हज़रत ख्वाजा शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह

हज़रत ख्वाजा शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह

बैअतो खिलाफत

अफ़रादे कामिल, हज़रत ख्वाजा शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह जमी कमालात से मौसूफ़ थे, और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के “दस खुलफाए किराम” में से इल्मो हिकमत सख़ावतो शुजाअत इश्को समा व तजरीदो तफ़रीद में बेनज़ीर थे, आप हरगिज़ पीरी मुरीदी और दीगर लिवाज़िमात दुनिया, जैसे फ़रज़न्द व ज़न की तरफ आप का लगाओ नहीं रखते थे, आप ने सारी उमर तजररुद (जिस ने कभी शादी नहीं की हो) में गुज़ारी, आप के मुरीद होने का वाकिअ ये है के: साहिबे “सेरुल औलिया”ने लिखा है के: हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते हैं के जब में दिल्ली में हज़रत मौलाना फखर्रूद्दीन हांसवी से तालीम हासिल कर रहा था, तो हज़रत ख्वाजा शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह भी इन की खिदमत में इल्मे फ़िक़्ह की किताब “हिदाया! पढ़ते थे, और दूसरा कोई तालिबे इल्म आप की तरह नहीं था, लेकिन जब सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का ज़िक्र आता तो ये तअस्सुब की तरह रवय्या इख़्तियार करते थे, ये बात मुझ को सख्त बुरी लगती थी, में उन से कहता था के आप ये बातें इस लिए करते हैं के आप ने इस बादशाहे इरफ़ान को नहीं देखा, एक दिन में इनको सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की खिदमत में ले गया, कदम बोसी के बाद आप ने शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! की तरफ देख कर पूछा के क्या पढ़ते हो? इन्होने कहा हिदाया! आप ने पूछा के कहाँ तक पढ़ चुके हो, इन्होने अपना सबक बताया और दिल में कुछ आप के शुबाह था, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! से पूछना चाहा, आप ने कमाले फिरासत से जान लिया और उनका इशकाल मालूम कर के बयान शुरू किया, आप के गन्जीनाए लताफत की तकरीर और हुस्ने अंदाज़ को देख कर मौलाना फखर्रूद्दीन दांग रह गए,
इस के बाद उन्होंने आगे बढ़ कर मेरे कान में कहा के में अभी मुरीद होना चाहता हूँ, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने दरयाफ्त किया के क्या कहता है? में ने कहा मुरीद होना चाहता है, आप ने तबस्सुम कर के फ़रमाया दूसरी मजलिस में करूंगा,

हज़रत ख्वाजा शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने अर्ज़ किया के अगर इस मजलिस में मुरीद न हुआ तो खुद कुशी करलूँगा, सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! ने कमाले महरबानी से बैअत मुरीद फ़रमाया, इस के बाद हज़रत ख्वाजा शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! ने दानिशमंदों के ज़ुमरे से निकल कर किलो काल तर्क कर दिया, और कागज़ और किताबें दूसरों के हवाले करदीं, गुरुर, दानिशमंदी, जाहो तलब सरसे निकाल कर दुरवेशों की जमात में दाखिल हो गए, और तमाम कियूद से आज़ाद हो गए, और गयासपुर में सुकूनत पज़ीर हो कर सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! के दर के सामने बैठ गए और पाँचों वक़्त की नमाज़ जमात के साथ आप के साथ पढ़ते थे, और खल्वत के वक़्त मुर्शिद की मजालिस में शामिल हो कर फियूज़ो बरकात हासिल करने लगे, जब तक सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! बा हयात रहे इन्होने आस्ताने से सर नहीं उठाया ।

सीरतो ख़ासाइल

जब सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! का विसाल हो गया तो हज़रत ख्वाजा शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! बेक़रार हो गए, कुछ अरसे के लिए नहर के किनारे जहाँ सुल्तान फ़िरोज़ शाह ने शहर फ़िरोज़ाबाद आबाद किया था, इबादतों रियाज़त व मुजाहिदा में मशगूल रहे, कुछ अरसा के लिए मोज़ा नूली में मुकीम रहे, कुछ अरसा सुल्तान अलाउद्दीन के होज़ के किनारे मुकीम रहे इस के बाद सफर पर रवाना हुए और गुले गुलज़ारे चिश्तियत सुल्तानुल हिन्द हज़रत ख्वाजाए ख्वाजगान ख्वाज़ा गरीब नवाज़ मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी रहमतुल्लाह अलैह! के मज़ार शरीफ की ज़ियारत के लिए तशरीफ़ ले गए, वहां से हज़रत ख्वाजा बाबा फरीदुद्दीन मसऊद गंजे शकर रहमतुल्लाह अलैह के मज़ार मुबारक की ज़ियारत के लिए पाकपटन गए, अल्गर्ज़ सहरा, पहाड़ों और गारों में इबादत करते रहे, चुनांचे कोई भी आप के हालात से आगाह न हुआ, और आप ने अपनी उमर अपने पीरो मुर्शिद की मुहब्बत में गुज़ारदी और सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की नज़रे शफकत की बरकत से दुनिया में मकबूलियत हासिल की, हज़रत ख्वाजा नसीरुद्दीन महमूद रोशन चिराग देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! फरमाते थे जो मक़ामात हमे एक माह में हासिल हुए, वो हज़रत ख्वाजा शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! को एक दिन में हासिल हो गए, जिन दिनों में दिल्ली के बाशिंदे सुल्तान मुहम्मद तुगलक शाह के हुक्म पर उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम को खुल्दाबाद शरीफ भेजा तो हज़रत ख्वाजा शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! भी खुल्दाबाद शरीफ तशरीफ़ ले गए,
और वहां से बैतुल्लाह की ज़ियारत का एहराम बांधा, मनासिके हज अदा करने के बाद बैतुल्लाह की ज़ियारत की और गुम्बदे ख़ज़रा की हाज़री से फारिग हो कर बाग्दाद् शरीफ पहुचें, वहां के उल्माए किराम व मशाइखे इज़ाम ने आप का इस्तकबाल किया और शहर में ले गए, और कुछ अरसा वहां ठहर कर आप इल्मे हदीस का दर्स देते रहे, और वहां के तमाम उल्माए किराम आप के फ़ज़ाइलो कमालात के काइल थे वहां से आप सरकार महबूबे इलाही निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी रहमतुल्लाह अलैह! की ज़ियारत की खातिर बाग्दाद् शरीफ से दिल्ली के लिए कश्ती पर रवाना हुए और हिंदुस्तान की तरफ चल दिए, इत्तिफ़ाक़ से जहाज़ तो समंदर में गर्क हो गया हज़रत ख्वाजा शैख़ फखर्रूद्दीन ज़ररादी चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह! भी शहीद हो गए, ये वाक़िआ गालिबन जहाज़ डूबने का 747, हिजरी का है।

“अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त की उन पर बेशुमार रहमत हो और उन के सदके में हमारी मगफिरत हो”

रेफरेन्स हवाला

(1) मिरातुल असरार
(2) ख़ज़ीनतुल असफिया

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