हज़रत ख्वाजा शैख़ अलाउद्दीन नीली चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

हज़रत ख्वाजा शैख़ अलाउद्दीन नीली चिश्ती देहलवी रहमतुल्लाह अलैह की ज़िन्दगी

बैअतो खिलाफत

मुक़्तदाए वक़्त, आरिफ़े रुमूज़े सुब्हानी, हज़रत ख्वाजा शैख़ अलाउद्दीन नीली चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! तमाम फ़ज़ाइल से आरास्ता पेरास्ता थे, आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के “दस खुलफाए किराम” में से थे, आप यूपी उत्तर प्रदेश के अज़ीम आलिमे दीन थे, आप का ज़ाहिरी और बातनी आलिमाना मिजाज़ था, लेकिन सूफियाना तरज़े ज़िन्दगी आप अपनाए रहते थे, अगरचे आप को सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से खिरकाए खिलाफत व इजाज़त मिला था, लेकिन आप किसी को बैअत नहीं करते थे, फ़रमाया करते थे अगर मेरे पीरो मुर्शिद ज़िंदा होते तो में ये इजाज़त नामा उन्हें वापस कर देता, क्यों के मुझ जैसे नाकारा आदमी से इतनी अज़ीम ज़िम्मेदारी पूरी नहीं हो सकती,

हज़रत ख्वाजा मीर हसन अला संजरी रहमतुल्लाह अलैह की किताब “फवाईदुल फवाइद” जो सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मलफ़ूज़ात पर मुश्तमिल है, इसको हमेशा अपने पास रखते थे, और दिन रात मुताला करते लोगों ने आप से पूछा के तसव्वुफ़, इल्मे फ़िक़्ह, इल्मे हदीस, और तफ़्सीर की हज़ारों किताबें आप के पास मौजूद हैं, मगर आप सिवाए “फवाईदुल फवाइद” के किसी किताब में दिलच्पी नहीं लेते और इसको तावीज़ की तरह अपने पास रखते हैं, आप ने फ़रमाया के सुलूक की किताबों से सारा जहाँ भरा पड़ा है मगर पीरो मुर्शिद के मलफ़ूज़ात दिल को जिस अंदाज़ से फरहत सुकून बख्शते हैं, उस का मज़ाह ही कुछ और है।

वफ़ात

मज़ार मुबारक

आप का मज़ार मुबारक दिल्ली में सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार के पास में ही मरजए खलाइक है।

आप का इन्तिकाल 762, हिजरी में हुआ।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मिरातुल असरार
(2) ख़ज़ीनतुल असफिया

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