फ़रज़न्द दे दे इस के बाद फ़रमाया: खलीफा पहले बेटे का नाम करीम बख्श रखना, दूसरे का रहीम बख्श और तीसरे का इलाही बख्श रखना, खलीफा मौसूफ़ कदमो पर गिर पड़े और अर्ज़ क्या हुज़ूर मुझ को उम्मीद नहीं! तो हज़रत ने अपने सर मुबारक की टोपी अता फ़रमाई और इरशाद फ़रमाया: खुदा की ज़ात से मुझ को उम्मीद है खलीफा इरादतुल्लाह वापस हुए, जल्द ही खुदा की कुदरत ज़ाहिर हुई, वक़्ते मुकर्राह के बाद बेटा पैदा हुआ, खलीफा ने उस का नाम करीम बख्श रखा यहाँ तक के तीन सालों में तीन बच्चे पैदा हुए और तीनो का नाम हज़रत के हुक्म के मुताबिक रखे, खुदा की अता से तीनो बेटे जवान व आकिल हुए दो बेटो ने अपना आबाई पेशा हजामत इख्तियार किया और करीम बख्श ने इल्म हासिल किया और उलूमे मुरव्वजा हासिल कर के अंग्रेजी गोरमेंट के मुलाज़िम हुए, करीमुल लुगात इन ही की तस्नीफ़ करदह है।
ला तादाद मुरीदों की पहचान
गुलशने अबरार में हुज़ूर अच्छे मियां रहमतुल्लाह अलैह के खलीफा मौलवी रियाजुद्दीन सहस्वानी तहरीर फरमाते हैं के एक दिहाती खिदमत में हाज़िर हो कर मुरीद हुआ, काफी लम्बे अरसे के बाद भी दरबारे अक़दस में हाज़री का मौका न मिला, इत्तिफाकन एक साल हुज़ूर सय्यद हमज़ाह रहमतुल्लाह अलैह के उर्स मुबारक में हाज़िर हुआ, जहाँ हज़ारों की भीड़ थी, इस शख्स के दिल में ये ख्याल आया के हज़रत के हज़ारों मुरीद हैं और रोज़ाना एक गिरोह आ कर मुरीद होता है भला हज़रत को क्या याद होगा के ये हमारा मुरीद है? कुछ देर के बाद वो दिहाती भी खिदमत में हाज़िर हुआ, सलाम व कलाम के बाद हज़रत ने ख़ास तौर से इन को करीब बुलाकर फ़रमाया, खैरियत पूछी, गाऊं का हाल मालूम किया और इरशाद फ़रमाया: मियां तुम अपने मवेशियों के साथ गाऊं वालों के जो चौपाए जंगल में ले आते हो उनमे अपना या पराया कैसे पहचान लेते हो उन्होंने कहा हम उनके गले में डोरा डाल देते हैं, इस के कहने पर हज़रत ने इरशाद फ़रमाया: मियां फ़क़ीर भी अपने मुरीदों को इसी तरह खूब पहचनता है इन के गले में एक मुहब्बत का डोरा बंधा होता है जिसे फ़क़ीर भी जान लेता है।
बादशाहों के नज़राने
बादशाह गोहर शाह आलम ने अपने फरमा बरदार नवाब आसिफुद्द दौला लखनऊ के ज़रिए 1198, हिजरी में मुतअद्दिद गाऊं खानकाहे बरकातिया के लिए वक्क्फ़ किए थे जिन के नाम ये हैं: सूरत पुर, इस्लाम पुर, पहली परगना, रहमतपुर, व बसूरह खुर्द, इन तमाम गाऊँ को खानकाहे बरकातिया के खर्च करे लिए वक़्फ़ किए थे।
ख़ज़ानाए गौसिया
हज़रत की तहवील में एक छोटा सा खज़ाना था जिसे “गौसिया” के नाम से याद किया जाता है इस की वुसअत की कोई इंतिहा न थी हज़ारों रुपए के इनामात व अत्यात इस शाही ख़ज़ानाए गौसिया से होते सैंकड़ों खुद्दाम थे जिन की किफ़ालत देख भाल खुद हज़रत फरमाते थे और इसी ख़ज़ाने से आस्ताने के हाज़रीन जुमला खुद्दाम की आशाइश का सामान मंगवाते बावजूद इन इख़राजात के “ख़ज़ानाए गौसिया” में कमी न होती जो हज़रत की अज़ीम करामातों में से एक ज़िंदह करामत थी।
हज़रत मौलाना शाह ऐनुल हक अब्दुल मजीद क़ादरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह आप की बारगाह में
खानदाने उस्मानी बदायूं शरीफ के चश्मों चिराग हज़रत मौलाना शाह ऐनुल हक अब्दुल मजीद क़ादरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह भी सरकार गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह के इशारे पर हज़रत सय्यद शाह आले अहमद अच्छे मियां मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में हाज़िर हुए और मुरीद हो कर खिलाफत हासिल की,
इन की बैअत का वाक़िआ इस तरह है के हज़रत मौलाना शाह अब्दुल मजीद उस्मानी रहमतुल्लाह अलैह, सय्यद शाह आले अहमद अच्छे मियां मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु की बारगाह में हाज़िर हुए लेकिन बगैर मुरीद हुए ये कहते हुए वापस हुए के “यहाँ भी ऊचीं दुकान और फीका पकवान है” बदायूं शरीफ पहुंच कर हज़रत सुल्तानुल आरफीन ख्वाजा हसन शैख़ शाही उर्फ़ बड़े सरकार रहमतुल्लाह अलैह के आस्ताने पर आराम फरमाने के लिए ठहर गए, ख्वाब में देखा के सरकारे बग़दाद का दरबार सजा है सरकार गौसे आज़म रहमतुल्लाह अलैह ने इशारा फ़रमाया के शाह अब्दुल मजीद उस्मानी का हाथ “हुज़ूर अच्छे मियां के हाथ में दे दिया जाए, हज़रत मौलाना शाह अब्दुल मजीद उस्मानी रहमतुल्लाह अलैह फ़ौरन ही मारहरा शरीफ की तरफ रवाना हुए और हुज़ूर शमशे मारहरा के कदमो में बेसाख्ता गिर पढ़े, हुज़ूर शमशे मारहरा ने मुस्कुराते हुए फ़रमाया: मियां यह तो ऊंचीं दुकान और फीका पकवान है, लेकिन इशारा हो चुका था लिहाज़ा बैअतो खिलाफत के साथ साथ अपना साथ अता फ़रमाया, के इस के बाद हज़रत मौलाना अब्दुल मजीद रहमतुल्लाह अलैह ने अपने मुर्शिद का दर न छोड़ा जिस का इनआम ये हुआ के हज़रत सय्यद शाह आले अहमद अच्छे मियां मारहरवी रदियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया “क़यामत के दिन खुदा जब पूछेगा के मेरे लिए क्या लाए हो? तो में हज़रत मौलाना शाह ऐनुल हक अब्दुल मजीद क़ादरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह” को पेश कर दूंगा, शाह ऐनुल हक अब्दुल मजीद क़ादरी बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह को शम्से मारहरा “मौलवी” कहकर खिताब फरमाते और ये लफ्ज़ ऐसा बा असर हुआ के इन के मोहल्ले की साऱी आबादी ही “मौलवी मोहल्ला” कहने लगी ।
आप की औलादे किराम
हज़रत का निकाह शरीफ हज़रत सय्यद गुलाम अली सुल्हड़वी बिलगीरामि की साहब ज़ादी “फ़ज़्ल फातिमा” से हुआ, जिन से एक साहब ज़ादी और एक साहब ज़ादे तवल्लुद (पैदाइश, जन्म) हुए, (1) साहब ज़ादी बचपन में इन्तिकाल कर गईं, (2) हज़रत साईं मियां साहब जो हज़रत के साहब ज़ादे थे मादर ज़ाद वली थे, जो मुँह से निकल जाता अल्लाह पाक उसे पूरा फरमा देता आप को बुखार आया इसी सबब से 13, रबीउल अव्वल 1196, हिजरी को वफ़ात पाई, और दरगाह शाह बरकतुल्लाह कुद्दीसा सिररुहुन नूरानी में बच्चों के खतीरे में दफन हुए।
आप के खुलफाए इज़ाम
आप के खुलफाए इज़ाम चार दांगें आलम में थे और आप के मुरीदीन बेशुमार थे, हिंदुस्तान, मुल्के अरब, रूम, मुल्के शाम जिसे आज के वक़्त में सीरिया कहा जाता है, और फारस ईरान वगेरा वगेरा एक अंदाज़े के मुताबिक करीब दो लाख की तादाद पहुंची है जिन्होंने मज़हबे अहले सुन्नत को खूब रोशन किया, और आप के खुलफाए इज़ाम के नाम हस्बे ज़ैल हैं:
- हज़रत सय्यद शाह आले बरकात सुथरे मियां,
- हज़रत पीर बगदादी साहब, आप हुज़ूर गौसे आज़म की औलाद पाक से हैं,
- हज़रत शाह खैरात अली, आप सय्यद शाह मीर फ़ज़्लुल्लाह काल्पवि रहमतुल्लाह अलैह के नबीरह हैं,
- हज़रत मौलाना अब्दुल मजीद ऐनुल हक बदायूनी,
- हज़रत मौलाना अब्दुल मजीद उस्मानी बदायूनी,
- हज़रत हाफिज़ सय्यद गुलाम अली शाहजहां पूरी,
- हज़रत मौलाना रियाज़ुद्दीन सहस्वानी,
- हज़रत मौलाना फखरुद्दीन उस्मानी बदायूनी,
- हज़रत मौलाना ज़िकरूल्लाह साहब फरशोरी बदायूनी,
- हज़रत मौलाना अबुल हसन उस्मानी बदायूनी सुम्मा बरेलवी,
- हज़रत मौलाना हबीबुल्लाह अब्बासी बदायूनी,
- हज़रत मौलाना मुहम्मद बहाउल हक अब्बासी बदायूनी,
- हज़रत मौलाना फ़ज़्ले इमाम राए बरेलवी,
- हज़रत मौलाना मुहम्मद निज़ामुद्दीन साहब अब्बासी बदायूनी,
- हज़रत मौलाना शाह सलामतुल्लाह बदायूनी सुम्मा कानपुरी,
- हज़रत मौलाना मुहम्मद अफ़ज़ल सिद्दीकी बदायूनी,
- हज़रत मौलाना मुहम्मद आज़म सहस्वानी,
- हज़रत मौलाना नूर मुहम्मद,
- हज़रत मौलाना बदरुद्दीन बुखारी,
- हज़रत मौलाना शैख़ अहमद देहलवी,
- हज़रत मौलाना अब्दुल जब्बार शाहजहांन पूरी,
- हज़रत मौलाना अब्दुल कादिर दाइस्तानी,
- हज़रत मौलाना क़ाज़ी अब्बास बदायूनी,
- हज़रत मौलाना नसीरुद्दीन बदायूनी,
- हज़रत हाफ़िज़ महफूज़ आँवला,
- हज़रत ख्वाजा गुलाम नक्शबंद खान देहलवी,
- हज़रत सय्यद शाह फ़ज़्ल ग़ौस बरेलवी,
- हज़रत शाह खामोश,
- हज़रत सय्यद महमूद मक्की,
- हज़रत सय्यद मुहम्मद अली साहब मुलकक्ब गुलाम दुर्वेश लखनवी रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन, ।
“फना फिश शैख़” की तीन किस्मे हैं
“पहली फना” है यानि अपने आप को तस्व्वुरे मुर्शिद में ऐसा फरामोश और ऐसा ग़ुम कर दे के अपने आप को गैर मुर्शिद न समझे मतलब ये है के अपनी हस्ती बिलकुल भुला दे और अपने बजाए सिर्फ मुर्शिद को ही मौजूद जाने और आज़ा से जो कुछ हरकात व सकनात ज़ाहिर हों यही जाने के ये आज़ा मुर्शिद के हैं और इन की हरकत व सुकून बा इख़्तियार मुर्शिद है, अपने आप को बदन शैख़ के मफ़हूम या माकूल या मोहूम मानिंद तसव्वुर करे और जो सिर्फ फ़हम वहम व अक्ल शैख़ के लिए जाने और अपने सब अतवार में सर मूए वुजूद न जाने न हकीकतन न फ़र्ज़ है,
दूसरी फना
फना फिर रसूल: यहाँ उन सब ऊपर लिखी हुई बातों को हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिसमे पाक से समझे और क़तअन वुजूद वहम में भी न लाए, ये फना अव्वल से हासिल होती है, इस लिए के सालिक अव्वल अपने शैख़ में फानी हुआ है और शैख़ नबी हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में फानी है बस ये फ़ना सहूलत के साथ हासिल हो जाती है।
तीसरी फ़ना
फना फिल्लाह: है और जब ये फना इंतिहा पर पहुँचती है तो बका की इब्दिता होती है, जब ये फना हज़रत सय्यदुत ताइफ़ा जुनैदे बगदादी रदियल्लाहु अन्हु को हासिल हुई तो फ़रमाया: में तो चालीस साल से अपने खुदा से कलाम कर रहा हूँ और ख़ल्क़ समझती है के हम से कलाम कर रहे हैं और इसी तरह के और बहुत से बुज़ुर्गों के अक़वाल हैं, इस लिए के इस का तौर इसी तरह और बहुत से बुज़ुर्गों के अक़वाल का होता है, और इस फना के हासिल करने के बाद सालिक मवाहिद बिज़्ज़ात होता है के शिर्क का वुजूद का दरिया भी बाकी नहीं रहता।
विसाल मुबारक व उर्स
आप ने 17, रबीउल अव्वल 1235, हिजरी बरोज़ जुमेरात मुताबिक तीस दिसंबर 1819, ईस्वी चाशते के वक़्त 75, साल की उमर में विसाल फ़रमाया।
मज़ार शरीफ
आप का मज़ार मुकद्द्स मारहरा शरीफ ज़िला एटा यूपी हिन्द में ज़ियारत गाहे खलाइक है।
“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”
Share Zaroor Karen Jazakallah
रेफरेन्स हवाला
(1) तज़किराए मशाइखे क़ादिरिया बरकातिया रज़विया
(2) तज़किराए मशाइखे मारहरा
(3) खानदाने बरकात
(4) बरकाती कोइज़
(5) नूर मदाहे हुज़ूर