हज़रत ख्वाजा शैख़ अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा शैख़ अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह

विलादत बसआदत

आईनए जमाले ज़ाते मुतलक़, काशिफे असरारे हकीकत, आईनए हिंदुस्तान असरारे मुतासद्दिक, इल्मो फ़ज़्ल, सुलूको तसव्वुफ़, ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, इख़्लासो ज़बानो कलम के धनि,
हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! की विलादत यानि पैदाइश मुबारक “ऊध, अयुधिया ज़िला फैज़ाबाद में हुई, यहीं पर आप का बचपन गुज़रा, नाशु नुमा (परवरिश) हुई, और इब्तिदाई तालीम हासिल की, औरों की तरह आप भी बाशिंदए “ऊध, की वजह से ऊधी! कहलाने लगे, अभी आप सने शऊर को ही पहुंचे थे, के आप का घराना “ऊध, अयुधिया ज़िला फैज़ाबाद! से लखनूती बंगाल हिजरत कर गए, इसी वजह से आप ऊधी! और सुम्मा बंगाली के नाम से मशहूर हो गए,
ज़िला फैज़ाबाद यूपी का पुराना नाम “ऊध” कहलाता था,
हज़रत अल्लामा डाक्टर आसिम आज़मी साहब क़िबला! लिखते हैं के: हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! जिन को अखि सिराज भी कहते हैं, आप का आबाई वतन “ऊध, अयुधिया ज़िला फैज़ाबाद” था, मगर वालिद माजिद ने लखनूती बंगाल! जिसे “गोर” कहा जाता है, यहाँ पर रिहाइश इख़्तियार करली,
हासिले कलाम:
ये है के हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! राजिह कोल के मुताबिक “ऊध, अयुधिया ज़िला फैज़ाबाद” में पैदा हुए, यहीं पर आप का बचपन गुज़रा, इब्तिदाई तालीम की तकमील हुई, फिर अपने वालिद मुहतरम के हमराह हिजरत कर के लखनूती बंगाल! तशरीफ़ लाए, फिर अपनी वालिदा माजिदा की इजाज़त से लखनूती बंगाल! की सरज़मीन से दिल्ली! सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया बदायूनी सुम्मा देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की बारगाह में तह्सीले इल्म व राहे सुलूक मारफत के लिए तशरीफ़ ले गए।

आप के वालिद माजिद का हिजरत करना

हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! के आबाओ अजदाद “ऊध, अयुधिया ज़िला फैज़ाबाद” के बाशिंदे थे, ऊध! से आप के वालिद मुहतरम हिजरत कर के लखनूती बंगाल! चले आए थे, वालिदा करीमा भी “ऊध, से अपने खाविंद के साथ हिजरत कर गईं थीं, या इन से पहले लखनूती बंगाल! में क़याम पज़ीर हो गईं थीं,
हज़रत शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! “मिरातुल असरार” में लिखते हैं के: “ऊध, से लखनूती बंगाल! हिजरत का ज़माना कोनसा था? इस की पूरी तफ्सील नहीं मिलती, अलबत्ता ये कहा जा सकता है के हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद माजिद का क़याम “ऊध, अयुधिया ज़िला फैज़ाबाद” में उसी वक़्त तक रहा जब तक हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! वहां क़याम पज़ीर रहे, लेकिन जब उन्होंने दिल्ली के सफर का इरादा किया, “ऊध” को खेरबाद कहकर वहां से चल दिए तो आप का घराना भी मुन्तक़िल हो गया,
हज़रत मुहद्दिसे आज़म हिन्द सय्यद मुहम्मद किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह! लिखते हैं के: बहरेहाल ये वाक़िआ के “ऊध, अयुधिया ज़िला फैज़ाबाद” में इस घराने की आबादी हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! ही के दमकदम से थी और हज़रत के हिजरत के साथ ही ये घर का घर “ऊध, अयुधिया ज़िला फैज़ाबाद” से निकल गया, आप के अइज़्ज़ा अहिब्बा अक़रबा के मज़ारात अबतक अजुधिया! में मौजूद हैं और वहां सालाना उर्स होता है।

आप का इस्मे गिरामी

आप का नामे नामी इस्मे गिरामी “उस्मान” है, और लक़ब उर्फी नाम “सिराजुद्दीन” दोनों को मिला कर “सिराजुद्दीन उस्मान” लिखा जाता है, अक्सर क़ुतुब सीरत तवारीख में यही नाम मिलता है, और सुल्तानुल मशाइख सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को “आईनए हिंदुस्तान” का लक़ब दिया था।

इजाज़तो खिलाफत

हज़रत ख्वाजा सय्यद मुहम्मद बिन मुबारक किरमानी रहमतुल्लाह अलैह ने हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! को ना सिर्फ सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का मुरीद करार दिया, बल्के आप ने “ऊध, अयुधिया ज़िला फैज़ाबाद” व हिंदुस्तान से आने वाले उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम और अवाम व खुद्दाम में “सब से पहला मुरीद लिखा है”
मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के: हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! अनफ़वाने शबाब में जब के दाढ़ी के बाल भी नहीं आए थे, वो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के हल्काए इरादत यानि मुरीदी में दाखिल हो गए,
हासिले गुफ्तुगू:
ये है के हजरत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीद थे, “ऊध, अयुधिया ज़िला फैज़ाबाद” सूबहाए मशरिक के मुरीदों में सब से पहले मुरीद होने का शरफ़ हासिल हुआ जब आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीद! हुए थे, उस वक़्त आप की उमर लगभग चौदह 14, साल के आसपास रही होगी, ऐनी शाहिद हज़रत ख्वाजा सय्यद मुहम्मद बिन मुबारक किरमानी रहमतुल्लाह अलैह “मुसन्निफ़ सेरुल औलिया” और मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह जैसे अबक़री शख्सीयत के अक़वाल की रौशनी में आप ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से मुरीद और खिलाफत हासिल की।

दरबारे मुर्शिद में आप के शबो रोज़

हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! को मुर्शिद के दरबार में ख़ादिमें ख़ास का दर्जा हासिल था, खिदमते सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! में हमेशा हाज़िर बाश खादिमो में आप का शुमार होता था, उन खवास की सुहबत में आप की परवरिश होती थी जो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की मुलाज़िमत इख़्तियार कर चुके थे,
हज़रत ख्वाजा सय्यद मुहम्मद बिन मुबारक किरमानी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं के: हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! ने ऐसे दोस्तों की सुहबत में परवरिश पाई जो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में हमेशा रहा करते थे, हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के दरबार में जाकर गमे दुनिया भुला दिया था, ना कभी अइज़्ज़ा दोस्त अहबाब का ख्याल आप को सताता और नाही वतन मालूफ की मुहब्बत परेशान करती, आप ज़ियादा तर पीरो मुर्शिद की खिदमत में मुत्मइन और फिकरे दुनिया से आज़ाद रहा करते थे।

दरबारे मुर्शिद में असासए हयात

हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! कयामे दिल्ली के दौरान अपने मुर्शिद सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के दरबार में ऐसे रहा करते थे, इनकी ज़िन्दगी की ज़रूरियात नहीं थी, मखमल व मलमल नरम बिस्तरों का ज़िक्र ही किया ओढ़ने पहिनने के कपड़ों का ठिकाना तक नहीं था, अगर कुछ पास में था तो कलम व दवात और चंद किताबें,
साहिबे “सेरुल औलिया” लिखते हैं के: किताब व कॉपी के अलावा कोई असबाब इनके पास नहीं था, ये सब वो किताब खाना और जमात खाना में रखते थे।

दरबारे मुर्शिद में आप का रहन सहन

असासए हयात के बाद आईए देखते हैं के पीरो मुर्शिद के दरबार में हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! के रहन सहन के लिए कैसा इंतिज़ाम था, उन्होंने अपने पीरो मुर्शिद के दरबार में अपना गुज़र बसर किस तरह किया, साहिबे “सेरुल औलिया” लिखते हैं के: वो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के जमात खाना खानकाहे निज़ामिया के एक गोशे में अपनी उमर बसर करते थे,
और आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के महबूबे नज़र, ख़ादिमें ख़ास,और “अखि” व “आईनए हिंदुस्तान” का लक़ब पाने वाले इस अज़ीम हस्ती की रिहाइश गाह देखिये! ना कोई मुस्तकिल घर और नाही मुस्तकिल कमरह, फारिगुल बाली की इससे बेहतर मिसाल शायद ना मिले,
किताब “लताइफे अशरफी” में है के: हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! अपनी उमर शरीफ खानकाह के एक गोशे में गुज़ारते थे, उसी खानकाह में एक गोशा अपने लिए मख़सूस कर लिया था, और एक गोशे कोने में (मुलाकात करने वालों से मिलने के लिए) बैठा करते थे।

पीरो मुर्शिद की नज़रे करम

ये बयान किया जा चुका है हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! अपने पीरो मुर्शिद सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में जब हाज़िर हुए तो उनकी ऐन जवानी का आलम था, चेहरे पर दाढ़ी के बाल भी नहीं आए थे, उमूमन ये उमर इल्म हासिल करने की होती है किसी माहिरे इल्मो फन उस्ताज़ के सामने ज़ानूए अदब तह करने की होती है, और आप ने किसी माहिर इल्मो फन उस्ताज़ की जुस्तुजू नहीं की, किसी मुहद्दिस, व मुफ़स्सिर, और फकीह, की शागिर्दी इख़्तियार नहीं की, क्यूंके आप को यकीन था, के रूहानी सल्तनत के जिस बादशाह के दरबार में हाज़री नसीब हुई है उस दरबार में किसी चीज़ की कमी नहीं है उनकी निगाहें इनायत हुई तो इल्मे रूहानी के साथ इल्मे ज़ाहिरी भी हासिल हो जाएगा और इल्मे बातिन भी मिल जाएगा,
हुआ यूं!
के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आला तरबियत याफ्ता ज़ी इल्म की फहरिस्त तय्यार करने का हुक्म दिया ताके उन्हें खिलाफत से नवाज़ कर उन से दीनो मज़हब का काम लिया जाए, जिन इलाकों में तब्लीगों इरशाद की ज़ियादा ज़रूरत है उन्हें उन इलाकों में मुकर्रर कर दिया जाए, चुनांचे अकाबिर हाज़िर बाशों की फहरिस्त तय्यार हो गई उनमे हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! का नामे मुबारक भी शामिल किया गया, फहरिस्त सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में पेश की गई, आप ने नामो को मुलाहिज़ा फ़रमाया और हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! के बारे में एक जुमला इरशाद फ़रमाया जिस ने आप की ज़ात को हिला कर रख दिया, उसी एक जुमले ने वो जोश वलवला पैदा किया के आप इल्मे दींन हासिल करने में मसरूफ हो गए, और निहायत क़लील मुद्दत में मुरव्वजा उलूमो फुनून में महारत हासिल करली।

हजरत अल्लामा फर्ख़रूद्दीन ज़ररादी की नज़रे करम

सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ज़बानी जब हाज़रीने मजलिस ने हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! को अदमे इल्म की बिना पर खिलाफत से शरफ़याब ना करने की बात सुनी तो सब दमबख़ुद रह गए, हज़रते मुहद्दिसे आज़म हिन्द सय्यद मुहम्मद किछौछवी रहमतुल्लाह अलाइ लिखते हैं के: ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! को इल्मे लदुन्नी कामिल व मुकम्मल हासिल था, मगर किसी उस्ताज़ के सामने बैठ कर इल्म कसबी हासिल करने की नौबत ना आई,
हजरत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! जैसी अज़ीम हस्ती खिलाफ़तो नियाबत से महरूम रह जाए, आप के याराने तरीकत को गवारा ना था, हजरत अल्लामा शैख़ फर्ख़रूद्दीन ज़ररादी रहमतुल्लाह अलैह जो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के निहायत करीबी खलीफा! और वक़्त के मुमताज़ आलिमे दींन थे, उन्होंने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से हजरत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! के तअल्लुक़ से अर्ज़ किया के: में इनको छेह 6, महीने में मुताबहहिर आलिमे दीन बना दूंगा,
हज़रत ख्वाजा सय्यद मुहम्मद बिन मुबारक किरमानी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं के: हजरत अल्लामा शैख़ फर्ख़रूद्दीन ज़ररादी रहमतुल्लाह अलैह ने ये चेलेंज इस लिए किया था के उन्हें मालूम था के लोहा गरम है सिर्फ हथोड़ा मारने की देर है, चुनांचे आलिमे रब्बानी हजरत अल्लामा शैख़ फर्ख़रूद्दीन ज़ररादी रहमतुल्लाह अलैह ने जैसा कहा था वैसा ही हुआ, छेह 6, महीने में मुताबहहिर आलिमे दीन बन गए,

आप का तबाहुर इल्मी

हजरत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! ने अपनी इनहितक मेहनत असातिज़ाए इल्मो फन की इनायतों से क़लील मुद्दत में इतना इल्म हासिल कर लिया के खुद मनसब पर फ़ाइज़ हो गए, किसी आलिमे दीन को ये हिम्मत नहीं थी, के आप से बहसो मुबाहिसा करे, अगर कोई किसी मसले पर आप से हमकलाम होता तो आप अपनी इल्मी व फ़िकरि सलाहीयतों का लोहा मनवा लेते, मुखातिब आप की इल्मी सलाहीयत देख कर हैरत ज़दा रह जाता,
हजरत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! जब हजरत अल्लामा शैख़ फर्ख़रूद्दीन ज़ररादी रहमतुल्लाह अलैह की दर्स गाह में थे, सिर्फ चार माह की मुद्दत गुज़री थी, के किसी आलिम के अंदर आप से बहस करने की हिम्मत नहीं थी, हजरत अल्लामा शैख़ फर्ख़रूद्दीन ज़ररादी रहमतुल्लाह अलैह ने 6, माह के अंदर उन्हें बहुत से उलूम से वाकिफ कर दिया, बाज़ औकात आप के हम अस्र उल्माए किराम बाज़ निकात पर गुफ्तुगू करते तो हजरत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! उन्हें हैरान कर देते थे,
आप के तबाहुर इल्मी! को समझने के लिए ये भी रोशन पहलू है, के हज़रत मख़्दूमुल आलम शैख़ उमर अलाउल हक पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! जो गन्जीनए इल्मो हिकमत थे और अहले इल्म व दुनिया को आज़माते रहते थे, उन्होंने खुद आप को अपना पीरो मुर्शिद तस्लीम कर लिया,

मुर्शिद ने आप का इम्तिहान लिया

हजरत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! जब दर्स गाहे आलिमे रब्बानी हजरत अल्लामा शैख़ फर्ख़रूद्दीन ज़ररादी रहमतुल्लाह अलैह से फरागत पाई तो उस्ताज़े गिरामी ने उन्हें सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के सामने पेश किया, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने आप का इम्तिहान लिया और आप से हर इल्मो फन के चंद सवालात किए, हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! ने सारे वासलों के इस तरह इत्मीनान बख्श जवाब दिए के सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! मुत्मइन हो गए।

किन बुज़ुरगों से आप ने इल्म हासिल किया

हजरत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! जब पंडवा शरीफ बंगाल! से वापस दिल्ली तशरीफ़ ले गए तो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का विसाल हो चुका था, लेकिन आप ने दरे मुर्शिद को नहीं छोड़ा बल्के पीरो मुर्शिद की खानकाह में ही अपना क़याम रखा, और जानशीने मुर्शिद हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से तरबियत हासिल करते रहे,
और आप ने जिन अज़ीम हस्तियों से इक्तिसाबे इल्म किया है वो ये हैं, (1) सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! (2) हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! (3) आलिमे रब्बानी हजरत अल्लामा शैख़ फर्ख़रूद्दीन ज़ररादी रहमतुल्लाह अलैह, (4) जामे माकूल व मन्क़ूल हज़रत अल्लामा शैख़ रुकनुद्दीन इन्दर पति रहमतुल्लाह अलैह,

आप के खुलफाए किराम

हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह के खुलफाए किराम में हमें सिर्फ आप के एक ही खलीफा का नाम मिलता है वो हैं हज़रत मख़्दूमुल आलम शैख़ उमर अलाउल हक पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! का नाम बहुत ही मशहूर है, और आप के मुरीदो खलीफा हैं, हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी चिश्ती किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह हैं

आप का अक़्द मस्नून

हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! ने निकाह किया था और आप साहिबे औलाद भी हुए थे, मगर ये नहीं मालूम हो सका के आप का निकाह कहाँ और किस की साहबज़ादी से हुआ था और कुल कितने फूल आप के आँगन में खिले थे, तलाश व जुस्तुजू के बाद सिर्फ इतना मालूम हो सका के हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! की एक शहज़ादी थीं,

विसाले पुरमलाल

हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! की तारिख, माह और साले पैदाइश की तफ्सील हमे किसी मुतबार किताब में अभी तक नज़र नहीं आई, अख़बारूल आखिर! का तर्जुमा जो ममौलना सुब्हान महमूद और मौलाना मुहम्मद फ़ाज़िल ने किया है, इसमें आप की साले पैदाइश 656, हिजरी है वफ़ात 730, हिजरी है,
मुअर्रीख़े अहले सुन्नत मुफ़्ती गुलाम सरवर लाहोरी रहमतुल्लाह अलैह! “ख़ज़ीनतुल असफिया” में लिखते हैं के: आप की वफ़ात 758, हिजरी में हुई, और एक कोल के मुताबिक आप की वफ़ात 743, हिजरी में हुई, वल्लाहु आलम।

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार शरीफ ज़िला मालदा वेस्ट बंगाल में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”


रेफरेन्स हवाला

  1. मिरातुल असरार
  2. सेरुल औलिया
  3. बहरे ज़ख्खार
  4. तज़किराए औलियाए बर्रे सगीर
  5. अख़बारूल अखियार
  6. लताइफे अशरफी
  7. ख़ज़ीनतुल असफिया

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