हज़रत ख्वाजा शैख़ अलाउल हक पंडवी चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा शैख़ अलाउल हक पंडवी चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

विलादत बसआदत

पेशवाए अरबाबे हिदायत, मुक़्तदाए अस्हाबे विलायत, तख़्त नशीन अकलीमे फ़ज़्लो कमाल, आलिमो फ़ाज़िल, मख़्दूमुल आलम क़ुत्बे बंगाल, गंजे नबात, मुर्शिदे मख़्दूमे अशरफ सिमनानी, हज़रत शैख़ उमर अलाउल हक वद्दीन खालिदी चिश्ती पंडवी बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! की पैदाइश मुबारक 701, हिजरी मुताबिक 1302, ईसवी में पाकिस्तान के मशहूर शहर लाहौर! में हुई, बाज़ हज़रात कहते हैं के आप की पैदाइश पंडवा शरीफ में हुई ये सही नहीं है, हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की जाए पैदाइश के तअल्लुक़ से हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं, के दारुल खिलाफत जन्नत आबाद उर्फ़ “गोर पंडवा शरीफ” में जो सादाते किराम रहते हैं, जो क़ुत्बुल औलिया मुहक्किके ज़माना ताजदारे सूफ़िया मख़्दूमे गिरामी हज़रत मौलाई सनादि हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! विलायते लाहौर व मुल्तान से आए थे,
मज़कूरा इबारतों से अब यकीन हो गया के हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की विलादत लाहौर में हुई थी और आप लाहौर! से पंडवा शरीफ मआ अहले खानदान व शागिरदान और सादाते किराम तशरीफ़ लाए थे।

नाम व लक़ब

आप का नामे नामी व इस्मे गिरामी “उमर बिन असअद” है, अलाउद्दीन, अलाउल हक, शैखुल आलम, सुल्तानुल मुर्शिदिन, गंजे नबात, मुरीदो खलीफा आईनए हिंदुस्तान हज़रत ख्वाजा शैख़ अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती ऊधी बंगाली रहमतुल्लाह अलैह आप के मशहूर अलकबात है।

आप का नसब नामा

हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! का नसब सहाबिए रसूल हज़रत खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु से मिलता है, साहिबे ख़ज़ीनतुल असफिया! लिखते हैं के: हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! सहीहुन नसब कुरैशी थे, और आप का नसब नामा हज़रत खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु से मिलता है, हज़रत सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं के: सातवीं सदी हिजरी में शहर लाहौर! में हज़रत सय्यदना खालिद बिन वलीद रदियल्लाहु अन्हु की नस्ल से एक मशहूर खानदान आबाद था, कुदरत ने इस खानदान को अपनी नेमतों के लिए मुन्तख़ब फरमा लिया था और खानदान का हर फर्द इस्लाम का नमूनए,
हसना बना हुआ था, हर खासो आम इन के घराने का दिलदादा था और और बड़े बड़े सलातीने ज़माना इल्मी मजलिस व महफ़िल की ज़ीनत के लिए इस खानदान को मदऊ यानि बुलाया करते थे, इस मुअज़्ज़म खानदान में हज़रत मौलाना असअद का तूती शोहरा ज़ियादा था, हज़रत मौलाना असअद के साहबज़ादे का इल्मी तबाहुर और दीनी बुलंदी उरूज इस दर्जा पहुंच गया था, के लोग इनको “अलाउल हक वद्दीन” कहते थे, और आप के कदम बोसी की आरज़ू शाहाने ज़माना यानि ज़माने के बादशाह भी करते थे, गर्ज़ के पूरा लाहौर! हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के इज़्ज़तो फ़ज़्लो कमाल को तस्लीम करता था।

मादरी नसब

हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! की वालिदा माजिदा का नाम “बीबी माहे नूर” था, आप की वालिदा माजिदा आरिफा व सालिहा तक्वा शेआर खातून थीं, आप के नाना जान मुल्के ईरान! के रहने वाले थे, बहुत पाए के वली थे, हाश्मी ख़ानदान से तअल्लुक़ रखते थे, आप बड़े आबिदो ज़ाहिद मुन्कसिरुल मिजाज़, खुश खलीक आदत, साहिबे फ़ज़्लो कमाल और सखावत के पैकर थे, क्यों के आप के नाना जान अपने वक़्त के जलीलुल क़द्र सूफी बुज़रुग थे, लिहाज़ा करीने कयास से यही मालूम होता है के हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिदा मुहतरम की शादी लाहौर! में हो चुकी थी क्युंके उस दौर में शहर लाहौर व मुल्के ईरान! का तअल्लुक़ बहुत गहरा था और मुल्के हिंदुस्तान में आने वाला मुसाफिर लाहौर! के रास्ते से हिंदुस्तान! आया करता था, ग़ालिब गुमान यही है के आप की विलादत लाहौर में ही हुई थी।

खानवादए अलाईया का सियासी पसमंज़र

हज़रत सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के: ज़रा हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! को देखो, आप के वालिद माजिद गौरी सल्तनत! के वज़ीरे आज़म! थे, और आप के खानदानी भाईयों में कोई वज़ीर, कोई अमीर आला, ऊंचे आला मनसब उहदों पर फ़ाइज़ थे, इस अज़ीमुश्शान इस्लामी दौलत के अरकान इसी खानदान के अफ़राद हैं, उनके महल सरा तक किसी के सलाम की भी रसाई नहीं है, उनके चश्म व अबरू के इशारों पर हज़ारों सर कुर्बान होने को तय्यार हैं, वो खुद ज़िल्ले सुल्तानी के नीचे और उनके साए के नीचे इंसानो का एक जम्मे ग़फ़ीर, वो जिसके सलाम को कबूल करलें, उसकी सात पुश्त उसपर नाज़ करे, वो जिस की बात सुनलें 14, पुश्त उसकी फख्र करें, वो जिस रास्ते पर निकलें वहां के लोग आँखें को फर्श बन दें, वो जिस गली में चलें वहां इकरार इताअत के दामन बिछ जाएं, सुब्हानल्लाह! क्या अज़ीम खानवादा था! कितने अज़ीम लोग थे, कितनी बुलंद थीं उनकी दीनी व दुनियावी अज़मते, ऐसे अज़ीम खानदान में आँखें खोलने वाला शहज़ादा कैसा रहा होगा।

आपका सियासी किरदार

हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का हुकूमती उमूर में बहुत बड़ा अमल दखल था, मुअर्रिख़ीन ने वुज़राए हुकूमत में आप का नाम मुबारक भी शामिल किया है, आप का मंसबे वज़ारत किया था? इस सिलसिले में मुअर्रिख़ीन ने अलग अलग राय पेश की हैं, किसी ने महज़ वज़ीर लिखा है और किसी ने वज़ीरे आज़म लिखा है, हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद अबुल हसन मानकपुरी ने आईनए ऊध! में आप का ख़िताब “अमीदुल मलिक” लिखा है,
हज़रत सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह की तहक़ीक़ से ज़ाहिर होता है के: हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! जब शहर लाहौर! से पंडवा शरीफ! बंगाल मुन्तक़िल हुए थे, उस वक़्त आप वज़ीर नहीं थे, वरना आप ने जहाँ हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! के वालिद गिरामी और बिरादरान के मनासिब वुज़ारात का ज़िक्र किया है वहीं हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! की वुज़ारत का का भी ज़िक्र फ़रमा देते, हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद अबुल हसन मानकपुरी! की इबारत से ज़ाहिर है के हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! बंगाल के वज़ीर! थे, लिहाज़ा ये कहा जा सकता है के आपने मैदाने सियासत व हुकूमत में सरज़मीने बंगाल तशरीफ़ लाने के बाद कदम रखा, आप की सियासी करियर की इब्तिदा शुरुआत बंगाल से हुई हो,
कहते हैं के: हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! को फन्ने सिपाह गिरी व शमशीर ज़नी में महारते ताम्मा हासिल थी, बड़े से बड़ा शमशीर ज़न आप का मुकाबला करने से कतराता था, आप जिस फौज की कमांडरी अपने हाथ में लेलेते थे उसकी फ़तेह यकीनी हो जाती, इस लेहाज़ से अगर देखा जाए तो ये कहा जा सकता है के हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! का हुकूमते बंगाल में वुज़ारत दिफ़ा का उहदा रहा होगा, अगरचे ये तय नहीं है के हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! की वुज़ारत किस हाकिमे बंगाल के दौरे हुकूमत में रही थी और कितने दिनों तक रही थी? मगर उनके साहबज़ादे आज़म शाह को हुकूमते शाह सिकंदर इब्ने शमशुद्दीन भंगड़! की तरफ से चीफ कमांडर का उहदा दिया गया था।

आप का तबाह हुर इल्मी मकामो मर्तबा

इल्मो इरफ़ान हमेशा हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! के खानदान का तुर्रए इम्तियाज़ रहा है, दुनियावी मालो मनाल और इल्मी जाहो जलाल ही की वजह से ये खानदान शाहाने ज़माना का नूरे नज़र रहा है, ऐसे खानदानो के बच्चे भी यकताए रोज़गार होते हैं, हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! भी इसी खानदान के फरदे फरीद थे, और इल्मो फ़ज़्ल में ऐसा कमाल रखते थे, के साहिबाने इल्मो फ़ज़्ल और अहले जुब्बाओ दस्तार बड़ी क़द्र की निगाह से देखते थे, वो अपने वक़्त के सब से बड़े आलिमो फ़ाज़िल, मुफ़्ती व फकीह, मुफ़स्सिर मुहद्दिस, नहवी व सरफी, और अज़ीम खतीब थे, अल्लाह पाक ने इल्मे ज़ाहिरी के साथ इल्मे लदुन्नीभी अता फ़रमाया था,
चुनांचे 1014, हिजरी में लिखी गई किताब “गुलज़ारे अबरार” में लिखा है के आप को इल्मे लदुन्नी हासिल था,
हज़रत शैख़ मुहम्मद गौसी शत्तारी मांडवी ने लिखा है के: हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक अलाउद्दीन रहमतुल्लाह अलैह! बंगाली आप का लक़ब है आप दोनों जहाँ के इमाम थे, और दरसी व लदुन्नी दोनों इल्म आप को हासिल थे, हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! को उसूली फ़िक़्ही, और अरबी उलूम पर महारते ताम्मा हासिल थी,
मुसन्निफ़ “नुज़हतुल खवातिर” ने लिखा है के: आलिमे कबीर शैख़ उमर बिन असअद लाहोरी मारूफ बिहि हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! इल्मे फ़िक़्ह, व उसूल, और अरबी अदब के उल्माए कमिलीन में से थे, उनके वालिद शाही बंगाल के वज़ीर थे, इस लिए उमरा व सलातीन के नज़दीक उनकी बड़ी वजाहत और क़द्रो मन्ज़िलत थी, उनकी शुहरत पूरी दुनिया में थी, वो दर्स देते और लोगों को फाइदा पहुंचाते थे, कसीर लोगों ने उन से इल्म हासिल किया,
आप का सीना इल्म से लबरेज़ था, जिस का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है, कभी कभी अपने चहीते मुरीद हज़रत सय्यद अशरफ जहांगीर कुद्दीसा सिररुहु (जो दासों किरातों के हाफिजों कारी आलिम फ़ाज़िल बनकर आप की खिदमत में आए थे) से फरमाते थे, के गराइब असरार के अस्मार और अजाइब व आसार के अनवार यानी क़ुरआनी आयत के नुकात व रुमूज़, और फुसूस, व फुतुहात का हक़ाइक़ मुझ से हासिल कर लो, अहले इल्मो फ़ज़्ल पर आप की इल्मी सतवत व जलालत का दबदबा इस क़द्र छाया हुआ था के वक़्त के अफ्लातूने ज़माना भी आप का सामना करने से घबराते थे,
जय्यद उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम आप के सामने पर बांधे खड़े रहते थे।

इजाज़तो खिलाफत

बयान करते हैं के: हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! अपनी खानकाह में आने वाले उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम को अपने मख़सूस तालाब! से वुज़ू कराते थे, नाक़िसीन उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम के आज़ाए वुज़ू धुलते ही इल्म भी धुल जाता था, इस तरह कसीर उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम अपना सीना खाली कर के खानकाहे अलाईया! से जा चुके थे, हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! खानकाहे अलाईया! में तशरीफ़ लाए और अपने पीरो मुर्शिद हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का दिया हुआ लोटा आबे वुज़ू लेने के लिए तालाब में डाला तो हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! का सीना इल्म से खली हो गया, हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! के लिए हैरान कुन बात थी सैंकड़ों उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम जिन के सामने हमेशा सरझुकाते हों आज वो खुद दूसरों के सामने बेबस हो रहे थे, आजिज़ी के साथ माफ़ी के तलबगार हुए और अपना हाथ हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! के हाथ पर रख दिया और बैअत व मुरीद हुए,
एक दूसरी रिवायत इस तरह मन्क़ूल है के:
आईनए हिन्द हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! के बारे में मख़्दूमुल आलम हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! को इत्तिला दी गई के सादुल्लाह पुर सागर देखि के किनारे दिल्ली से एक बुज़रुग तशरीफ़ लाए हैं,

जो अपने आप को सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मुरीदो खलीफा कहते हैं, निस्बते सुल्तानुल मशाइख ने दिल में कशिश पैदा की और आप के अंदर मुलाकात की ख्वाइश पैदा हुई, आप रात को शेर पर सवार हो कर बा गरज़े मुलाकात पंडवा शरीफ! रवाना हुए, सादुल्लाह पुर सागर देखि! के करीब पहुंचते ही उधर आईनए हिन्द हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! के पास खबर पहुंची के शहर पंडवा शरीफ! से मख़्दूमुल आलम हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! आप के पास शेर पर सवार हो कर तशरीफ़ ला रहे हैं और वो करीब आ चुके हैं, उस वक़्त तहज्जुद की नमाज़ के लिए मिटटी की दिवार पर बैठ कर मिस्वाक कर रहे थे, आप ने मिटटी की दिवार को हुक्म दिया, चल! महमान का इस्तकबाल किया जाए, इतना कहते ही वो मिटटी की दिवार चलने लगी, चुनांचे मिटटी की दिवार को चलती देख कर मख़्दूमुल आलम हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक चिश्ती पंडवी रहमतुल्लाह अलैह! बहुत शरमिंदा हुए और खंदा पेशानी के साथ आप के कदमो का बोसा लिया और माफ़ी के तलबगार हुए, आईनए हिन्द हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह!
ने आप को कदमो से उठा कर सीने से लगा लिया, और खानकाह शरीफ में साथ ले गए, और उसी वक़्त बैअत मुरीद फरमा कर खिलाफत भी अता फ़रमा दी।

आप का हर तरफ चर्चा

हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! इल्मो अमल, ज़ुहदो वरा, तक्वा तदय्युन परहेज़गारी, और मकबूल बारगाहे इलाही होने का चर्चा चरों तरफ आम हो चुका था, सीना कमाल इल्म से और ज़हन जलाले फ़ज़्ल से आरास्ता था, उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम और अरबाबे हल्लो अक़्द उनके दर की दरबानी, अपने लिए सरमायऐ इफ्तिखार समझते थे, अहले जुब्बाओ दस्तार उनकी चौखट की, जबीं साई, अपनी फ़िरोज़ मंदी जानते थे, उनकी ज़ात ऐसी थी जिन के सामने लब कुशाई की किसी में जुरअत ना थी, वो ऐसी ज़ात थी जिन का ज़िक्र हर एक के साथ था, मगर वो उन में मुमताज़ थे, वो सब से आगे थे उनसे कोई आगे ना था,
वो ज़ाहिदों मुरताज़ों, और आबिदों के रहनुमा क़ाइद थे, हुक्मराँ व तख्त नशीनो के अमीर थे, लेकिन उन की क़ियादत व रहनुमाई उल्माए किराम जैसी थी, उनका अदलो इंसाफ काज़ियों जैसा था और उनका यकीन व इकान आरफ़ीने बिल्लाह जैसा था, वो एक जय्यद आलिमे दीन, फकीह, और साहिबे बसीरत व मुदब्बिर थे, उनका इल्म हुकूमत की वजह से बेकार नहीं हुआ, और उनके फैसलों ने अपने मुत्तबीइन की रज़ा मंदी की खातिर किसी पर ज़ुल्म नहीं किया,
यहाँ से आप की हयात का दूसरा दौर शुरू हुआ, आईनए हिन्द हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! से बैअतो खिलाफत! के बाद रंग जलाली में रंग जमाली आने लगा, इल्मे बातिन व तसव्वुफ़ राहे सुलूक की मनाज़िल की तरफ तवज्जुह होने लगी और देखते ही देखते वो सरखीले मशाइखे इज़ाम बन गए, शैखुल आलम, बन गए, सुल्तानुल मुर्शिदीन, मख़्दूमुल आलमीन, गंजे नबात जैसे अज़ीम अल्काबात से नवाज़े जाने लगे,
मुअर्रीख़े अहले सुन्नत मुफ़्ती गुलाम सरवर लाहोरी रहमतुल्लाह अलैह! “ख़ज़ीनतुल असफिया” में लिखते हैं के: इब्तिदाई ज़िन्दगी में बहुत खुशहाल, दुनियादार उल्माए वक़्त और अकाबिरे ज़माना की हैसियत से रहते थे, मगर जब सिलसिलए निज़ामिया में दाखिल हुए तो सब शानो शौकत छोड़ कर सिर्फ यादे इलाही में मशग़ूलो मसरूफ हो गए।

पीरो मुर्शिद की खिदमत में

हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने आईनए हिन्द हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! से मुरीद होने के बाद दुरवेशी इख़्तियार करली, हमेशा अपने मुर्शिद! की खिदमत में रहते थे, हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! अक्सरो बेश्तर सफर किया करते थे, बंगाल के अकनाफ़ो अतराफ़ में तबलीग़े इस्लाम के लिए महीनो सफर में गुज़ार दिया करते थे, क्या गर्मी क्या सरदी हर मौसम में गरम पानी से वुज़ू और ग़ुस्ल किया करते थे, खाना गरम तनावुल फरमाते थे,
हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को पीर की खिदमत की ऐसी लगन थी के गरम पतीला देगची, और चूलह वगेरा सरपर लेकर चलते थे, जिस की वजह से आप के सर के बाल गिर गए थे, हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! जब सवारी पर होते तो आप नग्गे पाऊं उन की सवारी के पीछे पीछे चला करते थे, जब आप इस हालत में अपने खेशो अक़ारिब के मुहल्लों और दोस्त व अहबाब के घरों के करीब से गुज़रते थे, लेकिन आप की शाने इस्तगना और सिफ़त दुरवेशी में ज़र्रा बराबर भी फर्क नहीं आता था,
हज़रत सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं के: आप के मुर्शिद गिरामी आईनए हिन्द हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! की आदते करीमा थी के सफर में अपना खेमा और सामान बावरची खाना साथ में रखते थे, और तबलीग़े इस्लाम रुश्दो हिदायत के लिए हज़रत का सफर में रहना ज़ियादा होता था, हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का ये काम था के मुसाफत तय करते वक़्त अपने सर पर खाने से भरा हुआ वज़नी गरम देग या पतीला, रखते थे और मुर्शिद के हमराह कुली, की तरह सामान उठाकर पैदल चलते थे,
“लताइफे अशरफी” में है के हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाया करते थे के: हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! की निस्बते कमाले दर्जा लुत्फ़ो महरबानी फ़रमाया करते थे, लेकिन इन से खिदमत इस हदतक लेते थे, के अक्सर औकात हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! पालकी में सवार हो जाते और सेर को निकल जाते थे, हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! पालकी का सीधा हाथ का डंडा अपने काँधे पर रख कर दूर तक पालकी ले जाते थे,
पीरो मुर्शिद की खिदमत करना कोई आसान काम नहीं था, इस लिए के हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को अपनों के ताने भी सुनने पढ़ते और गैरों की तनक़ीद भी सहनी पढ़ती, मगर आप ने अपने नफ़्स को ऐसा काबू कर लिया था के किस की तनक़ीद व ताना कुशी का आप पर कोई असर नहीं होता था,
हज़रत सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह रकम तराज़ हैं के: हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! के अइज़्ज़ा व अक़ारिब भी आप को कुली की सूरत में देखते तो अपने अइज़्ज़ा के ख़याल से बहुत शर्म करते और आप को समझाते के खानदानी ऐजाज़ की तुमने बड़ी बे कदरी की, हम तुम को बोझ उठाए हुए देखते हैं तो खून जिगर रहकर पी जाते हैं, तुमने अपने घर की दौलत शैख़, को दे दी है, हमारी और अपनी इज़्ज़त का ख़याल करो,
हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने अपने पीरो मुर्शिद आईनए हिन्द हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! की एक दो हफ्ता या एक दो माह तक ये खिदमत अंजाम ना दी बल्के आप मुसलसल 12, साल तक अंजाम देते रहे और पेशानी पर कोई बल भी नहीं आया अल्लाहु अकबर! डॉक्टर इक़बाल ने सच कहा है:

मिटा दे अपनी हस्ती को अगर कुछ मर्तबा चाहे
ये दाना ख़ाक में मिल कर गुले गुलज़ार होता है
तमन्ना दरदे दिल की हो तो कर खिदमत फकीरों की
नहीं मिलता है ये गोहर बादशाहों के ख़ज़ीनो में

हज़रत सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह रकम तराज़ हैं के: हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने दो चार दिन, दो एक महीना नहीं बल्के बारह साल तक मुर्शिद! की इस खिदमत को अंजाम दिया यहाँ तक के सर मुबारक के बाल बिलकुल गिर गए और फिर दुबारा नहीं जमे।

मुर्शिद के इनआमात

हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का तअल्लुक़ शाही खानदान से था, खानदान के बहुत से अफ़राद आला उहदों पर फ़ाइज़ थे बल्कि खुद हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! वज़ीरे आज़म! और अमीदुल मलिक! के उहदाए जलीला पर फ़ाइज़ थे इस पर मुस्तज़ाद ये के आप अपने वक़्त के जलीलुल क़द्र आलिमो फ़ाज़िल, इमामे अहले सुन्नत, शैख़े मारफत, पीरे तरीकत रहबरे शरीअत, अकनाफ़े हिंदुस्तान में आप की विलयतो फ़ज़ीलत की आम शुहरत थी, ऐसी अज़ीम हस्ती ने अपने आप को आईनए हिन्द हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! की ऐसी खिदमत अंजाम दी के आज के मुरीदीन व खुलफ़ा और मुद्दाआयाने मुहब्बत इस का तसव्वुर भी नहीं कर सकते, आईनए हिन्द हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! ने आप को ऐसे आला मकामो मर्तबे पर पंहुचा दिया था, के आप के एक इशारे पर अवामो खवास सरझुकाते नज़र आते थे,
“साहिबे मिरातुल असरार” हज़रत अल्लामा शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं के: “शैख़” पीरो मुर्शिद की तरबियत से आप बुलंद मक़ामात पर पहुंच गए और जिस क़द्र फ़ैज़ो बरकात “शैख़” पीरो मुर्शिद ने सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से हासिल किए थे विसाल के वक्त वो सब हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को अता कर दिए और अपना जानशीन भी बना दिया, जैसा के हज़रत सय्यद मुहम्मद मुहद्दिसे आज़म हिन्द किछौछवी रहमतुल्लाह अलैह रकम तराज़ हैं के: आप को अपनी खिलाफत से मुमताज़ फरमाकर ताज को सर पर रख दिया और सनादे तकमील अता फरमाकर निज़ामे आलम की बाग़ हाथ में देदी और अपना जानशीन भी बना दिया।

आप क़ुत्बे ज़माना हैं

“साहिबे मिरातुल असरार” हज़रत अल्लामा शैख़ अब्दुर रहमान चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह लिखते हैं के: के आप अब्दाल! थे चुनांचे लताइफे अशरफी! में लिखा है के हमारे अक्सर मशाइखे अब्दल हफ़्त यगाना थे, चुनांचे उनके सर हल्का हज़रत ख्वाजा अबू अहमद चिश्ती अलैहिर रह्मा थे, और हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! भी अब्दल! थे,
हज़रत मौलाना अज़ीज़ याकूब ज़ियाई बनारसी! ने लिखा है के: बिलाशुबह हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! फना फिश शैख़! की मंज़िल पर फ़ाइज़ थे, और अपनी ज़ात को खिदमते पीर के लिए वक़्फ़ कर दिया था, इन्ही सिफ़ाते आलिया ने आप को इरफानो मारफत का ख़ज़ीना और वक़्त का अब्दाल! बना दिया,
शाह बिजली रहमानी किरमानी लिखते हैं के: हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने जिस तरह अपनी इब्तिदाई ज़िन्दगी में एक बहुत बड़े आलिम की हैसियत से शुहरत हासिल की थी इसी तरह बाद में भी अपने मुर्शिद आईनए हिन्द हज़रत ख्वाजा अखि सिराजुद्दीन उस्मान चिश्ती बंगाली रहमतुल्लाह अलैह! की नवाज़िशात इनायतों व नज़रे करम से एक अज़ीम सूफी, वली, की हैसियत से मश्हूरो मारूफ हुए थे, बिलाशुबाह आप एक निहायत आली मकाम बुज़रुग थे, अवामो खवास में आप कुतब! की हैसियत से मशहूर थे, बाज़ सवानेह निगारों! ने अपनी किताबों में लिखा है के आप अपने वक़्त के “क़ुत्बे ज़माना” के उहदे पर फ़ाइज़ थे।

आप की सखावत

हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! मुरीद होते ही दरबारे शाही से अपना रिश्ता नाता तोड़ चुके थे, ज़िन्दगी का सारा सरमाया अपने मुर्शिद के कदमो पर निसार कर चुके थे, अगर कुछ पास में था वो शैख़ की खिदमतें इनायतें थीं, आप बड़े खलकत परवर फकीरो को नवाज़ते थे जूदो सखा के ताजदार थे,
मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! लिखते हैं के: हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! का हाथ बहुत खुला हुआ था, और लोगों को खूब माल देते थे, और फ़रमाया करते थे के मेरे मुर्शिद जितना खर्च करते थे में उस का अशरे अशीर! यानि दसवा हिंसा रत्ती भर भी खर्च नहीं करता।

बारह साल तक मुजाहिदा

हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! अपने मुरीदीन से सख्त मुजाहिदा व रियाज़त कराते थे, और ये रियाज़त एक दो माह या एक दो साल नहीं बल्के मुकम्मल बराह साल 12, साल तक करते थे, मुरीदीन की लियाकत व सलाहियत के ऐ तिबार से उन्हें जिस्मानी व रूहानी अमल सौंपा जाता था, किसी को अपनी खानकाह ही में तो किसी को “जंगलों और पहाड़ों पर जा कर रियाज़तों मुजाहिदा का अमल पूरा करना होता था” खानकाह से बाहर जा कर मुजाहिदा करने वाले मुरीदीन की खबर गिरी देख भल वैसी ही करते थे जैसी खानकाह में रहने वालों की करते थे, हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! हर मुरीद पर गहरी नज़र रखते थे, उनके अहवाल व कवाइफ़, इबादात व बंदगियां, और रोज़ीना मामूलात की खबर गिरी करते थे, और सभी के साथ हुस्ने अख़लाक़ से पेश आते थे और सब आला मक़ाम तक पहुंचते।

आप के खुलफाए किराम

(1) आप के सबसे मश्हूरो मारूफ खलीफा ग़ौसुल आलम हज़रत सय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी किछौछवी
(2) शैख़ अहमद नुरुल हक वद्दीन उर्फ़ नूर कुतब आलम
(3) शैख़ आदिलुल मलिक जौनपुरी सुम्मा राए बरैली
(4) ताजदारे विलायत शैख़ नसीरुद्दीन मानकपुरी
(5) हज़रत शाह हुसैन गरीब धकड़ पोश
(6) हज़रत सुल्तान हुसैन शाह जौनपुरी
(7) हज़रत मौलाना शैख़ अली
(8) हज़रत शैख़ अब्दुल्लाह रिद्वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमई।

आप की कशफो करामात

हमारी बिल्ली दो

हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! साहिबे कशफो करामात बुज़रुग थे, अल्लाह पाक ने आप की ज़बान मुबारक में हद दर्जा तासीर अता फ़रमाई थी, जिस के लिए जो फरमा देते थे, वो हो कर रहता था,
मुजद्दिदे वक़्त हज़रत शैख़ अब्दुल हक मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! और दीगर मुअर्रिख़ीन ने बा इत्तिफाक आप की ये करामत बयान फ़रमाई है के: एक बार हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की खानकाह में चंद कलंदर आ पहुंचे, उन के पास एक बिल्ली थी जो वहां आ कर गुम हो गई, कलंदरों ने हज़रत से कहा के: आप की खानकाह में हमारी बिल्ली गुम हो गई है, उसे कहीं से तलाश कर के हमे दो, आप ने फ़रमाया: तुम्हें तो शाख आहू, हिरन की सीगं से सज़ा मिलेगी, एक और कलंदर आगे बड़ा उसने बदज़बानी शुरू करदी और कहने लगा, हमारी बिल्ली तो देनी पड़ेगी, हम अपनी बिल्ली कहाँ से लाएं? क्या हम अपने खुसयों से लाएं? आप ने फ़रमाया: हाँ, तुम्हें तो तुम्हारे खुसयों से ही मिलेगी, जब कलंदर खानकाह से रवाना हुए तो सामने से एक ताकतवर बेल आ रहा था, और जिस कलंदर ने शाख आहू, से बिल्ली लाने को कहा था उसे अपने सींगों पर उठा लिया और ज़मीन पर दे मारा और वो हलाक हो गया, और जिस ने खुसियों से बिल्ली लाने को कहा था उस के खुसिया इतने सूज गए के वो उसी वक़्त मर गया, ये दोनों कलंदर अपनी गुस्ताखी की सज़ा को पहुंच गए,

मुर्दा घोड़े ज़िंदा हो गए

मन्क़ूल है के हज़रत मखदूम तवेला बख्श पंडवा शरीफ में एक दरख्त के नीचे बैठ कर कपड़ा सीने का काम करते थे, एक दिन एक घोड़े का ताजिर आया, उस ने आप के मकामो मर्तबा को समझा नहीं और आमियाना आम आदमियों की तरह बात कलाम करना शुरू कर दिया, हज़रत मखदूम तवेला बख्श रहमतुल्लाह अलैह के दिल को ठेस पहुंची और उनके सारे घोड़े मर गए, फिर बाद में हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की निगाहें इल्तिफ़ात से ज़िंदह हो गए।

आप का अक़्द मस्नून

हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की ज़ौजाह मुहतरमा (बीवी) “बीबी महरून निसा” जो नेक फ़रमा बरदार खातून थीं, शाबान की किसी तारिख में आप का विसाल हुआ, आप का मज़ार शरीफ हज़रत मखदूम आलम के कदमो की जानिब है, हज़रत शैख़ ख्वाजा अलाउल हक पंडवी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को अल्लाह पाक ने औलाद की नेमत से बहरावर किया था, सीरत निगारों की तहरीरों में पांच औलादों का ज़िक्र मिलता है चार साहबज़ादे और एक साहबज़ादी,
(1) हज़रत शैख़ मुहम्मद आज़म, (2) हज़रत शैख़ अहमद नुरुल हक उर्फ़ नूर कुतब आलम, (3) हज़रत शैख़ मुहम्मद आला, (4) हज़रत शैख़ मुहम्मद क़ाज़ी, (5) एक दुख्तर! आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के हकीकी भतीजे सय्यद शाह इब्राहीम इब्ने सय्यद शाह जलालुद्दीन बदायूनी रहमतुल्लाह अलैह के फ़रज़न्द अर्जमन्द हज़रत मखदूम सय्यद फरीदुद्दीन तवेला बख्श की बीवी थीं।

विसाले पुरमलाल

आप का विसाल 785, हिजरी मुताबिक 1384, में हुआ, बाज़ हज़रात कहते हैं की आप की नमाज़े जनाज़ा हज़रत ख्वाजा जलालुद्दीन बुखारी मखदूम जहानियां जहां गश्त रहमतुल्लाह अलैह ने पढाई थी, वल्लाहु आलम,

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुकद्द्स पंडवा शरीफ सूबा बंगाल में मरजए खलाइक है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मिरातुल असरार
(2) बहरे ज़ख्खार
(3) तज़किराए औलियाए बर्रे सगीर
(4) अख़बारूल अखियार
(5) लताइफे अशरफी
(6) ख़ज़ीनतुल असफिया
(7) हयाते मख़्दूमुल आलम

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